भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

(c) २०००-२०२२ सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि।  भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल http://www.geocities.com/.../bhalsarik_gachh.html , http://www.geocities.com/ggajendra   आदि लिंकपर  आ अखनो ५ जुलाइ २००४ क पोस्ट http://gajendrathakur.blogspot.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html   (किछु दिन लेल http://videha.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html   लिंकपर, स्रोत wayback machine of https://web.archive.org/web/*/videha   258 capture(s) from 2004 to 2016- http://videha.com/  भालसरिक गाछ-प्रथम मैथिली ब्लॉग / मैथिली ब्लॉगक एग्रीगेटर) केर रूपमे इन्टरनेटपर  मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितक रूपमे विद्यमान अछि। ई मैथिलीक पहिल इंटरनेट पत्रिका थिक जकर नाम बादमे १ जनवरी २००८ सँ "विदेह" पड़लै। इंटरनेटपर मैथिलीक पहिल उपस्थितिक यात्रा विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि, जे http://www.videha.co.in/   पर ई प्रकाशित होइत अछि। आब “भालसरिक गाछ” जालवृत्त 'विदेह' ई-पत्रिकाक प्रवक्ताक संग मैथिली भाषाक जालवृत्तक एग्रीगेटरक रूपमे प्रयुक्त भऽ रहल अछि। विदेह ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA

 

(c)२०००-२०२२. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। सह-सम्पादक: डॉ उमेश मंडल। सहायक सम्पादक: राम वि‍लास साहु, नन्द विलास राय, सन्दीप कुमार साफी आ मुन्नाजी (मनोज कुमार कर्ण)। सम्पादक- नाटक-रंगमंच-चलचित्र- बेचन ठाकुर। सम्पादक- सूचना-सम्पर्क-समाद- पूनम मंडल। सम्पादक -स्त्री कोना- इरा मल्लिक।

रचनाकार अपन मौलिक आ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) editorial.staff.videha@gmail.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकै छथि। एतऽ प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक/संग्रहकर्त्ता लोकनिक लगमे रहतन्हि,'विदेह' प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका मात्र एकर प्रथम प्रकाशनक/ प्रिंट-वेब आर्काइवक/ आर्काइवक अनुवादक आ आर्काइवक ई-प्रकाशन/ प्रिंट-प्रकाशनक अधिकार ऐ ई-पत्रिकाकेँ छै, आ से हानि-लाभ रहित आधारपर छै आ तैँ ऐ लेल कोनो रॊयल्टीक/ पारिश्रमिकक प्रावधान नै छै। तेँ रॉयल्टीक/ पारिश्रमिकक इच्छुक विदेहसँ नै जुड़थि, से आग्रह। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत।  एहि ई पत्रिकाकेँ श्रीमति लक्ष्मी ठाकुर द्वारा मासक ०१ आ १५ तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।

स्थायी स्तम्भ जेना मिथिला-रत्न, मिथिलाक खोज, विदेह पेटार आ सूचना-संपर्क-अन्वेषण सभ अंकमे समान अछि, ताहि हेतु ई सभ स्तम्भ सभ अंकमे नइ देल जाइत अछि, ई सभ स्तम्भ देखबा लेल क्लिक करू नीचाँ देल विदेहक 346म आ 347 म अंक, ऐ दुनू अंकमे सम्मिलित रूपेँ ई सभ स्तम्भ देल गेल अछि।

“विदेह” ई-पत्रिका: देवनागरी वर्सन

“विदेह” ई-पत्रिका: मिथिलाक्षर वर्सन

“विदेह” ई-पत्रिका: मैथिली-IPA वर्सन

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Friday, May 8, 2009

पञ्जी प्रबन्ध : १: गजेन्द्र ठाकुर/ नागेन्द्र कुमार झा/ पञ्जीकार विद्यानन्द झा

जीनोम मैपिंग (४५० ए.डी.सँ २००९ ए.डी.)
-मिथिलाक पञ्जी प्रबन्ध


जीनोम मैपिंग (४५० ए.डी.सँ २००९ ए.डी.)
-मिथिलाक पञ्जी प्रबन्ध

































जीनोम मैपिंग (४५० ए.डी.सँ २००९ ए.डी.)
-मिथिलाक पञ्जी प्रबन्ध
( डिजिटल इमेजिंग, मिथिलाक्षर अंकन, देवनागरी लिप्यंतरण आ सम्‍पादन )

खण्ड १ - ३


गजेन्द्र ठाकुर
नागेन्द्र कुमार झा
पञ्जीकार विद्यानन्द झा




जीनोम मैपिंग (४५० ए.डी.सँ २००९ ए.डी.)
-मिथिलाक पञ्जी प्रबन्ध
( डिजिटल इमेजिंग, मिथिलाक्षर अंकन, देवनागरी लिप्यंतरण आ सम्पा दन )

खण्ड १ - ३

गजेन्द्र ठाकुर
नागेन्द्र कुमार झा
पञ्जीकार विद्यानन्द झा





श्रुति प्रकाशन , दिल्‍ली


श्रुति प्रकाशन , दिल्लीथ







Ist edition 2009 of Genome Mapping 450AD to 2009AD- Panji Prabandh of Mithila Vol.I-III authors Gajendra Thakur, Nagendra Kumar Jha & Panjikar Vidyanand Jha
published by M/s SHRUTI PUBLICATION, 8/21, Ground Floor, New Rajendra Nagar, New Delhi-110008 Tel.: (011) 25889656-58 Fax: 011-25889657

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ISBN 978-81-907729-6-9
Price: Rs. 5,000/- (INR) US $ 1600

