भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

(c) २०००-२०२२ सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि।  भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल http://www.geocities.com/.../bhalsarik_gachh.html , http://www.geocities.com/ggajendra   आदि लिंकपर  आ अखनो ५ जुलाइ २००४ क पोस्ट http://gajendrathakur.blogspot.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html   (किछु दिन लेल http://videha.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html   लिंकपर, स्रोत wayback machine of https://web.archive.org/web/*/videha   258 capture(s) from 2004 to 2016- http://videha.com/  भालसरिक गाछ-प्रथम मैथिली ब्लॉग / मैथिली ब्लॉगक एग्रीगेटर) केर रूपमे इन्टरनेटपर  मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितक रूपमे विद्यमान अछि। ई मैथिलीक पहिल इंटरनेट पत्रिका थिक जकर नाम बादमे १ जनवरी २००८ सँ "विदेह" पड़लै। इंटरनेटपर मैथिलीक पहिल उपस्थितिक यात्रा विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि, जे http://www.videha.co.in/   पर ई प्रकाशित होइत अछि। आब “भालसरिक गाछ” जालवृत्त 'विदेह' ई-पत्रिकाक प्रवक्ताक संग मैथिली भाषाक जालवृत्तक एग्रीगेटरक रूपमे प्रयुक्त भऽ रहल अछि। विदेह ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA

 

(c)२०००-२०२२. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। सह-सम्पादक: डॉ उमेश मंडल। सहायक सम्पादक: राम वि‍लास साहु, नन्द विलास राय, सन्दीप कुमार साफी आ मुन्नाजी (मनोज कुमार कर्ण)। सम्पादक- नाटक-रंगमंच-चलचित्र- बेचन ठाकुर। सम्पादक- सूचना-सम्पर्क-समाद- पूनम मंडल। सम्पादक -स्त्री कोना- इरा मल्लिक।

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स्थायी स्तम्भ जेना मिथिला-रत्न, मिथिलाक खोज, विदेह पेटार आ सूचना-संपर्क-अन्वेषण सभ अंकमे समान अछि, ताहि हेतु ई सभ स्तम्भ सभ अंकमे नइ देल जाइत अछि, ई सभ स्तम्भ देखबा लेल क्लिक करू नीचाँ देल विदेहक 346म आ 347 म अंक, ऐ दुनू अंकमे सम्मिलित रूपेँ ई सभ स्तम्भ देल गेल अछि।

“विदेह” ई-पत्रिका: देवनागरी वर्सन

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Wednesday, July 8, 2009

पोथी समीक्षा

सन्तोष कुमार मिश्र केर कथा संग्रह पोसपुत प्राप्त भेल अछि। नेपालक एहि कथाकारक सात गोट कथा पोसपुत, एकटा ब्यथा पत्रमे, जखन कनिञा भेलखिन बिमार, सिपाहि, डाक्टर, भाग्य अप्पन-अप्पन आ’ दाग एहिमे सम्मिलित अछि। कथावस्तु प्रस्तुत करबासँ पहिने एकर अन्य पक्ष पर चर्च करब आवश्यक।

पहिल गप जे एहि पुस्तकक समीक्षासँ एकर प्रारम्भ भेल अछि। श्री कालीकान्त ‘तृषित’, देपुरा रुपैठा, जनकपुर एकर सांगोपांग समीक्षा कएलन्हि अछि, आ’ ई कथाकारक उच्च मानसिकता अछि जे ओ’ एहि समीक्षाकेँ उचित रूपमे लेलन्हि, कारण जौँ से नहि रहैत तँ एकर एहि रूपमे स्थान पोथीमे नहि भेटैत।

दोसर गप जे ई पोथी एक दिशिसँ देखला उत्तर देवनागरीमे आ’ दोसर दिशिसँ देखला उत्तर मिथिलाक्षरमे लिखल बुझि पड़ैत अछि आ’ से अछियो। 21म शताब्दीक ई प्रायः एहि तरहक प्रथम प्रयास अछि, जे मैथिलीमे देखबामे आएल अछि।

