भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

(c) २०००-२०२२ सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि।  भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल http://www.geocities.com/.../bhalsarik_gachh.html , http://www.geocities.com/ggajendra   आदि लिंकपर  आ अखनो ५ जुलाइ २००४ क पोस्ट http://gajendrathakur.blogspot.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html   (किछु दिन लेल http://videha.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html   लिंकपर, स्रोत wayback machine of https://web.archive.org/web/*/videha   258 capture(s) from 2004 to 2016- http://videha.com/  भालसरिक गाछ-प्रथम मैथिली ब्लॉग / मैथिली ब्लॉगक एग्रीगेटर) केर रूपमे इन्टरनेटपर  मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितक रूपमे विद्यमान अछि। ई मैथिलीक पहिल इंटरनेट पत्रिका थिक जकर नाम बादमे १ जनवरी २००८ सँ "विदेह" पड़लै। इंटरनेटपर मैथिलीक पहिल उपस्थितिक यात्रा विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि, जे http://www.videha.co.in/   पर ई प्रकाशित होइत अछि। आब “भालसरिक गाछ” जालवृत्त 'विदेह' ई-पत्रिकाक प्रवक्ताक संग मैथिली भाषाक जालवृत्तक एग्रीगेटरक रूपमे प्रयुक्त भऽ रहल अछि। विदेह ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA

 

(c)२०००-२०२२. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। सह-सम्पादक: डॉ उमेश मंडल। सहायक सम्पादक: राम वि‍लास साहु, नन्द विलास राय, सन्दीप कुमार साफी आ मुन्नाजी (मनोज कुमार कर्ण)। सम्पादक- नाटक-रंगमंच-चलचित्र- बेचन ठाकुर। सम्पादक- सूचना-सम्पर्क-समाद- पूनम मंडल। सम्पादक -स्त्री कोना- इरा मल्लिक।

रचनाकार अपन मौलिक आ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) editorial.staff.videha@gmail.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकै छथि। एतऽ प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक/संग्रहकर्त्ता लोकनिक लगमे रहतन्हि,'विदेह' प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका मात्र एकर प्रथम प्रकाशनक/ प्रिंट-वेब आर्काइवक/ आर्काइवक अनुवादक आ आर्काइवक ई-प्रकाशन/ प्रिंट-प्रकाशनक अधिकार ऐ ई-पत्रिकाकेँ छै, आ से हानि-लाभ रहित आधारपर छै आ तैँ ऐ लेल कोनो रॊयल्टीक/ पारिश्रमिकक प्रावधान नै छै। तेँ रॉयल्टीक/ पारिश्रमिकक इच्छुक विदेहसँ नै जुड़थि, से आग्रह। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत।  एहि ई पत्रिकाकेँ श्रीमति लक्ष्मी ठाकुर द्वारा मासक ०१ आ १५ तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।

स्थायी स्तम्भ जेना मिथिला-रत्न, मिथिलाक खोज, विदेह पेटार आ सूचना-संपर्क-अन्वेषण सभ अंकमे समान अछि, ताहि हेतु ई सभ स्तम्भ सभ अंकमे नइ देल जाइत अछि, ई सभ स्तम्भ देखबा लेल क्लिक करू नीचाँ देल विदेहक 346म आ 347 म अंक, ऐ दुनू अंकमे सम्मिलित रूपेँ ई सभ स्तम्भ देल गेल अछि।

“विदेह” ई-पत्रिका: देवनागरी वर्सन

“विदेह” ई-पत्रिका: मिथिलाक्षर वर्सन

“विदेह” ई-पत्रिका: मैथिली-IPA वर्सन

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Friday, May 8, 2009

पञ्जी प्रबन्ध : १: गजेन्द्र ठाकुर/ नागेन्द्र कुमार झा/ पञ्जीकार विद्यानन्द झा

जीनोम मैपिंग (४५० ए.डी.सँ २००९ ए.डी.)
-मिथिलाक पञ्जी प्रबन्ध


जीनोम मैपिंग (४५० ए.डी.सँ २००९ ए.डी.)
-मिथिलाक पञ्जी प्रबन्ध

































जीनोम मैपिंग (४५० ए.डी.सँ २००९ ए.डी.)
-मिथिलाक पञ्जी प्रबन्ध
( डिजिटल इमेजिंग, मिथिलाक्षर अंकन, देवनागरी लिप्यंतरण आ सम्‍पादन )

खण्ड १ - ३


गजेन्द्र ठाकुर
नागेन्द्र कुमार झा
पञ्जीकार विद्यानन्द झा




जीनोम मैपिंग (४५० ए.डी.सँ २००९ ए.डी.)
-मिथिलाक पञ्जी प्रबन्ध
( डिजिटल इमेजिंग, मिथिलाक्षर अंकन, देवनागरी लिप्यंतरण आ सम्पा दन )

खण्ड १ - ३

गजेन्द्र ठाकुर
नागेन्द्र कुमार झा
पञ्जीकार विद्यानन्द झा





श्रुति प्रकाशन , दिल्‍ली


श्रुति प्रकाशन , दिल्लीथ







Ist edition 2009 of Genome Mapping 450AD to 2009AD- Panji Prabandh of Mithila Vol.I-III authors Gajendra Thakur, Nagendra Kumar Jha & Panjikar Vidyanand Jha
published by M/s SHRUTI PUBLICATION, 8/21, Ground Floor, New Rajendra Nagar, New Delhi-110008 Tel.: (011) 25889656-58 Fax: 011-25889657

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ISBN 978-81-907729-6-9
Price: Rs. 5,000/- (INR) US $ 1600

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आमुख

पञ्जी प्रबन्ध पूर्व मध्य कालमे ब्राह्मण, कायस्थ आ क्षत्रिय वर्गक जाति शुद्धताक हेतु निर्मित कएल गेल । कोनो ब्राह्मणक जाति शुद्धताक हेतु उतेढ़ जानब आवश्यक छल।उतेढ़ छल सात पुरुषक परिचय, जाहि हेतु एहि बत्तीस कुलक परिचय आवश्यक छल- पिता एवं माताक पितामह एवं पितामही आ मातामह एवं मातामही केर पितामह एवं पितामही आ माता एवं मातामही केर पिता। आ एहि बत्तीस पूर्वजसँ विवाहयोग्य व्यक्ति सातम पड़बाक चाही।एहि क्रममे श्रोत्रिय,योग्य आ पञ्जीबद्ध श्रेणीक विभाजन गेल। जे पञ्जीबद्ध नहि छलाह से जएबार भेलाह। उतेढ़मे श्रोत्रिय मातृपक्षमे पाँच पीढ़ी आ पितृपक्षमे सात पीढ़ी त्यागि विवाह करैत छलाह।पञ्जीबद्ध लोकनि जिनका वंशज सेहो कहल जाइत अछि,मातृ पक्षमे पाँच आ पितृ-पक्षमे छः पीढ़ी त्यागि कय विवाह करैत छलाह। सम्प्रति धर्मशास्त्रसँ श्रोत्रिय-योग्य-पञ्जीबद्ध आ तथाकथित जएवार सभहिक हेतु एकहि व्यवस्था अछि, भिन्न किछु नहि।२० प्रकारक गोत्र १६७ प्रकारक मूल आ अनेक प्रकारक मूलग्राममे ई सभ विभक्त छल। पुनः कर्मकाण्डक आधार पर सामवेदी आ शुक्ल यजुर्वेदी ब्राह्मणक दू गोट उर्ध्वाधर विभाजन क्रमशः छन्दोग्य आ वाजसनेय ब्राह्मणक रूपमे बनले रहल।२० गोट गोत्र आ १६७ मूल ग्राममे मुख्य मूल ३४ टा निर्धारित कएल गेल। एहि १६७ मूलसँ सेहो ई सभ विभिन्न क्षेत्र आ ग्राममे पसरलाह। परवर्ती कालमे फनन्दह मूलक खनाम शाखा ३५म मूलक रूपमे तथाकथित उच्च वंशक मध्य परिगणित भेल।
२० गोट गोत्र निम्न प्रकारे अछि: १. शाण्डिल्य २. वत्स ३. सावर्ण ४. काश्यप ५. पराशर ६. भारद्वाज ७. कात्यायन ८. गर्ग ९. कौशिक १०. अलाम्बुकाक्ष ११. कृष्णात्रेय १२. गौतम १३. मौदगल्य १४. वशिष्ठ १५. कौण्डिन्य १६. उपमन्यु १७. कपिल १८. विष्णुवृद्धि १९. तण्डी आ जातुकर्ण।
मुख्य ३५ (३४+ फनन्दह मूलक खनाम शाखा) मूल सेहो तीन श्रेणीमे विभक्त अछि।
अयान्त श्रेष्ठ- प्रथम श्रेणीमे १. खड़ौरय, २. खौआड़य, ३. बुधबाड़य, ४. मड़रय, ५. दरिहरय, ६. घुसौतय, ७. तिसौतय, ८. करमहय, ९. नरौनय, १०. वभनियामय, ११. हरिअम्मय, १२. सरिसवय, १३. सोदरपुरिये।
द्वितीय श्रेणीमे १. गंगोलिवार, २. पवौलिवार, ३. कुजौलिवार, ४. अलेवार, ५. वहिड़वार, ६. सकड़िवार, ७. पलिवार, ८. विसेवार, ९. फनेवार, १०. उचितवार, ११. पंडुलवार, १२. कटैवार, १३. तिलैवार।
मध्यम मूल- १. दिघवे, २. बेलौंचै, ३. एकहरे, ४. पंचोभे, ५. वलियासे, ६. जजिवाल, ७. टकवाल, ८. पण्डुए।
प्रवर:मैथिल ब्राह्मणक मध्य २ वर्गक प्रवर परिवार होइत अछि- त्रिप्रवर आ पाँच प्रवर। जाहि गोत्रक तीन गोट पूर्वज ऋगवेदक सूक्तिक रचना कएल से त्रिप्रवर आ जाहि गोत्रक पाँच गोट पूर्वज लोकनि ऋगवेदक सूक्तक रचना कएल से पाँच प्रवर कहबैत छथि।
एहि प्रकारेँ गोत्रानुसारे प्रवर निम्न प्रकार भेल:-
त्रिप्रवर- १.शाण्डिल्य, २.काश्यप,३. पराशर, ४. भारद्वाज, ५. कात्यायन, ६. कौशिक, ७. अलाम्बुकाक्ष, ८. कृष्णात्रेय, ९. गौतम, १०. मौदगल्य, ११. वशिष्ठ, १२. कौण्डिन्य, १३. उपमन्यु, १४. कपिल, १५. विष्णुवृद्धि, १६. तण्डी।
पंचप्रवर- १. वत्स, २. सावर्ण, ३. गर्ग।
प्रवरक विस्तृत विवरण निम्न प्रकारेँ अछि-
१. शाण्डिल्य- शाण्डिल्य, असित आ देवल। २. वत्स-ओर्व, च्यवन,भार्गव,जामदगन्य आ आप्लवान। ३. सावर्ण- ओर्व, च्यवन, भार्गव, जामदगन्य आ आप्लवान। ४. काश्यप-काश्यप, अवत्सार आ नैघ्रूव। ५. पराशर-शक्ति, वशिष्ठ आ पराशर। ६. भारद्वाज-भारद्वाज, आंगिरस आ बार्हस्पत्य। ७. कात्यायन-कात्यायन, विष्णु आ आंगिरस। ८. गर्ग-गार्ग्य, घृत, वैशम्पायन, कौशिक आ माण्डव्याथर्वन। ९. कौशिक- कौशिक, अत्रि आ जमदग्नि. १०. अलाम्बुकाक्ष-गर्ग, गौतम आ वशिष्ठ. ११. कृष्णात्रेय-कृष्णात्रेय, आप्ल्वान आ सारस्वत. १२. गौतम-अंगिरा, वशिष्ठ आ बार्हस्पत. १३. मौदगल्य-मौदगल्य, आंगिरस आ बार्हस्पत्य. १४. वशिष्ठ-वशिष्ठ,अत्रि आ सांकृति. १५. कौण्डिन्य-आस्तिक,कौशिक आ कौण्डिन्य. १६. उपमन्यु-उपमन्यु, आंगिरस आ बार्हस्पत्य। १७. कपिल-शातातप, कौण्डिल्य आ कपिल. १८. विष्णुवृद्धि-विष्णुवृद्धि, कौरपुच्छ आ त्रसदस्य १९. तण्डी-तण्डी, सांख्य आ अंगीरस २०. जातुकर्ण- जातुकर्ण, आंगीरस आ भारद्वाज।
एहिमे सावर्ण आ वत्सक पूर्वज एके छथि ताहि हेतु दू गोत्र होइतो हिनका बीच विवाह नहि होइत छन्हि। छानदोग्य आ वाजसनेयक वैदिक युगीन उर्ध्वाधर विभाजन एकर संग रहबे कएल आ यज्ञोपवीत मंत्र/ विवाह विधि दुनूक भिन्न-भिन्न अछि। फेर यज्ञोपवीतमे तीन प्रवर आकि पाँच प्रवर देल जाय ताहि हेतु उपरका सूचीक प्रयोग कएल जाइछ।
भारतीय इतिहासक वेत्ता ओ जातीय व्यवस्थाक मर्मज्ञ लोकनि जनैत छथि, जे भारतवर्षक ब्राह्मण लोकनि सर्वप्रथम वेदक आधार पर विभिन्न वर्गमे विभाजित रहथि। जेना- सामवेदी, यजुर्वेदी, आदि कहाबथि। मुदा समयक प्रभावमे भिन्न क्षेत्र-प्रक्षेत्रमे रहनिहार ब्राह्मण लोकनि भिन्न-भिन्न संस्कृतिसँ प्रभावित भए गेलाह। क्षेत्रीय संस्कृतिसँ प्रभावित होएबाक मुख्य कारण छल विशिष्ट क्षेत्रक विशिष्ट जलवायु, क्षेत्र विशेषक भाषा-विशेष, भिन्न-भिन्न क्षेत्रक भिन्न-भिन्न आहार एवम भेष-भूषा आ एक क्षेत्र सँ दोसर क्षेत्र जयबाक हेतु आवागमनक असुविधा आदि। फलतः क्षेत्र-विशेषक ब्राह्मण समुदाय, क्षेत्र विशेषक आचार-विचार, खान-पान, वेश-भूषा, भाव-भाषा ओ सभ्यता संस्कृतिसँ प्रभावित भय गेलाह।
उपरोक्त कारणे पुरानक युग अबैत-अबैत भारत वर्षक ब्राह्मण समाज भिन्न-भिन्न क्षेत्रक आधार पर विभिन्न वर्गमे विभाजित भए गेलाह। पुरानक सम्मतिये भारत-वर्षक समस्त ब्राह्मण समाजकेँ दस(१०) वर्गमे विभाजित कएल गेल। ब्राह्मणक ई दसो वर्ग थीक-उत्कल,कान्यकुब्ज,गौड़,मैथिल,सारस्वत, कार्णाट,गुर्जर, तैलंग,द्रविड़ ओ महाराष्ट्रीय। स्थूल रूपेँ पूर्वोक्त पाँच केँ पञ्च गौड़ आ अपर पाँचकेँ पञ्च द्रविड़ कहल जाइत अछि। एकर सीमांकन भेल विन्ध्याचल पर्वतक उत्तर पञ्च गौड़ ओ विन्ध्याचल पर्वतक दक्षिण पञ्च द्रविड़।
मैथिल ब्राह्मण: पञ्च गौड़ वर्गक मैथिल ब्राहमण लोकनि पुस्ति-दर-पुस्त सँ मिथिलामे रहबाक कारणेँ मिथिलाक विशिष्ट संस्कृतिसँ प्रभावित भए गेलाह, तँय अहि कारणेँ पुराणक युगमे मैथिल ब्राह्मण कहाए सुप्रसिद्ध भेलाह। मिथिला वस्तुतः प्राचीन विदेह राजवंशक राजधानी रहए। मुदा पश्चातक युगमे विदेह राजवंशक समस्त प्रशासित क्षेत्र अथवा जनपद मिथिला कहाए सुप्रसिद्ध भेल आ एहि जनपदक रहनिहार ब्राह्मण लोकनि मैथिल ब्राह्मण कहओलन्हि। ई मिथिला आइ नेपाल ओ बंगलादेशक सीमा सँ सटैत अनुवर्त्तमान अछि, जे राजनीतिक एवं सांस्कृतिक दृष्टिसँ अपन एक विशिष्ट स्थान रखैत अछि।
मैथिल ब्राह्मण लोकनि मूलतः दुइए गोट वेदक अनुयायी थिकाह। एक वर्ग यजुर्वेदक माध्यान्दिन शाखाक अनुयायी थिकाह तँ दोसर सामवेदक कौथुम शाखाक अनुगमन करैत छथि। यजुर्वेदक माध्यन्दिन शाखाक अनुयायी “वाजसनेयी” कहबैत छथि, एहिना सामवेदक कौथुम शाखाक अनुयायी छन्दोग कहबैत छथि।दुहुक संस्कारमे किछु स्थूल अन्तरो अछि। छन्दोगक उपनयनमे चारि गोट संस्कार- नामकरण, चूड़ाकरण, उपनयन ओ समावर्त्तन, मुदा वाजसनेयीक ई चारू संस्कार थिक, चूड़ाकरण, उपनयन, वेदारम्भ ओ समावर्त्तन। एहिना छन्दोग विवाह मुख्यतः दू खण्डमे सम्पन्न होइत अछि, पूर्व विवाह आओर उत्तर विवाह। उत्तर विवाह सूर्यास्तक बाद तारा (अरुन्धती) देखि कए होइत अछि। मुदा वाजसनेयी विवाहमे एहन कोनो विभाजन नहि अछि। एकहि क्रममे दिन अथवा रातिमे कखनहुँ भए सकैत अछि। वाजसनेयी ओ छन्दोगक धार्मिक संस्कारमे तँ सूक्ष्म अंतर कतौक अछि।
पुनश्च सप्तसिन्धु सँ प्राच्याभिमुखी यायावर ऋषि लोकनि गंगा ओ हिमालयक मध्यक सुभूमि मिथिलामे जाहि आर्यसंस्कृतिक बीज-वपन कएल, तकर मूल छल धर्म, धर्मक मूल छल जाति, ई जाति होयत एहि जन्मक विशुद्धिसँ, जन्मसँ विशुद्ध संतान होइत अछि!!
तखन जखन विवाहक अधिकार जाहि कन्यासँ हो तकरहिसँ विवाह कएला उत्तर प्राप्त संतान आर्य जातिक विवाहक नियम सभ सर्वप्रथम निबंधित भेल विभिन्न स्मृति सभमे। स्मृतिकार मनु ओ याज्ञवल्क्यक अनुसार ओहि कन्यासँ विवाहक अधिकार हो जे- १. समान गोत्रक नहि होथि, २. समान प्रवरक नहि होथि, ३. माइक सपिण्ड नहि होथि, ४. पिताक सपिण्ड नहि होथि, ५. पितामह अथवा मातामहक संतान नहि होथि, ६. कठमामक संतान नहि होथि।
एहि वैवाहिक अधिकारक निष्पादनार्थ कमसँ कम मनु ओ याज्ञवल्क्यक समयसँ तँ निश्चये लोक अपन ‘यावतो परिचय’ स्वयं अपनहि रखैत आबि रहल छल, मुदा पश्चातक युगमे ई प्रवृत्ति समाप्तप्राय भऽ गेल। विवाहक हेतु वर ओ कन्याक सम्पूर्ण परिचय तँ आवश्यके छल, जे आनहु धार्मिक संस्कारक हेतु सपिण्डत्वक विचार विवाहक अतिरिक्त श्राद्ध ओ अशौच प्रभृतिअहुमे आवश्यक होइत छल, एहि कारणेँ प्रागैतिहासिक कालहिसँ लोक अपन सांगोपांग परिचय रखैत छल। ओ ओकरहि अनुसार अपन धार्मिक क्रियाक निष्पादन करैत रहए। ई नियम सभ हमरा लोकनिक प्राचीनतम धर्मग्रंथ सभमे उपलब्ध अछि। स्मृति सभमे कहल गेल अछि, जे जनिकासँ विवाहक अधिकार नहि हो से स्वजना भेलीह। स्वजनासँ विवाहोपरांत प्राप्त संतान चाण्डाल बूझल जाइत छल। ओ आर्यत्वक मर्यादासँ बहिष्कृत मानल जाइत छल!! (एकर सए सँ बेशी अपवाद नीचाँ देल गेल अछि-आर बहुत रास भीतर पोथीमे भेटत।) अतः विवाहक पहिल चरण अधिकारक निर्णय रहल होयत। वर पक्ष ओ कन्या पक्षक लोक परस्पर बैसि अपन-अपन परिचयक आधार पर निर्णय करैत छल होएताह, जे ‘अमुक’ कन्यासँ ‘अमुक’ वरक विवाह हो वा नहि। मुदा परिचय रखबाक प्रवृत्तिक ह्रासक कारणेँ अधिकार-निर्णयक हेतु प्रत्येक परिवारक सुयोग्य ओ आस्थावान व्यक्ति अपन यावतो परिचय(३२ मूलक उल्लेख) लिखि कए राखय लगलाह। सातम शताब्दीसँ पूर्वहि एहि लिखित कौलिक परिचय ‘समूह लेख्य’ क उल्लेख सर्वप्रथम विद्वद्वरैण्य कुमारिल भट्ट रचित ‘तंत्र वार्त्तिक’मे भेल अछि, जे मीमांसा दर्शनक जैमिनी सूत्रक शबर द्वारा कएल भाष्यक गद्यात्मक ‘वार्त्तिक’ थीक। तंत्रवार्त्तिक दर्शनक ग्रंथ थीक जाहिमे यथार्थ वस्तुस्थितिक वर्णनसँ जातिक विशुद्धि सिद्ध कएल गेल अछि, जाहि आधार पर धर्मक निरूपण भए सकैत। कुमारिल भट्टक कहब छलन्हि जे “बड़का कुलीन लोक बड़ विशेष प्रयत्नसँ अपन जातिक रक्षा करैत छथि। तँहि तऽ क्षत्रिय ओ ब्राह्मण अपन पिता-पितामहादिक परम्परा बिसरि नहि जाए तेँ समूह-लेख्य चलौलन्हि। ओ प्रत्येक कुलमे गुण आ दोष देखि ओहि अनुरूप सम्बंध करबामे प्रवृत्त होइत छथि”।
“विशिष्टेनैव हि प्रयत्नेन महाकुलीनाः परिक्षन्ति आत्मानम् अनेनैव हि हेतुना राजाभिर्व्राह्मणैश्च स्व पितृ-पितामहादि पारम्पर्या-विस्मर्णार्थं समूहलेख्यानिप्रवर्तितानि तथा च प्रतिकुलं गुण-दोष स्मर्णांतदनुरूपाः प्रभृति-निवृतयो दृश्यते”।(तंत्रवार्त्तिक, अध्याय १, पाद-२, सूत्र-२क वार्त्तिक)
मुदा तेरहम शताब्दीक उत्तरार्ध होइत-होइत साधारण लोकक कोन कथा पण्डित लोकनि सेहो समूह लेख्य राखब छोड़ि देलन्हि। एकर परिणाम ई भेल जे पं हरिनाथ उपाध्याय (धर्म-शास्त्रक महान ज्ञाता) “स्मृतिसार” सन धर्मशास्त्रक विषयक ग्रंथकर्त्ता ओ महापंडितक परिचयक अभावमे विवाह कए लेल, स्वजनमे अनधिकारमे अपन साक्षात पितयौत भाइक दौहित्रीमे। फलतः चौदहम शताब्दीक तृतीय दशक होइत-होइत एहि कौलिक परिचयकेँ विशिष्ट पण्डितक अधीन कए देबाक आवश्यकताक अनुभव कएल जे विवाहक समय अधिकारक निर्णय कए सकथि। मिथिलाक तत्कालीन शासक राजा हरिसिंहदेवक प्रेरणासँ मिथिलाक पण्डित लोकनि शाके १२४८ तदनुसार १३२६ ई. मे निर्णय कएलन्हि, जे “परिचय राखब लोककेँ अपना पर नहि छोड़ल जाय, प्रत्युत ओकरा संगृहित कए विशिष्ट पण्डितजनक जिम्मा कए देल जाए, ओ ई राजकीय एक गोट विभाग बना देल जाए, जाहिसँ पण्डित राजाज्ञासँ नियुक्त होथि, सैह संगृहित परिचय राखथि। प्रत्येक विवाह तखनहि स्थिर हो जखन नियुक्त पंडित (पञ्जीकार) अधिकार जाँचि कए लिखिकऽ देथि, जे अमुक कन्या ओ अमुक वर ‘स्वजना’ नहि छथि। अर्थात् शास्त्रीयनियमानुसार कन्याक संग वरकेँ वैवाहिक अधिकार छन्हि। इयैह पत्र ‘अस्वजन पत्र’ वा ‘सिद्धांत पत्र’ कहौलक। आइयो कन्या वरक विवाह पूर्व अधिकार जँचाए सिद्धांत पत्र लेब आवश्यक बूझल जाइत अछि। पञ्जी-प्रबंधमे इएह सभसँ प्रधान नियम भेल जे बिनु सिद्धांत भेने विवाह अशास्त्रीय मानल जायत। ‘अस्वजन पत्र’ देनिहार राजाज्ञासँ नियुक्त इएह पण्डित पञ्जीकार कहओलाह। संगृहित परिचय जाहिमे प्रत्येक नव जन्म ओ विवाह जोड़ल जाय लागल से भेल पञ्जी। जिनकर पञ्जीमे नाम आएल से भेलाह पञ्जीबद्ध।
महाराज हरिसिंहदेव ओ तत्कालीन पण्डितक संयुक्त निर्णय अनुसार परिचेता लोकनिक नियुक्त्ति कए समस्त मैथिल ब्राह्मणक सम्पूर्ण परिचय संगृहित कएल गेल। परिचेता लोकनि घुमि-घुमि प्रत्येक परिवारक मुख्य व्यक्तिसँ हुनक परिचय पुछि लिखि लेल करथि। सामान्य रूँपे छओ पुरुषक परिचय सभ जनैत रहथि। किछु गोटा एहिसँ बहुतो अधिक परिचय जनैत रहथि। एहिना किछु गोटए मात्र दू वा तीन पुरुषाक ज्ञान रखैत छलाह। जे जतबा जनैत रहथि हुनकासँ ओतबहि संग्रह कए हुनकर पूर्वजक वास-स्थान, गोत्र, प्रवर तथा हुनक वेद ओ शाखाक सूचना लिखि लेल जाइत रहए। एहि संग्रहसँ एकहि कुलक अनेक शाखा जे विभिन्न ग्राममे बसैत छलाह, तकर परिचय एकत्र भए गेल। एहि रूपेँ गोत्रक अनुसार भिन्न-भिन्न कुलक सम्पूर्ण परिचय प्राप्त भए गेल। एहि परिचय संकलनक समय सभसँ प्रमुख मानल गेल बीजी पुरुष ओ मूल ग्रामकेँ। कारण कौलिक परिचयक हेतु सर्वाधिक उपयोगी इयैह सूत्र भेल। विभिन्न गाममे बसैत एकहि कुलक विभिन्न व्यक्तिक कौलिक परिचय एहि मूल ग्रामक आधार पर संगृहित कएल गेल रहए। एहि कारणे पञ्जीमे अनिवार्य रूपसँ मूल ग्रामक उल्लेख भेल अछि। पञ्जी-प्रबंधक समय जे व्यक्ति जतए बसैत रहथि से हुनक भावी संतानक ग्राम कहाओल ओ परिचय लिखौनिहार अपन पूर्वजक प्राचीनतम वास स्थानक जे नाम कहल से ओहि व्यक्तिक मूल भेल। एहिना प्रत्येक कुलक प्राचीनतम ज्ञात पूर्वज ओहि कुलक बीजी पुरुष कहाओल। एकर प्रमाणमे एक गोट उदाहरण देखल जाए सकैत अछि। काश्यप गोत्रीय एक महाकुल जकर चौहत्तरि शाखा मिथिलामे अनुवर्त्तमान अछि, संगृहित परिचयक आधार पर मूलतः माण्डर ग्रामक वासी सिद्ध भेलाह। मुदा पञ्जी-प्रबंधसँ बहुत पहिनहि, एकर दू गोट शाखा स्पष्टतः प्रमाणित भए गेल। एक मँगरौनी गामक आ दोसर गढ़-गामक। अतः पञ्जीमे आदिअहिसँ माण्डरक संग-संग गढ़ ओ मँगरौनी विशेषण जोड़ल जाए लागल। मुदा उपलब्ध परिचयक आधार पर दुनू एकहि कुलक दू शाखा सिद्ध भेल। तँय दुनू कुलक मूल एकहि भेल ओ बीजी पुरुष सेहो एकहि भेलाह।
गोत्र एना कहल जाइत अछि जे सकल गोत्रक समस्त जन समुदाय एकहि प्राचीनतम ज्ञात महापुरुषक वंशज थिकाह। ईएह प्राचीनतम ज्ञात महापुरुष गोत्र कहाए सुविख्यात छथि। श्री एम.पी. चिंतालाल राव महोदय चारि हजार गोत्रक सूची तैयार कएने छथि। “अमरकोष”मे गोत्रक हेतु तीन अर्थ देल गेल अछि- पर्वत, वंश आ नाम। “वाचस्पत्य” कोषमे गोत्रक एगारह अर्थ देल गेल अछि- पर्वत, नाम ,ज्ञान, जंगल,खेत,क्षत्र,संघ,धन, मार्ग, वृद्धि आ मुनि लोकनिक वंश। प्राचीन संस्कृत साहित्यमे गोत्र शब्दक प्रयोग प्रायः वंश वा पिताक नामक लेल भेल अछि। छान्दोग्य उपनिषद (४/४) मे जीवन गुरु सत्यकामसँ गोत्र पुछैत छथि तँ हुनक अभिप्राय सत्यकामक कुल अथवा पिताक नामसँ छन्हि। मुदा ऋगवेदमे गोत्रक उल्लेख चारि ठाम मेघ अथवा पहाड़क लेल आ दू ठाम पशु समूह अथवा जनसमुदाय अथवा पशु रक्षक रूपमे भेल अछि। अंततः वंश अथवा परिवारक अर्थमे गोत्र शब्दक प्रयोग पश्चातक प्रयोग थिक। वंश अथवा परिवारक अर्थमे गोत्रक प्रयोग सर्वप्रथम छान्दोग्य उपनिषदमे भेल अछि।
मैथिल ब्राह्मण समाजमे गोत्र वंश-बोधक थीक। मैथिल ब्राह्मणक समस्त गोत्र पितृ प्रधान थीक- अर्थात् प्रत्येक गोत्र अपन-अपन वंशक प्राचीनतम ज्ञात महापुरुषक नाम थीक। मैथिल ब्राह्मणमे सभ मिलाए २० गोट गोत्र अछि। मैथिल ब्राह्मणमे सात गोट गोत्रक कुल व्यवस्थित, सुपरिचित ओ बहुसंख्यक अछि। ई सात गोट गोत्र थीक- १. शाण्डिल्य
२. वत्स ३. काश्यप ४. सावर्ण ५. पराशर ६. भारद्वाज ७. कात्यायन। शेष १३ गोट गोत्र थीक- १. गर्ग २. कौशिक
३. अलाम्बुकाक्ष ४. कृष्णात्रेय ५. गौतम ६. मौदगल्य ७. वशिष्ठ ८. कौण्डिन्य ९. उपमन्यु १०. कपिल ११. विष्णुवृद्धि १२. तण्डि १३. जातुकर्ण।
प्रत्येक गोत्रमे कतौक मूल अछि। मिथिलामे १६७ मूलक ब्राह्मणक परिचय प्राप्त होइत अछि।कतैक मूल एहन अछि, जे एकसँ अधिक गोत्रमे पाओल जाइत अछि।‘ब्रह्मपुरा’ एकटा एहने मूल थिक। एहि मूलक ब्राह्मण- शाण्डिल्य,वत्स,काश्यप,अलाम्बुकाक्ष,गौतम ओ गर्ग गोत्रमे पाओल जाइत छथि।
प्रवर- प्रवरक उल्लेख वैदिक युगमे दर्श ओ पौर्णमास नामक इष्टिमे भेटैत अछि। ई इष्टि सभ आन सभ प्रकारक यज्ञक आधार थीक। अतः एहिमे प्रवरक पाठ होइत अछि। एहि पाठक प्रयोजन तखनहि होइत अछि जाहि क्षण यज्ञाग्नि उद्दिप्त करएबाली (सामधेनी) ऋचाक पाठक अनंतर अध्वर्यु ओहि अग्नि पर आज्य(घृत) दैत छन्हि। एकर निहितार्थ अछि जे प्रवर, यज्ञमे अग्निकेँ बजएबाक प्रार्थना थीक। प्रवरकेँ बादमे ‘आर्षेय’ सेहो कहल गेल अछि- जकर अर्थ थिक ऋषिसँ संबंध राखए बला (ऋग्वेद-०९/९७/५१)। शोनक ऋषिक सुविख्यात पूर्वज लोकनि मैथिल ब्राह्मण मध्य प्रवर कहबैत छथि, अर्थात् ऋगवेदक ऋचाक प्रणेता लोकनि प्रवर थिकाह।मैथिल ब्राह्मणक मध्य २ वर्गक प्रवर परिवार होइत अछि- त्रिप्रवर आ पाँच प्रवर। जाहि गोत्रक तीन गोट पूर्वज ऋगवेदक सूक्तिक रचना कएल से त्रिप्रवर आ जाहि गोत्रक पाँच गोट पूर्वज लोकनि ऋगवेदक सूक्तक रचना कएल से पाँच प्रवर कहबैत छथि।
गोत्र आ मूल:-
१.शाण्डिल्य- दिर्धोष(दिघवे), सरिसब, महुआ, पर्वपल्ली (पवौली), खण्डबला, गंगोली, यमुशाम, करिअन, मोहरी, सझुआल, मड़ार, पण्डोली, जजिवाल, दहिभत, तिलय, माहब, सिम्मुआल, सिंहाश्रम, सोदरपुर, कड़रिया, अल्लारि, होइयार, तल्हनपुर, परिसरा, परसड़ा, वीरनाम, उत्तमपुर, कोदरिया, छतिमन, वरेवा, मछेआल, गंगौर, भटोर, बुधौरा, ब्रह्मपुरा, कोइआर, केरहिवार, गंगुआल, घोषियाम, छतौनी, भिगुआल, ननौती, तपनपुर।
२.वत्स- पल्ली(पाली), हरिअम्ब, तिसुरी, राउढ़, टकवाल, घुसौत, जजिवाल, पहद्दी, जल्लकी(जालय), भन्दवाल, कोइयार, केरहिवार, ननौर, डढ़ार, करमहा, बुधवाल, मड़ार, लाही, सौनी, सकौना, फनन्दह, मोहरी, वंठवाल, तिसउँत, बरुआली, पण्डौली, बहेराढ़ी, बरैवा, अलय, भण्डारिसमय, बभनियाम, उचति, तपनपुर, विठुआल, नरवाल, चित्रपल्ली, जरहटिया,रतवाल, ब्रह्मपुरा, सरौनी।
३.काश्यप- ओइनि, खौआल, संकराढ़ी, जगति, दरिहरा, माण्डर, वलियास, पचाउट, कटाइ, सतलखा, पण्डुआ, मालिछ, मेरन्दी, भदुआल, पकलिया, बुधवाल, पिभूया, मौरी, भूतहरी, छादन, विस्फी, थरिया, दोस्ती, भरेहा, कुसुम्बाल, नरवाल, लगुरदह।
४.सावर्ण- सोन्दपुर, पनिचोभ, बरेबा, नन्दोर, मेरन्दी।
५.पराशर- नरौन, सुरगन, सकुरी, सुइरी, सम्मूआल, पिहवाल, नदाम, महेशारि, सकरहोन, सोइनि, तिलय, बरेबा।
६.भारद्वाज- एकहरा, विल्वपञ्चक (बेलोँच), देयाम, कलिगाम, भूतहरी, गोढ़ार, गोधूलि।
७. कात्यायन- कुजौली, ननौती, जल्लकी, वतिगाम।
८. अलाम्बुकाक्ष- बसाम,कटाइ, ब्रह्मपुरा।
९. गर्ग- बसहा, बसाम, ब्रह्मपुरा, सुरौर, वुधौर, उरौर।
१०. कौशिक- निखूति
११. कृष्नात्रेय- लोहना, बुसवन, पोदौनी।
१२. मौद्गल्य- रतवाल, मालिछ, दिर्घौष, कपिञ्जल, जल्लकी।
१३. गौतम- ब्रह्मपुरा, उंतिमपुर, कोइयार।
१४. वशिष्ठ- कोथुआ।
१५. कौंडिल्य- एकहरा, परौन।
१६. जातुकर्ण- देवहार।
१७.तण्डि- कटाई।
१८.विष्णुवृद्धि- वुसवन।
१९.उपमन्यु।
२०.कपिल।
मिथिलाधीश कार्णाट वंशीय क्षत्रिय महाराज हरिसिंहदेव जी सभामे उपस्थित सभ्य लोकनिक समक्ष महिन्द्रपुर पण्डुआ मूलक सदुपाध्याय गुणाकर झाकेँ मैथिल ब्राह्मणक पञ्जी प्रबन्धक भार देलन्हि।