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आमुख

पञ्जी प्रबन्ध पूर्व मध्य कालमे ब्राह्मण, कायस्थ आ क्षत्रिय वर्गक जाति शुद्धताक हेतु निर्मित कएल गेल । कोनो ब्राह्मणक जाति शुद्धताक हेतु उतेढ़ जानब आवश्यक छल।उतेढ़ छल सात पुरुषक परिचय, जाहि हेतु एहि बत्तीस कुलक परिचय आवश्यक छल- पिता एवं माताक पितामह एवं पितामही आ मातामह एवं मातामही केर पितामह एवं पितामही आ माता एवं मातामही केर पिता। आ एहि बत्तीस पूर्वजसँ विवाहयोग्य व्यक्ति सातम पड़बाक चाही।एहि क्रममे श्रोत्रिय,योग्य आ पञ्जीबद्ध श्रेणीक विभाजन गेल। जे पञ्जीबद्ध नहि छलाह से जएबार भेलाह। उतेढ़मे श्रोत्रिय मातृपक्षमे पाँच पीढ़ी आ पितृपक्षमे सात पीढ़ी त्यागि विवाह करैत छलाह।पञ्जीबद्ध लोकनि जिनका वंशज सेहो कहल जाइत अछि,मातृ पक्षमे पाँच आ पितृ-पक्षमे छः पीढ़ी त्यागि कय विवाह करैत छलाह। सम्प्रति धर्मशास्त्रसँ श्रोत्रिय-योग्य-पञ्जीबद्ध आ तथाकथित जएवार सभहिक हेतु एकहि व्यवस्था अछि, भिन्न किछु नहि।२० प्रकारक गोत्र १६७ प्रकारक मूल आ अनेक प्रकारक मूलग्राममे ई सभ विभक्त छल। पुनः कर्मकाण्डक आधार पर सामवेदी आ शुक्ल यजुर्वेदी ब्राह्मणक दू गोट उर्ध्वाधर विभाजन क्रमशः छन्दोग्य आ वाजसनेय ब्राह्मणक रूपमे बनले रहल।२० गोट गोत्र आ १६७ मूल ग्राममे मुख्य मूल ३४ टा निर्धारित कएल गेल। एहि १६७ मूलसँ सेहो ई सभ विभिन्न क्षेत्र आ ग्राममे पसरलाह। परवर्ती कालमे फनन्दह मूलक खनाम शाखा ३५म मूलक रूपमे तथाकथित उच्च वंशक मध्य परिगणित भेल।
२० गोट गोत्र निम्न प्रकारे अछि: १. शाण्डिल्य २. वत्स ३. सावर्ण ४. काश्यप ५. पराशर ६. भारद्वाज ७. कात्यायन ८. गर्ग ९. कौशिक १०. अलाम्बुकाक्ष ११. कृष्णात्रेय १२. गौतम १३. मौदगल्य १४. वशिष्ठ १५. कौण्डिन्य १६. उपमन्यु १७. कपिल १८. विष्णुवृद्धि १९. तण्डी आ जातुकर्ण।
मुख्य ३५ (३४+ फनन्दह मूलक खनाम शाखा) मूल सेहो तीन श्रेणीमे विभक्त अछि।
अयान्त श्रेष्ठ- प्रथम श्रेणीमे १. खड़ौरय, २. खौआड़य, ३. बुधबाड़य, ४. मड़रय, ५. दरिहरय, ६. घुसौतय, ७. तिसौतय, ८. करमहय, ९. नरौनय, १०. वभनियामय, ११. हरिअम्मय, १२. सरिसवय, १३. सोदरपुरिये।
द्वितीय श्रेणीमे १. गंगोलिवार, २. पवौलिवार, ३. कुजौलिवार, ४. अलेवार, ५. वहिड़वार, ६. सकड़िवार, ७. पलिवार, ८. विसेवार, ९. फनेवार, १०. उचितवार, ११. पंडुलवार, १२. कटैवार, १३. तिलैवार।
मध्यम मूल- १. दिघवे, २. बेलौंचै, ३. एकहरे, ४. पंचोभे, ५. वलियासे, ६. जजिवाल, ७. टकवाल, ८. पण्डुए।
प्रवर:मैथिल ब्राह्मणक मध्य २ वर्गक प्रवर परिवार होइत अछि- त्रिप्रवर आ पाँच प्रवर। जाहि गोत्रक तीन गोट पूर्वज ऋगवेदक सूक्तिक रचना कएल से त्रिप्रवर आ जाहि गोत्रक पाँच गोट पूर्वज लोकनि ऋगवेदक सूक्तक रचना कएल से पाँच प्रवर कहबैत छथि।
एहि प्रकारेँ गोत्रानुसारे प्रवर निम्न प्रकार भेल:-
त्रिप्रवर- १.शाण्डिल्य, २.काश्यप,३. पराशर, ४. भारद्वाज, ५. कात्यायन, ६. कौशिक, ७. अलाम्बुकाक्ष, ८. कृष्णात्रेय, ९. गौतम, १०. मौदगल्य, ११. वशिष्ठ, १२. कौण्डिन्य, १३. उपमन्यु, १४. कपिल, १५. विष्णुवृद्धि, १६. तण्डी।
पंचप्रवर- १. वत्स, २. सावर्ण, ३. गर्ग।
प्रवरक विस्तृत विवरण निम्न प्रकारेँ अछि-
१. शाण्डिल्य- शाण्डिल्य, असित आ देवल। २. वत्स-ओर्व, च्यवन,भार्गव,जामदगन्य आ आप्लवान। ३. सावर्ण- ओर्व, च्यवन, भार्गव, जामदगन्य आ आप्लवान। ४. काश्यप-काश्यप, अवत्सार आ नैघ्रूव। ५. पराशर-शक्ति, वशिष्ठ आ पराशर। ६. भारद्वाज-भारद्वाज, आंगिरस आ बार्हस्पत्य। ७. कात्यायन-कात्यायन, विष्णु आ आंगिरस। ८. गर्ग-गार्ग्य, घृत, वैशम्पायन, कौशिक आ माण्डव्याथर्वन। ९. कौशिक- कौशिक, अत्रि आ जमदग्नि. १०. अलाम्बुकाक्ष-गर्ग, गौतम आ वशिष्ठ. ११. कृष्णात्रेय-कृष्णात्रेय, आप्ल्वान आ सारस्वत. १२. गौतम-अंगिरा, वशिष्ठ आ बार्हस्पत. १३. मौदगल्य-मौदगल्य, आंगिरस आ बार्हस्पत्य. १४. वशिष्ठ-वशिष्ठ,अत्रि आ सांकृति. १५. कौण्डिन्य-आस्तिक,कौशिक आ कौण्डिन्य. १६. उपमन्यु-उपमन्यु, आंगिरस आ बार्हस्पत्य। १७. कपिल-शातातप, कौण्डिल्य आ कपिल. १८. विष्णुवृद्धि-विष्णुवृद्धि, कौरपुच्छ आ त्रसदस्य १९. तण्डी-तण्डी, सांख्य आ अंगीरस २०. जातुकर्ण- जातुकर्ण, आंगीरस आ भारद्वाज।
एहिमे सावर्ण आ वत्सक पूर्वज एके छथि ताहि हेतु दू गोत्र होइतो हिनका बीच विवाह नहि होइत छन्हि। छानदोग्य आ वाजसनेयक वैदिक युगीन उर्ध्वाधर विभाजन एकर संग रहबे कएल आ यज्ञोपवीत मंत्र/ विवाह विधि दुनूक भिन्न-भिन्न अछि। फेर यज्ञोपवीतमे तीन प्रवर आकि पाँच प्रवर देल जाय ताहि हेतु उपरका सूचीक प्रयोग कएल जाइछ।
भारतीय इतिहासक वेत्ता ओ जातीय व्यवस्थाक मर्मज्ञ लोकनि जनैत छथि, जे भारतवर्षक ब्राह्मण लोकनि सर्वप्रथम वेदक आधार पर विभिन्न वर्गमे विभाजित रहथि। जेना- सामवेदी, यजुर्वेदी, आदि कहाबथि। मुदा समयक प्रभावमे भिन्न क्षेत्र-प्रक्षेत्रमे रहनिहार ब्राह्मण लोकनि भिन्न-भिन्न संस्कृतिसँ प्रभावित भए गेलाह। क्षेत्रीय संस्कृतिसँ प्रभावित होएबाक मुख्य कारण छल विशिष्ट क्षेत्रक विशिष्ट जलवायु, क्षेत्र विशेषक भाषा-विशेष, भिन्न-भिन्न क्षेत्रक भिन्न-भिन्न आहार एवम भेष-भूषा आ एक क्षेत्र सँ दोसर क्षेत्र जयबाक हेतु आवागमनक असुविधा आदि। फलतः क्षेत्र-विशेषक ब्राह्मण समुदाय, क्षेत्र विशेषक आचार-विचार, खान-पान, वेश-भूषा, भाव-भाषा ओ सभ्यता संस्कृतिसँ प्रभावित भय गेलाह।
उपरोक्त कारणे पुरानक युग अबैत-अबैत भारत वर्षक ब्राह्मण समाज भिन्न-भिन्न क्षेत्रक आधार पर विभिन्न वर्गमे विभाजित भए गेलाह। पुरानक सम्मतिये भारत-वर्षक समस्त ब्राह्मण समाजकेँ दस(१०) वर्गमे विभाजित कएल गेल। ब्राह्मणक ई दसो वर्ग थीक-उत्कल,कान्यकुब्ज,गौड़,मैथिल,सारस्वत, कार्णाट,गुर्जर, तैलंग,द्रविड़ ओ महाराष्ट्रीय। स्थूल रूपेँ पूर्वोक्त पाँच केँ पञ्च गौड़ आ अपर पाँचकेँ पञ्च द्रविड़ कहल जाइत अछि। एकर सीमांकन भेल विन्ध्याचल पर्वतक उत्तर पञ्च गौड़ ओ विन्ध्याचल पर्वतक दक्षिण पञ्च द्रविड़।
मैथिल ब्राह्मण: पञ्च गौड़ वर्गक मैथिल ब्राहमण लोकनि पुस्ति-दर-पुस्त सँ मिथिलामे रहबाक कारणेँ मिथिलाक विशिष्ट संस्कृतिसँ प्रभावित भए गेलाह, तँय अहि कारणेँ पुराणक युगमे मैथिल ब्राह्मण कहाए सुप्रसिद्ध भेलाह। मिथिला वस्तुतः प्राचीन विदेह राजवंशक राजधानी रहए। मुदा पश्चातक युगमे विदेह राजवंशक समस्त प्रशासित क्षेत्र अथवा जनपद मिथिला कहाए सुप्रसिद्ध भेल आ एहि जनपदक रहनिहार ब्राह्मण लोकनि मैथिल ब्राह्मण कहओलन्हि। ई मिथिला आइ नेपाल ओ बंगलादेशक सीमा सँ सटैत अनुवर्त्तमान अछि, जे राजनीतिक एवं सांस्कृतिक दृष्टिसँ अपन एक विशिष्ट स्थान रखैत अछि।
मैथिल ब्राह्मण लोकनि मूलतः दुइए गोट वेदक अनुयायी थिकाह। एक वर्ग यजुर्वेदक माध्यान्दिन शाखाक अनुयायी थिकाह तँ दोसर सामवेदक कौथुम शाखाक अनुगमन करैत छथि। यजुर्वेदक माध्यन्दिन शाखाक अनुयायी “वाजसनेयी” कहबैत छथि, एहिना सामवेदक कौथुम शाखाक अनुयायी छन्दोग कहबैत छथि।दुहुक संस्कारमे किछु स्थूल अन्तरो अछि। छन्दोगक उपनयनमे चारि गोट संस्कार- नामकरण, चूड़ाकरण, उपनयन ओ समावर्त्तन, मुदा वाजसनेयीक ई चारू संस्कार थिक, चूड़ाकरण, उपनयन, वेदारम्भ ओ समावर्त्तन। एहिना छन्दोग विवाह मुख्यतः दू खण्डमे सम्पन्न होइत अछि, पूर्व विवाह आओर उत्तर विवाह। उत्तर विवाह सूर्यास्तक बाद तारा (अरुन्धती) देखि कए होइत अछि। मुदा वाजसनेयी विवाहमे एहन कोनो विभाजन नहि अछि। एकहि क्रममे दिन अथवा रातिमे कखनहुँ भए सकैत अछि। वाजसनेयी ओ छन्दोगक धार्मिक संस्कारमे तँ सूक्ष्म अंतर कतौक अछि।
पुनश्च सप्तसिन्धु सँ प्राच्याभिमुखी यायावर ऋषि लोकनि गंगा ओ हिमालयक मध्यक सुभूमि मिथिलामे जाहि आर्यसंस्कृतिक बीज-वपन कएल, तकर मूल छल धर्म, धर्मक मूल छल जाति, ई जाति होयत एहि जन्मक विशुद्धिसँ, जन्मसँ विशुद्ध संतान होइत अछि!!
तखन जखन विवाहक अधिकार जाहि कन्यासँ हो तकरहिसँ विवाह कएला उत्तर प्राप्त संतान आर्य जातिक विवाहक नियम सभ सर्वप्रथम निबंधित भेल विभिन्न स्मृति सभमे। स्मृतिकार मनु ओ याज्ञवल्क्यक अनुसार ओहि कन्यासँ विवाहक अधिकार हो जे- १. समान गोत्रक नहि होथि, २. समान प्रवरक नहि होथि, ३. माइक सपिण्ड नहि होथि, ४. पिताक सपिण्ड नहि होथि, ५. पितामह अथवा मातामहक संतान नहि होथि, ६. कठमामक संतान नहि होथि।
एहि वैवाहिक अधिकारक निष्पादनार्थ कमसँ कम मनु ओ याज्ञवल्क्यक समयसँ तँ निश्चये लोक अपन ‘यावतो परिचय’ स्वयं अपनहि रखैत आबि रहल छल, मुदा पश्चातक युगमे ई प्रवृत्ति समाप्तप्राय भऽ गेल। विवाहक हेतु वर ओ कन्याक सम्पूर्ण परिचय तँ आवश्यके छल, जे आनहु धार्मिक संस्कारक हेतु सपिण्डत्वक विचार विवाहक अतिरिक्त श्राद्ध ओ अशौच प्रभृतिअहुमे आवश्यक होइत छल, एहि कारणेँ प्रागैतिहासिक कालहिसँ लोक अपन सांगोपांग परिचय रखैत छल। ओ ओकरहि अनुसार अपन धार्मिक क्रियाक निष्पादन करैत रहए। ई नियम सभ हमरा लोकनिक प्राचीनतम धर्मग्रंथ सभमे उपलब्ध अछि। स्मृति सभमे कहल गेल अछि, जे जनिकासँ विवाहक अधिकार नहि हो से स्वजना भेलीह। स्वजनासँ विवाहोपरांत प्राप्त संतान चाण्डाल बूझल जाइत छल। ओ आर्यत्वक मर्यादासँ बहिष्कृत मानल जाइत छल!! (एकर सए सँ बेशी अपवाद नीचाँ देल गेल अछि-आर बहुत रास भीतर पोथीमे भेटत।) अतः विवाहक पहिल चरण अधिकारक निर्णय रहल होयत। वर पक्ष ओ कन्या पक्षक लोक परस्पर बैसि अपन-अपन परिचयक आधार पर निर्णय करैत छल होएताह, जे ‘अमुक’ कन्यासँ ‘अमुक’ वरक विवाह हो वा नहि। मुदा परिचय रखबाक प्रवृत्तिक ह्रासक कारणेँ अधिकार-निर्णयक हेतु प्रत्येक परिवारक सुयोग्य ओ आस्थावान व्यक्ति अपन यावतो परिचय(३२ मूलक उल्लेख) लिखि कए राखय लगलाह। सातम शताब्दीसँ पूर्वहि एहि लिखित कौलिक परिचय ‘समूह लेख्य’ क उल्लेख सर्वप्रथम विद्वद्वरैण्य कुमारिल भट्ट रचित ‘तंत्र वार्त्तिक’मे भेल अछि, जे मीमांसा दर्शनक जैमिनी सूत्रक शबर द्वारा कएल भाष्यक गद्यात्मक ‘वार्त्तिक’ थीक। तंत्रवार्त्तिक दर्शनक ग्रंथ थीक जाहिमे यथार्थ वस्तुस्थितिक वर्णनसँ जातिक विशुद्धि सिद्ध कएल गेल अछि, जाहि आधार पर धर्मक निरूपण भए सकैत। कुमारिल भट्टक कहब छलन्हि जे “बड़का कुलीन लोक बड़ विशेष प्रयत्नसँ अपन जातिक रक्षा करैत छथि। तँहि तऽ क्षत्रिय ओ ब्राह्मण अपन पिता-पितामहादिक परम्परा बिसरि नहि जाए तेँ समूह-लेख्य चलौलन्हि। ओ प्रत्येक कुलमे गुण आ दोष देखि ओहि अनुरूप सम्बंध करबामे प्रवृत्त होइत छथि”।
“विशिष्टेनैव हि प्रयत्नेन महाकुलीनाः परिक्षन्ति आत्मानम् अनेनैव हि हेतुना राजाभिर्व्राह्मणैश्च स्व पितृ-पितामहादि पारम्पर्या-विस्मर्णार्थं समूहलेख्यानिप्रवर्तितानि तथा च प्रतिकुलं गुण-दोष स्मर्णांतदनुरूपाः प्रभृति-निवृतयो दृश्यते”।(तंत्रवार्त्तिक, अध्याय १, पाद-२, सूत्र-२क वार्त्तिक)
मुदा तेरहम शताब्दीक उत्तरार्ध होइत-होइत साधारण लोकक कोन कथा पण्डित लोकनि सेहो समूह लेख्य राखब छोड़ि देलन्हि। एकर परिणाम ई भेल जे पं हरिनाथ उपाध्याय (धर्म-शास्त्रक महान ज्ञाता) “स्मृतिसार” सन धर्मशास्त्रक विषयक ग्रंथकर्त्ता ओ महापंडितक परिचयक अभावमे विवाह कए लेल, स्वजनमे अनधिकारमे अपन साक्षात पितयौत भाइक दौहित्रीमे। फलतः चौदहम शताब्दीक तृतीय दशक होइत-होइत एहि कौलिक परिचयकेँ विशिष्ट पण्डितक अधीन कए देबाक आवश्यकताक अनुभव कएल जे विवाहक समय अधिकारक निर्णय कए सकथि। मिथिलाक तत्कालीन शासक राजा हरिसिंहदेवक प्रेरणासँ मिथिलाक पण्डित लोकनि शाके १२४८ तदनुसार १३२६ ई. मे निर्णय कएलन्हि, जे “परिचय राखब लोककेँ अपना पर नहि छोड़ल जाय, प्रत्युत ओकरा संगृहित कए विशिष्ट पण्डितजनक जिम्मा कए देल जाए, ओ ई राजकीय एक गोट विभाग बना देल जाए, जाहिसँ पण्डित राजाज्ञासँ नियुक्त होथि, सैह संगृहित परिचय राखथि। प्रत्येक विवाह तखनहि स्थिर हो जखन नियुक्त पंडित (पञ्जीकार) अधिकार जाँचि कए लिखिकऽ देथि, जे अमुक कन्या ओ अमुक वर ‘स्वजना’ नहि छथि। अर्थात् शास्त्रीयनियमानुसार कन्याक संग वरकेँ वैवाहिक अधिकार छन्हि। इयैह पत्र ‘अस्वजन पत्र’ वा ‘सिद्धांत पत्र’ कहौलक। आइयो कन्या वरक विवाह पूर्व अधिकार जँचाए सिद्धांत पत्र लेब आवश्यक बूझल जाइत अछि। पञ्जी-प्रबंधमे इएह सभसँ प्रधान नियम भेल जे बिनु सिद्धांत भेने विवाह अशास्त्रीय मानल जायत। ‘अस्वजन पत्र’ देनिहार राजाज्ञासँ नियुक्त इएह पण्डित पञ्जीकार कहओलाह। संगृहित परिचय जाहिमे प्रत्येक नव जन्म ओ विवाह जोड़ल जाय लागल से भेल पञ्जी। जिनकर पञ्जीमे नाम आएल से भेलाह पञ्जीबद्ध।
महाराज हरिसिंहदेव ओ तत्कालीन पण्डितक संयुक्त निर्णय अनुसार परिचेता लोकनिक नियुक्त्ति कए समस्त मैथिल ब्राह्मणक सम्पूर्ण परिचय संगृहित कएल गेल। परिचेता लोकनि घुमि-घुमि प्रत्येक परिवारक मुख्य व्यक्तिसँ हुनक परिचय पुछि लिखि लेल करथि। सामान्य रूँपे छओ पुरुषक परिचय सभ जनैत रहथि। किछु गोटा एहिसँ बहुतो अधिक परिचय जनैत रहथि। एहिना किछु गोटए मात्र दू वा तीन पुरुषाक ज्ञान रखैत छलाह। जे जतबा जनैत रहथि हुनकासँ ओतबहि संग्रह कए हुनकर पूर्वजक वास-स्थान, गोत्र, प्रवर तथा हुनक वेद ओ शाखाक सूचना लिखि लेल जाइत रहए। एहि संग्रहसँ एकहि कुलक अनेक शाखा जे विभिन्न ग्राममे बसैत छलाह, तकर परिचय एकत्र भए गेल। एहि रूपेँ गोत्रक अनुसार भिन्न-भिन्न कुलक सम्पूर्ण परिचय प्राप्त भए गेल। एहि परिचय संकलनक समय सभसँ प्रमुख मानल गेल बीजी पुरुष ओ मूल ग्रामकेँ। कारण कौलिक परिचयक हेतु सर्वाधिक उपयोगी इयैह सूत्र भेल। विभिन्न गाममे बसैत एकहि कुलक विभिन्न व्यक्तिक कौलिक परिचय एहि मूल ग्रामक आधार पर संगृहित कएल गेल रहए। एहि कारणे पञ्जीमे अनिवार्य रूपसँ मूल ग्रामक उल्लेख भेल अछि। पञ्जी-प्रबंधक समय जे व्यक्ति जतए बसैत रहथि से हुनक भावी संतानक ग्राम कहाओल ओ परिचय लिखौनिहार अपन पूर्वजक प्राचीनतम वास स्थानक जे नाम कहल से ओहि व्यक्तिक मूल भेल। एहिना प्रत्येक कुलक प्राचीनतम ज्ञात पूर्वज ओहि कुलक बीजी पुरुष कहाओल। एकर प्रमाणमे एक गोट उदाहरण देखल जाए सकैत अछि। काश्यप गोत्रीय एक महाकुल जकर चौहत्तरि शाखा मिथिलामे अनुवर्त्तमान अछि, संगृहित परिचयक आधार पर मूलतः माण्डर ग्रामक वासी सिद्ध भेलाह। मुदा पञ्जी-प्रबंधसँ बहुत पहिनहि, एकर दू गोट शाखा स्पष्टतः प्रमाणित भए गेल। एक मँगरौनी गामक आ दोसर गढ़-गामक। अतः पञ्जीमे आदिअहिसँ माण्डरक संग-संग गढ़ ओ मँगरौनी विशेषण जोड़ल जाए लागल। मुदा उपलब्ध परिचयक आधार पर दुनू एकहि कुलक दू शाखा सिद्ध भेल। तँय दुनू कुलक मूल एकहि भेल ओ बीजी पुरुष सेहो एकहि भेलाह।
गोत्र एना कहल जाइत अछि जे सकल गोत्रक समस्त जन समुदाय एकहि प्राचीनतम ज्ञात महापुरुषक वंशज थिकाह। ईएह प्राचीनतम ज्ञात महापुरुष गोत्र कहाए सुविख्यात छथि। श्री एम.पी. चिंतालाल राव महोदय चारि हजार गोत्रक सूची तैयार कएने छथि। “अमरकोष”मे गोत्रक हेतु तीन अर्थ देल गेल अछि- पर्वत, वंश आ नाम। “वाचस्पत्य” कोषमे गोत्रक एगारह अर्थ देल गेल अछि- पर्वत, नाम ,ज्ञान, जंगल,खेत,क्षत्र,संघ,धन, मार्ग, वृद्धि आ मुनि लोकनिक वंश। प्राचीन संस्कृत साहित्यमे गोत्र शब्दक प्रयोग प्रायः वंश वा पिताक नामक लेल भेल अछि। छान्दोग्य उपनिषद (४/४) मे जीवन गुरु सत्यकामसँ गोत्र पुछैत छथि तँ हुनक अभिप्राय सत्यकामक कुल अथवा पिताक नामसँ छन्हि। मुदा ऋगवेदमे गोत्रक उल्लेख चारि ठाम मेघ अथवा पहाड़क लेल आ दू ठाम पशु समूह अथवा जनसमुदाय अथवा पशु रक्षक रूपमे भेल अछि। अंततः वंश अथवा परिवारक अर्थमे गोत्र शब्दक प्रयोग पश्चातक प्रयोग थिक। वंश अथवा परिवारक अर्थमे गोत्रक प्रयोग सर्वप्रथम छान्दोग्य उपनिषदमे भेल अछि।
मैथिल ब्राह्मण समाजमे गोत्र वंश-बोधक थीक। मैथिल ब्राह्मणक समस्त गोत्र पितृ प्रधान थीक- अर्थात् प्रत्येक गोत्र अपन-अपन वंशक प्राचीनतम ज्ञात महापुरुषक नाम थीक। मैथिल ब्राह्मणमे सभ मिलाए २० गोट गोत्र अछि। मैथिल ब्राह्मणमे सात गोट गोत्रक कुल व्यवस्थित, सुपरिचित ओ बहुसंख्यक अछि। ई सात गोट गोत्र थीक- १. शाण्डिल्य
२. वत्स ३. काश्यप ४. सावर्ण ५. पराशर ६. भारद्वाज ७. कात्यायन। शेष १३ गोट गोत्र थीक- १. गर्ग २. कौशिक
३. अलाम्बुकाक्ष ४. कृष्णात्रेय ५. गौतम ६. मौदगल्य ७. वशिष्ठ ८. कौण्डिन्य ९. उपमन्यु १०. कपिल ११. विष्णुवृद्धि १२. तण्डि १३. जातुकर्ण।
प्रत्येक गोत्रमे कतौक मूल अछि। मिथिलामे १६७ मूलक ब्राह्मणक परिचय प्राप्त होइत अछि।कतैक मूल एहन अछि, जे एकसँ अधिक गोत्रमे पाओल जाइत अछि।‘ब्रह्मपुरा’ एकटा एहने मूल थिक। एहि मूलक ब्राह्मण- शाण्डिल्य,वत्स,काश्यप,अलाम्बुकाक्ष,गौतम ओ गर्ग गोत्रमे पाओल जाइत छथि।
प्रवर- प्रवरक उल्लेख वैदिक युगमे दर्श ओ पौर्णमास नामक इष्टिमे भेटैत अछि। ई इष्टि सभ आन सभ प्रकारक यज्ञक आधार थीक। अतः एहिमे प्रवरक पाठ होइत अछि। एहि पाठक प्रयोजन तखनहि होइत अछि जाहि क्षण यज्ञाग्नि उद्दिप्त करएबाली (सामधेनी) ऋचाक पाठक अनंतर अध्वर्यु ओहि अग्नि पर आज्य(घृत) दैत छन्हि। एकर निहितार्थ अछि जे प्रवर, यज्ञमे अग्निकेँ बजएबाक प्रार्थना थीक। प्रवरकेँ बादमे ‘आर्षेय’ सेहो कहल गेल अछि- जकर अर्थ थिक ऋषिसँ संबंध राखए बला (ऋग्वेद-०९/९७/५१)। शोनक ऋषिक सुविख्यात पूर्वज लोकनि मैथिल ब्राह्मण मध्य प्रवर कहबैत छथि, अर्थात् ऋगवेदक ऋचाक प्रणेता लोकनि प्रवर थिकाह।मैथिल ब्राह्मणक मध्य २ वर्गक प्रवर परिवार होइत अछि- त्रिप्रवर आ पाँच प्रवर। जाहि गोत्रक तीन गोट पूर्वज ऋगवेदक सूक्तिक रचना कएल से त्रिप्रवर आ जाहि गोत्रक पाँच गोट पूर्वज लोकनि ऋगवेदक सूक्तक रचना कएल से पाँच प्रवर कहबैत छथि।
गोत्र आ मूल:-
१.शाण्डिल्य- दिर्धोष(दिघवे), सरिसब, महुआ, पर्वपल्ली (पवौली), खण्डबला, गंगोली, यमुशाम, करिअन, मोहरी, सझुआल, मड़ार, पण्डोली, जजिवाल, दहिभत, तिलय, माहब, सिम्मुआल, सिंहाश्रम, सोदरपुर, कड़रिया, अल्लारि, होइयार, तल्हनपुर, परिसरा, परसड़ा, वीरनाम, उत्तमपुर, कोदरिया, छतिमन, वरेवा, मछेआल, गंगौर, भटोर, बुधौरा, ब्रह्मपुरा, कोइआर, केरहिवार, गंगुआल, घोषियाम, छतौनी, भिगुआल, ननौती, तपनपुर।
२.वत्स- पल्ली(पाली), हरिअम्ब, तिसुरी, राउढ़, टकवाल, घुसौत, जजिवाल, पहद्दी, जल्लकी(जालय), भन्दवाल, कोइयार, केरहिवार, ननौर, डढ़ार, करमहा, बुधवाल, मड़ार, लाही, सौनी, सकौना, फनन्दह, मोहरी, वंठवाल, तिसउँत, बरुआली, पण्डौली, बहेराढ़ी, बरैवा, अलय, भण्डारिसमय, बभनियाम, उचति, तपनपुर, विठुआल, नरवाल, चित्रपल्ली, जरहटिया,रतवाल, ब्रह्मपुरा, सरौनी।
३.काश्यप- ओइनि, खौआल, संकराढ़ी, जगति, दरिहरा, माण्डर, वलियास, पचाउट, कटाइ, सतलखा, पण्डुआ, मालिछ, मेरन्दी, भदुआल, पकलिया, बुधवाल, पिभूया, मौरी, भूतहरी, छादन, विस्फी, थरिया, दोस्ती, भरेहा, कुसुम्बाल, नरवाल, लगुरदह।
४.सावर्ण- सोन्दपुर, पनिचोभ, बरेबा, नन्दोर, मेरन्दी।
५.पराशर- नरौन, सुरगन, सकुरी, सुइरी, सम्मूआल, पिहवाल, नदाम, महेशारि, सकरहोन, सोइनि, तिलय, बरेबा।
६.भारद्वाज- एकहरा, विल्वपञ्चक (बेलोँच), देयाम, कलिगाम, भूतहरी, गोढ़ार, गोधूलि।
७. कात्यायन- कुजौली, ननौती, जल्लकी, वतिगाम।
८. अलाम्बुकाक्ष- बसाम,कटाइ, ब्रह्मपुरा।
९. गर्ग- बसहा, बसाम, ब्रह्मपुरा, सुरौर, वुधौर, उरौर।
१०. कौशिक- निखूति
११. कृष्नात्रेय- लोहना, बुसवन, पोदौनी।
१२. मौद्गल्य- रतवाल, मालिछ, दिर्घौष, कपिञ्जल, जल्लकी।
१३. गौतम- ब्रह्मपुरा, उंतिमपुर, कोइयार।
१४. वशिष्ठ- कोथुआ।
१५. कौंडिल्य- एकहरा, परौन।
१६. जातुकर्ण- देवहार।
१७.तण्डि- कटाई।
१८.विष्णुवृद्धि- वुसवन।
१९.उपमन्यु।
२०.कपिल।
मिथिलाधीश कार्णाट वंशीय क्षत्रिय महाराज हरिसिंहदेव जी सभामे उपस्थित सभ्य लोकनिक समक्ष महिन्द्रपुर पण्डुआ मूलक सदुपाध्याय गुणाकर झाकेँ मैथिल ब्राह्मणक पञ्जी प्रबन्धक भार देलन्हि।