आब पहिने तृषित जीक समालोचना देखैत छी। ओ’ लिखैत छथि, जे कथाकारक कथामे पलायनवादी सोचक प्रधानता रहैत अछि, संगहि ईहो गप उठबैत छथि जे साहित्य सृष्टाकेँ तटस्थ प्रस्तोता होयबाक चाही आकि पथ प्रदर्शक, पलायनवादे होयबाक चाही आकि संघर्षक प्रेरणाश्रोत?
‘पोसपुत’क विषयमे तृषित जी कहैत छथि, जे एहिमे तीनपुस्तक वर्णन अछि, आ’ राजा महेन्द्र आ’ राजा त्रिभुवनक समयमे भेल घटनाक वर्णन जोड़बाक अभिप्राय स्पष्ट नहि अछि।
’एकटा व्यथा पत्रमे’ केर विषयमे ऋषित कहैत छथि जे कालक गति , लोकक विवशता आ’ अनुभूतिक वर्णन अछि एहिमे।
तेसर कथा ‘ जखन कनिञा भेलखिन बिमार’ केँ तृषित जी बिमार कथा घोषित करैत छथि।
‘सिपाही’ कथामे ओहि पदक विवरण अछि जे विवाह दानमे प्राथमिकता पबैत छल आ’ आब त्याज्य भ’ गेल अछि।

‘डॉक्टर’ कथाकेँ तृषितजी पलायनवादी सोचक पराकाष्ठा कहैत छथि। तृषितजीक विचारेँ डॉक्टरकेँ मरैत दम तक रोगीकेँ बचेबाक प्रयास करबाक चाही।
’भाग्य अपन अपन’ भाग्य चक्र पर आधारित अछि। ‘दाग’मे क्षणिक आवेशमे उठाओल गेल डेग, अपरिपक्व उम्रमे भेल प्रेमविवाह फेर तकरा बाद दोसराक संग भागि जायब ई सभ पथभ्रष्टताक प्रतीक अछि।
पोसपुत आत्मकथात्मक शैलीमे लिखल गेल अछि, मुदा एकर समापन अकस्मात् होइत अछि, पोसपुतक किरदानीसँ आ’ मायक नैहरि जएबासँ।
दोसर कथा पत्र शैलीमे अछि, जतय पोस्पुत कथा जेकाँ पात्र संतोष छथि। एहि कथाक समापन सेहो बड्ड हड़बड़ीमे भेल अछि, आ’ घटनाक तारतम्य लेखकसँ पाठक धरि नहि पहुँचि सकल।
ओहिना जखन कनिञा भेलखिन बिमारमे लेखक अपन कथ्य स्पष्ट नहि कए सकलाह।
सिपाहि कथामे सेहो पात्रक नाम संतोष छन्हि, मुदा कथ्य आत्मकथात्मक नहि अछि। डॉक्टरकेँ देशमे सेवा करबाक पुरस्कार भेटलैक प्रमाण-पत्रक रद्द होयब आ’ से ओकरा हेतु प्राणघातक सिद्ध भेल।भाग्य अपन-अपन पुरान खिस्सा कहबाक शैलीमे अछि, जे राजा देशमे सर्वेक्षण करएबाक हेतु राजकुमारकेँ पठबैत छथि आ’ ई कथ नीक बनि पड़ल अछि। दाग कथा कथात्मक अछि आ’ हड़बड़ीमे लिखल भाषित होइत अछि।

एहि कथा संग्रहकेँ तृषित जी समीक्षाक संग भाषायी रूपसँ संपादित नहि कएलन्हि, कारण एहिमे मानकताक अभाव अछि। प्रूफ रीडिंग सेहो नीक जेँका नहि भेल अछि। मानकताक हेतु विदेह आ’ मिथिला मंथनसँ प्रयास शुरू भेल अछि, आ’ विदेहक रचना लेखन स्तंभमे एकरा स्थान देल गेल अछि।केन्द्रीय भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर द्वारा सेहो मैथिली स्टाइल मैनुअलक निर्माण भ’ रहल अछि, आवश्यकता अछि, जे नेपालक विद्वान लोकनि सेहो अपन मत मैथिली अकादमीक मानक निर्धारण शैलीक आधार पर बनाओल जा’ रहल शैली पर देथि, जाहिसँ ई सर्वग्राह्य होए।
समयकेँ अकानैत

