भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

(c) २०००-२०२२ सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि।  भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल http://www.geocities.com/.../bhalsarik_gachh.html , http://www.geocities.com/ggajendra   आदि लिंकपर  आ अखनो ५ जुलाइ २००४ क पोस्ट http://gajendrathakur.blogspot.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html   (किछु दिन लेल http://videha.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html   लिंकपर, स्रोत wayback machine of https://web.archive.org/web/*/videha   258 capture(s) from 2004 to 2016- http://videha.com/  भालसरिक गाछ-प्रथम मैथिली ब्लॉग / मैथिली ब्लॉगक एग्रीगेटर) केर रूपमे इन्टरनेटपर  मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितक रूपमे विद्यमान अछि। ई मैथिलीक पहिल इंटरनेट पत्रिका थिक जकर नाम बादमे १ जनवरी २००८ सँ "विदेह" पड़लै। इंटरनेटपर मैथिलीक पहिल उपस्थितिक यात्रा विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि, जे http://www.videha.co.in/   पर ई प्रकाशित होइत अछि। आब “भालसरिक गाछ” जालवृत्त 'विदेह' ई-पत्रिकाक प्रवक्ताक संग मैथिली भाषाक जालवृत्तक एग्रीगेटरक रूपमे प्रयुक्त भऽ रहल अछि। विदेह ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA

 

(c)२०००-२०२२. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। सह-सम्पादक: डॉ उमेश मंडल। सहायक सम्पादक: राम वि‍लास साहु, नन्द विलास राय, सन्दीप कुमार साफी आ मुन्नाजी (मनोज कुमार कर्ण)। सम्पादक- नाटक-रंगमंच-चलचित्र- बेचन ठाकुर। सम्पादक- सूचना-सम्पर्क-समाद- पूनम मंडल। सम्पादक -स्त्री कोना- इरा मल्लिक।

रचनाकार अपन मौलिक आ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) editorial.staff.videha@gmail.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकै छथि। एतऽ प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक/संग्रहकर्त्ता लोकनिक लगमे रहतन्हि,'विदेह' प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका मात्र एकर प्रथम प्रकाशनक/ प्रिंट-वेब आर्काइवक/ आर्काइवक अनुवादक आ आर्काइवक ई-प्रकाशन/ प्रिंट-प्रकाशनक अधिकार ऐ ई-पत्रिकाकेँ छै, आ से हानि-लाभ रहित आधारपर छै आ तैँ ऐ लेल कोनो रॊयल्टीक/ पारिश्रमिकक प्रावधान नै छै। तेँ रॉयल्टीक/ पारिश्रमिकक इच्छुक विदेहसँ नै जुड़थि, से आग्रह। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत।  एहि ई पत्रिकाकेँ श्रीमति लक्ष्मी ठाकुर द्वारा मासक ०१ आ १५ तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।

स्थायी स्तम्भ जेना मिथिला-रत्न, मिथिलाक खोज, विदेह पेटार आ सूचना-संपर्क-अन्वेषण सभ अंकमे समान अछि, ताहि हेतु ई सभ स्तम्भ सभ अंकमे नइ देल जाइत अछि, ई सभ स्तम्भ देखबा लेल क्लिक करू नीचाँ देल विदेहक 346म आ 347 म अंक, ऐ दुनू अंकमे सम्मिलित रूपेँ ई सभ स्तम्भ देल गेल अछि।

“विदेह” ई-पत्रिका: देवनागरी वर्सन

“विदेह” ई-पत्रिका: मिथिलाक्षर वर्सन

“विदेह” ई-पत्रिका: मैथिली-IPA वर्सन

“विदेह” ई-पत्रिका: मैथिली-ब्रेल वर्सन

 VIDEHA_346

 VIDEHA_346_Tirhuta

 VIDEHA_346_IPA

 VIDEHA_346_Braille

 VIDEHA_347

 VIDEHA_347_Tirhuta

 VIDEHA_347_IPA

 VIDEHA_347_Braille

 

Sunday, July 5, 2009

कथा-गल्प संग्रह-गल्प गुच्छ - गजेन्द्र ठाकुर

खण्ड-४
कथा-गल्प संग्रह


गल्पs गुच्छe

गल्प‍ गुच्छv
सर-समाज ३.३
हम नहि जायब विदेश ३.१६
राग वैदेही भैरवी ३.२०
काल-स्थान विस्थापन ३.२५
बैसाखीपर जिनगी ३.२९
सर्वशिक्षा अभियान ३.३२
जातिवादी मराठी ३.३४
थेथर मनुक्ख ३.३५
बहुपत्नी विवाह आ हिजड़ा ४.३६
स्त्री-बेटी ४.३७
बिआह आ गोरलगाइ ४.३८
प्रतिभा ४.३९
जाति-पाति ४.४०
अनुकम्पाक नोकरी ४.४१
नूतन मीडिआ ४.४२
मिथिलाक उद्योग ४.४३
मिथिलाक उद्योग-२ ४.४५
बाढ़ि, भूख आ प्रवास ४.४७
नव-सामन्त ४.४८
रकटल छलहुँ कोहबर लय ४.४९
मृत्युदण्ड ४.५५
बाणवीर ४.५८
प्रवास ४.६१


सर-समाज
“एकटा प्लम्बर, एकटा पेन्टर आ तीन टा जोन लागत। सात दिनमे घर चमका देब। अहाँक काजमे कमाइ नहि करबाक अछि हमरा। अहाँक अहिठाम एतेक रास लोक अबैत छथि, लोक देखत तँ पूछत जे ई काज के कएने अछि। तहीसँ हमरा चारि ठाम काज भेटि जएत तेँ। अपन एरियाक लोक दिल्लीमे कतए पाबी”- नबी बकस नाम रहए ओकर।
“अपन एरियाक लोक छी, कतए घर अछि”?
“कटिहार। हम तँ कहब जे बाथरूम आ किचनक काज सेहो करबाइए लिअ”।
“अहाँ तँ पोचारा आ पेन्ट करैत छी, संगमे राजमिस्त्रीक काज सेहो करैत छी की”?
“हम नहि करैत छी मुदा हमर गौआँ ई काज करैत अछि। ओ कहैत रहए जे साहबसँ पुछू काजक लेल। ओना ओकर काज बड्ड ठोस होइत छैक। हम बजबैत छी, मात्र भेँट कऽ लियौक। नहि तँ हमरा कहत जे तूँ साहबसँ पुछनहिये नहि हेबहुन्ह”।
ओ मोबाइलपर फोन मिलेलक आ कोनो सर्फुद्दीनकेँ बजेलक।
सर्फुद्दीन किचेन बाथरूम सभक मुआएना केलक आ करणीसँ देबालपर मारलक तँ प्लास्टर झहरि कऽ खसि पड़लैक। नलक टोटीकेँ घुमेलक तँ ओ टूटि कऽ खसि पड़लैक। फेर ओ बाजल-
“सरकारी काज छियैक। नीव तँ मजगूत होइत छैक मुदा फिनिसिंग नहि होइत छैक। आ भइयो गेलए २० साल पुरान ई सभ। देखू एहि देबाल सभक हाल। सभटा अन्डरग्राउन्ड पाइप सभ सरि-गलि गेल अछि। तकरे लीकेजसँ देबाल सभक ई हाल अछि। सभटा पाइप बदलए पड़त से सीमेन्ट तँ झाड़इये पड़त। ओना सीमेन्टमे कोनो जान बाँचलो नहि छैक। तखन देबालमे पाथर सेहो लगबाइये लिअ। ई बम्बइया-मिस्त्री गणेशीसँ जे अहाँ बरन्डा रिपेयर करेने छलहुँ तकर बालु देखियौक कोना झड़ि रहल अछि। टेस्ट करए लेल एहि सीमेन्टकेँ हम झाड़ि कऽ नव सीमेन्ट लगबैत छी, पाथर नहि बनि जाए तँ कहब। तखन मोन हुअए तँ काज देब आ नहि तँ नहि देब”- से कहि ओ बरन्डाक किछु हिस्साक सीमेन्ट झाड़ि कऽ करिया सीमेन्ट लगा देलक आ चलि गेल।


“ई नबी बकसक छोट भाए छियैक। बड्ड काजुल। दिन भरि लागले रहैत अछि, नाम छियैक ओकील। नबी बकस तँ आब ठिकेदार भऽ गेल अछि, करणीकेँ हाथो कहाँ लगबैए। ओकील बुझु मजदूरी करैए अपन भाए लग। आ ठीकेदारक भाएक ओहदासँ आन मजदूर सभपर नजरि सेहो रखैए”- फेर कनेक काल धरि, ई जे प्लम्बर मिस्त्री रहए, खलील जकर नाम रहैक, से चुप रहल।
खलील हरियाणाक रहए आ बुझू जे नबी बकसकेँ हमरासँ भेँट करेनिहार ईएह रहए। एकटा छोट भङ्गठी करेबाक रहए ताहि द्वारे एकरा बजेने रही। बरंडाक एकटा कोनक मरम्मतिक काज रहए। खलीलकेँ कहलियैक तँ ओ एकटा गणेशी मिस्त्री, जकरा सभ बम्बइया कहैत रहए, केँ बजा कए काज करा देलक। फेर पोचारा बला आकि पेंटबला नबी बकसकेँ ई बजेलक। आब ई पोचारा-पेन्टबला नबी बकस ओहि सर्फुद्दीन राज-मिस्त्रीकेँ बजा लेने अछि। सर्फुद्दीन पाइप सभक काज खलील प्लम्बरकेँ दिआ देलक से खलीलकेँ बिन मँगने काज भेटि गेलैक। आ एक दोसराकेँ परिचय करबैत आब तँ लकड़ी बला आ बिजली मिस्त्री सेहो घरमे पैसि गेल छल।
“दुनू गोटे -नबी बकस आ सर्फुद्दीन- संगे राज-मिस्त्री रहए। मुदा नबी-बकस लाइन बदलि लेलक। आ आब एक-दोसराकेँ काज दिअबैत रहैत अछि”।
फेर खलील हमरा दिस ताकि बाजल-
“अहाँ दिसका लोक सभमे बड्ड एकता होइत छैक”।
ओकील आ खलीलमे काजक बिचमे गप-शप होइत रहैत छलैक।
“हमरा सभक पुरखा मुसलमान बनबासँ पूर्व राजपूत रहथि मुदा ई सभ राजमिस्त्री रहए-धीमान, एखनो हरियाणामे होइत अछि”- खलील इशारासँ ओकील दिस देखैत हमरा सुना कए कहलक।
“हम सभ तँ धीमान छलहुँ मुदा तोरा सभ के छलँह से तोरा एतेक फरिछा कए कोना बुझल छौक”- बहुत कालसँ ओकील बिन बजने काज कए रहल छल। मुदा पहिल बेर ओकरा उत्तर दैत सुनलियैक। ओकर सभक बीच गप आ हँसी ठट्ठा चलैत रहैत छलए।

एक दिन सर्फुद्दीन मुँह लटकेने आएल। कहलक जे गणेशीसँ झगड़ा भए गेल।
“से कोना”?
“कहैए जे तोँ साहेबक घरक काज हमरासँ छीनि लेलँह, इलाकाक लोकक नाम पर। बुझू, अहाँ हमर काज देखि कऽ ने हमरा काज देने छलहुँ। आ ई तँ छोड़ू, ईहो कहैत रहए जे...”।
“की? कहू ने”।
“कहैत रहए जे मुसलमानपर कहियो विश्वास नहि करबाक चाही”।
हमर तँ तामसे देह लहरि गेल। कहलियैक जे तुरत ओकरा बजा कए आनू गऽ। मुदा ओ थोम्ह-थाम्ह लगा देलक। फेर बादमे एक दिन गणेशीकेँ बजा कए हम बुझा देलियैक- “एहि महानगरमे हम आ सर्फुद्दीन एके भाषा बजैत छी, ई मात्र एकटा संजोग अछि। एकर काज देखियौक आ अपन काज देखू, फेर अहाँकेँ बुझा पड़त जे सर्फुद्दीनसँ अहाँ किएक पाछाँ रहि जाइत छी”।
ओम्हर एक गोटे वूडेन फ्लोरिंग केर विचार देलक ताहिपर सर्फुद्दीन ओकरासँ लड़ि गेल जे नीचाँ मे पाथरे नीक होएत । बाथरूम आ किचनमे पाथर अछि तँ सभ ठाम ईएह रहबाक चाही। रूममे किएक वूडेन फ्लोरिंग होएत? मुदा वूडेन फ्लोरिंग बला कहलक जे एक दिनमे लगा देब आ पाइयो सस्त कहलक से हम ओकरे हँ कहि देलियैक।
भरि दिन अनघोल होइत रहैत छल। नीचाँक फ्लोर बलाक बेटाक बारहम कक्षाक परीक्षा रहए से ओ जे राजमिस्त्री सभक आबाजाही देखलक तँ कहए लागल, जे रूम सभमे तँ पाथर नहि लागत ? हम कहलियन्हि जे नहि वूडेन फ्लोरिंग काल्हि कए जएत, तँ हुनका साँसमे साँस अएलन्हि।
”पाथर लगाबएमे तँ माससँ ऊपर ई सभ लगबितए, हमर बेटाक परीक्षा अछि, से हम तँ पाथर सभ पसरल देखि कए चिन्तित भए गेल रही”।
“नहि मात्र बाथरूम आ किचेन लेल ई पाथर सभ अछि”।

सर्फुद्दीन, खलील आ नबी बकससँ अबैत जाइत काजक अतिरिक्त घर-द्वारक गप सेहो होमए लागल। नबी बकस कटिहारसँ दिल्ली आएल, छह भैयारीमे सभसँ पैघ, एकटा बहिन सेहो रहैक। अपन हमशीरा(बहिन)क वर आ ओकर सासुरक विषयमे नबी बकस प्रेमपूर्वक सुनबैत रहैत छल। सर्फुद्दीनक शागिर्दीमे ओ राज मिस्त्रीक काज सिखलक। आस्ते-आस्ते चारि भाँएकेँ दिल्ली बजा लेलक। ओकील तँ ओकरे संग रहैत छैक, आन भाए सभ बियाह करैत गेल आ अलग होइत गेल। मुदा ओहो सभ आसे-पासमे रहए जाइए। बियाह तँ ओकीलोक भेल छैक, मुदा अछि ओ सुधंग। से आन भाए सभ कहैत-कहैत रहि गेलैक जे नबी बकस मँगनीमे खटबैत रहैत छौक, अलग भए जो गऽ, मुदा ओ तँ भाएक भक्त अछि। भाएक सोझाँमे एको शब्द की बाजल होइत छैक?


एक दिन ओकीलकेँ बोखार भेल रहए आ दोसर भाए सभ ओकरा काजपर अएबासँ मना कएने रहैक। मुदा ओ नहि मानल। ओकर सुधंगपना देखि हमर माँ, पत्नी, बच्चा सभ ओकरा खूब मानए लागल रहथि। ओहि दिन काजक बीचमे ओ खएबा लेल माँगलक आ बालकोनीमे सूति रहल। फेर बेरिया पहरसँ काज शुरू कएलक। साँझमे घर जएबाक बेरमे जखन हम कहलियैक जे डेरा जएबाक बेर भए गेल तँ कहलक जे नहि, आइ काज लेटसँ शुरू कएने रही से खतम कइये कऽ जाएब। आ आस्तेसँ बड़बड़ाइत बाजल जे देखैत छियैक जे आइ क्यो बजबए लेल आबैए आकि नहि।
आठ बजे करीब मोटरसाइकिलपर दू गोटे आएल। ओकील कहलक जे ई दुनू ओकर छोटका भाए सभ छैक। दुनू गोटे तेसर तल्ला स्थित हमर फ्लैटपर आएल आ ओकीलकें गप करबा लेल बजेलक। ओकर सभक गपमे आपकता मिश्रित क्रोध रहैक। ओकील ओकरा सभकेँ कहैत रहए जे ओहेन कोनो गप नहि छैक, आइ आधा दिन सुतल रहए तेँ सोचलक जे काज पूरा कइए कए जाए। तावत नबी बकस सेहो ओतए पहुँचि गेल आ ओकीलकेँ लए गेल।


दोसर दिन नबी बकस भोरे-भोर आएल।
“देखियौक ई भाए सभ।...
-“बेटा जेकाँ बुझलियैक एकरा सभकेँ आ हमरापर कलंक लगबैत अछि जे तूँ दू रंग करैत छह। तीनू भाँए काल्हि हमरासँ खूब झगड़ा करए गेल जे तूँ ओकीलकेँ नोकर जेकाँ रखैत छहक। बुझू ! ई ओकील अछि सुधंग। कतबो कहैत छियैक जे नीकसँ कपड़ा लत्ता पहिर, तँ ओहो झोलंगे जेकाँ रहैत अछि।
-“काल्हि हमरा तँ ओकीलसँ भेँटो नहि अछि। सर्फुक काज दोसर साइटपर चलि रहल छैक, ओतहि गेल छलहुँ जे कोनो स्कीमसँ काज भेटि जइतए तँ अहाँक एहिठाम काज खतम भेलापर ओतहि लागि जइतहुँ। बिल्डर अंसल बलाक ऑफर आएल रहए जे हमरा एहिठाम आबि जाऊ मुदा भाए सभक द्वारे हम मना कए देलियैक। आ ई सभ.. ओना ई सभटा हमर पटना बला भाए मंडलबाक करतूत छी”।
“मंडल!!”, हमरा किछु पुरान गप मोन पड़ल, -“अहाँक गाममे एकटा जयशंकर सेहो छथि की”?
“हँ! हँ! अहाँ कोना चिन्हैत छियन्हि हिनका सभकेँ। ओना असली नाम तँ हमर भाएक सलीम छियैक। ऑफिसक नाम मंडल। घरक सलीम। सरकारी ड्राइवर अछि। घरमे सलीम कहने ओकर अहलिया (कनियाँ) बड़ घबड़ाइ छैक”।
“सभटा बुझल अछि हमरा”।


अपन विद्यार्थी जीवनक एकटा घटना मोन पड़ि गेल हमरा।
पटनामे पढ़ैत रही। पड़ोसमे एक गोटे जयशंकर रहैत छलाह। भाइ-भाइ कहैत छलियन्हि। दू बियाह। पहिल बियाहक हुनकर बेटा भागि गेल छलन्हि। ओना दोसर बियाह पहिल पत्नीक मुइलाक अनंतर भेल छलन्हि। किछु दिन दिल्ली-बम्बइ घुमि पहिल बियाहक ओ बेटा आपस अएलन्हि। सभ ओकरा पुछलकै जे की करमे? ओ कहलक जे सभ काज हमरासँ होएत मुदा पढ़ाइ छोड़ि कए। फेर सभ मिलि कए ओकरा ड्राइवरीक लाइनमे जएबाक लेल कहलक। ओकरो मोन रहैक ड्राइवरी सिखबाक। भोरे-भोर एक दिन जयशंकर कहलन्हि जे आइ एक ठाम चलबाक अछि।
“बेटा कहैत अछि जे ड्राइवरी सीखब। ड्राइविंग स्कूल बड्ड महग। एक गोटे गौआँ सलीम अछि ड्राइवर, सरकारी ऑफिसमे। गाममे एहि बेर छुट्टीमे भेटल रहए। ओकरो सभक ईद पाबनि छलए, से आएल रहए गाम। कहलक जे रवि दिन कऽ ओकरा छुट्टी होइत छैक ऑफिसमे आ आन दिन पाँच बजे भोरेसँ सिखा सकैत अछि। दू सए टाकामे एकटा सेकेंड हैंड साइकिल बेटाकेँ कीनि देने छियैक।
-“ओकर डेरा ऑफिसे लग छैक। ऑफिस बजेने अछि, ओतहिसँ घर देखाओत”।
“ऑफिस देखल अछि?”
“हँ, कताक बेर गेल छी”।
ऑफिसक बेरमे हम सभ गाँधी मैदानक बगलक कचहरी सन ऑफिस पहुँचैत गेलहुँ।
“मं‍डलजी ड्राइवर साहेब छथि?” - जयशंकर एक गोट हाकिमक ऑफिसक बाहर ठाढ़ चपरासीसँ पुछलन्हि।
“हँ, ओम्हर छथि”।
हम जयशंकरकेँ पुछलियन्हि जे हमरा सभ तँ सलीमसँ भेँट करबा लेल आएल छी, ई मंडल के छथि?
ओ इशारामे हमरा चुप रहए लेल कहलन्हि आ ईहो मुखर रूपमे कहलन्हि जे एहिमे कोनो बात छैक, बादमे कहताह।
आब जे मंडलजीसँ हुनका गप होमए लगलन्हि तँ बीच-बीचमे ओ सलीम भाइ, सलीम भाइ कहि हुनका सम्बोधन करैत रहलाह। फेर हुनका संगे हम सभ हुनकर डेरा पहुँचलहुँ। फेर बिदा होइत काल सलीम भाइ जयशंकरकेँ हमरा दिश इशारा करैत कहलन्हि जे हिनका कहि देलियन्हि ने। जयशंकर कहलखिन्ह जे कहि देबन्हि।
ओतए सँ निकललाक बाद जयशंकर कहलन्हि जे कटिहार लग जयशंकरक गाम छन्हि। मारते रास भाइ बहिन छैक सलीमक। सलीम हुनकर लंगोटिया यार, संगे पढ़लन्हि। फेर रोजगारक क्रममे दुनू गोटे दूर चलि गेलाह। सलीम कोनो हाकिमक घरपर काज करए लागल। ड्राइवरी कहिया कतए सँ ओ सीखि लेने छल, से हुनरबलाकेँ नोकरीक तँ ओहुना दिक्कत नहि होइत छैक। बादमे एकर स्वभाव देखि कए ओ हाकिम एकरा कोनो दोसर आदमी जकर नाम मं‍डल रहए, आ कतहु मरि-खपि गेल रहए, केर नामपर टेम्परोरी राखि लेलकैक। फेर किछु दिनमे ओ पर्मानेन्ट भए गेल।