नन्दैद शुन्यं शशि शाक वर्षे (१०१९ शाके) तच्छ्रावणस्य धवले मुनितिथ्यधस्तात। स्वाती शनैश्चर दिने सुपूजित लग्ने श्री नान्यदेव नृपतिर्ढ़धीत वास्तं॥१॥ शास्तानान्द पतिर्व्वभूव नृपतिः श्री गंगदेवो नृपस्तत् सूनू(पुत्र) नरसिंहदेव विजयी श्री शक्ति सिंह सुतः तत् सूनू खलू राम सिंह विजयी भूपालवंत सुतो जातः श्री हरिसिंह देव नृपतिः कार्णाट चूड़ामणि ॥२॥ श्रीमंतं गुणवन्त मुत्तम कुलस्नाया विशुद्धाशयँ सञ्जातानु गवेषणोत्सुक यातः सर्वानुव्यक्तिक्षमां चातुर्यश्चतुराननः प्रतिनिधिंकृत्वा च्च्तुर्द्धामिमां पंचादित्यकुलांबिता विवजया दित्यै ददौ पञ्जिकाम्॥३॥भूपालवनि मौलि रत्न मुकुटोलंकार हिरांकुर ज्योत्सोज्वाल यटाल भाल शशिनिः लीलञ्च चञ्चलस्तवः शोभा भाजि गुणाकरे गुणवतां मानन्द कन्दोदरे दृष्ट्वात्मा हरिसिंह देव नृपतिः पाणौ ददौ पञ्जिकाम॥४॥ दृष्ट्वा सभां श्री हरिसिंहदेव विचार्य चिंते गुणिणी सहिष्णौ॥ गुणाकरे मैथिल वंश जाते पञ्जी ददौ धर्म विवेचणार्थम॥
श्रोत्रिय ब्राह्मण आठ श्रेणीमे क्रमबद्ध छथि आ योग्य एवम् वंशज पन्द्रह श्रेणीमे। पाँजिकक संख्या १८५ अछि, जाहिमे ३२ पाँजि श्रोत्रिय आ १५३ पाँजि योग्य आ वंशजक अछि।
पञ्जी-प्रबन्धक वर्तमान स्वरूपक प्रारम्भ राजा हरसिंहदेवक कालमे शुरू भेल। ज्योतिरीश्वर ठाकुरक वर्ण-रत्नाकरमे हरसिंहदेव नायक आकि राजा छलाह।
आइ काल्हि पञ्जी-प्रबंध मात्र मैथिल ब्राह्मण आ कर्ण-कायस्थक मध्य विद्यमान अछि। मुदा प्रारम्भमे ई क्षत्रिय (गंधवरिया राजपूत) केर मध्य सेहो छल।
वर्णरत्नाकरमे ७२ राजपूत कुलक मध्य ६४ केर वर्णन अछि, जाहिमे बएस आ पमार दोहराओल अछि। दोसर ठाम ३६ राजपूत कुलक वर्णन अछि। २० टा नामक पूर्वहुमे चर्च अछि। विद्यापतिक लिखनावलीमे, जे प्रायः हुनकर नेपाल प्रवासक क्रममे लिखल गेल छल, चन्देल आ चौहानक वर्णन अछि। गाहनवार वा मिथिलाक गंधवरिया राजपूतक दू टा शखा मिथिलामे छल, भीठ भगवानपुर आ पंचमहला(सहर्सा, पूर्णियाँ)। गंधवरिया,पमार,विशेवार,कंचिवाल, चौहान आदि मिथिलाक महत्त्वपूर्ण राजपूत मे। मुदा गंधवरिया मिथिलामे महत्त्वपूर्ण मे आ एखनहु मधुबनीसँ सहरसा-पूर्णियाँ धरि छथि।
वर्णरत्नाकरक राजपूत कुलवर्णनक निम्न लगभग ६२ टा कुल अछि। सोमवंश,सूर्यवंश, डोडा, चौसी, चोला, सेन, पाल, यादव, पामार, नन्द, निकुम्भ, पुष्पभूति, श्रिंगार, अरहान, गुपझरझार, सुरुकि, शिखर, बायेकवार, गान्हवार,सुरवार, मेदा, महार, वात, कूल, कछवाह, वायेश, करम्बा, हेयाना, छेवारक, छुरियिज, भोन्ड, भीम, विन्हा, पुन्डीरयन, चौहान, छिन्द, छिकोर, चन्देल, चनुकी, कंचिवाल, रान्चकान्ट, मुंडौट, बिकौत, गुलहौत, चांगल, छहेला, भाटी, मनदत्ता, सिंहवीरभाह्मा, खाती,रघुवंश, पनिहार, सुरभांच, गुमात, गांधार, वर्धन, वह्होम, विशिश्ठ, गुटिया, भाद्र, खुरसाम, वहत्तरी आदि। एखनो गंगा दियारामे राजपूत आ यादव दुनूक मध्य ‘बनौत’ होइत छथि आ दुनूमे बहुत घनिष्ठता अछि। आइ काल्हि राजपूत मध्य पञ्जी विलुप्त अछि, मुदा तकर निवारण ओ सभ गामकेँ बारि (विवाहक लेल) करैत छथि, जेना दादाक मातृकक गाम छोड़ि कऽ विवाह करब।
पर्वतमे रहनिहार आ वनमे रहनिहारक वर्णन सेहो अछि वर्ण रत्नाकरमे। जनक राजाक विरुद जन (कबीला) सँ बनल प्रतीत होइत अछि।
पहिने सभ क्यो अपन-अपन पुरखाक आ वैवाहिक संबंधक लेखा स्वयं रखैत रहथि। हरसिंहदेवजी एहि हेतु एक गोट संस्थाक प्रारम्भ कलन्हि। मैथिल ब्राह्मणक हेतु गुणाकर झा, कर्ण कायस्थक लेल शंकरदत्त, आ क्षत्रियक हेतु विजयदत्त एहि हेतु प्रथमतया नियुक्त्त भेलाह। हरसिंहदेवक पञ्जी वैज्ञानिक आधार बला छल आ शुद्ध रूपेँ वंशावली परिचय छल। सभ ब्राह्मण, कायस्थ आ क्षत्रिय अपन-अपन जातिक पञ्जीमे बराबर छलाह। मुदा महाराज माधव सिंहक समयमे शाखा पञ्जीक प्रारम्भ भेल आ श्रोत्रिय आदि विभाजन आ क्रमानुसारे छोट-पैघक आ ओहिसँ उपजल सामाजिक कुरीतिक प्रारम्भ भेल।
कर्ण कायस्थमे एकेटा गोत्र काश्यप अछि। मात्र मूलक अनुसारेँ उतेढ़ होइत अछि, मध्यम दर्जाक गृहस्थ कहल जाइत अछि।
मूलसँ गोत्रक सामान्यतः पता चलि जाइत अछि। किछु अपवादो छैक। जेना: ब्रह्मपुरा मूल, काश्यप/गौतम/वत्स/वशिष्ठ।(७टा)
करमहा- शाण्डिल्य (गाउल शाखा)/ बाकी सभ वत्स गोत्री।दुनू करमहामे विवाह संभव।
श्रोत्रिय लोकनिकेँ पुबारिपार आ शेषकेँ पछबारिपार सेहो कहल जाइत अछि।श्रोत्रियक पाँजि चौगाला(श्रेणी) मे विभक्त्त अछि। श्रोत्रिय पाँजिकेँ लौकित कहल जाइत अछि। कुल ८ टा चौगोल श्रेणी अछि।३२ टा पाँजि अछि। पाँजि आ पानि अधोगामी होइत अछि। निम्न कुलमे विवाह संबंधक कारणे समय बीतला पर उच्चादि श्रेणी समाप्त होइत जाइत अछि। प्रथम श्रेणी आ द्वितीय श्रेणी ताहि कारणसँ समाप्त भऽ गेल अछि।
शेष ब्राह्मण पछबारिपार कहबैत छथि। एहि मे १५ गोट श्रेणी अछि।१५३ टा पञ्जी अछि। एकरा नामसँ जेना नरपति झा पाँजि इत्यादि संबोधित कएल जाइत अछि।पछबारिपारहुमे सम्प्रति महादेव झा सँ उपरका पाँजि अनुपलब्ध जकाँ भए गेल अछि।
कालक प्रभावे क्षत्रिय लोकनिमे पञ्जी समाप्त भए गेल आ ताहि द्वारे हुनका लोकनिमे पूरा गामेकेँ छोड़ि देल जाइत अछि, जाहिसँ सिद्धांतमे भाङठ नहि होए।
पञ्जी-पुस्तकक रक्षणक हेतु एकटा श्लोक अछि- जलात् रक्ष तैलात् रक्ष रक्ष स्थूल बन्धनात् माने पुस्तककेँ जलसँ तेलसँ आ स्थूल बन्धनसँ बचाऊ।संगहि सूर्य जखन सिंह राशिमे (मोटा-मोटी १६ अगस्त सँ १५ सितम्बर धरि) रहए तखन एकरा सुखाऊ- एहि समयमे सभसँ बेशी कड़गर रौद रहैत अछि।
उतेढ- सिद्धांत लिखबासँ पहिने वर ओ कन्या पक्षक अधिकार ताकल जाइत अछि।कन्याक विवाहक ५-१० वर्ष पूर्व कन्याक पिता पञ्जीकारसँ अधिकार माला बनबैत छथि, जाहिमे संभावित आ उपलब्ध वरक सूची रहैत छैक। पञ्जीकार एहि हेतु उतेढ बनबैत छथि।वर कन्या दुनू पक्षक पितृ कुलक ६ पुस्त आ मातृकुलक ५ पुरखाक यावतो परिचय देल जाइत अछि। यावतो परिचयक अर्थ भेल ३२ मूलक उतेढ़ जे अधिकार तकबामे प्रयोजनीय थीक। कोनो कन्या वा वर मातृ वा पितृ पुरखा कुलमे १६ व्यक्त्तिसँ छठम स्थानमे रहैत छथि। एहि १६ मे सँ १६ वा एको व्यक्त्ति वरक पितृपक्षमे छठम स्थानक अभ्यन्ता अओथिन्ह तँ ओहि कन्या वरक मध्य वैवाहिक अधिकार नहि होएत।ज्योँ ओ १६ व्यक्त्ति वा एको व्यक्त्ति मातृ पक्ष (वरक) मे अओथिन्ह तँ अधिकार भए जायत।
मुदा एहिमे ई सेहो देखबाक थीक जे वर कन्या समान गोत्र आ समान प्रवरक नहि होथि। ई सेहो देखए पड़त जे कन्या वरक विमाताक भाइक सन्तान नहि होए।
पञ्जी सात प्रकारक होइत आछि-मूल,शाखा,गोत्र,पत्र,दूषण उतेढ़ आ अस्वाजन्यपत्र पञ्जी।
दरभंगा नरेश माधव सिंह शाखा प्रणयन पुस्तकक आदेश देलन्हि।एहिसँ पहिने मूल पञ्जी सभक समान रूपेँ बनैत छल। आब सोति, जोग आ पञ्जीबद्धक हेतु फराक शाखा पञ्जी बनाओल जाए लागल।
गोत्र पञ्जीमे सभ गोत्र आ तकर प्राचीन मूल रहैत अछि।
पत्र पञ्जी लगभग ५०० वर्ष पूर्वसँ प्रचलनमे अछि। एहिमे मूलग्रामक उल्लेख रहए लागल।
दूषण पञ्जीमे वंशमे आएल क्षरणक उल्लेख रहैत अछि। बहुत बादमे एकर चर्च संभव होइत अछि, जाहिसँ सम्बन्धित वंश एकर दुष्परिणामसँ बाँचल रहए।
उतेढ़ पञ्जीमे सपिण्डक निवृत्तिक ज्ञान होइत अछि- छह पुरखाक उल्लेख प्राप्त होइत अछि। मात्र रसाढ़-अररियाक पञ्जीमे स्त्रीगणकक नामक उल्लेख पञ्जीमे भेटैत अछि।
वैवाहिक अधिकार निर्णय:-
नियम १. कोनो कन्या वा वर अपन १६ पुरुषा (पितृकुल आ मातृकुल मिलाकेँ) सँ छठम स्थानमे रहैत छथि- जिनका छठि कहल जाइत छन्हि।
एहि छठिक निर्धारण निम्न प्रकारसँ होइत अछि।
१. कन्याक (वृद्ध प्रपितामह) प्रपितामहक पितामह प्रथम छठि
२. कन्याक (वृद्ध पितामहक स्वसुर) प्रपितामहक मातामह द्वितीय छठि
३. कन्याक पितामहक मातामहक पिता तृतीय छठि
४. कन्याक पितामहक मातामहक स्वसुर चतुर्थ छठि
५. कन्याक पितामहीक प्रपितामह पञ्चम छठि
६. कन्याक पिताक मातामहक मातामह छठम छठि
७. कन्याक पितामहीक प्रमातामह सातम छठि
८. कन्याक पितामहीक मातृमातामह आठम छठि
९. कन्याक मातामहक प्रपितामह नवम छठि
१०. कन्याक प्रमातामहक मातामह दसम छठि
११. कन्याक मातामहक प्रमातामह एगारहम छठि
१२. कन्याक मातामहक मातृमातामह बारहम छठि
१३. कन्याक मातामहीक प्रपितामह तेरहम छठि
१४. कन्याक मातामहीक पितृ मातामह चौदहम छठि
१५. कन्याक मातामहीक प्रमातामह पन्द्रहम छठि
१६. कन्याक मातामहीक मातृ मातामह सोलहम छठि

उपरोक्त्त समस्त छठिक समान महत्व अछि। एहिमे सँ कोनो छठि वरक पितृ पक्षमे अएला पर उक्त्त वर कन्याक मध्य वैवाहिक अधिकार नहि होएत। ओ छठि यदि वरक मातृकुलमे अबैत छथि तँ अधिकार होएत।उपरोक्त नियम समान रूपेँ वर ओ कन्यापर लागू होइत अछि। जहिना वरक लेल कहल गेल जे मातृतः पंचमी त्यक्त्वा पितृतः सप्तमी भजेत तहिना कन्या लेल कहल गेल जे असपिण्डा च या मातु – असपिण्डा च या पितुः सा प्रशस्ता द्विजातीनां दार कर्मणि मैथुने।