पंकज पराशरक पहिल मैथिली पद्य संग्रह ’समयकेँ अकानैत’ मैथिली पद्यक भविष्यक प्रति आश्वस्ति दैत मुदा एकर कविता सभ श्रीकान्त वर्माक मगधक अनुकृति होएबाक कारण आ रमेशक प्रति आक्षेपक कारण,( पहिनहियो अरुण कमल आ बादमे डगलस केलनर, नोम चोम्स्की, इलारानी सिंहक रचनाक पंकज पराशर द्वारा चोरिक कारण) मैथिली कविताक इतिहासमे एकटा कलंक लगा जाइत अछि।। एहिमे युवा कविक ४८ गोट पद्यक संग्रह अछि। एहिमे कविक १९९६ केर ३ टा, १९९८ केर ६ टा १९९९ केर ६ टा, २००० केर ५ टा, २००१ केर ३ टा, २००२ केर ३ टा, २००३ केर ९ टा आऽ २००४ केर १३ टा पद्य संकलित अछि। कवि नहिये जोनापुरकेँ बिसरैत छथि. नहिये द्वारबंगकेँ, नहिये गणेसरकेँ नहिये देवसिंहकेँ। ५ टा पद्यमे ओऽ बुद्धकेँ सेहो सोझाँ अनैत छथि| मुदा एतए ई देखब सेहो उचित होयत जे महावीर विदेहमे छह टा बस्सावास बितेलन्हि मुदा बुद्ध एकोटा नहि। से कवि जैन महावीरक प्रसंग जौँ बिसरल छथि, तँ हमरा सभ आशा करैत छी जे ई प्रसंग सभ कविक दोसर पद्य संग्रहमे सम्मिलित कएल जएतन्हि, कवि ताहि तरहक रचना सेहो रचथु।
एहि संग्रहक ४८म पद्य थीक ’समयकेँ अकानैत’ जकर नाम पर एहि पोथीक नामकरण भेल अछि।

सोहरक धुन पर समदाओन गबैत
पिंडदानक मंत्रकेँ सुभाषितानि कहैत

फेर किसिम-किसिम के तांत्रिक सब
छंदमे दैत अछि बिक्कट-बिक्कट गारि

आऽ अकानैत कवि अन्तमे कहैत छथि

कतेक आश्चर्ययक थिक ई बात
कि एहि छन्दहीन समयमे
छन्देमे निकलैत अछि
ई सबटा आवाज।

१.कजरौटी

काजर बनेबा लेल सरिसबक तेलक दीप जराओल जाइत अछि। कवि कहैत छथि,

काजरक लेल सुन्न हमर आँखि
कतेक दिनसँ तकैए कजरौटी दिस अहर्निश
मुदा मैञाक स्मृति दोषक कारणेँ वा सरिसबक तेलक
अभावक कारणेँ
हमर आँखि जकाँ आब कजरौटीयो
सुखले रहैत अछि सभ दिन

कविक संवेदना मोनकेँ सुन्न आकि झुट्ठ कए दैत अछि, के एहन संवेदनाक अनुभव नहि करत, कविताक पाठक नहि बनत?

२.खबरि

ओहिना खबरि देखैत रहब प्रूफ
भीजल जारनि जेकाँ धुँआइत-धुँआइत
जरि जायब एहिना एक दिन

एकटा समय अबैत अछि सभक जीवननमे जखन अपन कार्यक्षेत्रक नीरसताक प्रति लोक सोचए लगैत अछि, जहिना कवि एहि पद्यमे कएने छथि।

३.महापात्र

अश्पृश्यता जकर प्राचीन ग्रंथमे कोनो चरचा नहि तकर वीभत्स रूपक वर्णन १७ शब्दमे (पंक्ति ओना १२ टा अछि) कवि कएने छथि। चमैन बच्चाक जन्मसँ छठिहारि धरि सेवा करैत अछि आऽ तकर बाद अश्पृश्य भए जाइत अछि।

४.प्रेममे पड़ल लोक

प्रेममे पड़ल लोकक वर्णन मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोणसँ कवि कएने छथि।

५.हमर गाम
कवि ९ टा शब्दकेँ १० टा पाँतीमे लिखने छथि, दोसर रूपेँ कही तँ ’मोनमे” ई एकटा शब्द अछि मुदा कवि मोन आऽ मे केँ दू पाँतिमे दए गामक दृश्य उपस्थित कए देने छथि।

६. माधव हम परिणाम निरासा

विद्यापतिक जोनापुर (दिल्ली) आगमनक प्रसंग लए कवि विद्यापतिक कविताक शस्त्रक बहन्ने अपन पद्यक शस्त्र सक्षम रूपेँ चला रहल छथि।

शक्तिहीन सत्ताक दृष्टिहीन-चारण टहंकारसँ उठबैत

७.काहुक केओ नहि करए पुछारे

विद्यापतिकेँ तुरंत कयल जाय
देशसँ बाहर...