नन्दैद शुन्यं शशि शाक वर्षे (१०१९ शाके) तच्छ्रावणस्य धवले मुनितिथ्यधस्तात। स्वाती शनैश्चर दिने सुपूजित लग्ने श्री नान्यदेव नृपतिर्ढ़धीत वास्तं॥१॥ शास्तानान्द पतिर्व्वभूव नृपतिः श्री गंगदेवो नृपस्तत् सूनू(पुत्र) नरसिंहदेव विजयी श्री शक्ति सिंह सुतः तत् सूनू खलू राम सिंह विजयी भूपालवंत सुतो जातः श्री हरिसिंह देव नृपतिः कार्णाट चूड़ामणि ॥२॥ श्रीमंतं गुणवन्त मुत्तम कुलस्नाया विशुद्धाशयँ सञ्जातानु गवेषणोत्सुक यातः सर्वानुव्यक्तिक्षमां चातुर्यश्चतुराननः प्रतिनिधिंकृत्वा च्च्तुर्द्धामिमां पंचादित्यकुलांबिता विवजया दित्यै ददौ पञ्जिकाम्॥३॥भूपालवनि मौलि रत्न मुकुटोलंकार हिरांकुर ज्योत्सोज्वाल यटाल भाल शशिनिः लीलञ्च चञ्चलस्तवः शोभा भाजि गुणाकरे गुणवतां मानन्द कन्दोदरे दृष्ट्वात्मा हरिसिंह देव नृपतिः पाणौ ददौ पञ्जिकाम॥४॥ दृष्ट्वा सभां श्री हरिसिंहदेव विचार्य चिंते गुणिणी सहिष्णौ॥ गुणाकरे मैथिल वंश जाते पञ्जी ददौ धर्म विवेचणार्थम॥
श्रोत्रिय ब्राह्मण आठ श्रेणीमे क्रमबद्ध छथि आ योग्य एवम् वंशज पन्द्रह श्रेणीमे। पाँजिकक संख्या १८५ अछि, जाहिमे ३२ पाँजि श्रोत्रिय आ १५३ पाँजि योग्य आ वंशजक अछि।
पञ्जी-प्रबन्धक वर्तमान स्वरूपक प्रारम्भ राजा हरसिंहदेवक कालमे शुरू भेल। ज्योतिरीश्वर ठाकुरक वर्ण-रत्नाकरमे हरसिंहदेव नायक आकि राजा छलाह।
आइ काल्हि पञ्जी-प्रबंध मात्र मैथिल ब्राह्मण आ कर्ण-कायस्थक मध्य विद्यमान अछि। मुदा प्रारम्भमे ई क्षत्रिय (गंधवरिया राजपूत) केर मध्य सेहो छल।
वर्णरत्नाकरमे ७२ राजपूत कुलक मध्य ६४ केर वर्णन अछि, जाहिमे बएस आ पमार दोहराओल अछि। दोसर ठाम ३६ राजपूत कुलक वर्णन अछि। २० टा नामक पूर्वहुमे चर्च अछि। विद्यापतिक लिखनावलीमे, जे प्रायः हुनकर नेपाल प्रवासक क्रममे लिखल गेल छल, चन्देल आ चौहानक वर्णन अछि। गाहनवार वा मिथिलाक गंधवरिया राजपूतक दू टा शखा मिथिलामे छल, भीठ भगवानपुर आ पंचमहला(सहर्सा, पूर्णियाँ)। गंधवरिया,पमार,विशेवार,कंचिवाल, चौहान आदि मिथिलाक महत्त्वपूर्ण राजपूत मे। मुदा गंधवरिया मिथिलामे महत्त्वपूर्ण मे आ एखनहु मधुबनीसँ सहरसा-पूर्णियाँ धरि छथि।
वर्णरत्नाकरक राजपूत कुलवर्णनक निम्न लगभग ६२ टा कुल अछि। सोमवंश,सूर्यवंश, डोडा, चौसी, चोला, सेन, पाल, यादव, पामार, नन्द, निकुम्भ, पुष्पभूति, श्रिंगार, अरहान, गुपझरझार, सुरुकि, शिखर, बायेकवार, गान्हवार,सुरवार, मेदा, महार, वात, कूल, कछवाह, वायेश, करम्बा, हेयाना, छेवारक, छुरियिज, भोन्ड, भीम, विन्हा, पुन्डीरयन, चौहान, छिन्द, छिकोर, चन्देल, चनुकी, कंचिवाल, रान्चकान्ट, मुंडौट, बिकौत, गुलहौत, चांगल, छहेला, भाटी, मनदत्ता, सिंहवीरभाह्मा, खाती,रघुवंश, पनिहार, सुरभांच, गुमात, गांधार, वर्धन, वह्होम, विशिश्ठ, गुटिया, भाद्र, खुरसाम, वहत्तरी आदि। एखनो गंगा दियारामे राजपूत आ यादव दुनूक मध्य ‘बनौत’ होइत छथि आ दुनूमे बहुत घनिष्ठता अछि। आइ काल्हि राजपूत मध्य पञ्जी विलुप्त अछि, मुदा तकर निवारण ओ सभ गामकेँ बारि (विवाहक लेल) करैत छथि, जेना दादाक मातृकक गाम छोड़ि कऽ विवाह करब।
पर्वतमे रहनिहार आ वनमे रहनिहारक वर्णन सेहो अछि वर्ण रत्नाकरमे। जनक राजाक विरुद जन (कबीला) सँ बनल प्रतीत होइत अछि।
पहिने सभ क्यो अपन-अपन पुरखाक आ वैवाहिक संबंधक लेखा स्वयं रखैत रहथि। हरसिंहदेवजी एहि हेतु एक गोट संस्थाक प्रारम्भ कलन्हि। मैथिल ब्राह्मणक हेतु गुणाकर झा, कर्ण कायस्थक लेल शंकरदत्त, आ क्षत्रियक हेतु विजयदत्त एहि हेतु प्रथमतया नियुक्त्त भेलाह। हरसिंहदेवक पञ्जी वैज्ञानिक आधार बला छल आ शुद्ध रूपेँ वंशावली परिचय छल। सभ ब्राह्मण, कायस्थ आ क्षत्रिय अपन-अपन जातिक पञ्जीमे बराबर छलाह। मुदा महाराज माधव सिंहक समयमे शाखा पञ्जीक प्रारम्भ भेल आ श्रोत्रिय आदि विभाजन आ क्रमानुसारे छोट-पैघक आ ओहिसँ उपजल सामाजिक कुरीतिक प्रारम्भ भेल।
कर्ण कायस्थमे एकेटा गोत्र काश्यप अछि। मात्र मूलक अनुसारेँ उतेढ़ होइत अछि, मध्यम दर्जाक गृहस्थ कहल जाइत अछि।
मूलसँ गोत्रक सामान्यतः पता चलि जाइत अछि। किछु अपवादो छैक। जेना: ब्रह्मपुरा मूल, काश्यप/गौतम/वत्स/वशिष्ठ।(७टा)
करमहा- शाण्डिल्य (गाउल शाखा)/ बाकी सभ वत्स गोत्री।दुनू करमहामे विवाह संभव।
श्रोत्रिय लोकनिकेँ पुबारिपार आ शेषकेँ पछबारिपार सेहो कहल जाइत अछि।श्रोत्रियक पाँजि चौगाला(श्रेणी) मे विभक्त्त अछि। श्रोत्रिय पाँजिकेँ लौकित कहल जाइत अछि। कुल ८ टा चौगोल श्रेणी अछि।३२ टा पाँजि अछि। पाँजि आ पानि अधोगामी होइत अछि। निम्न कुलमे विवाह संबंधक कारणे समय बीतला पर उच्चादि श्रेणी समाप्त होइत जाइत अछि। प्रथम श्रेणी आ द्वितीय श्रेणी ताहि कारणसँ समाप्त भऽ गेल अछि।
शेष ब्राह्मण पछबारिपार कहबैत छथि। एहि मे १५ गोट श्रेणी अछि।१५३ टा पञ्जी अछि। एकरा नामसँ जेना नरपति झा पाँजि इत्यादि संबोधित कएल जाइत अछि।पछबारिपारहुमे सम्प्रति महादेव झा सँ उपरका पाँजि अनुपलब्ध जकाँ भए गेल अछि।
कालक प्रभावे क्षत्रिय लोकनिमे पञ्जी समाप्त भए गेल आ ताहि द्वारे हुनका लोकनिमे पूरा गामेकेँ छोड़ि देल जाइत अछि, जाहिसँ सिद्धांतमे भाङठ नहि होए।
पञ्जी-पुस्तकक रक्षणक हेतु एकटा श्लोक अछि- जलात् रक्ष तैलात् रक्ष रक्ष स्थूल बन्धनात् माने पुस्तककेँ जलसँ तेलसँ आ स्थूल बन्धनसँ बचाऊ।संगहि सूर्य जखन सिंह राशिमे (मोटा-मोटी १६ अगस्त सँ १५ सितम्बर धरि) रहए तखन एकरा सुखाऊ- एहि समयमे सभसँ बेशी कड़गर रौद रहैत अछि।
उतेढ- सिद्धांत लिखबासँ पहिने वर ओ कन्या पक्षक अधिकार ताकल जाइत अछि।कन्याक विवाहक ५-१० वर्ष पूर्व कन्याक पिता पञ्जीकारसँ अधिकार माला बनबैत छथि, जाहिमे संभावित आ उपलब्ध वरक सूची रहैत छैक। पञ्जीकार एहि हेतु उतेढ बनबैत छथि।वर कन्या दुनू पक्षक पितृ कुलक ६ पुस्त आ मातृकुलक ५ पुरखाक यावतो परिचय देल जाइत अछि। यावतो परिचयक अर्थ भेल ३२ मूलक उतेढ़ जे अधिकार तकबामे प्रयोजनीय थीक। कोनो कन्या वा वर मातृ वा पितृ पुरखा कुलमे १६ व्यक्त्तिसँ छठम स्थानमे रहैत छथि। एहि १६ मे सँ १६ वा एको व्यक्त्ति वरक पितृपक्षमे छठम स्थानक अभ्यन्ता अओथिन्ह तँ ओहि कन्या वरक मध्य वैवाहिक अधिकार नहि होएत।ज्योँ ओ १६ व्यक्त्ति वा एको व्यक्त्ति मातृ पक्ष (वरक) मे अओथिन्ह तँ अधिकार भए जायत।
मुदा एहिमे ई सेहो देखबाक थीक जे वर कन्या समान गोत्र आ समान प्रवरक नहि होथि। ई सेहो देखए पड़त जे कन्या वरक विमाताक भाइक सन्तान नहि होए।
पञ्जी सात प्रकारक होइत आछि-मूल,शाखा,गोत्र,पत्र,दूषण उतेढ़ आ अस्वाजन्यपत्र पञ्जी।
दरभंगा नरेश माधव सिंह शाखा प्रणयन पुस्तकक आदेश देलन्हि।एहिसँ पहिने मूल पञ्जी सभक समान रूपेँ बनैत छल। आब सोति, जोग आ पञ्जीबद्धक हेतु फराक शाखा पञ्जी बनाओल जाए लागल।
गोत्र पञ्जीमे सभ गोत्र आ तकर प्राचीन मूल रहैत अछि।
पत्र पञ्जी लगभग ५०० वर्ष पूर्वसँ प्रचलनमे अछि। एहिमे मूलग्रामक उल्लेख रहए लागल।
दूषण पञ्जीमे वंशमे आएल क्षरणक उल्लेख रहैत अछि। बहुत बादमे एकर चर्च संभव होइत अछि, जाहिसँ सम्बन्धित वंश एकर दुष्परिणामसँ बाँचल रहए।
उतेढ़ पञ्जीमे सपिण्डक निवृत्तिक ज्ञान होइत अछि- छह पुरखाक उल्लेख प्राप्त होइत अछि। मात्र रसाढ़-अररियाक पञ्जीमे स्त्रीगणकक नामक उल्लेख पञ्जीमे भेटैत अछि।
वैवाहिक अधिकार निर्णय:-
नियम १. कोनो कन्या वा वर अपन १६ पुरुषा (पितृकुल आ मातृकुल मिलाकेँ) सँ छठम स्थानमे रहैत छथि- जिनका छठि कहल जाइत छन्हि।
एहि छठिक निर्धारण निम्न प्रकारसँ होइत अछि।
१. कन्याक (वृद्ध प्रपितामह) प्रपितामहक पितामह प्रथम छठि
२. कन्याक (वृद्ध पितामहक स्वसुर) प्रपितामहक मातामह द्वितीय छठि
३. कन्याक पितामहक मातामहक पिता तृतीय छठि
४. कन्याक पितामहक मातामहक स्वसुर चतुर्थ छठि
५. कन्याक पितामहीक प्रपितामह पञ्चम छठि
६. कन्याक पिताक मातामहक मातामह छठम छठि
७. कन्याक पितामहीक प्रमातामह सातम छठि
८. कन्याक पितामहीक मातृमातामह आठम छठि
९. कन्याक मातामहक प्रपितामह नवम छठि
१०. कन्याक प्रमातामहक मातामह दसम छठि
११. कन्याक मातामहक प्रमातामह एगारहम छठि
१२. कन्याक मातामहक मातृमातामह बारहम छठि
१३. कन्याक मातामहीक प्रपितामह तेरहम छठि
१४. कन्याक मातामहीक पितृ मातामह चौदहम छठि
१५. कन्याक मातामहीक प्रमातामह पन्द्रहम छठि
१६. कन्याक मातामहीक मातृ मातामह सोलहम छठि

उपरोक्त्त समस्त छठिक समान महत्व अछि। एहिमे सँ कोनो छठि वरक पितृ पक्षमे अएला पर उक्त्त वर कन्याक मध्य वैवाहिक अधिकार नहि होएत। ओ छठि यदि वरक मातृकुलमे अबैत छथि तँ अधिकार होएत।उपरोक्त नियम समान रूपेँ वर ओ कन्यापर लागू होइत अछि। जहिना वरक लेल कहल गेल जे मातृतः पंचमी त्यक्त्वा पितृतः सप्तमी भजेत तहिना कन्या लेल कहल गेल जे असपिण्डा च या मातु – असपिण्डा च या पितुः सा प्रशस्ता द्विजातीनां दार कर्मणि मैथुने।

नियम२. वर कन्याक गोत्र एक नहि होए।
नियम ३. वर कन्याक प्रवर एक नहि होए।
नियम ४. वरक विमाताक भायक सन्तान कन्या नहि होए।
मातृतः पञ्चमीं त्यक्त्तवा पितृतः सप्तमीं भजेत्- मनुस्मृति
असपिण्डाच या मातुः असपिण्डा च या पितुः सा प्रशस्ता द्विजातीनां दार कर्मणि मैथुने।
पञ्चमात् सप्तमात् उर्ध्वं मातृतः पितृस्तथा।
सपिण्डा निवर्तेत कर्तुम् व्यतितिक्षम्।
संस्कृत श्लोकक अर्थ एहि प्रकारे अछि-
*वरक मातृकुलक पुरुषसँ कन्या पाँचम पीढ़ी धरिक सन्तान नहि होथि।वरक पितृकुलक सातम पीढ़ी (संशोधित रूपेँ छः पीढ़ी) धरिक सन्तान नहि होथि।
*जे कन्या वरक मातृ कुल ओ पितृकुलक सपिण्ड नहि होथि से द्विजाति वरक हेतु उद्वाह कर्मक लेल प्रशस्त।
*मातृकुलमे पाँच आ पितृकुलमे सात पीढ़ी धरि सपिण्ड रहैछ।परञ्च म.म.महाराज महेश ठाकुर पितृपक्षमे सातम पुस्तकेँ विवाहक हेतुएँ ग्राह्य मानलन्हि आ हुनक देल व्यवस्था समाजकेँ मान्य भेल।
कोनो कन्याक छठिक अन्वेषण हेतु ३२ मूलक उतेढ बनाबए पड़ैत छैक। ताहिमे सर्वप्रथम उतेढ़क वाम भागमे कन्याक ग्राम, मूल ग्राम लिखल जाइत छैक। तहिसँ अव्यवहित दहिन भागमे मूल आ तकर नीचाँ कन्याक अति वृद्ध प्रपितामह, वृद्ध प्रपितामह, वृद्ध पितामह, प्रपितामह, पितामह आ तखन पिताक नामोल्लेख अवरोही क्रमसँ लिखल जाइत छैक। एहि मध्य वृद्ध प्रपितामह पहिल छठि कहओताह, जनिकासँ कन्या छठम स्थानमे पड़ैत छैक। प्रस्तुत उदाहरणमे करमहा मूलक बेहट मूलग्रामक विट्ठो ग्रामवासी (दरभंगा) पीताम्बर झाक पौत्री श्री शशिनाथ झाक पुत्री भौर ग्रामवासी खण्डबला मूलक भौर मूलग्रामक नारायणदत्त ठाकुरक दौहित्री- धरमपुर दरभंगा- क अधिकार दरिहरा मूलक रतौली मूलग्रामक लोहनावासी गोपीनन्द झाक पौत्र श्री कृष्णानन्द झाक बालक करमहा मूलक बेहट मूल ग्रामक बिट्ठो निवासी कन्हैय्या झाक दौहित्रसँ जँचबाक अछि।
प्रथम छठि- करमहा बेहट मूलक शंकरदत्त सुत विश्वनाथ भेलाह- १.हुनक पुत्र राधानाथ, २.तनिक पुत्र कन्टिर प्र. रेवतीनाथ, ३.हुनक बालक-पीताम्बर, ४.तनिक पुत्र शशिनाथ, ५.आ हुनक पुत्री कन्या ६.अस्तु, विश्वनाथ झा पहिल छठि।
द्वितीय छठि-वृद्ध पितामह राधानाथ झाक श्वसुर माड़रि वलियास मूलक इन्द्रपति झाक बालक धनपति झा होएताह से एहि प्रकारे गणना – धनपति-=१, जमाय = राधानाथ = २, तनिक बालक कंटीर=३ पीताम्बर = ४, शशिनाथ-५, कन्या = ६
तृतीय छठि-कन्याक प्रपितामहक श्वसुरक – जेना माण्डर मूलक सिहौली मूलग्रामक १.रघुबर झा पुत्र २.फेकू झा तनिक जमाए ३.कंटीर झा, तनिक पुत्र ४.पीताम्बर झा तनिक पुत्र ५.शशिनाथ झा ६.कन्या। एहि मध्य माण्डर सिहौली रघुवर झासँ कन्या छठि छथि।
चारिम छठि- फेकू झाक श्वसुर- पाली महिषी मूलक हर्षी झा, यथा (१) हर्षी झा- (२)जामाता-फेकू झा (३) जामाता कंटीर झा (४)पुत्र-पीताम्बर (५) शशिनाथ (६) कन्या। एहि तरहेँ कन्या हर्षी झासँ छठम स्थानमे छथि तँय हेतु ई चारिम छठि भेल।
पाँचम छठि- कन्याक पितामहक श्वसुरक पितामहसँ कन्या छठम स्थान-जेना सकराढ़ी मूलक परहट मूलग्रामवाला (१) ब्रजनाथ झा (२) हुनक बालक हर्षनाथ झा (३) हिनक बालक सिद्धिनाथ झा (४) हिनक जमाय पीताम्बर झा (५) तनिक बालक शशिनाथ झा (६) हिनक कन्या- अस्तु, सकराढ़ी परहट ब्रजनाथ झा पाँचम छठि कहौताह।
६म छठि:- परहट सकराढ़ी मूलक हर्षनाथ झाक श्वसुर खण्डबला भौर मूलक श्यामनाथ ठाकुरक बालक महेश्वर ठाकुरसँ कन्या छठम स्थानमे छथि- तँ (१) महेश्वर ठाकुर (२) हर्षनाथ झा (३) सिद्धिनाथ झा (४) पीताम्बर झा (५) शशिनाथ झा (६) कन्या- एहि तरहेँ खण्डबला भौर मूलक महेश्वर ठाकुर छठम छठि कहौताह।
७म छठि- कन्याक पिताक मातामहीक पितामह- यथा हरिअम मूलक बलिराजपुर मूल ग्रामक सेवानाथ मिश्रक पौत्री, बालमुकुन्द मिश्रक पुत्री कन्याक पिता शशिनाथ झाक मातामही छथि, तँय (१) सेवानाथ मिश्र-पुत्र(२)बालमुकुन्द मिश्र (३)जामाता-सिद्धिनाथ झा (४) जामाता-पीताम्बर झा (५) पुत्र शशिनाथ झा (६) पुत्री-कन्या, अस्तु, हरिअम बलिराजपुर सेवानाथ मिश्र ७म छठि भेलाह।
८म छठि- कन्याक पितामहीक मातृ मातामह-यथा- सोदरपुर मूलक सरिसब मूल ग्राम वाला (१) गदाधर मिश्र-जामाता (२) बालमुकुन्द मिश्र-जामाता (३)सिद्धिनाथ झा(४)जामाता पीताम्बर झा- पुत्र(५) शशिनाथ झा (६) कन्या। ताहि हेतु सोदरपुर सरिसव गदाधर मिश्र आठम छठि छथि।
९म छठि- कन्याक मातामहक प्रपितामह- खण्डबला मूलक भौर मूलग्राम (१)धर्मनाथ ठाकुर-पुत्र (२) योगनाथ ठाकुर-पुत्र (३)दुर्गानाथ ठाकुर-पुत्र (४) नारायणदत्त ठाकुर-जामाता (५) शशिनाथ झा-तनिक (६) कन्या- अर्थात् धर्मनाथ ठाकुरसँ कन्या- ६म स्थानमे छथि। तँय धर्मनाथ ठाकुर नवम् छठि भेलाह।
१०म छठि- कन्याक प्रमातामह (दुर्गानाथ ठाकुरक) मातामह- बभनियाम मूलक कड़राइन मूलग्रामक सन्तलाल झासँ कन्या छठम स्थानमे छथि- यथा (१) सन्तलाल झा- हिनक जमाय, (२)योगनाथ ठाकुर (३)पुत्र दुर्गानाथ ठाकुर पुत्र(४) नारायणदत्त (५) जमाय- शशिनाथ झा तनिक पुत्री (६) कन्या। एहि हेतुए बभनियाम मूलक सन्तलाल झा १०म छठि।
११म छठि करमहा मूलक नड़ुआर मूलग्रामक बछरण झासँ कन्या- छठम् स्थानमे छथि- यथा
(१) बछरण- पुत्र (२) खेली- जमाय-(३) दुर्गानाथ ठाकुर (४) तनिक पुत्र- नारायणदत्त ठाकुर- जमाय (५) शशिनाथ (६) पुत्री-कन्या- अस्तु बछरण झा ११म छठि।
१२म छठि- कन्याक मातामहक मातृमातामह खण्डवला मूलक भौर मूलग्रामक जीख्खन ठाकुर-सँ कन्या छठम स्थानपर, क्रम- (१)जीख्खन ठाकुर (२) खेली झा जमाय (३) दुर्गानाथ ठाकुर (४) पुत्र- नारायणदत्त- जमाय (५) शशिनाथ-पुत्री (६) कन्या।
१३म छठि- कन्याक मातामहीक प्रपितामह हरिअम मूलक बलिराजपुर मूलग्रामक योगीलाल मिश्र। यथा- (१)योगीलाल –पुत्र (२) कमलनाथ मिश्र (३) पुत्र- शक्तिनाथ मिश्र (४) जमाय- नारायणदत्त ठाकुर- जमाय (५) शशिनाथ-पुत्रे (६)कन्या।
१४म छठि- कन्याक मातामहीक पितृमातामह अर्थात् सोदापुर मूलक दिगउन्ध मूलग्रामक कौशिल्यानन्द मिश्र- यथा- (१) कौशिल्यानन्द मिश्र- तनिक जमाय (२) कमलनाथ मिश्र तनिक (३)पुत्र शक्तिनाथ मिश्र, तनिक जमाय (४) नारायण दत्त ठाकुर तनिक (५) जमाय शशिनाथ झा- तनिक पुत्री (६) कन्या।
१५म छठि- कन्याक मातामहीक प्रमातामह अर्थात् खण्डवला मूलक भौर मूलग्रामक महाराज कुमार बाबू गुणेश्वर सिंह यथा- (१) बाबू गुणेश्वर सिंह- पुत्र (२) बाबू ललितेश्वर सिंह (३) जमाय- शक्तिनाथ मिश्र- तनिक जमाय (४) नारायणदत्त ठाकुर (५) तनिक जमाय- शशिनाथ झा- तनिक पुत्री (६) कन्या।
१६म छठि- कन्याक मातामहीक मातृमहीक मातृमातामह अर्थात् खौआल मूलक सिमरवाड़ मूलग्रामक- पद्मनाथ झासँ कन्या छठम् स्थानमे छथि- यथा- (१) पद्मनाथ-जमाय (२) बाबू ललितेश्वर सिंह (३) जमाय शक्तिनाथ (४) जमाय-नारायणदत्त (५) जमाय-शशिनाथ, (६) पुत्री-कन्या।
उपरोक्त प्रकारे कन्याक सोलह छठि प्राप्त भेल।

बेहटसँ विठ्ठो
बेहट करमहा शंकरदत्त वलियास माण्डर पाली परहट सकराढ़ी खण्डबला हरिअम
पीताम्बरसुत शशिनाथसुता खण्डवलासँ नारायणदत्त दौ (१)विश्वनाथ
राधानाथ
रेवतीनाथ (कन्टिर)
पीताम्बर
शशिनाथ (कन्या)
इन्द्रपति
धनपति(२) हृदयदत्त
रघुवर(३)
फेकू लक्ष्मीदत्त
हर्षी(४) वैद्यनाथ(५)
हर्षनाथ
सिद्धिनाथ श्यामनाथ
महेश्वर(६) महिनाथ
सेवानाथ(७)
बालमुकुन्द


सोदरपुर खण्डवला वभनियाम करमहा खण्डवला वलिराजपुर हरिअम दिगउँन्ध सोदरपुर
वेदधर
गदाधर(८) धर्मनाथ(९)
योगनाथ
दुर्गानाथ
नारायणदत्त रूदी
सन्तलाल(१०) हेमनारायण
बछरण(११)
खेली थोथी
जीरक्खन(१२) हर्षमणि
योगीलाल(१३)
कमलानाथ
शक्तिनाथ कारी
कौशिल्यानन्द(१४)


खण्डवला खौआम
रुद्र सिंह
गुणेश्वर सिंह(१५)
ललितेश्वर सिंह भवनाथ
पद्मनाथ(१६)


समान रूपेँ वरक उतेढ़ बनाओल जाएत- एहि पोथीक तीनू खण्ड देखि कए। निर्णय देबाक हेतु धर्मशास्त्रक सूत्र देखू।
वरपक्ष: कन्यहिँ सदृश वरहुकेँ उत्तेढ़ (बत्तीस) मूलक बनाओल जाइत छैक। एहि मध्य दू-प्रकारक परिचय रहैत छैक- (१)वरक पिता-पितामहादि तथा हुनका लोकनिक मातृकुलक जे वरक हेतु पितृकुल भेल, दोसर दिस वरक मायक पितृकुलक जाहि मध्य वरक मातामहादि तथा हुनका लोकनिक मातृकुलक परिचय।
वरक पितृपक्ष
रतौलीसँ लोहना १ दरिहरा २ हरिअम ३ वुधवाल ४ खण्डवला ५ नरउन
कृष्णानन्द सुत(वाचा)
बेहट करमहेसँ (चंचल)
मुकुन्द सुत कन्हैया दौ वै.नित्यानन्द
गरीबानन्द
लीलानन्द
जीवानन्द
गोपीनन्द
कृष्णानन्द सचल जयनाथ
मोहन बाबू कीर्ति सिंह गंगादत्त
एकनाथ
जगन्नाथ


६ पाली ७ खण्डवला ८ माण्डर ९ करमहा १० पवौलि ११ खण्डवला
लक्ष्मीदत्त श्यामनाथ
महेश्वर श्यामू केशव
लान्हि
दिगम्बर
वैदनाथ धर्मानन्द धर्मपति सिंह
मार्कण्डेय सिंह


१२ नरउन १३ वलियास १४ घुसौत १५ सोदरपुर १६ करमहा
धर्मपति
उमापति
जनार्दन हर्षमणि
कारी
कोशिल्यानन्द गोपीनाथ


वरक मातृपक्ष
१७ बेहट करमहा १८ सरिसव १९ पवौलि २० दरिहरा २१ खण्डवला २२ कुजौली
नन्दलाल
कन्हैयालाल
गणेशदत्त
मुकुन्द
कन्हैया धरापति धर्मानन्द
जनार्दन घनानन्द म. रुद्रसिंह
म. रुद्रेश्वर सिंह
म. रामेश्वर सिंह टीकानाथ


२३ करमहा २४ सोदरपुर २५ खण्डबला २६ तिसउँत २७ दरिहरा २८ कुजौली
हलधर
गोवर्द्धन बाबूलाल जगत सिंह
दामोदर
गोपीनाथ सिंह
रुचिनाथ सिंह गिरधारी --
पुष्पनाथ हरिनन्दन



२९ करमहा ३० माण्डर ३१ नरउन ३२ सोदरपुर
कृष्णदत्त
हेमदत्त
वित्तू बच्ची मनमोहन भूवन्धर



एहि प्रकारसँ हम सभ देखैत छी जे कन्याक जे १४म छठि दिगउन्ध सोदरपुर मूलक कारी सुत कौशिल्यानन्द मिश्र छथि से वरक पितृकुलमे अबैत छथिन्ह। जतऽ धर्मशास्त्र कहैत अछि जे ६(७) तक त्याग करबाक अछि। परञ्च कन्या छठमे स्थानमे छथि। अस्तु एहि चर्चित वर-कन्याक मध्य वैवाहिक अधिकार नहि होएत।
कोनहु कथा जँचबाक हेतु पञ्जीकार सभसँ पहिने कन्याक छठिक निर्धारण कए लैत छथि। ततःपर वरक उतेढ बनबैत छथि। तखन देखबाक रहैत छन्हि जे कन्या जिनकासँ छठि छथि से तऽ वरक परिचयमे नहि पवैत छथि। जँ से कोनो छठि भेट गेलाह, तँ देखबाक रहैछ जे वरक कोन पक्ष (पितृ-मातृ)केँ अएलाह। मातृ-पक्ष रहने अधिकार हो आओर पितृ-पक्षमे रहने नहि हो, से वचन पूर्वमे कहि आएल छी। वरक पक्षक पितृकुलमे ६ तक त्याज्य ओ सातमकेँ ग्राह्य आओर मातृकुलमे पाँचम तक त्याज्य आ छठम ग्राह्य।
एतए ईहो देखबामे अबैत अछि जे ई सभ वैज्ञानिक दृष्टिकोण तखन ताखपर राखल रहि जाइत अछि जखन बाल विवाह आ बहु-विवाहक कुरीति एहि मध्य पैसैत अछि। से कतोक गोटे एक दिससँ ससुर जमाए भए जाइत छथि तँ दोसर दिससँ साढ़ू। आ एतए पञ्जीकार विवश भए जाइत छथि कारण नियमतः एहन अनर्गल विवाह शास्त्र विहित भए जाइत अछि।
शाखा पञ्जीक विशेषता :शाखा पञ्जी एक अभूतपूर्व पुस्तक छी। एहि तरहक पुस्तक संसारक कोनो देश कोनो सम्प्रदाय वा कोनो वर्गमे नहि पाओल गेल अछि। यद्यपि ई वर्ग विशेषक पुस्तक थिक, परञ्च एहि प्रकारक पुस्तक कोनो सम्प्रदाय वा कोनो वर्गक लेल शुरू कएल जा सकैत छैक। मिथिलाक ई अद्वितीय अछि जाहिमे १००० वर्षसँ परिचयक जाल जकाँ निर्मित कएल गेल अछि। जेना कवि कोकिल विद्यापति ठाकुरक परिचय हुनक पुरुषाक उल्लेख ७ पीढ़ी पहिनेसँ लऽकेँ विद्यापतिक वंशधर वर्तमान धरि, सभक साङ्गोपाङ्ग (विद्या, उपाधि, विशिष्टता, कार्य परिवर्तन, मातृकुलक परिचय) परिचय भेटत। एहन परिचय मात्र विद्यापतिये नहि समस्त मैथिल ब्राह्मणक भेटत, एहि प्रकारक आधारपर विभिन्न विद्वान ब्राह्मणक काल निर्धारण सेहो कएल जा सकैछ।
पञ्जीशास्त्र मार्त्तण्ड धौत परीक्षामे प्रथम श्रेणीमे प्रथम स्थान पाबि महाराजाधिराज कामेश्वर सिंहक हाथें दोशाला पओनिहार स्वनाम धन्य पञ्जीकार मोदानन्द झा आ हुनक मौखिक परीक्षाक मुख्य परीक्षक छलाह महामहोपाध्याय डॉ सर गङ्गानाथ झा। पञ्जी प्र्बन्धक जे इतिहास अछि ताहिमे वर्णित अछि जे पञ्जी प्रबंधक वर्तमान स्वरूपक प्रणेता छलाह सदुपाध्याय गुणाकर झा, जनिक अठारहम पीढ़ीमे मोदानन्द झा आ उन्नैसम पीढ़ीमे विद्यानन्द झा मोहनजी अबैत छथि। आइसँ उन्नैस पुस्त पहिने जे मैथिलक वंशावलीक संकलन संवर्द्धन ओ संरक्षणक व्रत दृढ़ निष्ठासँ सदुपाध्याय गुणाकर झा लेलन्हि वा तत्कालीन विद्वत वर्ग द्वारा विश्वासपूर्वक देल गेलन्हि, से अद्यावधि निष्ठापूर्वक सुरक्षित ओ संवर्द्धित अछि।
पञ्जीक समस्त पुस्तक मिथिलाक लिपि तिरहुतामे लिखित अछि/ लिखल जा रहल अछि। आ बुझू तँ तिरहुता लिपिक प्राणाधार थिक पञ्जी प्रबन्ध।
पञ्जी-शास्त्रसँ सम्बद्ध पक्ष एहि लिपिक ज्ञानक अभावमे सामने बैसियौकऽ विषय वस्तुसँ अनभिज्ञ रहि जाइत छथि। फलस्वरूप एकर संरक्षणक प्रति सहयोग घटल जा रहल छैक।
एहिना स्थितिमे तालपत्र/ बसहापत्रपर लिखल पञ्जीक मिथिलाक्षरमे संगणकपर अंकन आ ओकर देवनागरी लिप्यंतरण आवश्यक छल जाहिसँ एकर विनाशसँ पूर्व संरक्षण भऽ सकए।