नियम२. वर कन्याक गोत्र एक नहि होए।
नियम ३. वर कन्याक प्रवर एक नहि होए।
नियम ४. वरक विमाताक भायक सन्तान कन्या नहि होए।
मातृतः पञ्चमीं त्यक्त्तवा पितृतः सप्तमीं भजेत्- मनुस्मृति
असपिण्डाच या मातुः असपिण्डा च या पितुः सा प्रशस्ता द्विजातीनां दार कर्मणि मैथुने।
पञ्चमात् सप्तमात् उर्ध्वं मातृतः पितृस्तथा।
सपिण्डा निवर्तेत कर्तुम् व्यतितिक्षम्।
संस्कृत श्लोकक अर्थ एहि प्रकारे अछि-
*वरक मातृकुलक पुरुषसँ कन्या पाँचम पीढ़ी धरिक सन्तान नहि होथि।वरक पितृकुलक सातम पीढ़ी (संशोधित रूपेँ छः पीढ़ी) धरिक सन्तान नहि होथि।
*जे कन्या वरक मातृ कुल ओ पितृकुलक सपिण्ड नहि होथि से द्विजाति वरक हेतु उद्वाह कर्मक लेल प्रशस्त।
*मातृकुलमे पाँच आ पितृकुलमे सात पीढ़ी धरि सपिण्ड रहैछ।परञ्च म.म.महाराज महेश ठाकुर पितृपक्षमे सातम पुस्तकेँ विवाहक हेतुएँ ग्राह्य मानलन्हि आ हुनक देल व्यवस्था समाजकेँ मान्य भेल।
कोनो कन्याक छठिक अन्वेषण हेतु ३२ मूलक उतेढ बनाबए पड़ैत छैक। ताहिमे सर्वप्रथम उतेढ़क वाम भागमे कन्याक ग्राम, मूल ग्राम लिखल जाइत छैक। तहिसँ अव्यवहित दहिन भागमे मूल आ तकर नीचाँ कन्याक अति वृद्ध प्रपितामह, वृद्ध प्रपितामह, वृद्ध पितामह, प्रपितामह, पितामह आ तखन पिताक नामोल्लेख अवरोही क्रमसँ लिखल जाइत छैक। एहि मध्य वृद्ध प्रपितामह पहिल छठि कहओताह, जनिकासँ कन्या छठम स्थानमे पड़ैत छैक। प्रस्तुत उदाहरणमे करमहा मूलक बेहट मूलग्रामक विट्ठो ग्रामवासी (दरभंगा) पीताम्बर झाक पौत्री श्री शशिनाथ झाक पुत्री भौर ग्रामवासी खण्डबला मूलक भौर मूलग्रामक नारायणदत्त ठाकुरक दौहित्री- धरमपुर दरभंगा- क अधिकार दरिहरा मूलक रतौली मूलग्रामक लोहनावासी गोपीनन्द झाक पौत्र श्री कृष्णानन्द झाक बालक करमहा मूलक बेहट मूल ग्रामक बिट्ठो निवासी कन्हैय्या झाक दौहित्रसँ जँचबाक अछि।
प्रथम छठि- करमहा बेहट मूलक शंकरदत्त सुत विश्वनाथ भेलाह- १.हुनक पुत्र राधानाथ, २.तनिक पुत्र कन्टिर प्र. रेवतीनाथ, ३.हुनक बालक-पीताम्बर, ४.तनिक पुत्र शशिनाथ, ५.आ हुनक पुत्री कन्या ६.अस्तु, विश्वनाथ झा पहिल छठि।
द्वितीय छठि-वृद्ध पितामह राधानाथ झाक श्वसुर माड़रि वलियास मूलक इन्द्रपति झाक बालक धनपति झा होएताह से एहि प्रकारे गणना – धनपति-=१, जमाय = राधानाथ = २, तनिक बालक कंटीर=३ पीताम्बर = ४, शशिनाथ-५, कन्या = ६
तृतीय छठि-कन्याक प्रपितामहक श्वसुरक – जेना माण्डर मूलक सिहौली मूलग्रामक १.रघुबर झा पुत्र २.फेकू झा तनिक जमाए ३.कंटीर झा, तनिक पुत्र ४.पीताम्बर झा तनिक पुत्र ५.शशिनाथ झा ६.कन्या। एहि मध्य माण्डर सिहौली रघुवर झासँ कन्या छठि छथि।
चारिम छठि- फेकू झाक श्वसुर- पाली महिषी मूलक हर्षी झा, यथा (१) हर्षी झा- (२)जामाता-फेकू झा (३) जामाता कंटीर झा (४)पुत्र-पीताम्बर (५) शशिनाथ (६) कन्या। एहि तरहेँ कन्या हर्षी झासँ छठम स्थानमे छथि तँय हेतु ई चारिम छठि भेल।
पाँचम छठि- कन्याक पितामहक श्वसुरक पितामहसँ कन्या छठम स्थान-जेना सकराढ़ी मूलक परहट मूलग्रामवाला (१) ब्रजनाथ झा (२) हुनक बालक हर्षनाथ झा (३) हिनक बालक सिद्धिनाथ झा (४) हिनक जमाय पीताम्बर झा (५) तनिक बालक शशिनाथ झा (६) हिनक कन्या- अस्तु, सकराढ़ी परहट ब्रजनाथ झा पाँचम छठि कहौताह।
६म छठि:- परहट सकराढ़ी मूलक हर्षनाथ झाक श्वसुर खण्डबला भौर मूलक श्यामनाथ ठाकुरक बालक महेश्वर ठाकुरसँ कन्या छठम स्थानमे छथि- तँ (१) महेश्वर ठाकुर (२) हर्षनाथ झा (३) सिद्धिनाथ झा (४) पीताम्बर झा (५) शशिनाथ झा (६) कन्या- एहि तरहेँ खण्डबला भौर मूलक महेश्वर ठाकुर छठम छठि कहौताह।
७म छठि- कन्याक पिताक मातामहीक पितामह- यथा हरिअम मूलक बलिराजपुर मूल ग्रामक सेवानाथ मिश्रक पौत्री, बालमुकुन्द मिश्रक पुत्री कन्याक पिता शशिनाथ झाक मातामही छथि, तँय (१) सेवानाथ मिश्र-पुत्र(२)बालमुकुन्द मिश्र (३)जामाता-सिद्धिनाथ झा (४) जामाता-पीताम्बर झा (५) पुत्र शशिनाथ झा (६) पुत्री-कन्या, अस्तु, हरिअम बलिराजपुर सेवानाथ मिश्र ७म छठि भेलाह।
८म छठि- कन्याक पितामहीक मातृ मातामह-यथा- सोदरपुर मूलक सरिसब मूल ग्राम वाला (१) गदाधर मिश्र-जामाता (२) बालमुकुन्द मिश्र-जामाता (३)सिद्धिनाथ झा(४)जामाता पीताम्बर झा- पुत्र(५) शशिनाथ झा (६) कन्या। ताहि हेतु सोदरपुर सरिसव गदाधर मिश्र आठम छठि छथि।
९म छठि- कन्याक मातामहक प्रपितामह- खण्डबला मूलक भौर मूलग्राम (१)धर्मनाथ ठाकुर-पुत्र (२) योगनाथ ठाकुर-पुत्र (३)दुर्गानाथ ठाकुर-पुत्र (४) नारायणदत्त ठाकुर-जामाता (५) शशिनाथ झा-तनिक (६) कन्या- अर्थात् धर्मनाथ ठाकुरसँ कन्या- ६म स्थानमे छथि। तँय धर्मनाथ ठाकुर नवम् छठि भेलाह।
१०म छठि- कन्याक प्रमातामह (दुर्गानाथ ठाकुरक) मातामह- बभनियाम मूलक कड़राइन मूलग्रामक सन्तलाल झासँ कन्या छठम स्थानमे छथि- यथा (१) सन्तलाल झा- हिनक जमाय, (२)योगनाथ ठाकुर (३)पुत्र दुर्गानाथ ठाकुर पुत्र(४) नारायणदत्त (५) जमाय- शशिनाथ झा तनिक पुत्री (६) कन्या। एहि हेतुए बभनियाम मूलक सन्तलाल झा १०म छठि।
११म छठि करमहा मूलक नड़ुआर मूलग्रामक बछरण झासँ कन्या- छठम् स्थानमे छथि- यथा
(१) बछरण- पुत्र (२) खेली- जमाय-(३) दुर्गानाथ ठाकुर (४) तनिक पुत्र- नारायणदत्त ठाकुर- जमाय (५) शशिनाथ (६) पुत्री-कन्या- अस्तु बछरण झा ११म छठि।
१२म छठि- कन्याक मातामहक मातृमातामह खण्डवला मूलक भौर मूलग्रामक जीख्खन ठाकुर-सँ कन्या छठम स्थानपर, क्रम- (१)जीख्खन ठाकुर (२) खेली झा जमाय (३) दुर्गानाथ ठाकुर (४) पुत्र- नारायणदत्त- जमाय (५) शशिनाथ-पुत्री (६) कन्या।
१३म छठि- कन्याक मातामहीक प्रपितामह हरिअम मूलक बलिराजपुर मूलग्रामक योगीलाल मिश्र। यथा- (१)योगीलाल –पुत्र (२) कमलनाथ मिश्र (३) पुत्र- शक्तिनाथ मिश्र (४) जमाय- नारायणदत्त ठाकुर- जमाय (५) शशिनाथ-पुत्रे (६)कन्या।
१४म छठि- कन्याक मातामहीक पितृमातामह अर्थात् सोदापुर मूलक दिगउन्ध मूलग्रामक कौशिल्यानन्द मिश्र- यथा- (१) कौशिल्यानन्द मिश्र- तनिक जमाय (२) कमलनाथ मिश्र तनिक (३)पुत्र शक्तिनाथ मिश्र, तनिक जमाय (४) नारायण दत्त ठाकुर तनिक (५) जमाय शशिनाथ झा- तनिक पुत्री (६) कन्या।
१५म छठि- कन्याक मातामहीक प्रमातामह अर्थात् खण्डवला मूलक भौर मूलग्रामक महाराज कुमार बाबू गुणेश्वर सिंह यथा- (१) बाबू गुणेश्वर सिंह- पुत्र (२) बाबू ललितेश्वर सिंह (३) जमाय- शक्तिनाथ मिश्र- तनिक जमाय (४) नारायणदत्त ठाकुर (५) तनिक जमाय- शशिनाथ झा- तनिक पुत्री (६) कन्या।
१६म छठि- कन्याक मातामहीक मातृमहीक मातृमातामह अर्थात् खौआल मूलक सिमरवाड़ मूलग्रामक- पद्मनाथ झासँ कन्या छठम् स्थानमे छथि- यथा- (१) पद्मनाथ-जमाय (२) बाबू ललितेश्वर सिंह (३) जमाय शक्तिनाथ (४) जमाय-नारायणदत्त (५) जमाय-शशिनाथ, (६) पुत्री-कन्या।
उपरोक्त प्रकारे कन्याक सोलह छठि प्राप्त भेल।

बेहटसँ विठ्ठो
बेहट करमहा शंकरदत्त वलियास माण्डर पाली परहट सकराढ़ी खण्डबला हरिअम
पीताम्बरसुत शशिनाथसुता खण्डवलासँ नारायणदत्त दौ (१)विश्वनाथ
राधानाथ
रेवतीनाथ (कन्टिर)
पीताम्बर
शशिनाथ (कन्या)
इन्द्रपति
धनपति(२) हृदयदत्त
रघुवर(३)
फेकू लक्ष्मीदत्त
हर्षी(४) वैद्यनाथ(५)
हर्षनाथ
सिद्धिनाथ श्यामनाथ
महेश्वर(६) महिनाथ
सेवानाथ(७)
बालमुकुन्द


सोदरपुर खण्डवला वभनियाम करमहा खण्डवला वलिराजपुर हरिअम दिगउँन्ध सोदरपुर
वेदधर
गदाधर(८) धर्मनाथ(९)
योगनाथ
दुर्गानाथ
नारायणदत्त रूदी
सन्तलाल(१०) हेमनारायण
बछरण(११)
खेली थोथी
जीरक्खन(१२) हर्षमणि
योगीलाल(१३)
कमलानाथ
शक्तिनाथ कारी
कौशिल्यानन्द(१४)


खण्डवला खौआम
रुद्र सिंह
गुणेश्वर सिंह(१५)
ललितेश्वर सिंह भवनाथ
पद्मनाथ(१६)


समान रूपेँ वरक उतेढ़ बनाओल जाएत- एहि पोथीक तीनू खण्ड देखि कए। निर्णय देबाक हेतु धर्मशास्त्रक सूत्र देखू।
वरपक्ष: कन्यहिँ सदृश वरहुकेँ उत्तेढ़ (बत्तीस) मूलक बनाओल जाइत छैक। एहि मध्य दू-प्रकारक परिचय रहैत छैक- (१)वरक पिता-पितामहादि तथा हुनका लोकनिक मातृकुलक जे वरक हेतु पितृकुल भेल, दोसर दिस वरक मायक पितृकुलक जाहि मध्य वरक मातामहादि तथा हुनका लोकनिक मातृकुलक परिचय।
वरक पितृपक्ष
रतौलीसँ लोहना १ दरिहरा २ हरिअम ३ वुधवाल ४ खण्डवला ५ नरउन
कृष्णानन्द सुत(वाचा)
बेहट करमहेसँ (चंचल)
मुकुन्द सुत कन्हैया दौ वै.नित्यानन्द
गरीबानन्द
लीलानन्द
जीवानन्द
गोपीनन्द
कृष्णानन्द सचल जयनाथ
मोहन बाबू कीर्ति सिंह गंगादत्त
एकनाथ
जगन्नाथ


६ पाली ७ खण्डवला ८ माण्डर ९ करमहा १० पवौलि ११ खण्डवला
लक्ष्मीदत्त श्यामनाथ
महेश्वर श्यामू केशव
लान्हि
दिगम्बर
वैदनाथ धर्मानन्द धर्मपति सिंह
मार्कण्डेय सिंह


१२ नरउन १३ वलियास १४ घुसौत १५ सोदरपुर १६ करमहा
धर्मपति
उमापति
जनार्दन हर्षमणि
कारी
कोशिल्यानन्द गोपीनाथ


वरक मातृपक्ष
१७ बेहट करमहा १८ सरिसव १९ पवौलि २० दरिहरा २१ खण्डवला २२ कुजौली
नन्दलाल
कन्हैयालाल
गणेशदत्त
मुकुन्द
कन्हैया धरापति धर्मानन्द
जनार्दन घनानन्द म. रुद्रसिंह
म. रुद्रेश्वर सिंह
म. रामेश्वर सिंह टीकानाथ


२३ करमहा २४ सोदरपुर २५ खण्डबला २६ तिसउँत २७ दरिहरा २८ कुजौली
हलधर
गोवर्द्धन बाबूलाल जगत सिंह
दामोदर
गोपीनाथ सिंह
रुचिनाथ सिंह गिरधारी --
पुष्पनाथ हरिनन्दन



२९ करमहा ३० माण्डर ३१ नरउन ३२ सोदरपुर
कृष्णदत्त
हेमदत्त
वित्तू बच्ची मनमोहन भूवन्धर