सदावत्सले मातृभूमिक बदलामे
कामिनीक नांगट देहक आ
नव अनुगामिनी राधाक कोनो बाधा नहि मानबाक
करैत अछि रसपूर्ण वर्णन

८.बोधगया ९.पुनर्निष्कासन ११. वैशाली १२.स्थविर १३.सारनाथ बुद्धक प्रसंग लए उठाओल गेल अछि।

१०.सैनिकोपाख्यानमे सैनिकक मनोव्यथा एहि रूपमे आयल अछि

बिसफीयो वला पंडितजी तँ महाराजे टा प्र लिखलनि..

आऽ

कास-पटपटीक जंगलमे
हम आइयो कटैत छी अहुरिया

१४.जुत्ता
हरिमोहन झाक जमाय पर लिखल कथा मोन पाड़ि दैत अछि।

१५.छठिहारसँ पहिने
छठिहारक राति बिधना भाग्य लिखैत छथि, मुदा कवि कहैत छथि जे जे बिधना की लिखत से हमर चानी आ तरहत्थ चीन्हैत अछि।

१६.बनारस : किछु चित्र
काशीक विश्वनाथक चित्र सोझाँ अबैत अछि वाराणसीक नाम लेने, मुदा कवि बनारसक चित्र खेंचि दैत छथि,
बनारस
बेर-बेर गनैत अछि लहास
१७.मनियाडरक दूपतिया
डाकपीन दू टाका सैकड़ाक दरसँ कमीशन पहिने कटैए
टाका दैत पढ़ि कए सुनबैए-

मनियाडर पाइक संगे संदेश सेहो अनैत अछि, ओहिमे जे छोट स्थान देल रहैत अछि अंदेशक लेल ताहिमे दुइये पाँति लिखल जा सकैत अछि तेँ कवि लिखैत छथि,दूपतिया।

१८.आँखि

नोनछाह नोरक स्वाद बुझनेँ रही अनचोक्के
जखन सिरमा लग बैसल माय कनैत छलीह
गिरैत नोरसँ अनजान..
फेर-
असहाय आ बेबस नजरिसँ दुलार करैत माय
कोना ल’ सकैत छलीह कोरामे हमरा
सबहक सोझाँ
दादी आ दीदीक नजरिसँ बाँचि कए?

आपात चिकित्सा कक्षसँ घुरैत बेटाक मायक प्रति भावनाक स्फोट अछि ई पद्य।
श्री पंकज पराशर (१९७६- )। मोहनपुर, बलवाहाट चपराँव कोठी, सहरसा। प्रारम्भिक शिक्षासँ स्नातक धरि गाम आऽ सहरसामे। फेर पटना विश्वविद्यालयसँ एम.ए. हिन्दीमे प्रथम श्रेणीमे प्रथम स्थान। जे.एन.यू.,दिल्लीसँ एम.फिल.। जामिया मिलिया इस्लामियासँ टी.वी.पत्रकारितामे स्नातकोत्तर डिप्लोमा। मैथिली आऽ हिन्दीक प्रतिष्ठित पत्रिका सभमे कविता, समीक्षा आऽ आलोचनात्मक निबंध प्रकाशित। अंग्रेजीसँ हिन्दीमे क्लॉद लेवी स्ट्रॉस, एबहार्ड फिशर, हकु शाह आ ब्रूस चैटविन आदिक शोध निबन्धक अनुवाद। ’गोवध और अंग्रेज’ नामसँ एकटा स्वतंत्र पोथीक अंग्रेजीसँ अनुवाद। जनसत्तामे ’दुनिया मेरे आगे’ स्तंभमे लेखन। पराशरजी एखन हिन्दी पत्रिका ’कादम्बिनी’मे वरिष्ठ कॉपी सम्पादक छथि।