जयशंकर हमरासँ कहलन्हि - “एकर ऑफिसमे वा एकर संगी साथी लग- ओना अहाँसँ फेर कहिया एकर भेँट हेतए- एहि गपक धोखोसँ चरचा नहि करब। ओना पर्मानेन्ट भए गेल छैक मुदा लोक सभ केहन होइ छैक से नहि देखइ छियैक। क्यो किछु लिखि पढ़ि देतैक तँ मंगनीमे बेचारकेँ फेरा लागि जएतैक”।

मोनमे घुमरल एहि गपकेँ नबी बकसकेँ हम कहलियैक। ताहिपर ओ बाजल-
“ओहो स्कीम धरेनिहार हमहीं छी। एकटा कम्प्लेन कऽ देबैक तँ जाहि नोकरीपर एतेक फुरफुरी छैक से घोसरि जएतैक। मुदा सोचैत छी जे ओकर नोकरी जएतैक तँ हमरे माथपर आबि खसत। तेँ अल्ला पर सभटा छोड़ि देने छियैक”।

नबी बकस ओना तँ बड्ड व्यस्त रहैत छल मुदा ओहि दिन लागैए हमरे सँ गप करबा लेल समय निकालि कए आएल रहए। जखन लोक मानसिक फिरेशानीमे रहैत अछि तँ अपन दुखनामा दोसराकेँ सुनबए चाहैत अछि। मुदा तकर श्रोता भेटब मोश्किल। मुदा हम अपन मानवविज्ञानक कॉलेजिया पढ़ाइक प्रभावक कारण सभ काज छोड़ि अनायास श्रोता बनि जाइत छी से नबीकेँ बुझल रहैक। भदबरिया लधने छल से हमहूँ कतहु बाहर जएबाक हरबड़ीमे नहि छलहुँ। से ओ अपन खिस्सा शुरु कएलक।

“कतेक कष्ट कटने छी से की बयान करू। आ मदति के सभ कएलक ? एकटा खालू-खाला (मौसा-मौसी) आ खलेरा भाए आ खलेरी बहिन मोन पड़ैए आर क्यो नहि। अब्बूक मरलाक बाद बड़ा अब्बू (बड़का काका), छोटा अब्बू (छोटका काका) सभ पराया भए गेल। शौहरक मरलाक बाद अम्मीक हालत की रहैक से ई भाए सभ की बुझत-गमत? -“खाला दिल्लीमे रहैत रहथि। अम्मीक मृत्युक बाद हमर पढ़ाइ छुटि गेल। कटिहारमे पढ़ैत रहितहुँ, फूफीजाद भाए (पिसियौत) कहनहियो रहए जे तोरा जतेक पढ़बाक छौक पढ़, मुदा ई सभ तखन गाममे ईँटा उठबितए से हमरा देखल होइतए? आ ई गप एकरा सभकेँ हम बुझैयो नहि देने छियैक। -“आ ई सभ की कहैये जे हम अपन अहलिया (स्त्री) आ सारि-हमजुल्फ(सारि-साढ़ू)क पाछाँ एकरा सभपर ध्यान नहि दऽ रहल छियैक? दू रंग करैत छियैक?
-“दिल्लीमे आएल रही गाम छोड़ि कए तँ पहिने नोएडामे पितरिया बर्त्तनक दोकानमे ब्रासोसँ बर्तन साफ करैत रही। अल्लाहक करमसँ सर्फू भेटि गेल। खालाजाद भाए (मौसेरा भाए) केर संगी रहए सर्फू। ओकरेसँ सभ ईलम सिखलहुँ। मुदा ई कहि दिअए जे हम कहियो ओकरा दगा देने होइयैक। सर्फूक स्वभाव तँ अहाँकेँ बुझले अछि। कनियो अन्याय आ बेइमानी ओकरा पसन्द नहि छैक, सभसँ बतकही भेल छैक, मुदा हमरासँ आइ धरि कोनो मोन मुटव्वल नहि भेल छैक। हमर से नीयत रहितए तँ ओकरो संग ने हमर संबंध टुटितए। आ एहि शहरमे ओ आन भए हमरा अप्पन बुझलक आ ई सभ ? ओ तँ गौआँ छी, मुदा खलील? ओकरोसँ पुछियौक।
-“माएक मोन पड़ि जाइए जहिया ई भदवरिया लाधैए। मोन नहि पाड़ए चाहैत छी, आ ताहि लेल व्यस्त रहैत छी। मुदा आइ माएक ओ मृत्यु रहि-रहि कोढ़ तोड़ि रहल अछि।

नबी बकसक कंठ कहैत-कहैत भरिया गेलैक। मुदा कनेक पानि पीबि फेर ओ माएक स्मरण करए लागल।

-“नबी साहेबजादे, कनेक ओहि कठौतकेँ खुट्टाक लग कए दिऔक। बड्ड पानि चूबि रहल छैक ओतए। ई बादरकाल सभ साल दुःख दैत अछि। सोचिते रहि गेलहुँ जे घर छड़ायब। मुदा नहि भए सकल। घरोक कनी मरोमति कराएब आवश्यक छल, मुदा सेहो नहि भए सकल। ठाम-ठाम सोंगर लागल अछि। फूसोक घर कोनो घर होइत छैक? ठाम-ठाम चुबि रहल अछि, ओतेक कठौतो नहि अछि घरमे। खेनाइ कोना बनत से नहि जानि। ओसारापरक चूल्हिपर तँ पानिक मोट टघार खसि रहल अछि। एकटा आर अखड़ा चूल्हि अछि, मुदा जे ओ टूटि जएत, तखन तँ चूड़ा-गुड़ फाँकि कए काज चलबए पड़त। समय-साल एहेन छैक जे चूल्हि बनाएब तँ सुखेबे नहि करत। जाड़नि सेहो सभटा भीजि गेल अछि। भुस्सीपर खेनाइ बनाबए पड़त”।
-“पइढ़िया उजरा नुआक आँचर ओढ़ने, थरथराइत करीमा बेगम माने हमर माए, चौदह बरखक अपन बेटाक माने हमर संग, कखनो सोंगरकेँ सोझ करथि तँ कखनो कठौतकेँ एतएसँ ओतए घुसकाबथि। जतए टघार कम लागन्हि ओतएसँ घुसकाकए, जतए बेशी लागन्हि ओतए दए दैत छलीह। सौँसे घर-पिच्छर भए गेल छल। कोनटा लग एक ठाम पानि नञि चूबि रहल छल, ततए जाए ठाढ़ भए गेलीह।
-“कतेक रास खढ़ चरमे अनेर पड़ल छल। पढ़ुआ काकाकेँ कहलियन्हि नहि। घर छड़बा लेने रहितहुँ”।
-“यौ बाबू। घर छड़एबाक लेल पुआर तँ भेटनिहार नहि। आ गरीब-मसोमातक घर खढ़सँ के छड़ाबए देत”।
-“हमरा खढ़सँ आ पुआरसँ घर छड़बयबामे होमयबला खरचाक अन्तर तहिया नहि बुझल छल।
-“से तँ अम्मी, खढ़सँ छड़ाएल घरक शान तँ देखबा जोग होइत छैक। पढ़ुआ काकाक घर देखैत छियन्हि। देखएमे कतेक सुन्दर लगैत अछि आ केहनो बरखा होअए, एको ठोप पानि नहि चुबैत अछि”।
-“से तँ सभसँ नीक घर होइत अछि कोठाबला”।
-“एह, की कहैत छी? गिलेबासँ आ सुरखीसँ ईँटा जोड़ेने कोठाक घर भए जाइत अछि? आ नेङराक घर तँ सीमेन्टसँ जोड़ल छैक, मुदा परुकाँ ततेक चुबैत छल से पूछू नहि”।
-“से?”
-“हँ यै अम्मी। सभ बरख ज्योँ छड़बा दी, तँ ओहिसँ नीक कोनो घर होइत छैक?”
-“चारिम बरख जे छड़बेने छलहुँ तकर बादो पहिल बरखामे खूब चुअल छल”।
-“पहिलुके बरखामे चुअल छल ने आ फेर सभ तह अपन जगह धऽ लेने होएत। तखन नहि चुअल ने बादमे”।
-“हँ, से तँ तकरा बाद तीन बरख नहि चुअल”।
-“तखने काकी बजैत अएलीह-
-“जनमि कए ठाढ़ भेल अछि आ की सभ अहाँकेँ सिखा रहल अछि। कनेक उबेड़ जेकाँ भेलैक तँ सोचलहुँ जे बहिन-दाइक खोज पुछारि कए आबी”।
-“बुन्नी रुकि गेल छल। हम काकाक घर दिस गेलहुँ आ दुनू दियादनीमे गप-शप शुरू भए गेलन्हि।
-“साँझक झलफली शुरू भेल, भदबरिया अन्हारक, तँ काकी बहराइत कहैत गेलीह-
-“बहिन दाइ, आगिक जरूरी पड़य तँ हमर घरसँ लए जाएब”।
-“नञि बहिनदाइ। सलाइमे दू-तीन टा काठी छैक। मुदा मसुआ गेल छैक। हे, ई डिब्बी दैत छियन्हि, कनेककाल अपन चुल्हा लग राखि देथिन्ह तँ काजक जोगर भए जएत। नबी दिआ पठा दिहथि”।
-“देखिहथि। उपास नञि कऽ लिहथि से कहि दैत छियन्हि, बच्चा सभ तँ हमरा एहिठाम खा लेत”-दियादिनी कहैत बिदा भेलीह।
-“करीमा बेगम माने हमर माए ओसारापर खुट्टा भरे पीठ सटा बैसि गेलीह।
-“की सोचि रहल छी अम्मी। कहू ने ?”
-“यैह फुसियाही गप सभ, अहाँक अब्बूक पहलमानीक। काका हुनका जे कहैत रहथिन्ह सैह।
-“खुट्टा पहलमान छथि ई”।
-“से नहि कहू काका। जबरदस्तीक मारि-पीटि हम नहि करैत छी, ताहि द्वारे ने अहाँ ई गप कहि रहल छी”।
-“रहमान काका आ हुमायूँ भातिज। पित्ती-भातिजमे ओहिना गप होइत छलन्हि, जेना दोस्तियारीमे गप होइत छैक। अखराहामे जखन हुमायूँ सभकेँ बजाड़ि देथि तखन अन्तिममे रहमान हुनकासँ लड़य आबथि। काका कहियो हुनका नहि जीतए देलखिन्ह।
-“हुमायूँक कनियाँ माने हम नवे-नव घरमे आएल छलहुँ। कोहबर लहठी सभ होइत छलैक ओहि समयमे। आब ने जानि मुल्ला सभ किएक एकर विरोधी भए गेल अछि, तैयो लोक करिते अछि की ? मुल्ला सभक गप जे मानए लागी सभ ठाम तखन तँ भेल !
-“आ एहि तरहक वातावरण घरमे देखलहुँ तँ मोन प्रसन्न भऽ गेल। घरक दुलारि छलहुँ आ सासुरो तेहने भेटि गेल। समय बीतए लागल। मुदा हुमायूँक विधवा एतेक जल्दी कहाय लागब से नहि बुझल छल तहिया। आब तँ सभ प्रकारक विशेषणक अभ्यास भऽ गेल अछि। झगड़ा-झाँटिक बीच क्यो ईहो कहि दैत अछि- वरखौकी, वरकेँ मारि डाइन सिखने अछि !
-“हुमायूँक जिवैत जे सभक दुलारि छलहुँ तकर बाद सभक आँखिक काँट भए गेलहुँ। इद्दतक बाद नैहरसँ दोसर बियाह करएबा लेल सेहो भाए सभ आएल मुदा अहाँ सभक मुँह देखैत रहबाक इच्छा मात्र रहल”।

नबी बकस बाजल-“उजरा नूआ, बिन चूड़ी-सिन्दूरक माएक वैधव्य बला चेहरा एखनो हमरा मोने अछि। फेर ओहि भदबरिया रातिमे माए आगाँ कहए लगलीह।

-“रहमान काका हमर पक्ष लए किछु बाजि देलखिन्ह एक बेर, तँ हमर सासु-ससुर कहए लगलखिन्ह जे हमर पुतोहुकेँ दूरि कए रहल छी। आ ईहो जे मुद्दीबा सभक अपना घरमे घटना हेतैक, तखन ने बुझए जएत।
-“आब तँ ने रहमाने चाचू छथि आ ने सासु ससुर से मरल आदमीक की खिधांश करू। मुदा एकोटा झूठ गप ई सभ नहि अछि।
-“लोक कहैत छैक जे सुखक दिन जल्दी बीति जाइत अछि, मुदा हमर दुखक दिन जल्दी बीतैत गेल, सुखक दिन तँ एखनो एक-संझू उपासमे खुजल आँखिसँ हम देखैत रहैत छी, खतमे नहि होइत अछि।
-“विधवा भेलाक अतिरिक्त आन घटनाक्रम अपन नियत समयसँ होइत रहल। हमर अब्बू-अम्मीक मृत्यु भेल, सास-ससुर आ पितिया ससुर रहमान कका तँ पहिनहिये गुजरि गेल छलाह।
-“घरमे जखन बँटबारा होमय लागल तखन सम्पत्तिक आ खेत-पथारक बखरा, चारि भैयारीमे मात्र तीन ठाम होमय लागल। हुमायूँक हिस्सा तीनू गोटे (जिबैत भैयारी सभ) बाँटि लेलन्हि। हम किछु कहलियन्हि जे हमर गुजर कोना होएत, छह टा बेटा आ एक टा बेटी अछि तँ हुमायूँक मृत्युक दोष हमरा माथपर दए हमर मुँह बन्न कए देल गेल।
-“तीनू भाँएक मुँह हुमायूँक समक्ष खुजैत नहि छलन्हि मुदा हुनकर मृत्युक बाद हुनकर विधवाकेँ हिस्सा नहि देबऽ लेल तीनू भाँय सभ तरहक उपाय केलन्हि। हम नैहर जा कए अपन भायकेँ बजा कए अनलहुँ। पंचैती भेल आ फेर अँगनाक कातमे एकटा खोपड़ी अलगसँ तीनू भाँय बान्हि देलन्हि, हमरा आ हमर बच्चा सभक लेल। धान, फसिल सभ सेहो जीवन निर्वाहक लेल देबाक निर्णय भेल। हम चरखा काटए लगलहुँ। से कपड़ा-लत्ता ओतएसँ तेना निकलि जाए।
-“लिअ सलाइ”। दियादिनी आबि कहलन्हि।
“हँ”- भक टुटलन्हि करीमा बेगमक माने हमर माएक। दियादिनी सलाइ पकड़ाए चलि गेलीह।
-“एहि बेर बाढिक समाचार रहि रहि कए आबि रहल अछि। बाट घाट सभ जतए ततए डूमि रहल छलए, खेत सभ तँ पहिनहि डूमि गेल छलए। अहाँक पढ़ुआ काकी पहिनहिये सुना देने छथि जे एहि बेर वार्षिक खर्चामे कटौती होएत। काल्हि कहैत रहथि जे कनियाँ सभटा फसिल डूमि गेल, एहि बेर वार्षिक खरचामे कटौती हेतन्हि। हम कहलियन्हि जे एँ यै । जहिया फसिल नीक होइए तँ हमर खरचामे कहाँ कहियो बेशी धान दैत छी ? ई गप अहाँक पढ़ुआ काका सुनि रहल छलाह। बजलाह-राँड़ तँ साँढ़ भए गेल। अहाँक पढ़ुआ काकीक इशारा केलापर ओ ससरि कए दलान दिशि बहरा गेलाह आ हम नोर सोंखि गेलहुँ। आइ गप निकलल तँ.......”।
माएक खिस्सा कहैत-कहैत नबी फेर रुकि गेल। आँखि आ कंठ दुनू संग छोड़ि रहल छलैक ओकर। किछु काल चुप रहि बाजल।
“ई खिस्सा भाए सभकेँ हम कहबो नहि कएने छियैक। सोचलहुँ जे कहबैक तँ मँगनीमे प्रतिशोध जगतैक। जे काज करबाक से नहि कएल होएतैक। आ सुनलियैक अछि जे हमर ओ मंडलबा भाए ओहि पढ़ुआ काकाक कहलमे आबि गेल अछि”।

नबी बकस फेर चुप रहल। भाए सभक प्रति ओकर प्रेम ओकरा सभक विषयमे बेशी बजबासँ ओकरा रोकैत छलैक। फेर ओ माएक खिस्सा शुरू कएलक।
-“माए आगाँ बजैत रहलीह।
-“धुत्त दिनमे तँ खेनहिये छलहुँ, एहि अकल-बेरमे केना खेनाइ बनाएब। कनियाँ-मनियाँ छलहुँ तखने विधवा भऽ गेलहुँ आ अहू वयसमे तैँ सभ कनियाँ-काकी कहैत अछि। हुमायूँ कतेक मानैत छल अपन भाए सभकेँ। अपन पेट काटि भागलपुरमे राखि पढ़ओलन्हि छोटका भाइकेँ आ आब ओ पढ़ुआ बौआ एहेन गप कहैत छथि।
-“ सोचिते-सोचिते नोर भरि गेलन्हि माएक आँखिमे।
-“हमरा संग एकबेर हज करए लेल गेल रहथि माए। धन्य भारत सरकार जे हमरा सनक गरीब-गुरबाक माए सेहो हज कए आएल। आ अपन बड़की दियादिनीकेँ सुनबैत रहथि खिस्सा जे बहिनदाइ, ततेक भीड़ छलए ट्रेनमे, गुमार ततबे। गाड़ीमे बेशी मसोमाते सभ छलीह। एक गोटे कहैत छलीह जे जतेक कष्ट आइ भेल ततेक तँ जहिया राँड़ भेल छलहुँ तहियो नञि भेल छलए। हवाइ जहाजकेँ अम्मी गाड़ी कहैत छलीह।
-“फेर ओहि भदबरियाक रातिमे हमर अम्मी करीमा बेगमक मुँहपर बाड़ीक हहाइत पानि आ चारसँ टपटप चुबैत पानिक ठोपक आ घटाटोप अन्हारक बीच कनेक मुस्की आबि गेलन्हि। हमरा काकाक दलानपर जाए लेल कहलन्हि जतए आर भाए बहिन सभ छल।
-“फेर सोचिते-सोचिते खाटपर टघरि गेलीह करीमा बेगम, माने हमर माए । भोर होइत-होइत बाड़ीक पानि बान्हपरसँ अँगना दिस आबि गेल।तीनू भैयारी अपन-अपन हिस्साक आंगन भरा लेने छलाह से सभटा पानि सहटि कऽ हमर सभक धसल आँगनसँ खोपड़ी दिस बढ़ि गेल। घरमे चारि आँगुर पानि भरि गेल। भोरमे किछु अबाज भेल आ जे उठैत छी तँ खाटक नीचाँ पानि भरल छल, एक-कोठी दोसर कोठीपर अपन अन्न-पानिक संग टूटि कऽ खसल छल। आब की हो, बड़की दियादनीक बेटा सभसँ पहिने आबि कऽ खोज पुछाड़ि केलकन्हि, अबाज दूर धरि गेल छलए। सभटा अन्न-पानि नाश भऽ गेलन्हि। अन्न पानि छलैन्हे कोन? दू-टा छोट-छोट कोठी, ओकरे खखरी-माटि मिला कऽ दढ़ करैत रहैत छलीह हमर आम्मी।
-“मुदा भोर धरि ओ हहा कऽ खसल आ मसोमातक जे बरख भरिक बाँचल मासक खोरिस छल तकरा राइ-छित्ती कऽ देलक। करीमा बेगम माने हमर अम्मी सूप लऽ कऽ अन्नकेँ समटए लेल बढ़लीह, हमर आँखिक देखल अछि।
-“मुदा बाढ़िक पानिक संग पाँकक एक तह आबि गेल छल घरमे। सौँसे टोल हल्ला भऽ गेल जे देखिऔ केहन भैंसुर दिअर सभ छैक, अपना-अपनीकेँ अपन-अपन अँगना भरि लए गेल अछि। मसोमातक अँगना तँ अदहासँ बेशी धकिआ लऽ गेल छलैहे, जे बेचारीक बचल अँगना अछि से खधाइ बनि गेल अछि। बड़की दियादिनी सहटि कऽ अएलीह कारण दिआद टोलक लोक सभ आबए लागल रहथि। करीमा बेगमक सोंगरपर ठाढ़ घरक दुर्दशा देखि सभ काना-फूसी करए लागल रहए। अँगनाक एक कोनसँ दोसर कोन, अपन घरसँ दोसराक घर !
-“पानि पैसबाक देरी रहैक आ आस्ते-आस्ते हमर घरक एक कातक भीतक देबाल ढहि गेल। टोलबैया सभ हल्ला करए लागल जे करीमा बेगम भितरे तँ नञि रहि गेलथि। बड़की दिआदिनी खसल घर देखि हदसि गेलीह। बजलीह जे अल्ला रक्ष रखलन्हि जे सुरता भेल आ नबीक भाइ-बहिनकेँ घर लए अनलियैक नहि तँ दियादी डाह नहि बुझल अछि। सभ कलंक लगबितए अखने।