वैवाहिक अधिकार तकएवा हेतु वा सिद्धांत (अस्वजनपत्र) लिखएवा हेतु जे क्यो अभ्यागत अबैत छथि ताहि मे अधिकांशक माँग होएत छन्हि जे सिद्धांत पत्रक एक प्रति देवनागरी मे सेहों लिख दिअ।
कि विचार अछि तिरहुता लिपि नष्ट भऽ जाए। विज्ञानक चमत्कार सँ मनुष्य गण चन्द्रमा धरिक यात्रा कएलक परञ्च सामर्थ्य छैक जे एकटा लिपिक आविष्कार करत आ ओ लिपि सर्वजन संवैद्य ओ ग्राहि होएत। अपन धरोहर कें नष्ट करबाक लेल कियैक तुलायल छी? परंतु कालांतर मे विचार आयल जे समाजक विचार कियैक नहि स्वीकार कएल जाए। पाञ्जिक समस्त पोथी तिरहुता लिपि मे निबद्ध अछि। तिरहुता लिपिक ज्ञानक आभाव मे समाज पोथिक विवरण सँ अनभिज्ञ रहैत अछि। तँय निरपेक्ष सेहो। तखन समाजक भावना केँ देखैत जे कोनो कथ्य तँ अनैक लिपि मे लिखल जाए सकैत अछि आ पढि सकबाक कारणें समाजक जिज्ञासा शांत भऽ सकैत अछि।

पाँ रघुदेव झा (आइसँ नौ पीढ़ी ऊपर) आ हुनक लिखल माण्डर मुलक पुस्तक(१६९०-१७१०ई.) जे तालपत्र पर अंकित अछि, सर्वकालीन सर्वश्रेष्ठ पञ्जीकार पाँ ‘देवानन्द प्रसिद्ध छोटी झाक’ लिखल शाखा पुस्तक (१७७० ई.सँ १७८० ई.) जे तालपत्र पर लिखल अछि, अद्यावधि उपलब्ध अछि। तकर अतिरिक्त हर्षानन्द झाक शाखा पुस्तक, भिखिया झाक शाखा पुस्तक, झुलानन्द झाक शाखा पुस्तक, मोदानन्द झा ‘पञ्जिशास्त्र मार्तण्ड’(मैथिली अकादमी, बिहार सरकार द्वारा प्रदत्त उपाधि), ‘लब्ध धौत’ (मिथिलेश महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह सँ प्राप्त उपाधि), वाला शाखा पुस्तक, ‘उप-टीप’(सोतिपुरा), नगराम(पछिवारि पार), गोत्र पञ्जी, पत्र पञ्जी ई सभ एहि पोथीमे मिथिलाक्षरमे अंकित अछि। ताहि सभक अंकन आ लिप्यंतरण प्राचीन पञ्जीक संग करबाक काज सन २००० ई. क चैत मास सँ प्रारंभ कएल गेल। गोत्र पञ्जी मध्य गोत्र व मूलक विवरण, पत्र पञ्जी मध्य अपत्यक ज्ञान तथा दूषण पञ्जी मध्य वंश मे आएल दोषक ज्ञान होइत अछि। प्राचीन पुस्तक मध्य ४५० ई. सँ अद्यावधि प्रचलित शैक्षणिक उपाधि सबंधक ज्ञान होइत अछि। लिप्यंतरण करबाक अवधि मे अनुभव भेल जे मिथिलाक इतिहास बोध कतैक उच्च प्रकारक रहल अछि। पञ्जिक पुस्तक मात्र अधिकारै तकबाक लेल प्रारंभ नहि भेल, अपितु मिथिलाक लोक अभाव ग्रस्त रहितौ, तत्तकालिन शासकक वक्र दृष्टि सहितो मिथिलाक शैक्षणिक स्थिति, धर्म शास्त्रिय विवेचनाक क्षमता, साहित्यिक रचनाक योग्यता कलाकौशलक प्रवीणता कोन प्रकारक छल एहि सभ पर प्रकाश देखल। लिप्यन्तरण भेला संता वर्तमान कालिन दुनिया, जे भूमण्डलीकरणक दौर मे अछि, जानि सकत जे मिथिलांचलक सांस्कृतिक विविधता कि छल इतिहास बोध कोन प्रकारक छल- एहि सभ वस्तु केँ दुनियाक पटल पर राखल जाए। दुनियाक कोनो समाज मे एतैक विस्तृत भुभाग मे पसरल मनुष्यक वंशावली १५०० वर्ष सँ अधिके समय सँ एहि तरहें सांगोपांग नहि लिखल गेल अछि जाहि तरहें मिथिलाक लोक विपन्न रहितो परिचय संग्रह करैत रहलाह, ईमानदारी पूर्वक अपन पुरूषाक शिक्षा, तथाकथित क्षरण आ सबन्धक विवरण कलाबोध प्रवास-आप्रवासक संचित करैत रहलाह, से अद्भूते अछि।

आब पञ्जीक पुस्त कमे कएक पीढी सँ यावतो परिचय संगृहित भए गेल अछि तँ फेर श्रोत्रियादित्रय लोकनिक शाखा वाचन हो आ तथा कथित जयवार लोकनिक नहि (परिचय उपलब्धछ रहितौ) तकर की अर्थ? वंश परिचय संगृहित करबाक स्व रूप मे अनेक पड़ाव आएल अछि, पूर्व मे स्मृति सँ - बाद मे (कुमारिल भट्टक समय मे समूह लेख्यं)। पुनः वर्तमान स्ववरूप मे (पञ्जीकार लोकनि द्वारा) मिथिलेश महाराज माधव सिंहक (१७६० ई.) समयमे थोडे बुद्धि विलासी लोकनि अपन चाटुकारितासँ शाखा पुस्तकक प्रणयन महाराजक आदेशसँ पञ्जीकारसँ करबओलन्हि। आचारण वृत्ति हेतु तोता-रटंत प्रारंभ भेल। पहिने तऽ मूलहि टाक पुस्तक छल जे वैवाहिक अधिकार निरूपण हेतु यथेष्ट छल- अछि- रहत। उत्तेढक प्रारूप एहि तथ्य कें सिद्ध कए रहल अछि, धर्म शास्त्रक वचन तकरा पुष्ट करैत अछि। जखन पञ्जीकारक अवधारणा नहि छल धर्मशास्त्रज्ञ लोकनि प्रयोजन वाला व्यक्ति सँ हुनक देल वंश परिचय पर अधिकार हो वा नहि तकर निरूपण करैत छलाह तखन ओ उत्तेढक प्रारूप सँ इतर कोन तरहें विचार करैत छलाह, की ओ लोकनि धर्म विरूद्ध आचरण करैत छलाह?
अस्तु, पञ्जीकार अपन अज्ञानताक भार सँ समाज केँ दलमलित करबाक विचारक परित्याग करूथु ओ आर्ष वचनक निर्वाह प्राण-प्रण सँ करूथु अपन गढल सूत्रक नहि।प्रत्येक कन्या वा वर जाहि-जाहि व्यक्ति सँ छठम स्थान मे रहैत छथि ओ समस्त छठि समान अधिकारक (सत्ताक) होइछ , मात्र पक्ष देखबाक निर्देश अछि- पितृ कुल वा- मातृ कुल। कोनो छठिकेँ विशेषाधिकार शास्त्रक वचन सँ नहि अछि। तखन ई कहबाक की अभिप्राय जे कन्या जाहि मूल-ग्रामक होथि – वरक मातामहक मूल ओ मूल ग्राम सैह हो तँ मातृ सापिण्ड्य आठम पीढी मे (सातम पुस्तक बाद) निवृत होएत, सर्वथा भ्रान्त धारणा। एकर समर्थनमे धर्मशास्त्रक कोनहुँटा वचन नहि अछि। जँ अछि तँ लिखित विचारक सप्रमाण खण्डन करू (गल्पसँ नहि)। प्रातः स्मरणिय म.म. प. महेश ठाकुरक देल व्यवस्था संप्रमी त्यजेत सँ ...भजैत.. समाज सहर्ष स्वीकार कएलक तँ मान्य। अंततः एकटा विषय इहो अछि जे पञ्जीकर्म सँ जुड़ल व्यक्ति, समाजक धर्मक रक्षा लेल नियुक्त छथि, जे किछु विदाई वा पारिश्रमिक भेटैत छन्हि से प्रसाद स्वरूप ग्रहण करूथु नहि कि एकै तरहक पाँच टा कार्य लेल एक ठाम सँ दोसर ठाम जएबा हेतु पाँचो व्यक्तिसँ मार्ग व्यय लेल जाय, पाइ बिनु अग्रिम भेटने अधिकार नहि ताकी, ई तँ घोर अनैतिकता थीक। पञ्जीकार संस्कृतिक रक्षकक होथि, गरकट व्यापारी नहि। भावी पीढीक हेतु समय पर शिष्य तैयार करब पञ्जीकारक दायित्व थिकन्हि- पाइये टा कमायब अभिष्ट नहि होयबाक चाही। नहि सम्हरैत छन्हि तँ समय पर समाजकें एतत रूपक सूचना करथु , जे समाज- नव नव व्यक्तिकें दायित्व निर्वहण करैक हेतु तैयार करथि। सम्बद्ध व्यक्तिक अनुपस्थित होएबाक प्रातहि नव पञ्जीकारक प्रयोजन होएत, ताहि हेतु के विचार करताह?

अस्तु, से जँ अधिसंख्य लोकक मध्य प्रचलित लिपि मे ई नहि होएत तँ मिथिलाक विशिष्टता सँ दुनियाँ परिचित कोना होएत। ख्रीष्टाब्दक दशम शताब्दी सँ लऽ कें देशक स्वतंत्रता प्राप्तिक काल धरि मिथिला मे कोनो प्रकारक गमना-गमनक सुविधा नहि छल, लेखन कला सँ विज्ञ रहितौ लेखन सामग्रीक अभाव मे कागजक स्थान पर तालपत्रक व्यवहार होएत छल जे सुविधा सँ नहि प्राप्त छल तखनहुँ मैथिल समाज अपन वाङ्गमयक रक्षाक हेतु येन-केन प्रकारेण ताल-पत्र उपलब्ध करथि, छाहरिमे सुखाबथि, १४ नाम औ १.५ सै २ चाकर ताल पत्र काटि-छटि कऽ तैयार करथि। पातक वाम भाग मे १.५ भीतर गोलाकार छीद्र कए सुतरी वा कपासक मोट धागासँ पैसाकऽ गाँठ देथि। ई पुस्तक- ५००-६०० पातक बनैत छल जकर दूनु दिस काष्ठक गत्ता देल जाए आओर डोरी मे गाँठ दए पुस्तक बान्हथि। बान्ह सक्कत पड़ैत छल। पुस्तक ब्रह्मपत्री शैली मे बनाओल जाइत छल। प्रत्येक गुरू अपन शिष्य कें बतावथि जँ- पुस्तकी वदति, स्याहीक हेतु जंगली जडी-बूटी ओ लेखनीक हेतु खद्धहीक व्यवहार करैत छलाह। जलात् रक्ष तैलात् रक्ष, रक्ष स्थूल बन्धनात्- इयैह-सूत्र पाञ्जिक विद्यार्थीकँ सेहो सिखाओल जाइन्ह। अभावग्रस्त समाज एतैक कठिनताक सामना करितहुँ पञ्जीकर्म सँ जुड़ल लोक अपन आश्रितक बिनु चिंता कएने, सैद-पानि बसात सहैत- गामहि-गाम भ्रमण करैत इच्छित विवरण एकत्र करैत छलाह। पुनः समय-समय पर गाम आबि तकर सम्पादन करथि- एहि तरहेँ कार्य शत-शत वर्ष चलल। – समाज सँ सहयोग ओ सम्मान भेटन्हि परञ्च कोनो प्रकारक राजकीय संरक्षण हुनका लोकनि केँ कहियो नहि रहलन्हि। सम्पादन कार्य त्रुटि रहित करैत छलाह। अजुका सरकारी कर्मचारी जकाँ, जे घरहि बैसल वेतन ओ सुविधा भोगैत नागरिकता प्रमाण पत्र मे परिचयक स्थान मँ किछु सँ किछु भरैत जाइत छथि, नहि वरन् , पञ्जीकार लोकनि द्वारा संगृहित सूचनासँ समाजक बहुआयामी प्रयोजनक पूर्ति होइत रहल अछि- यथा सपिण्डताक निर्धारण- अशोंचदिक हेतु, वैवाहिक स्वीकृति हेतु, पिण्डदानक हेतु पुरूषाक नामक ज्ञान, विवाहक हेतु अधिकार तकौनाई, वंशक शैक्षणिक, भौगोलिक ज्ञान, आदि-आदि। उपरोक्त सभ पुस्तक कें प्रत्यक्ष राखि ७ वर्ष धरि निरंतर लिप्यंतरण (Transliteration) क कार्य सम्पन्न भेल। पाञ्जिक पुस्तक मे अंक निर्धारणक बड्ड महत्व होइत छैक अंकहि पर आधारित होइत अछि- शाखा पुस्तक। ई कार्य जँ गड़बड़ा गेल तँ बुझु जे धारमे भसिया जएबावाला स्थिति भए जाएत।प्राचीन पञ्जीसँ एकर सूत्र टूटि जाएत। अस्तु अंकन अशुद्ध नहि हो ताहि लेल एकाग्र भए लेखन कार्य कएल गेल।

किछु शब्द पञ्जिकार लोकनिसँ- पञ्जीकार लोकनि सँ विनम्र निवेदन जे मिथिलाक संस्कृतिकेँ अक्षुण्ण रखवाक हेतु अपन अल्पज्ञता ओ संकुचित प्रवृतिकेँ दूर करथु। मात्र किरानीगिरी करब- अधिकार ताकब ओ सिद्धांत कराएब आ ताहि सँ द्रव्य कमा लेब, एतबे धरि पञ्जीकारक सोच नहि होएबाक चाही। पञ्जीकर्मसँ जुड़ल व्यक्ति समाजक हेतु बड़ पैघ दायित्व ग्रहण करैत छथि। समान पुरूषा(Common Person) सँ जँ वैवाहिक स्वस्ति हेतु कन्याक सापिण्डय निवृति अनिवार्य तँ ओहि तरहेँ जँ वर ओहि पुरूषा सँ सपिण्डताक परिधि पार कए लेने छथि परञ्च कन्या समान पुरूषा सँ सपिण्डताक परिधि मे छथि तथापि वैवाहिक सम्बन्धक स्वस्ति देलहिटा जाए। एकर विरूद्ध जे पञ्जीकार निर्णय दैत छथि ई विचारि कए जे कन्या तँ ‘छठि मे पडैत छथि वर खाहे ओहि पुरूषा सँ सातम वा ताहि सँ अधिके दूरि पर रहथु- एकर की अर्थ भेल? अधिकार तकवाक प्रारूप (उत्तेढ-Format) आदि अदौ काल सँ पञ्जीकार लोकनिकें प्राप्त छन्हि, वैयाकरण लोकनि अर्थ स्पष्ट करथु। धर्मक रक्षा वा आर्ष वचनक प्रति श्रद्धा राखब एक अनिवार्य तथ्य थिक ओ तोता रटंतु जकाँ शाखा पुस्तक कण्ठस्थ करब दोसर गैर जरूरी बात। धर्म सूत्रक प्रणयन समस्त ब्राह्मण लेल अछि जाहि मे आवश्यक अछि ३२(बत्तीस) मूलक उत्तेढ बनायब (वर-पक्ष ओ कन्या-पक्ष दूनुक हेतु समान रूपें) जाहि मध्य १६टा छठिक निर्धारण- उद्देश्य सापिण्डय निवृतिक ज्ञान, अधिकार तकबा काल पञ्जीकारक समक्ष विषय (Subject) होइत अछि वर- ओ कन्या नहि की ओ समान पुरूषा(Common- Person)। जँ पहिल दोसरक सपिण्डता सँ वहिर्भूत भेल तँ दोसर कोन रूप मे वहिमूलक सपिण्डय निवृति प्राप्त कएलक तँ अधिकारक स्वस्ति परमावश्यक। वर्त्तमान विज्ञानक युग मे गुण सूत्रक (Chromosomes) निर्धारण एहि रूपक अछि आ हमरा लोकनिक पुरूषा (ऋषि लोकनि) तकरहि शास्त्रिय ढंगे पूर्वहि राखि गेलाह।
महाराजाक हेतु निहुछल कन्यासँ अपन पाँजिक रक्षार्थ कन्या चोराकेँ बियाह केलापर राजा द्वारा पञ्जीकार लोकनिकेँ बजाए हुनकर नाममे तस्कर उपाधि जोड़ब, नैय्यायिक गंगेश उपाध्यायक जन्म पिताक मृत्युक ५ सालक बाद होएब, महेशठाकुरक बहिनक विवाह कूच-बिहारक राजकुमारसँ होएब, कविशेखर ज्योतिरीश्वरक उपाधिक संग उल्लेख (हुनकर पाण्डुलिपि नेपालक पुस्तकालयसँ प्राप्त होएबासँ पूर्व), ओकर अतिरिक्त ढेर रास ढाकाकवि आ कवि शेखर लोकनिक विवरण, मुस्लिम आ चर्मकारसँ विवाहक विवरण आ समाजमे ओहिसँ भेल सन्ततिक प्रति कोनो दुराग्रहक अभाव, ई सभ पञ्जीमे वर्णित अछि।आर्यभट्टक विवरण- (२७) (३४/०८) महिपतिय: मंगरौनी माण्डैर सै पीताम्ब र सुत दामू दौ माण्ड्र सै वीजी त्रिनयनभट्ट: ए सुतो आर्यभट्टः ए सुतो उदयभट्ट: ए सुतो विजयभट्ट ए सुतो सुलोचनभट (सुनयनभट्ट) ए सुतो भट्ट ए सुतो धर्मजटीमिश्र ए सुतो धाराजटी मिश्र ए सुतोब्रह्मजरी मिश्र ए सुतो त्रिपुरजटी मिश्र ए सुत विघुजटी मिश्र ए सुतो अजयसिंह: ए सुतो विजयसिंह: ए सुतो ए सुतो आदिवराह: ए सुतो महोवराह: ए सुतो दुर्योधन सिंह: ए सुतो सोढ़र जयसिंहर्काचार्यास्त्रस महास्त्र विद्या पारङगत महामहोपाध्या य: नरसिंह:।।
५८४(A)। चैतन्य महाप्रभु: रमापति उपाध्याय करमहे तरौनी मूलक छलाह। ओ बंगाल चलि गेलाह, हुकर शिष्य रहथि चैतन्य महाप्रभु।गंगेश उपाध्याय-छादन छादन, उदयनाचार्य-ननौतीवार ननौती (करियन, समस्तीपुर), महेश ठाकुरक मातृक काश्यप गोत्री सकराढ़ी मूलमे रुद झा। रमापति उपाध्याय प्रसिद्ध विष्णुपुरी, परमानन्दपुरी वत्सगोत्री करमहा मूलक तरौनी गामक चैतन्यक गुरु।बल्लाल सेनक समयमे हलायुध आ लक्ष्मणसेन-उद्योतकर। सिंहाश्रम मूलक म.म.हलायुधसँ १२ पुस्त पूर्व माण्डर मूलक बीजी म.म.त्रिनैन भट्ट (४०० ए.डी.लगभग) एहि पोथीक प्रस्थान बिन्दु अछि(पृष्ठ १८)। हलायुध आ नरसिंह समकालीन छलाह। नरसिंह (माण्डर मूल)सँ १२ पुस्त पूर्व त्रिनैन भट्ट मे।

पञ्जीमे उपलब्ध आधुनिक सामाजिक जीवन:
ब्राह्मण खाहे श्रोत्रिय होथु वा तथाकथित जैवार विशेषाधिकार, विशेष बंधन किनको हेतु नहि। जे समाज तथा कथित रूपें जयवारक संज्ञा सँ विभूषित मिथिलाक लोक प्राचीन कालहिं सँ भारतक आन-आन सभ्यकता ओ संस्कृततिक अपेक्षा उदार माना ओ नमनशील रहल अछि, एहि ठाम कोनो प्रकारक धार्मिक कट्टरपन स्था।ई भाव नहि। सुधारक गुंजाइश सतत् बनौने रखने अछि, एहि ठाम जँ कखन कोनो काल मे खाहे कोनो प्रकारक जातिक वंडर उठल हो परंच विद्वेष स्थाेई भाव नहि रखल। अपन अपन कालक पैघ सँ पैध घटना कालातीत भए विस्मृडत होइत रहल अछि, तकर प्रमाण थिक मिथिलाक पञ्जी उपांग-दूषण पञ्जी। कोनो कालक दलमलित करएबला घटना (Burning Question) थोड़बहि समयक बाद समाज ओ मस्तिष्कप सँ हटि जाएत।
पाली मूलक-देवशर्म्मसुत कान्हमक विवाह बुधवाल मूलक गोविन्दप सुत दामूक विवाह सरिसब मूलक श्रीनाथ सुत चक्रपाणिक विवाह दरिहरा मूलक भीम सुत उमापतिक विवाह सोदरपुर मूलक श्रीहरि सुत हरिनाथक विवाह हरिअम वासदेव सुत कृष्णददेवक विवाह पनिचोभ मूलक मधुकरक विवाह- अज्ञात वंश ओ जातिमे।सरिसव मूलक भवनाथ पौत्र कमलनयन पुत्र किशाईक विवाह - वलियास चमरु सुत गंगाधरक कन्याशमे। चमरूक अपन विवाह अज्ञात कन्यावसँ। अर्थात किशाईक सासूक वंशक कोनो ठेकान नहि। एहि किशाईक सन्ता न मिथिलाक अनेक गाम मे पसरल छथि। परंच आइ समाज ओहि तथ्य केँ उचिते रूपेँ विस्मृित कए चुकल अछि। एहि रूपक अनेक घटना अछि- यथा बुधवाल मूलक माधवक पौत्री भीमक कन्याेक विवाह, जाहि लागिसँ अनेक घर व्यानप्त अछि। सतलखा रामनाथसुत जगन्नायथक मात्रिक घुसौत उधोरण सुत रतनूक मात्रिक, पाली होराई सुत रामक मातृक सकराढ़ी मूलक वेणी सुत राधवक मात्रिक, सोदरपुर मूलक पाँखू सुत चान्दिक मात्रिक, अलय मूलक दिनकर सुत हरिकरक मात्रिक, तिलय मूलक श्रीपति सुत विदूक मात्रिक इत्याुदि देवदाशी परम्पवराक छलीह अस्तुर अज्ञात मानल गेलीह परंच हुनका लोकनिक सन्तारन आइ समाजमे समादृत छथि। एहि प्रकारक उदहारण पाँजि मे भरल पड़ल अछि जे आब कालातीत भेला पर कोनो वंश पर कुप्रभाव नहि पड़त अपितु एहिना स्थित मे की निर्णय लेबाक चाही तकरा लेल मार्गदर्शन होएत।

आर उदाहरण: टेबुलक (१-९७) क नीचाँमे एहिमेसँ किछु उदाहरणक विस्तृत व्याख्या अछि।


सरिसव १७८/१ वलियास चमरू गंगाधरक मातृक सरिसव सकराढी पनिचोभ दरिहरा पाली नरवाल
भवनाथ नाथू गांगू कान्ह हेलू होराई चान्द
कमलनयन किशाई अज्ञात २३८॥०५ विशो गोगे रूद चान्द रामक मातृक देवघर
२.
वुधवाल पबौली सतलखा जगन्नाथक मातृक घुसौत रतनूक मातृक दरिहरा पाली रामक मातृक नरवाल
जाटू भीम रामनाथ उधोरण (अज्ञात) हेलू होराई (अज्ञात) चान्द
माधव भीमसुता १७८/२ लक्ष्मी जगन्नाथ (अज्ञात) रतनू चान्द राम देवधर
३.
माण्डर सोदरपुर अलय माण्डर सुरगन पचही पकलिया सिम्भुनाम
रतिपति चन्द्रपति देवे रत्नधर लगाई वंशधर कान्ह जयपति दूवे
गोढिसुता (निम्नकुल)७१/१ पाँखू भवदत्त नरसिंह सुपे राम
४.
सोदपुर १७७/२ वलियास गंगाधरक मातृक सरिसव सकराढी पनिचोभ दरिहरा पाली रामक मातृक नरवाल
मतिकर भमरू अंतर्जातिय नाथू गांगे कान्ह हेलू हेलू चान्द
भीम नाथ गंगाधर विशो गोगे रूद चान्द १७५/५ राम (अज्ञात) देवधर
सरिसव १८६ करमहा सकराढी राघवक मातृक सोदरपुर अलय माण्डर सुरगन पचही पकलिया सिम्भुनाम
नोने
नरहरि वेनी (अज्ञात) देवे रत्नधर लगाई वंशीधर कान्ह जयपति दुवे
श्रीनाथ चक्रपाणि मति राघव पाँखू भवदत्त नरसिंह सुपे राम

पवौली भानुदत एकहरा जगति सोदरपुर चान्दक मातृक अलय माण्डर सुरगन पचही पकलिया सिम्भुनाम
सुधापति सुरपति नोने पाँखू (अज्ञात) रत्नधर लगाई वंशीधर कान्ह जयपति दुवे
केशव सुता १९६/७ लक्ष्मीनाथ होरे चान्द भवदत्त नरसिंह सुपे राम
७.
सोदरपुर करमहा माण्डर अलय हरिकरक मातृक दरिहरा नीमा टकवाल सुईरी गदहा पंडोली
गदाधर रामनाथ केशव दिनकर (अज्ञात) नरसिंह दामोदर परशुराम अरविन्द
विशो महेश जगतू हरिकर केशव रविशर्म्म गोरी निधि
कुमरसुता १८४/२
८.
हरिअम उदनपुर माण्डर पचही करही राउड दरिहरा लहण्डा
गांगू दामू सुरसर स्थिति अदितु शुक्ल विशो बुधाई
केशव पागू हरि साहब साठू
दामूसुता अंतर्जातिय
९.
कोचराज पत्नी खण्डवला खौआल फनन्दह वलियास बहेराढी माण्डर
सोहागो २०८/१ सुरपति कोने हरिनाथ विभाकर वराह सागर
दुवे नोने रविनाथ गुणाकर गुणाकर स्थिति
चन्द्रपति सुता कोचराज पत्नी
१०.
पवौली घुसौत दरिहरा धारूक मातृक वहेराढी माण्डर
शिवदत्त अमरू नन्दन (अज्ञात) आंगू सागर
रूपदत २०८/२ जीवाई धारू रूद स्थिति
वाशुदेवसुता
११.
पवौली एकहरा जगति सोदरपुर पाली सतलखा गंगोली डगरक माता नदाम यवनी
भानुदत्त सुरपति नोने पाँखू दुवे दिवाकर डगर यवनी दौलतिजहाँ धनञ्जय दौलतिजहाँ ४३
सुधापति लक्ष्मीनाथ होरे चान्द हरिकर गौरीश्वर गंगाधर
केशवसुता १९६/७
हरिहर
१२
कुजौली खौआल महिन्द्रवाड पाली लाखूक मातृक गंगोली डगरक माता नदाम यवनी
गोपाल २१६/१ गोविन्द लाखू यशोधर दौलतिजहाँ डगर दौलति जहाँ धनञ्ज़य दौलतिजहाँ
वंशवर्द्धन विशो गंगाधर
वलभद्रसुता
१३.
खण्डवला माण्डर पाली दरिहरा बहेराढी जमुनी माण्डर धारेश्वरक माता
चान्द/चन्द्रपति काशी नोने गुणे गुणे राम धारेश्वर (अज्ञात)
महेश भीम बाटू अनन्दू अफेल गोनू माधव माने
गोपाल
१४.
गोढिक सरिसव घुसौत गंगोर वलहा मधुकर
सागर गांगू रतिकांत हारू सुधाकर संतति
तनया २१६/२ रत्नपाणि गुणाकर वरदत्त
रघुपाणिसुता (गोढिमाता)


१५.
दरिहरा सोदरपुर दरिहरा घुसौत तेरहुता नरवाल रतिक माता
भोला शंकर खाटू दामोदर लाखू नोनाई (अज्ञात)
मनसुख गंगाधर नरपति हरि रति
यशुसुता
१६
सोदरपुर खौआल सोदरपुर दरिहरा पनिचोभ चान्दो तिलय खौआल सोदरपुर
राघव पूरखू नागू धारू रतन कामेश्वर श्रीपति नोने हरिदत्त
रत्नपति २१५/१ हरिहरक-माता (देवदासी) दुवे राम रामकर माधव विदूक-माता ढोढे देवदास
यदुनाथ (अज्ञात)
१७. जानिक देवदास
वुधवाल खौआल जलीवाल माण्डर कुरहनि तिलय श्रीपति खौआल सोदरपुर
चान्द २१५/२ गीरू जीवे देवादित्य गुणेश्वर विद्यापतिक- माता(देवदासी) नोने हरिदत्त
भानू हरखू थेग नाथू ढोढे
सुधापति
१८. जानिक देवदास
सोदरपुर पाली सुरगन दरिहरा जीवेक- माता तिलय-श्रीपति खौआल सोदरपुर
लाखन ज्ञान रवि जीवे देवदासी लाखूक-माता ढोढे हरदत्त
जनार्दन २१४/१ वाटू वाचस्पति अमरू देवदासी
चतुर्भूजसुता १०२/०१
१९. जानिक देवदास
सोदरपुर माण्डर हरिअम माण्डर करमहा खौआल सोदरपुर
पशुपति यशोधर सोनी नन्दन पहकर जागेक माता(देवदास) ढोढे हरदत्त
श्रीहरि २१४/२ दामू देवनाथ रघु हारूक-माता
हरिनाथ अज्ञात

२०.
जानिक पवौली वुधवाल वलियास वभनियाम मताउन रकवाल तिलय- श्रीपति
देवदास २१३/१ सभापति पराण धारू होरे धर्मू कामदेव विद्यापतिक-माता(देवदासी)
गोप नारायण श्रीरामक-माता(देवदासी) मनसुख हरिपति उधे
रतिपति
२१.
जानिक दरिहरा पवौली बुधवाल खौआल जलिवाल माण्डर कुरहनि तिलय-श्रीपति
देवदास २१३/२ रामनाथ विद्यानाथ मानू गीरू जीवे देवादित्य गुणीश्वर विद्यापतिक-माता(देवदासी)
रघुनी गुणपति सुधापति हरखू थेघ नाथू विद्यापति
हरिदेव ४७/३
२२.
पश्चिम देश सँ माण्डर करमहा खौआल सोदरपुर वभनियाम सकराढी दरिहरा यमुगाम पुरहदी
आगत २१२/१ लटाउँ रघु मित्रकर शक्तू गहेश्वर टूनी लक्ष्मीनाथ कीर्तिवास मतिश्वर
होराई शिव जीवे उधोरण होरे धृतिकर
मधुसुदन-सुता(अज्ञातकुल)
२३.
पश्चिम देश सँ माण्डर खण्डवला दरिहरा बहेराढी खौआल जालय
आगत चन्द्रपति दीनू भवे वराह हरिहर रतिधर
२१२/२ गोढि गुणाकर मेधू नोने रति मतिकर(माता अज्ञात)
शिव







२४
चर्मकार तल्हनपुर टकवाल दरिहरा पञ्चोभ मेरन्दी ब्रह्मपुर बैजूक-माता
आनन्दा २११/१ गढवय जीवधर पाठक जगन्नाथ परभू बैजू आनन्दा
रवि गहाय हरि दिवाकर
मितूसुता २५३/६ हरिहर
२५
सोदरपुर माण्डर फनदह नदाम
अफेल धारू हारू कान्हा
दिवाकर विश्वनाथक-माता आनन्दाक-पुत्री सोन जयकरक-माता आनन्दाक-पुत्री
रघु २११/११

२६

सतलखा बुद्दिकर बुधवाल
मुथे सोदरपुर टकवाल नदाम सतलखा
२०९/१ गोविन्द रघुनन्दनसुता- अज्ञात कुल पशुपति हरिहर गणपति चान्द
कान्ह-विवाह वसाउन अज्ञात
बुद्धिकर
हरखू