समयकेँ अकानैत
पंकज पराशरक पहिल मैथिली पद्य संग्रह ’समयकेँ अकानैत’ मैथिली पद्यक भविष्यक प्रति आश्वस्ति दैत मुदा एकर कविता सभ श्रीकान्त वर्माक मगधक अनुकृति होएबाक कारण आ रमेशक प्रति आक्षेपक कारण,( पहिनहियो अरुण कमल आ बादमे डगलस केलनर, नोम चोम्स्की, इलारानी सिंहक रचनाक पंकज पराशर द्वारा चोरिक कारण) मैथिली कविताक इतिहासमे एकटा कलंक लगा जाइत अछि।।

१९. रातिक तेसर पहरमे
गामसँ गेल लोक फेर नहि घुरल गाम
गाम आब दिनोमे लगैत अछि मसान

आऽ फेर असोथकित भेल ग्रामदेवता
टुकुर-टुकुर तकैत छथिन बाट

गामसँ भेल पलायनक टीस अछि ई पद्य।

२०.अन्हारक मुरुत

मुरुत ...
छोड़ि दैत अछि नियन्त्रण अपनो परसँ
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मूर्तिपूजक एहि देशमे
मूर्तिक ई इतिहास बड़ पुरान अछि।
हमरा बुझने एहि पद्य संग्रहक ई सभसँ गंभीर आऽ नीक पद्य अछि। मुरुतक स्वप्नक पोटरी देखायब आऽ बिनु प्रकाशक अन्तहीन अन्धकार दिशि बढ़ैत जाएब। मुरुत करैत अछि परम्पराक परिक्रमा आऽ फेर फेंकि देल जाइत अछि घिनाएल डबड़ामे।
२१.मृत्युक बोझ
चारि वर्षक आँखिमे खचित बाबाक नोराएल आँखि
गामक अबाल-वृद्ध सबहक अँतड़ी सुखाएल लहास
श्राद्धक, भोज खयबाक उत्साहोसँ नहि मेटाएल

म्त्युक तांडव विभिन्न कारणसँ कविक हृदय रसहीन भए गेलन्हि स कविताक नीरस हैब उचिते छन्हि से कवि कहैत छथि।

२२. हमर बाट (अग्रज अफसर कचि रमेशजी लेल)

पोथीक बात उद्वेलित करैए से नीक बात
मुदा सुविधाभोगी जीवन कए की करबै

आऽ फेर-
चलबै हमरा संग
हमर बाट पर मीता?

२३.मनोहर पोथी
जकर शिक्षा नहि बना सकतै
ओकरा जीवनकेँ मनोहर

आऽ

कि हम बचा सकबै एकरा दुनूकेँ
एहि उदारवादी आ बाजारवादी बिहाड़िसँ?

२४. हे हमर पिता!

हमरा दिक् लगलासँ भुतियाइयो जाइ


हम क’ सकी पूर्ण
अहाँ अपूर्ण यात्रा

२५.माटि

माटि चूल्हिक लेल होइ कि कोठीक लेल
आऽ
मैञा माटि चीन्हैत छथिन
हम माटि नहि चीन्ह पबैत छी