-“मुदा दियादिनी”!
-“दियाद सभ सभ गप बूझि अपन-अपन घर जाए गेलाह। हम अम्मी लग अएलहुँ। मार्क्सवादी विचारक रही, कटिहारमे पढ़ैत छलहुँ। विधवा-विवाह, जाति-प्रथा सभ बिन्दुपर पढ़ुआ काकासँ भिन्न विचार रखैत छलहुँ। घरक नाम नबी छल मुदा स्कूल कॉलेजक नाम नबी बकस।गाममे भोजमे खढ़िहानक पाँति आ बान्हपरक पाँति देखि विचलित होइत छलहुँ। जोन-बोनिहारकेँ बान्हपर बैसा कऽ खुआबैत देखैत छलहुँ आ बाबू-भैयाकेँ खढ़िहानमे। खढ़िहानमे बारिक लोकनि द्वारा खाजा-लड्डू कैक बेर आनल जाइत छल । बान्हपरक पाँतीमे एक बेर आ नहियो। मुदा घरमे कोनो मोजर नहि छल, कहल जाइत रहए जे पहिने पढ़ि-लिखि कऽ किछु करू।
-“अम्मीसँ कतेक गमछा-झोड़ा भेटैत छल, चरखाक सूतक कमाइक। जय गाँधी बाबा, विधवा लोकनि लेल ई काज धरि कऽ गेलाह।
-“मुदा हमर अम्मी। की भेलन्हि हुनका। भाए बहिन सभ तँ ओम्हर अछि!”
-“अम्मी!!!!!!!!!!!!!!
-“हमर चित्कारसँ सौँसे टोलमे थरथड़ी पैसि गेल रहए। नबी कहियो कनैत नहि अछि, कानल अछि तँ कोनो गप छैक।
-“नञि अम्मी। ई कोनो गप नहि भेल। किएक हमरापर अहाँ भरोस छोड़ि देलहुँ। नबी बकस नाम छी हमर। पाँचो भाए आ छोटकी बहिनक भाए नहि बाप छियैक हम। मुदा अहाँ हमरापर भरोस छोड़ि चलि गेलहुँ। या अल्ला!!!!!!!!!!!”
-“टोल जुटि गेल मैयतक चारू दिश। के की सभ कएलक से नहि बुझलहुँ। अम्मीकेँ गुसुल (नहाओल) कराओल गेल। कफन पहिराओल गेल। जनाजाक खाट आएल। ताहिपरसँ माएक गाँधी चरखासँ बनाओल चादरि ओढ़ाओल गेल। तीनू काका आ हम जनाजाक खाटकेँ कान्ह देलहुँ। कब्रिस्तान लग ठाढ़ भए जनाजाक नमाज पढ़लहुँ आ अम्मीकेँ दफन कएलहुँ।
नबी बकस फेर चुप भए गेल। हम ओकरा टोकए नहि चाहैत छलहुँ। दस मिनट धरि ओ चुप्पे रहल आ हम बैसल रहलहुँ। फेर ओ बाजल।
-“अम्मीक मृत्युक चालीस दिन धरि शोक मनओलहुँ। आ वैह चालीस दिनक आराम हमरा एहि जोग बनेलक जे फेर पएरमे घिरणी लागि गेल। अम्मीक मृत्युक बाद पढ़ाइकेँ नमस्कार कए खाला लग आबि गेलहुँ, दिल्ली नगरियामे ।

नबी बकस अपन आँखि पोछि रहल छल। फेर दस मिनट ओ चुप रहल।
“नबी बकसकेँ अम्मीक इन्तकालक दिन लोक पहिल आ अन्तिम बेर कनैत देखने रहए। मुदा ई सभ आइ फेर हमरा आँखिसँ नोर चुआ देलक। ओकीलक तँ बियाहो नहि होइत रहए। सभ कहैत छल जे बुरबक छैक। मुदा जेना भीष्म पितामह धृतराष्ट्रक बियाह करेलन्हि तहिना हम एकर बियाह करबओलहुँ आ ई सभ कहैत अछि जे हम ओकरा नोकर जेकाँ रखैत छियैक”।

तावत कॉलबेलक घंटी बाजल रहए। ओकील नबी बकसक सोझाँमे आबि ठाढ़ भऽ गेल।
“भैया, सभ कहैत अछि जे हम बुरबक छी। काल्हि अहलिया (कनियोँ) केँ ई सभ यैह गप कहि देलकैक। ओ कहलक जे तोहर चिन्ता ककरो नहि रहए छैक, मुदा हम नहि मानलहुँ। से काल्हि हम कनेक लेट भए गेलहुँ। सरकेँ कहबो केलियन्हि जे देखैत छी जे ओ सभ आबैए आकि नहि। कनियो तँ सुधंगे ने अछि। आइ ओहो दियादिनीक गरा पकड़ि कऽ खूब कानल अछि। बुधियार सभ ने अहाँकेँ छोड़ि चलि गेल, मुदा ई बुरबकहा अहाँकेँ छोड़ि कहियो नहि जएत, भाए”।

हम नहि जायब विदेश
“यौ भैय्या। कनेक काकासँ भेँट नहि करा देब”।
“काका छथि अहाँक। आ भेँट करा दिअ हम?”
“यौ। ओ तँ हमरा सभकेँ चिन्हितो नहि छथि। बच्चेमे गामसँ बहरा गेलथि, से घुरि कए कहाँ अएलाह”।
“बेश। तखन चलू भेँट करबा दैत छी। मुदा कोनो पैरवी आकि काज होअए तँ पहिने कहि दैत छी, से ओ नहि करताह”।
“नहि। कोनो काज नहि अछि। मात्र भेँट करबाक इच्छा अछि। भारत वर्षमे एतेक नाम छन्हि, सभ चिन्हैत छन्हि मुदा नहिये हमरा सभ चिन्हैत छियन्हि आ नहि वैह चिन्हैत छथि”।

लाल गेल छलाह दस दिन पहिने द्विजेन्द्र जीक घर पर। जाइते देरी लालक कटाक्ष शुरू भऽ जाइत छन्हि।
-गामकेँ बिसरि गेलियैक। घुरि कऽ देखबो नहि कएलहुँ। खोपड़ीकेँ घर तऽ बना लैतहुँ।
आ जबाबो भेटन्हि ओहिना बनल बनाओल।
-की हएत ? जा कए की करब। एक कट्ठाक घरारी आ ताहि पर बाबूक कतेक भाँए। आ फेर वामपंथी विचारधाराक चिन्तन शुरू भऽ जाइत छलन्हि।
-गाम अछि धनिकक लेल। यावत गामक जनसंख्या कम नहि होएत तावत धरि तँ अवश्ये। गरीबीमे लोककेँ लोक नहि बुझैत अछि क्यो। मुदा नगर मात्र दिल्ली, कलकत्ता नहि अछि। यावत मधेपुर, मधेपुरा, महोत्तरी, जनकपुर, बनैली आ झंझारपुरक विकास नहि होएत, शोषित वर्ग रहबे करत।
तावत द्विजेन्द्र जीक कनियाँ चाह राखि गेलखिन्ह।
द्विजेन्द्रजी गामेमे प्राथमिक शिक्षा प्राप्त कएलन्हि। झंझारपुरमे मिड्ल स्कूल आ हाइ स्कूल पएरे जाथि। पिताजी राँचीमे ठिकेदारी करैत छलखिन्ह। माए पढ़ल-लिखल छलखिन्ह।
लोक कहैत छल जे उपन्यास सेहो पढ़ैत छलीह।
दरभंगासँ सोझे प्रयाग पहुँचि गेलाह द्विजेन्द्र। पिता छलाह नबका बसातक लोक। खूब कमाथि आ खूब खर्च करथि। गामसँ कोनो सरोकार नहि। कनियाँक खोजो-खबरि नहि लैत छलाह। लोक कहैत छल जे दोसर बिआह कऽ लेने छलाह राँचीमे। लोक ईहो कहैत अछि जे यावत ओ गाममे छलाह तहियो वैह हाल छलन्हि। बेरू पहर तीन बजेसँ कनियाँ हुनका लेल भाङ पीसब प्रारम्भ कऽ दैत छलखिन्ह। मुदा बड़का बेटाकेँ खूब मानैत छलाह। कारण छोटका बेटा बापेपर गेल छल, जकर नाम रहए हरेन्द्र।
आ लोक कहैत अछि जे हरेन्द्र पटनाक कोनो गैराजमे काज करैत रहथि। द्विजेन्द्र गुरु-गम्भीर, पढ़बामे तेज, सभ विषयमे पितासँ विपरीत आ तेँ पिता मानबो करैत छलखिन्ह। आ ताहि द्वारे पिता हुनकर खर्च पठेबामे कोनो विलम्ब नहि करैत छलाह। एहि पठाओल पाइसँ द्विजेन्द्र छोट भाइकेँ सेहो नुकाकेँ पाइ पठा दैत छलाह। आ लोक कहैत अछि जे माएक सुधि मुदा हुनको नहि रहैत छलन्हि आकि भऽ सकैत अछि जे ओतेक पाइ आ समय नहि रहैत होएतन्हि।
माए बेचारीकेँ क्यो कहि दैन्हि जे बेटाकेँ फेर फर्स्ट डिवीजन भेल अछि आकि पतिकेँ हाइवे केर ठेका भेटि गेल छन्हि, तँ ओ तिरपित भऽ जाइत छलीह। गाममे बटाइदार सभ जे किछु दऽ दैन्हि ताहिसँ कोनो तरहेँ गुजर चलि जाइत छलन्हि। नील रंगक नूआ, रुबिया वाइल कहैत छल कोटाक दोकान बला सभ ओहि नूआकेँ, सेहो सस्तमे भेटि जाइत छलन्हि, ओहि कोटा बला दोकानसँ। रने-बने गाछीमे घुमए पड़ैत छलन्हि जारनिक लेल। गाममे सभक गुजर कोहुनाकेँ भऽ जाइत छैक ।
आ एम्हर ठेकेदार साहेब पैघ बेटाकेँ समय पर पाइ पठेबाक अतिरिक्त्त अपन सभ कर्त्तव्य बिसरि गेल छलाह। कमाउ आ खाउ छल मात्र हुनकर मंत्र। गाम-घरसँ कोनो मतलबे नहि।
द्विजेन्द्र इलाहाबाद विश्वविद्यालयमे सभक आदर्श बनि गेल छलाह। इतिहास विषयक तिथि सभ हुनकर संगी बनि गेल छल। विश्वविद्यालयमे प्रथम तँ अबिते रहथि, संगहि हुनकर चालि-चलन, गुरु-गम्भीर स्वभाव, परिपक्व मानसिकता एहि सभसँ सभ क्यो प्रभावित रहैत छल। संगी-साथी सेहो कम्मे छलन्हि। एकटा संगी छलन्हि उपेन्द्र आ एकटा आलोक। महिला संगी कोनोटा नहि।
आ से ओ सभ कहितो छलीह जे द्विजेन्द्र तँ घुरि तकितो नहि छथि। ओहिमे एकटा छलीह अरुन्धती।पढ़बामे तेज, राजनीति विज्ञानक विद्यार्थी। प्रतियोगी स्वभावक छलीह। बापक दुलारू आ पिताकेँ हुनका पर सेहो असीम विश्वास छलन्हि।एडवान्स कहि सकैत छी। द्विजेन्द्रसँ बहुत बिन्दु पर सुझावक आकांक्षी छलीह। मुदा द्विजेन्द्र तँ दोसरे लोक छलाह। हुनकर घरक कोनो गप तँ ककरो बुझल नहि रहैक। मुदा से कारण छल जे द्विजेन्द्र सभक प्रति निरपेक्ष रहैत छलाह।
“यौ उपेन्द्र। राजनीति विज्ञानमे तँ हमरा कोनो दिक्कत नहि अछि मुदा इतिहासमे तिथि आ दृष्टिकोणसँ बड्ड दिक्कतिमे पड़ि गेल छी”।अरुन्धती उपेन्द्रसँ पुछलन्हि।
आ दुनू गोटे इतिहास पर अपन-अपन दृष्टिकोण एक दोसरकेँ देबए लगलथि।रासबिहारी बोस आजाद हिन्द फौजक स्थापना कएलन्हि सुभाष चन्द्र बोस नहि आ नीलक खेतीक हेतु सरखेज जे गुजरातमे छल बड्ड प्रसिद्ध छल, धोलावीर सभसँ पैघ सिन्धु घाटी आकि सरस्वती नदी सभ्यताक स्थल छल आ दारा शिकोहकेँ सभसँ पैघ मनसब देल गेल छल । उपेन्द्र ई सभ गप द्विजेन्द्रसँ पूछि कए आबथि आ फेर अरुन्धतीसँ वार्त्तालाप करथि। एहिमे समयक हानि होइत छलन्हि, से उपेन्द्र कहलन्हि जे किएक नहि द्विजेन्द्रकेँ सेहो अपन समूहमे शामिल कए लेल जाय।
“मात्र द्विजेन्द्रकेँ शामिल करू। बेशी गोटेकेँ आनब तँ पढ़ाइ कम आ गप सरक्का बेशी होएत”। अरुन्धतीक ई विचार बनल।
उपेन्द्रक कहलासँ द्विजेन्द्र आबए लगलाह, ओहि सामूहिक अध्ययनमे।

तावत एक दिन समाचार आएल जे पिताक मोन बड्ड खराब छन्हि। पहुँचलाह तँ लीवर खराब होएबाक समाचार भेटलन्हि। सतमाएसँ सेहो भेँट भेलन्हि।गाम-घर पर कोनो खबरि नहि। फेर १५ दिनमे मृत्यु भऽ गेलन्हि पिताक। गाम पर तखन जा कए खबरि भेल। नहि तँ कोनो पता, नहिये कोनो फोन। माए बेचारी कनैत रहि गेलीह। बेटा दाह-संस्कारक बाद सोझे प्रयाग चलि गेलाह। गाम घुरियो कऽ नहि गेलाह।
माएक खिस्सा यैह अछि जे फेर ओ गुम-शुम रहए लगलीह। कोनो चीजक ठेकान नहि रहन्हि। एक बेर तँ डिबिया सँ चारक घरमे तेहन आगि लागि गेल जे सौँसे टोल जरि गेल। ओहि समयमे सभकेँ चारक घर रहैक। सभ घर एक दोसरसँ सटल। से सौंसे टोल जरि गेल। सभ कहए आकि बनती बनाबए जे द्विजेन्द्रक माए उपन्यास पढ़ैत-पढ़ैत सुति गेलीह आ डिबियामे हाथ लागि गेलन्हि।सौँसे टोल जरैत रहए आ ओ भेर धरि सूतल रहलीह। ककरो फुरेलइ तँ हुनका उठा-पुठा कऽ बाहर कएलक। बादमे हुनकर आरो अवहेलना होमए लगलन्हि। लोक गारि सेहो पढ़ि देने छलन्हि कताक बेर।
ओहिनामे एक बेर जाड़क झपसीमे गुजरि गेलीह। द्विजेन्द्रक पता सेहो नहि छलन्हि ककरो लग। घरारीक लोभमे एक गोट समाङ आगि देलकन्हि।

द्विजेन्द्रक निकटता अरुन्धतीसँ बढ़ए लगलन्हि। उपेन्द्रकेँ अरुन्धती एक बेर कहियो देलखिन्ह जे अहाँ सीढ़ी छलहुँ हमर आ द्विजेन्द्रक बीचमे।
अरुन्धतीक माए सेहो बच्चेमे गुजरि गेल छलीह। पिताक दुलरी छलीहे ओ। अरुन्धतीक कहला पर द्विजेन्द्र आबि गेलाह हुनका घर पर रहबाक लेल। संगे पढ़लन्हि आ फेर दुनू गोटे प्रयाग विश्वविद्यालयमे प्रोफेसर बनि गेलाह।विवाह सेहो भऽ गेलन्हि। मात्र मधुबनीक एक गोट पीसाकेँ बुझल छलन्हि हिनकर विवाहक विषयमे।पीसा छलाह पत्रकार आ मधुबनीक कोनो हॉस्पीटलमे काज केनहारि केरलक नर्स सँ ताहि जमानामे विवाह कएने छलाह।घर परिवार हुनका सेहो बारि जेकाँ देने छलन्हि। मुदा छलाह बड्ड नीक लोक।
द्विजेन्द्रकेँ वैह बेर-बखत पर कहियो काल मदति करैत छलाह।मुदा विवाहमे ओहो नहि अएलाह।अपन सलाह देने छलाह एहि विवाहक विरुद्ध। अपन उदाहरण देलन्हि जे कतेक दिक्कत भेलन्हि। मुदा संगमे ईहो कहलन्हि जे अहाँकेँ तँ बाहर रहबाक अछि, से ओतेक दिक्कत नहि होएत। हम तँ मधुबनीमे रहैत छलहुँ, कहियो कनियाकेँ गामो नहि लऽ जा सकलहुँ।
द्विजेंन्द्रक रिसर्च पर रिसर्च प्रकाशित होइत गेलन्हि। देश-विदेशमे सेमीनार पर जाथि। अरुन्धती जेना बेर पर मदति कएने छलीह तकरा बाद द्विजेन्द्र अपना पर भरोस कएनाइ छोड़ि देने छलाह। वामपंथी इतिहासकारक रूपमे छवि बना कए मात्र इतिहास आ पुरातत्त्व सँ सम्पर्क बनओने छलाह। सालक-साल बितैत गेल। गामक लोकमे मात्र लाल छलाह जे ओहि नगरमे रहैत छलाह आ कहियो काल ओ भेँट कऽ अबैत छलखिन्ह।
लालक गप पर अनुत्तरित भऽ जाइत छलाह द्विजेन्द्र। माएक कोनो चर्चा पर नोर पीबि जाइत छलाह। सोचने रहथि जे किछु बनि जएताह तँ माएकेँ संग आनि रखितथि आ सभ पापक पश्चाताप कऽ लितथि। मुदा यावत अपन खर्चा नहि जुमन्हि तावत तँ ओ जीवित रहलीह आ जखन किछु बनलाह तँ तकर पहिनहि छोड़ि गेलीह। कोन मुँह ककरा देखेतथि।

आ जखन लाल पहुँचलाह हुनका लगमे ई बजैत जे लियह, भातिज आएल छथि भेँट करबाक हेतु, अहाँ तँ कोनो सरोकार ककरोसँ रखबे नहि कएलहुँ, तँ पहिल बेर बजलाह द्विजेन्द्र-
“कोन सरोकार माएसँ पैघ छल यौ लाल । जे अहाँ कहैत छी जे हम ककरोसँ सरोकार नहि रखने छी”।

राग वैदेही भैरवी
“गबैया परिबार छैक। तान जँ चढ़ैत छैक तँ उतरिते नञि छैक”।
“एकसँ एक कबिकाठी सभटा, परिबारमे क्यो गप छोड़बामे ककरोसँ कम नहि”।
“से की कहैत छियैक। परिबारक कोन कथा, सौँसे टोल मे सभटा कबिकाठिये भेटत”।

उदितक हारमोनियमक तानक विवेचन सौँसे गाम कए रहल छल।
उदितक बाबू आ काका दुनू गोटे बड्ड पैघ गबैय्या। खानदानी गायन आ वादन प्रतिभा हुनका लोकनिक रक्त्तमे छलन्हि। उदित पाँचे वर्षसँ संगीत सीखए लागल छलाह, हुनकर स्वरक स्वाभाविक उदात्त आ अनुदात्त स्वरूपसँ पिता मुग्ध भए जाइत छलाह। मुदा गामक लोकक संगीतक ज्ञान अष्टजाममे मृदंग, झाइल आ हारमोनियम बजेबा धरि आ निर्दिष्ट वाक्यकेँ गएबा धरि सीमित छल । आ से प्रायः सभ गोटे सहज रूपेँ कए लैत छलाह।

“आङ्ल लोकनिक राज्य छल, मैकाले महोदय संस्कृत शिक्षाक स्थान पर आङ्ल भाषा अनबा पर उतारू छलाह।
उदितक पिताजी एहिसँ संबंधित एकटा कथा कहैत छलाह।
“मैकाले महोदय जखन भारत अएलाह तँ एकटा गेस्ट हाउसमे ठहरल छलाह। खिड़कीसँ बाहर देखि रहल छलाह तँ देखलन्हि जे गेस्ट हाउसक मैनेजर परिसरमे प्रवेश कए रहल छलाह। आ ओ प्रवेश कएला उत्तर गेस्ट हाउसक दरबानकेँ पएर छुबि कए प्रणाम कएलन्हि। बादमे जखन मैकाले हुनकासँ पुछलन्हि, जे अहाँ मैनेजर छी आ तखन सामान्य दरबानकेँ पएर छुबि किएक प्रणाम कए रहल छलहुँ ? एहि पर हुनका प्रत्युत्तर भेटलन्हि जे ओ सामान्य दरबान नञि छल वरन् संस्कृतज्ञ सेहो छल। ताहि दिन मैकाले सोचि लेलन्हि जे भारतकेँ पराजित करबाक लेल भारतक संस्कृतिकेँ नष्ट करए पड़त। आ एहि लेल संस्कृतकेँ नष्ट करबाक प्रण लेलन्हि, जकर अछैत भारतीय कला संगीत आ संस्कृतिसँ पराङमुख भए जएताह”। उदित पिताक मुँहे ई खिस्सा कताक बेर सुनने छलाह। अस्तु तावत, उदित एहि तरहक वातावरणमे आगाँ बढ़ए लगलाह।

अङरेज लोकनि द्वारा पाश्चात्य सङ्गीतकेँ अनबाक प्रयासक पलुस्कर, भातखण्डे आ रामामात्य द्वारा देल गेल समीचीन उत्तर, ई शिक्षाक क्षेत्रमे किएक नञि भए सकल, उदितक बाल मोन अकुलाइत छल। अस्तु तावत उदित संगीतोद्धारक भातखण्डेकेँ आदर्श बनाए आगाँ बढ़ए लगलाह।