२७
करमहा सोदरपुर माण्डर गाउल करमहा वलियास मोनारी पाली कुरिसमा केउटराम पण्डोलि
गोविन्द वेणी मेघ लागे गणपति रूद समटू श्रीकर गणपति
नोने
२०९/११ जगन्नाथ बामन (माता) अज्ञात शंकर दिनपति वंशी रवि चान्द
देवनाथ

२८
विधवा सोदरपुर माण्डर गाउल वलियास मोनारी पाली कुरिसमा केउटराम
पण्डोली
वेणी जगन्नाथ मेघ वामन-माता अज्ञात लागे
शंकर गणपति
दिनपति रुद समटू
वंशी श्रीकर
रवि गणपति चान्द
२९
२०७/१ खण्डवला बुधवाल बुधवाल माण्डर टकवाल वलियास ब्रह्मपुरा मेरन्दी कोर्थुआ
रजक धरम महेश
गोपाल
माधव गणपति
गोपी धीरू
माता-रजकी भवानीनाथ बुद्धिकर
भवनाथ केशव
रविदत्त केशव
गोपाल माँगु
गाँगु कान्ह
नरसिंह
जादू

३०
२०७/११ हरिअम वलियास नरवाल सतलखा सुरगन त्रिलाढी डीह दरिहरा

रजक धरम मानिकी सोम
वासुदेव
ज्ञानी राम
गोविन्दक-माता रजकी पराउँ
उधे कान्हा
विभू-मात्रिक रजक परम्परा भगव
रघु रत्नाकर रुद्रानन्द
विद्यानिधि

३१
१७९/१ सोदरपुर दरिहरा पाली नरवाल
रविनाथ
दूवे
मासे हेलू
चान्द होराई
रामक-माता अज्ञात चान्द
देवधर

३२
१७९/II करमहा सोदरपुर दरिहरा घुसौत दरिहरा पाली
भानू
हरखू
राघव विधुपति
रामेश्वर मतिकर
सभापति-माता अज्ञात धारू
उधोरन हेलू
चान्द होराई
रामक माता

३३
१८०/I सोदरपुर टकवाल यमुगाग्म टकवाल सुइरी
गदहा पण्डोलि
विदू
ओहरि
बाबू भवदेव
गंगाधर-मातृक अज्ञात गणपति
जूड़ाउन-माता अज्ञात रविशर्म
पराउँ-माता अज्ञात
सूयन परशुराम
गौरी अरविन्द
निधि

३४
१८०/II सोदरपुर माण्डर बेलउँच खौआल घोसियाम गदहा पण्डोलि
हाउँ
लाखन
जनार्दन मेधाकर
पिताम्वर महिधर
खखनू दामोदर
रुद माँगनि
वागेक-माता (अज्ञात) अरविन्द
लान्हि
चान्द

३५
१८१/I सोदरपुर सतलखा वभनियाम माण्डर यमुगाम सकराढी पाली गदहापण्डोलि
गदाधर
ध्रूवानन्द काशी
रामचन्द्र सुरपति
माने विष्णुपति
दामू रघुपति
ऊँमापति चाँडो
हाल्लेश्वर देवशर्म
कान्ह अरविन्द
निधि(निषिद्धकुल)

३६.
१८१/२ वुधवाल दरिहरा पचही कोरड़ा गदहापण्डोलि
रति सीधू रतनाकर कान्ह अरविन्द- (निषिद्धकुल)
गोविन्द राम शीरूक-माता गागे हरिकर
दामू
३७.
१८२/१ सरिसव करमहा सकराढी पनिचोभ माण्डर यमुगाम नीमा मुसरी गदहापण्डोलि
नोनी नरहरि वेणी हरिकरक-माता अज्ञात वागीश्वर रघुपति टकवाल परशुराम अरविन्द निधि (निषिद्धकुल)
श्रीनाथ मति राघव महथू शीरू दामोदर गौरी
चक्रवाणि रविशर्म्म
३८.
१८२/२ सोदरपुर माण्डर हरिअम माण्डर वुधवाल मताउन गदहापण्डोलि
पशुपति यशोधर सोन्हि नन्दन राम भीम अरविन्द- (निषिद्धकुल)
श्रीहरि दामू देवनाथ रघुक-माता नाथू उमापति निधि
हरिनाथ (अज्ञात) शीरू
३९.
१८३/१ सोदरपुर पाली माण्डर पचही माण्डर गदहापण्डोलि
बसाउन महाई मांगु रत्नाकर कान्ह अरविन्द
उमापति माधव रति अफेलक-माता गांगे-माता निधि-(निषिद्धकुल)
बाँके (अज्ञात) (अज्ञात) हरिकर

४०.
१८३/२ हरिअम दरिहरा वुधवाल सकराढी पनिचोभ माण्डर यमुगाम नीमा टकवाल गदहापण्डोलि
सोम दामू रघु महाइ मधुकर वागीश्वर रघुपति दामोदर रविशर्म्म अरविन्द
वासुदेव
कृष्णदेव कृष्णदाश माधव मणीषक मातृक(अज्ञात) हरिकरक माता शीरू निधि-(निषिद्धकुल)

४१.
१८४/१ हरिअम उदनपुर माण्डर पचही करही राउढ़ लहन्दा शुदी
गांगू दामू सुरसर स्थिति अदितू दरिहरा दुधाई
केशव पागू हरि साहेब साँचू शुक्लविशो
दामू अंतर्जातिय
४२.
१८४/२ सोदरपुर करमहा माण्डर अलय दरिहरा नीमा सदूरी गदहापण्डोलि
गदाधर रामनाथ केशव दिनकर उधोरण
नरसिंह टकवाल परशुराम अरविन्द
विशो महेश जगतू हरिकरक-माता केशव दामोदर रवि निधि-(निषिद्धकुल)
कुमर (अज्ञात) रविशर्म
४३
१८६/१ पवौली एकहरा जगति सोदरपुर अलय माण्डर सुरगन पचही पकलिया सिम्भुनाम
भानूदत्त सुरपति नोने पाँखू रत्नधर लगाई वंशीधर कान्ह जयपति दूवे
सुधापति लक्ष्मीनाथ होरे चान्दक-माता भवदत्त नरसिंह सूपे राम
केशव (अज्ञात)
४४.
१८६/२ सरिसव करमहा सकराढी सोदरपुर अलय माण्डर सुरगन पचही पकलिया सिम्भुनाम-करमहा
नोने नहरि वेणी देवे रत्नधर लगाई वंशीधर कान्ह जयपति दूवे
श्रीनाथ मति राघवक-माता पाँखू भवदत्त नरसिंह सूपे राम
चक्रपाणि
४५.
१८७/१ सोदरपुर पाली सोदरपुर खौआल पवौली वलियाम गंगोली नवरंगा(अंतर्जातिय)
वसाउन रघुपति बाबू रघुपति सुपन दूवे वरदत्त कोउयार
पशुपति जशाई शिवक-माता दूवे देवदत्त शक्ति सोमदत्त श्रीपति
नरहरि (अज्ञात) दहिमत वाशुदेव
४६.
१८७/२ सोदरपुर हरिअम माण्डर खण्डवला वलियास गंगोली नवरंगा दहिभत
शंकर वेणी माचो श्रीहरि दूवे वरदत्त कोइयार वाशुदेव
गोविन्द जूडाउन जोरक-माता गुदहरिक-माता शक्ति सोमदत श्रीपति
रघुनन्दन (अज्ञात) (अज्ञात)
४७.
१७७/१ सोदरपुर वलियास सरिसव सकराढी पनचोभ दरिहरा सुण्डिपार पाली
मतिकर भमरू नाथू गोगे कान्ह हेलू हेलू
भीम गंगाधरक-माता विशो गागे रूद चान्द रामक-माता
नाथ (अज्ञात) (अज्ञात)
४८.
१८८/१ ताँतनी सोदरपुर सकराढी जालय खण्डवला भराठी जालय खण्डवला भदुआल पागू
आझो हलधर गोविन्द गिरपति लान्हि सकराढी जयशर्म नरदेव कोइयार राम
धारू कल्याणक-माता (अज्ञात) मन्नु विभाकरक-माता नरसिंह विष्णुशर्म
श्रीनाथसुता ताँती जाति मे विवाह (अज्ञात) भाष्कर
४९.
१८८/२ चर्मकारिणी माण्डर वभनियाम छादन
तत्त्वचिंतामणि कारकगंगेश छादनगंगेशक नाँई रत्नाकरक-मातृक(अज्ञात) गंगेश
वल्लभा भवाइ माहेश्वर
जीवे
५०.
चर्मकारिणी सोदरपुर अलय माण्डर नरउन पनिचोभ खण्डवला डीह दरिहरा ब्रह्मपुर कोरई
मेधा शंकर गादू अफेल मुशे विद्यापति रत्नाकर मतिकर मांगु माण्डर
१८९/१ गोविन्द श्रीनाथ वासुदेव जादू रमापति सुरपतिक-माता (चर्मकारिणी) गांगू-मेधा
परशुराम



५१
१८९/११ सोदरपुर पाली माण्डर सकौना सकराढी खण्डवला डीह दरिहरा ब्रह्मपुरा
बसाउन
पशुपति
वाचस्पति
भवानी-माता चर्मकारिणी
महाई
माधव माँगू
रति बाढन
दूबे नारायणकर
रामकर
रत्नाकर
सुरपति-माता अज्ञात मतिकर
मांगू
मेधा



५२
१९०/१
हड़िणी
रुद्रमति सोदरपुर माण्डर कुजौली तिसूरी खण्डवला पाली घोसियाम
डालू
गादू
विशो गिरी
गागे कान्ह
सुरपति खोजो
गूदी-माता
अज्ञात हाड़ी शिवदत्त
शुभदत्त-माता
अज्ञात मतिश्वर जगन्नाथ-रुद्रमति विवाह
गोंग


५३
१९०/II
नरउन माण्डर जमूनी तिसूरी डीह खण्डवला नवहथ पाली धोसियाम
मधुकर
रुचिकर
टूने गहाइ
दिनकर वीर खाँजो शिवदत्त
शुभदत्त-माता अज्ञात मतिश्वर जगन्नाथ-रुद्रमति
गोंग

५४
१९१/I
खौआल वहेराढ़ी माण्डर सकौना दिघोइ पाली
पाली
रजेश्वर
सुता रजक साधुकर
श्रीकर
विभाकरसुता गोंगू
ढोढ़े विभू
भानूकर गोपाल
गौरीपति माधव
जगाई रतेश्वर विवाह अन्तर्जातीय

५५
१९१/II
खौआल वहोराढ़ी माण्डर दिघोइ
साधुकर
श्रीकर
विभाकर गांगू
ढोढे विभू-माता
भानुकर सुरेश्वर-रजकक कन्या रजकक विवाह हड़िनी रुद्रमतिक पुत्रीसँ

५६
१९२/I
सोदरपुर करमहा एकहरा खौआल बेलउँच माण्डर कुरहनि पकलिया
लगारी
गोपाई मणिधर
राम
वामदेव रघुनाथ राम
गणपति जाटू
परान दीनू
थेघ देवादित्य
पाँखू गुणीश्वर
दीनू श्रीकर
गोपपुत्री विवाह हरिनाथ


नरउन
गढ़
अलय
नरउन
गोरोहिनी

सोन
कान्ह रुद
सुधाकर सूज
जगन्नाथ कुलपति
रातू


५७
१९२/II
सोदरपुर बेलउँच पाली गंगोली
अलय माण्डर गोरहनी
काशी
गुणी
शंकर देवनाथ
कृष्णा-माता अज्ञात गोविन्द
होरे राम
महाई यशाई
नारायण हरिशर्म्म
देशू कुलपति
रातू

५८
१९३/I
हरिअम दरिहरा बुधवाल सकराढ़ी
वहेराढ़ी दरिहरा वुधवाल माण्डर गोरहिनी
सोम
वासुदेव
कृष्णदेव दामू
कृष्णदाश रघु
माधव महाई
भनेश दिनू
रघु भीम
डाकू रामादित्य
जोर देशू
लान्हि-माता अज्ञात परिसरा
कुलपति
रातू

५९
१९३/II
सोदरपुर घुसौत माण्डर जालय भरेहा पवौली माण्डर गोरहिनी
मणिधर
राम
कृष्णदेव रतनू
भवाई जीबधर
कल्याण जीवे
राम वंशीधर
शीरू जीवे
सुरसर आँगनि
हरदत्त परिसरा
कुलपति
रातू

६०
१९४/I
चर्मकार हिरुआ
सोदरपुर माण्डर
फनन्दह पकलिया अलई बेलमोहन
अफेल
दिवाकर
रघुसुता धारू
विद्यानाथ (माता) अज्ञात हारु
सोने-(माता) अज्ञात निधि सुता-अन्तर्जातीय परान
गिरु-चर्मकार हिरुआक पुत्रीसँ

६१
१९४/II
तैलिक देवाई खण्डवला तिसौँत पण्डोल खजूरी सकराढ़ी
महिपति
कान्ह
विष्णुपति जीवेश्वर-माता अज्ञात
नन्द वासुदेव
सुपन पनिचोभ
धनपति चान्द तैलिक देवाई अन्तर्जातीय

६२
१९५/I
करमौलि हरिअम्ब दरिहरा फनन्दह करमौली
गंगोली
पाण्डे पाली चान्दो फनन्दह पाण्डोलि
गांगोली

गंगोली
पाण्डेकर्म माँदू
गाँगु
केशवसुता महापात्रसँ विवाह भवशर्म
वर्द्धमान भीम
नरसिंह करम
साधुकर करम पमकर
दुर्गादित्य
धरादित्य
पाण्डेकरम सूर्यकर
हरादित्य भीम
नरसिंह

६३
१९५/II
चर्मकार हिरुआ
वुधवाल सकराढ़ी पाली माण्डर पुनन्दह पकलिया अलय बेलमोहन
शिरू
मानू
नारायण रतिपति
जसाउन हरपति
अमरु दिनकर
सुधे शंकर निधि एसुता परान
गीरू-चर्मकार हिरुआ

हारु







६४
१९६/I
हड़िनी रुद्रमति
रजक परम्परा
दरिहरा करमहा पवौली वुधवाल माण्डर दिघोय
शक्तू
जीवे
रामदेवसुता जोर
भवनाथ रुचिदत्त
गादू होरे
उधे-माता विभू-माता- भाष्कर
रामकर सुरेश्वर-रजकक कन्या-विवाह हड़िनी रुद्रमतिक कला अन्तर्जातीय


६५
१९६/II

रजक परम्परा
दरिहरा पाली माण्डर दिघोइ
अन्तर्जातीय सोमेश्वर
सिद्धेश्वर
सुपन श्रीधर
रामदत्त-माता अज्ञात दूबे
सुपे सुरेश्वर-रजकक कन्या-रजकक विवाह रुद्रमति कन्या





६६
१९७/I
चाम्पो यवनी
माण्डर पचही पवौली पकलिया तिरलाठी करनैठा कोइयार
कृष्णपति
सूर्यपति
भैरव शंकर
गणपति मुरारी
बागे चारुदत्त
गांगू हरिकर
दिवाकर चक्रेश्वर
राम शक्ति-पत्नी चाम्पो यवनी

६७
१९७/II
रजकक परम्परा
सोदरपुर हरिअम उदनपुर झंझारपुर पकलिया
भवे
रघुपति
रतिपति विभू
बसाउन खाँतू
पाँखू-माता रजकक परम्परा
माने-माता
लक्ष्मीधर

६८
१९८/I
वुधवाल पवौली सतलखा घुसौत तेरहोत कोइयार भदुआल
जाटू
माधव
भीम भवदेव
लक्ष्मी रामनाथ
जगन्नाथक माता धोरण
रतनू श्रीकर
सूपे-माता लक्ष्मेश्वर
जगन्नाथ अदित्य
भवानी

६९
१९८/II
सोदरपुर करमहा माण्डर पंचोभ महुआ भदुआल
गदाधर
विशो
कुमर रामनाथ
महेश केशव
जगतू-माता अज्ञात रतिनाथ
त्रिपुरे गिरिपाणि
रामपाणि सूज




७०
१९९/I
सोदरपुर सतलखा वभनियाम माण्डर यमुगाम सकराढ़ी वहेराढ़ी भदुआल
गदाधर
ध्रुवानन्द
हरिकेश काशी
रामचन्द्र सुरपति
माने विष्णुकान्त
दामू रघुपति
उमापति चाँड़ो-माता अज्ञात
हल्लेश्वर सोम
होरे हरिकेश

७१
१९९/II
वलियास गंगोली विठुआल खौआल तिरलाठी भदवाल
रघु
रामनाथ
नरहरि रघु
रामदेव चान्द
दशरथ-माता अज्ञात दामोदर
वासु धनेश्वर
बोध अदित्य
मानू

७२
२००/I
सोदरपुर वुधवाल जगति नरउन भदवाल
गदाधर
विशो
भानू धीरू
रामनाथ नोने
मिसरू डालू
रुचि-माता अज्ञात आदित्य
मानू

७३
२००/II
सोदरपुर बहेराढ़ी सोदरपुर चकलिया दरिहरा पाली पवौली
श्रीकर
रघुनाथ
कृष्णदेव उमापति
परमानन्द खेदू
लाखू रत्नधर
हरिनाथ रतीश्वर
रघुनाथ-माता अज्ञात गणपति
रति-माता अज्ञात नरसिंह चान्द-माता अज्ञात










७४
नरबंगा शाखा
२०१/I
यादव जयसिंह
माण्डर पाली खौआल पवौलि वलियास गंगोली नरबंगा दहिभत
शिवपति
यज्ञपति
अफेल मुरारी
पाँखू रघुपति
दूबे सुपन
देवदत्त दूबे
शक्ति वरदत्त
सोमदत्त नोहरि
श्रीपति-अज्ञात कुल वासुदेव

७५
२०१/II
यादव रहमू
खण्डवला दरिहरा वुधवाल सोदरपुर दरिहरा फनन्दह कुजौली पकलिया अलय पंचोभ
म.म.दामोदर
म.म.विश्वम्भर
हृषिकेश पत्नी यादव जीवे
रामदेव मोनि
गणपति भैरव
ठकरु-माता अज्ञात सूपे
रातू महनू
कान्ह विभू
गुणे भासे
मानू हीरे
हारू

७६
२०२/I
पण्डुआ हरिअम माण्डर वहेराढ़ी सतलखा पचही निचिता अलय माण्डर जालय सिंहाश्रम
जानू
गोपाल
यदुनाथ नन्दन
बूटन-माता अज्ञात महेश
रघु बराह
दीनू भासे
नोने यज्ञपाणि
रतिपाणि गणेश्वर
माधव साहेब
मुरारी
कीर्तिधर
मूलधर
पाण्डे
सरवे
७७
२०२/II
सोदरपुर करमहा माण्डर अलय माण्डर जालय सिंहाश्रम
गदाधर
बीसो
कुमर रामनाथ
महेश केशव
जगतु दिनकर
हरिकर सुरारी
चान्द-माता अज्ञात कीर्तिधर
मूलधर
पाण्डे
सरवे

७८
२०३/११
सोदरपुर सकराढ़ी पाली माण्डर फनन्दह पकलिया अलय बेलमोहन
पाँखू
पुरखू
भवानन्द माधव-माता
यदुनाथ हरपति
अमरू दिनकर
सुधे सोरे
हारू निधि एसुता परान
गीरु-विवाह हिरुआ चर्मकारिन

७९
२०३/१
परम ब्राह्मण-(महापात्र)
घुसौथ खौआल कुजौली मताउन दरिहरा गढ़ अलय डीह दरिहरा
केशव
रुचि
भवदेव गौरी
माधव रामधर
कृष्ण-माता अज्ञात नारू
बाटू-माता अज्ञात जसाई लक्षेश्वर
होरे-परमब्राह्मण
८०
२०४/१
सोदरपुर वहेराढ़ी सोदरपुर चकलिया विहरा दरिहरा पाली अलय डीह दरिहरा
श्रीकर
रघुनाथ
कृष्णदेव उमापति
परमानन्द
छेदू
लाखू रूपधर
हरिनाथ रूपधर
रघुनाथ-माता-अज्ञात गणपति
रति-माता अज्ञात महेश्वर
जसाई लक्षेश्वर
होरे-परमब्राह्मण
८१
२०४/II
वुधवाल माण्डर जालय कुजौली मताउन दरिहरा लय डीह दरिहरा
रति
गोविन्द
वांगु श्रीमणि
टेकी-माता अज्ञात पागु
सुधापति गांगु
रामधर नारू
बाटू-माता अज्ञात जसाई लक्षेश्वर
होरे-परमब्राह्मण
८२
२०५/I
गुरुपत्नी खण्डवला करमहा नरउन तेरहोता कुजौली मराड़
ज्ञानपति
सुरपति
दूवे गंगेश्वर
श्रीधर गौरीश्वर
मुरारी भवादित्य
राजू शिव भट्टभूषण-गुरुपत्नीसँ विवाह
८३
२०५/II वुधवाल खौआल बेलौंच विस्फी अलय डीह दरिहरे डीह दरिहरा
परान
मुरारी
अनन्त बाटू
रतन रघु
अनन्त रूपे
धीरू-माता अज्ञात जसाई
रघु-माता अज्ञात
गौरी लक्षेश्वर
होरे लक्षेश्वर
होरे-परमब्राह्मण
८४
२०६/I
गंगोली परमब्राह्मण सोदरपुर सकराढ़ी जालय कुजौली मताउन दरिहरा अलय दरिहरा
पाँखू
पुरखू
भवानन्द माधव-माता
यदुनाथ सुन्दर
यशोधर गांगू
रामधर नारू
बाटू-माता अज्ञात महेश्वर
जसाई लक्षेश्वर-विवाह गंगोली परमब्राह्मण
८५
२०६/II सोदरपुर बेलौंच पाली गंगोली अलय दरिहरा
काशी
गुणी
शंकर देवनाथ
कृष्ण-माता अज्ञात गोविन्द
होरे राम
महाय जसाई
नारायण-माता अज्ञात लक्षेश्वर
होरे-विवाह पथ पतिता कन्या
८६
२१६/I
यवनी दौलत जहाँ पुत्री सोदरपुर खौआल महिन्द्रवार पाली गंगोली खण्डवला माण्डर पाली दरिहरा बहेराढ़ी
रघुपति
रतिपति
बलभद्र गोविन्द
बीसो नाथू
यशोधर डगरू-माता अज्ञात
गंगाधर चन्द्रपति
महेश
गोपाल काशी
भीम नोने
बाटू गुणे
आनन्दु गुणे
अफेल-यवनीपुत्रीसँ विवाह

८७
जमूनी माण्डर चकरहद हरीनी दिघोय त्रिपुरे गोण्डि
राम
गोढ़ि धारेश्वर-माता अज्ञात
माधव
माने माने
हरिकण्ठ धनन्जय
गोढ़ाई गोण्डि- गाउँ
पुरन्दर पुत्री
८८
२२७ महिषी वुधवाल सोदरपुर वलियास करमहा सकराढ़ी पंचोभ पवौली पाली
चान्द
रामचन्द्र
गरुड़
रमणी
बालगोपाल
मही रुचि
जयदत्त रुद
हरिनाथ
रुचिनाथ दुखन सतार हरीश्वर
धाने
गोनू
रामकृष्ण वाचस्पति
महेश जानू
धरमू
हरि कृष्णदेव
मुकुन्द
८९
२२६/II नरौन पाली पाली दरिहरा करमहा एकहरा माण्डर सोदरपुर
टूने
गोनू
हरिपाणि
हरिनाथ
प्राणपति दामू
गोपी धीरू
श्रीनाथ
चीकू गोपाल
रतिदेव पशुपति
दशरथ
रामचन्द्र
परमानन्द हरखू
गोपी नरहरि
लक्ष्मीनाथ
अभिमन्यु हरखू
जयराम
९०
२१८/I
पश्चिम देशसँ आगत चाँरो करमहा सरिसव वभनियाम यमुगाम पुरहदी
गंगेश्वर
राम
हरिकर गांगू
रत्नपाणि गोविन्द
ऐंठो कीर्तिवास
नितिकर-माता अज्ञात मतीश्वर
धृतिकर
९१
२१८/II सोदरपुर पाली सोदरपुर दरिहरा खण्डवला वुधवाल खौआल ब्रह्मपुरा पुरहद्दी
नाथू
वासुदेव
श्रीपति नरपति
रुचि थेघ
यशोधर धीरू
लाखन कुसुम
धाने वासू
वागू सूभे
पाँथू रघुनाथ
माँगू रातू
९२
२१९/I
केरवाल शाखा महिन्द्रवार पाली गंगोली दरिहरा केरवाल पाली मोरसण्ड करमहा
भादू
नाथूक माता-अज्ञात
यशोधर गंगाधर
गदाधर गोविन्द
सिरू जयदत्त
गोपाल ब्रह्मेश्वर
स्थिति
९३
२१९/II सोदरपुर दरिहरा पवौली सुसैला दरिहरा
गोपीनाथ
हाउँ
जीवे सुरसर
वीर
कुजौली
मुरारी
जागे हरिहर
शशिधर सूरे
माधव लक्षेश्वर
होरे-विवाह गंगोली पथ पतिता कन्या
९४
२२०/I
वार्तिनी विधवा पाली पवौली माण्डर पाली पुरिसमा पंडौली
हरि गोनि
सुधाकर बागे
दूवन-माता अज्ञात सर्वाय
श्रीकर समरू
वंशी श्रीकर
रवि गणपति
चान्द-विध्वाक सन्तान
९५
२२०/II हरिअम सोदरपुर करमहा खौआल जमुनी खौआल घोसियाम सुरगण होइयार
नरहरि
भवे
मुरारि राम
भीम हरिकर
मीतू सुधाकर
बुद्धिकर देवे
महेश्वर दास
शशिकर वशिष्ठ
देवशर्म्म
नोने शिवसिंह
धाम





९६
२२१/I
धीवर दासी कुजौली माण्डर नरउन माण्डर सुरगण निखुती
जीवे
महाय
गोपीनाथ प्रीतिकर
शशि शशि
जीवे भवादित्य
गणपति नारायण
डालू मंडन-पत्नी धीवरदासी
९७
२२१/II माण्डर करमहा खौआल बेलौँच पाली पचही बलहा
लटाउँ
होराय
मधुसूदन रघु
शिव मीतू
जीवे-माता अज्ञात मित्रादित्य
केशू माधव
गोप-विवाह दासी इन्द्र
भव खाँजो
दामू
टेबुल (१-९७)क उदाहरण १ क व्याख्या: गुणवति हिमशा जे आन जातिक रहथि, हिनकर विवाह वलियासमूलक चमरूसँ भेलन्हि, जाहिमे बालक गंगाधर भेलाह। एहिमे हुनकर संतति सरिसव मूलक नाथूसँ पुत्रीक विवाह- पुत्र विशो, फेर विशोक कन्याक विवाह सकराढ़ी मूलक गांगूसँ- ओहिमे बालक गोगे, गोगेक पुत्रीक विवाह पनिचोभ मूलक कान्हसँ ओहिमे पुत्र रुद, रुदक बेटीक विवाह दरिहरा मूलक हेलूसँ ओहिमे पुत्र चान्द, चान्दक पुत्रीक विवाह पाली मूलक होराईसँ जाहिमे पुत्र राम-रामक मातृक अज्ञात। रामक सन्तान (पुत्री)क विवाह नरवाल मूलक चान्दसँ। तिनकर बालक देवधर जे पूर्णतः शुद्ध भेलाह (छठम पीढ़ीमे)।

एहिना-

बहेराढ़ी सँ वराहसुत नोनेक विवाह
खौआल हरिहर सुत रतिक विवाह
माण्डहर मूलक गोंढि सुत शिवक विवाह
खण्डिबलासँ दिनू सुत गुणाकरक विवाह
दरिहरासँ मने सुत मेघक विवाह

तल्हरनपुर मूलक रविसुत मिलूक विवाह
टंकबालसँ जीवधर सुत गहाईक विवाह
दरिहरा पा. हरिसुत हरिहरक विवाह
पनिचोभ जगन्ना थक विवाह
सोदरपुर दिवाकर सुत रघुक विवाह


नदामसँ कान्हकक विवाह
सोदरपुरसँ रतिपति सुत बलभद्रक विवाहक लागि
खौआल गोविन्दि सुत विशोक विवाहक लागि
खण्ड बला महेश सुत गोपालक विवाहक लागि


खण्ड बला सुरपति सुत दूवेक विवाहक लागि
करमहा गंगेश्वबर सुत श्रीधर
नरउन गौरीश्ववर सुत मुराठी
सकराढ़ी भवादित्य‍ सुत रामू
कुजौली शिवक विवाह


वुधवालसँ परान पौत्र मुरारी सुत अनन्तक विवाह
खौआलसँ वादू सुत रतनक विवाह
बेलउँच रघु सुत अनन्त क विवाह
विस्फी सँ रूपेक विवाह
अलयसँ जसाईक विवाह


सोदरपुरसँ पुरखू सुत भवानन्दह
सकराढ़ीसँ माधवक विवाह
जालयसँ सुन्दधर सुत यशोधरक विवाह
कुजौली गांगू सुत रामधरक विवाह


सोदरपुर जीवेक विवाह
दरिहरा सुरसर सुत वीरक विवाह
माण्डारसँ सवाई सुत सुरसर क विवाह
पालीसँ समरु सुत सुरसरक विवाह
कुरिसमा सकराढ़ीसँ श्रीकर सुत रविक विवाह



खण्डसवला विश्वकम्भकर सुत हृषिकेशक विवाह
दरिदरा जीवे सुत रामदेवक विवाह
बुधवालसँ मणि सुत गणपतिक विवाह
दरिहरासँ सुपे सुत रातूक विवाह
फनन्दाहसँ महनू सुत कान्हिक विवाह


सोदरपुर सँ पुरखू सुत भवानन्दक विवाह
सकराढ़ी सँ माधवक विवाह
माण्ड़रसँ दिनकर सुत सुधेक विवाह
फनन्दह सँ सोरे सुत हारूक विवाह


सोदरपुर मणिधर पौत्र रामसुत वासुदेवक विवाह
करमहा रघुनाथ सुत हरिनाथक विवाह
एकहरा रामसुत गणपतिक विवाह
खौआल जादूसुत परानक विवाह
बेलउँचसँ दिनूसुत थेघक विवाह
बेलउँचसँ दिनूसुत


खौआल श्रीकर सुत दिवाकर विवाह
बहेराढ़ी गांगु सुत दोक विवाह
सकौना गोपाल सुत गौरी पतिक विवाह
दिधोय माधव सुत जगाईक विवाह


छादनसँ तत्वस चिन्तावमणि कारक
गंगेशक वल्लसभा चर्मकारिणी पितृ परोक्षे पञ्च वर्ष व्य तीते तत्वश चिन्तालमणि कारक गंगेशोत्पकत्ति



सोदरपुर गोविन्दि सुत परशुरामक विवाह
अलयसँ गादू सुत श्रीनाथक विवाह
माण्ड रसँ अफेल सुत गादूक विवाह
पनिचोभ सँ विद्यापतिसुत रमापतिक विवाह





खण्डोबलासँ सुरपतिसुत दूवे सुत चन्द्र पतिक पुत्रीक विवाह
पश्चिम दिशासँ आगत
अज्ञात कुलशीलक कन्याुक लागिमे भेलन्हि




चर्मकारिणी आनन्दा्क सन्ताानक
लागि मे छलन्हि





यवनी दौलति जहॉंक सन्तापनमे





माण्डदर मराड़ मूलक भट्ट भूषण जे गुरू पत्नीसँ विवाह कएल तनिक सन्ता नक लागिमे रहन्हि





परम ब्राह्मण (महापात्रक) पुत्रीक संतानक लागि मे रहन्हि






महापात्रक सन्तामनक
लागिमे छलन्हि




वार्तिनी विधवा परम पथ पतिताक
सन्तािनक लागि मे छलन्हि






यादव रहमूक पुत्रीक सन्ता नक लागि मे छलन्हि






चर्मकार हिरुआक पुत्रीक सन्ता‍नक लागिमे छलन्हि





गोप पुत्रीक सन्तासनक लागिसँ छल







रजकक कन्यार हड़िनी रूद्रमतिक पुत्रीक सन्ता नक लागिमे छलन्हि










चर्मकारिणी मेधाक सन्ताननक लागिमे छलन्हि








आसामक कोच राजवंशी राजा सँ छलन्हि पुत्रीक नाम सोहागो




(क्रमशः-२ मे)

महाकाव्य- असञ्जाति मन - गजेन्द्र ठाकुर

असञ्जाति मन

ई पुरातन देश नाम भरत,
राज करथि जतए इक्ष्वाकु वंशज।
एहि वंशक शाक्य कुल राजा शुद्धोधन,
पत्नी माया छलि, कपिलवस्तुमे राज करथि तखन।
अश्वघोषक वर्णन ई सकल,
दैत अछि सम्बल असञ्जाति मनक।

माया देखलन्हि स्वप्न आबि रहल,
एकटा श्वेत हाथी आबि मायाक शरीरमे,
पैसि छल रहल हाथी मुदा,
मायाकेँ भए रहल छलन्हि ने कोनो कष्ट,
वरन् लगलन्हि जे आएल अछि मध्य क्यो गर्भ।



गर्भक बात मुदा छल सत्ते,
भेल मोन वनगमनक,
लुम्बिनी जाए रहब, कहल शुद्धोधनकेँ।

दिन बीतल ओतहि लुम्बनीमे दिन एक,
बिना प्रसव-पीड़ाक जन्म देलन्हि पुत्रक,
आकाशसँ शीतल आ गर्म पानिक दू टा धार,
कएल अभिषेक बालकक लाल-नील पुष्प कमल,
बरसि आकाश।

यक्षक राजा आ दिव्य लोकनिक भेल समागम,
पशु छोड़ल हिंसा पक्षी बाजल मधुरवाणी।

धारक अहंकारक शब्द बनल कलकल,
छोड़ि “मार” आनन्दित छल विश्व सकल,
“मार” रुष्ट आगमसँ बुद्धत्वप्राप्ति करत ई?
माया-शुद्धोधनक विह्वलताक प्रसन्नताक,
ब्राह्मण सभसँ सुनि अपूर्व लक्षण बच्चाक,
भय दूर भेल माता-पिताक तखन जा कऽ,
मनुष्यश्रेष्ठ पुत्र आश्वस्त दुनू गोटे पाबि कऽ।

महर्षि असितकेँ भेल भान शाक्य मुनि लेल जन्म,
चली कपिलवस्तु सुनि भविष्यवाणी बुद्धत्व करत प्राप्त,
वायु मार्गे अएलाह राज्य वन कपिलवस्तुक,
बैसाएल सिंहासन शुद्धोधन तुरत ।

राजन् आएल छी देखए बुद्धत्व प्राप्त करत जे बालक।
बच्चाकेँ आनल गेल चक्र पैरमे छल जकर,
देखि असित कहल हा मृत्यु समीप अछि हमर,
बालकक शिक्षा प्राप्त करितहुँ मुदा वृद्ध हम अथबल,
उपदेश सुनए लेल शाक्य मुनिक जीवित कहाँ रहब।

वायुमार्गे घुरलाह असित कए दर्शन शाक्य मुनिक,
भागिनकेँ बुझाओल पैघ भए बौद्धक अनुसरण करथि।

दस दिन धरि कएलन्हि जात-संस्कार,
फेर ढ़ेर रास होम जाप,
करि गायक दान सिंघ स्वर्णसँ छारि,
घुरि नगर प्रवेश कएलन्हि माया,
हाथी-दाँतक महफा चढ़ि।

धन-धान्यसँ पूर्ण भेल राज्य,
अरि छोड़ल शत्रुताक मार्ग,
सिद्धि साधल नाम पड़ल सिद्धार्थ।

मुदा माया नहि सहि सकलीह प्रसन्नता,
मृत्यु आएल मौसी गौतमी कएल शुश्रुषा।

उपनयन संस्कार भेल बालकक,
शिक्षामे छल चतुर,
अंतःपुरमे कए ढेर रास व्यवस्था विलासक,
शुद्धोधनकेँ छल मोन असितक बात,
बालकक योगी बनबाक।

सुन्दरी यशोधरासँ फेर करबाओल सिद्धार्थक विवाह,
समय बीतल सिद्धार्थक पुत्र राहुलक भेल जन्म।

उत्सवक संग बितैत रहल दिन पल,
सुनलन्हि चर्च उद्यानक कमल सरोवरक,
सिद्धार्थ इच्छा देखेलन्हि घुमक ।

सौँसे रस्तामे आदेश भेल राजाक,
क्यो वृद्ध दुखी रोगी रहथि बाट ने घाट।

सुनि नगरवासी देखबा लेल व्यग्र,
निकलि आएल पथपर दर्शनक सिद्धार्थक ।

चारू कात छल मनोरम दृश्य,
मुदा तखने आएल पथ एक वृद्ध।

हे सारथी, सूतजी के अछि ई,
आँखि झाँपल भौँहसँ,
श्वेत केश,
हाथ लाठी,
झुकल की अछि भेल?