२६.माटिक गाड़ी

उसरल अछि दिवारी थान
कतय भेटत आब

२७.पूर्वज

इतिहासक कोन चक्कीमे पिसा गेलाह
हमर पूर्वज

२८.रखैल

ओ ककर तकैत अछि बाट

२९.सर्वनाम

ठीक अछि सबटा वस्तु जात

आऽ

खेत जोतबाक लेल ट्रैक्टर अछि
बड़द पोसबाक जरूरति नहि रहल आब
तखन

शहरमे संज्ञाक संकट
गाममे सर्वनाम सन हालति

३०.कान्ह पर सवार बैताल

कमलाक कथामे मिलैत बलानक कथा

आऽ
कान्ह पर लदने चलि रहल छी विशाल प्रश्नवाचक जकाँ

३१.सवयंसँ संवाद

यक्ष्मासँ जर्जरित छाती

स्वयंसँ स्वादक बात आब
टारल नहि जा सकैए बेशी दिन

३२. छोट-छोट चीजक मादे एकालाप

पोथीक बीचमे राखल मोरक पंख

पद्य पढ़नहारकेँ सेहो बहुत किछु मोर पाड़ि दैत छथिन्ह कवि।

३३. बीसम शताब्दीक श्वेतपत्र

पत्नी कहैत गेलि
वस्तु अबैत गेल

आऽ
हम पड़ल छी मृत्युशय्यापर
बीसम शताब्दी जकाँ

३४. द्विज

मूल ठामसँ उखड़ल लोक
कोना जमि जाइत अछि आन ठाम
बहिन गेल छलीह सासुर आ संग हमहूँ रही
सोचैत
कि बहीन रहि सकतीह एहि ठाम

३५.हम घर कोना घुरब

कुहरैत छी मुक्तिक लेल
के करत हमरा मुक्त

३६. कुरुक्षेत्र

नागा आ कूकीक संघर्ष बढ़ले जा रहल अछि

आऽ

टाकाक रिमोटसँ संचालित
अभिनेत्रीक देह

३७.प्रश्नकालमे

कालाहांडीक निवासीक भोजन आ मुसहरीक निवासीक
जलखै बेर-बेर नचैए आँखिक आगूमे

३८. तुलसी चौरा पर जरैत दीप

रोज साँझकेँ दीप जरबैत माय
दीप जरबैत छलीह आ कि स्वयंकेँ?

३९. मोसकिल भ’ गेल अछि

इजोरिया रातिक निःशब्दामे विरहा सुनब

४०.अभिशप्त
निज गामकेँ पिकनिक स्पॉट बुझि
ओ अबैत छथिन गाम कोनो काज निकाल’ वा
मोन बहटार’

मुदा आबतँ ताहू लेल लोक गाम नहि अबैत छथि। दुर्गा पूजामे छागरक बलि चढ़ेबाक कबुलाक पूर्तियो लेल कहाँ क्यो अबैत अछि आब।

४१. खुट्टी पर टाँगल झोरा

हरदम बोध करबैत छल पिताक उपस्थितिक।

४२.साँझ होइत गाममे
निरन्तर अस्पष्ट होइत जा रहल साँझक गाछ तर
साँझमे घुरल सुग्गा जकाँ