लोक गबैय्या कहए तँ कोनो बात नहि, एक दिन अएत जखन एहि गबैय्याक सोझाँ समस्त अखण्ड भारतक मनसि श्रद्धासँ देखत, अस्तु तावत।
काका आ पिताक संरक्षणमे गामक रामलीला मंडली द्वारा प्रस्तुत कएल जाएबला नाटकमे सेहो उदित भाग लैत छलाह, हुनकर गाओल गीत गाममे सभक ठोर पर आबि गेल छल। मुदा खेती बारी तेहन सन नहि छलन्हि। एक बीघा बटाइ करैत जाइत छलाह, सेहो सुनए पड़न्हि जे गबैय्याजी बुते की खेती कएल होएतन्हि, मुँहसँ गओनाइ आ हाथसँ काज करबामे बड्ड अंतर छैक।
जीवनक रथ आगाँ बढ़ैत रहैत मुदा विदेशीक शासनमे सेहो धरि संभव नहि होइत छल। कखनो हैजा तँ कखनो प्लेग तँ कखनो मलेरिआ। अहिना एक बेर गाममे प्लेग पसरल। लोक एक गोटाकेँ डाहि कए आबय तँ गाम पर दोसर व्यक्ति मृत पड़ल रहैत छल। उदितक माएकेँ सेहो पेट आ नाक चलए लगलन्हि, देह आगि जेकाँ जरैत रहन्हि मुदा बेटाकेँ लग नहि आबए देथिन्ह जे कतहु हुनको प्लेग नहि भए जाइन्ह। दू दिनुका बाद बेचारी दुनियाँ छोड़ि गेलीह। दुनू बाप-बेटा दाह संस्कार कए अएलाह। दुनू गोटेक आँखिमे नोर जेना सुखा गेल छलन्हि। पिता गुम-सुम रहए लगलाह। कण्ठसँ स्वर नहि निकलन्हि मुदा हस्त परिचालनसँ बेटाकेँ अभ्यास कराबथि। दू-तीन बर्ष बीतल उदितक बयस वैह १०-११ साल होएतन्हि आकि पिताकेँ मलेरिआ पकड़ि लेलकन्हि।
रातिमे निन्द नहि होइन्ह। सिरमामे भातखण्डे स्वरलिपि रहैत छलन्हि ताहि आधार पर बेटाकेँ किछु गाबि सुनाबए कहैत छलखिन्ह। उदितकेँ आभास भए गेलन्हि जे माताक संग पिता सेहो दूर भए जएताह। ई सोचि कोढ़ फाटि जाइन्ह। कुनैनक प्रभाव सेहो आब पिता पर नहि होइत छलन्हि। रातिमे थरथरी पैसि जाइत छलन्हि। उदित सभटा केथरी-ओढ़ना सभ ओढ़ा दैत छलखिन्ह, मुदा तैयो थरथरी नहि जाइत छलन्हि। लोक सभ दिनमे आबि खोज-पुछाड़ी कए जाइत छलन्हि। गामक नाटक मण्डली सेहो बन्दे छल कारण मुख्य कार्यकर्त्ता हर्षित नारायण छलाह आ ओ बनारस चलि गेल छलाह कोनो नाटक मण्डलीमे। ओ गाम आएल छलाह आ जखन सुनलन्हि जे उदितक पिताक मोन खराप छन्हि तँ पुछाड़ी करए अएलाह।
“हर्षित। हम तँ आब जा रहल छी। उदित नेना छथि। काका पर बोझ बनताह ताहिसँ नीक जे अपन पएर पर ठाढ़ भए जाथि, संगीत साधना करथि। ई देवक लीला अछि जे एहि समय पर अहाँ गाम आबि गेलहुँ। गामक हबामे जेना रोगक कीटाणु आबि गेल छैक। एतए मत्यु टा निश्चित छैक आर किछु नहि। एहना स्थितिमे संगीतक मृत्यु भए जाए ताहिसँ नीक जे उदित अहाँक संग बनारस नाटक मण्डलीमे चलि जाथि। अहाँ बुते ई होएत हर्षित”?
“की कहैत छी गुलाब भाइ। उदित अहाँक पुत्र छी आ हमर क्यो नहि? मुदा संगीतक पारखीक प्रतिभा नाटक मण्डलीमे कुण्ठित नहि भए जएतैक? नाटक मण्डली तँ हमरा सनक अल्प ज्ञानीक लेल छैक”।
“नहि हर्षित। ओतए उदितकेँ हनुमानक आ रामक आशीर्वाद भेटतन्हि। संगीतक कतेक रास पक्ष छैक। नव-नव बाधा पार करताह आ अल्प समयमे संगीत फुरेतन्हि। ओतएसँ हिनकर साधना आगाँ बढ़तन्हि”।
गुलाब जेना हर्षितक बाट जोहि रहल छलाह। बजिते-बजिते प्राण जेना उखड़ए लगलन्हि। बेटाक माथ पर थरथड़ाइत हाथ रखलन्हि तँ दौगि कए हर्षित गंगा जल आनि मुँहमे एक दिशिसँ देलन्हि मुदा जल मुँहक दोसर दिशिसँ टघरि कए बाहर आबि गेल।


काशीक तट पर विद्यापतिक बड़ सुख सार पाओल तुअ तीरे सँ लऽ कए भिन्न-भिन्न धार्मिक आ लौकिक गीत गाबथि ओकर सुर बनाबथि आ ताहि लेल उदितकेँ प्रशंसा सेहो भेटन्हि। आयुक न्यूनता सेहो कहियो काल उपलब्धिक मार्गकेँ रोकि दैत छैक। उदित मात्र ११ वर्षमे काशी गेलाह आ ताहि द्वारे हुनकर स्वरक आ सुरक बहुत गोटे ग्राहक बनि गेलन्हि, ग्राहक नञि शोषक कहू। सभटा परिश्रम हिनकासँ करबाए लैत छलन्हि आ नाम अपन दऽ दए जाइत छलाह। मुदा उदित समय, आयु आ गुरुक आसमे दिन काटि रहल छलाह। दिन बड़ मुशकिलसँ कटैत छैक मुदा ज्योँ एकहि ढर्रा पर चलैत जाइत छैक तँ लागए लगैत छैक जे सालक साल कोना बीति गेल। उदित ११ वर्षसँ २६ वर्षक उमरि धरि नाटक कम्पनीमे काज करैत रहलाह।
“शास्त्री जी। ई सुर तँ हमही बनओने छी मुदा मोन कनेक विचलित अछि ताहि द्वारे दोसर सुर नञि बनि पाबि रहल अछि। उदितकेँ बजा लैत छी। ओहो हमरासँ किछु सिखने अछि, किछु समाधान निकालि लेत”। महान संगीत उपासक भट्ट जीक सोझाँ हर्षित बाजि रहल छलाह।
“हँ हँ। अवश्य बजा लिऔक”। भट्ट जी बजलाह।
मुदा उदित जखन आबि कए संगीतकेँ सरलतासँ सिद्ध कए सुर गाबि देलन्हि, ताहिसँ भट्टजीकेँ बुझबामे भाँगठ नहि रहलन्हि, जे वास्तविक कलाकार हर्षित नहि उदित छथि। भट्ट जी एकटा एहन शिष्यक ताकिमे छलाह जे प्रतिभावान आ साधक होथि, जिनका भट्टजी अपन सभटा कला निश्चिन्त भए दए सकथि। आइ से शिष्य भेटि गेलन्हि हुनका।
उदितकेँ अपना आश्रममे चलबाक जखन ओ गुरु नोत देलन्हि तँ उदित दौगि कए अपन प्रकोष्ठ चलि गेलाह आ पिताक फोटो निकालि कए जे कननाइ शुरू कएलन्हि तँ १५ सालसँ रोकल धार छहर तोड़ि बहराए लागल। अस्तु तावत।
नाटक कम्पनीमे जेहन एकरूपता छल, तकर विपरीत गुरुआश्रममे वैविध्यता छल। सभ दिन उदित सूर्योदयसँ पूर्व उठैत छलाह आ संगीत साधनामे लीन भए जाइत छलाह। शिष्य गुरुकेँ पाबि धन्य छल आ गुरु शिष्यकेँ पाबि कए। दिन बीतए लागल मुदा भातखण्डे आ पलुस्कर महाराज द्वारा संस्कृत साहित्यक आधार पर संगीतक कएल गेल पुनुरोद्धार तँ गङ्गाक धार जेकाँ निर्मल आ चिर छल। जतेक गहीँर उदित ओहि धारमे उतरथि, मोन करन्हि जे आर गहीँर जाइ। २५ साल धरि गुरुक आश्रममे उदित रहलाह। ५१ वर्षक जखन भेलाह तँ गुरु ई कहि बिदा कएलन्हि जे उदित आब अहाँ शिष्य नहि गुरुक भूमिका करू। संगीतशास्त्रक पुनरोद्धार भए चुकल छैक, आङ्ल लोकनिक पाश्चात्य संगीत पद्धति अनबाक प्रयास विफल भए चुकल अछि, आ आब भारत स्वतंत्र सेहो भए चुकल अछि। जाऊ आ शास्त्र द्वारा प्रदत्त संगीतक दोसर पुनर्जागरणक योद्धा बनू।
५१ वर्षक आयुमे स्वतंत्र भारतमे उदित नोकरी तकनाइ शुरू कएलन्हि। काशीक एकटा संगीत विद्यालय सहर्ष हुनका स्वीकार कए लेलकन्हि। मुदा ३६ वर्षक संगीत साधनाक साधल स्वर काशी विश्वविद्यालय धरि पहुँचि गेलैक। शिष्यक पंक्त्ति लागए लगलन्हि। भारतक नव स्वरूपमे श्रद्धाक प्रतीक रूपम् कतेको गोटे शास्त्रीय संगीतक व्यापार सेहो शुरु कएलन्हि। मुदा प्रचारसँ दूर मात्र गुरु शिष्य परम्पराकेँ आधार बना कए आगू बढ़बैत रहलाह उदित। हुनकर शिष्य सभ देश विदेसमे नाम करए लागल। तखन काशी विश्वविद्यालय शिक्षक रूपमे हिनका नियुक्त्त कए लेलकन्हि। मुदा ओतए नियम छल जे बिना पी.एच.डी. कएने ककरो विभागक अध्यक्ष नहि बनाओल जा सकैत अछि। मुदा विभागमे उदितसँ बेशी श्रेष्ठ तँ क्यो छल नहि। जेना आङ्ल जन कए गेल छलाह, गुरुकुलसँ पढ़निहारकेँ कोनो डिग्री नहि भेटैत छल आ ओ सरकारी नोकरीक योग्य नहि होइत छल। उदितक लगमे सेहो ताहि प्रकारक कोनो औपचारिक डिग्री नहि छलन्हि। विश्वविद्यालयक सीनेटक बैसकी भेल आ ताहिमे विश्वविद्यालय अपन नियमकेँ शिथिल कएलक आ उदितकेँ संगीतक विभागाध्यक्ष बनाओल गेल। ओतए सेवानिवृत्ति धरि उदित अपन प्रशासनिक क्षमताक परिचय देलन्हि। भातखण्डेक अनुरूप कतेक खण्डमे संगीतक शास्त्रक परिचय देलन्हि उदित। उदितक शिष्य सभक दृश्य-श्रव्य रेकार्ड बहरा गेल छलन्हि मुदा उदित स्टुडियो आ जनताक समक्ष अपन कार्यक्रमसँ अपन साधना भंग नहि करैत छलाह। भोरक साधनासँ साँझक सुर भेटन्हि आ साँझक साधनासँ भोरक। अस्तु तावत।
हुनकर शिष्य सभ उदितकेँ बिना कहने एकटा अभिनन्दन कार्यक्रम रखलन्हि। ओतए रेकार्डिङ्ग केर व्यवस्था छल। उदित अभिनन्दन कार्यक्रममे अएलाह। आयु ७५ वर्षक छलन्हि हुनकर। श्रोता रहथि देशक सर्वश्रेष्ठ शास्त्रीय संगीतकार लोकनि आ उदितक शिष्य-मण्डली।
जखन उदित शुरू भेलाह तखन हुनकर शिष्य लोकनि चारू दिशि ताकि रहल छलाह। हुनकर लोकनिक गुरुक स्वर राग वैदेही भैरवी हुनका सभकेँ छोड़ि सद्यः आर क्यो नहि सुनने छल। मुदा शिष्य लोकनिकेँ सुनला उत्तर सभकेँ अभिलाषा छलैक जे जखन शिष्य लोकनि एहन छथि तखन गुरु केहन होएताह। ७५ वर्षक एहि योद्धाकेँ सुनैत सुनैत सगीतक महारथी नव रसक संग हँसथि आ प्रसन्न भए रहल छलाह मुदा शिष्य लोकनि विभोर भए मात्र कानि रहल छलाह।


काल-स्थान विस्थापन
“सुनू। प्रयोगशालाक स्विच ऑफ कए दियौक”।
चारि डाइमेन्शनक वातावरणमे अपन सभटा द्वि आ त्रि डाइमेन्शनक वस्तुक प्रयोग करबाक लेल धौम्य प्रयोगशालामे प्रयोग शुरू करए बला छथि। हुनकर संगी-साथी सभ उत्सुकतासँ सभटा देखि रहल छथि।
“दू डाइमेन्शनमे जीबए बला जीव तीन डाइमेन्शनमे जीबए बला मनुक्खक सभ कार्यकेँ देखि तऽ नहि सकैत छथि मुदा ओकर सभटा परिणामक अनुभव करैत छथि। अपन एकटा जीवन-शैलीक ओ निर्माण कएने छथि। ओहि परिणामसँ लड़बाक व्यवस्था कएने छथि। तहिना हमरा लोकनि सेहो चारि डाइमेन्शनमे रहए बला कोनो सम्भावित जीवक वा ई कहू जे तीनसँ बेशी डाइमेन्शनमे जिनहार जीवक हस्तक्षेपकेँ चिन्हबाक प्रयास करब”। धौम्य कहैत रहलाह।
एक आ दू डाइमेन्शनमे रहनिहारक दू गोट प्रयोगशालाक सफलताक बाद धौम्यक ई तेसर प्रयोग छल।
एक विमीय जीव जेना एकटा बिन्दु। बच्चामे ओ पढ़ैत छलाह जे रेखा दू टा बिन्दुकेँ जोड़ैत छैक। नञि तऽ बिन्दुमे कोनो चौड़ाइ देखना जाइत अछि आ नहिये रेखामे। रेखा नमगर रहैत अछि मुदा बिन्दुमे तँ चौड़ाइक संग लम्बाइ सेहो नहि रहैत छैक। एक विमीय विश्वमे मात्र आगाँ आ पाछाँ रहैत अछि। नञि अछि वाम दहिनक बोध नहिये ऊपर नीचाँक। मात्र सरल रेखा, वक्रता कनियो नहि। आब ई ने बुझि लिअ जे अहाँ जतए बैसल छी, ओतए एकटा रेखा विचरण करए लागत। वरण ई बुझू जे ओ रेखा मात्र अछि, नहि कोनो आन बहिः।
“द्वि बीमीय ब्रह्माण्ड भेल जतए आगू पाछूक विहाय वाम दहिन सेहो अछि मुदा ऊपर आ नीछाँ एतए नहि अछि। बुझू जे अहाँक सोझाँ राखल सितलपाटीक सदृश ई होएत, जाहिमे चौड़ाइ विद्यमान नहि अछि।”
“मुदा श्रीमान् ई चलैत अछि कोना। गप कोना करत, एक दोसरकेँ संदेश कोना देत”।
“आऊ। पहिने एक विमीय ब्रह्माण्डक अवलोकन करैत छी”।
धौम्य एक विमीय प्रयोगशालाक लग जाइत छथि। ओतए बिन्दु आ बिन्दुक सम्मिलन स्वरूप बनल रेखा सभ देखबामे अबैत अछि। ई जीव सभ अछि। एक विमीय ब्रह्माण्डक जीव जे एहि तथ्यसँ अनभिज्ञ अछि जे तीन विमीय कोनो जीव ओकरा सभकेँ देखि रहल छैक।
“देखू। ई सभ जीव एक दोसराकेँ पार नहि कए सकैत अछि। आगू बढ़त तँ तावत धरि जा धरि कोनो बिन्दु वा रेखासँ टक्कर नहि भए जएतैक। आ पाछाँ हटत तावत धरि यावत फेर कोनो जीवसँ भेँट नहि होएतैक। एक दोसराकेँ संदेश सेहो मात्र एकहि पँक्त्तिमे दए सकत कारण पंक्त्तिक बाहर किछु नहि छैक। ओकर ब्रह्माण्ड एकहि पंक्त्तिमे समाप्त भए जाइत अछि।
“आब चलू द्वि बीमीय प्रयोगशालामे”।
सभ क्यो पाछाँ-पाछाँ जाइत छथि।
“एतय किछु रमण चमन अछि। पहिल प्रयोगशाला तँ दू तहसँ जाँतल छल, दुनू दिशिसँ आ ऊपरसँ सेहो। मात्र लम्बाइ अनन्त धरि जाइत छल। मुदा एतय ऊपर आ नीचाँक सतह जाँतल अछि। ई आगाँ पाछाँ आ वाम दहिन दुनू दिशि अनन्त धरि जा रहल अछि। ताहि हेतु हम दुनू प्रयोशालाकेँ पृथ्वीक ऊपर स्वतंत्र नभमे बनओने छी। एतुक्का जीवकेँ देखू। सीतलपाटी पर किछुओ बना दियौक। जेना छोट बच्चा जे आधुनिक चित्र बनबैत छथि। एतए ओ सभ प्रकार भेटि जएत। मुदा ऊँचाइक ज्ञान एतए नहि अछि। एक दोसरकेँ एक बेरमे मात्र रेखाक रूपमे देखैत अछि ई सभ। दोसर कोणसँ दोसर रेखा आ तखन स्वरूपक ज्ञान करैत जाइत अछि। लम्बाइ आ चौड़ाइ सभ कोणसँ बदलत। मुदा वृत्ताकार जीव सेहो होइत अछि। जेना देखू ओ जीव वाम कातमे। एक दोसराकेँ संदेश ओकरा लग जा कए देल जाइत अछि। पैघ समूहमे संदेश प्रसारित होयबामे ढ़ेर समय लागि जाइत अछि”।
“श्रीमान, की ई संभव अछि, जेना हमरा सभक सोझाँ रहलो उत्तर ओ सभ हमरा लोकनिक अस्तित्वसँ अनभिज्ञ अछि तहिना हमरा सभ सेहो कोनो चारि आ बेशी विमीय जीवक अस्तित्वसँ अनभिज्ञ होइ”।
“हँ तकरे चर्चा आ प्रयोग करबाक हेतु हमरा सभ एतए एकत्र भेल छी। अहाँमे सँ चारि गोटे हमरा संग एहि नव कार्यक हेतु आबि सकैत छी। ई योजना कनेक कठिनाह अछि। कतेक साल धरि ई योजना चलत आ परिणाम कहिया जा कए भेटत, तकर कोनो सीमा निर्धारण नहि अछि”।


पाँच टा विद्यार्थी श्वेतकेतु, अपाला, सत्यकाम, रैक्व आ घोषा एहि कार्यक हेतु सहर्ष तैयार भेलाह। धौम्य पाँचू गोटेकेँ अपन योजनामे सम्मिलित कए लेलन्हि।


“चारि बीमीय विश्वमे तीन बीमीय विश्वसँ किछु अन्तर अछि। तीन बीमीय विश्व भेल तीन टा लम्बाइ, चौड़ाइ आ गहराइ मुदा एहिमे समयक एकटा बीम सेहो सम्मिलित अछि। तँ चारि बीमीय विश्वमे आकि पाँच बीमीय विश्वमे समयक एकसँ बेशी बीमक सम्भावना पर सेहो विचार कएल जएत। मुदा पहिने चारि बीमीय विश्व पर हमरा सभ शोध आगाँ बढ़ाएब। एहिमे मूलतः समयक एकटा बीम सेहो रहत आ ताहिसँ बीमक संख्या पाँच भए जायत। समयकेँ मिलाकए चारि बीमक विश्वमे हमरा सभ जीबि रहल छी। जेना वर्ण अन्धतासँ ग्रसित लोककेँ लाल आ हरिअरक अन्तर नहि बुझि पड़ैत छैक ताहि प्रकारसँ हमरा सभ एकटा बेशी बीमक विश्वक कल्पना कए सकैत छी, अप्रत्यक्ष अनुभव सेहो कए सकैत छी”। धौम्य बजलाह।
व्याख्यान समाप्त भेल आ सभ क्यो अपन-अपन प्रकोष्ठमे चलि गेलाह। सैद्धांतिक शोध आ तकर बाद ओकर प्रायोगिक प्रयोगमे सभ गोटे लागि गेलाह।
धरातल पर त्रिभुज खेंचि कए एक सय अस्सी अंशक कोण जोड़ि कए बनएबाक अतिरिक्त्त पृथ्वीकार आकृतिमे खेंचल गेल त्रिभुज जाहि मे प्रत्येक रेखा एक दोसरासँ नब्बे अंशक कोण पर रहैत अछि ।
मुदा एतए रेखा सोझ नहि टेढ़ रहैत अछि। ओहिना समय आ स्थानकेँ टेढ भेला पर एहन संभव भए सकैत अछि जे हमरा सभ प्रकाशक गतिसँ ओहि मार्गे जाइ आ पुनः घुरि आबी। प्रकाश सूर्यक लगसँ जाइत अछि तँ ओकर रस्ता कनेक बदलि जाइत छैक।
श्वेतकेतु आ रैक्व एकटा सिद्धान्त देलन्हि । जेना कठफोरबा काठमे, वृक्षमे खोह बनबैत अछि, तहिना एकटा समय आ स्थानकेँ जोड़एबला खोहक निर्माण शुरू भए गेल। अपाला एकटा ब्रह्माण्डक डोरीक निर्माण कएलन्हि, जकरा बान्हि कए प्रकाश वा ओहूसँ बेशी गतिसँ उड़बाक सम्भावना छल। सत्यकाम एकटा एहन सिद्धान्तक सम्भावना पर कार्य शुरू कएने छलाह, जकर माध्यमसँ तीन टा स्थानिक आ एकटा समयक बीमक अतिरिक्त्त कताक आर बीम छल जे बड़ लघु छल, टेढ छल आ एहि तरहेँ वर्त्तमान विश्व लगभग दस बीमीय छल।
घोषा स्थान समयक माध्यमसँ भूतकालमे पहुँचबासँ पूर्व देशक कानून-विधिमे ई परिवर्त्तन करबाक हेतु कहलन्हि जाहिसँ कोनो वैज्ञानिक भूतकालमे पहुँचि कए अपन वा अपन शत्रुकेँ जन्मसँ पूर्व नहि मारि दए। घोषा विश्वक निर्माणमे भगवानक योगदानक चरचा करैत रहैत छलीह। ज्योँ विश्वक निर्माण भगवान कएलन्हि, एकटा विस्फोट द्वारा आ एकरा सापेक्षता आ अनिश्चितताक सिद्धांतक अन्तर्गत छोड़ि देलन्हि बढ़बाक लेल तँ फेर समयक चाभी तँ हुनके हाथमे छन्हि। जखन ओ चाहताह फेरसँ सभटा शुरू भए जायत। ज्योँ से नहि अछि, तखन समय स्थानक कोनो सीमा, कोनो तट-किनार नहि अछि, तखन तँ ई ब्रह्माण्ड अपने सभ किछु अछि, विश्वदेव । तखन भगवानक कोन स्थान? घोषा सोचैत रहलीह।
आब धौम्यक लेल समय आबि गेल छल। अपन पाँचू विद्यार्थीक सभ सिद्धांतकेँ ओ प्रयोगमे बदलि देलन्हि। आ आब समय आबि गेल। पहरराति।