कुमार अछि ई वृद्ध,
भोगि बाल युवा अवस्था जाए
अछि भेल वृद्ध आइ ।

की ई होएत सभक संग,
हमहू भए जाएब वृद्ध एक दिन?

सभकेँ अछि बुझल ई खेल,
फेर चहुदिस ई सभ करए किलोल ?
हर्षित मुदित बताह तँ नहि ई भीड़ ?

घुरि चलू सूत जी आब,
उद्यानमे मोन कतए लाग !

महलमे घुरि-फिरि भऽ चिन्तामग्न,
पुनि लऽ आज्ञा राजासँ निकलल अग्र ।

मुदा एहि बेर भेटल एकटा लोक,
पेट बढ़ल, झुकल लैत निसास,
रोगग्रस्त छल ओ पूछल सिद्धार्थ,
सूत जी छथि ई के, की भेल?

रोगग्रस्त ई कुमार अछि ई तँ खेल,
कखनो ककरो लैत अछि अपन अधीन ।
सूत जी घुरू भयभीत भेलहुँ हम आइ फेर।

घुरि घर विचरि-विचरि कय चिन्तन,
शुद्धोधन चिन्तित जानि ई घटनाक्रम।

आमोद प्रमोदक कए आर प्रबन्ध,
रथ सारथी दुनू नव कएल शुद्धोधन।

फेर एक दिन पठाओल राजकुमार,
युवक-युवती संग पठाओल करए विहार ।

मुदा तखने एकटा यात्रा मृत्युक,
हे सूतजी की अछि ई दृश्य,
सजा-धजा कए चारि गोटे धए कान्ह,
मुदा तैयो सभ कानि रहल किए नहि जान ?

हे कुमार आब ई सजाओल मनुक्ख,
नहि बाजि सकत, अछि ई काठ समान।

कानि-खीजि जाथि समस्त ई लोक,
छोड़ए ओकरा मृत्यु केलन्हि जे प्राप्त।


घुरू सारथी नहि होएत ई बर्दाश्त,
भय नहि अछि एहि बेर,
मुदा बुझितो आमोद प्रमोदमे भेर,
अज्ञानी सन कोना घुमब उद्यान।

मुदा नव सारथी घुरल नहि द्वार,
पहुँचल उद्यान पद्म खण्ड जकर नाम।
युवतीगणकेँ देलक आदेश उदायी, पुरोहित पुत्र,
करू सिद्धार्थकेँ आमोद-प्रमोदमे लीन ।

मुदा देखि इन्द्रजीत सिद्धार्थक अनासक्ति,
पुछल उदायी भेल अहाँकेँ ई की?

हे मित्र क्षणिक ई आयु,
बुझितो हम कोना गमाऊ ?

साँझ भेल घुरि युवतीसभ गेल,
सूर्यक अस्तक संग संसारक अनित्यताक बोध,
पाबि सिद्धार्थ घुरल घर चिन्ता मग्न,
शुद्धोधन विचलित मंत्रणामे लीन।

किछु दिनक उपरान्त,
माँगि आज्ञा बोन जएबाक,
संग किछु संगी निकलि बिच खेत-पथार,
देखि चास देल खेत मरल कीट-पतंग ।

दुखित बैसि उतड़ल घोड़ासँ अधः सिद्धार्थ,
बैसि जोमक गाछक नीचाँ धए ध्यान,
पाओल शान्ति तखने भेटल एक साधु।

छल ओ मोक्षक ताकिमे मग्न,
सुनि ओकर गप देखल होइत अन्तर्धान।
गृह त्यागक आएल मोनमे भाव,
बोन जएबाक आब एखन नहि काज।

घुरि सभ चलल गृहक लेल,
रस्तामे भेटलि कन्या एक,
कहल अहाँ छी जनिक पति,
से छथि निश्चयेन निवृत्त।

निवृत्त शब्दसँ निर्वाणक प्रसंग,
सोचि मुदित सिद्धार्थ घुरल राज सभा,
रहथि ओतए शुद्धोधन मंत्रीगणक बिच।

कहल - लए संन्यास मोक्षक ज्ञानक लेल,
करू आज्ञा प्रदान हे भूदेव।

हे पुत्र कएल की गप,
जाऊ पहिने पालन करू भए गृहस्थ ।

संन्यासक नहि अछि आएल बेर,
तखन सिद्धार्थ कहल अछि ठीक,
तखन दूर करू चारि टा हमर भय,
नहि मृत्यु, रोग, वृद्धावस्था आबि सकय,
धन सेहो नहि क्षीण होए।

शुद्धोधन कहल अछि ई असंभव बात,
तखन हमर वियोगक करू नहि पश्चाताप।

कहि सिद्धार्थ गेलाह महल बिच,
चिन्तित एम्हर-ओम्हर घुमि निकललि बाह्य ।

सूतल छंदककेँ कहल श्वेत वेगमान,
कंथक घोड़ा अश्वशालासँ लाऊ ।

सभ भेल निन्नमे भेर कंथक आएल,
चढा सिद्धार्थकेँ लए गेल नगरसँ दूर ।

नमस्कार कपिलवस्तु !

घुरब जखन पाएब जन्म-मृत्युक भेद !

सोझाँ आएल भार्गव ऋषिक कुटी उतरि सिद्धार्थ,
लेलन्हि रत्नजटित कृपाण काटल केश ।

मुकुट मणि आभूषण देल छंदककेँ।
अश्रुधार बहल छंदकक आँखि,
जाऊ छंदक घुरु नगर जाऊ ।

नहि सिद्धार्थ हम नहि छी सुमन्त,
छोड़ि राम घुरल अयोध्या नगर।

घोटक कंथकक आँखिमे सेहो नोर,
तखने एक व्याध छल आएल,
कषाय वस्त्र पहिरने रहए, कहल सिद्धार्थ,
हमर शुभ्र वस्त्र लिअ दिअ ई वस्त्र,
अदलि-बदलि दुनु गोटे वस्त्र पहिरि,
छंदक देखि केलक प्रणाम गेल घुरि।

सिद्धार्थ अएलाह आश्रम सभ भेल चकित,
देखि नानाविध तपस्या कठोर,
नहि संतुष्ट कष्ट भोगथि पाबय लेल स्वर्ग,
अग्निहोत्रक यज्ञ तपक विधि देखि ।

निकलि चलल किछु दिनमे सिद्धार्थ आश्रम छोड़ि,
स्वर्ग नहि मोक्षक अछि हमरा खोज ।

जाऊ तखन अराड मुनि लग विंध्यकोष्ठ,
नमस्कार मुनि प्रणाम घुरू सभ जाऊ,
सिद्धार्थ निकलि बढ़ि पहुँचलाह आगु।

एम्हर कंथकक संग छंदक खसैत-पड़ैत,
एक दिनमे आएल मार्ग आठ दिनमे चलैत,
घरमुँहा रस्ता आइ कम नहि, अछि भेल अनन्त ।

घुरि सुनेलक खबरि कषाय वस्त्र पहिरबाक सिद्धार्थक,
गौतमी मूर्छित, यशोधरा कानथि बाजि-बाजि,
एहन कठोर हृदय सिद्धार्थक मुखेटा कोमल रहए,
ओकरो सँ कठोर अछि हृदय हमर जे फाटए अछि नञि ।

शुद्धोधन कहथि दशरथक छल भाग्य,
पुत्र वियोगमे प्राण हमर निकलए नञि अछि।

पुरहित आ मंत्रीजी निकलि ताकू जाय,
भार्गव मुनिक आश्रममे देखू पूछू ओतए।

जाय जखन सभ ओतए पूछल भार्गव कहल,
गेलथि अराड मुनिक आश्रम दिस मोक्षक लेल बेकल।

दुनू गोटे बढ़ि आगाँ देखैत छथि की,
कुमार गाछक नीचाँ बैसल ओतए।

पुरोहित कहल हे कुमार पिताक ई गप सुनू,
गृहस्थ राजा विदेह, बलि, राम आ बज्रबाहु,
केलन्हि प्राप्त मोक्ष करू अहाँ सेहो।

मुदा सिद्धार्थ बोनसँ घुरताह नहि,
मोक्षक लेलन्हि अछि प्रण तोड़ताह नहि।

हे सिद्धार्थ पहिनहु घुरल छथि बोनसँ,
अयोध्याक राम, शाल्व देशक द्रुम आ राजा अंबरीष ।

हे पुरहित जी घुरू व्यर्थ समय नष्ट छी कए रहल,
राम आ कि आन नहि उदाहरण समक्ष ।

नहि बिना तप कोनो क्यो बहटारि सकत,
ज्ञान स्वयं पाएब नव रस्ता तकैत।

घुरल दुहु गोटे गुप्त-दूत नियुक्त कए।

सिद्धार्थ बढ़ि आगाँ कएल गंगाकेँ पार,
राजगृह नगरी पहुँचि कए भिक्षा ग्रहण,
पहुँचि पाण्डव-पर्वत जखन बैसलथि,
राजा बिम्बसार आबि बुझाओल बहुत ।
सूर्यवंशी कुमार जाऊ घुरि,
मुदा सिद्धार्थ कहल हर्यंक वंशज,
मोहकेँ छोड़ल घुरि जाएब कतए ?

राजा सेहो होइछ कखनहुँ काल दुखित,
दास वर्गकेँ सेहो कखनहुँ भेटए छै खुशी ?

करू रक्षाक प्रजाक संग अपन सेहो,
सिद्धार्थ वैश्वंतर आश्रम दिश बढ़लाह,
मगधराज चकित !

अराडक आश्रममे ज्ञान लेल,
गेलाह शाक्य,
कहल मुनि अविद्या अछि पाँचटा,
अकर्मण्यता आलस्यक अछि अन्हार,
अन्हारक अंग अछि क्रोध आ विषाद,
मोह अछि ई वासना जीवनक आ संगक मृत्यु,
कल्याणक मार्ग अछि मार्ग मोक्षक ।

मुदा सिद्धार्थ कहल हे मुनिवर !
आत्माक मानब तँ अछि मानब अहंकारकेँ,
अहाँ गप नहि रुचल बढ़ल आश्रम उद्रकक से।

नगरी गेलाह राजर्षिक जे आश्रम छल,
मुदा नहि उत्तर भेटल ओतहु सिद्धार्थक।

गेलाह तखन नैरंजना तट पाँचटा भिक्षुक भेटल,
छह बरख तप कएल मुदा प्रश्न अनुत्तरित छल।

स्वस्थ तनमे भेटत मनसक प्रश्नक उत्तर,
प्रण कएल ई निरंजनामे कएल स्नान ओ,
बाहर बहराए अएलाह तखने कन्या गोपराजक,
श्वेत रंग नील वस्त्रमे नन्द बाला जकर नाम छल ।

आयलि पायस पात्र लेने तृप्त भए सिद्धार्थ भोजन कएल।

पाँचू संगी देखि ई सिद्धार्थक संग छोड़ल ।

मुदा ओ भेलाह सबल बोधिसत्वक प्राप्तिक लेल,
दृढ़ प्रण लए पीपरक तर ओ आसन देलन्हि ।

काल सर्प कहल देखू ई नीलकंठक झुण्डकेँ,
घुमि रहल चारू दिस अहाँक,
प्रमाण अछि जे बोधिसत्व प्राप्त करब अहाँ।

सुनि ई तृण उठाए कएल प्रतिज्ञा तखन,
सिद्धार्थ पाओत ज्ञान आ तखने उठत छोड़ि आसन।

ब्रह्मांड छल प्रसन्न मुदा दुष्ट मार डरायल,
कामदेव, चित्रायुध पुष्पसर नाम मारक,
सिद्धार्थ प्राप्त कए ज्ञान जगकेँ बताओत।

हमर साम्राज्यक होएत की तखन,
पुत्र विभ्रम,हर्ष, दर्प छल ओकर,
पुत्री अरति, प्रीति, तृषा के सेहो कए संग।

चलू ई लेने ढाल प्रतिज्ञाक,
सत् धनुषपर बुद्धिक वाण चढ़ाए,
जीतत से की जीतए देबए हमरा सभ आइ ?

हे सिद्धार्थ यज्ञ कए पढ़ि कए शास्त्र,
करू इन्द्रपद प्राप्त भोगू भोग,
छोड़ू आसन देब वाण चलाए।

नहि देलन्हि सिद्धार्थ एहिपर ध्यान,
मार तखन देलक वाण चलाए,
मुदा भेल कोनो नहि परिणाम।

शिवपर सेहो चलल रहए ई वाण,
विचलित भेल रहथि ओ सेहो,
के अछि ई से नहि जान !!

हे सैनिक हमर विकराल-विचित्र,
त्रिशूल घुमाए, गदा उठाए,
साँढ़क सन दए हुंकार,
आऊ करू विजित अछि शत्रु विकराल।


राति घनघोर अन्हरियामे कतए छथि चन्द्र ?
तरेगणक सेहो कोनो नहि दर्श !
मुदा सभ गेल व्यर्थ पदार्पण भेल अदृश्य,
मार जाऊ होएत नहि ई विचलित।

देखू एकर क्षमा प्रतीक जटाक,
धैर्य अछि एकर जेना गाछक मूल,
चरित्र पुष्प बुद्धि शाखा धर्म फलक प्रतीक।

स्थान जतए अछि आसन पृथ्वीक थिक नाभि,
प्राप्त करत ई ज्ञान सहजहि आइ ।

पराजित मार गेल ओतएसँ भागि।

रातिक पहिल पहरिमे शाक्य मुनि,
पाओल वर्णन स्मरण पूर्व जन्मक सहजहि ।

दोसर पहरमे दिव्य चक्षु पाबि,
देखल कर्मक फल वेदनाक अनुभूति ।

गर्भ सरोवर नरक आ स्वर्ग दुहुक,
पाओल अनुभव देखल खसैत स्वर्गहुसँ,
अतृप्त भोगी जन्म, जरा, मृत्यु।

बीतल तेसर पहरि चारिममे जाए,
पाओल ज्ञान बुद्ध भए पाओल शान्ति।

शान्त मन शान्त छल पूर्ण जगत !!!

धर्म चारू दिस बिन मेघ अछार !!
सूचना देल दुन्दभि बाजि अकाश !

सकल दिशा सिद्धगणसँ दीप्तमय छल,
स्वर्गसँ वृष्टि पुष्पक इक्षवाकु वंशक ई मुनि छल।

बैसल एहि अवस्थामे सात दिन धरि मुनि शाक्य,
विमान चढ़ि अएलाह तखन देवता दू टा,
करू उद्धार जगतक दए मोक्षक शिक्षा।

आ भिक्षुपात्र लए अएलाह फेर एक देव,
कएल स्मरण अराड आ उद्रकक बुद्ध,
मुदा दुहु छल छोड़ल जगत ई तुच्छ।

आब जाएब वाराणसी भिक्षु पाँचो संगी जतए,
कहल देखि बोधिक गाछ दिस स्नेहसँ।


बुद्ध चललाह असगरे रस्तामे भिक्षु एक भेटल,
तेजमय अहाँ के गुरु के छथि अहाँक ?

हे वत्स गुरु नहि क्यो हमर
प्राप्त कएल निर्वाण हम,
सभ किछु जानल जे अछि जनबा योग्य
लोक कहए छथि हमरा बुद्ध !

जा रहल छी काशी दुखित कल्याण लेल
दूर सँ देखल वरुणा आ गंगाक मिलन
आ गेलाह बुद्ध लगहिमे मृगदाव वन।

पाँचू संगि हुनक रहथि ओतहि
देखैत अबैत विचारल क्यो नहि करत अभिवादन हुनक
मुदा पहुँचिते ई की गप भेल ?
सभ हुनक सत्कारमे छल लागि गेल?

आसन दए जखन बैसेलन्हि हुनका सभ क्यो,
उपदेश देब शुरु करितथि मुदा तखने बाजल कियो,
अहाँ तँ तत्वकेँ नहि छी बुझैत,
तप छोड़ि बीचहि उठल छलहुँ किएक ?

बुद्ध कहल घोर तप आ आसक्ति दुनुक हम त्याग कएल
मध्य मार्गकेँ पकड़ि बोधत्व प्राप्त कएल ।

एकर सूर्य अछि सम्यक दृष्टि आ
एकर सुन्दर रस्तापर चलैए सम्यक संकल्प ।

ई करैए विहार सम्यक आचरणक उपवनमे
सम्यक् आजीविका अछि भोजन एकर।

सेवक अछि सम्यक व्यायाम,
शान्ति भेटैए एकरा सम्यक स्मृति रूपी नगरीमे
आ सुतैए सम्यक समाधिक बिछाओनपर ई।

एहि अष्टांग योगसँ अछि सम्भव ई
जन्म, जरा, व्याधि आ मृत्युसँ मुक्ति।

मध्य मार्ग चारिटा अछि ध्रुव सत्य
दुख, अछि तकर कारण, दुखक निरोध
आ अछि उपाय निरोधक ।

कौंडिन्य आ ओकर चारू संगी सुनल ई,
प्राप्त कएल सभ दिव्यज्ञान ।

हे नरमे उत्तम पाँचू गोटे
भेल ज्ञान अहाँ लोकनि के?

कौंण्डिन्य कहलन्हि हँ, भेल भंते,
कौंडिन्य भेलाह तखन प्रमुख धर्मवेत्ता
तखनहि यक्षसभ पर्वतपरसँ कएलक सिंहनाद,
शाक्यमुनि अछि कएलक धर्मचक्र प्रवर्तित !!!!

शील कील अछि क्षमा-विनय अछि धूरी,
बुद्धि-स्मृतिक पहिया अछि सत्य अहिंसासँ युक्त,
एहिमे बैसि भेटत शान्ति ई बाजल सभ यक्ष,
मृगदावमे भेल धर्मचक्र प्रवर्तित।

फेर अश्वजित आ ओकर चारि टा आन भिक्षु
कएल निर्वाण धर्ममे बुद्ध दीक्षित,
फेर कुलपुत्र यश प्राप्त कएल अर्हत पद
यश आ चौवन गृहस्थकेँ
कएल बुद्ध सद्धर्ममे प्रशीक्षित ।

घरमे रहि कऽ भऽ सकै छी अनाशक्त
आ वनमे रहियो प्राप्त कऽ सकए छी आशक्ति ।

एहिमेसँ आठ गोट अर्हत प्राप्त शिष्यकेँ
बिदा कए आठो दिशामे चललाह बुद्ध ।

पहुँचि गया जितबाक रहन्हि इच्छा
सिद्धि सभसँ युक्त काश्यप मुनिकेँ।

गयामे काश्यप मुनि कएलन्हि स्वागत बुद्धक,
मुदा रहबाक लेल देल अग्निशाला रहए छल महासर्प जतए ।

रातिमे मुदा ओ सर्प प्रणाम कएल बुद्धकेँ
भोरमे काश्यप देखल सर्पकेँ बुद्धक भिक्षापात्रमे ।

कए प्रणाम ओ आ हुनकर पाँच सए शिष्य
संग अएलाह काश्यक भाए गय आ नदी ।

कएल स्वीकार धर्म बुद्धक
प्राप्त कएल गय उत्तुंगपर निर्वाणधर्मक शिक्षा
लए सभ काश्यपकेँ संग बुद्ध पहुँचल राजगृहक वेणुवण ।

बिम्बसार सुनि आएल ओतए देखल काश्यपकेँ बुद्धक शिष्य बनल
पूछल बुद्ध तखन काश्यपसँ,
छोड़ल अहाँ अग्निक उपासना किएक भंते ?

काश्यप कहल मोह जन्म रहि जाइछ देने
आहुति अग्निमे कएने पूजा पाठ ओकर तँहि ।

बुद्धक आज्ञा पाबि कएल काश्यप दिव्य शक्तिक प्रदर्शन
आकाशमध्य उड़ि अग्निक समान जरि कए ।

तखन बिम्बसारकेँ देल बुद्ध अनात्मवादक शिक्षा
विषय, बुद्धि आ इन्द्रिक संयोगसँ अबैछ चेतनता
शरीर इन्द्रिय आ चेतना अछि भिन्न
आ अभिन्न सेहो।
बिम्बसार भऽ प्रसन्न दान बुद्धकेँ वेणुवन देल
तथागतक शिष्य अश्वजित नगर गेल भिक्षाक लेल ।

कपिल संप्रदायक लोक देखि तेज पूछल अहाँक गुरु के?
कहल अश्वजित सुगत बुद्ध छथि जे इक्षवाकुवंशक।

सएह हमर गुरु कहए छथि बिन कारणक नहि होइछ किछुओ
उपतिष्य ब्राह्मणकेँ प्राप्त भेल ज्ञान कहलक ओ मौद्गल्यायनकेँ
मौद्गल्यायनकेँ सेहो प्राप्त भेलैक सम्यक दृष्टि सुनिकेँ।

सुनि वेणुवनमे उपदेश त्यागल जटा दंड
पहिरि काषाय कएल साधना प्राप्त कएल परम पद
काश्यप वंशक एकटा धनिक ब्राह्मण छोड़ल पत्नी परिजन
प्रसिद्धि भेटल हिनका महाकाश्यप नामसँ।

कोसलक श्रावस्तीक धनिक सुदत्त आएल वेणुवन
गृहस्थ रहितो प्राप्त भेल तत्वज्ञान ओकरा ।

उपतिष्य संगे सुदत्त गेल श्रावस्ती नगर
जेत केर वनमे विहार बनएबाक कएल निश्चित् ।

जेत रहए लोभी ढेर पाइ लेलक जेतवनक
मुदा देखि दैत पाइ हृदय परिवर्तित भेल ओकर
सभटा वन देलक ओ विहारक लेल
विहार शीघ्रे बनि गेल उपतिष्यक संरक्षकत्वमे।

बुद्ध फेर राजगृहसँ चलि देलन्हि कपिलवस्तु दिस
ओतए पिता शुद्धोधनकेँ देल बौद्ध रूपी अमृत
कोनो पुत्र पिताकेँ नहि देने रहए ई।

कर्म धरए अछि मृत्युक बादो पछोड़
कर्मक स्वभाव, कारण, फल, आश्रयक रहस्य बुझू,
जन्म, मृत्यु, श्रम, दुखसँ फराक पथ ताकू ।



आनन्द, नन्द, कृमिल, अनुरुद्ध, कुन्डधान्य, देवदत्त, उदायि
कए ग्रहण दीक्षा छोड़ल गृह सभ ।

अत्रिनन्दन उपालि सेहो कएल ग्रहण दीक्षा
शुद्धोधन देल राजकाज भाए केँ
रहए लगलाह राजर्षि जेकाँ ओ ।

फेर बुद्ध कएल प्रवेश नगरमे
न्यग्रोध वनमे बुद्ध पहुँचि
चिन्तन कल्याणक जीवक करए लगलाह।

फेर ओ ओतए सँ निकलि गेलाह प्रसेनजितक देस कोसल
श्रावस्तीक जेतवन छल श्वेत भवन आ अशोकक गाछसँ सज्जित
सुदत्त कएल स्वर्णमालासँ स्वागत बुद्धक
कएल जेतवन बुद्धक चरणमे समर्पित।

प्रसेनजित भेल धर्ममे दीक्षित
तीर्थक साधु सभक कए शंकाक समाधान
कएल बुद्ध हुनका सभकेँ दीक्षित।

ओतएसँ अएलाह बुद्ध फेर राजगृह
ज्योतिष्क, जीवक, शूर, श्रोण,अंगदकेँ उपदेश दए,
कएल सभकेँ संघमे दीक्षित।

ओतएसँ गंधार जाए राजा पुष्करकेँ कएल दीक्षित
विपुल पर्वतपर हेमवत आ साताग्र दुनू यक्षकेँ उपदेश दए
अएलाह जीवकक आम्रवन।

ओतए कए विश्राम घुमैत-फिरैत
पहुँचल आपण नगर,
ओतए अंगुलीमाल तस्करकेँ
कएल दीक्षित प्रेमक धर्ममे।

वाराणसीमे असितक भागिन कात्यायनकेँ कएल दीक्षित
देवदत्त मुदा भए ईर्ष्यालु संघमे चाहलक पसारए अरारि।

गृध्रकूट पर्वतपर खसाओल शिलाखंड बुद्धपर
राजगृह मार्गमे छोड़ल हुनकापर बताह हाथी
सभ भागल मुदा आनन्द संग रहल बुद्धक
लग आबि गजराज भए गेल स्वस्थ कएल प्रणाम झुकि कए
उपदेश देल गजराजकेँ बुद्ध।

देखल ई लीला राजमहलसँ अजातशत्रु
भए गेल ओहो शिष्य तखन बुद्धक।

राजगृहसँ बुद्ध अएलाह पाटलिपुत्र
मगधक मंत्री वर्षाकार बना रहल छल दुर्ग,
बुद्ध कएल भविष्यवाणी होएत ई नगर प्रसिद्ध
तखन तथागत गेलाह गौतम द्वारसँ गंगा दिस।

गंगापार कुटी गाममे
देल उपदेश धर्मक
फेर गेलाह नन्दिग्राम जतए भेल छल बहुत रास मृत्यु।

दए सान्त्वना गेलाह वैशाली नगरी
निवास कएल आम्रपालीक उद्यानमे।

श्वेत वस्त्र धरि अएलीह ओ
बुद्ध चेताओल शिष्य सभकेँ,
धरू संयम रहब स्थिरज्ञानमे लऽ बोधक ओखध
प्रज्ञाक वाणसँ शक्तिक धनुषसँ करू अपन रक्षा।

आम्रपाली आबि पओलक उपदेश
भेलैक ओकरा घृणा अपन वृत्तिसँ
माँगलक धर्मलाभक भिक्षा,
बुद्ध कएलन्हि प्रार्थना ओकर स्वीकार,
संगहि आएब भिक्षाक लेल अहाँक द्वार ।

सुनि ई गप जे आएल छथि बुद्ध आम्रपालीक उद्यान
लिच्छवीगण अएलाह बुद्धक समीप
बुद्ध देलन्हि शीलवान रहबाक सन्देश।

लिच्छवीगण देलन्हि भिक्षाक लेल अपन-अपन घर अएबाक आमन्त्रण,
पाबि आमन्त्रण कहलन्हि बुद्ध
मुदा जाएब हम आम्रपालीक द्वार
कारण हुनका हम देलियन्हि अछि वचन।

लिच्छवीगणकेँ लगलन्हि ई कनेक अनसोहाँत,
मुदा पाबि उपदेश बुद्धक,
घुरलाह अपन-अपन घर-द्वार।


पराते आम्रपालीसँ ग्रहण कए भिक्षा
बुद्ध गेलाह वेणुमती करए चारि मासक बस्सावास।

चारि मास बितओला उत्तर,
रहए लगलाह मर्कट सरोवरक तट।

ओतहि आएल मार,
कहलक हे बुद्ध नैरंजना तटपर अहाँक संकल्प
जे निर्वाणसँ पूर्व करब उद्धार देखाएब रस्ता दोसरोकेँ,
आब तँ कतेक छथि मुक्त, कतेक छथि मुक्ति पथक अनुगामी,
आब कोनो टा नहि बाँचल अछि कारण
करू निर्वाण प्राप्त।

कहलन्हि बुद्ध, हे मार
नहि करू चिन्ता,
आइसँ तीन मासक बाद,
प्राप्त करब हम निर्वाण,
मार होइत प्रसन्न तृप्त
गेल घुरि।

बुद्ध धऽ आसन प्राणवायुकेँ लेलन्हि चित्तमे
आ चित्तकेँ प्राणसँ जोड़ि योग द्वारा समाधि कएल प्राप्त।

प्राणक जखने भेल निरोध,
भूमि विचलित, विचलित भेल अकास !!

आनन्द पूछल करू अनुग्रह लिच्छवी सभपर,
किएक ई धरा आ आकास,
दलमलित मर्त्य आ दिव्यलोक !!!

बुद्ध कहलन्हि आबि गेल छी हम बाहर,
छोड़ि अपन प्रकोष्ठ,
मात्र तीन मास अनन्तर
छोड़ब ई देह,
निर्वाण मे रहबा लेल सतत !!!!

आनन्द सुनि ई करए लागल हाक्रोस,
सुनि विलाप लिच्छवी गण जुटि सेहो,
विलापमे भऽ गेलाह संग जोड़ ।

बुद्ध सभकेँ बुझा-सुझा,
चललाह वैशालीक उत्तर दिशा।

पहुँचि भोगवती नगरी,
देल शिक्षा जे विनय अछि हमर वचन,
जे बोल अछि विनयविहीन,
से अछि नहि धर्म।

तखन मल्लक नगरी पापुर जाए,
अपन भक्त चुंदक घरमे कएल भोजन बुद्ध,
दए ओकरा उपदेश बिदा भेलाह कुशीनगरक दिस।

संगे चुन्दक पार कएल इरावती धार
सरोवर तटपर कए विश्राम,
कए हिरण्यवती धारमे स्नान,
कहल हे आनन्द,
दुनू शालक गाछक बीच करब हम शयन।

आजुक रातिक उत्तर पहर,
करब प्राप्त निर्वाण।

हाथक बनाए गेरुआ,
दए टाँगपर टाँग,
लऽ दहिना करोट कहल हे आनन्द,
बजा आनू मल्ल लोकनिकेँ,
भेँट करबा लेल निर्वाण पूर्व।

शान्त दिशा, शान्त व्याघ्र-भालु,
शान्त चिड़इ शान्त सभटा जन्तु।

आबि मल्ल लोकनि कएल विलाप,
मुदा बुद्ध दए सांत्वना घुरेलन्हि सभकेँ।

आएल सुभद्र त्रिदंडी संन्यासी तकर बाद,
पाबि अष्टांग मार्गक शिक्षा,
कहल सुभद्र हे करुणावतार
अहाँक मृत्युक दर्शनसँ पहिने हम करए
चाहैत छी निर्वाण प्राप्त ।

बैसल ओ पर्वत जेकाँ
आ जेना मिझा जाइत अछि दीप
हवाक झोँकसँ,
तहिना क्षणेमे कएलक निर्वाण प्राप्त।

छल ई हमर अन्तिम शिष्य !

सुभद्रक करू अन्तिम संस्कार !

बीतल आध राति,
बुद्ध बजाए सभ शिष्यकेँ,
देल प्रातिमोक्षक उपदेश,
कोनो शंका होए तँ पूछू आइ ।

अनिरुद्ध कहल नहि अछि शंका आर्य सत्यमे ककरो।
बुद्ध तखन ध्यान कऽ एकसँ चारिम तहमे पहुँचि,
प्राप्त कएल शान्ति।

भेल ई महापरिनिर्वाण !
मल्ल सभ आबि उठेलक बुद्धकेँ स्वर्णक शव-शिविकामे,
नागद्वारसँ बाहर भए कएलन्हि पार हिरण्यवती धार,
मुदा शवकेँ चन्दनसँ सजाए,
जखन लगाओल आगि, नहि उठल चिन्गारि ।

शिष्य काश्यप छल बिच मार्ग,
ओकरा अबिते लागल चितामे आगि !