एहि प्रकारसँ हम सभ देखैत छी जे कन्याक जे १४म छठि दिगउन्ध सोदरपुर मूलक कारी सुत कौशिल्यानन्द मिश्र छथि से वरक पितृकुलमे अबैत छथिन्ह। जतऽ धर्मशास्त्र कहैत अछि जे ६(७) तक त्याग करबाक अछि। परञ्च कन्या छठमे स्थानमे छथि। अस्तु एहि चर्चित वर-कन्याक मध्य वैवाहिक अधिकार नहि होएत।
कोनहु कथा जँचबाक हेतु पञ्जीकार सभसँ पहिने कन्याक छठिक निर्धारण कए लैत छथि। ततःपर वरक उतेढ बनबैत छथि। तखन देखबाक रहैत छन्हि जे कन्या जिनकासँ छठि छथि से तऽ वरक परिचयमे नहि पवैत छथि। जँ से कोनो छठि भेट गेलाह, तँ देखबाक रहैछ जे वरक कोन पक्ष (पितृ-मातृ)केँ अएलाह। मातृ-पक्ष रहने अधिकार हो आओर पितृ-पक्षमे रहने नहि हो, से वचन पूर्वमे कहि आएल छी। वरक पक्षक पितृकुलमे ६ तक त्याज्य ओ सातमकेँ ग्राह्य आओर मातृकुलमे पाँचम तक त्याज्य आ छठम ग्राह्य।
एतए ईहो देखबामे अबैत अछि जे ई सभ वैज्ञानिक दृष्टिकोण तखन ताखपर राखल रहि जाइत अछि जखन बाल विवाह आ बहु-विवाहक कुरीति एहि मध्य पैसैत अछि। से कतोक गोटे एक दिससँ ससुर जमाए भए जाइत छथि तँ दोसर दिससँ साढ़ू। आ एतए पञ्जीकार विवश भए जाइत छथि कारण नियमतः एहन अनर्गल विवाह शास्त्र विहित भए जाइत अछि।
शाखा पञ्जीक विशेषता :शाखा पञ्जी एक अभूतपूर्व पुस्तक छी। एहि तरहक पुस्तक संसारक कोनो देश कोनो सम्प्रदाय वा कोनो वर्गमे नहि पाओल गेल अछि। यद्यपि ई वर्ग विशेषक पुस्तक थिक, परञ्च एहि प्रकारक पुस्तक कोनो सम्प्रदाय वा कोनो वर्गक लेल शुरू कएल जा सकैत छैक। मिथिलाक ई अद्वितीय अछि जाहिमे १००० वर्षसँ परिचयक जाल जकाँ निर्मित कएल गेल अछि। जेना कवि कोकिल विद्यापति ठाकुरक परिचय हुनक पुरुषाक उल्लेख ७ पीढ़ी पहिनेसँ लऽकेँ विद्यापतिक वंशधर वर्तमान धरि, सभक साङ्गोपाङ्ग (विद्या, उपाधि, विशिष्टता, कार्य परिवर्तन, मातृकुलक परिचय) परिचय भेटत। एहन परिचय मात्र विद्यापतिये नहि समस्त मैथिल ब्राह्मणक भेटत, एहि प्रकारक आधारपर विभिन्न विद्वान ब्राह्मणक काल निर्धारण सेहो कएल जा सकैछ।
पञ्जीशास्त्र मार्त्तण्ड धौत परीक्षामे प्रथम श्रेणीमे प्रथम स्थान पाबि महाराजाधिराज कामेश्वर सिंहक हाथें दोशाला पओनिहार स्वनाम धन्य पञ्जीकार मोदानन्द झा आ हुनक मौखिक परीक्षाक मुख्य परीक्षक छलाह महामहोपाध्याय डॉ सर गङ्गानाथ झा। पञ्जी प्र्बन्धक जे इतिहास अछि ताहिमे वर्णित अछि जे पञ्जी प्रबंधक वर्तमान स्वरूपक प्रणेता छलाह सदुपाध्याय गुणाकर झा, जनिक अठारहम पीढ़ीमे मोदानन्द झा आ उन्नैसम पीढ़ीमे विद्यानन्द झा मोहनजी अबैत छथि। आइसँ उन्नैस पुस्त पहिने जे मैथिलक वंशावलीक संकलन संवर्द्धन ओ संरक्षणक व्रत दृढ़ निष्ठासँ सदुपाध्याय गुणाकर झा लेलन्हि वा तत्कालीन विद्वत वर्ग द्वारा विश्वासपूर्वक देल गेलन्हि, से अद्यावधि निष्ठापूर्वक सुरक्षित ओ संवर्द्धित अछि।
पञ्जीक समस्त पुस्तक मिथिलाक लिपि तिरहुतामे लिखित अछि/ लिखल जा रहल अछि। आ बुझू तँ तिरहुता लिपिक प्राणाधार थिक पञ्जी प्रबन्ध।
पञ्जी-शास्त्रसँ सम्बद्ध पक्ष एहि लिपिक ज्ञानक अभावमे सामने बैसियौकऽ विषय वस्तुसँ अनभिज्ञ रहि जाइत छथि। फलस्वरूप एकर संरक्षणक प्रति सहयोग घटल जा रहल छैक।
एहिना स्थितिमे तालपत्र/ बसहापत्रपर लिखल पञ्जीक मिथिलाक्षरमे संगणकपर अंकन आ ओकर देवनागरी लिप्यंतरण आवश्यक छल जाहिसँ एकर विनाशसँ पूर्व संरक्षण भऽ सकए।

वैवाहिक अधिकार तकएवा हेतु वा सिद्धांत (अस्वजनपत्र) लिखएवा हेतु जे क्यो अभ्यागत अबैत छथि ताहि मे अधिकांशक माँग होएत छन्हि जे सिद्धांत पत्रक एक प्रति देवनागरी मे सेहों लिख दिअ।
कि विचार अछि तिरहुता लिपि नष्ट भऽ जाए। विज्ञानक चमत्कार सँ मनुष्य गण चन्द्रमा धरिक यात्रा कएलक परञ्च सामर्थ्य छैक जे एकटा लिपिक आविष्कार करत आ ओ लिपि सर्वजन संवैद्य ओ ग्राहि होएत। अपन धरोहर कें नष्ट करबाक लेल कियैक तुलायल छी? परंतु कालांतर मे विचार आयल जे समाजक विचार कियैक नहि स्वीकार कएल जाए। पाञ्जिक समस्त पोथी तिरहुता लिपि मे निबद्ध अछि। तिरहुता लिपिक ज्ञानक आभाव मे समाज पोथिक विवरण सँ अनभिज्ञ रहैत अछि। तँय निरपेक्ष सेहो। तखन समाजक भावना केँ देखैत जे कोनो कथ्य तँ अनैक लिपि मे लिखल जाए सकैत अछि आ पढि सकबाक कारणें समाजक जिज्ञासा शांत भऽ सकैत अछि।

पाँ रघुदेव झा (आइसँ नौ पीढ़ी ऊपर) आ हुनक लिखल माण्डर मुलक पुस्तक(१६९०-१७१०ई.) जे तालपत्र पर अंकित अछि, सर्वकालीन सर्वश्रेष्ठ पञ्जीकार पाँ ‘देवानन्द प्रसिद्ध छोटी झाक’ लिखल शाखा पुस्तक (१७७० ई.सँ १७८० ई.) जे तालपत्र पर लिखल अछि, अद्यावधि उपलब्ध अछि। तकर अतिरिक्त हर्षानन्द झाक शाखा पुस्तक, भिखिया झाक शाखा पुस्तक, झुलानन्द झाक शाखा पुस्तक, मोदानन्द झा ‘पञ्जिशास्त्र मार्तण्ड’(मैथिली अकादमी, बिहार सरकार द्वारा प्रदत्त उपाधि), ‘लब्ध धौत’ (मिथिलेश महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह सँ प्राप्त उपाधि), वाला शाखा पुस्तक, ‘उप-टीप’(सोतिपुरा), नगराम(पछिवारि पार), गोत्र पञ्जी, पत्र पञ्जी ई सभ एहि पोथीमे मिथिलाक्षरमे अंकित अछि। ताहि सभक अंकन आ लिप्यंतरण प्राचीन पञ्जीक संग करबाक काज सन २००० ई. क चैत मास सँ प्रारंभ कएल गेल। गोत्र पञ्जी मध्य गोत्र व मूलक विवरण, पत्र पञ्जी मध्य अपत्यक ज्ञान तथा दूषण पञ्जी मध्य वंश मे आएल दोषक ज्ञान होइत अछि। प्राचीन पुस्तक मध्य ४५० ई. सँ अद्यावधि प्रचलित शैक्षणिक उपाधि सबंधक ज्ञान होइत अछि। लिप्यंतरण करबाक अवधि मे अनुभव भेल जे मिथिलाक इतिहास बोध कतैक उच्च प्रकारक रहल अछि। पञ्जिक पुस्तक मात्र अधिकारै तकबाक लेल प्रारंभ नहि भेल, अपितु मिथिलाक लोक अभाव ग्रस्त रहितौ, तत्तकालिन शासकक वक्र दृष्टि सहितो मिथिलाक शैक्षणिक स्थिति, धर्म शास्त्रिय विवेचनाक क्षमता, साहित्यिक रचनाक योग्यता कलाकौशलक प्रवीणता कोन प्रकारक छल एहि सभ पर प्रकाश देखल। लिप्यन्तरण भेला संता वर्तमान कालिन दुनिया, जे भूमण्डलीकरणक दौर मे अछि, जानि सकत जे मिथिलांचलक सांस्कृतिक विविधता कि छल इतिहास बोध कोन प्रकारक छल- एहि सभ वस्तु केँ दुनियाक पटल पर राखल जाए। दुनियाक कोनो समाज मे एतैक विस्तृत भुभाग मे पसरल मनुष्यक वंशावली १५०० वर्ष सँ अधिके समय सँ एहि तरहें सांगोपांग नहि लिखल गेल अछि जाहि तरहें मिथिलाक लोक विपन्न रहितो परिचय संग्रह करैत रहलाह, ईमानदारी पूर्वक अपन पुरूषाक शिक्षा, तथाकथित क्षरण आ सबन्धक विवरण कलाबोध प्रवास-आप्रवासक संचित करैत रहलाह, से अद्भूते अछि।

आब पञ्जीक पुस्त कमे कएक पीढी सँ यावतो परिचय संगृहित भए गेल अछि तँ फेर श्रोत्रियादित्रय लोकनिक शाखा वाचन हो आ तथा कथित जयवार लोकनिक नहि (परिचय उपलब्धछ रहितौ) तकर की अर्थ? वंश परिचय संगृहित करबाक स्व रूप मे अनेक पड़ाव आएल अछि, पूर्व मे स्मृति सँ - बाद मे (कुमारिल भट्टक समय मे समूह लेख्यं)। पुनः वर्तमान स्ववरूप मे (पञ्जीकार लोकनि द्वारा) मिथिलेश महाराज माधव सिंहक (१७६० ई.) समयमे थोडे बुद्धि विलासी लोकनि अपन चाटुकारितासँ शाखा पुस्तकक प्रणयन महाराजक आदेशसँ पञ्जीकारसँ करबओलन्हि। आचारण वृत्ति हेतु तोता-रटंत प्रारंभ भेल। पहिने तऽ मूलहि टाक पुस्तक छल जे वैवाहिक अधिकार निरूपण हेतु यथेष्ट छल- अछि- रहत। उत्तेढक प्रारूप एहि तथ्य कें सिद्ध कए रहल अछि, धर्म शास्त्रक वचन तकरा पुष्ट करैत अछि। जखन पञ्जीकारक अवधारणा नहि छल धर्मशास्त्रज्ञ लोकनि प्रयोजन वाला व्यक्ति सँ हुनक देल वंश परिचय पर अधिकार हो वा नहि तकर निरूपण करैत छलाह तखन ओ उत्तेढक प्रारूप सँ इतर कोन तरहें विचार करैत छलाह, की ओ लोकनि धर्म विरूद्ध आचरण करैत छलाह?
अस्तु, पञ्जीकार अपन अज्ञानताक भार सँ समाज केँ दलमलित करबाक विचारक परित्याग करूथु ओ आर्ष वचनक निर्वाह प्राण-प्रण सँ करूथु अपन गढल सूत्रक नहि।प्रत्येक कन्या वा वर जाहि-जाहि व्यक्ति सँ छठम स्थान मे रहैत छथि ओ समस्त छठि समान अधिकारक (सत्ताक) होइछ , मात्र पक्ष देखबाक निर्देश अछि- पितृ कुल वा- मातृ कुल। कोनो छठिकेँ विशेषाधिकार शास्त्रक वचन सँ नहि अछि। तखन ई कहबाक की अभिप्राय जे कन्या जाहि मूल-ग्रामक होथि – वरक मातामहक मूल ओ मूल ग्राम सैह हो तँ मातृ सापिण्ड्य आठम पीढी मे (सातम पुस्तक बाद) निवृत होएत, सर्वथा भ्रान्त धारणा। एकर समर्थनमे धर्मशास्त्रक कोनहुँटा वचन नहि अछि। जँ अछि तँ लिखित विचारक सप्रमाण खण्डन करू (गल्पसँ नहि)। प्रातः स्मरणिय म.म. प. महेश ठाकुरक देल व्यवस्था संप्रमी त्यजेत सँ ...भजैत.. समाज सहर्ष स्वीकार कएलक तँ मान्य। अंततः एकटा विषय इहो अछि जे पञ्जीकर्म सँ जुड़ल व्यक्ति, समाजक धर्मक रक्षा लेल नियुक्त छथि, जे किछु विदाई वा पारिश्रमिक भेटैत छन्हि से प्रसाद स्वरूप ग्रहण करूथु नहि कि एकै तरहक पाँच टा कार्य लेल एक ठाम सँ दोसर ठाम जएबा हेतु पाँचो व्यक्तिसँ मार्ग व्यय लेल जाय, पाइ बिनु अग्रिम भेटने अधिकार नहि ताकी, ई तँ घोर अनैतिकता थीक। पञ्जीकार संस्कृतिक रक्षकक होथि, गरकट व्यापारी नहि। भावी पीढीक हेतु समय पर शिष्य तैयार करब पञ्जीकारक दायित्व थिकन्हि- पाइये टा कमायब अभिष्ट नहि होयबाक चाही। नहि सम्हरैत छन्हि तँ समय पर समाजकें एतत रूपक सूचना करथु , जे समाज- नव नव व्यक्तिकें दायित्व निर्वहण करैक हेतु तैयार करथि। सम्बद्ध व्यक्तिक अनुपस्थित होएबाक प्रातहि नव पञ्जीकारक प्रयोजन होएत, ताहि हेतु के विचार करताह?

अस्तु, से जँ अधिसंख्य लोकक मध्य प्रचलित लिपि मे ई नहि होएत तँ मिथिलाक विशिष्टता सँ दुनियाँ परिचित कोना होएत। ख्रीष्टाब्दक दशम शताब्दी सँ लऽ कें देशक स्वतंत्रता प्राप्तिक काल धरि मिथिला मे कोनो प्रकारक गमना-गमनक सुविधा नहि छल, लेखन कला सँ विज्ञ रहितौ लेखन सामग्रीक अभाव मे कागजक स्थान पर तालपत्रक व्यवहार होएत छल जे सुविधा सँ नहि प्राप्त छल तखनहुँ मैथिल समाज अपन वाङ्गमयक रक्षाक हेतु येन-केन प्रकारेण ताल-पत्र उपलब्ध करथि, छाहरिमे सुखाबथि, १४ नाम औ १.५ सै २ चाकर ताल पत्र काटि-छटि कऽ तैयार करथि। पातक वाम भाग मे १.५ भीतर गोलाकार छीद्र कए सुतरी वा कपासक मोट धागासँ पैसाकऽ गाँठ देथि। ई पुस्तक- ५००-६०० पातक बनैत छल जकर दूनु दिस काष्ठक गत्ता देल जाए आओर डोरी मे गाँठ दए पुस्तक बान्हथि। बान्ह सक्कत पड़ैत छल। पुस्तक ब्रह्मपत्री शैली मे बनाओल जाइत छल। प्रत्येक गुरू अपन शिष्य कें बतावथि जँ- पुस्तकी वदति, स्याहीक हेतु जंगली जडी-बूटी ओ लेखनीक हेतु खद्धहीक व्यवहार करैत छलाह। जलात् रक्ष तैलात् रक्ष, रक्ष स्थूल बन्धनात्- इयैह-सूत्र पाञ्जिक विद्यार्थीकँ सेहो सिखाओल जाइन्ह। अभावग्रस्त समाज एतैक कठिनताक सामना करितहुँ पञ्जीकर्म सँ जुड़ल लोक अपन आश्रितक बिनु चिंता कएने, सैद-पानि बसात सहैत- गामहि-गाम भ्रमण करैत इच्छित विवरण एकत्र करैत छलाह। पुनः समय-समय पर गाम आबि तकर सम्पादन करथि- एहि तरहेँ कार्य शत-शत वर्ष चलल। – समाज सँ सहयोग ओ सम्मान भेटन्हि परञ्च कोनो प्रकारक राजकीय संरक्षण हुनका लोकनि केँ कहियो नहि रहलन्हि। सम्पादन कार्य त्रुटि रहित करैत छलाह। अजुका सरकारी कर्मचारी जकाँ, जे घरहि बैसल वेतन ओ सुविधा भोगैत नागरिकता प्रमाण पत्र मे परिचयक स्थान मँ किछु सँ किछु भरैत जाइत छथि, नहि वरन् , पञ्जीकार लोकनि द्वारा संगृहित सूचनासँ समाजक बहुआयामी प्रयोजनक पूर्ति होइत रहल अछि- यथा सपिण्डताक निर्धारण- अशोंचदिक हेतु, वैवाहिक स्वीकृति हेतु, पिण्डदानक हेतु पुरूषाक नामक ज्ञान, विवाहक हेतु अधिकार तकौनाई, वंशक शैक्षणिक, भौगोलिक ज्ञान, आदि-आदि। उपरोक्त सभ पुस्तक कें प्रत्यक्ष राखि ७ वर्ष धरि निरंतर लिप्यंतरण (Transliteration) क कार्य सम्पन्न भेल। पाञ्जिक पुस्तक मे अंक निर्धारणक बड्ड महत्व होइत छैक अंकहि पर आधारित होइत अछि- शाखा पुस्तक। ई कार्य जँ गड़बड़ा गेल तँ बुझु जे धारमे भसिया जएबावाला स्थिति भए जाएत।प्राचीन पञ्जीसँ एकर सूत्र टूटि जाएत। अस्तु अंकन अशुद्ध नहि हो ताहि लेल एकाग्र भए लेखन कार्य कएल गेल।