पुष्पक विमान तैयार भेल स्थान-समयक खोहसँ चलबाक लेल। ब्रह्माण्डीय डोरी बान्हि देल गेल पुष्पक पर। धौम्य सभसँ विदा लेलन्हि। प्रकाशक गतिसँ चलल विमान आ खोहमे स्थान आ समयकेँ टेढ़ करैत आगाँ बढ़ि गेल। ब्रह्माण्डक केन्द्रमे पहुँचि गेलाह धौम्य। पहरराति बीतल छल। आगाँ कारी गह्वर सभ एहि समय आ स्थानकेँ टेढ़ कएल खोहमे चलए बला पुष्पकक सोझाँ अपन सभटा भेद राखि देलक।


भोरुका पहरक पहिने धौम्यक विमान पुनः पृथ्वी पर आबि गेल।

मुदा एतए आबि हुनका ई विश्व किछु बदलल सन लगलन्हि। श्वेतकेतु, अपाला, सत्यकाम, रैक्व आ घोषा क्यो नहि छलाह ओतए। विमानपट्टी सेहो बदलल सन। विश्वमे समय-स्थानक पट्टी सभ भरल पड़ल छल।
“यौ। समय बताऊ कतेक भेल अछि”।
“कोन समय। सोझ बला वा स्थान-समय विस्थापन बला। सोझ बला समय अछि, सन् ३१०० मास...”।
ओ बजिते रहि गेल छल मुदा धौम्य सोचि रहल छलाह जे स्थान-समय विस्थापनक पहररातिमे हजार साल व्यतीत भए गेल। ककरा बतओताह ओ अपन ताकल रहस्य। आकि एतुक्का लोक ओ रहस्य ताकि कए निश्चिन्त तँ नहि भए गेल अछि?


बैसाखीपर जिनगी
“गरमी तातिलक छुट्टीक बाद कॉलेज कहिया खुजतैक”। एकटा विद्यार्थी कॉलेजक एकटा कर्मचारीकेँ पुछने छलाह।
“हमरा कपार पर लिखल छैक आकि नोटिस बोर्ड पर जा कए देखबैक”। ओल सनक बोल बाजल ओ कर्मचारी जकर नाम गुणदेव छल।
“ओहो गुणदेबा भयङ्करे छल। एडमिशन क्लर्क छल, ताहि द्वारे चलतीमे छल”।
“नञि यौ। चपरासी छल। एडमिशन क्लर्क तँ मुँहदुब्बर रहए आ ताहि द्वारे सभ ओकरे एडमिशन क्लर्क बुझैत छलाह”।
रतीश आ फूलक बीचमे ई वार्त्तालाप चलि रहल छल। बहुत दिनका बाद दुनू गोटेकेँ एक दोसरासँ भेँट भेल छलन्हि। स्कूल आ कॉलेजमे संगे-संग दुनू गोटे पढ़ने छलाह। मुदा तकरा बाद सालक साल बीति गेल छल, आ आइ एहि कॉलेजमे अपन-अपन बेटाकेँ अभियान्त्रिकीक प्रवेश परीक्षा दिअएबाक लेल दुनू गोटे आएल छलाह आकि अनायासहि एक-दोसरासँ भेँट भए गेलन्हि। दुनू गोटेक बालक परीक्षा हॉलमे रहथि से दुनू गोटेक लग गप करबाक लेल तीन घण्टाक समय छलन्हि।

करची कलमसँ लिखना लिखैत-लिखैत रतीश आ फूल दुनू गोटेक अक्षर सुन्दर भए गेल छलन्हि। रोशनाइक गोटीकेँ गरम पानिमे दए आ तखन दवातमे दए ओहिमे करची कलम डुबा कए लिखना लिखैत छलाह दुनू गोटे। अपन-अपन गामसँ हाइ स्कूल पहुँचैत जाइ छलाह । विज्ञानक प्रायोगिक कक्षाक कॉपी ओना तँ रतीशक सेहो साफ आ स्पष्ट होइत छलन्हि मुदा फूलक अक्षर फूल सन सुन्दर होइत छलन्हि। मैट्रिकमे रतीशकेँ प्रथम श्रेणी आएल छलन्हि मुदा फूलकेँ द्वितीय श्रेणी अएलन्हि। आइ.एस.सी. केर बाद रतीश तँ इंजीनियरिङमे नाम लिखा लेलन्हि मुदा रतीश पोस्टऑफिसमे किरानीक नोकरी पकड़ि लेने छलाह। आ तकर बाद १८ साल धरि दुनू गोटेकेँ एक दोसरासँ भेँट नहि भेल छलन्हि। नोकरी लगलाक बाद फूलक विवाह भए गेलन्हि।
“विवाहक बाद की भेल। हम तँ विवाहोमे नहि जा सकल छलहुँ। पहिने ओतेक फोन-फानक सेहो प्रचलन नहि छल। ताहि द्वारे सम्पर्क सेहो नहि रहल”।
“नोकरीक बाद छोट भाए आ कनियाँकेँ लए नोकरी पर कोहिमा चल गेलहुँ। छोट भाए एकटा हाथसँ लुल्ह रहथि। दोसर हाथे प्रयाससँ लिखैत छलाह। किछु दिनुका बाद विकलांगक लेल आरक्षणक अंतर्गत हुनका सेहो किरानीमे केन्द्र सरकारक अंतर्गत नोकरी लागि गेलन्हि आ ओ पटना चलि गेलाह। हमर माएकेँ हुनकर विवाहक बड़ सौख छलन्हि। मुदा घटको आबए तखन ने ? से कतेक दिनुका बाद जखन माए हमरा ओहिठाम आएल छलीह तँ एक गोट मैथिल परिवार हमरा ओहिठाम घुमए लेल आएल रहथि। हमर माएक वयसक एक गोट महिला छलीह जे अपन पुतोहुक संग आएल छलीह। गपे-शपमे हुनका पता चलि गेलन्हि जे एहि घरमे एकटा विकलांग सरकारी नोकरी बला विवाहयोग्य बालक छैक। से ओ हठात् अपन पुत्रीक विवाहक प्रस्ताव सोझाँ आनि रखलन्हि।
-हमर माय बजलीह, “बहिनदाइ। अछि तँ हमर बेटा सरकारी नोकरी करैत मुदा ई पहिनहिये कहि देनाइ ठीक बुझैत छी जे बादमे अहाँ से नहि कही। शील-स्वभाव सभमे कोनो कमी नहि छैक मुदा नहि जानि किएक भगवान एक हाथसँ लुल्ह कए देलखिन्ह। गाममे लोक सभ लुल्हा-लुल्हा कहि कए सोर करैत छैक। शुरूमे तँ हमरा बरदास्त नहि होइत छल, एहि गप पर झगड़ा भए जाइत छल। मुदा बादमे हमहू ई सोचि धैर्य धए लेलहुँ जे जखन भगवाने नजरि घुमा लेलन्हि तँ ककरा की कहबैक”।
“से तँ हमरा गप-शपमे बुझबामे आबि गेल छल। आ ताहि द्वारे ई कथा करबाक साहसो भेल। अहाँ सँ की कहू। हमर बेटी पेदार अछि। पैर छोट-पैघ छैक। से सौँसे तेहल्लाकेँ बुझल छैक। इलाकामे ककरो लग कथाक लेल जाएब सेहो हियाउ नहि होइत अछि। भगवान छथिन्ह, नञि नैहरे आ नहिये सासुरमे क्यो पेदार भेल छल। भगवान भल करथिन्ह, देखबैक हमर बुचियाक बच्चा-सभ सर्वगुण सम्पन्न होएत”।
-ई गप सुनिते हमर माए तँ सन्न दए रहि गेलीह। कनेक काल धरि गुम-सुम रहलाक बाद कहलन्हि जे सोचि कए खबरि पठाएब। घरमे किछु दिन धरि एहि गप पर चरचा भेल आ आगाँ जा कए माएक विचार भेलन्हि जे विवाह भए जएबाक चाही।
-विवाहक उपरान्त कताक बेर बच्चा खराप भए जाइत छल। तीन चारि बेर एहिना भेल। हमर भाए तँ मोनकेँ बुझा लेलन्हि मुदा भाबहु विक्षिप्त जेकाँ भए गेलीह। राति-दिन घरमे उठा-पटकक अबाज पड़ोसी सभ सुनैत छल। मुदा आस्ते-आस्ते ओहो मोनकेँ बहटारि लेलन्हि। मुदा दस बरखक बाद भगवानक कृपा जे एकटा बच्चा भेलन्हि, सभ अंग दुरुस्त। मुदा एक दिन बच्चाकेँ तेल-कूड़ लगा कए बाहर हबामे देलखिन्ह भाबहु। भाए कहबो कएलन्हि जे बच्चाकेँ भीतर कए लिअ मुदा होनी जे कहैत छैक। साँझसँ बच्चाकेँ हुकहुक्की लागि गेलैक। अगिला दिन भोर धरि ओ एहि जगकेँ छोड़ि चलि गेल। हमरो पदस्थापन ताधरि पटने भए गेल छल आ सभ गोटे संगे रहैत छलहुँ।
-मुदा भगवानोक लीला। जखन सभ आस छोड़ि देने छल, तखन फेर एकटा बालक भेलन्हि छोट भाँयकेँ। एहि बेर हुनकर सासु सेहो बच्चाक टहल-टिकोर करबाक लेल आबि गेलखिन्ह। आब तँ बेश टल्हगर भए गेल अछि, हृष्ट-पुष्ट कोनो पैअ नहि छैक”। फूल बजिते रहलाह।
रतीश कहलन्हि-“अहाँ एतेक परेशानीमे रहलहुँ एतेक दिन धरि। मुदा अहाँकेँ कैकटा बच्चा अछि, की करए जाइत छथि से नहि कहलहुँ”।
“एकेटा छथि से परीक्षा हॉलमे छथि, कनेक कालमे देखिए लेबन्हि। मुदा अहाँ अपन बच्चाकेँ परीक्षा दिआबए किएक आयल छी। आइ.एस.सी. पास कएने छथि, बेश चेतनगर भए गेल होएताह”। फूल भाए कहलन्हि।
“मुदा अहूँ तँ आएल छी...”।
रतीश बजैत चुप भए गेलाह। कारण एक गोट बालक वैशाखी पर चलि फूलक लग आबि ठाढ़ भए गेल छल। परीक्षा खतम भए गेल छल आ रतीशकेँ ई बुझबामे बाङठ नहि रहलन्हि जे ई बालक फूलक छथिन्ह। कालक विचित्र गति, भाए-भाबहु विकलांग छन्हि मुदा तत्ता-सिहर देखेलाक बादो भगवान हृष्ट-पुष्ट नेना देलखिन्ह, आ फूल सन लिखनहार फूल भाइक लेल विधनाक कलम नहि चललन्हि। मुदा फूल भाए शांत, धैर्य धए बेटासँ परीक्षाक विषयमे पूछि रहल छलाह।

सर्वशिक्षा अभियान
“हे हम डोमाकेँ पढ़ा लिखा कए किछु बनबए चाहैत छी” । बुधन पासवान बाजल । चण्डीगढ़मे ओ रिक्शा चलबैत छथि । आब गाममे खेती बारीमे किछु नहि बचलैक ।
छोटका भाए सभ जनमिते मरि जाइत रहए।
से बुधनक एकटा छोटका भाएकेँ माए-बाप जनमलाक बाद डोमक हाथसँ बेचलन्हि आ फेर पाइ दऽ कए किनलन्हि । ई सभटा काज ओना तँ सांकेतिक रूपेँ भेल मुदा एहिसँ ग्रह कटित भऽ गेलैक। आ छोटका भाए जे बुधन पासवानसँ १२ बरिख छोट रहन्हि बचि गेलाह ।
आ ताहि द्वारे ओकरा सभ डोमा कहि सोर करए लागल ।
बुधन अपन बाप-माएक संग हरवाही करथि मुदा भाएकेँ पढ़ेबाक बड्ड लालसा रहन्हि ।
“सुनैत छिअए जे हमरा सभमे कनिओ पढ़ि-लिखि लेलासँ नोकरी भेटि जाइत छैक। एकरा जरूर पढ़ाएब, चाहे ताहि लेल पेट काटए पड़ए आकि भीख माँगय पड़ए”।

भीख तँ नहि माँगलन्हि मुदा चण्डीगढ़क रस्ता धेलन्हि बुधन।

भरि दिन रिक्सा चलाबथि आ साँझमे जखन दोसर संगी-साथी सभ देसी ठेकामे अपन ठेही दूर करबाक लेल जाथि तखन दस तरहक गप सुना कए बहन्ना बना कए बुधन अपन घर दिस घुमि जाथि।
“की रे मीता। बामा-दहिना करै छेँ, निन्द नहि होइ छौ”।
“नञि रौ भाइ। भरि दिन तँ बाइ मे रिक्सा घिचैत रहैत छी मुदा साँझ होइते अंगक पोर-पोर दुखाए लगै-ए”।
“रौ भाइ। कहैत छियौक जे ठेकापर चल तँ दस बहन्ना बना कए घुरि जाइ छिहीँ। देख हमरा आउर केँ, पीबि कए फोँफ कटैत रहैत छी। एक्के निन्नमे भोर आ सभ ठेही खतम”।
कोरइलाक सभ गप सुनि कऽ गुमकी लाधि दैत छथि बुधन। मोनमे ईहो होइत छन्हि जे किंसाइत डोमा पढ़ए आकि नहि पढ़ए।
तखन जे आइ सभ गप पेटसँ निकालि देतथि तँ यैह सभ संगी-साथी सभ काल्हि भेने अही गपकेँ लऽ कऽ हँसी करतन्हि। दू चारि-टा पाइ जे बचत तकरा गामपर पठाएब। आ ताहिसँ डोमा पढ़त।

मुदा गाममे जे स्कूल रहए ओतय किओ टा दलित आकि गरीबक बच्चा नहि पढ़ैत रहथि।

सरकार एकटा योजना चलेलक, दलितक बच्चा सभकेँ बिना पाइ लेने किताब बाँटबाक । किताब लेबाक लेल घर-घर जा कए यादव जी मास्टर साहेब बच्चा सभकेँ स्कूल बजेलन्हि। नाम लिखलन्हि, बिना फीसक, मासूलक । सभ हफता-दस दिन अएबो कएल स्कूल। दुसधटोलीसँ, चमरटोलीसँ, धोबिया टोलीसँ सभ। डोमा सेहो। सभकेँ किताब भेटलैक आ सभ सप्ताह-दस दिनक बाद निपत्ता भऽ जाइ गेल । देखा –देखी कमरटोली आ हजामटोलीक बच्चा सभ सेहो अएलाह पढ़ए, किताब मँगनीमे भेटबाक लोभे । मुदा ओतए ई कहल गेल जे अहाँ सभ पैघ जातिक छी, मुफ्त किताब योजना अहाँ सन धनिकक लेल नहि छैक ।

“बाबू ई काटए बला गप छैक की, छोट-छोटे होइत छैक आ पैघ-पैघे । स्टेटक आइ धरिक सभसँ नीक चीफ-मिनिस्टर कर्पूरी ठाकुर भेल छैक, की नञि छै हौ असीन झा” । जयराम ठाकुर अपन खोपड़ीक टूटल चारसँ हुलकैत सूर्यक प्रकाशक आसनीपर असीन जीक केश कटैत बजलाह।
“से तँ बाबू ठीके”। असीन बजलाह ।

से गाममे फेर ब्राहाण आ भूमिहारके छोड़ि आर क्यो स्कूलमे पढ़एवला नहि बचल । अदहरमे सभटा किताब ई लोकनि किनैत गेलाह ।
“हे अदहरसँ बेसीमे नहि देब, मानलहुँ किताब नव अछि, मुदा अहाँ सभकेँ तँ मँगनीयेमे ने भेटल अछि”।

आ दुसध टोली, चमरटोली आ धोबिया टोलीसँ सभटा किताब सहटि कऽ निकलि गेल ।

आ पता नहि डोमा पढ़लक आकि नहि।

जातिवादी मराठी
“ऐँ यौ ई की देखैत छी, ऑफिसमे अफसर सेहो मिथिलाक आ बिहारक
आ रिक्शाबला, खेनाइ बनबए बला सेहो सभ मिथिलाक आ बिहारक । से कोन गप भेल”।
पुणे मे सिंहजी केँ एक गोट मराठी सज्जन पुछलखिन्ह।
बात सेहो ठीक रहए मुदा बाहरी लोककेँ बुझबामे नहि आबए ।
सिंह साहेब भारतीय पुलिस सेवा मे रहथि आ हुनकर सहोदर भिखना-पहाड़ीमे प्रिंटिंग प्रेसमे क-ट सभ जोड़ैत छलाह, से हुनका कनेको अनसोहाँत नहि लागलन्हि। मैथिली साहित्यमे देखैत आएल छथि मात्र मैथिल ब्राहाण आ कर्ण कायस्थक लेखनीकेँ चमकैत।
रिक्शाबला तँ दरभंगाक होए आकि कटिहारक,
खेनाइ बनबएबला झौआ रहबे टा ने करैत अछि।
ई मराठी सभकेँ पता नहि किएक अनसोहाँत लगैत छैक।
बड्ड जातिवादी सभ अछि ई मराठी सभ।

थेथर मनुक्ख
दू दिनसँ परबा असगरे बैसल रहए । ओकर कनियाँ उढ़रि कए कतहु चलि गैलैक । बच्चा सभ कतेको बेर ओकर खोपड़ीमे पानि आ दाना दऽ आएल रहए। मुदा आइ भोरे ओ खोपड़ी उजारि कतहु चलि गेल”।
“किए यै नानी । ओहो किएक नहि दोसर बियाह कऽ लेलक । बेशी प्रेम करैत रहए कनियाँसँ”।
“अहाँ नेना छी । ई कोनो थेथर मनुक्ख थोड़े छी जे कनियाँ मरए, माय-बाप मरए, बेटा-पुतोहु मरए, सर-समाज मरए, चारि दिन मुँह लटकाएत आ पाँचम दिनसँ फेर थेथर मऽ जएत “।

बहुपत्नी विवाह आ हिजड़ा
“मरि गेलि बेचारी “। गौआँ सभ फलना बाबूक तेसर कनिआँक मुइलापर कहलन्हि ।
“फलना बाबू तेसर कनियाँक गरदनि काटि लेलन्हि”। एक गोटे कहलान्हि।
“से ठीके कहैत छी । पहिल कनियाँमे बच्चा नहि भेलैक तँ दोसर बियाह कएलक । मुदा जखन दोसरोमे बच्चा नहि भेलैक तँ बुझबाक चाही छलए ने”।- दोसर गोटे कहलन्हि ।
“हँ आ उनटे तेसर कनियाँकेँ कहैत रहथि जे भातिज सभकेँ नहि मानैत छिऐक तेँ भगवान बच्चा नहि देलन्हि । बुझू”?-तेसर गोटे कहलन्हि ।
“हिजड़ा सार”।- चारिम गोटे सभा समाप्त करैत बाजल ।
मुदा चारि गोटेक ई महा-सम्मेलन एहि गपपर सहमति मे छल जे पहिल दू टा बियाह करब उचित रहए।

स्त्री-बेटी
“बाबूक संगे खाएब”।-बुचिया बाजलि ।
“हे आब तूँ छोट नहि छेँ, एम्हर बैस”। माए कहलन्हि ।
फेर भाए सभ खेनाइ खेलक आ आब बुचिया आ बुचिया माएक बेर आएल ।
तरकारी सठि जेकाँ गेल रहए, दूध तँ बाबू आ भाएकेँ मात्र भेटलैक ।
माए बुचियाकेँ सठल जेकाँ तरकारी लोहियामे सँ छोलनीसँ जेना –तेना निकालि कए देलन्हि आ अपने भात आ नून –तेल लए बैसलीह। दूधक बर्तनसँ दाढ़ी खखोड़ि कए बादमे बुचिया खेलक।
- ई खिस्सा सुनबैत मनोहर बजलाह जे हमरा सभ आब ई कऽ सकैत छी की ?
पहिने खेनाइ-पिनाइसँ लऽ कऽ पढ़नाइ-लिखनाइ धरि बेटीक संग अन्याय होइत रहए। अपाला-गार्गी-मैत्रेयीक समय तँ आब जा कऽ फेरसँ आएल अछि ।