मल्ल लोकनि बीछि अस्थि धऽ स्वर्णकलशमे,
आनल नगर मध्य,
बादमे कए भवन पूजाक निर्माण,
कएल अस्थिकलश ओतए विराजमान।

फेर सात देशक दूत,
आबि मँगलक बुद्धक अस्थि,
मुदा मल्लगण कएल अस्वीकार,
तँ बजड़ल युद्ध-युद्ध ।

सभ आबि घेरल कुशीनगर,
मुदा द्रोण ब्राह्मण बुझाओल दुनू पक्ष।

बाँटि अस्थिकेँ आठ भाग,
द्रोण लेलक ओ घट आ गण पिसल छाउर बुद्धक ।

सभ घुरलाह अपन देश आब।

अस्थि कलश छाउर पर बनाए स्तूप,
करए गेलाह पूजा अर्चना जाए,
दसटा स्तूप बनि भेल ठाढ़,
जतए अखण्ड ज्योति आ घण्टाक होए निनाद।

फेर राजगृहसँ आएल पाँच सए भिक्षु,
आनन्दकेँ देल गेल ई काज,
बुद्धक सभ शिक्षाकेँ कहि सुनाऊ,
होएत ई सभ समग्र आब।

हम ई छलहुँ सुनने एहि तरहेँ,
कएल सम्पूर्ण वर्णन नीके।

कालान्तरमे अशोक स्तूपसँ लए धातु कए कए कऽ सए विभाग,
बनाओल कएक सए स्तूप,
श्रद्धाक प्रतीक।

जहिया धरि अछि जन्म, अछि दुख,
पुनर्जन्मसँ मुक्ति अछि मात्र सुख,
तकर मार्ग देखाओल जे महामुनि,
शाक्यमुनि सन दोसर के अछि शुद्ध।

असञ्जाति मनक ई सम्बल,
देलहुँ अहाँ हे बुद्ध
हे बुद्ध
हे बुद्ध ।

बालमंडली / किशोर-जगत - गजेन्द्र ठाकुर

खण्ड-७
बालमंडली / किशोर-जगत
(नाटक - कथा - पद्य)



बालमंडली किशोर-जगत


बाल-नाटक
१. अपाला आत्रेयी
२. दानवीर दधीची
बालकथा
१. ब्राह्मण आ ठाकुरक
कथा
२. राजा अनसारी
३. राजा ढोलन
४. बगियाक गाछ
५. ज्योति पँजियार
६. राजा सलहेस
७. बहुरा गोढ़िन नटुआदयाल
८. महुआ घटवारिन
९. डाकूरौहिणेय
१०. मूर्खाधिराज
११. कौवा आ फुद्दी
१२. नैका बनिजारा
१३. डोकी डोका
१४. रघुनी मरर
१५. जट-जटिन
१६. बत्तू
१७. भाट-भाटिन
१८. गांगोदेवीक भगता
१९. बड़ सख सार पाओल
तुअ तीरे
२०. छेछन
२१. गरीबन बाबा
२२. लालमैन बाबा
२३. गोनू झा आ दस ठोप
बाबा
वर्णमाला शिक्षा: अंकिता
बाल-कविता
१. ट्रेनक गाड़ी
२. के छथि
३. राजा श्री अनुरन्वज सिंह
४. सूतल
५. अखण्ड भारत
६. मोनक जड़िमे
७. पुनः स्मृति
८. कलम गाछी
९. हाथीक मुँहमे लागल
पाइप
१०. बानर राजा
११. चिड़ियाखाना
१२. जमबोनी
१३. बौआ ठेहुनिया मारि
१४. ट्रिंग-ट्रिंग-ट्रिंग
१५. भोरक बसात
१६. छाहक करतब
१७. सपना
१८. कोइरीक कूकू
१९. शितलपाटी
२०. मकड़ीक जाल
२१. वायुगोलक
३०. हाथीक सूप सन कान
३१. छुट्टी
३२. बौआ गेल सुनि
३३. मिथिला
३४. बादुर सोंस
३५. की? किए? कोना? के?
३६. फेर आएल जाड़
३७. आगाँ
३८. अंध विश्वास
३९. अभ्यास
४०. आँखिक चश्मा
४१. तीने टा अछि ऋतु
४२. दरिद्र
४३. रौह नहि नैन
४४. जूताक आविष्कार
४५. बूढ़ वर
४६. रिपेयर
४७. नोकर
८४. क्लासमे अबाज
४९. एस.एम.एस.
५०. टी.टी.
५१. खगता
५२. क-ख सँ दर्शन
५३. चोरकेँ सिखाबह
५४. नरक निवारण चतुर्दशी
५५. नौकरी
५६. मरकरी डिलाइट
५७. दीयाबाती
५८. फ्रैक्चर
५९. बापकेँ नोशि नहि
भेटलन्हि
६०. दहेज
६१. बेचैन नहि निचैन रहू
६२. होइ अछि जे हुम
लुक्खी नहि छी
६३. थल-थल
६४. क्रिकेट-फील्डिंग
६५. मैट्रिक प्लक
६६. काँकड़ु
६७. कैप्टन
६८. दूध
६९. अटेंडेंस
७०. शो-फटक्का
७१. भारमे माटि
७२. कंजूस
७३. पाइ
७४. असत्य
७५. समुद्री
७६. गाम
७७. लोली
७८. तकलाहा दिन
७९. बिकौआ
८०. गद्दरिक भात
८१. एकटा आर कोपर
८२. महीस पर वी.आइ.पी.
८३. गप्प-सरक्का
८४. फलनाक बेटा
८५. ट्रांसफर
८६. मजूरी नहि माँगह
८७. दोषी
८८. लंदनक खिस्सा
८९. प्रथम जनवरी
९०. ऑफिसमे भरि राति बन्द
९१. नानीक पत्र
९२. केवाड़ बन्द
९३. जेठांश
९४. सादा आकि रंगीन
९५. जोंकही पोखरिमे भरि
राति
९६. गैस सिलिण्डरक चोरि
९७. फैक्स
९८. दीया-बाती
९९. इटालियन सैलून
१००. शव नहि उठत
१०१. अतिचार
१०२. रबड़ खाऊ
१०३. बाजा अहाँ बजाऊ
१०४. पिण्डश्याम
१०५. पाँच पाइक लालछड़ी
१०६. चोरुक्का विवाह
१०७. भ्रातृद्वितीया
१०८. नव-घरारी
१०९. रिक्त
११०. प्रवासी
१११. वेद
११२. चोरि
११३. होली
११४. बुद्ध
११५. कोठिया पछबाइ टोल
११६. बुच्ची-बाउ
११७. आकक दूध
११८. केसर श्वेत हरित
त्रिवार्णिक



अपाला आत्रेयी
पात्र: अपाला: ऋगवैदिक ऋचाक लेखिका
अत्रि: अपालाक पिता
वैद्य 1,2,3
कृशाश्व: अपालाक पति।
वेषभूषा:-
उत्तरीय वस्त्र (पुरुष), वल्कल, जूहीक माला (अपालाक केशमे), दण्ड।
मंच सज्जा :-
सहकार-कुञ्ज (आमक गाछी), वेदी, हविर्गन्ध, रथक छिद्र, युगक छिद्र, सोझाँमे साही, गोहि आ गिरग़िट।

दृश्य एक
(आमक गाछीक मध्य एक गोट बालिका आ बालक)।
बालिका: हमर नाम अपाला अछि। हम ऋषि अत्रिक पुत्री छी।अहाँ के छी ऋषि बालक।
बालक: हम शिक्षाक हेतु आयल छी। ऋषि अत्रि कतए छथि।
अपाला: ऋषि जलाशय दिशि नहयबाक हेतु गेल छथि, अबिते होयताह।
(तखनहि दहिन हाथमे कमंडल आ वाम हाथमे वल्कल लेने महर्षि अत्रिक प्रवेश।)
अत्रि: पुत्री ई कोन बालक आयल छथि।
अपाला: ऋषिवर। आश्रमवासीक संख्यामे एक गोट वृद्धि होयत। ई बालक शिक्षाक हेतु...
बालक: नहि। हमर अखन उपनयन नहि भेल अछि। हम अखन माणवक बनि उपाध्यायक लग शिक्षाक हेतु आयल छी। ई देखू हमर हाथक दण्ड। हम दण्ड- माणवक बनि सभ दिन अपन गामसँ आयब आ साँझमे चलि जायब। हम वेद मंत्रसँ अपरिचित अनृच छी।
अत्रि: बेश तखन अहाँ हमर शिष्यक रूपमे प्रसिद्ध होयब। दिनक पूर्व भाग प्रहरण विद्याक ग्रहणक हेतु राखल गेल अछि। हम जे मंत्र कहब तकरा अहाँ स्मरण राखब। पुनः हम अहाँक विधिपूर्वक उपनयन करबाय संग लऽ आनब।
बालक: विपश्चित गुरुक चरणमे प्रणाम।
(पटाक्षेप)
दृश्य दू
(उपनयन संस्कारक अंतिम दृश्य। अपाला आ किछु आन ऋषि बालक बालिकाक उपनयन संस्कार कराओल गेल अछि।)
अत्रि: अपाला। आब अहाँक असल शिक्षा आ विद्या शुरू होयत।(पुनः आन विद्यार्थी सभक दिशि घूमि।) अहाँ सभकेँ सावित्री मंत्रक नियमित पाठ करबाक चाही। ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्। सविता- जे सभक प्रेरक छथि- केर वरेण्य- सभकेँ नीक लागय बला तेज- पृथ्वी, अंतरिक्ष आ स्वर्गलोक-सर्वोच्च अकाश-मे पसरल अछि। हम ओकर स्मरण करैत छी। ओ हमर बुद्धि आ मेधाकेँ प्रेरित करथु।
अपाला: पितृवर। “ॐ नमः सिद्धम” केर संग विद्यारम्भक पूर्व शिक्षाक अंतर्गत की सभ पढ़ाओल जायत। अत्रि: वर्ण, अक्षर-स्वर, मात्रा- ह्र्स्व, दीर्घ आ प्लुत, बलाघात- उदात्त, अनुदात्त, स्वरित, शुद्ध उच्चारण, अक्षरक क्रमिक विन्यास- वर्त्तनी, पढ़बाक आ बजबाक शैली, एकहि वर्णकेँ बजबाक कैकटा प्रकार, ई सभ शिक्षाक अंतर्गत सिखाओल जायत। साम संतान- जेकि सामान्य गान अछि- केर माध्यमसँ शिक्षा देल जायत। अपाला: गुरुवर। आश्रमक नियमसँ सेहो अवगत करा देल जाय।
अत्रि: वनक प्राणी अवध्य छथि। आहारार्थ फल पूर्व-संध्यामे वन-वृक्षसँ एकत्र कएल जायत। प्रातः आ सायं अग्निहोत्र होयत, ताहि हेतु समिधा, कुश, घृत-आज्य, एवम् दुग्धक व्यवस्था प्रतिदिन मिलि-जुलि कय कएल जायत। हरिणकेँ निर्विघ्न आश्रममे टहलबाक अनुमति अछि। कदम्ब, अशोक, केतकी, मधूक, वकुल आ सूदकारक गाछक मध्य एहि आश्रममे यद्यपि कृषिक अनुमति नहि अछि, परञ्च अकृष्य भूमि पर स्वतः आ बीयाक द्वारा उत्पन्न अकृष्टपच्य अन्नक प्रयोग भऽ सकैछ।
बालक: हम सभ एकहि विद्यापीठक रहबाक कारण सतीर्थ्य छी। गुरुवर। दण्ड आ कमण्डलक अतिरिक्त्त किछु रखबाक अनुमति अछि?
अत्रि: कटि मेखला आ मृगचर्म धारण करू आ अपनाकेँ एहि योग्य बनाऊ जाहिसँ द्वादशवर्षीय यज्ञ सत्रक हेतु अहाँ तैयार भऽ सकी आ महायज्ञक समाप्तिक पश्चात् ब्रह्मोदय, विदथ परिषद आ उपनिषद ओ अरण्य संसदमे गंभीर विषय पर चर्चा कऽ सकी।
(पटाक्षेप)
दृश्य तीन
(कुटीरमे ऋषि अत्रि कैक गोट वैद्यक संग विचार-विमर्श कए रहल छथि।)
अत्रि: वैद्यगण। बालिका अपालाक शरीरमे त्वक् रोगक लक्षण आबि रहल अछि। शरीर पर श्वेत कुष्ठक लक्षण देखबामे आबि रहल अछि।
वैद्य 1: कतबा महिनासँ कतेको औषधिक निर्माण कए बालिकाकेँ खोआओल आ लेपनक हेतु सेहो देल।
अत्रि: अपाला आब विवाहयोग्य भऽ रहल छथि। हुनका हेतु योग्य वर सेहो ताकि रहल छी।
वैद्य 2: कृशाश्वक विषयमे सुनल अछि, जे ओ सर्वगुणसंपन्न छथि आ वृद्ध माता-पिताक सेवामे लागल छथि। ओ अपन अपालाक हेतु सर्वथा उपयुक्त वर होयताह।
अत्रि: तखन देरी कथीक। अपने सभ उचित दिन हुनकर माता-पितासँ संपर्क करू।
दृश्य चारि
(आश्रमक सहकार-कुञ्जमे वैवाहिक विधिक अनुष्ठान अछि। वेदी बनाओल गेल अछि आ ओतय ऋत्विज लोकनि जव-तील केर हवन कऽ रहल छथि।)
अपाला (मोने मोन): माथ पर त्रिपुंडक भव्य-रेखा आ शरीर-सौष्ठवक संग विनयक मूर्त्ति, ईएह कृशाश्व हमर जीवनक संगी छथि। (तखने कृशाश्वक नजरि अपालासँ मिलैत छन्हि आ अपाला नजरि नीचाँ कए लैत छथि। मुदा स्त्रीत्वक मर्यादाकेँ रखैत ललाट ऊँचे बनल रहैत छन्हि।)
अत्रि: उपस्थित ऋषि-मण्डली आ अग्निकेँ साक्षी मानैत, हम अपाला आ कृशाश्वक पाणिग्रहण करबैत छी। (अग्निक प्रदक्षिणा करैत काल कृशाश्वक उत्तरीय वस्त्र कनेक नीचाँ खसि पड़ल आ अपालाक केशक जूही-माला सेहो पृथ्वी पर खसि पड़ल।)
दृश्य पाँच
(अपालाक पतिगृह।वृद्ध माता-पिता बैसल छथिन्ह आ अपाला घरक
काजमे लागल छथि।)
अपाला: प्रिय कृशाश्व। एतेक दिन बीति गेल। पतिगृहमे हम कोनो नियंत्रणक अनुभव नहि कएलहुँ। हमरा प्रति अहाँक कोमल प्रेम सतत् विद्यमान रहल। मुदा श्वेत त्वकक जे दाग हमरा पर ज्वलन्त सत्ताक रूपमे अछि, कदाचित् वैह किछु दिनसँ अहाँक हृदयमे हमरा प्रति उदासीनताक रूपमे परिणत भेल अछि।
कृशाश्व: हमर उदासीनता अपाला?
अपाला: हँ कृशाश्व। हम देखि रहल छी ई परिवर्त्तन। की एकर कारण हमर त्वगदोषमे अंतर्निहित अछि? कृशाश्व: हे अपाला। हमरा भीतर एकटा संघर्ष चलि रहल अछि। ई संघर्ष अछि प्रेम आ वासनाक। प्रेम कहैत अछि, जे अपाला ब्रह्मवादिनी छथि, दिव्य नारी छथि। मुदा वासना कहैत अछि, जे अपालाक शरीरक त्वगदोष नेत्रमे रूपसँ वैराग्यक कारण बनि गेल अछि।
अपाला: पुरुषक हाथसँ स्त्रीक ई भर्त्सना। कामनासँ कलुषित पुरुष द्वारा नारीक हृदय-पुष्पकेँ थकूचब छी ई। हम वेदक अध्ययन कएने छी। चन्द्रमाक प्रकाशक बीचमे ओकर दाग नुका जाइत अछि मुदा हमर ई श्वेत त्वक् दाग हमर विशाल गुणराशिक बीचमे नहि मेटायल। (कृशाश्व स्तब्ध भय जाइत छथि मुदा किछु बजैत नहि छथि।)
अपाला: सबल पुरुषक सोँझा हम अपन हारि मानैत, अपन पिताक तपोवन जा रहल छी, कृशाश्व।
दृश्य छ:
(अपाला प्रातः कालमे समिधासँ अग्निकुण्डमे होम करैत इन्द्रक पूजा आ जपमे लागि गेल छथि। कुशासन पर बैसलि छथि।)
अपाला: धारक लग सोम भेटल, ओकरा घर आनल आ कहल जे हम एकरा थकुचब इंद्रक हेतु, शक्रक हेतु।गृह-गृह घुमैत आ सभटा देखैत, छोट खुट्टीक ई सोम पीबू, दाँतसँ थकुचल, अन्न आ दहीक संग खेनाइ काल प्रशंसा गीत सुनैत। हम सभ अहाँकेँ नीक जेकाँ जनबाक हेतु अवैकल्पिक रूपसँ लागल छी मुदा क्यो गोटे अहाँकेँ प्राप्त नहि कऽ सकल छी। हे चन्द्र, अहाँ आस्ते-आस्ते आ निरन्तर ठोपे-ठोपे इन्द्रमे प्रवाहित होऊ। की ओ हमरा लोकनिक सहायता नहि करताह, हमरा लोकनिक हेतु कार्य नहि करताह। की ओ हमरा लोकनिकेँ धनीक नहि बनओताह? की हम अपन राजासँ शत्रुताक बाद आब अपना सभकेँ इन्द्रसँ मिला लिअ’। हे इन्द्र अहाँ तीन ठाम उत्पन्न करू- हमरा पिताक मस्तक पर, हुनकर खेतमे आ हमर उदर लग। एहि सभ फसिलकेँ ऊगय दियौक। अहाँ हमरा सभक खेतकेँ जोतलहुँ, हमर शरीरकेँ आ हमर पिताक मस्तककेँ सेहो। अपालाकेँ पवित्र कएल। इन्द्र ! तीन बेर, एक बेर पहिया लागल गाड़ी, एक बेर चारि पहिया युक्त्त गाड़ीमे आ एक बेर दुनू बरदक कान्ह पर राखल युगक बीच। हे शतक्रतु ! आ अपालाकेँ स्वच्छ कएल आ सूर्यसमान त्वचा देल। हे इन्द्र !
दृश्य सात
(महायज्ञक समाप्तिक पश्चात ब्रह्मोदयक दृश्य।)
अत्रि: एहि विशाल ऋत्विजगणक मध्य ऋकक मंत्रमे अपालाक ऋचाकेँ हम सम्मिलित कए सकैत छी, कारण ई स्वतः स्फुटित आ अभिमंत्रित अछि। अपालाक चर्मरोग एहिसँ छूटि गेल, एकर ई सद्यः प्रमाण अछि। अपाला एहि मंत्रक दृष्टा छथि।
ऋषिगण: अत्रि, हमरा सभ सेहो एहि मंत्रक दर्शन कएल। अहो। सम्मिलित करबाक आ नहि करबाक तँ प्रश्ने नहि अछि। ई तँ आइसँ ऋकक भाग भेल।
(एहि स्वीकृतिक बाद ब्रह्मोदय सभामे दोसर काज सभ प्रारम्भ भऽ जाइत अछि। कृशाश्व विचलित मोने अपालाक सोझाँ अबैत छथि।)
कृशाश्व: अपाला। हम दु:खित छी। अहाँक वियोगमे।
अपाला: हे कृशाश्व। इन्द्रक देल ई त्वचा योगक परिणाम अछि। अहाँक उपेक्षा हमरा एहि योग्य बनेलक मुदा आब एहि पर अहाँक कोनो अधिकार नहि।
(दुनू गोटे शनैः-शनैः मंचक दू दिशि सँ बहराए जाइत छथि।)
(पटाक्षेप)

दानवीर दधीची
मंच सज्जा:
आम्र वन, पोखरि आ युद्ध स्थल

वेष-भूषा:
अधो वस्त्र- आश्रमवासीक हेतु
आश्विनक हेतु वैद्यक श्वेत वस्त्र
आ इन्द्रक हेतु योद्धाक वस्त्र
रथ आ अस्त्र शस्त्रक चित्र पर्दा पर छायांकित कएल जा सकैत अछि।
प्रथम दृश्य
(महर्षि दध्यङ आथर्वन दधीचीक तपोवनक दृश्य। सूर्योदयक स्वर्णिम आभा, फूलक गाछक फूलक संग पवनक प्रभावसँ सूर्य दिशि झुकब। यज्ञक धूँआसँ मलिन भेल गाछक पात। महर्षि सूर्योदयक दृश्यक आनन्द लए रहल छथि। मुदा दृष्टिमे अतृप्त भाव छन्हि। ओहि आश्रमक कुलपति थिकाह महर्षि, दस सहस्र छात्रकेँ विद्यादान करैत छथि, सभक नाम, गाम आ कार्यसँ परिचित छथि। से ओ तखने प्रवेश करैत एकटा अपरिचित आगंतुकक आगमन सँ साकांक्ष भऽ जाइत छथि।)
दध्यङ आथर्वन दधीची: अहाँ के छी आगंतुक?
अपरिचित: हम एकटा अतिथि छी महर्षि आ कोनो प्रयोजनसँ आयल छी। कृपा कए अतिथिक मनोरथ पूर्ण करबाक आश्वासन देल जाय।
दध्यङ आथर्वन दधीची: एहि आश्रमसँ क्यो बिना मनोरथ पूर्ण कएने नहि गेल अछि आगंतुक। हम अहाँक सभ मनोरथ पूर्ण होएबाक आश्वासन दैत छी।
अपरिचित: हम देवता लोकनिक राजा इन्द्र छी। अहाँसँ परमतत्त्वक उपदेशक हेतु आयल छी।एहिसँ अहाँक कीर्त्ति स्वर्गलोक धरि पहुँचत।
(दध्यङ आथर्वन दधीची सोचमे पड़ल मंच पर एम्हरसँ ओम्हर विचलित होइत घुमय लगैत छथि। ओ मंच पर घुमैत मोने-मोन, बिनु इन्द्रकेँ देखने, बजैत छथि जे दर्शकगणकेँ तँ सुनबामे अबैत अछि मुदा इन्द्र एहन सन आकृति बनओने रहैत छथि जे ओ किछु सुनिये नहि रहल छथि आ मंचक एक दोगमे ठाढ़ भऽ जाइत छथि।)
दध्यङ आथर्वन दधीची: (मोने-मोन) हम शिक्षा देब तँ गछि लेने छी मुदा की इन्द्र एकर अधिकारी छथि। बज्र लए घुमए बला, कामवासनामे लिप्त अनधिकारी व्यक्त्तिकेँ परमतत्त्वक शिक्षा? मुदा गछने छी तँ अपन प्रतिज्ञाक रक्षणार्थ मधु-विद्याक शिक्षा इन्द्रकेँ दैत छियन्हि।
इन्द्र: कोन सोचिमे पड़ि गेलहुँ महर्षि।