४३. मायक लेल किछु कविता

काँकोड़ सन होइत अछि माय
जकरा प्रसवक बाद ओकर बच्चे खा जैत छैक

४४. सप्पत

आबतँ साँचे लगैए झूठ सन
आ झूठे साँच सन
४५. प्राक् इतिहास

अदौ कालसँ दिमागक खोहमे नुड़िआइत
हमर असंख्य प्राक इतिहास

४६. रामभोग

आब चुनाव-नाथसँ शुरू करैए
अयोध्या नाच

४७.संबंध

हम कोना कहि सकब
अहाँ हमर किछु नहि लगैत छी मीता

४८.समयकेँ अकानैत

एहि संग्रहक टाइटिल पद्य अछि ई कविता।
जतए छल कलमदान
ओतए एतेक रास शालिग्राम
किछुए दिनक बाद
गायब भ’ जाइत अछि
हमर अपूर्णकविता अपूर्ण लेख
मेहनतिसँ ताकल किछु महत्वपूर्ण साक्ष्य
हिन्दी कवि मुक्तबोध मोन पड़ि जाइत छथि एहि पद्यसँ। एहि संग्रहक सभटा पद्य भावना आऽ स्मृतिसँ जुड़ल अछि। आब किछु तकनीकी विषय। एहि संग्रहमे मैथिलीक मानकताक विषय किछु पाछाँ रहि गेल अछि, जेना मैथिलीमे विभक्ति संगहि बाजल आऽ लिखल जाइत अछि, मुदा संग्रहक नामसँ लए सभटा पद्यमे कवि अपन हिन्दी शिक्षाक अनुरूपेँ विभक्ति हटा कए लिखने छथि। अगिला संस्करणमे ई भाषायी असुद्धि दूर होएबाक चाही। जेना सुभाषचन्द्रजीक लेखनीमे सेहो मानकता किछु दोसर रूपेँ आयल अछि। मुदा ध्वनि विज्ञानसँ ओऽ संबंधित अछि। श्री सुभाष जी ऐछ लिखैत छथि, मुदा मैथिलीमे “अछि” एकर उच्चारण होइत अछि “अ इ छ”, हिन्दीमे ह्रस्व इ लिखल पहिने जाइत अछि मुदा बाजल बादमे जाइत अछि, देवनागरी वर्णक जेना लिखल जाइत अछि, तहिना बाजल जाइत अछि, ह्रस्व इ एकर अपवाद अछि। मुदा मैथिलीमे से नहि अछि। तहिना छै केँ छैक वा छञि, नै केँ नञि लिकल जएबाक चाही। पराशर जी मैथिलीक मैञा केर प्रयोग कएने छथि, मायक जे उच्चारण माञ कहने लिखने अबैत अछि, तकर दृष्टिसँ ई प्रयास स्तुत्य अछि। मुदा श्री सुभाषजी ( हुनकर कथा “विदेह” क एहि अंकमे ई-प्रकाशित अछि) अपन लेखनीमे मैथिलीक असल स्वरूप अनबाक लेल किंचित् प्रयोग कएने छथि, तकर किछु उद्देश्य अछि, मुदा पराशरजीक विभक्ति हटा कए लिखब मात्र टाइप दोष बनि रहि गेल अछि।
फेर दोसर गप जे ई पद्य संग्रह भावना आऽ स्मृतिक विस्फोट अछि, मुदा कखनो काल कए लगैत अछि जे हमरा सभ पद्य नहि गद्य पढि रहल छी, जापानी “हैबून” जेकाँ।

तेसर गप जे एहि पोथीमे आइ एस बी एन नम्बर नहि अछि। मैथिली प्रकाशनक सूचीबद्धता नहि भए पाबि रहल अछि, मुदा ई प्रायशः एहि दू-चारि सालमे प्रकाशित सभ मैथिली ग्रंथ सभक संग अछि।

पंकज पराशरक पहिल मैथिली पद्य संग्रह ’समयकेँ अकानैत’ मैथिली पद्यक भविष्यक प्रति आश्वस्ति दैत मुदा एकर कविता सभ श्रीकान्त वर्माक मगधक अनुकृति होएबाक कारण आ रमेशक प्रति आक्षेपक कारण,( पहिनहियो अरुण कमल आ बादमे डगलस केलनर, नोम चोम्स्की, इलारानी सिंहक रचनाक पंकज पराशर द्वारा चोरिक कारण) मैथिली कविताक इतिहासमे एकटा कलंक लगा जाइत अछि।।

बाँकी अछि हमर दूधक कर्ज- एहि नामसँ १० टा गीतक संग्रह लए श्री बिनीत ठाकुर- शिक्षक, प्रगति आदर्श ई. स्कूल, लगनखेल, ललितपुर प्रस्तुत भेल छथि। ई एहि सालक दोसर पोथी छी जे देवनागरीक संग मिथिलाक्षरमे सेहो आयल अछि, आऽ एकरा हम अंशुमन पाण्डेयकेँ पठा देलियन्हि, यूनीकोडक मैपिंगक लेल, कारण विनीतजी हमरा एहि पोथीकेँ ई-मेलसँ पठेबाक अनुमति देने छथि, ताहि लेल हुनका धन्यवाद।
“भरल नोरमे” शीर्षक पद्यमे की सुतलासँ भेटलै अछि ककरो अधिकार आऽ “गाम नगरमे”- लोकतंत्रमे अपन अधिकार लऽ कऽ रहत मधेसी, ई घोषणा छन्हि कविक तँ “कोरो आऽ पाढ़ि’मे गरीब छोड़िकऽ के बुझतै गरीबीके मारि- ई कहि कवि अपन आर्थिक चिन्तन सेहो सोझाँ रखैत छथि। चहुँदिश अमङ्गलमे जङ्गलक विनाशपर –मुश्किलेसँ सुनी चिड़ियाके चिहुं-चिहुं- कहि कवि अपन पर्यावरण चिन्तन सोझाँ रखैत छथि। “जे करथि घोटाला” मे भ्रष्टाचारपर आऽ “जाइतक टुकड़ी”मे जाति प्रथापर कवि निर्ममतासँ चोट करैत छथि तँ “बेटीक भाग्यविधान”मे कविक भावना उफानपर अछि। “कम्प्युटरक दुनिया” आऽ “अङ्गरेजिया”मे कवि सामयिकताकेँ नहि बिसरल छथि तँ अन्तिम पद्य “ताल मिसरी” मे वरक सासुर प्रेम कनेक व्यंग्यात्मक सुरमे कवि कहि अपन एहि क्षेत्रमे सेहो दक्ष होएबाक प्रमाण दैत छथि। ओना तँ कविक ई प्रथम प्रकाशित कृति छन्हि, मुदा कवि जाहि लए सँ कविता कएने छथि ओऽ अभूतपूर्व रूपेँ प्रशंसनीय अछि।