बिआह आ गोरलगाइ
जमाय पएर छूबि कए प्रणाम कएलन्हि तँ ससुर सए टका निकालि एक टाकाक नोटक सिक्काक लेल कनियाँकेँ सोर केलन्हि।
खूब खर्च-बर्च कएने छलाह बेटीक बियाहमे पाइ अलग गनने छलाह आ नगरक चारि कठ्टा जमीन सेहो बेटीक नामे लिखि देने छलाह।
“नञि बाबूजी। ई गोर-लगाइक कोन जरूरी छैक”?
तावत कनियाँ आबि गेल रहथिन्ह, एक टकाक सिक्का लऽ कए।
एक सए एक टाका जमायक हाथमे रखैत ससुर महराज बजलाह- –
“राखू-राखू । ई तँ पहिनहियो ने सोचितियैक”।

प्रतिभा
मसूरीमे आइ.ए.एस. आ आइ. पी. एस. प्रोबेशनर सभक दारु पार्टी चलि रहल छल ।
“हम सभ एतेक तेज छी एक सय प्रश्नक सेट बना कऽ तैयारी कएलहुँ तखन जा कए सफल भेलहुँ । के अछि हमरासँ बेशी तेज?”।
“रौ दिनेसबा । सतमामे तूँ पास नहि भेलँह, अठमामे सेहो एक बेरे पास नहि भेलँह । दसमामे द्वितीय श्रेणी भेलापर तोरा स्कूलसँ निकालि देलकऊ। प्रश्नक पैटर्नक हम आ तूँ प्रैक्टिस केलहुँ आ सफल भेलहुँ तँ एहिमे तेजी केर कोन बात आएल”।

जाति-पाति
हैदराबाद पुलिस एकेडमीमे दारूक पार्टी चलि रहल छल ।
“क्यो किछु नहि बाजत, बस हमही टा बाजब”।
छाती पिटैत- “राजपूतक छाती छी ई, क्यो किछु नहि बाज “।
“:भाइ यैह तँ अंतर छैक, दुनू गोटे आइ.पी.एस. छी, दुनू गोटे पीने छी। मुदा की हम ई कहि सकैत छी छाती पीटि कए- जे हम डोम छी, क्यो किछु नहि बाज”!:

अनुकम्पाक नोकरी
“बड्ड दर्द भऽ रहल अछि बाबू, आब बर्दास्त नहि भऽ रहल अछि” ।
पता नहि कोन घाव रहैक । पुकार कुहरि रहल छथि । पिता स्वतंत्रता सेनानी रहथि, जखन डाक्टर आ कम्पाउन्डर मना कऽ देलक घाव छुबएसँ तँ अपने हाथे सेवा कऽ रहल छथि । उजरा पाउडरकेँ नारिकेरक तेलमे मिला कऽ घावक खपलौइया हटा कऽ ओहिमे लगाबथि। पीजकेँ पोछथि। बाप आ छोट भाए दुनू सेवामे लागल रहथि ।
परूकाँ प्रथम श्रेणीमे उत्तीर्ण भेल छलखिन्ह पैघ बेटा, सत्यनारायण भगवानक पूजा भेल रहए।
बूढ़ बापक पैघ आश रहथि बड़का बेटा।
छोटका बेटा कोनो तेहन तेजगर नहि रहथिन।
मुदा रोग एहन रहए जे एक दिन बड़का बेटाक प्राण लए लेलक।
अंग्रेजसँ लड़ैत खुशी-खुशी जेल गेल रहथि मुदा तखन युवा रहथि। बुढ़ारीमे ई शोक हुनका तोड़ि देलकन्हि । गुमशुम आ अपनेमे मगन रहए लगलाह । स्वतत्रता सेनानी पेंशनसँ घर चलाबथि । हँ छोटका बेटा पैघ भाएक सटिर्फिकेट लऽ कलकता गेलाह आ ओहि सटिर्फिकेटक आधारपर हुनका एकटा प्राइवेट कम्पनीमे नीक नोकरी भेटि गेलन्हि। माने मात्र नाम बदलि गेलन्हि।
लोककेँ बाप मरलापर नोकरी भेटैत छैक, हुनका भाएक मरलापर भेटलन्हि ।

नूतन मीडिआ
नगरमे डकैतीक घटना भेल ।
नूतन मीडिया अपन-अपन चैनलमे -सर्वप्रथम ओकरे चैनलपर एकर सूचना देल जा रहल अछि- ई ब्यौरा दैत, दू-दिनमे एकोटा गिरफतारी नहि होएबाक आ ताहि द्वारे पुलिसक अक्षमताक चर्च करैत गेल।
पुलिस हेडक्वार्टरमे बैठकी भेल । सभ टी.वी. चैनल कहि रहल छल जे चारि गोटे मिलि कए डकैती केलन्हि मुदा एखन धरि एको गोटेक गिरफतारी नहि भेल अछि। एनकाउन्टर स्पेशलिस्ट बजाओल गेलाह। जेना सभ बेर होइत रहए एहि बेर सेहो ओ एक गोटेँ पकड़ि कए अनलन्हि। चारि डाँग पड़बाक देरी छल आकि ओ अपन डकैत होएबाक गप स्वीकार कए लेलक। फेर एनकाउन्टर स्पेशलिस्टक संग ऑफिसर लोकनि कैमराक सोझाँ फोटो खिचबेलन्हि। ओ डकैत अपन डकैत होएबाक गप सेहो स्वीकार कएलक।
चारि दिन आर बीतल। सभ दिन तरह-तरह सँ ओहि कथित डकैतकेँ पीटल जाइत रहल,
-“बता अपन तीन संगीक नाम जकरा संगे डकैती कएने छलह”।
-“सरकार चारिए डाँगमे अपन डकैत होएबाक गप स्वीकार कए लेलहुँ, हम डकैत रहितहुँ तँ ई करितहुँ ? मुदा आर तीनटा संगीक नाम कतए सँ आनू आ ककरा फुसियाहींकेँ फँसाबी”।
सप्ताह भरिक बाद मीडिया एकटा बम विस्फोटक अन्वेषणमे बाँझि गेल । मुख्य डकैत तँ पकड़ाइये ने गेल से आब डकैतीक कॉवरेज दर्शक नहि ने देखए चाहैत छथि!
पब्लिक डिमान्ड नहि छैक से ओहि डकैतकेँ बेल भेटलैक आकि नहि से कोनो समाचार नहि आएल।

मिथिलाक उद्योग
गाममे चौधरीजीक बड्ड रूतबा, डरे सभ सर्द रहैत छल । ककर दीन अछि जे हुनकर गम्हरायल धान काटि लेत आकि ... ।
ओ एकटा बस खोललन्हि-
“दरभंगासँ गाम धरि चलत । सेकेंड हैंडमे भेटल अछि । पुरनका मालिकक लाइसेंस काज देत। संगमे बसक पुरनका मालिक तीन मासक लेल अपन ड्राइवर आ खलासी सेहो देलक अछि, तकर बाद अपन ताकि लेब”।
चौधरीजी मन्दिरपर बसक पूजा करैत काल गौआँ सभ़सँ बजलाह ।

“सुनैत छिऐक बस-स्टैण्डमे बड़ बदमस्ती करैत जाइत छैक”- एक गोटे गौआँ बजलाह
“धुर, चौधरीजीक बस आ आदमीकेँ के छुबाक साहस करत”? दोसर गोटे प्रसाद लैत बजलाह।

बसक रूट आकि रस्ता यात्रीगणक लेल सुभितगर रहैक से ओहि गाड़ीमे पैसेन्जर भरि जाइत रहए। दोसर बसबला सभ दबंग सभ।
शाहीजी आ मिश्राजीक स्टाफ सभ बड़ सञ्जत! से चौधरीजीक स्टाफकेँ गरगोटिया दऽ बस स्टैण्ड सँ बाहर निकालि देलकन्हि।

पोखरिक महारपरसँ चौधरीजीक बस खुजए लागल तँ ओतहु यात्री पहुँचए लगलाह।

आब तँ बस-स्टैण्डक दादा सभकेँ बड्ड तामस उठलन्हि ।
दुनु ड्राइवर आ खलासीकेँ पुष्ट पीटल गेल आ ईहो कहल गेल जे फेर एहि रूटपर चलताह तँ बसक एक्सीडेन्ट करबा देल जएतन्हि। शाही आ मिश्रा जीक तँ पचासो टा गाड़ी छन्हि एकटा थानामे एक्सीडेन्टक बाद पड़ले रहत तँ की ?

गामक रोआब –दाब बला कौधरीजी बस-स्टेण्डक दादा सभक सोझाँ जेना बकड़ी बनि गेलाह।

गाममे मन्दिरपर गाड़ी ठाढ़ छन्हि, ओहि पर कदीमाक लत्ती चढ़ि गेल अछि पैघ-पैघ कदीमासँ बस झपा गेल अछि। खूब फड़ल छैक।
गौआँसभ हँसीमे कहि रहल छथि-
“चौधरीजीक बसक पाइ तँ एहि बेर कदीमा बेचिये कऽ उप्पर भऽ जएतन्हि”।
“दरभंगाक इन्डस्ट्रीयल स्टेटमे सेहो फैक्ट्री सभ एहिना बन्द अछि आ ओकर देबाल सभपर एहिना तर-तीमनक लत्ती सभ भरल छैक”- दोसर गौआँ बाजल।

मिथिलाक उद्योग-२
मिथिलाक बोनमे रहनिहार जीव-जन्तु सभ आपसमे विचार कएलक- –
“अपन क्षेत्रक दादा सभ उद्योगक विनाश कएने अछि, ओतुक्का भीरू लोक सभ उद्योग लगेबासँ परहेज करैत अछि”- गीदड़ बाजल।
“तखन अपनहि सभ किएक नहि फैक्टरी खोलैत छी, कोन दादाक मजाल जे हमरा सभ लग आओत”।-बाघ कड़कल।

प्रस्ताव पास भेल जे आब जंगलमे फैक्ट्री खुजत आ नगर जा कए उद्योग विभागसँ एकर पंजीकरण करबाओल जएत। ओतए भीरू मैथिल ब्राह्मण आ कर्ण कायस्थ सभक राज अछि, ओ सभ बड्ड ओस्ताज होइत अछि।
गीदड़, बानर, लोमड़ि, नीलगाय सभक संग गदहा सेहो पंजीकरण लेल अपन सेवा देबाक लेल अगू बढ़लाह। सभसँ पहिने लोमड़िकेँ मौका भेटल कारण ओ सेहो जंगलक ओस्ताज अछि।

किछु दुनुका बाद दौग-बरहा केलाक बाद ओ हारि मानि लेलक।

“यौ बाघ महाराज। बड्ड कोन-कोन तरहक दस्तावेज मँगैत अछि नहि भऽ सकत हमरा बुते”।

फेर एक एक कए सभ जाइत गेलाह आ घुरि कए अबैत गेलाह ।
गदहा कहैत रहल जे एक मौका हमरो देल जाए ।
मुदा सभ सोचथि जे बुझू, एहेन पेंचीला सभ विफल भऽ आबि गेलाह मुदा फैक्टरीक पंजीकरण नहि करबाए सकलाह आ ई गदहा जे मूर्खताक लेल आ बोझ बहबाक लेल प्रसिद्ध अछि, की कऽ सकत ?

“ठीक छैक”- अन्तमे हारि कए बाघ कहलन्हि- –
“जाउ अहूँ देखि आउ एक बेर”।

मुदा ई की ? साँझ होइत देरी गदहा महाराज जे छलाह से फैक्ट्रीक पंजीकरण प्रमाणपत्र लऽ सोझाँ हाजिर भऽ गेलाह।

बाघ पुछलन्हि- –“औ जी गदहा महाराज ! एतेक कलामी जन्तु सभ जतए विफल भऽ गेलथि ओतए अहाँक सफलताक मंत्र की”?
गदहा महाराज उत्तर देलन्हि-
“महाराज एकर मंत्र अछि जातिवाद आ भाइ-भतीजावाद। उद्योग विभागमे हमर सभ सरे-सम्बन्धी लोकनि छथि ने”!

बाढ़ि, भूख आ प्रवास
एहि बेरक बाढ़ि पछिला जेकाँ सन नहि । सभटा सुड्डाह कऽ देलक आगियोसँ जल्दी। खेत पथारमे रेत आ बालुमे खाली अल्हुआक खेती। दुनू साँझ पप्पू भाइ अल्हुआ खाइत अकच्छ भऽ गेल छथि। वैदिक थिकाह, मुदा एहि कोसिकन्हामे ...

मुदा देखू भाग्य!
हरिद्वार सँ भातिजक चिठ्टी अबैत अछि- “आबि जाऊ काका, एतए वैदिक लोकनिक बड्ड पूछि अछि। भरि दिन हस्त-सन्चालन आ उदात्त, अनुदात्त आ स्वरित स्वरक मेलसँ वेदक पाठ करू आ साँझमे नीक – निकुइत मिष्टान्न, खीर-पूरी खाऊ”।
वैदिक जी ट्रेन धेलन्हि आ पहुँचि गेलाह हरिद्वार । ओतए पहुँचि स्नान-ध्यान कऽ भरि दिन कंठ फाड़ि आ हाथ घुमाए वैदिक मंत्रक पाठ केलन्हि । साँझमे मनसूबा बान्हि खेनाइपर बैसलाह जे आब बड्ड दिनुका बाद खीर-पूड़ी खएबाक अवसर भेटत।
मुदा एम्हर हिनका हरिद्वार पहुँचबासँ पहिनहि दोसर पंडित लोकनिमे विचार-विमर्श भेल कारण ओ लोकनि खीर- पूड़ी खाइत-खाइत अकच्छ भऽ गेल छलाह। से सर्वसम्मतिसँ विचार कएल गेल जे आइसँ किछु दिनक लेल खेनाइक मेन्यू बदलल जाए। विचार भेल जे आइसँ वेदपाठक बाद अल्हुआ आ दूध किछु दिन धरि देल जाए।
वैदिक जी खाइ लेल मनसूबा बन्हने बैसल छलाह जे आइ जे खेनाइ अएत तँ ओहि खेनाइकेँ हिस्सक छोड़ा देबैक।
मुदा तखने वज्रपात भेल, –सोझाँ अल्हुआ महाराज विद्यमान ।
वैदिक जी हाथ जोड़ैत अल्हुआ महराजसँ बजलाह-
“सरकार हम तँ ट्रेनसँ आएल छी मुदा अहाँ कोन सवारीसँ अएलहुँ जे हमरासँ पहिनहिसँ विराजमान छी ।“

नव-सामन्त
संगीक छोट भाए गाममे रहथि। गाममे मारि-पीट करैत छलाह से हुनका दिल्ली बजाओल गेल । एतहु गप-गप पर झगड़ा करए लागथि।
हमरा सोझेँमे एक गोटेकेँ धमकी दऽ रहल छलाह-
“दस मिनटमे पहुँचि जाह नहि तँ गोली मारि देबह। बीस किलोमीटर दूरमे छह आकि चालीस किलोमीटर दूर हमरा ओहिसँ कोनो मतलब नहि अछि”।
हम हुनका विषयमे सुनिते रही मुदा आइ देखलहुँ ।
हमर संगी बुझबए लगलखिन्ह- “ठीक छैक, हम नहि कहैत छी जे नहि मारियौक। मुदा एकटा गप कहू जे दिल्लीमे बीस किलोमीटर दूरसँ आबएमे तीन मिनट प्रति किलोमीटरक हिसाबसँ साठि मिनट लगतैक से ओ दस मिनटमे कोना आओत”?
विद्यार्थी भीतर चलि गेलाह। हम संगीकेँ पुछलियन्हि-
“विद्यार्थी तँ कतहु गुड़गाँवमे नोकरी ने करैत रहथि” ?
“हँ एक ठाम दस हजारक नोकरी धरेने रहियन्हि मुदा छोड़ि देलन्हि। कहलन्हि जे हमर लेबलक पुरान सामन्त जोकर ई नोकरी नहि। आब हिनकर लेबल कहैत छी- कताक प्रयास कएलहुँ जे मैट्रिक पास भए जाथि मुदा मध्यमोसँ पास नहि कए सकलाह”।

रकटल छलहुँ कोहबर लय
“हम यादवजीक पत्नी बाजि रहल छी, ओ छथि की?” – फोनपर एकटा गम्भीर स्वर आएल।
यादव जी एखने अपन प्रेमिकाक संग बाहर निकलल रहथि ।
अरिन्दम बाजल- “कोनो काजसँ बाहर गेल छथि, एखने दू मिनट पहिने। हुनकर मोबाइलपर फोन कऽ लिअ”।
“मोबाइल नॉन-रीचेबल छन्हि, कोनो ऑफिसक काजसँ गेल छथि की?”
अरिन्दमकेँ आब किछु नहि फुरएलैक-
“नहि, से तँ लागैए जे कोनो व्यक्तिगते काज छन्हि, कारण ऑफिसक काज रहितए तँ हमरा बुझल रहितए”।
ओम्हरसँ फोन राखि देल गेल। अरिन्दमकेँ मोन पड़लैक जे यादवजी जाइसँ पहिने मोबाइल बिना ऑफ कएने बैटरी निकालि आ लगा कऽ मोबाइल बन्द कएने छलाह। स्वाइत नॉन-रीचेबल आबि रहल अछि।

अरिन्दम लैपटापपर एक्सेल डॉक्युमेन्टमे ओझराएल हिसाब-किताब ठीक-ठाक करए लगलाह।
किछु दिन पहिने एहिना एकटा स्वर फोनपर आएल रहैक- “यादवजी छथि की?”
“अहाँ के”?
“हम हुनकर पत्नी”। अरिन्दम फोन यादवजीकेँ देने रहए आ यादवजी खूब आह्लादसँ पत्नीसँ गप कएने छलाह। ओहि दिन बॉसक पत्नीक अबाज ओतेक गम्भीर नहि लागल रहैक अरिन्दमकेँ। चुलबुलिया सन अबाज रहैक। होइत छैक। लोकक मोन क्षणे-क्षणे तँ बदलैत रहैत छैक।


अरिन्दम अपन घरक शान्त-प्रशान्त जीवन मे रहैत अछि।
कारसँ नित्य अबैत काल रेडलाइटपर हिजड़ा-सभ सभ दिने भेँट होइत छैक। पुरनका कारमे ए.सी. नहि रहैक, से शीसा खसेने रहैत छल। ढेर गप-शप बजैत ओ सभ हाथ-मुँह चमका कऽ की-की सभ सुना दैत रहए।
मुदा आब ओ एहिसँ बचबाक लेल शीसा खसबिते नहि अछि। ओ सभ शीसाक बाहरसँ मुँह पटपटबैत किछु कालमे दोसर गाड़ी दिस बढ़ि जाइत अछि। परसू एकटा बालगोविना तमसा कऽ हाथक झुटकासँ ओकर कारमे स्क्रैच लगा देलकैक। पाँच टकाक लेबाक बदलामे ढेर नुकसान कऽ देलकैक। धुर। के करबैत गऽ डेंटिंग-पेंटिंग, स्क्रैच भने रहत किछु दिन। दिल्लीमे जे एहन चेंछमे डेंटिग-पेंटिंग कराबए लागी तँ सभ दिने करबए पड़त।

मुदा ई नवका बॉस जे आएल छैक से अरिन्दमक मस्तिष्कमे एकटा भूकम्प आनि देने छैक। रस्तोमे की सभ ने सोचाइत रहैत छैक।


“काल्हि अहाँक पत्नीक फोन आएल रहन्हि”।
“अच्छा, कखन?”- यादवजी बजलाह।
“अहाँक गेलाक किछुए कालक बाद”।
कोनो जवाब बिनु देने यादवजी फोन मिलेलन्हि-
“ऑफिसमे किएक फोन केलहुँ......मोबाइल बेसमेन्टमे नॉन-रीचेबल रहैत छैक तँ किछु काल प्रतीक्षा कएल नहि भेल...”। खटाकसँ फोन रिसीवरपर बजड़ल।


अरिन्दम लैपटॉपसँ मुँह उठा कऽ देखलक। केहन परिवार छैक? साँझमे गामपर पहुँचल होएत तँ पत्नीसँ गपो नहि भेलैक की ? गपक फरिछाहटि ऑफिसेसँ फोन कए कऽ रहल अछि।

अरिन्दम डेस्कटॉप आ वाशिंग मशीन दुनुक हेल्पलाइनक नम्बरपर फोन मिलेलक, गामपर फुरसति कहाँ भेटैत छैक। गामपर दुनू चीज एके बेर खराप भऽ गेलैक। घरसँ ऑफिस निकलैत काल कनियाँ वाशिंग मशीनक खराब हेबाक तँ बेटा अपन कम्प्युटरपर गेम कैक दिनसँ खरापीक चलते बन्द रहबाक विषयमे कहने रहैक।
जखने दुनू ठाम कम्प्लेन कऽ कए फोन राखलक आकि फोनक घंटी बजलैक-
“कतेक कालसँ फोन इनगेज रखने छी। गप सुनू। ककरो फोन आबए तँ कहबैक जे यादवजीक स्थानान्तरण भऽ गेलन्हि”। बॉस बाहर कतहुसँ फोन कएने रहथिन्ह आ एके सुरमे सभटा बाजि गेल छलाह।