दध्यङ आथर्वन दधीची: इन्द्र हम अहाँकेँ मधुविद्याक शिक्षा दए रहल छी। भोगसँ दूर रहू। नाना प्रकारक भोगक आ भोज्यक पदार्थ सभसँ। ई सभ ओहने अछि जेना फूल सभक बीचमे साँप। भोगक अछैत स्वर्ग अधिपति इन्द्र आ भूतलक निकृष्ट कुकुरमे कोन अंतर रहत तखन?
(इन्द्र अपन तुलना कुकुरसँ कएल गेल देखि कए तामसे विख-सबिख भऽ गेल। मुदा अपना पर नियंत्रण रखैत मात्र एक गोट वाक्य बजैत मंच परसँ जाइत देखल जाइत अछि।)
इन्द्र: महर्षि अहाँक ई अपमान तँ आइ हम सहि लेलहुँ। मुदा आजुक बाद ज्योँ अहाँ ई मधु-विद्या ककरो अनका देलहुँ तँ अहाँक गरदनि परसँ ई मस्तिष्क, जकर अहाँकेँ घमण्ड अछि, एहि भूमि पर खसत।
दृश्य दू
(ऋषिक आश्रम। आश्विन बन्धुक आगमन।महर्षिसँ अभिवादनक उपरान्त वार्त्तालाप।)
आश्विन बन्धु: महर्षि। आब हम सभ अहाँक मधु विद्याक हेतु सर्वथा सुयोग्य भ’ऽ गेल छी। हिंसा आ भोगक रस्ता हम सभ छोड़ि देलहुँ। इन्द्र सोमयागमे हमरा लोकनिकेँ सोमपानक हेतु सर्वथा अयोग्य मानलन्हि मुदा हमरा सभ प्रतिशोध नहि लेलहुँ। कतेक पंगुकेँ पएर, कतेक आन्हरकेँ आँखि हमरा सभ देलहुँ। च्यवन मुनिक बुढ़ापाकेँ दूर कएलहुँ। आ तकरे उपकारमे च्यवन हमरा लोकनिकेँ सोमपीथी बना देलन्हि।
दध्यङ आथर्वन दधीची: आश्विनौ। ब्रह्मज्ञानककेँ देब एकटा उपकारमयी कार्य अछि आ अहाँ लोकनि एहि विद्याक सर्वथा योग्य शिक्षार्थी छी। इन्द्र कहने अछि, जे जाहि दिन ई विद्या हम कहियो ककरो देब तँ तहिये ओ हमर माथ शरीरसँ काटि खसा देत। मुदा ई शरीरतँ अछि क्षणभंगुर। आइ नहि तँ काल्हि एकरा नष्ट होयबाक छै। ताहि डरसँ हम ब्रह्म विद्याक लोप नहि होए देबैक।
आश्विनौ: महर्षि अहाँक ई उदारचरित ! मुद हमरो सभ शल्यक्रिया जनैत छी आ पहिने हमरा सभ घोड़ाक मस्तक अहाँक गरदनि पर लगाए देब। जखन इन्द्र अपन घृणित कार्य करत आ अहाँक मस्तककेँ काटत तखन अहाँक असली मस्तक हमरा सभ पुनः अहाँक शरीरमे लगा देब।
(मंच पर आबाजाही शुरू भऽ जाइत अछि, क्यो टेबुल अनैत अछि तँ क्यो चक्कू धिपा रहल अछि जेना कोनो शल्य चिकित्साक कार्य शुरू भऽ रहल होअय। परदा खसए लगैत अछि आ पूरा खसितो नहि अछि आकि फेर उठब प्रारम्भ भऽ जाइत अछि। एहि बेर घोड़ाक गरदनि लगओने महर्षि आश्विन बन्धुकेँ शिक्षा दैत दृष्टिगोचर होइत छथि।)
दध्यङ आथर्वन दधीची: एहि जगतक सभ पदार्थ एक दोसराक उपकारी अछि। ई जे धरा अछि से सभ पदार्थक हेतु मधु अछि आ सभ पदार्थ ओकरा हेतु मधु। समस्त जन मधुरूपक अछि। तेजोमय आ अमृतमय। सत्येक आधार पर सूर्य ज्योति पसारैत अछि एहि विश्वमे।चन्द्रक धवल प्रकाश दूर भगाबैत अछि रातिक गुमार आ आनैत अछि शीतलता। ज्ञानक उदयसँ अन्हारमे बुझाइत साँप देखा पड़ैत अछि रस्सा। विश्वक सूत्रात्माकेँ ओहि परमात्माकेँ अपन बुद्धिसँ पकड़ू। जाहि प्रकारेँ रथक नेमिमे अर रहैत अछि ताहि प्रकारेँ परमात्मामे ई संपूर्ण विश्व।
(तखने मंचक पाछाँसँ बड्ड बेशी कोलाहल शुरू भऽ जाइत अछि। तखने बज्र लए इन्द्रक आगमन होइत अछि। एक्के प्रहारमे ओ महर्षिक गरदनि काटि दैत छथि। फेर इन्द्र चलि जाइत छथि। मंच पर आबाजाही शुरू भऽ जाइत अछि, क्यो टेबुल अनैत अछि तँ क्यो चक्कू धिपा रहल अछि, जेना कोनो शल्य चिकित्साक कार्य शुरू भऽ रहल होअय। परदा खसए लगैत अछि आ पूरा खसितो नहि अछि आकि फेर उठब प्रारम्भ भऽ जाइत अछि। एहि बेर महर्षि पुनः अपन स्व-शरीरमे देखल जाइत छथि। ओ बैसले छथि आकि इन्द्र अपन मुँह लटकओने अबैत अछि।)
इन्द्र: क्षमा करब महर्षि हमर अपराध। आइ आश्विन-बन्धु हमरा नव-रस्ता देखओलन्हि। गुरूसँ एको अक्षर सिखनिहार ओकर आदर करैत छथि मुदा हम की कएलहुँ? असल शिष्य तँ छथि आश्विन बन्धु।
दध्यङ आथर्वन दधीची: इन्द्र। अहाँकेँ ताहि द्वारे हम शिक्षा देबामे पराङमुख भए रहल छलहुँ। मुदा अहाँक दृढ़निश्चय आ सत्यक प्रति निष्ठाक द्वारे हम अहाँकेँ शिक्षा देल। हमरा मोनमे अहाँक प्रति कोनो मलिनता नहि अछि।
इन्द्र: धन्य छी अहाँ आ धन्य छथि आश्विनौ। आब हम ओ इन्द्र नहि रहलहुँ। हमर अभिमानकेँ आश्विनौ खतम कए देलन्हि।
(इन्द्र मंचसँ जाइत अछि। परदा खसैत अछि।)
दृश्य तीन
(स्वर्गलोकक दृश्य। चारू दिशि वृत्र आ शम्बरक नामक चर्चा करैत लोक आबाजाही कए रहल छथि। ओ दुनू गोटे आक्रमण कए देने अछि भारतक स्वर्गभूमि पर। इन्द्र सहायताक हेतु महर्षिक आश्रम अबैत छथि।)
इन्द्र: वृत्र आ शम्बरक आक्रमण तँ एहि बेर बड्ड प्रचंड अछि। अहाँक विचार आ मार्गदर्शनक हेतु आयल छी महर्षि।
दध्यङ आथर्वन दधीची: इन्द्र। कुरुक्षेत्र लग एकटा जलाशय अछि, जकर नाम अछि, शर्यणा। अहाँ ओतए जाऊ, ओतय घोड़ाक मूड़ी राखल अछि, जाहिसँ हम आश्विनौकेँ उपदेश देने छलहुँ। ब्रह्मविद्या ओहि मुँहसँ बहरायल आ ताहि द्वारे ओ अत्यंत कठोर आ दृढ़ भऽ गेल अछि। ओहिसँ नाना-प्रकारक शस्त्र बनाऊ, अग्नि आश्रित विध्वंसकक प्रयोग करू, त्रिसंधि व्रज, धनुष, इषु-बाण-अयोमुख-लोहाक सूचीमुख सुइयाबला आ विकंकतीमुख- कठोर, एहि तरहक शस्त्रक प्रयोग करू, कवच आ शिरस्त्राणक प्रयोग करू, अंधकार पसारयबला आ जड़ैत रस्सी द्वारा दुर्गंधयुक्त्त धुँआ निकलएबला शस्त्रक सेहो प्रयोग करू आ युद्ध कए विजयी बनू।
इन्द्र: जे आज्ञा महर्षि।
(परदा खसैत अछि आ जखन उठैत अछि तँ पोखरिक कातमे घोड़ाक मूड़ीसँ इन्द्र द्वारा वज्र आ विभिन्न हथियार बनाओल जा रहल अछि। फेर परदा खसि कऽ जखन उठैत अछि तँ अग्नियुक्त शस्त्र, जे फटक्का द्वारा मंचपर उत्पन्न कएल जा सकैत अछि, देखबामे अबैत अछि। मंच धुआँसँ भरि जाइत अछि। फेर परदा खसैत अछि आ मंचक पाछाँसँ सूत्रधारक स्वर सुनबामे अबैत अछि।)
सूत्रधार: इन्द्रक विजय भेलन्हि आ दुष्ट सभ खोहमे भागि गेल। ईएह छल वैदिक नाटक बादमे एहि अर्थकेँ अनर्थ कए देलन्हि पौराणिक लोकनि, जाहिमे दधीचीक हड्डीसँ इन्द्रक वज्र बनएबाक चर्च कएल गेल अछि।
(ओ ई असल बात अछि- केर फुसफुसाहटिक संग पर्दा खसले रहैत अछि आ लाइट क्षणिक ऑफ भेलाक बाद ऑन भए जाइत अछि।)
बालकथा
ब्राह्मण आ ठाकुरक कथा
देबीगंज एकटा नगर छल आ ओहि नगरमे एकटा ब्राह्मण रहैत छल। हुनका भगवान श्री सत्यनारायणक पूजाक निमंत्रण दूरसँ आएल रहए। ब्राह्मण असगर रहए आ जएबाक ओकरा दुरगर छल, से ओ अपन नगरक एकटा ठाकुरक बच्चाकेँ संग कएलक। ठाकुरक बच्चा बाजल, जे पंडीजी हम तँ अहाँक संग जाएब, मुदा एकटा गप अछि। जतए कतहु हमरा कोनो गप गलत बुझाएत, ओतए अहाँकेँ हमरा बुझा देमए पड़त, नहि तँ हम अहाँक संग नहि जाएब। पंडितजी कहलन्हि जे चलू बुझा देब।
ब्राह्मण आ ठाकुर चलल। चलैत-चलैत ओ दुनू गोटे एकटा धारक लग पहुँचल। ओकरा सभकेँ धार टपबाक रहए से ओतए ठाढ़ भए ओ सभ कपड़ा खोलि तैयार भेल तँ ठाकुरक बेटा धारमे देखलक जे एकटा लहास धारमे मरल-पड़ल छै आ भाँसि रहल छै। ओ स्त्री छलि, ओ भँसना बालु-रेतक छल आ ओ ओजनसँ भाँसि रहल छलि। ठाकुरक बेटा ई देखि कए बाजल -– पंडित ओ देख, ओ लहास भाँसि रहल अछि, ओ तीन जान बहुत आश्चर्य अछि। पंडितजी अहाँ हमरा बुझा दिअ नहि तँ हम घुरि कए चलि जाएब। पंडितजी खिस्सा कहए लगलाह।
देख बच्चा। अपन गाम लग के.नगरक राजा छल । ओहि राजाक एकटा बेटा रहए। ओकर बियाह ओही स्थानपर भेल, जतए हम सभ चलि रहल छी।
बादमे अपन नगरक राजा मरि गेल । ओकर बेटा राजकेँ सम्हारि नहि सकल आ राजकेँ बन्हक लगा देलक। ओकर सासुरमे पता लगलैक, जे राजा राजपाट बन्हक लगा देने अछि आ आब द्विरागमन करेबा लेल ओकरा लग पाइ नहि छै, तँ बड्ड मोश्किल भए गेलैक।
एक दिन ओकर सासुरमे भगवानक पूजा भए रहल छलैक। ओहि दिन ई गरीब राजा साँझमे पहुँचल तँ पूजा भए रहल छल। ई ओतए गेल तँ कियो ओकर खोज-पुछारी नहि कएलक। ओतहि ओ कातमे बैसि गेल। पूजा समाप्त भेल आ सभ कियो प्रसाद खा कए अपन-अपन घर गेल आ घरबारी सभ सेहो खा-पीबि कए सूति गेल। एहि बेचारोकेँ क्यो नहि पुछलक आ ओ ओही स्थानपर सूति गेल। रातिक जखन बारह बाजल तँ ओकर स्त्री उठि गेल आ अपन घोड़सनीयाँ लग गेल। ओतए सुतबाक कोनो ब्यबस्था नहि छल। एकटा खाट रहए जाहिमे ती टा टाँग रहए। एकटा टाँग कतएसँ लगाओत। लड़की आएल आ ओहि लड़कासँ पुछलक जे तूँ किछु खेने छह। लड़का कहलक नहि। बेचारा भूखक मारल बचल भोजन खएलक। ओहू समय लड़की अपन पतिकेँ नहि चिन्हलक। ओकरा कहलक जे चल आ जाहि खाटक एकटा टाँग टूटल छल ओही खाटमे एक दिस लगा देलक आ दुनू घोड़सनियाँ आ ओ लड़की सूति गेल। ओकर सुतलाक बाद लड़काकेँ कियो स्वप्न दैत अछि। ई राजाक बेटा, तूँ अपन घर जो, ओतए तोहर पिताक कोचक नीचाँ चरि घाड़ा द्रब छहु। ओहिमेसँ एक घाड़ा बेचि कए अपन राज छोड़ा लिअ। ई सपना सुनि राजाक बेटा स्थिरेसँ खाट राखि, अपन घर आपस आबि गेलि। ओ अपन राज बन्हकीसँ छोड़ा लेलक। पहिने जेकाँ भए गेल। जखन ओकर सासुरमे ई पता चलल, जे राजा पहिने सँ बेशी नीक भए गेल अछि तखन ओ सभ राजाकेँ खबरि कएलक जे अहाँ अपन द्विरागमन करबा लिअ। राजा दिन लए कए गेल आ ओही लड़कीकेँ गौना करा कए लए अनलक। राजा ओकरा एकटा खबासनीक संगे खेनाइक सभ समान दए एकटा कोठलीमे बन्न कए देलक। ओ खेनाइ खाइत छल आ ओही कोठलीमे रहैत छल, मुदा राजा ओतए नहि जाइत छल। जखन किछु दिन बीति गेल तँ एक दिन रानी खबासनीकेँ पठओलक, राजाकेँ बजेबाक लेल। राजा आएल तँ रानी कहलक जे अहाँ हमरा गौना करा कए अनलहुँ आ एहि कोठलीमे बन्न कए देने छी। अहाँ अबितो नहि छी। राजा कहलक जे ओ घोड़सनियाँ नहि छी, जे टूटल खाटक एक पएर वैह रहए। आ बाँचल भोजन हम खएने रही। आ फेर वैह ऐंठ खाए लेल हमरा कहलहुँ।
ई सुनि लड़की बहुत लज्जित भऽ गेलीह। भोर भेल आ ओ खबासनीसँ कहलक जे तूँ रह, हमर व्रतक दिन अछि आ हम धारसँ नहा कए अबैत छी। ओ सभटा कपड़ा खोलि धारमे फाँगि गेल। भसना भाठी जे भसैत अछि, जान ई ठाकुर, वैह लड़की अछि। चलू हमरा सभ आगाँ।
दोसर
ब्राह्मण आ ठाकुर ओइ धारक कातसँ बिदा भेल। धारकेँ पार करैत आ चलैत-चलैत ओ सभ एकटा पैघ गाममे पहुँचलाह। ओहि गाममे बड्ड भीड़ लागल रहए। ठाकुरक लड़का जा कए देखए लागल तँ ओ देखलक जे एकटा बकरीक बच्चा बान्हि कए राखल छल आ जे कियो अबैत रहए से ओहि बकड़ीक बच्चाकेँ दू लात मारैत छल। ठाकुरक बच्चा सोचलक जे ओ बकड़ीक बच्चा कोनो एक-दू गोटेक फसिल खा लेने होएत, मुदा तखन सभ मिलि कए किएक ओकरा मारि रहल अछि। ओ ब्राह्मणसँ पुछलक जे ई गप बुझा कए कह, तखन हम सभ आगू बढ़ब। ब्राह्मण पहिने ई गछने छल, जे जखन ओ कहत ओकरा बुझा कए कहत। ओही स्थानपर बैसि कए ब्राह्मण खिस्सा कहए लागल।
सुन ठाकुर हम आब खिस्सा कहैत छी। लोदीपुर एकटा नगर छल। ओहि नगरक राजा प्रताप सिंह रहए। हुनकर एकटा लड़का छल आ ओही गाममे एकटा ठाकुरक लड़का सेहो रहए। दुनूमे खूब दोसतियारी चलैत रहए। किछु दिनुका बाद दुनू दोस्त बिचार कएलक जे दुनू दोस्त घोड़ा कसा कए जंगल शिकार लेल जाए। तकर बाद दुनू दोस्त घोड़ापर सवार भए बिदा भेल आ घनघोर जंगल पहुँचि गेल। शिकार खेलाइत साँझ भए गेल आ दुनू दोस्त विचार कएलक जे आब हम सभ घर नहि जा सकब, से अही बोनमे राति काटि भोरमे घर चलि जाइ। ओतए एकटा बड्ड पैघ गाछ रहए, तकरे नीचाँमे ओ सभ रुकि गेल आ घोड़ाकेँ ओतए बान्हि दुनू दोस्त सूति गेल। सुतलाक बाद राति बारह बजे एक जोड़ा बीध-बीधीन ओहि गाछक ऊपर बैसि गेल। बीधीन मूड़ी उठा कए जे नीचाँ देखलक तँ ओहि दुनू दोस्तपर ओकर नजरि पड़लैक। बीधीन कहलक जे देखू कतेक सुन्दर अछि राजाक बेटा। बीध कहलक जतेक सुन्दर ई राजाक बेटा अछि, ततबे सुन्दर लालपरी कन्या अछि, दुनूक जोड़ी बड्ड सुन्दर होएत। बीधीन कहलक जे अहाँ तँ स्वयं विधाता छी। दुनूक जोड़ी लगेनाइ अहाँक काज छी। बिधाता ओहि दुनूकेँ ओतएसँ सुतलेमे उठा कए ओहि लालपरी कन्या लग पहुँचा देलक। राजा आ कन्या एक पलंगपर आ ठाकुर दोसर पलंगपर। भोर भेलापर निन्द टुटल, तँ लालपरी बगलमे राजाक लड़काकेँ देखलक, तँ खूब प्रसन्न भेल। ओकरा पलंगपर एकटा सिन्दूरक पुड़िआ राखल छल। परी कहलक जे ऊपरबला हमर आ अहाँक जोड़ी मिला देने अछि। आब देरी कोनो बातक नहि। राजाक लड़का आ लालपरी कन्या दुनूक ओतए बियाह भए गेल। किछु दिन धरि ओ ओतए रहल आ तकर बाद राजाक बेटा अपन ससुरारिसँ बिदा भेल । किछुए दूर आगाँ गेलाक बाद कन्याकेँ एकटा गप मोन पड़लैक। ओ अपन पतिसँ कहलक- हमर पिताकेँ चोला माने जीब बदल क मंत्र अबैत छन्हि। अहाँ हुनकासँ जा कए सीखि लिअ। ओतए दुनू डोली रोकि कए दुनू दोस्त ओकर पिताजी लग गेल आ जा कए कहलक जे हमरा सभकेँ चोला बदलबाक मंत्र सिखा दिअ। ओहि मंत्रकेँ दुनू दोस्त सीखि लेलक मुदा मंत्र सिखलाक बाद ठाकुरक बेटाक मोनमे खोट आबि गेलैक। तकर बाद एक डोलीपर राजाक बेटा आ परी आ दोसर डोलीपर ठाकुरक बेटा बिदा भेलाह। लालपरी पतिसँ पुछलक जे अहाँ चोला बदलबाक मंत्र सीखि लेलहुँ। तँ राजाक बेटा कहलक-हँ। तँ परी कहलक जे एकर परीक्षा करू। राजाक बेटा कहलक जे आगाँ चलू। चलैत-चलैत ओ सभ कनी आगाँ बढ़लाह। आगाँ एकटा सुग्गा मरल पड़ल रहए। ई सभ गप ठाकुर सुनैत जा रहल छल। जहिना राजाक बेटा सुगाक भीतर पैसल, ओही समय ठाकुर मंत्र पढ़ि राजाक पिंजरामे पैसि गेल। ई सभ परी देखलक। एक डोलीपर मात्र ठाकुरक लहाश पड़ल छै आ एक पर परी आ ओ ठाकुर राजा बनि जा रहल अछि आ राजाक जीव सुग्गा बनि उड़ि गेल। ठाकुरक लहाश फेकि ओ ठाकुर राजा बनि गेल आ ओकर पिंजड़ामे जा कए ओहि लालपरीकेँ दखल कए लेलक। लालपरी कन्या ई बुझि गेल, जे ई हमर पति नहि अछि। ठाकुर राजा अपन महलमे जा कए रहए लागल आ एहि विषयमे ककरो बुझल नहि रहैक। ठाकुर राजा कन्यासँ कहलक जे आब हम सभ सुखी निन्दक राति बिताएब। परी कहलक जे एखन नहि। एखन हमर एकटा कौल बाँकी अछि। ओ पूरा कए लेब तकर बाद। ठाकुर राजा कहलक जे की कौल अछि अहाँ पूर्ण कए लिअ। परी कहलक जे हमरा एकटा मन्दिर बनबा दिअ जबुनाक तटपर। हम बारह बरख सदाव्रत बाँटब। तकर बाद राजा सोचलक जे आब हमरा छोड़ि कए ककरो ई नहि होएत ताहि लेल हम एकटा उपाय करैत छी, कि एहि बोनमे जतेक सुगा अछि ओहि सभकेँ मारि दैत छी। ठाकुर राजा ई सोचि शिकारीकेँ मँगबेलक आ ओकरा कहलक जे एहि जंगलमे जतेक सुगा अछि, ओकरा पकड़ि कए आन हम तोरा एक सुगाक एक टाका देबहु। शिकारी सुग्गा बझबए लागल आ राजाकेँ देमए लागल। राजा सभ सुगाकेँ मारि कए फेंकि दैत छल। एक दिन शिकारी सुगा बझा कए ओही जबुनाक किनार धए आबि रहल छल, तँ परीक नजरि ओहि शिकारीपर पड़ल। ओकरा माथमे ओ गप मोन पड़लैक, तँ ओ शिकारीकेँ बजेलक आ पुछलक जे अहाँ ई सुग्गा ककरा दैत छी। ओ कहलक जे ई सभ सुग्गा हम अही राजाकेँ दैत छी। परी पुछलक जे राजा तखन एकर की करैत अछि। शिकारी कहलक जे ओ एकरा सभकेँ मारि कए फेकि दैत अछि। परीकेँ ई सुनि कए माथ दुखाए लगलैक। ओ शिकारीकेँ पुछलक जे राजा एक सुगाक कतेक कए पाइ दैत अछि। शिकारी कहलक जे एक सुगाक ओ पाँच टाका दैत अछि। परी कहलक जे आइसँ सभ सुगा हमरा देल कर, हम एक सुगाक दस टाका देल करब। ओहि दिनसँ सभ शिकारी परीकेँ सभ सुग्गा देमए लगलाह। परी सभ सुगासँ पूछथि जे अहाँ चोला बदलबाक मंत्र जनैत छी, एहि तरहेँ ओ बहुत रास सुगाकेँ पुछैत गेलीह आ छोड़ैत गेलीह। ओहिमे सँ एकटा सुग्गा बाजल- हँ, हम चोला बदलबाक मंत्र जनैत छी। ओहि सुगाकेँ परी अपना पिजरामे बन्न कए लेलन्हि आ एकटा छोट बकड़ीक बच्चा कीनि कए राखि लेलन्हि। कनेक दिनका बाद बारह बरखक समय पूर्ण भऽ गेल । ठाकुर राजा अपन डोली कहार पठेलक आ ओतएसँ परीकेँ अपन महलमे आपस अनलक। परी जतए रहैत छल, ओतए ओ बकरीक बच्चा राखि लेलक आ सुतबाक काल ओहि बकड़ीक बच्चाकेँ मारि देलक। खेनाइ धरि नहि खएलक आ कानए लागलि। राजाकेँ एहि गपक पता लागल जे रानी खेनाइ धरि नहि खएने छथि आ कानि रहल छथि। राजा आएल आ पुछलक जे अहाँ किएक कानि रहल छी। खेनाइ किएक नहि खएने छी। परी ठाकुर राजासँ कहलक- हम कोनाकेँ खाएब, ई जे बकरीक बच्चा मरि गेल, तँ हम आब जीवित नहि रहब। जाधरि ई बकरीक बच्चा नहि खाइत छल, ताधरि हम नहि खाइत छलहुँ। ई मरि गेल से आब हमहूँ मरि जाएब। ओम्हर सुगा देखि रहल छल, एम्हर ठाकुर राजा विचलित भऽ रहल छल। राजा सोचि कए कहलक जे अहाँ चुप रहू, बकरीक बच्चा जीवित भए जाएत। एतेक कहलापर परी चुप भए गेलि आ जहिना राजा अपन चोला बदलि ओहि बकड़ीमे पैसल तखने सुगा अपना राजाक पिंजरामे चलि गेल। सुगा जेहेने-तेहने पड़ल रहि गेल आ ठाकुर राजा ओही बकड़ीक पिंजरामे चलि गेल।
सुनलहुँ, बकड़ीक बच्चा वएह ठाकुर राजा अछि आ जे क्यो अबैत अछि ओकारा दू लात मारैत अछि।
तेसर
ब्राह्मण आ ठाकुरक लड़का ओतएसँ चलल। चलैत-चलैत किछु दूर गेल तँ एकटा नगरमे पहुँचल। ओहि नगरक बीच चौबटियापर बड्ड भीड़ रहए। लोकक ई भीड़ देखि कए ठाकुरक लड़का दौगि कए गेल आ देखलक जे ओहि चौबटियापर एकटा अस्सी बरखक बुढ़ियाकेँ फाँसी देल जा रहल अछि। ठाकुरक लड़का सोचलक जे ओ बुढ़िया ककरो घरमे जा कए भूखमे कोनो अनाज वा भात रोटी खएने होएत, से ओकरा फाँसीक सजा भऽ रहल छै। ठाकुरक लड़का पुछलक- पंडितजी एहि गपकेँ हमरा कहि कए बुझा दिअ। पंडितजी कहलक जे चलू रस्तामे अहाँकेँ बुझा देब। बच्चा कहलक जे नहि, एतहिये हमरा कहि कए बुझा दिअ, नहि तँ अहाँक संग हम नहि जाएब। ब्राह्मण कहलक ठीक अछि। सुनू ठाकुरक बच्चा, बैसू, हम बुझबैत छी।

-बिराटनगरक बिराट राजा छलए। हुनका एकटा मन्त्री छलन्हि। राजाक लड़का आ मन्त्रीक लड़काकमे दोस्तियारी चलि रहल छल। एक दिन दुनू दोस्त विचार कएलक आ जंगलमे शिकार खेलाइ लेल तैयार भेल आ घोड़ा कसेलक। बोनमे शिकार खेलाइत-खेलाइत साँझ भए गेल आ ओही बोनमे एकटा बड्ड पैघ गाछ छल। दुनू गोटे ओहि गाछपर चढ़ि कए सूति गेल। मंत्रीक बेटा सोचलक जे ई राजाक बेटा अछि। कहियो गाछपर नहि सूतल अछि, से ओ कतहु खसि नहि पड़ए, से सोचि ओकरा ओ गमछासँ बान्हि देलक आ ओ दोसर ठाढ़िपर चलि गेल। बारह राति बाजल तँ बोनमे एकटा बड़ पैघ साँप निकलल आ ओहि गाछक लग आबि अपन मणी निकालि कऽ राखि देलक आ ताहिसँ इजोत होमए लागल। सर्प चरए लागल। ओहि इजोतकेँ मन्त्रीक बेटा देखलक आ तकर बाद ओ आस्ते सँ गाछक जड़िमे अपन तलवार ठाढ़ कए देलक आ फेर ऊपर चढ़ि गेल। जाहि ठाम मणी जरि रहल छल ओकर सोझाँ ठाढ़िपर जा कए गमछा दोबर कए ओहि मणीपर खसा देलक। मणी झँपा गेल आ अन्हार भऽ गेल। साँप व्याकुल भए गेल आ ओ गाछक जड़िमे अपन पुच्छी पटकि-पटकि कए टुकड़ा-टुकड़ा भए गेल। भोर भेल तँ ओ अपन दोस्त राजाक बेटाकेँ जगेलक आ कहलक जे दोस अहाँ तँ सूति गेल रही। नीचाँ देखू की भेल अछि। नीचाँमे गमछा उघारि मणी लए ओ दुनू दोस बिदा भेल। ओहि बोनमे एकटा पैघ पोखरि रहए। दुनू दोस्त विचारलक जे अही पोखरिमे एकरा धोबि कए साफ कए ली। राजाक बेटा नीचाँ हाथ राखलक आ मन्त्रीक बेटा ऊपरमे हाथ राखि कए ओकरा साफ करए लागल। ओ मणी तखने दुनू दोसकेँ खेंचि लेलक आ ओतए लऽ गेल जतए नागवत्ती कन्या रहए। नागवत्ती कन्या ओकरा सभकेँ देखलक तँ कहलक जे अहाँ सभ हमर पिताकेँ मारि देलहुँ तँ हम कहिया धरि कुमारि रहब। कन्या कहलक जे अहाँ हमरासँ बियाह कए लिअ। मन्त्रीक बेटा राजाक बेटाक बियाह ओहि कन्यासँ करेबाक निर्णय कएलक तँ राजाक बेटा कहलक जे यावत ढोल बाजा पालकी नहि आनब, बियाह कोना होएत। मन्त्री-वजीरक बेटा ढोल-बाजा-पालकी अनबा लेल बिदा भेल। दोसर दिन १२ बजे दिनमे नागवती कन्याँ पोखरिमे नहा रहल छलीह, तखने ठगपुर नगरक राजाक लड़का शिकार खेलेबा लेल जंगलमे आएल रहए। गरमीक मास छल, ओकरा बड़ जोरसँ पियास लगलैक तँ ओ ओही पोखरिमे गेल। जखने ओ ओहि कन्याकेँ देखलक तँ मूर्च्छा खा कए खसि पड़ल आ कन्या पोखरिक भीतर चलि गेलि। जखन ओकरा होश अएलैक तँ ओहि कन्याकेँ ओ नहि देखलक। ओहि समयसँ राजाक बेटा अपन घर जा कए पागल भए गेल। ई समाचार ठगपुरक राजाकेँ पता चललैक तँ ओ बड्ड उपाय कएलक मुदा ओकर बिमारी नहि ठीक भेलैक।
राजाकेँ बड्ड चिन्ता भऽ गेलैक। राजा अपन राज्यमे ढोलहो पिटबा देलक जे, जे क्यो हमर बेटाकेँ ठीक कए देत ओकरा राज्यक एक हीस दऽ देल जाएत आ डाला भरि सोनाक संग अपन बेटीक संग ओकर बियाह सेहो ओ करा देत। ई सुनि मारते रास लोक आएल मुदा ओ ठीक नहि भेलि। ओही गाममे एकटा बुढ़िया रहैत छलि, महागरीब। ओ करीब-करीब अस्सी बरिखक रहए। ओहि बुढ़ियाक एकटा बताह बेटा रहए। ओ बुढ़िया ओहि राजाक बेटाकेँ ठीक करबा लेल तैयार भेलि। राजा ओकरा आदेश देलक जे जो, आ हमर बेटाकेँ ठीक कर गऽ। तखन तोरे इनाम सेहो भेटतौक आ अपन बेटीक संग हम तोहर बेटाक बियाह सेहो करबा देबौक। बुढ़िया गेल आ राजाक लड़काकेँ एकटा कोठामे बन्न कए देलक आ अपने सेहो ओहि कोठामे चलि गेल। बुढ़िया राजाक बेटासँ पुछलक, मुदा ओ कोनो उत्तर नहि देलक। तखन बुढ़िया ओकर दुनू गालमे दू चमेटा मारलक आ तकर बाद ओ बाजल, जे हम जंगलमे शिकार खेलाइ लेल गेल छलहुँ। ओतए एकटा पोखरिमे पानि पीबा लेल गेलहुँ, तँ एकटा बड्ड सुन्दरि स्त्रीकेँ देखलहुँ आ हम बेहोश भए गेलहुँ। होश अएलापर देखलहुँ जे ओ लड़की बिला गेलि। तखनेसँ हमर मोन बताह भऽ गेल, जे कहिया ओ लड़की हमरा भेटि जाए। ओ बुढ़िया कहलक जे ओहि लड़कीकेँ हम आनब। एखनसँ तूँ ठीक रह, ओकरा आनब हमर काज छी। बुढ़ियाक कहलापर ओ चुप भऽ गेल आ बुढ़िया राजाकेँ कहलक जे हमर संग पाँच टा सखी-सहेली चाही आ ओहि बिमारीकेँ हम ठीक करब। राजा पाँच टा सखी देलक आ बुढ़िया ओकरा सभकेँ लऽ कए बिदा भेल। ओ बोन दिस गेल, जतए ओ पोखरि रहए आ ओकर चारू दिसन ओ सभ नुका गेल। जखन दिनक बारह बाजल तँ ओ लड़की पोखरिसँ निकलल आ ओहि पोखरिक महारपर बैसि कए नहाय लागल। बुढ़िया जंगलसँ बहार भेल आ कन्याक बगलमे नहाए लागल। बुढ़ियाकेँ देखि कए कन्या सोचलक जे ओ अस्सी बरखक बुढ़िया अछि, ओकर सेवा केनाइ जरूरी अछि। ओ ओहि बुढ़िया लग जा कए ओकर सौँसे देहकेँ साफ करए लागल। कहलक माँ आब फेर नहा लिअ। बुढ़िया कहलक लाऊ बेटी, अहूँक सौँसे देह साफ कऽ दैत छी। बुढ़िया कन्याक देह साफ करए लागल। साफ करैत बुढ़िया चुटकी बजेलक तँ ओकर सखी सभ चारू दिसनसँ ओकरा पकड़ि लेलक आ आपस ठगपुर गाम दिस बिदा भेल, जतए राजाक घर छल। ठग राजा इनाम देबा लेल तैयार भेल आ अपन लड़कीक बियाह ओकर बताह लड़का संग करएबा लेल तैयार भेल। राजा अपना गाममे जतेक बाजा आ पालकी रहए, अपना ओहिठाम अनबा लेल कहलक। ओहि गाम आ नगरक सभटा बाजा आ पालकी, सभटा राजा लग चल गेल।
आब मन्त्रीक बेटा गाम-गाममे पुछैत अछि तँ सभ कहलक जे सभटा बाजा आ पालकी राजा ओहिठाम चलि गेल। ओतएसँ अएलाक बादे बाजा भेटत। ई सुनि मन्त्रीक बेटा कहलक जे ठीक अछि हम कनेक दिन रुकि जाइत छी। ओतए एम्हर बुढ़ियाक बताह बेटाक बियाहक दिन पड़ि गेलैक। मन्त्रीक बेटा ओहि गामक बच्चासँ पुछलक जे ई बरियाती कतए जाएत। बच्चा बाजल जे बरियाती कतहु नहि जाएत। हमर गामक एकटा बुढ़िया एहि बोनक पोखरिसँ एकटा कन्याकेँ पकड़ि कऽ अनने अछि। मन्त्रीक बेटाकेँ चिन्ता पैसि गेलैक जे ई वएह लड़की तँ नहि अछि। मन्त्रीक बेटा अपन सभटा पोशाक खोलिकऽ राखि देलक आ एकटा भिखमंगाक रूप धऽ कए राजाक आँगनमे गेल आ ओहि लड़कीकेँ देखलक आ इशारा कऽ देलक जे साँझ धरि हम आएब। ओहि ठामसँ बजीरक बेटा निकलि कऽ बाहर आएल आ ओहि बुढ़िया आ ओकर बताह बेटाक पता लगओलक। तँ देखलक जे ओ बताह बच्चा सभक संग गाए-महीस चरेबाक लेल बोन गेल अछि। मन्त्रीक बेटा सेहो बोन चलि गेल आ जतए पागल रहए, ओकरे संग खेलाए लागल। बच्चा सभकेँ जखन भूख लगलैक तँ मन्त्री-पुत्र आ ओहि बताह बच्चाकेँ छोड़ि कए चलि गेल। मन्त्रीक बेटा ओहि बताह बच्चाकेँ बोनमे भीतर लए जाए छोड़ि देलक आ ओकर सभटा कपड़ा लए लेलक। कनेक झलफल भेल महिसबार सभ गाए-महीस लए घुरए लागल, तँ मन्त्रीक बेटा सेहो बताह जेकाँ करैत घुरि आएल आ घरमे जा कए ओही लड़कीक चारू दिस घुरिआए लागल, जकरा संग ओकर बियाह होमए बला छलैक। ओहिना ओ ओहि घरमे सेहो चलि गेल जतए ओ नागवती कन्या रहए आ ओतए जा कए कहलक कि अहाँ एहि कपड़ाकेँ बदलि लिअ आ पोटरी बान्हि कए बगलमे दबा लिअ आ राजाक लड़कीबला कपड़ा पहिरि लिअ। आगाँ निकलू आ पाछाँ हम जाइत छी। कन्या आगाँ निकललि, पाछाँ मन्त्रीक बेटा बताह जेकाँ करैत, दुनू बाहर निकलि गेल। दुनू ओतएसँ बिदा भेल आ जतए पोखरि छल ओतए पहुँचि गेल।

सुनलहुँ ठाकुरक बेटा। अही गपपर अस्सी बरखक बुढ़ियाकेँ फाँसी देल जा रहल अछि, राजा कहलक जे ई बुढ़िया हमर राज्यक हिस्सा लेबाक लेल ई षडयन्त्र रचने रहए आ तेँ ओकरा फाँसी दए रहल अछि।
चारिम
आब राजाका बेटा आ कन्या संग किछु समए बिता कए बजीरक बेटा फेर घुरि आएल पालकी आ बाजा लेल। ओहि दिन पालकी आ बाजा दुनू भेटि गेल आ बजीर ओकरा लए चलि आएल। बहुत नीक जेकाँ दुनुक बियाह भेल आ बरियातीक संग अपन घरक लेल बिदा भेल।

चलैत-चलैत किछु दूर गेल तँ साँझ भए गेल। एकटा बड्ड पैघ गाछक लग ओ ठाढ़ भए गेल। सभकेँ खेनाइ खुआ कए सभ कियो सूति गेल। रस्ताक थकान रहए सभ कियो निन्नमे सूति गेल। रातिक बारह बाजल तँ बिध-बिधाता आएल आ ओहि गाछपर बैसि गेल। बिध बाजल- बड्ड नीक जोड़ी लागल अछि तँ बिधाता कहलक जे जोड़ी तँ ठीके बड्ड नीक अछि मुदा राजाक बेटा मरि जाएत। बीध पुछलक –किएक। तँ बिधाता बाजल हम तँ कहब मुदा एहि बरियातीमे सँ कियो सुनैत होएत, तँ ई बाँचि जाएत। ओहि समय नागवत्ती कन्या आ बजीर सुनि रहल छल। सभटा मिला कए पचीस टा संकट पड़त आ सभटा संकट ओ बतेलक। भोर भेल तँ नागवत्ती कन्या आ बजीर कहलक जे ई बरियाती सभकेँ एतएसँ आपस पठा दिअ आ हम तीनू गोटे एतएसँ चली। ओतएसँ तीनू गोटे बिदा भेल आ चलैत चलैत किछु दूर गेल तँ रस्ताक कातमे दू टा गाछ छल। मन्त्रीक बेटा आ कन्या कहलक जे हम तीनू गोटे हाथ पकड़ि कए चली। राजाक बेटाकेँ बीचमे लए दुनू गोटे दुनू दिससँ हाथ पकड़लक आ लग गेल आ कहलक जे हम तीनू गोटे एतएसँ दौगि कए चली। ई कहि कए ओ सभ दौगनाइ शुरू कएलक आ जहिना दौगि कए आगाँ गेल तँ दुनू दिसका गाछ खसि पड़ल। पाछाँ घुरि कए ओ सभ देखलक आ बाजल जे हम सभ दौगि कए जे आगाँ नहि अबितहुँ तँ ई हमरा सभक ऊपर खसि पड़ितए। ई कहि ओ सभ आगाँ बिदा भेल। ओतएसँ चलैत-चलैत किछु दूर आगाँ ओ सभ गेल तँ रस्तामे एकटा धार भेटि गेल तँ ओतहु ओहिना राजाक बेटाकेँ बीचमे लए दुनू दिससँ ओकर हाथ पकड़ि लेलक आ धारमे चलए लागल। बहुत तेजीसँ ओ सभ आगाँ बढ़ल आ जहिना ऊपर गेल तँ बीच पानिसँ निकलि गेल आ घुरि कए देखलक तँ बोचपर नजरि पड़लैक। ओ सभ बाजल जे हम सभ तेजीसँ नहि निकलितहुँ तँ बोच हमरा सभकेँ पकड़ि लैतए, आ तकर बाद ओ सभ ओतएसँ बिदा भेल। अपन कलम-गाछी होइत घर पहुँचैत गेल। मारते रास लोक ओतए जमा भए गेल आ राजाक बेटाकेँ देखए लागल आ कहए लागल जे बड्ड नीक जोड़ी मिलल अछि। ओ सभ महलक भीतर जेबाक पहिने अगुलका छत तोड़बा देलक। राजाक बेटाकेँ बजीरक बेटा आ कन्यापर ओहिहाम शक भेलैक। राजा आ कन्या महल गेल। आब राजा पुछलक जे हमर दोस बजीरकेँ बजाऊ। पूछए लागल जे दोस अहाँ दुनू गोटे रस्तासँ घर धरि एतेक रास बात केलहुँ, से हमरा बुझल नहि भेल, से अहाँ ओ सभ गप हमरा कहू। बजीरक बेटा बाजल जे दोस ई सभ कोनो गप नहि अछि। ई सभ हम सभ हँसी कए रहल छलहुँ, जे देखी जे हमर सभ राजा दौगि सकैत छथि आकि नहि , आ चलि सकए छथि आकि नहि। ताहि द्वारे हम सभ हँसी कए रहल छलहुँ। एहि गपपर राजाकेँ बिस्बास नहि भेलैक आ ओ कहलक जे जे यदि ई गप अहाँ नहि कहब तँ अहाँकेँ फाँसीपर लटकबा देब। एहि गपकेँ कन्या सेहो सुनि रहल छलीह। हारि कए बजीरक बेटा कहलक जे जतएसँ बरियाती आपस भेल छल। बिधाता जे कहने छल ओ सभ गप कहलक आ रस्तामे जे बितल सेहो कहलक। ई सभ कहिते बजीरक बेटाक अदहा अंग पाथरक भए गेलैक। आ जखन सभ गप पूर्ण भेल तँ बजीरक बेटा ओही कोचक बगलमे पहाड़ बनि गेल। किछु दिनुका बाद राजाकेँ एकटा बेटा रातिमे जन्म लेलक। कहल गपकेँ ओही समय ओ पूर्ण करए लागल आ ओही पहाड़पर ओहि बालककेँ राखि पघरियासँ दू टुकड़ी कए देलक। ओकर टुकड़ा होइतहि बजीरक बेटा फेरसँ तैयार भऽ गेल आ कहलक जे हमरा आब ओ लड़का दिअ। बजीरक बेटा ओहि बालककेँ लए अपन सासुर गेल। ओ बारह बजे रातिमे पहुँचल। कोनो तरहेँ अपन स्त्रीक लग पहुँचल आ सभ गप कहि बालककेँ आमक गाछक ठाढ़िपर लटका देलक। रातिमे अपन स्त्रीकेँ कलममे अनलक आ बालककेँ ठाढ़िपरसँ उतारि कए नीचाँ कएलक आ कहलक जे ई चक्कू लिअ आ अपन हाथक कँगुरिआ आँगुर काटि कए एहि बच्चापर छीटि दिअ। जखने ओ छीटलक तखने ओ बच्चा कानए लागल आ तखने ओ ओकरा लए जा कए राजाकेँ देलक। बजीरक बेटा कहलक जे आब आइ दिनसँ अहाँक संग हमर दोसतियारी समाप्त भेल। ई कहि बजीरक बेटा अपन घर घुरए लागल, तँ ओही समय राजाकेँ ज्ञान प्राप्त भेल आ जा कए अपन दोस्तकेँ गरा लागि ओ क्षमा मँगलक आ कहलक जे आइसँ एहन गलती हमरासँ कहियो नहि होएत आ ई दोस्ती बनल रहत।