किछु शब्द पञ्जिकार लोकनिसँ- पञ्जीकार लोकनि सँ विनम्र निवेदन जे मिथिलाक संस्कृतिकेँ अक्षुण्ण रखवाक हेतु अपन अल्पज्ञता ओ संकुचित प्रवृतिकेँ दूर करथु। मात्र किरानीगिरी करब- अधिकार ताकब ओ सिद्धांत कराएब आ ताहि सँ द्रव्य कमा लेब, एतबे धरि पञ्जीकारक सोच नहि होएबाक चाही। पञ्जीकर्मसँ जुड़ल व्यक्ति समाजक हेतु बड़ पैघ दायित्व ग्रहण करैत छथि। समान पुरूषा(Common Person) सँ जँ वैवाहिक स्वस्ति हेतु कन्याक सापिण्डय निवृति अनिवार्य तँ ओहि तरहेँ जँ वर ओहि पुरूषा सँ सपिण्डताक परिधि पार कए लेने छथि परञ्च कन्या समान पुरूषा सँ सपिण्डताक परिधि मे छथि तथापि वैवाहिक सम्बन्धक स्वस्ति देलहिटा जाए। एकर विरूद्ध जे पञ्जीकार निर्णय दैत छथि ई विचारि कए जे कन्या तँ ‘छठि मे पडैत छथि वर खाहे ओहि पुरूषा सँ सातम वा ताहि सँ अधिके दूरि पर रहथु- एकर की अर्थ भेल? अधिकार तकवाक प्रारूप (उत्तेढ-Format) आदि अदौ काल सँ पञ्जीकार लोकनिकें प्राप्त छन्हि, वैयाकरण लोकनि अर्थ स्पष्ट करथु। धर्मक रक्षा वा आर्ष वचनक प्रति श्रद्धा राखब एक अनिवार्य तथ्य थिक ओ तोता रटंतु जकाँ शाखा पुस्तक कण्ठस्थ करब दोसर गैर जरूरी बात। धर्म सूत्रक प्रणयन समस्त ब्राह्मण लेल अछि जाहि मे आवश्यक अछि ३२(बत्तीस) मूलक उत्तेढ बनायब (वर-पक्ष ओ कन्या-पक्ष दूनुक हेतु समान रूपें) जाहि मध्य १६टा छठिक निर्धारण- उद्देश्य सापिण्डय निवृतिक ज्ञान, अधिकार तकबा काल पञ्जीकारक समक्ष विषय (Subject) होइत अछि वर- ओ कन्या नहि की ओ समान पुरूषा(Common- Person)। जँ पहिल दोसरक सपिण्डता सँ वहिर्भूत भेल तँ दोसर कोन रूप मे वहिमूलक सपिण्डय निवृति प्राप्त कएलक तँ अधिकारक स्वस्ति परमावश्यक। वर्त्तमान विज्ञानक युग मे गुण सूत्रक (Chromosomes) निर्धारण एहि रूपक अछि आ हमरा लोकनिक पुरूषा (ऋषि लोकनि) तकरहि शास्त्रिय ढंगे पूर्वहि राखि गेलाह।
महाराजाक हेतु निहुछल कन्यासँ अपन पाँजिक रक्षार्थ कन्या चोराकेँ बियाह केलापर राजा द्वारा पञ्जीकार लोकनिकेँ बजाए हुनकर नाममे तस्कर उपाधि जोड़ब, नैय्यायिक गंगेश उपाध्यायक जन्म पिताक मृत्युक ५ सालक बाद होएब, महेशठाकुरक बहिनक विवाह कूच-बिहारक राजकुमारसँ होएब, कविशेखर ज्योतिरीश्वरक उपाधिक संग उल्लेख (हुनकर पाण्डुलिपि नेपालक पुस्तकालयसँ प्राप्त होएबासँ पूर्व), ओकर अतिरिक्त ढेर रास ढाकाकवि आ कवि शेखर लोकनिक विवरण, मुस्लिम आ चर्मकारसँ विवाहक विवरण आ समाजमे ओहिसँ भेल सन्ततिक प्रति कोनो दुराग्रहक अभाव, ई सभ पञ्जीमे वर्णित अछि।आर्यभट्टक विवरण- (२७) (३४/०८) महिपतिय: मंगरौनी माण्डैर सै पीताम्ब र सुत दामू दौ माण्ड्र सै वीजी त्रिनयनभट्ट: ए सुतो आर्यभट्टः ए सुतो उदयभट्ट: ए सुतो विजयभट्ट ए सुतो सुलोचनभट (सुनयनभट्ट) ए सुतो भट्ट ए सुतो धर्मजटीमिश्र ए सुतो धाराजटी मिश्र ए सुतोब्रह्मजरी मिश्र ए सुतो त्रिपुरजटी मिश्र ए सुत विघुजटी मिश्र ए सुतो अजयसिंह: ए सुतो विजयसिंह: ए सुतो ए सुतो आदिवराह: ए सुतो महोवराह: ए सुतो दुर्योधन सिंह: ए सुतो सोढ़र जयसिंहर्काचार्यास्त्रस महास्त्र विद्या पारङगत महामहोपाध्या य: नरसिंह:।।
५८४(A)। चैतन्य महाप्रभु: रमापति उपाध्याय करमहे तरौनी मूलक छलाह। ओ बंगाल चलि गेलाह, हुकर शिष्य रहथि चैतन्य महाप्रभु।गंगेश उपाध्याय-छादन छादन, उदयनाचार्य-ननौतीवार ननौती (करियन, समस्तीपुर), महेश ठाकुरक मातृक काश्यप गोत्री सकराढ़ी मूलमे रुद झा। रमापति उपाध्याय प्रसिद्ध विष्णुपुरी, परमानन्दपुरी वत्सगोत्री करमहा मूलक तरौनी गामक चैतन्यक गुरु।बल्लाल सेनक समयमे हलायुध आ लक्ष्मणसेन-उद्योतकर। सिंहाश्रम मूलक म.म.हलायुधसँ १२ पुस्त पूर्व माण्डर मूलक बीजी म.म.त्रिनैन भट्ट (४०० ए.डी.लगभग) एहि पोथीक प्रस्थान बिन्दु अछि(पृष्ठ १८)। हलायुध आ नरसिंह समकालीन छलाह। नरसिंह (माण्डर मूल)सँ १२ पुस्त पूर्व त्रिनैन भट्ट मे।

पञ्जीमे उपलब्ध आधुनिक सामाजिक जीवन:
ब्राह्मण खाहे श्रोत्रिय होथु वा तथाकथित जैवार विशेषाधिकार, विशेष बंधन किनको हेतु नहि। जे समाज तथा कथित रूपें जयवारक संज्ञा सँ विभूषित मिथिलाक लोक प्राचीन कालहिं सँ भारतक आन-आन सभ्यकता ओ संस्कृततिक अपेक्षा उदार माना ओ नमनशील रहल अछि, एहि ठाम कोनो प्रकारक धार्मिक कट्टरपन स्था।ई भाव नहि। सुधारक गुंजाइश सतत् बनौने रखने अछि, एहि ठाम जँ कखन कोनो काल मे खाहे कोनो प्रकारक जातिक वंडर उठल हो परंच विद्वेष स्थाेई भाव नहि रखल। अपन अपन कालक पैघ सँ पैध घटना कालातीत भए विस्मृडत होइत रहल अछि, तकर प्रमाण थिक मिथिलाक पञ्जी उपांग-दूषण पञ्जी। कोनो कालक दलमलित करएबला घटना (Burning Question) थोड़बहि समयक बाद समाज ओ मस्तिष्कप सँ हटि जाएत।
पाली मूलक-देवशर्म्मसुत कान्हमक विवाह बुधवाल मूलक गोविन्दप सुत दामूक विवाह सरिसब मूलक श्रीनाथ सुत चक्रपाणिक विवाह दरिहरा मूलक भीम सुत उमापतिक विवाह सोदरपुर मूलक श्रीहरि सुत हरिनाथक विवाह हरिअम वासदेव सुत कृष्णददेवक विवाह पनिचोभ मूलक मधुकरक विवाह- अज्ञात वंश ओ जातिमे।सरिसव मूलक भवनाथ पौत्र कमलनयन पुत्र किशाईक विवाह - वलियास चमरु सुत गंगाधरक कन्याशमे। चमरूक अपन विवाह अज्ञात कन्यावसँ। अर्थात किशाईक सासूक वंशक कोनो ठेकान नहि। एहि किशाईक सन्ता न मिथिलाक अनेक गाम मे पसरल छथि। परंच आइ समाज ओहि तथ्य केँ उचिते रूपेँ विस्मृित कए चुकल अछि। एहि रूपक अनेक घटना अछि- यथा बुधवाल मूलक माधवक पौत्री भीमक कन्याेक विवाह, जाहि लागिसँ अनेक घर व्यानप्त अछि। सतलखा रामनाथसुत जगन्नायथक मात्रिक घुसौत उधोरण सुत रतनूक मात्रिक, पाली होराई सुत रामक मातृक सकराढ़ी मूलक वेणी सुत राधवक मात्रिक, सोदरपुर मूलक पाँखू सुत चान्दिक मात्रिक, अलय मूलक दिनकर सुत हरिकरक मात्रिक, तिलय मूलक श्रीपति सुत विदूक मात्रिक इत्याुदि देवदाशी परम्पवराक छलीह अस्तुर अज्ञात मानल गेलीह परंच हुनका लोकनिक सन्तारन आइ समाजमे समादृत छथि। एहि प्रकारक उदहारण पाँजि मे भरल पड़ल अछि जे आब कालातीत भेला पर कोनो वंश पर कुप्रभाव नहि पड़त अपितु एहिना स्थित मे की निर्णय लेबाक चाही तकरा लेल मार्गदर्शन होएत।

आर उदाहरण: टेबुलक (१-९७) क नीचाँमे एहिमेसँ किछु उदाहरणक विस्तृत व्याख्या अछि।


सरिसव १७८/१ वलियास चमरू गंगाधरक मातृक सरिसव सकराढी पनिचोभ दरिहरा पाली नरवाल
भवनाथ नाथू गांगू कान्ह हेलू होराई चान्द
कमलनयन किशाई अज्ञात २३८॥०५ विशो गोगे रूद चान्द रामक मातृक देवघर
२.
वुधवाल पबौली सतलखा जगन्नाथक मातृक घुसौत रतनूक मातृक दरिहरा पाली रामक मातृक नरवाल
जाटू भीम रामनाथ उधोरण (अज्ञात) हेलू होराई (अज्ञात) चान्द
माधव भीमसुता १७८/२ लक्ष्मी जगन्नाथ (अज्ञात) रतनू चान्द राम देवधर
३.
माण्डर सोदरपुर अलय माण्डर सुरगन पचही पकलिया सिम्भुनाम
रतिपति चन्द्रपति देवे रत्नधर लगाई वंशधर कान्ह जयपति दूवे
गोढिसुता (निम्नकुल)७१/१ पाँखू भवदत्त नरसिंह सुपे राम
४.
सोदपुर १७७/२ वलियास गंगाधरक मातृक सरिसव सकराढी पनिचोभ दरिहरा पाली रामक मातृक नरवाल
मतिकर भमरू अंतर्जातिय नाथू गांगे कान्ह हेलू हेलू चान्द
भीम नाथ गंगाधर विशो गोगे रूद चान्द १७५/५ राम (अज्ञात) देवधर
सरिसव १८६ करमहा सकराढी राघवक मातृक सोदरपुर अलय माण्डर सुरगन पचही पकलिया सिम्भुनाम
नोने
नरहरि वेनी (अज्ञात) देवे रत्नधर लगाई वंशीधर कान्ह जयपति दुवे
श्रीनाथ चक्रपाणि मति राघव पाँखू भवदत्त नरसिंह सुपे राम

पवौली भानुदत एकहरा जगति सोदरपुर चान्दक मातृक अलय माण्डर सुरगन पचही पकलिया सिम्भुनाम
सुधापति सुरपति नोने पाँखू (अज्ञात) रत्नधर लगाई वंशीधर कान्ह जयपति दुवे
केशव सुता १९६/७ लक्ष्मीनाथ होरे चान्द भवदत्त नरसिंह सुपे राम
७.
सोदरपुर करमहा माण्डर अलय हरिकरक मातृक दरिहरा नीमा टकवाल सुईरी गदहा पंडोली
गदाधर रामनाथ केशव दिनकर (अज्ञात) नरसिंह दामोदर परशुराम अरविन्द
विशो महेश जगतू हरिकर केशव रविशर्म्म गोरी निधि
कुमरसुता १८४/२
८.
हरिअम उदनपुर माण्डर पचही करही राउड दरिहरा लहण्डा
गांगू दामू सुरसर स्थिति अदितु शुक्ल विशो बुधाई
केशव पागू हरि साहब साठू
दामूसुता अंतर्जातिय
९.
कोचराज पत्नी खण्डवला खौआल फनन्दह वलियास बहेराढी माण्डर
सोहागो २०८/१ सुरपति कोने हरिनाथ विभाकर वराह सागर
दुवे नोने रविनाथ गुणाकर गुणाकर स्थिति
चन्द्रपति सुता कोचराज पत्नी
१०.
पवौली घुसौत दरिहरा धारूक मातृक वहेराढी माण्डर
शिवदत्त अमरू नन्दन (अज्ञात) आंगू सागर
रूपदत २०८/२ जीवाई धारू रूद स्थिति
वाशुदेवसुता
११.
पवौली एकहरा जगति सोदरपुर पाली सतलखा गंगोली डगरक माता नदाम यवनी
भानुदत्त सुरपति नोने पाँखू दुवे दिवाकर डगर यवनी दौलतिजहाँ धनञ्जय दौलतिजहाँ ४३
सुधापति लक्ष्मीनाथ होरे चान्द हरिकर गौरीश्वर गंगाधर
केशवसुता १९६/७
हरिहर
१२
कुजौली खौआल महिन्द्रवाड पाली लाखूक मातृक गंगोली डगरक माता नदाम यवनी
गोपाल २१६/१ गोविन्द लाखू यशोधर दौलतिजहाँ डगर दौलति जहाँ धनञ्ज़य दौलतिजहाँ
वंशवर्द्धन विशो गंगाधर
वलभद्रसुता
१३.
खण्डवला माण्डर पाली दरिहरा बहेराढी जमुनी माण्डर धारेश्वरक माता
चान्द/चन्द्रपति काशी नोने गुणे गुणे राम धारेश्वर (अज्ञात)
महेश भीम बाटू अनन्दू अफेल गोनू माधव माने
गोपाल
१४.
गोढिक सरिसव घुसौत गंगोर वलहा मधुकर
सागर गांगू रतिकांत हारू सुधाकर संतति
तनया २१६/२ रत्नपाणि गुणाकर वरदत्त
रघुपाणिसुता (गोढिमाता)


१५.
दरिहरा सोदरपुर दरिहरा घुसौत तेरहुता नरवाल रतिक माता
भोला शंकर खाटू दामोदर लाखू नोनाई (अज्ञात)
मनसुख गंगाधर नरपति हरि रति
यशुसुता
१६
सोदरपुर खौआल सोदरपुर दरिहरा पनिचोभ चान्दो तिलय खौआल सोदरपुर
राघव पूरखू नागू धारू रतन कामेश्वर श्रीपति नोने हरिदत्त
रत्नपति २१५/१ हरिहरक-माता (देवदासी) दुवे राम रामकर माधव विदूक-माता ढोढे देवदास
यदुनाथ (अज्ञात)
१७. जानिक देवदास
वुधवाल खौआल जलीवाल माण्डर कुरहनि तिलय श्रीपति खौआल सोदरपुर
चान्द २१५/२ गीरू जीवे देवादित्य गुणेश्वर विद्यापतिक- माता(देवदासी) नोने हरिदत्त
भानू हरखू थेग नाथू ढोढे
सुधापति
१८. जानिक देवदास
सोदरपुर पाली सुरगन दरिहरा जीवेक- माता तिलय-श्रीपति खौआल सोदरपुर
लाखन ज्ञान रवि जीवे देवदासी लाखूक-माता ढोढे हरदत्त
जनार्दन २१४/१ वाटू वाचस्पति अमरू देवदासी
चतुर्भूजसुता १०२/०१
१९. जानिक देवदास
सोदरपुर माण्डर हरिअम माण्डर करमहा खौआल सोदरपुर
पशुपति यशोधर सोनी नन्दन पहकर जागेक माता(देवदास) ढोढे हरदत्त
श्रीहरि २१४/२ दामू देवनाथ रघु हारूक-माता
हरिनाथ अज्ञात

२०.
जानिक पवौली वुधवाल वलियास वभनियाम मताउन रकवाल तिलय- श्रीपति
देवदास २१३/१ सभापति पराण धारू होरे धर्मू कामदेव विद्यापतिक-माता(देवदासी)
गोप नारायण श्रीरामक-माता(देवदासी) मनसुख हरिपति उधे
रतिपति
२१.
जानिक दरिहरा पवौली बुधवाल खौआल जलिवाल माण्डर कुरहनि तिलय-श्रीपति
देवदास २१३/२ रामनाथ विद्यानाथ मानू गीरू जीवे देवादित्य गुणीश्वर विद्यापतिक-माता(देवदासी)
रघुनी गुणपति सुधापति हरखू थेघ नाथू विद्यापति
हरिदेव ४७/३
२२.
पश्चिम देश सँ माण्डर करमहा खौआल सोदरपुर वभनियाम सकराढी दरिहरा यमुगाम पुरहदी
आगत २१२/१ लटाउँ रघु मित्रकर शक्तू गहेश्वर टूनी लक्ष्मीनाथ कीर्तिवास मतिश्वर
होराई शिव जीवे उधोरण होरे धृतिकर
मधुसुदन-सुता(अज्ञातकुल)
२३.
पश्चिम देश सँ माण्डर खण्डवला दरिहरा बहेराढी खौआल जालय
आगत चन्द्रपति दीनू भवे वराह हरिहर रतिधर
२१२/२ गोढि गुणाकर मेधू नोने रति मतिकर(माता अज्ञात)
शिव