काल्हि साँझमे पत्नीकेँ छोड़ए लेल यादवजी गेल रहथि आ एम्हर हुनकर प्रेमिकाक फोन आएल रहन्हि ऑफिसमे। ओ कोनो होटलक नाम बाजल रहए आ कहने रहए जे यादवजीकेँ होटलक नाम बता देबन्हि ओ बुझि जएताह। अरिन्दम ई मैसेज यादवजीकेँ तखने दऽ देने रहथि। आब आइ यादवजी नहि जानि कोन कारणसँ एखन धरि ऑफिस नहि आएल अछि। कनियाँ तँ गेलैक नैहर आ तखन आब ककर फोन अएतैक जकरा कहबैक जे एकर स्थानान्तरण भऽ गेलैक।
फोन तँ नहि आएल मुदा ओ आयलि रहए, बॉसक प्रेमिका। आइ ओ अपन नामो बतेलक, बड्ड नीक नाम रहैक ओकर- पारुल।
“यादवजी कतए गेलथि”।
“हुनकर स्थानान्तरण भऽ गेलन्हि”। अरिन्दम बाजल।
“अच्छा”। ई कहि ओ चलि गेलि।

“अहाँकेँ फोनपर आएल प्रश्नक उत्तरमे ई कहबाक रहए, सोझाँ आएल लोककेँ नहि”। अरिन्दमक सहकर्मी रोहिणी हँसैत बाजलि।
“हम कनेक भाँसि गेल छी। आब आइसँ ऑफिसक फोन रिसीव करबाक भार अहाँपर”। अरिन्दमक एकटा भार रोहिणीपर दैत बाजल।

रोहिणी एहि गपकेँ हँसीमे लेने रहए मुदा अरिन्दम तखनेसँ सभटा फोन रिसीव केनाइ छोड़ि देलक।

एहन नहि रहए जे बॉस कार्यालय नहि अबैत छल। जखन धरि ओ कार्यालयमे रहैत छल बेशी काल अपने फोन रिसीव करैत रहए, काजमे सेहो फुर्तिगर रहए।
“एकटा गप बुझलिऐ। अजय गणेशन आइ भोरसँ मुँह लटकौने अछि”।
“किएक”। रोहिणीक प्रश्नक उत्तर दैत अरिन्दम बाजल।
“इन्टरनेटपर कोनो प्रेमिका संगे कतेक महिनासँ चैटिंग द्वारा प्रेमालाप करैत रहए। आइ पता लगलैक जे ओकरा संगे क्यो दोसर लड़का हँसी कऽ रहल छलैक। प्रेम वियोगमे अदहा बताह बनल अछि”- रोहिणी फरिछेलक।
यादव जी कोनो चीज बिसरि गेल छलाह से लिफ्टसँ तखने कक्षमे आएल रहथि, रोहिणीक गप सुनि लेने छलाह।
“हमरा तँ इन्टरनेटक ई माध्यमे आकाशीय लगैत अछि”- कहैत ओ अपन चश्मा लेलन्हि आ चलि गेलाह।
रोहिणीकेँ फोन रिसीव करबाक ड्युटी लगलन्हि तँ अरिन्दम निश्चिन्त भऽ गेलाह।

“सुनैत छी। एक बेर फोनपर जे अबाज अबैत छैक जे हम यादवजीक पत्नी छी तँ ओहिमे कचबचियाक अबाज गुँजैत छैक। दोसर बेर जे फोन अबैत अछि जे हम यादव जीक पत्न्नी छी तँ ओहिमे गंभीरता रहैत छैक। की रहस्य अछि, किछु ने बुझाइए”।
“लोकक मूड होइत छैक”।
“एहन कोन मूड होइत छैक जे घण्टे-घण्टामे बदलैत रहैत छैक। आ देखू एहि बॉसकेँ। जखन चुलबुलिया मूडमे फोन अबैत छैक तँ ई हँ-हँ हमर सरकार कहि कऽ गप करैत अछि आ जखन गम्भीर स्वरमे पत्नीक फोन अबैत छैक तँ झिरकिकँ बजैत अछि जे ऑफिसक फोनपर फोन किएक केलहुँ ? बुझू”।
“ई अपना रहलापर फोन अपने उठबैक प्रयास करैत अछि”।
“कोनो डर छैक ताहि द्वारे”।
“अहाँकेँ तँ ओहिना लगैत रहैए, कथीक डर रहतैक एकरा”। अरिन्दम बाजल ।
आब अरिन्दमकेँ लगलैक जे रोहिणी कोनो चीजक अन्वेषणमे लागि गेल अछि।


“दू दिनसँ देवगन तंग कएने अछि दुर्घटना बीमा करेबाक लेल”- रोहिणी बजलीह।
“एजेन्सी लऽ लेलक अछि की?”- अरिन्दम उत्तरमे प्रश्न पुछलन्हि।
देवगन ओहि ऑफिसमे चपरासी छल।
“हँ, एहि नगरमे जतेक पाइ भेटैत छैक ताहिसँ की होएतैक ? से पत्नीक नामसँ एजेन्सी लेने अछि। हमरो कहैत रहए पन्द्रह सालक दुर्घटना बीमा लेबाक लेल”।
“ओ, तखन ई एल.आइ.सी. नहि जी.आइ.सी.क एजेन्सी लेने अछि”।
“कम्मे प्रीमियम छैक लऽ लियौक, हमहू लऽ रहल छी”।


देवगन खुशी खुशी दुनू गोटेकेँ फॉर्म भरबाक लेल देलक आ चाह बनेबाक लेल चलि गेल। तखने यादवजी धरधराइत अएलाह।
“कोन फॉर्म सभ गोटे भरि रहल छी?”
“देवगन कनियाँक नामसँ इन्स्योरेन्सक एजेन्सी लेने अछि, वैह दुर्घटना बीमा करबा रहल अछि सभक”। रोहिणी आ अरिन्दम जेना संगे बाजि उठलाह।
तखने देवगन चाहक ट्रे लेने आएल। यादवजीकेँ फॉर्मक तहकीकात करैत देखि ओकर देह सर्द भऽ गेलैक।
“दू टा फॉर्म हमरोसँ भरबा लिअ”- यादवजी देवगनकेँ कहलखिन्ह।
देवगनकेँ तँ कानपर विश्वासे नहि भेलैक। दौगि कऽ दू टा फॉर्म अनलक।
“एकटा हमरा नामसँ भरू आ एकटा सबीना यादवक नामसँ”।
“मेम साहबक नाम सबीना यादव छन्हि?”
“हँ”।
फॉर्म जखन भराए लागल तँ नॉमिनेशनक कॉलम मे देवगन यादवजी बला फॉर्ममे सबीना यादव आ सबीना यादव बला फॉर्ममे यादव जीक नाम भरि देलक।
“ई की केलहुँ, दुनू फॉर्म चेन्ज करू। नॉमिनेशनक की जरूरति अछि। हमरा पत्नीक पाइक कोनो खगता नहि अछि”।
देवगन दुनू फॉर्म फाड़ि दू टा नव फॉर्म भरलक। अपन फॉर्ममे यादवजी हस्ताक्षर कएलन्हि आ दोसर फॉर्म साइन करेबाक लेल देवगनकेँ पता लिखि कऽ देबऽ लगलाह।
“हमरा अहाँक डेरा देखल अछि साहब”।
“ई दोसर पता छी, राखू”।

रोहिणीक कान ठाढ़ भऽ गेलन्हि। ओ यादवजीक बाहर गेलाक बाद देवगनक कानमे किछु कहलन्हि। अरिन्दम अपन काजमे लागल रहल।

“यादवजी छथि?” फोनपर पारुल रहथि।
“यादवजीक ट्रान्सफर भऽ गेलन्हि”।
“झूठ नहि बाजू, हुनका फोन दियन्हु”।
“हे, नहि तँ हम अहाँक नोकर छी आ नहिये अहाँक यादव जीक” -ई कहैत अरिन्दम फोन पटकि देलक। बीचमे कतेक दिनसँ रोहिणी फोन उठबैत छलीह। आइ ओ कतहु एम्हर-ओम्हर छलीह से अरिन्दमकेँ फोन उठाबए पड़ल रहैक।
रोहिणी तखने पहुँचि गेल छलीह- “अभ्यास खतम भऽ गेने तामस उठि गेल अहाँकेँ”। अरिन्दम स्वीकृतिमे मूड़ी डोलेलक।

आइ ऑफिस अबैत काल कारक एफ.एम.पर रेडियो मिर्ची पर चलि रहल अण्ट-शण्ट गप नीक लागि रहल छलैक अरिन्दमकेँ।
“हमर बड़का बेटा सुमन्त तेलुगु खूब नीक जकाँ बजैत अछि मुदा छोटका हिन्दी बाजए लागल अछि। हैदराबादसँ दादाक फोन अबैत छैक तँ हुनको हिन्दीयेमे जवाब दैत अछि। हुनका हिन्दी अबिते नहि छन्हि। घरमे पति तेलुगु बजबाक अभियान शुरु कएने छथि”- रोहिणी बाजि रहल छलीह।
“अच्छा”।
“बुझलहुँ, पारुलक फोन आएल रहए। कहैत रहए जे अरिन्दम जीक हम कोनो बकड़ी तँ नहि खोलि लेने छलियन्हि जे ओना कऽ फोनपर झझकारि उठल रहथि”।
“हूँ”।
“आ ई सेहो बाजि रहल छलि जे ओ यादवजी पर विश्वास कए धोखा खएलक”।
“ओ”।
“आ देवगन गेल रहए यादवजीक नवका घर”।
“नवका घर? पुरनका घर बेचि देलन्हि की?”
“नहि। देवगनेक कहल कहैत छी। पुरनका घरमे यादव जीक पहिल पत्नी रहैत छथिन्ह, वैह अहाँक गम्भीर स्वरवाली। आ नवका घरमे नवकी चुलबुली कनियाँ रहैत छन्हि। एकटा कोढ़चिल्को देखलक देवगन। यादवजीक बेटा रहन्हि प्रायः”।

मृत्युदण्ड
विवाहक उपरान्त ढ़ेरी-ढ़ाकी लोक हमरासँ भेँट करबाक हेतु सासुरमे आबि रहल छलाह। ताहिमे छलि एकटा नवम् कक्षाक छात्रा आर्या आ ओकर पितामही आ माए।
ओ माएक संग नहि आबि असगरे आएल छलीह। खूब कारी, दुबर-पातर, आवश्यकतासँ बेशी अनुशासित आ शिष्ट आ नापि-जोखि कए बजनिहारि। हमरासँ सभ गपमे उलटा।
हमर कनियाँ हुनकासँ हमर परिचय करओलन्हि आ ओकर प्रशंसा सेहो कएलन्हि। किछु कालक बाद ओकर पितामही आ माए हमरासँ भेँट करबाक हेतु अएलीह ।
हमरा अनुभव भेल जे हुनकर पितामहीक तँ लेहाज राखल गेल छल मुदा हुनकर माएक अवहेलना सन हमर कनियाँ आ सासु केने छलखिन्ह। गप्प करबामे ओ नीक छलीह आ जाइत-जाइत कहि गेलीह जे हमरा सभ अहाँक ससुरक किरायादार छी आ उपरका महला पर रहैत छी। से भीड़-भाड़ कम भेला पर अवश्य आऊ।
ई गप्प जाइत-जाइत हमर सासु प्रायः सुनि लेलन्हि से हमर पत्नीकेँ स्थिरेसँ मुदा आज्ञार्थक रूपेँ कहलन्हि जे ऊपर जएबाक कोनो जरूरी नहि छैक। हम पत्नीसँ पुछलियन्हि जे बेचारी एतेक आग्रहसँ बजओलन्हि अछि। पत्नी कहलथि जे सुनलियैक नहि, माँ मना कएलन्हि अछि। कारण पुछला पर गप अन्ठा देलन्हि।
किछु दिनुका बादक घटना छी, अन्हरोखेमे गेटक झमाड़ि कए खुजबाक अबाज भेल। लागल जे क्यो पीबि कए बड़बड़ा रहल अछि। हमर अतिरिक्त क्यो ओहि अबाज पर ध्यान नहि देलन्हि आ अन्ठयबाक स्वांग कएलन्हि। हम बाहर अएलहुँ तँ एकटा अधवयसु झुमैत अबैत दृष्टिगोचर भेलाह। हमरा देखि डोलैत हाथसँ जमायबाबू कहि नमस्कार कएलन्हि। ओ अखन धरि हमरासँ भेँट नहि होएबाक कारण हमर पत्नीकेँ फड़िछओलन्हि आ डोलैत ऊपर सीढ़ीक दिशसँ चलि गेलाह। हमर पत्नी हाथ पकड़ि कए हमरा भीतर आनि लेलन्हि आ ईहो सूचना देलन्हि जे ईएह आर्याक पिता थीक। अनायासहि हमरा माथमे आएल जे रंग जे आर्याक छैक से बापे पर गेल छैक।
बादमे हमर सासु ऊपर जा कए भाषण दए अएलीह आ एक महिनाक भीतर घर छोड़बाक अल्टीमेटम सेहो आर्याक परिवारकेँ दए देलन्हि। हमर सार कहलथि जे ई दसम अल्टीमेटम छैक मुदा हमर सासु अडिग छलीह जे किछु भए जाए एहि बेर ओ नहि मानतीह। जमाय की बुझताह जे केहन भाड़ादार रखने छी हम सभ। पहिने ठकिया-फुसिया कए बहटारि लैत छल।
पुछला पर पता चलल जे आर्याक पिता डॉक्टर छैक आ सेहो होमियोपैथिक, आयुर्वेदिक किंवा भेटनरी नहि वरन् एम.बी.बी.एस.। मुदा लक्षण देखियौक। ओना सासु ईहो गप कहलन्हि जे ई पीने रहबाक उपरान्तो गप्प एकोटा अभद्र नहि बजैत अछि, जेना आन पीनहार सभक संग होइत छैक। मनुक्खो ठीके अछि मुदा यैह जे एकटा गड़बड़ी छैक से बड्ड भारी।
अगला दिन नशा उतरलाक बाद पति-पत्नी दुनू गोटे नीचाँ अएलाह आ सासुकेँ कहलन्हि जे आर्याक बोर्डक बाद ओ सभ पटना चलि जएतीह से हुनका सभक खातिर नहि मुदा आर्याक खातिर तावत धरि रहए दिअ। घोँघाउजक बाद से मोहलति भेटि जाए गेलन्हि। तकरा बाद हुनकर पत्नीक नजरि हमरासँ मिलल तँ ओ कहलन्हि जे अहाँ तँ ऊपर नहिये आएब। आ एहि बेर ऊपर अएबाक आग्रहो नहि कएलथि।
किछु दिन बीतल आ फेर सासुर जयबाक अवसर भेटल। किछु दिनमे पता चलल जे किरायादार बदलि गेल छथि। घरक लोक मात्र एतबे कहलथि जे आर्याक पिताक मृत्यु भऽ गेलन्हि आ अनुकम्पाक आधार पर ओकर माएकेँ नौकरी भेटि गेलैक। आब ओ सभ क्यो पटनामे रहैत छथि।
घरक लोक आगाँ किछु नहि कहलन्हि मुदा कनियाँक एकटा पितयौत भाए आएल रहथि, से कहलथि जे डॉक्टरी रिपोर्टमे विष खा कए आत्महत्याक वर्णन रहए। फेर आगाँ पति-पत्नीक मध्य मचल तुमुलक चर्च भेल। डाक्टरक कनियाँ कहैत रहथिन्ह जे ई डॉक्टर बड्ड पिबैत छथि ताहि लेल झगड़ा होइत अछि तँ डॉक्टर साहब कहथि जे झगड़ाक द्वारे पिबैत छी। अस्तु मृत्युक बाद हुनकर कनियाँक भाव एहन सन छल जेना मुक्ति भेटि गेल होइन्हि आ एहि बातमे सभ क्यो एक मत रहथि।
एकटा सारि रहथि, हुनकर गप सेहो मोन पड़ल। एक गोट युवकक विषयमे आर्या कहैत छलि । ओकरा संगीकेँ होइत छैक जे ओ युवक ओकरासँ प्रेम करैत अछि। मुदा आर्याक मत छल जे ओ युवक ओकर संगीसँ नहि वरन् आर्यासँ प्रेम करैत छल। हम सारिकेँ कहने रहियन्हि जे आर्या बच्चा अछि, ओहिना हँसी कएने होएत। मुदा ओ कहलन्हि, जे नहि यौ। बड्ड भावुक अछि आर्या। कहैत अछि जे ओहि युवकके प्राप्त करबाक हेतु किछुओ करत। पता लागल जे ओ युवक कोनो पुरान महारानीक बेटीक बेटा छी। ओकर माता शिक्षिका अछि आ बाप मेरीनमे काज करैत अछि। साल-छह मास पर अबैत छल आ जखन अबैत छल तँ जे मास-पंद्रह दिन रहैत छल से मारि-पीटमे बिता दैत छल। पूरा मोहल्लामे बदनामी छैक। माएक शील-स्वभाव बड्ड नीक, बोलीसँ फूल-झड़ैत छैक। बापकेँ तँ लोक चिन्हितो नहि छैक। खाली झगड़ाक अबाजे सुनैत अछि लोक। एक बेर आर्याक संगीकेँ स्कूल बससँ उतरबा काल क्यो तंग कएने छल तँ ओ युवक सभकेँ मारि-पीटि कए भगा देने छल । एहि बात पर हम तखन कोनो बेशी ध्यान नहि देने रहियैक।
आ तकर किछु दिनुका बाद आर्याक पिताक मृत्यु भऽ गेलैक आ ओ एहि शहरसँ दूर चलि गेलि। ओ माएकेँ कहैत रहलि जे परीक्षा धरि रहए दिअ, मुदा माए विमुक्त भेलाक बाद एको पल पुरान कटु-स्मृतिकेँ देखए नहि चाहैत छलीह।

फेर दिन बितैत रहल।

आ बादमे फोन पर समाचार भेटल जे आर्या आत्म हत्या कए लेलक।

बहुत रास बात मोनमे घूमि गेल। आर्या भावुक छलि, किछु बेशी तनावमे रहिते छलि। गपकेँ गंभीरतासँ लैत छलि। सारिक ओहि युवकक सम्बन्धमे कहल गप सेहो मोन पड़ल ।
हम फोन दोबारा लगेलहुँ।

हम फोन पर अटकारी मारैत पुछलहुँ जे ओहि युवकक विवाह आर्याक मृत्युसँ पहिने भऽ गेल छल से कतए भेल छल ? तँ सासुरक लोक अचंभित भऽ पुछलन्हि, जे के ओ? अच्छा ओ!
-ओकर विवाह तँ भेल मुदा अहाँ कोना बुझलहुँ।
पता लागल जे सिलीगुड़ी-दिशक कोनो कन्यागत रहथि ।
आ ओ युवक अपन बाप जेकाँ घर-जमाए बनि रहबाक नियार कएने अछि। एहि शहरक लोककेँ तँ विवाहक हकारो नहि भेटल।
आ ओकर आत्महत्याक दोष ककरा पर अछि। ओ जे दारू पिबैत रहए से बाप। आकि ओ माए जे बापक संग तंग आबि गेल रहए। आकि ओ प्रेमी ?
हमरा जनैत एकर सभक कारण अछि आर्याक परिवारक सम्बन्धी आ परिवारिक दोस-महीम सभ जे एक तरहेँ आर्या सभकेँ बारि देने रहए। ओ समाज जे ओकर परिवारक घटनाक चटखारा लऽ कए चर्च करैत छल ।
ओ घटना सभ जे ओकर पिताक मृत्युक रहए ।
ओकर पिता द्वारा गेट पिटबाक घटनाक चरचा आकि आर कोनो गप।बालिका भावुक रहए कोना सहि सकैत छलीह। आत्महत्याक नाम दए ओकरा मृत्युदण्ड देलक समाज।

हम आर्याकेँ एकटा दृढ़ बालिका बुझैत रही। मुदा ओकर ‘किछुओ करय पड़त से करब’ केर अर्थ आब जा कए बुझलहुँ। ओहि युवकक बिआह भऽ गेल होएतैक से हमर अन्दाज मात्र रहए आ से आर्याक आत्महत्याक घटनाक जानकारी भेलाक बाद ।

बाणवीर
साढ़े तीनसँ चारि फीटक बीच लेटराक लम्बाइ छल। सभ कहैत छैक जे ओकर माए-बाप दोसराक बच्चाकेँ देखि कए भुट्टा-भुट्टा कहैत रहैत छलथि।से पता नहि की भेलैक लेटरा तकरा बादसँ बढ़िते ने अछि, ओकर लम्बाइ एकदम्मेसँ बढ़ब रुकि गेलैक।
“धुर! माए-बापक कतहु नजरि लगैत छैक बच्चाकेँ”।
“नञि यौ, माएक तँ लगिते छैक, देखियौ ने लेटराकेँ”।
गौआँ सभ आपसमे गप करथि। जे से, सभ बच्चा पैघ भेल। बढ़ए लागल । मुदा लेटरा घुटमुटाएले रहल। सभ क्यो ओकरा परोक्षमे लेटरा आ मुँहपर लेटरबम कहए लगलाह।
लेटरबमक माए-बापकेँ जमीन-जाल ततेक नहि। से महीसेपर निर्भर छलन्हि हुनकर सभक जीवन। लेटरा महीसक सेवामे भोरेसँ लागल रहैत छल। भोरमे भोरहा कातमे रगड़ि-रगड़ि कऽ चिक्कन बना दैत छल महीसकेँ। पुआरक नूरीसँ साफ करैत काल गोट-गोट अठौरी निकालि दैत छल। बेरू पहर बौआ-चौड़ीमे महीस चरबैत काल निसभेर भऽ सूति रहैत छल महीसक पीठपर।
लोक सभ हँसीमे कहितो रहए जे लेटरबम बौआ-चौड़ी हाइ स्कूलसँ मैट्रिक पास कएने अछि। महीसो लक्ष्मी रहए ओकर। आन माल-जाल सिंह लड़ाबए तँ लेटरबमक महीस घास चरबामे लागल रहए। से साँझमे घर-घुरैत काल जखन आन सभ गोटेक महीसक पेट पाँजरमे धसल रहैत छल, लेटराक महीसक दुनू पेट दुनू दिसन फूलि कए लटकि जाइत छल। बिना परिश्रम पन्हाइत छलैक महीस।
लेटरा अपन माए-बापकेँ तैयो प्रसन्न कए सकल की? ओ दुनू गोटे लेटराक गुजर कोना चलतैक, ओकरासँ बियाह के करतैक- एहि बात सभकेँ लऽ सोचिते रहैत छलाह।