संतोषजीक ई पद्य संग्रह मैथिली पद्यक भविष्यक प्रति आश्वस्ति दैत अछि। एहिमे युवा कविक २० गोट पद्यक संग्रह अछि।
संतोषजीक कविता एना किए मे स्त्रीक समस्या तँ काल्पनीक सत्यमे जीवनक दर्शनक द्वन्द सोझाँ अनैत छथि। बिचित्र कविता सेहो द्वन्दे अछि आ अएना कविकेँ अपन बचहनक स्मृतिमे लऽ जाइत छन्हि। दुविधा कवितामे कवि एहि दुविधामे छथि जे अनुभवकेँ डुमा कए आ भावनाकेँ हेरा कए जे ओ प्रेममे पड़लाह से सामाजिक अपराध अछि ! भद्रक बलि मे सगरमाथा आ मकालुकेँ नहि छोड़बाक आ कोशी आ कर्णलीकेँ खा जएबाक बिम्ब कविताकेँ सार्थक करैत अछि। पहिने नुका कऽ मारैत छल आ आब देखा कऽ मारैत अछि, ओ राक्षस जकर हाथमे कानून छैक। हमर मायकेँ बुद्धिए नहि छैक मे आजुक समाजक सत्य उद्धाटित होइत अछि जतए नीक लोक ओ अछि जे पाइवला अछि; नीक पद प्राप्ति करबाक लेल घूस देमए पड़ैत छैक आ नमहर नेता बनबाक लेल जनताकेँ धोखा देल जाइत अछि। नामी बनिञाकेँ.. कवितामे कवि नीक गबैयाक स्वर सुनला उत्तर महाँ बेकार पबैत छथि। अन्नेसँ आनन्द कविता समाजक अंधविश्वासपर कटाक्ष अछि। टहटही इजोरियासँ कविक प्रश्न आ सौन्दर्यक परिभाषा इजोरिया कवितामे भेटैत अछि तँ मायकेँ प्रश्नमे सागरक पानिसँ बेशी नोर बहाबैत माएक दर्दकेँ कवि स्वर दैत छथि। मातृभूमि आ मिथिलाक जे छी तँ कविता मिथिला आ मैथिलीकेँ समर्पित अछि तँ हमर कनिञामे हास्यक संग दहेज आ अमेल विवाहक चर्चा होइत अछि। हमर आशमे बच्चाक आ नवीन शिक्षा पद्धति, डोनेशन आधारित एडमिशनक तँ हम आ हमरमे सेहो कवि सर-समाजक नीक-अधलाह वर्णन उठा कऽ कविता बना दैत छथि। मूल्य अभिबृद्धि कर अर्थव्यवस्थाक वर्णन करैत अछि। हमर मीत जीवन-मृत्युक तँ सभामे आब केओ नहि अछि निक लोक एतऽ कहि कवि अपन व्यथा सोझाँ रखैत छथि। बाटमे डेग-डेग पर गहुमन-धामन कवि देखैत छथि, मुदा जीबनमे कविक आशावादिता घुरि अबैत छन्हि।
एहि संग्रहक पद्य भावना आ स्मृतिसँ जुड़ल अछि आ एकटा आन्तरिक भूचाल अनैत अछि। अपन एहि पद्य संग्रहमे कवि प्रतिभाक जे प्रदर्शन देने छथि से हमरा सभ आसमे छी जे हुनकर आर संग्रह सेहो अओतन्हि जे हमरा सभकेँ झमारि देत।
- गजेन्द्र ठाकुर
दिल्ली ११ जुलाइ २००९

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