२४
चर्मकार तल्हनपुर टकवाल दरिहरा पञ्चोभ मेरन्दी ब्रह्मपुर बैजूक-माता
आनन्दा २११/१ गढवय जीवधर पाठक जगन्नाथ परभू बैजू आनन्दा
रवि गहाय हरि दिवाकर
मितूसुता २५३/६ हरिहर
२५
सोदरपुर माण्डर फनदह नदाम
अफेल धारू हारू कान्हा
दिवाकर विश्वनाथक-माता आनन्दाक-पुत्री सोन जयकरक-माता आनन्दाक-पुत्री
रघु २११/११

२६

सतलखा बुद्दिकर बुधवाल
मुथे सोदरपुर टकवाल नदाम सतलखा
२०९/१ गोविन्द रघुनन्दनसुता- अज्ञात कुल पशुपति हरिहर गणपति चान्द
कान्ह-विवाह वसाउन अज्ञात
बुद्धिकर
हरखू


२७
करमहा सोदरपुर माण्डर गाउल करमहा वलियास मोनारी पाली कुरिसमा केउटराम पण्डोलि
गोविन्द वेणी मेघ लागे गणपति रूद समटू श्रीकर गणपति
नोने
२०९/११ जगन्नाथ बामन (माता) अज्ञात शंकर दिनपति वंशी रवि चान्द
देवनाथ

२८
विधवा सोदरपुर माण्डर गाउल वलियास मोनारी पाली कुरिसमा केउटराम
पण्डोली
वेणी जगन्नाथ मेघ वामन-माता अज्ञात लागे
शंकर गणपति
दिनपति रुद समटू
वंशी श्रीकर
रवि गणपति चान्द
२९
२०७/१ खण्डवला बुधवाल बुधवाल माण्डर टकवाल वलियास ब्रह्मपुरा मेरन्दी कोर्थुआ
रजक धरम महेश
गोपाल
माधव गणपति
गोपी धीरू
माता-रजकी भवानीनाथ बुद्धिकर
भवनाथ केशव
रविदत्त केशव
गोपाल माँगु
गाँगु कान्ह
नरसिंह
जादू

३०
२०७/११ हरिअम वलियास नरवाल सतलखा सुरगन त्रिलाढी डीह दरिहरा

रजक धरम मानिकी सोम
वासुदेव
ज्ञानी राम
गोविन्दक-माता रजकी पराउँ
उधे कान्हा
विभू-मात्रिक रजक परम्परा भगव
रघु रत्नाकर रुद्रानन्द
विद्यानिधि

३१
१७९/१ सोदरपुर दरिहरा पाली नरवाल
रविनाथ
दूवे
मासे हेलू
चान्द होराई
रामक-माता अज्ञात चान्द
देवधर

३२
१७९/II करमहा सोदरपुर दरिहरा घुसौत दरिहरा पाली
भानू
हरखू
राघव विधुपति
रामेश्वर मतिकर
सभापति-माता अज्ञात धारू
उधोरन हेलू
चान्द होराई
रामक माता

३३
१८०/I सोदरपुर टकवाल यमुगाग्म टकवाल सुइरी
गदहा पण्डोलि
विदू
ओहरि
बाबू भवदेव
गंगाधर-मातृक अज्ञात गणपति
जूड़ाउन-माता अज्ञात रविशर्म
पराउँ-माता अज्ञात
सूयन परशुराम
गौरी अरविन्द
निधि

३४
१८०/II सोदरपुर माण्डर बेलउँच खौआल घोसियाम गदहा पण्डोलि
हाउँ
लाखन
जनार्दन मेधाकर
पिताम्वर महिधर
खखनू दामोदर
रुद माँगनि
वागेक-माता (अज्ञात) अरविन्द
लान्हि
चान्द

३५
१८१/I सोदरपुर सतलखा वभनियाम माण्डर यमुगाम सकराढी पाली गदहापण्डोलि
गदाधर
ध्रूवानन्द काशी
रामचन्द्र सुरपति
माने विष्णुपति
दामू रघुपति
ऊँमापति चाँडो
हाल्लेश्वर देवशर्म
कान्ह अरविन्द
निधि(निषिद्धकुल)

३६.
१८१/२ वुधवाल दरिहरा पचही कोरड़ा गदहापण्डोलि
रति सीधू रतनाकर कान्ह अरविन्द- (निषिद्धकुल)
गोविन्द राम शीरूक-माता गागे हरिकर
दामू
३७.
१८२/१ सरिसव करमहा सकराढी पनिचोभ माण्डर यमुगाम नीमा मुसरी गदहापण्डोलि
नोनी नरहरि वेणी हरिकरक-माता अज्ञात वागीश्वर रघुपति टकवाल परशुराम अरविन्द निधि (निषिद्धकुल)
श्रीनाथ मति राघव महथू शीरू दामोदर गौरी
चक्रवाणि रविशर्म्म
३८.
१८२/२ सोदरपुर माण्डर हरिअम माण्डर वुधवाल मताउन गदहापण्डोलि
पशुपति यशोधर सोन्हि नन्दन राम भीम अरविन्द- (निषिद्धकुल)
श्रीहरि दामू देवनाथ रघुक-माता नाथू उमापति निधि
हरिनाथ (अज्ञात) शीरू
३९.
१८३/१ सोदरपुर पाली माण्डर पचही माण्डर गदहापण्डोलि
बसाउन महाई मांगु रत्नाकर कान्ह अरविन्द
उमापति माधव रति अफेलक-माता गांगे-माता निधि-(निषिद्धकुल)
बाँके (अज्ञात) (अज्ञात) हरिकर

४०.
१८३/२ हरिअम दरिहरा वुधवाल सकराढी पनिचोभ माण्डर यमुगाम नीमा टकवाल गदहापण्डोलि
सोम दामू रघु महाइ मधुकर वागीश्वर रघुपति दामोदर रविशर्म्म अरविन्द
वासुदेव
कृष्णदेव कृष्णदाश माधव मणीषक मातृक(अज्ञात) हरिकरक माता शीरू निधि-(निषिद्धकुल)

४१.
१८४/१ हरिअम उदनपुर माण्डर पचही करही राउढ़ लहन्दा शुदी
गांगू दामू सुरसर स्थिति अदितू दरिहरा दुधाई
केशव पागू हरि साहेब साँचू शुक्लविशो
दामू अंतर्जातिय
४२.
१८४/२ सोदरपुर करमहा माण्डर अलय दरिहरा नीमा सदूरी गदहापण्डोलि
गदाधर रामनाथ केशव दिनकर उधोरण
नरसिंह टकवाल परशुराम अरविन्द
विशो महेश जगतू हरिकरक-माता केशव दामोदर रवि निधि-(निषिद्धकुल)
कुमर (अज्ञात) रविशर्म
४३
१८६/१ पवौली एकहरा जगति सोदरपुर अलय माण्डर सुरगन पचही पकलिया सिम्भुनाम
भानूदत्त सुरपति नोने पाँखू रत्नधर लगाई वंशीधर कान्ह जयपति दूवे
सुधापति लक्ष्मीनाथ होरे चान्दक-माता भवदत्त नरसिंह सूपे राम
केशव (अज्ञात)
४४.
१८६/२ सरिसव करमहा सकराढी सोदरपुर अलय माण्डर सुरगन पचही पकलिया सिम्भुनाम-करमहा
नोने नहरि वेणी देवे रत्नधर लगाई वंशीधर कान्ह जयपति दूवे
श्रीनाथ मति राघवक-माता पाँखू भवदत्त नरसिंह सूपे राम
चक्रपाणि
४५.
१८७/१ सोदरपुर पाली सोदरपुर खौआल पवौली वलियाम गंगोली नवरंगा(अंतर्जातिय)
वसाउन रघुपति बाबू रघुपति सुपन दूवे वरदत्त कोउयार
पशुपति जशाई शिवक-माता दूवे देवदत्त शक्ति सोमदत्त श्रीपति
नरहरि (अज्ञात) दहिमत वाशुदेव
४६.
१८७/२ सोदरपुर हरिअम माण्डर खण्डवला वलियास गंगोली नवरंगा दहिभत
शंकर वेणी माचो श्रीहरि दूवे वरदत्त कोइयार वाशुदेव
गोविन्द जूडाउन जोरक-माता गुदहरिक-माता शक्ति सोमदत श्रीपति
रघुनन्दन (अज्ञात) (अज्ञात)
४७.
१७७/१ सोदरपुर वलियास सरिसव सकराढी पनचोभ दरिहरा सुण्डिपार पाली
मतिकर भमरू नाथू गोगे कान्ह हेलू हेलू
भीम गंगाधरक-माता विशो गागे रूद चान्द रामक-माता
नाथ (अज्ञात) (अज्ञात)
४८.
१८८/१ ताँतनी सोदरपुर सकराढी जालय खण्डवला भराठी जालय खण्डवला भदुआल पागू
आझो हलधर गोविन्द गिरपति लान्हि सकराढी जयशर्म नरदेव कोइयार राम
धारू कल्याणक-माता (अज्ञात) मन्नु विभाकरक-माता नरसिंह विष्णुशर्म
श्रीनाथसुता ताँती जाति मे विवाह (अज्ञात) भाष्कर
४९.
१८८/२ चर्मकारिणी माण्डर वभनियाम छादन
तत्त्वचिंतामणि कारकगंगेश छादनगंगेशक नाँई रत्नाकरक-मातृक(अज्ञात) गंगेश
वल्लभा भवाइ माहेश्वर
जीवे
५०.
चर्मकारिणी सोदरपुर अलय माण्डर नरउन पनिचोभ खण्डवला डीह दरिहरा ब्रह्मपुर कोरई
मेधा शंकर गादू अफेल मुशे विद्यापति रत्नाकर मतिकर मांगु माण्डर
१८९/१ गोविन्द श्रीनाथ वासुदेव जादू रमापति सुरपतिक-माता (चर्मकारिणी) गांगू-मेधा
परशुराम



५१
१८९/११ सोदरपुर पाली माण्डर सकौना सकराढी खण्डवला डीह दरिहरा ब्रह्मपुरा
बसाउन
पशुपति
वाचस्पति
भवानी-माता चर्मकारिणी
महाई
माधव माँगू
रति बाढन
दूबे नारायणकर
रामकर
रत्नाकर
सुरपति-माता अज्ञात मतिकर
मांगू
मेधा



५२
१९०/१
हड़िणी
रुद्रमति सोदरपुर माण्डर कुजौली तिसूरी खण्डवला पाली घोसियाम
डालू
गादू
विशो गिरी
गागे कान्ह
सुरपति खोजो
गूदी-माता
अज्ञात हाड़ी शिवदत्त
शुभदत्त-माता
अज्ञात मतिश्वर जगन्नाथ-रुद्रमति विवाह
गोंग


५३
१९०/II
नरउन माण्डर जमूनी तिसूरी डीह खण्डवला नवहथ पाली धोसियाम
मधुकर
रुचिकर
टूने गहाइ
दिनकर वीर खाँजो शिवदत्त
शुभदत्त-माता अज्ञात मतिश्वर जगन्नाथ-रुद्रमति
गोंग

५४
१९१/I
खौआल वहेराढ़ी माण्डर सकौना दिघोइ पाली
पाली
रजेश्वर
सुता रजक साधुकर
श्रीकर
विभाकरसुता गोंगू
ढोढ़े विभू
भानूकर गोपाल
गौरीपति माधव
जगाई रतेश्वर विवाह अन्तर्जातीय

५५
१९१/II
खौआल वहोराढ़ी माण्डर दिघोइ
साधुकर
श्रीकर
विभाकर गांगू
ढोढे विभू-माता
भानुकर सुरेश्वर-रजकक कन्या रजकक विवाह हड़िनी रुद्रमतिक पुत्रीसँ

५६
१९२/I
सोदरपुर करमहा एकहरा खौआल बेलउँच माण्डर कुरहनि पकलिया
लगारी
गोपाई मणिधर
राम
वामदेव रघुनाथ राम
गणपति जाटू
परान दीनू
थेघ देवादित्य
पाँखू गुणीश्वर
दीनू श्रीकर
गोपपुत्री विवाह हरिनाथ


नरउन
गढ़
अलय
नरउन
गोरोहिनी

सोन
कान्ह रुद
सुधाकर सूज
जगन्नाथ कुलपति
रातू


५७
१९२/II
सोदरपुर बेलउँच पाली गंगोली
अलय माण्डर गोरहनी
काशी
गुणी
शंकर देवनाथ
कृष्णा-माता अज्ञात गोविन्द
होरे राम
महाई यशाई
नारायण हरिशर्म्म
देशू कुलपति
रातू

५८
१९३/I
हरिअम दरिहरा बुधवाल सकराढ़ी
वहेराढ़ी दरिहरा वुधवाल माण्डर गोरहिनी
सोम
वासुदेव
कृष्णदेव दामू
कृष्णदाश रघु
माधव महाई
भनेश दिनू
रघु भीम
डाकू रामादित्य
जोर देशू
लान्हि-माता अज्ञात परिसरा
कुलपति
रातू

५९
१९३/II
सोदरपुर घुसौत माण्डर जालय भरेहा पवौली माण्डर गोरहिनी
मणिधर
राम
कृष्णदेव रतनू
भवाई जीबधर
कल्याण जीवे
राम वंशीधर
शीरू जीवे
सुरसर आँगनि
हरदत्त परिसरा
कुलपति
रातू

६०
१९४/I
चर्मकार हिरुआ
सोदरपुर माण्डर
फनन्दह पकलिया अलई बेलमोहन
अफेल
दिवाकर
रघुसुता धारू
विद्यानाथ (माता) अज्ञात हारु
सोने-(माता) अज्ञात निधि सुता-अन्तर्जातीय परान
गिरु-चर्मकार हिरुआक पुत्रीसँ

६१
१९४/II
तैलिक देवाई खण्डवला तिसौँत पण्डोल खजूरी सकराढ़ी
महिपति
कान्ह
विष्णुपति जीवेश्वर-माता अज्ञात
नन्द वासुदेव
सुपन पनिचोभ
धनपति चान्द तैलिक देवाई अन्तर्जातीय

६२
१९५/I
करमौलि हरिअम्ब दरिहरा फनन्दह करमौली
गंगोली
पाण्डे पाली चान्दो फनन्दह पाण्डोलि
गांगोली

गंगोली
पाण्डेकर्म माँदू
गाँगु
केशवसुता महापात्रसँ विवाह भवशर्म
वर्द्धमान भीम
नरसिंह करम
साधुकर करम पमकर
दुर्गादित्य
धरादित्य
पाण्डेकरम सूर्यकर
हरादित्य भीम
नरसिंह

६३
१९५/II
चर्मकार हिरुआ
वुधवाल सकराढ़ी पाली माण्डर पुनन्दह पकलिया अलय बेलमोहन
शिरू
मानू
नारायण रतिपति
जसाउन हरपति
अमरु दिनकर
सुधे शंकर निधि एसुता परान
गीरू-चर्मकार हिरुआ

हारु







६४
१९६/I
हड़िनी रुद्रमति
रजक परम्परा
दरिहरा करमहा पवौली वुधवाल माण्डर दिघोय
शक्तू
जीवे
रामदेवसुता जोर
भवनाथ रुचिदत्त
गादू होरे
उधे-माता विभू-माता- भाष्कर
रामकर सुरेश्वर-रजकक कन्या-विवाह हड़िनी रुद्रमतिक कला अन्तर्जातीय


६५
१९६/II

रजक परम्परा
दरिहरा पाली माण्डर दिघोइ
अन्तर्जातीय सोमेश्वर
सिद्धेश्वर
सुपन श्रीधर
रामदत्त-माता अज्ञात दूबे
सुपे सुरेश्वर-रजकक कन्या-रजकक विवाह रुद्रमति कन्या





६६
१९७/I
चाम्पो यवनी
माण्डर पचही पवौली पकलिया तिरलाठी करनैठा कोइयार
कृष्णपति
सूर्यपति
भैरव शंकर
गणपति मुरारी
बागे चारुदत्त
गांगू हरिकर
दिवाकर चक्रेश्वर
राम शक्ति-पत्नी चाम्पो यवनी

६७
१९७/II
रजकक परम्परा
सोदरपुर हरिअम उदनपुर झंझारपुर पकलिया
भवे
रघुपति
रतिपति विभू
बसाउन खाँतू
पाँखू-माता रजकक परम्परा
माने-माता
लक्ष्मीधर