गाममे बैतरणी नाटक आएल रहैक। कठपुतली सभ, मनुक्खक मरलाक बाद बैतरणी धार पार करबाक दृश्य, जे भयावहे-भयावह छल, खूब नीज जेकाँ प्रदर्शित करैत छलाह।
लेटरबम सेहो माए-बापक संग नाटक देखि अएलाह। आ एतहिसँ लेटराक जीवन एकटा दिशा लए लेलक। लेटराक बाबूक पाछाँ बैतरणी नाटक कम्पनीक मालिक लागि गेल। धरोहि दऽ देलक, साँझ-भोर ओकर घरपर पहुँचए लागल।
लेटरा अपन महिसबारीमे मगन रहैत छल। मुदा ओ अनुभव करए लागल जे आइ-काल्हि माए-बाप ओकरापर किछु बेशीए ममता राखए लागल छथि। सभ कहैत रहओ जे लेटराक जीवन कोना के चलतए, से की ओकर माए-बाबूपर आब कोनो असरि थोड़बेक पड़तए।
मुदा बैतरणी नाटक कम्पनीक मालिक लेटराक बापक पाछाँ पड़ि गेल। कहए लागल जे ओ तँ लेटराकेँ नीक नोकरी दियबा रहल अछि। लेटरबमक बाबू सभसँ पुछथि जे की करी? सभ यैह कहैत रहन्हि जे ओ लेटराकेँ कीनि रहल अछि, नोकरी नहि दऽ रहल अछि। ई नाटक कम्पनी सभ बणवीर सभकेँ गामे-गाम तकने फिरैत अछि आ शहरी सर्कस कम्पनी सभकेँ बेचि दैत अछि। फेर एक बेर जे बेटा जएत तँ की घुरिकऽ अएत? बेटा धन छी, बाणवीरे सही!
अकश-तिकश करैत एक दिन माए-बाप लेटरसँ पुछलन्हि- “भगवानक इच्छा सर्वोपरि। भगवान पेट दइ छथिन्ह तँ ओकरा पोसबाक जोगार सेहो करैत छथिन्ह। लोक सभ कहैत रहल जे लेटराक गुजर कोना चलतए तँ ककरो गपक हम मोजर नहि दैत छलियैक। मुदा ई बैतरणी नाटक कम्पनी बला तँ पाछूए पड़ि गेल अछि। लोकसभ कहए-ए जे ई सभ शहरी सर्कस कम्पनीक लेल बाणवीर सभक ताकिमे गामे-गाम फिरैत अछि आ ओहि कम्पनी सभमे ओकरा सभकेँ बेचि दैत अछि। मुदा ई कहए-ए जे से नहि छैक। सभ दिनुका दिनचर्जा छैक। शहरे-शहरे घुमैत अछि ई सभ। जखन कतहु सर्कस नहि लगैत छैक तँ छुट्टिओ भेटिते छैक। आर के नोकरी देत एतेक कम लम्बाइ बलाकेँ? से हम अहींसँ पुछैत छी जे की कएल जाए”।
लेटराक तँ आँखिसँ दहो-बहो नोर खसए लगलैक। गौआँ सभ ठीके कहैत रहए। माए-बाप तँ लागैए निर्णय कऽ लेने छथि।
“माए-बाबू। हमरा बुझल अछि जे हमर बियाह-दान नहि होएत। मुदा अपन पेट तँ कोहुना हम गाममे भरिये लैत छी। गुजर तँ कइए लैत छी। लोक सभ कहैत रहए जे तोहर माए-बाप तोरा बेचि देलकउ, से ठीके अछि की”?
आब तँ कन्नारोहट उठि गेल। माए-बापक संग लेटराक कानबसँ अँगनामे अनघोल मचि गेल।
जेना सुति कऽ उठलाक बाद ढेर-रास गप महत्त्वपूर्ण कोटिसँ उतरि कऽ अमहत्वपूर्ण वा ततेक महत्वपूर्ण नहि रहि जाइत अछि, तहिना दिन बितैत लेटरा सेहो अपन मोन मना लेलक। कनी देखियैक बाहरक दुनियाँ केहन होइत छैक। माए-बाप तँ बेचिए लेने छथि, ओतेक सिनेह रहितन्हि तँ बेचबे करितथि? तँ हमहीं किएक अधभगिया सिनेह राखी?



बैतरणी कम्पनीबला लेटराकेँ एकटा सर्कस बला लग लऽ गेल।
ओतए ई लगैत रहए जे जेना सभ बाणवीरक नोकरीक ओतए जोगार होअए। दुनियाँक सभ बाणवीरक नोकरी ओकरा लग पक्का रहए। लेटरा जेना बाणवीरक देशमे पहुँचि गेल छल। मोँछबला, निमोछी, पातर-मोट, नव-बूढ़- मुदा सभ धरि बाणवीर।
लेटरा ओकरा सभक बीच रहए लागल। किछु दिन धरि तँ ओकरा लगैत रहए जे ओ कोनो विशिष्ट व्यक्ति अछि आ तेँ बेशी दुखी अछि आ दोसर बाणवीर सभ तँ अही योग्य अछि। मुदा आस्ते-आस्ते जखन संगी-साथी सभसँ ओकरा गप होमए लगलैक, तखन ओकरा बुझबामे अएलैक जे सभक एक्के खेरहा छैक।
फेर ओहि जेलरूपी घरमे हँसी-खुशीसँ, छोट-छीन झगड़ा-झाँटी आ मान-मनौअलक संग ओ आगाँ बढ़ए लागल। अपन जिनगीक ई रूप ओकरा एहन सन लगैत छलैक जेना ओ नोकरिहारा होअए। ओहो घुरि जएत गाम आ फेर आपस अएत नोकरीपर। गामक दोसर नोकरिहारा सभकेँ ओ देखैत छल। गाम अबैत काल जतबे उल्लसित रहैत छलाह, नोकरीपर घुरैत काल सभक घुघना लटकि जाइत छलन्हि।
धुर, माए-बाप हमरा बेचलक थोड़बेक अछि। हमरा सन बाणवीरकेँ एहिसँ नीक आर कोन नोकरी भेटतैक। सर्कसमे जखन हम कला देखबैत छी तँ बच्चा सभ कोना पेट पकड़ि हँसैत अछि, कतेक थोपड़ी पड़ैत अछि। थोपड़ीक अबाज तँ निसाँ आनि दैत अछि। काल्हि ओ दु जुट्टी बला बचिया, केहन लगैत रहए जेना अपने लोक रहए। गाममे बड़का कक्काक बेटीक बियाह नौगछिया भेलन्हि तँ हुनको दिआ तँ लोक सभ उरन्ती उड़ेने छल जे बेटी बेचि लेलन्हि। कतेक दुरगर बियाह करा देलन्हि!
ई लोको सभ, बुझु इनारक बेङ सभ छी। दिल्ली-मुम्बइ घुमत गऽ तखन ने बुझबामे अओतैक जे भागलपुर-नौगछिया कोनो ततेक दुरगर नहि छैक। माए-बाप हमरा बेचि लेत?....आ ई सोचिते लेटराक कंठ सुखा गेलैक आ आँखि पनिया गेलैक।
“रे भाइ, चल । तैयारी करबा लेल घण्टी बाजए बला छैक। ओहिसँ पहिने किछु खा-पीबि ली”।

प्रवास
“हल्दिया भोरे-भोरे पहुँचलहुँ । नहा-धोआ कऽ ऑफिस गेलहुँ। सभ पुछलक जे कतएसँ आएल छी, से हमरा ओकरा सभक हाव-भावसँ पता लागल, कारण हमरा बंगला पूरा-पूरी नहि अबैत अछि। हम सभ गोटेकेँ कहलियैक जे हमरासँ अहाँ सभ हिन्दीमे गप करए जाऊ, कारण हमरा बंगला नहि अबैए। सभ गोटे हमरा दिस कनछियाकेँ तकलक।
“ऑफिसमे काज बेशी रहैत छल से सभ गोटे अपन-अपन प्राइवेट ऑफिस, कियो अपना घरेमे तँ कियो आन ठाम, बनेने रहथि। से हमहूँ दू-चारि दिन होटलमे रहबाक बाद एकटा घर ताकलहुँ आ ओकर एकटा कोठलीकेँ अपन प्राइवेट ऑफिस बनेलहुँ।
“किछु दिन धरि तँ होइत छल जे कोना कऽ एतए काज करब। भैया मैनेजिंग डाइरेक्टर छथि। हुनका फोन केलियन्हि जे खड़गपुर ट्रांसफर करबा दिअ। उनटे ओ रेजनल मैनेजरकेँ फोन कऽ देलखिन्ह जे एकरा कोनो हालतमे हल्दियासँ खड़गपुर ट्रांसफर नहि करू। ट्रेनक रूटपर खड़गपुर छैक, बेर-बेर पटना घुरि-फिरि कऽ चलि जएत, मोन लगा कए काज नहि करत। हुनका डर छलन्हि जे हुनकर नाम धऽ कऽ हम रेजनल मैनेजरसँ ट्रांसफर ने करबा ली।
“किछु दिन धरि तँ मोने नहि लागए। ऑफिसमे सभ बिहारी बंगालीक अराड़ि ठाढ़ कऽ देलक। ने हमरासँ कियो गप करए आ नहिये टोकए।

“तहिना दिन बीतए लागल। एक दिन तापस कऽ कए एकटा युवक आएल रहए ऑफिस। ओ एकटा विकास अधिकारी देवदत्त बोससँ भेँट करबाक लेल आएल रहए, जे एखन धरि ऑफिस नहि पहुँचल रहए। हमरा लग कियो नहि रहए, से ओ सोझाँ आबि बैसि गेल।
“हम ओकरासँ पुछलियैक जे ओ कोन काजसँ आएल अछि ? ओ कहलक जे देवदत्त बोस लेल ओ काज करैत अछि। लोक सभक बीमा ओ करबैत छल आ देवदत्तकेँ दैत छल । देवदत्त ओकरा तकर बदलामे प्रीमियमक राशिक हिसाबसँ कमीशन दैत छलखिन्ह।
“तखन हम ओकरा पुछलियैक जे अहाँकेँ ओ एजेन्सी देने छथि ? तँ पता लागल जे ओ तीन सालसँ आश्वासनपर एहिना खटि रहल अछि।
“तापस हमरा सोझ लोक बुझाएल । से ओकरा हम कहलियैक जे हमर प्राइवेट ऑफिसमे काज करए। ओकरा हम एजेन्सी दिअएबाक लेल तखने फॉर्म भरबा लेलियैक। ओकरा हम पाँच-सात आर गोटेकेँ सेहो अनबाक लेल कहिलियैक, जकरा हम एजेन्सी दए सकी। ओ कहलक जे बंगाली सभ नोकरी करबामे बेशी रुचि रखैत अछि, से हम कहलियैक जे हमर प्राइवेट ऑफिसमे नोकरीयेपर किछु गोटेकेँ तखन राखि लिअ।
“तापसकेँ एजेन्सी भेटि गेलैक आ ओकरा जखन चेकसँ पचास-पचास हजार कमीशन भेटए लगलैक तखन ओकरा एहि गपक अनुभव भेलैक जे देवदत्त कोना ओकरासँ मजदूरी करबा रहल छलए आ शोषण कऽ रहल छलए।
“देवदत्त जहाँ-तहाँ ई गप बाजए लागल छल जे हम ओकर एजेन्टकेँ तोड़ि लेलियैक। जिनकासँ हम ई गप-शप सुनैत रही तिनका हम उत्तर दैत छलियन्हि जे देवदत्त तँ तापसकेँ एजेन्सी देनहिये नहि रहए, तखन एजेन्ट तोड़बाक गप कतएसँ आएल ?

“एक दिन देवदत्त कोनो गुप्त मीटिंग कए, जकर जानकारी हमरा बादमे भेटल, आन विकास अधिकारी सभक संगे हमर टेबुल लग आएल आ अण्ट-शण्ट बाजए लागल। ओ सभ बंगलामे प्रलाप कए रहल छल, से हम किछु नहि बुझलियैक। मुदा तखने ओ एकटा गलती कएलक जे हमर टेबुलपर मुक्का मारलक।
“हुण्ड तँ हम छीहे। नोकरी जे ई एल.आइ.सी.बला भेटल अछि, से धरि अछि सज्जनबला। से हम एतेक काल धरि बरदास्त कएने रहियन्हि। मुदा ई तँ अतत्तहे कए देने रहए। एहि नोकरीमे सभ दिन हमरा जे छद्म भेषमे ऑफिस जाए पड़ैत रहए, से ओहि दिन ई भेष हमरा उतारबाक मोन भेल। सोझे हम देवदत्तक कॉलर पकड़लहुँ आ कहलहुँ, जे ई सम्पूर्ण भारत एक अछि। एतए भारतेक नहि वरन् नेपाल आ भूटानक लोककेँ सेहो कोनो स्थानपर जा कए काज करबाक स्वतंत्रता संविधान द्वारा देल गेल अछि।
“हमर ई रूप देखि ओकर सभ सहकर्मी अपन-अपन केबिन चलि गेल आ ब्रांच मैनेजर आबि कए हमरा दुनू गोटेकेँ शान्त कएलन्हि।
“तकर बाद एकटा आर झमेला भेल। किछु दिनुका बाद तापस जाहि दू-तीन गोटेकेँ एजेन्सीक लेल अनने छल, से पहिने तँ नोकरी करबाक लेल बेशी उत्सुक छलाह। मुदा जखन हमर प्राइवेट ऑफिसमे तापसक आबाजाही आ कमीशनक चेक सभक चरचा सुनलन्हि, तखन ओ हमर ऑफिसमे काज करितथि आकि मार्केटमे बीमाक लेल भागा-भागी करितथि ? अपन प्राइवेट ऑफिसमे हम ओकरा सभकेँ तीन-तीन हजार टाका दैत रहियैक । आ तापसकेँ तीस-तीस हजार टाका मास प्रीमियमक कमीशन भेटैत रहैक। ई देखि ओहो सभ भागि-भागि काज करए लागल। से जे सभ नोकरी लेल आएल, सभ हमर एजेन्ट बनि गेल। हमरा प्रोबेशन पीरिएडमे देल टारगेट पूरा करबामे कोनो दिक नहि भेल। मीटिंगमे जखन आन विकास अधिकारी सभ कहथि जे मार्केट डाउन चलि रहल अछि, तँ अधिकारी हमर उदाहरण दैत रहथिन्ह जे ओ कोना अपन टारगेट पूर्ण कए रहल छथि ?
“मुदा हमर ई प्रगति देवदत्तकेँ देखल नहि गेलैक। ओ हमर एजेन्ट सभसँ एकटा गुप्त मीटिंग कएलक, जकर जानकारी हमरा बादमे भेल।
“एक दिन तापस सभटा एजेन्टकेँ लेने हमरा लग आएल आ कहलक जे ओ सभ हमरा संग आब काज नहि करत । कारण, देवदत्त एकटा मीटिंग कए बिहारीक नीचाँ काज केलापर एकरा सभकेँ समाजसँ बहिष्कृत करबाक गप कहने रहए।
“तावत हमर भेँट स्थानीय एम.एल.ए. सुमित पालसँ भऽ गेल रहए आ हम हुनकर बेटीकेँ सेहो एजेन्सी दऽ देने छलियन्हि। देवदत्तकेँ साहस नहि रहए जे एम.एल.ए. लग जइतए, से ओ तापस सभपर अपन रोब-दाब देखा रहल छल।
“हमरासँ गप करैत-करैत एजेन्ट सभ हिन्दी सीखि गेल रहथि। हम हुनका सभकेँ कहलियन्हि जे देखू । एक तँ ई गप, जे अहाँ सभक जन-प्रतिनिधिक बेटी हमरासँ एजेन्सी लेने छथि। तँ देवदत्त की हुनका बारि देत ?
“हम आ अहाँ दुनू गोटे भारतक निवासी छी। एतए हल्दियामे बारह टा विकास अधिकारी छथि, जाहिमे एगारह टा बंगाली छथि आ मात्र हम एकटा बिहारी छी। हल्दियामे जे फैक्ट्री अछि, ताहि सभमे बिहार आ आन प्रदेशक जतेक लोक छथि, तकर बीमा हम अहाँ सभकेँ देब, दऽ सकत ई बीमा देवदत्त आकि क्यो आनो ? बंगाली सभक बीमा तँ एगारह टा विकास अधिकारीमे बँटत मुदा बिहारी आ आन सभक बीमा तँ मात्र अहाँ सभकेँ भेटत। बंगाली सभक बीमा तँ सेहो अहाँ सभ अपन सामर्थ्यक अनुसारेँ कइये रहल छी।
“हमर भाषण वातावरणकेँ परिवर्तित कए देलकैक। सभ एजेन्टक भाए-बाप सभ हमरा लग आएल आ कहलक जे अहाँ तँ देवता बनि आएल छी । हमर सभक भाए-बच्चा बौआइत रहैत छल आ बदमस्ती करैत रहैत छल। अहाँक अएलासँ ई सभ रोजगारमे लागि गेल अछि आ जतेक पाइ कमा रहल अछि, से तँ हमरा सभ सपनोमे नहि सोचने रही।
“फैक्टरीमे मजूर सभक मेट रहए एकटा झाजी। हल्दियाक फैक्टरी सभमे ओकरा माध्यमसँ ढेर रास बीमा भेटल, सभ एजेन्टमे बराबरि कऽ बाँटि देलियैक। मुदा पता नहि ई देवदत्त ओकरा की कान भरि देलकैक, जे बादमे ओ हमर एजेन्ट सभकेँ भड़काबए लागल।
“ई झाजी एक दिन दारू पीबि कए हमरा संगे झगड़ा करए लागल तँ ओकरो हम नीक जेकाँ डपटि देलियैक, जे बाबू नीक जेकाँ काज कर नहि तँ घर जो ।
“घरमे एकटा दाइ माँ खेनाइ बना जाइत रहथि। ततेक लोकसँ झगड़ा शुरू भऽ गेल रहए जे हमरा लागल जे ओ सभ दाइ माँक माध्यमसँ हमर खेनाइमे माहुर ने मिलबा दए। से हम दाइमाँ सँ खूब हिलि-मिलि गेलहुँ आ हुनकर घर-द्वारक समाचार पुछए लगलियन्हि। हुनका बीमा करबा देलियन्हि आ तकर प्रीमियम हमहीं दऽ देलियैक। हुनकर बेटाकेँ सेहो बीमा-एजेन्ट बनबा देलियैक आ जे बीमा कराबए बला सभ हमर प्राइवेट ऑफिसमे आबि जाइत छल, ओकर बीमा दाइ माँक बेटाक एजेन्ट कोडमे करबा दैत छलियैक। बेचारी दाइ-माँक स्थितिमे सुधार भऽ गेलैक आ ओ बुझू तँ हमरा अपन बेटा जेकाँ मानए लागलि।
“एजेन्ट सभक लेल दू सए प्रश्नक प्रश्नावली बना कए सभकेँ तकर उत्तर कंठस्थ करबा देलियैक। सभ विकास अधिकारीक अदहा एजेन्ट परीक्षामे पास नहि केलकैक मुदा हमर सभ एजेन्ट पास कए गेल।
“फेर हमरा दिमागमे आएल जे आब देवदत्त ओहि एम.एल.ए.केँ भड़काओत। तखने सुमित पाल अपन बेटीक जन्म-दिवसमे हमरा बजेलक। हम खूब नीक साड़ी आ आन-आन चीज पैक करबा कए पहुँचलहुँ। ओ प्रेमसँ हमरापर तमसाएल आ कहलक जे ई सभ आपस लए जाऊ। हम कहलियैक जे अहाँ भाए-बहिनक बीच नहि पड़ू।

“आब देवदत्त तकरा बाद एक दिन सुमित पाल लग गेल आ कहलक जे कोन लफन्दरक संग बेटीकेँ एजेन्सी दिएबा कए काज करबा रहल छी? ताहिपर सुमित दा ओकरापर मारि-मारि कए छूटल जे भाए-बहिनक पवित्र संबंधपर आंगुर उठा रहल छी ?

“आऊ ने कहियो। ओतए सभ आब अपन अछि। समुद्र देखब। मोन हएत तँ पुरी सेहो घूमि आएब”।
“आ देवदत्त”?
“ओह, नहि पुछू ओकर। आब तँ ओ हमर भक्त भऽ गेल अछि। एक दिन आबि कए हाथ मिलेलक आ तकर बाद जखन भेटैत अछि हाथ नहि मिलबैत अछि वरन गरा लगैत अछि। आ कहैत अछि जे हम सभ भाए-भाए छी”!

No comments:

Post a Comment

https://store.pothi.com/book/गजेन्द्र-ठाकुर-नित-नवल-सुभाष-चन्द्र-यादव/

 https://store.pothi.com/book/गजेन्द्र-ठाकुर-नित-नवल-सुभाष-चन्द्र-यादव/