६८
१९८/I
वुधवाल पवौली सतलखा घुसौत तेरहोत कोइयार भदुआल
जाटू
माधव
भीम भवदेव
लक्ष्मी रामनाथ
जगन्नाथक माता धोरण
रतनू श्रीकर
सूपे-माता लक्ष्मेश्वर
जगन्नाथ अदित्य
भवानी

६९
१९८/II
सोदरपुर करमहा माण्डर पंचोभ महुआ भदुआल
गदाधर
विशो
कुमर रामनाथ
महेश केशव
जगतू-माता अज्ञात रतिनाथ
त्रिपुरे गिरिपाणि
रामपाणि सूज




७०
१९९/I
सोदरपुर सतलखा वभनियाम माण्डर यमुगाम सकराढ़ी वहेराढ़ी भदुआल
गदाधर
ध्रुवानन्द
हरिकेश काशी
रामचन्द्र सुरपति
माने विष्णुकान्त
दामू रघुपति
उमापति चाँड़ो-माता अज्ञात
हल्लेश्वर सोम
होरे हरिकेश

७१
१९९/II
वलियास गंगोली विठुआल खौआल तिरलाठी भदवाल
रघु
रामनाथ
नरहरि रघु
रामदेव चान्द
दशरथ-माता अज्ञात दामोदर
वासु धनेश्वर
बोध अदित्य
मानू

७२
२००/I
सोदरपुर वुधवाल जगति नरउन भदवाल
गदाधर
विशो
भानू धीरू
रामनाथ नोने
मिसरू डालू
रुचि-माता अज्ञात आदित्य
मानू

७३
२००/II
सोदरपुर बहेराढ़ी सोदरपुर चकलिया दरिहरा पाली पवौली
श्रीकर
रघुनाथ
कृष्णदेव उमापति
परमानन्द खेदू
लाखू रत्नधर
हरिनाथ रतीश्वर
रघुनाथ-माता अज्ञात गणपति
रति-माता अज्ञात नरसिंह चान्द-माता अज्ञात










७४
नरबंगा शाखा
२०१/I
यादव जयसिंह
माण्डर पाली खौआल पवौलि वलियास गंगोली नरबंगा दहिभत
शिवपति
यज्ञपति
अफेल मुरारी
पाँखू रघुपति
दूबे सुपन
देवदत्त दूबे
शक्ति वरदत्त
सोमदत्त नोहरि
श्रीपति-अज्ञात कुल वासुदेव

७५
२०१/II
यादव रहमू
खण्डवला दरिहरा वुधवाल सोदरपुर दरिहरा फनन्दह कुजौली पकलिया अलय पंचोभ
म.म.दामोदर
म.म.विश्वम्भर
हृषिकेश पत्नी यादव जीवे
रामदेव मोनि
गणपति भैरव
ठकरु-माता अज्ञात सूपे
रातू महनू
कान्ह विभू
गुणे भासे
मानू हीरे
हारू

७६
२०२/I
पण्डुआ हरिअम माण्डर वहेराढ़ी सतलखा पचही निचिता अलय माण्डर जालय सिंहाश्रम
जानू
गोपाल
यदुनाथ नन्दन
बूटन-माता अज्ञात महेश
रघु बराह
दीनू भासे
नोने यज्ञपाणि
रतिपाणि गणेश्वर
माधव साहेब
मुरारी
कीर्तिधर
मूलधर
पाण्डे
सरवे
७७
२०२/II
सोदरपुर करमहा माण्डर अलय माण्डर जालय सिंहाश्रम
गदाधर
बीसो
कुमर रामनाथ
महेश केशव
जगतु दिनकर
हरिकर सुरारी
चान्द-माता अज्ञात कीर्तिधर
मूलधर
पाण्डे
सरवे

७८
२०३/११
सोदरपुर सकराढ़ी पाली माण्डर फनन्दह पकलिया अलय बेलमोहन
पाँखू
पुरखू
भवानन्द माधव-माता
यदुनाथ हरपति
अमरू दिनकर
सुधे सोरे
हारू निधि एसुता परान
गीरु-विवाह हिरुआ चर्मकारिन

७९
२०३/१
परम ब्राह्मण-(महापात्र)
घुसौथ खौआल कुजौली मताउन दरिहरा गढ़ अलय डीह दरिहरा
केशव
रुचि
भवदेव गौरी
माधव रामधर
कृष्ण-माता अज्ञात नारू
बाटू-माता अज्ञात जसाई लक्षेश्वर
होरे-परमब्राह्मण
८०
२०४/१
सोदरपुर वहेराढ़ी सोदरपुर चकलिया विहरा दरिहरा पाली अलय डीह दरिहरा
श्रीकर
रघुनाथ
कृष्णदेव उमापति
परमानन्द
छेदू
लाखू रूपधर
हरिनाथ रूपधर
रघुनाथ-माता-अज्ञात गणपति
रति-माता अज्ञात महेश्वर
जसाई लक्षेश्वर
होरे-परमब्राह्मण
८१
२०४/II
वुधवाल माण्डर जालय कुजौली मताउन दरिहरा लय डीह दरिहरा
रति
गोविन्द
वांगु श्रीमणि
टेकी-माता अज्ञात पागु
सुधापति गांगु
रामधर नारू
बाटू-माता अज्ञात जसाई लक्षेश्वर
होरे-परमब्राह्मण
८२
२०५/I
गुरुपत्नी खण्डवला करमहा नरउन तेरहोता कुजौली मराड़
ज्ञानपति
सुरपति
दूवे गंगेश्वर
श्रीधर गौरीश्वर
मुरारी भवादित्य
राजू शिव भट्टभूषण-गुरुपत्नीसँ विवाह
८३
२०५/II वुधवाल खौआल बेलौंच विस्फी अलय डीह दरिहरे डीह दरिहरा
परान
मुरारी
अनन्त बाटू
रतन रघु
अनन्त रूपे
धीरू-माता अज्ञात जसाई
रघु-माता अज्ञात
गौरी लक्षेश्वर
होरे लक्षेश्वर
होरे-परमब्राह्मण
८४
२०६/I
गंगोली परमब्राह्मण सोदरपुर सकराढ़ी जालय कुजौली मताउन दरिहरा अलय दरिहरा
पाँखू
पुरखू
भवानन्द माधव-माता
यदुनाथ सुन्दर
यशोधर गांगू
रामधर नारू
बाटू-माता अज्ञात महेश्वर
जसाई लक्षेश्वर-विवाह गंगोली परमब्राह्मण
८५
२०६/II सोदरपुर बेलौंच पाली गंगोली अलय दरिहरा
काशी
गुणी
शंकर देवनाथ
कृष्ण-माता अज्ञात गोविन्द
होरे राम
महाय जसाई
नारायण-माता अज्ञात लक्षेश्वर
होरे-विवाह पथ पतिता कन्या
८६
२१६/I
यवनी दौलत जहाँ पुत्री सोदरपुर खौआल महिन्द्रवार पाली गंगोली खण्डवला माण्डर पाली दरिहरा बहेराढ़ी
रघुपति
रतिपति
बलभद्र गोविन्द
बीसो नाथू
यशोधर डगरू-माता अज्ञात
गंगाधर चन्द्रपति
महेश
गोपाल काशी
भीम नोने
बाटू गुणे
आनन्दु गुणे
अफेल-यवनीपुत्रीसँ विवाह

८७
जमूनी माण्डर चकरहद हरीनी दिघोय त्रिपुरे गोण्डि
राम
गोढ़ि धारेश्वर-माता अज्ञात
माधव
माने माने
हरिकण्ठ धनन्जय
गोढ़ाई गोण्डि- गाउँ
पुरन्दर पुत्री
८८
२२७ महिषी वुधवाल सोदरपुर वलियास करमहा सकराढ़ी पंचोभ पवौली पाली
चान्द
रामचन्द्र
गरुड़
रमणी
बालगोपाल
मही रुचि
जयदत्त रुद
हरिनाथ
रुचिनाथ दुखन सतार हरीश्वर
धाने
गोनू
रामकृष्ण वाचस्पति
महेश जानू
धरमू
हरि कृष्णदेव
मुकुन्द
८९
२२६/II नरौन पाली पाली दरिहरा करमहा एकहरा माण्डर सोदरपुर
टूने
गोनू
हरिपाणि
हरिनाथ
प्राणपति दामू
गोपी धीरू
श्रीनाथ
चीकू गोपाल
रतिदेव पशुपति
दशरथ
रामचन्द्र
परमानन्द हरखू
गोपी नरहरि
लक्ष्मीनाथ
अभिमन्यु हरखू
जयराम
९०
२१८/I
पश्चिम देशसँ आगत चाँरो करमहा सरिसव वभनियाम यमुगाम पुरहदी
गंगेश्वर
राम
हरिकर गांगू
रत्नपाणि गोविन्द
ऐंठो कीर्तिवास
नितिकर-माता अज्ञात मतीश्वर
धृतिकर
९१
२१८/II सोदरपुर पाली सोदरपुर दरिहरा खण्डवला वुधवाल खौआल ब्रह्मपुरा पुरहद्दी
नाथू
वासुदेव
श्रीपति नरपति
रुचि थेघ
यशोधर धीरू
लाखन कुसुम
धाने वासू
वागू सूभे
पाँथू रघुनाथ
माँगू रातू
९२
२१९/I
केरवाल शाखा महिन्द्रवार पाली गंगोली दरिहरा केरवाल पाली मोरसण्ड करमहा
भादू
नाथूक माता-अज्ञात
यशोधर गंगाधर
गदाधर गोविन्द
सिरू जयदत्त
गोपाल ब्रह्मेश्वर
स्थिति
९३
२१९/II सोदरपुर दरिहरा पवौली सुसैला दरिहरा
गोपीनाथ
हाउँ
जीवे सुरसर
वीर
कुजौली
मुरारी
जागे हरिहर
शशिधर सूरे
माधव लक्षेश्वर
होरे-विवाह गंगोली पथ पतिता कन्या
९४
२२०/I
वार्तिनी विधवा पाली पवौली माण्डर पाली पुरिसमा पंडौली
हरि गोनि
सुधाकर बागे
दूवन-माता अज्ञात सर्वाय
श्रीकर समरू
वंशी श्रीकर
रवि गणपति
चान्द-विध्वाक सन्तान
९५
२२०/II हरिअम सोदरपुर करमहा खौआल जमुनी खौआल घोसियाम सुरगण होइयार
नरहरि
भवे
मुरारि राम
भीम हरिकर
मीतू सुधाकर
बुद्धिकर देवे
महेश्वर दास
शशिकर वशिष्ठ
देवशर्म्म
नोने शिवसिंह
धाम





९६
२२१/I
धीवर दासी कुजौली माण्डर नरउन माण्डर सुरगण निखुती
जीवे
महाय
गोपीनाथ प्रीतिकर
शशि शशि
जीवे भवादित्य
गणपति नारायण
डालू मंडन-पत्नी धीवरदासी
९७
२२१/II माण्डर करमहा खौआल बेलौँच पाली पचही बलहा
लटाउँ
होराय
मधुसूदन रघु
शिव मीतू
जीवे-माता अज्ञात मित्रादित्य
केशू माधव
गोप-विवाह दासी इन्द्र
भव खाँजो
दामू
टेबुल (१-९७)क उदाहरण १ क व्याख्या: गुणवति हिमशा जे आन जातिक रहथि, हिनकर विवाह वलियासमूलक चमरूसँ भेलन्हि, जाहिमे बालक गंगाधर भेलाह। एहिमे हुनकर संतति सरिसव मूलक नाथूसँ पुत्रीक विवाह- पुत्र विशो, फेर विशोक कन्याक विवाह सकराढ़ी मूलक गांगूसँ- ओहिमे बालक गोगे, गोगेक पुत्रीक विवाह पनिचोभ मूलक कान्हसँ ओहिमे पुत्र रुद, रुदक बेटीक विवाह दरिहरा मूलक हेलूसँ ओहिमे पुत्र चान्द, चान्दक पुत्रीक विवाह पाली मूलक होराईसँ जाहिमे पुत्र राम-रामक मातृक अज्ञात। रामक सन्तान (पुत्री)क विवाह नरवाल मूलक चान्दसँ। तिनकर बालक देवधर जे पूर्णतः शुद्ध भेलाह (छठम पीढ़ीमे)।

एहिना-

बहेराढ़ी सँ वराहसुत नोनेक विवाह
खौआल हरिहर सुत रतिक विवाह
माण्डहर मूलक गोंढि सुत शिवक विवाह
खण्डिबलासँ दिनू सुत गुणाकरक विवाह
दरिहरासँ मने सुत मेघक विवाह

तल्हरनपुर मूलक रविसुत मिलूक विवाह
टंकबालसँ जीवधर सुत गहाईक विवाह
दरिहरा पा. हरिसुत हरिहरक विवाह
पनिचोभ जगन्ना थक विवाह
सोदरपुर दिवाकर सुत रघुक विवाह


नदामसँ कान्हकक विवाह
सोदरपुरसँ रतिपति सुत बलभद्रक विवाहक लागि
खौआल गोविन्दि सुत विशोक विवाहक लागि
खण्ड बला महेश सुत गोपालक विवाहक लागि


खण्ड बला सुरपति सुत दूवेक विवाहक लागि
करमहा गंगेश्वबर सुत श्रीधर
नरउन गौरीश्ववर सुत मुराठी
सकराढ़ी भवादित्य‍ सुत रामू
कुजौली शिवक विवाह


वुधवालसँ परान पौत्र मुरारी सुत अनन्तक विवाह
खौआलसँ वादू सुत रतनक विवाह
बेलउँच रघु सुत अनन्त क विवाह
विस्फी सँ रूपेक विवाह
अलयसँ जसाईक विवाह


सोदरपुरसँ पुरखू सुत भवानन्दह
सकराढ़ीसँ माधवक विवाह
जालयसँ सुन्दधर सुत यशोधरक विवाह
कुजौली गांगू सुत रामधरक विवाह


सोदरपुर जीवेक विवाह
दरिहरा सुरसर सुत वीरक विवाह
माण्डारसँ सवाई सुत सुरसर क विवाह
पालीसँ समरु सुत सुरसरक विवाह
कुरिसमा सकराढ़ीसँ श्रीकर सुत रविक विवाह



खण्डसवला विश्वकम्भकर सुत हृषिकेशक विवाह
दरिदरा जीवे सुत रामदेवक विवाह
बुधवालसँ मणि सुत गणपतिक विवाह
दरिहरासँ सुपे सुत रातूक विवाह
फनन्दाहसँ महनू सुत कान्हिक विवाह


सोदरपुर सँ पुरखू सुत भवानन्दक विवाह
सकराढ़ी सँ माधवक विवाह
माण्ड़रसँ दिनकर सुत सुधेक विवाह
फनन्दह सँ सोरे सुत हारूक विवाह


सोदरपुर मणिधर पौत्र रामसुत वासुदेवक विवाह
करमहा रघुनाथ सुत हरिनाथक विवाह
एकहरा रामसुत गणपतिक विवाह
खौआल जादूसुत परानक विवाह
बेलउँचसँ दिनूसुत थेघक विवाह
बेलउँचसँ दिनूसुत


खौआल श्रीकर सुत दिवाकर विवाह
बहेराढ़ी गांगु सुत दोक विवाह
सकौना गोपाल सुत गौरी पतिक विवाह
दिधोय माधव सुत जगाईक विवाह


छादनसँ तत्वस चिन्तावमणि कारक
गंगेशक वल्लसभा चर्मकारिणी पितृ परोक्षे पञ्च वर्ष व्य तीते तत्वश चिन्तालमणि कारक गंगेशोत्पकत्ति



सोदरपुर गोविन्दि सुत परशुरामक विवाह
अलयसँ गादू सुत श्रीनाथक विवाह
माण्ड रसँ अफेल सुत गादूक विवाह
पनिचोभ सँ विद्यापतिसुत रमापतिक विवाह





खण्डोबलासँ सुरपतिसुत दूवे सुत चन्द्र पतिक पुत्रीक विवाह
पश्चिम दिशासँ आगत
अज्ञात कुलशीलक कन्याुक लागिमे भेलन्हि




चर्मकारिणी आनन्दा्क सन्ताानक
लागि मे छलन्हि





यवनी दौलति जहॉंक सन्तापनमे





माण्डदर मराड़ मूलक भट्ट भूषण जे गुरू पत्नीसँ विवाह कएल तनिक सन्ता नक लागिमे रहन्हि





परम ब्राह्मण (महापात्रक) पुत्रीक संतानक लागि मे रहन्हि






महापात्रक सन्तामनक
लागिमे छलन्हि




वार्तिनी विधवा परम पथ पतिताक
सन्तािनक लागि मे छलन्हि






यादव रहमूक पुत्रीक सन्ता नक लागि मे छलन्हि






चर्मकार हिरुआक पुत्रीक सन्ता‍नक लागिमे छलन्हि





गोप पुत्रीक सन्तासनक लागिसँ छल







रजकक कन्यार हड़िनी रूद्रमतिक पुत्रीक सन्ता नक लागिमे छलन्हि










चर्मकारिणी मेधाक सन्ताननक लागिमे छलन्हि








आसामक कोच राजवंशी राजा सँ छलन्हि पुत्रीक नाम सोहागो




(क्रमशः-२ मे)

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