राजा अनसारी
राजा अनसारी महान राजा छलाह। हुनकर राज्य १४ कोशमे पसरल रहए। ओ राजा अपन मनोकामनाक अनुसार राज्य करैत छलाह। जे हुनकर हृदयमे अबैत छलन्हि वैह करैत छलाह। हुनका तीन टा बेटा छलन्हि। एक दिनुका गप अछि। राजाकेँ कोनो वस्तुक कमी नहि छलन्हि। घर मकान, बंगला आ बाग-बगीचासँ भरल-पूरल छलन्हि। एक दिन राजा रातिमे सूतल छलाह कि अचानके ओ सपना देखलन्हि जे हमर घरमे हीरा-मोती झरि-झरि कए खसैत अछि आ मोजर चुनि-चुनि कए सभ खाइत अछि। भोर भेल तँ राजा अपन लड़काकेँ कहलक जे देखू हम रातिमे ई सपना देखलहुँ। लड़का उत्तर देलक जे पिताजी अहाँ एहि गपक चिन्ता नहि करू, हम ओकरा पूरा कए देब। तीनू भाए विचार कए भोरे घोड़ा कसेलक आ बिदा भेल। चलैत-चलैत एकटा भयंकर बोनमे ओ सभ पहुँचल। तीनू भाए ओहि बोनमे रस्ता बिसरि गेल आ तीन रस्तापर बिदा भऽ गेल। दू भाइ भटकैत रहल आ एहिना किछु दिन बीति गेल। छोट भाए बोनक रस्तामे भूख-पिआससँ थाकि गेल आ घोड़ाकेँ छोड़ि देलक आ पएरे चलए लागल। कनेक कालक बाद ओकरा रस्तामे एकटा इन्सान भेटल। ओकरासँ ओ पुछलक, हमर सोनारूपी गाछक ठाढ़िसँ मोती झरैत अछि आ मोजर चुनि कए खाइत अछि। हमरा ओतहि जएबाक अछि। ओ इनसान कहलक जे एहि रस्तासँ चलि जाऊ। आगाँ एकटा इनार अछि। ओही इनारक बाटे एकटा रस्ता अछि। छोटका भाए ओकरे कहल अनुसार चलैत रहल आ जखन ओहि इनारक लग गेल तँ देखलक जे रस्ता ओही बाटे रहए। ओ इनारमे जा कए खसि पड़ल। चलैत-चलैत ओ भैरवानन्द जोगी लग पहुँचल। ओ जोगी कहलक जे रे बच्चा तूँ एतए कतएसँ अएलँह, एतए तँ कोनो मनुख आइ धरि नहि पहुँचि सकल रहए। ओतए ओ बच्चा ओहि जोगीक सेवा करए लागल। सेवा करैत किछु दिन बीति गेल तँ जोगी ओहि बच्चापर बड्ड प्रसन्न भऽ गेल, बाजल-बच्चा माँग की मँगैत छँह। हम तोरा अवश्य देबौक। बच्चा बाजल-जोगी बाबा, हमरा सोनाक गाछ आ रूपाक ठाढ़ि जाहिमेसँ मोती झरैत अछि आ मोजर चुनि कए खाइत अछि, से चाही। ओ योगी ई गप सुनि कए बड्ड आश्चर्य व्यक्त कएलक। तूँ ई चीज कोना पता लगेलह । ठीक अछि। हम जखन वरदान दए चुकल छी, तँ अवश्य देब। तोरा कष्ट उठाबए पड़तह। भोर भेल तँ बच्चाकेँ एकटा जंत्र देलक आ कहलक जे जाऊ आ सात समुद्र पार ओतए एकटा अमर फलक गाछ अछि, ओहिमेसँ एकटा फल तोड़ि कए लए आनू। ओ बच्चा ओतएसँ बिदा भेल। सुग्गाक रूप धारण कएलक, उड़ैत-उड़ैत सात समुद्र पार गेल, जतए अमरफलक गाछ रहए। ओ फल तोड़ि ओतएसँ बिदा भेल जखन ओकरा पाछाँ तीन टा परी लागि गेल आ ओ सभ तखन अबाज देलक जे घुरि कए देख। एना कहैत, पाछाँ करैत, चलि आबि रहल छल ओ सभ। समुद्र टपलाक बाद सुग्गा घुरि कए देखलक आ ओतहि मरि गेल। जोगी ई सभ ध्यानमे देखि रहल छल। सुग्गा घुरि कए देखलक आ मरि गेल ! जोगी बिदा भेल अपन चुट्टा लए। चुट्टासँ मारि कए सुग्गाकेँ जिएलक आ कहलक जे आब जो। तूँ फल लए जे आब चलमे, तँ घुरि कए नहि देखिहँ। एना बुझा कए ओकरा जोगी पठेलक आ ओ चलि गेल। फल तोड़ि एहि बेर ओ उड़ैत रहि गेल, घुरि कए नहि देखलक आ जोगी लग पहुँचि गेल। जोगी लग ओ पहुँचि गेल आ ओ फल जोगीक हाथमे देलक। ओ अमर फलसँ किछु बच्चाकेँ खोआ देलक आ कहलक जे आब जाऊ अहाँ अमर भए गेलहुँ। फेर ओ कहलक जे ओही सात समुद्र पार एकटा कलम-गाछी अछि। ओही गाछीमे तीन बहिन रहैत छथि। ओकरे लग तोहर बात पूर्ण होएतौक। बच्चा बिदा भेल, फेर सात समुद्र पार गेल आ ओही गाछीमे पैघ बहिन लग जा कए कहलक तँ ओ ओकरा माँझिल लग पठा देलक। ओकरा लग गेल तँ ओ ओकरा छोटकी लग पठा देलक। जखन ओ छोटकी बहिन लग गेल तँ ओ हाथमे चक्कू लेने बड़की आ माँझिल बहिन लग आएल। तखन तीनू बहिन ओहि लड़कासँ पुछलक जे तोँ कतएसँ आएल छह। लड़का जवाब देलक जे जोगी बाबा हमरा पठेने छथि। अहाँ सभ हमरा संगे जोगीबाबा लग चलू। ओ चारू गोटे ओतएसँ जोगीबाबा लग अएलाह। जोगीबाबा कहलक-बेटी, आब अहाँ तीनू गोटेकेँ एकरा संग जेबाक अछि।
ओ तीनू परी चलबा लेल तैयार भऽ गेलीह। जोगी बाबासँ बच्चा कहलक- हमरा गाछ नहि देखाइ पड़ल। ओहि समय जोगी बाबा आदेश देलक आ खेला देखेलक। तीनू परी एक लाइनमे ठाढ़ भए गेलीह आ लड़काक हाथमे चक्कू देलक आ कहलक जे एक्के संग तीनू परीक गरदनिमे चक्कू मारू आ अपन गरदनिमे सेहो मारू। एना कएलासँ सोनाक गाछ आ रूपाक ठाढ़िपरसँ मोती झरए लागल आ मोजर चुनि कए खाए लागल। बच्चाकेँ आब बिसबास भेलैक आ तखन किछु दिनुका बाद ओ चारू गोटे ओतएसँ बिदा भेल आ घर पहुँचल।
ओ अब्बूकेँ कहलक पिताजी हम सोना-रूपाक गाछ अनने छी।
राजा अनसारी कहलक- बेवकूफ! तूँ तीनटा औरत अनने छँह आ कहैत छँह जे गाछ अनने छी।
बच्चा कहलक जे सौँसे नगरक लोककेँ बजाऊ आ तखन हम देखबैत छी।
राजा सभकेँ बजेलक एकत्र कएलक।
बच्चा तीनू परीक गरदनिमे चक्कू मारलक आ अपन गरदनिमे सेहो। सोनाक गाछ आ रूपाक ठाढ़ि सँ मोती झरए लागल आ मोजर चुनि कए खाए लागल।
राजाक सपना पूरा भेल।

राजा ढोलन
गढ़ नारियलक राजा दक्ष रहए। ओ राजा बड्ड प्रतापी छल। मुदा ओकरा राज्यमे कोनो हाट-बजार नहि रहए। राजा सोचलक जे हमर राज्यमे हाट कोना लगत? से राजा अपन राज्यमे ढोलहो पिटबा देलक जे हमरा राज्यमे हाट लागत आ जकर जे समान नहि बिकाओत से हम कीनि लेब। सम्पूर्ण राज्यक लोक आबए लागल आ हाट लगबए लागल। एहि प्रकारेँ सभ दिन हाटमे जे समान बचि जाइत छल, तकरा राजा कीनि लैत छल। एहिना कतेक दिन बीति गेल। एक बेर एकटा सूतबला सूत बेचए लेल ओतए आएल मुदा तावत हाट उठि गेल रहए आ ओकर सूता नहि बिकाएल। राजा ओकर सूत सेहो कीनि लेलक।
मुदा जहियासँ राजा सूता किनलक तहियेसँ ओकर अबस्था घटए लागल। किछु दिनुका बाद राजाक हालति गरीब जेकाँ भऽ गेल। राजा अपन स्त्रीसँ कहलक-अम्बिका सुनू। अपन राज्यमे गरीबी पसरि गेल अछि। आब अपन राज्य रहबा योग्य नहि रहल। ओतए सँ राजा बिदा भेल आ जाइत-जाइत कोनो देशमे पहुँचल। ओहि देशक नाम गढ़पिंगल रहए। ओतुक्का राजाक नाम सेहो देशक नामपर छल। गढ़पिंगल राजाक ओही नगरमे गढ़नारियल राजा घुमैत-घुमैत पहुँचि गेल आ कहए लागल जे हे भाइ हमरा कियो नोकरी राखत ? राजा कहलक-हँ। हमरा एकटा नोकरक जरूरी अछि। एकरा राखि लिअ। गढ़पिंगल राजाकेँ एक सए नोकर रहए आ ओकरा एकटा आर नोकरक आवश्यकता रहए कारण ओकरा लग १०१ टा घोड़ा रहए। ओ राजाक एहिठाम रहि गेल आ सभ दिन घोड़ाक घास लेल जाए लागल आ घास छीलि कए आनए लागल। गढ़नारियलक राजा दक्षक स्त्री गर्भवती रहए आ गढ़पिंगलक राजाक स्त्री सेहो गर्भवती रहए। आ संयोग एहन रहल जे दुनू राजाक स्त्री एक्के दिन जन्म दैत अछि। पिंगलक राजा ब्राह्मण बजा कए ज्योतिष देखेलक आ राजा अपन पुत्रीक नाम राखलक आ कहलक जे एकर नाम मडुवन किएक अछि। ब्राह्मण कहलक जे एकर बियाह छठी रातिकेँ होएत। राजा ओही दिनसँ अपन राज्यमे ताकैत-ताकैत थाकि गेलथि मुदा हुनका ओ नहि भेटल। राजाक खबासिनी कहलक जे अहाँ सभ चिन्ता किएक करैत छी। राजा साहब पछिला बेर जे नोकर रखने छथि हुनका एहिठाम एकटा लड़का जन्म लेने अछि। ओकरे संग बियाह करा देल जाए। ओहि बच्चाक नाम राशिक अनुसार राजा ढोलन राखल गेल छल। गढ़पिंगलक राजा सोचलक जे ई बड्ड नीक गप अछि, जखन ई लगेमे अछि तँ ओकरे संग बियाह करा देल जाए। दिन तँ ताकले रहए से ओही छठिक रातिमे बियाह भए गेल। किछु दिनुका बाद राजा दक्ष कहलक जे आब एतए रहबाक योग्य नहि अछि। आब अपन देश जएबाक चाही।
राजा जाहि साढ़ीनपर चढ़ि कए आएल रहथि ओहि साढ़ीनकेँ कहलन्हि जे साढ़िन आब अपन देश चलू। आब साढ़ीपर चढ़ि कए राजा-रानी बिदा भेलाह। किछु दूर रस्तामे गेलाह तँ एकटा बोन भेटलन्हि। ओहि बोनमे रस्ताक कातमे एकटा पोखरि रहए। ओही पोखरिक महारपर दू टा बाघ-बाघिन रहैत छल। राजा सोचलक जे हमर सभक बच्चा जखन एहि रस्तासँ अपन सासुर जएताह, तखन ई बाघ हमर बच्चा सभकेँ खा जाएत। ताहि द्वारे एकरा मारि देनाइ ठीक होएत। राजा बाघकेँ मारि देलक आ आगाँ चलल तँ बाघिन कहलक जे राजा तूँ हमरा जेना राँड़ कए जा रहल छह, ओहिना तोहर बेटा जखन अपन सासुर जेतह तँ गढ़पीपली राजमे ओकर कनियाँकेँ हमहू राँड़ कए देबैक।
बाघिनक ई अबाज मात्र राजा सुनलक। राजा अपन घर पहुँचि कए ई गप ककरो नहि कहलक। ओ अपन साढ़िनकेँ एकटा पैघ खधाइ खूनि कए ओहिमे धऽ देलक कारण बाहर रहलासँ ओ ई गप ओकर बच्चाकेँ सुना दैत। ओही समय छोट बालककेँ अपन फुलवाड़ीक रेखा-पेखा मालिनक संग दए देलक। ओकर दुनू बहिन ओकरा बड्ड नीक जेकाँ सेवा करए लगलीह। एहिना करैत किछु दिन बीति गेल तँ ई बच्चा समर्थ भऽ गेल आ तखनो ओकरा किछु बूझल नहि भेलैक। ओम्हर ओ मड़ुअन कन्याँ सेहो पैघ भऽ गेलि। कन्या युवा भऽ गेलि तँ ओहि सखी सभक घुमैत फिरैत हुनका कोनो संगी कहलक जे हे बहिन। आब अहाँ समर्थ भऽ गेलहुँ। अहाँक पिताजी अहाँक बियाहक विषयमे किछु नहि सोचि रहल छथि। ई बात सुनि कए कन्याँ बड़ चिन्तामे पड़ि गेलीह। अपन महलमे जा कए ओ पलंगपर पड़ि रहलीह आ खेनाइ त्यागि देलन्हि। एहिपर ओकर माए कन्या लग जाए कहलक, बेटी अहाँ खेनाइ किएक नहि खाइत छी ?
कन्याँ बाजलि-माए। सखी सभ बड्ड किचकिचबैत अछि। ताहि द्वारे हमरा भूख नहि लगैत अछि। माए कहलक- अहाँकेँ की कहि किचकिचबैत छथि?
कन्याँ बाजल-ओ सभ हमरा कहैत छथि जे अहाँक पिताजीकेँ कोन चीजक कमी अछि, जे अहाँक पिताजी अहाँक बियाह नहि करा रहल छथि?
माए कहलक- – बेटी अहाँक बियाह छठीक रातिमे भए गेल अछि। अहाँक सासुर गढ़नारियलमे अछि। नहि जानि ओ किएक नहि अबैत छथि?
ई सुनि कन्याँ कहलक जे हमरा जबुनाक कातमे एकटा मकान बना दिअ आ सभ वस्तुक व्यवस्था कए दिअ। हम बारह बरिख धरि सदाव्रत बाँटब। एतेक सुनि राजा ओहिना कएलक। मड़ुवन कन्याँ जबुनाक कातमे सदाव्रत बँटनाइ शुरू कए देलक।
बनिजारा सभ वाणिज्य करबाक लेल गढ़नारियलसँ गढ़-पिन्गल जा रहल छलाह। बनिजारा सभ जखन गढ़-पिन्गल पहुँचलाह तँ जबुना धारक कातसँ होइत आगाँ बढ़ि रहल छलाह। जाइत-जाइत ओ सभ ओहिठाम पहुँचलाह जतए मड़ुवन कन्या सदाव्रत बाँटि रहल छलीह। ओ कन्याँ पुछलक-अहाँ सभ कतए जा रहल छी आ कतएसँ आएल छी। बनिजारा बाजल-हम सभ गढ़नारियलसँ आएल छी आ गढ़पिन्गलमे हीरा-मोतीक वाणिज्य करैत छी। कन्याँ बाजल-अहाँ वाणिज्य कए घुरब तँ हमर एकटा पत्र लए जाएब?
बनिजारा बाजल-अहाँ पत्र लिखि कए राखब, हम जरूर लए जाएब। बनिजारा जखन घुरल तँ ओ पत्र लए चलि गेल आ जखन गढ़ नारियल पहुँचल तँ हरेबा-परेबा जे दुनू बहिन छलि-आ बड्ड पैघ जादूगरनी छलि- ओ जादूक जोरसँ पता लगा कए राजाकेँ खबरि कएलक आ बनिजारासँ ओ पत्र लऽ कऽ ओकरा आगिमे जरा देलक आ ओहि राजाक बेटाकेँ एकर पता नहि चलए देलक। कन्याँक ई पत्र मारल गेल। ओ बेचारी बाट तकैत रहल। किछु दिन बीतल। ओ कन्याँ एकटा सुग्गा पोसने छलीह। ओ सुग्गासँ पुछलक-की तूँ हमर पत्र लए जा सकैत छह। सुग्गा बाजल-हँ। हम पत्र राजाकेँ दए देब। कन्याँ पत्र लिखि कए सुग्गाक गरदनिमे लटका देलक आ कहलक- जाऊ।
सुग्गा ओतएसँ बिदा भेल। सुग्गा आकासमे उड़ि बिदा भेल आ पहुँचल गढ़नारियल राज्य जतए हरेबा-परेबा आ राजा ढोलन रहथि। सुग्गा उड़ि कए ओकर कान्हपर बैसि गेल, ठोंठसँ सूता काटि कए खसेलक। ओहि समय हरेबा-परेबा राजा ढोलनक फुलवारीमे बैसल रहए। ठंढ़ीक मौसम छल। आगि पजारि कए बैसल छल। जखने ओ पत्र खसेलक तखने मालिन ओहि पत्रकेँ आगिमे धऽ देलक। राजा ढोलनकेँ बड्ड तामस उठलैक। दुनूकेँ दू-दू चमेटा मारलक आ कहलक जे तूँ दुनू गोटे एतएसँ चलि जो। दुनू बहिन पकड़ि कए ओकरा मनाबए लागल। कन्याँक ओहो पत्र खतम भए गेल। कन्याँ बहुत चिन्तामे पड़ि गेल। बहुत समय आर बीति गेल।
एक दिन जबुनाक किनारसँ एकटा महात्मा जोगी रूपमे जा रहल छल। कन्याँक नजरि ओहि महात्मापर पड़ि गेल। कन्याँ बड्ड चिन्तित भए कानि रहल छलीह। ओ साधु महात्मा कन्याँक कननाइ सुनि अएलीह आ कारण पुछलक।
कन्याँ सभटा हाल बतेलक ।
महात्मा कहलक जे तूँ एकटा पत्र लिखि कए हमरा दे आ हम ओ पत्र ओतए पहुँचाएब।
कन्याँ पत्र लिखि कए महात्माकेँ देलक। महात्मा ओतएसँ बिदा भेल।
कन्याँ महात्माकेँ गाँजा,भाँग आ हफीम देलक। महात्मा ओकरा खाइत-पिबैत ओतएसँ बिदा भेल। किछु दिनुका बाद महात्मा गढ़नारियल पहुँचल, जतए हरेबा-परेबा आ राजा ढोलन रहए। ओ फुलबारीक बीचमे अपन डेरा खसेलक। रातुक मौसम छल। भोर होइ बला छल। ओही समय महात्मा एकटा मोहिनी बाँसुरी निकाललक आ बजबए लागल। ओहि बाँसुरीक अबाज सुनि राजा ढोलन उठल आ चलबा लए तैयार भेल तँ दुनू बहिन ओहि बाँसुरीपर बहुत रास जादू-गुण चलेलक। मुदा महात्माक किछु नहि बिगड़ल। राजा ढोलन उठल आ दुनूकेँ दू-दू लात मारि महात्मा लग गेल। साधुजी ओहि पत्रकेँ निकालि कऽ राजा ढोलनकेँ देलन्हि। आर से पढ़ि राजा ढोलन तामसे विख-सबिख भए गेल आ ओतएसँ घर गेल आ एकटा तलबार लए पितासँ पूछए लागल जे बताऊ जे ई हमर बियाह कतए भेल अछि ? पिताकेँ ओ बाघिन मोन पड़ि गेलैक से ओ झूठ बाजल आ कहलक जे हम तोहर बियाह नहि करबेने छियहु।
तामसे भेर भए ओ ओहि पत्रकेँ राजाक सोझाँ राखलक। राजा ओ पढ़ि बड्ड चिन्तामे पड़ि गेल।
ओ अपन बेटाकेँ कहलक। देखू बेटा। अहाँक बियाह हम छठीक राति कएने छी आ गौना एहि द्वारे नहि कएलहुँ कारण अबैत काल हम एकटा बाघकेँ मारि देलहुँ। फेर ओ सभटा खिस्सा कहि सुनेलक आ कहलक, जे ओ डरे ओकर गौना नहि करेलक।
ढोलन बाजल-हमर सवारी कतए अछि। हमर सवारी दिअ।
राजा कहलक-साढ़नी तँ तरहाराक नीचाँ अछि। ओ जीवित अछि वा मरि गेल से नहि जानि।
राजा ढोलन तरहराक नीचाँ सँ साढ़िनकेँ बहार कएलक तँ साढ़िनक देहमे पिल्लू लागि गेल छल। ओ ओकरा साफ कएलक आ ओकरा चना-चबेना खुअएलक। खुआबैत-खुआबैत ओ पहिने जेकाँ तन्दरुस्त भए गेल।
राजा ढोलन बाजल-साढ़िन, तोहर पैर बहुत दिनसँ बान्हल छह। तूँ चौदह कोसक रस्ताकेँ एक दिनमे चारि चौखड़ लगा दिअ तँ हम बुझब। हम सभ फेरसँ गढ़पिंगल पहुँचब। साढ़िन अपन चालि एक दिनमे बना लेलक। राजा ढोलन अपन सासुर बिदा भेल। साढ़िनपर स्वार भए अपन कान्हपर बन्दूक लेलक आ बिदा भेल। चलैत-चलैत ओ ओही बोनमे पहुँचल। ओही रस्तासँ ओ सभ जा रहल छल, जतए ओ बाघिन रहैत छलीह। बाघिनकेँ राजा ढोलन देखलक आ ओहि बाघिनकेँ मारि देलक। फेर ओ अपन सासुर गढ़पीपली गेल आ फूल बगानमे डेरा खसेलक। साढ़नीकेँ ओ ओतहि छोड़ि फूल-बगानकेँ तोड़ि-तारि कए तहस-नहस कए देलक। मालिन कहलक जे तोरा राजासँ पिटान पिटबेबउ आ जतेक तोँ बरबादी कएने छँह तकर हरजाना लेबउ। राजा ढोलन बाजल- जो तोरा जे करबाक छौक कर।
मालिन तामसे बिदा भेलि आ राजा लग गेलि। राजासँ कहलक।
राजा पुछलक जे ओ कतुक्का अछि।
मालिन कहलक जे ओ अपन घर गढ़नारियलक बतेलक अछि।
राजा अपन सिपाही सभकेँ पठेलक। ओ सभ ढोलनकेँ पुछलक-अहाँ कतुक्का छी आ कतएसँ आएल छी।
ढोलन बाजल- हमर घर गढ़ नारियल अछि आ हम अपन सासुर गढ़पिंगल- ओतहिसँ आएल छी।
सिपाही सभ ई गप राजाकेँ जा कए कहलक।
राजा प्रसन्नतासँ स्वागत कए डोलीमे बैसा कए ढोलनकेँ अपना घर अनलक। किछु दिनुका बाद राजा अपन बेटी-जमाएकेँ गढ़-पिंगलसँ गढ़ नारियलक लेल बिदा केलक। ओतए सँ राजा ढोलन आ ओ मड़ुवन कन्याँ अपन घर गेल आ अपन राज्य करए लागल।

बगियाक गाछ
एकटा मसोमात छलीह आ हुनका एकेटा बेटा छलन्हि। ओ छल बड्ड चुस्त-चलाक।
एक दिनुका गप अछि। ओ स्त्री जे छलीह, अपना बेटाकेँ बगिया बना कए देलखिन्ह। ओहि बालककेँ बगिया बड्ड नीक लगैत छलैक। से ओ एहि बेर एकटा बगिया बाड़ीमे रोपि देलक। ओतए गाछ जनमि गेल। बगियाक गाछ, नञि देखल ने सुनल।
माए-बेटा ओहि बगियाक गाछक खूब सेवा करए लगलाह। कनेक दिनमे ओहि गाछमे खूब बगिया फड़य लागल। ओ बच्चा गाछ पर चढ़ि कए बगिया तोड़ि कए खाइत रहैत छल।
एक दिनुका गप अछि। एकटा डाइन बुढ़िया रस्तासँ जा रहल छलि। ओकरा मनुक्खक मसुआइ बना कए खायमे बड्ड नीक लगैत रहैक। ओ जे ओहि बच्चाकेँ गाछ पर चढ़ल देखलक तँ ओकर मोन लुसफुस करए लगलैक। आब ओ बुढ़िया मोनसूबा बनबए लागल जे कोना कए ओहि बच्चाकेँ फुसियाबी आ एकरा घर लऽ जा कए ओकर मसुआइ बना कए खाइ।
बच्चाकेँ असगर देखि ओ लग गेलि आ बच्चाकेँ कहलक-
“बौआ एकटा बगिया हमरा नहि देब? बड्ड भूख लागल अछि।
बच्चा ओकर हाथ पर बगिया देबय लागल।
“बौआ हम हाथसँ कोना लेब बगिया हथाइन भऽ जाएत”।
बच्चा बगिया ओकर माथ पर राखए लागल।
“हँ हँ माथ पर नहि राखू। मथाइन भऽ जाएत”।
बच्चो छल दस बुधियारक एक बुधियार। खोइछमे बगिया देबए लागल।
“ई की करैत छी बौआ। बगिया खोँछाइन भऽ जाएत, अहाँ झुकि कए बोरामे दए दिअ”।
मुदा बच्चा तँ छल बुझू जे गोनू झाक मूल-गोत्रेक।
बाजल-
“नञि गए बुढ़िया। तोँ हमरा बोरामे बन्द कए भागि जेमह। माए हमरा ठग सभसँ सहचेत रहबाक हेतु कहने अछि”।
मुदा बुढ़ियो छल ठगिन बुढ़िया। ठकि फिसिया कए बोली-बानी दए कए ओकरा मना लेलक। जखने बच्चा झुकल ओ ओकरा बोरामे कसि कए बिदा भेलि। बुढ़िया रस्तामे थाकि कए एकटा गाछक छाहरिमे बैसि गेलि।
कनेक कालमे ओकरा आँखि लागि गेलैक। बच्चा मौका देखि कोनहुना कए ओहि बोरासँ बाहर बहरा गेल आ भीजल माटि, पाथर आ काँट-कूस बोरामे धऽ कए ओहिना बान्हि कए पड़ा गेल।
बुढ़िया जखन सूति कए उठल आ बोरा लऽ कए आगू बढ़ल तँ ओकरा बोरा भरिगर बुझएलैक। मोने-मोन प्रसन्न भऽ गेलि ई सोचि जे हृष्ट-पुष्ट मसुआइ खएबाक मौका बहुत दिन पर भेटल छै ओकरा। रस्तामे भीजल माटिसँ पानि खसए लागल तँ ओकरा लगलैक जे बच्चा लगही कए रहल अछि।
ओ कहलक जे-
”माथ पर लघुशंका कए रहल छह बौआ। कोनो बात नहि। घर पर तोहर मसुआइ बना कए खायब हम”।
कनेक कालक बाद काँट गरए लगलैक बुढ़ियाकेँ। कहलक-
”बौआ। बिट्ठू काटि रहल छी। कोनो बात नहि कतेक काल धरि काटब”।
बुढ़्याक एकटा बेटी छलैक। गाम पर पहुँचि कए बुढ़िया ओकरा कहलक जे आइ एकटा मोट-सोट शिकार अछि बोरामे। माए बेटी जखन बोरा खोललक तँ निकलल माटि, काँट आ पाथर।
कोनो बात नहि।
बुढ़िया भेष बदलि पहुँचल फेरसँ बगियाक गाछ तर।
एहि बेर बच्चा ओकरा नञि चीन्हि सकल। मुदा जखन ओ झुकि कए बगिया बोरामे देबाक गप कहलक तँ बच्चाकेँ आशंका भेलैक।
”गए बुढ़िया। तोँही छँह ठगिन बुढ़िया”।

मुदा बुढ़िया जखन सप्पत खएलक तँ ओ बच्चा झुकि कए बगिया बोरामे देबए लागल। आ फेर वैह बात।
एहि बेर बुढ़िया कतहु ठाढ़ नहि भेलि। सोझे घर पहुँचल आ बेटी लग बोरा राखि नहाए-सोनाए लेल चलि गेलि।बेटी जे बोरा खोललक तँ एकटा झोँटा बला बच्चाकेँ देखलक। ओ पुछलक-
“हमर केश नमगर नहि अछि किएक?”।
“अहाँक माय अहाँक माथ ऊखड़िमे दए समाठसँ नहि कुटने होयतीह। तेँ ”। बच्चा तँ छल दस होसियरक एक होसियार से ओ बाजल।
बुढ़ियाक बेटी अपन केश बढ़ेबाक हेतु अपन माथ ऊखड़िमे देलक आ ओ बच्चा ओकरा समाठसँ कूटए लागल।
ओकरा मारि ओकर मासु बनेलक। बुढ़िया जखन पोखरिसँ नहा कए आयल तँ बुढ़ियाक आगू ओ मासु परसि देलक।
जखने ओ खेनाइ पर बैसलि तँ लगमे एकटा बिलाड़ि छल से बाजि उठल-
“म्याँऊ। अपन धीया अपने खाँऊ। म्याँऊ”।
“बेटी एकरा मासु नहि देलहुँ की। तेँ बाजि रहल अछि”।
ओ बच्चा बिलाड़िक आगाँ मासु राखि देलक मुदा बिलाड़ि मासु नहि खएलक।
आब बुढ़ियाक माथ घुमल। ओ बेटीकेँ सोर कएलक तँ ओ बच्चा समाठ लऽ कए आयल आ ओकरा मारि देलक।
फेरसँ बच्चा बगियाक गाछ पर चढ़ि बगिया खए लागल। बड्ड नीक लगैत छल ओकरा बगिया।

ज्योति पँजियार
ज्योति पँजियार छलाह सिद्ध। पम्पीपुर गामक। तंत्र-मंत्र जानएबला। धर्मराज रहथि हुनकर कुलदेवता। ज्योति पँजियारक पत्नी छलीह लखिमा।
एक बेर साधुक वेष धऽ धर्मराज भिक्षाक हेतु अएलाह। ज्योति पँजियार लखिमाक संग गहबर बना रहल छलाह। माय सूपमे अन्न लए कऽ अयलीह। मुदा साधु कहलखिन्ह जे हम तँ भीख लेब ज्योति पँजियारक हाथेटा सँ। ज्योति पँजियार मना कए देलखिन्ह जे हम गहबर बनायब छोड़ि कए नहि आयब। साधु श्राप दए देलखिन्ह जे निर्धन भऽ जयताह ज्योति पँजियार, कुष्ठ फूटि जएतन्हि हुनका।
आस्ते-आस्ते ई घटित होमए लागल। ज्योति पँजियार बहिनिक ओहिठाम चलि गेलाह। मुदा ओतय अवहेलना भेटलन्हि। ज्योति ओतय सँ निकलि गेलाह। ओइटदल गाम पहुँचि गेलाह अपन संगी लगवारक लग। एकटा तांत्रिक अएलाह। कहल- बारह वर्ष धरि कदलीवनमे रहए पड़त। धर्मराजक आराधना करए पड़त, गहबड़ बनाए करची रोपी ओतए। बाँसक घर बनाऊ धर्मराजक हेतु। धर्मराज दर्शन देताह, अहाँ ठीक भऽ जाएब। पँजियार चललाह।
रस्तामे सैनी गाछ भेटलन्हि, ओकर छाहमे सुस्तेलाह पँजियार। मुदा ओ गाछ सुखा गेल, अरड़ा कए खसि पड़ल।
कोइलीकेँ कहलन्हि जे पानि आनि दिअ। ओ उड़ल तँ बिहाड़ आबि गेल। कोइली मरि गेल।
पँजियार उड़ि कए पहुँचि गेलाह कदली वनमे। एकटा महिसबार कहलकन्हि जे अछमितपुर गाम जाऊ। महिसबार छलाह धर्मराज, बनि गेलाह भेम-भौरा।
एकटा व्यक्त्ति भेटलन्हि। ओ कहलकन्हि जे आगू वरक गाछ भेटत, ओकर पात तोड़ू।ओहि पर अहाँक सभ प्रश्नक उत्तर रहत। ई कहि ओ परबा बनि गेल।
वरक पात तोड़लन्हि ज्योति तँ ओहि पर लिखल छल, यैह छी अछमितपुर। ओतुक्का राजाकेँ बच्चा नहि छलन्हि। ज्योति आशीर्वाद देलन्हि। कहलन्हि, एकटा छागर ओहि दिन पोसब जाहि दिन गर्भ ठहरि जाए। हम कदली वनसँ आएब तँ ई छागर स्वयं खुट्टासँ खुजि जाएत। १२ बरखक बाद ज्योति कदली वनसँ चललाह। कोइलीकेँ जीवित कए देलन्हि। सुखाएल धारमे पानि आबि गेल। सैनीक गाछ हरियर कचोर भऽ जीबि उठल। अछमितपुर गाममे राजा कहलन्हि जे छागर आ पुत्र दुनू एकहि दिन मरि गेल। पँजियार पाठाकेँ जिआ देलन्हि, कहलन्हि जो तोँ कदलीवनक धारमे नाओ पर चढ़ि जो, मनुक्ख रूप भेटि जएतौक। तावत राजाक पुत्र सेहो कदलीवनसँ शिकार खेला कए घोड़ा पर चढ़ि कए आबि गेल। ज्योति पँजियार गाम पहुँचि गेलाह गमछामे गहबर लेने।

राजा सलहेस
राजा सलहेस सुन्दर आ वीर छलाह। मोरंग, नेपालमे रहैत छलाह। ओ दुसाध जातिक छलाह आ दबना जे मोरंग राजाक मालिन छलि, सलहेससँ प्रेम करैत छलि। राजक वैद्य दबनासँ प्रेम करैत छलाह आ दबनाक अस्वीकृतिसँ ओ आत्महत्या कए लेलन्हि।
सलहेस छलाह मोरंगक तालुकदार नौरंगी बहादुर थापाक सिपाही। सलेहस छलाह मोनक राजा। सभकेँ विपत्तिमे सहायता दैत रहथि। ताहि द्वारे दबना दिशि हुनकर कोनो ध्यान नहि छलन्हि। सभ हुनका राजा कहैत छलन्हि, से ई तालुकदारकेँ पसिन्न नहि पड़ल।
एक दिन दरबारमे ओ सलहेसकेँ पुछलक-
अहाँक नाम की?
सलहेस कहलन्हि- हमर नाम छी राजा सलहेस।
तखन थापा कहलकन्हि, जे अहाँ अपन नाममे राजा नहि लगाऊ।
सलहेस कहलन्हि जे ई पदवी छी, जन द्वारा देल पदवी। कोना छोड़ब एकरा। हम छोड़ियो देब, लोक तँ कहबे करत।
तखन थापा कहलखिन्ह जे लोककेँ मना कऽ दियौक।
सलहेस कहलन्हि जे लोककेँ कोना मना करबैक। लोकक मोन जे ओ ककरा की बजाओत।
निकलि गेलाह सलहेस ओतएसँ। आब नहि निमहत ई नोकरी। आइ कहैत अछि नाम छोड़ए लेल, काल्हि किछु आर कहत।
पितियौत बहिन रहैत छलन्हि मुंगेरमे। बहिनोइ राज दरभंगाक नोकरीमे छलाह।
एम्हर कुसमी दबनाकेँ कहि देलक जे सलहेस जा रहल अछि मोरंग छोड़ि कए। दबना छलि कमरू-कमख्यासँ तंत्र-मंत्र सिखने।
ओ सलहेसकेँ कहलक जे हम राजाक दरबारमे सात सए सिपाहीक सरदार चूहड़मलकेँ हटबा कऽ अहाँकेँ सरदार बना देब। सैह भेल। बड़का जलसा देलक दबना, गेलक गीत-
रौ सुरहा,
बारह बरस तोरा लेल आँचर बन्हलौँ।
मुदा, केलक चोरि चूहड़मल, चोरेलक नौ लाखक रानीक हार आ नुका देलक सलहेसक ओछैनमे।
उनटे चूहड़मल राजाकेँ कहलक जे सलहेसक घरक तलासी लेल जाए।सलहेसक गेरुआक खोलसँ खसल हार।
दबना काली मन्दिरमे तंत्र साधना शुरू कएलक। भूत-प्रेतकेँ नोतलक। खून बोकरबेलक चूहड़मलसँ।
चूहड़मल सभटा बकि देलक।
सलहेसकेँ जेलसँ छोड़ि देल गेल आ ओकर ओहदा बढ़ा देल गेल। चूहड़मलकेँ भेलैक जेल।
दबना आ सलहेस विवाह कए खुशीसँ रहए लगलाह।

बहुरा गोढ़िन नटुआदयाल
एकटा छलि बहुरा गोढ़िन आ एकटा छलाह नटुआ दयाल।
बहुरा गोढ़िन नर्त्तकी छलि आ ओकरा जादू अबैत छलैक।
नटुआ दयाल बहुरा गोढ़िनक प्रशंसक छल, किएक तँ ओ छल प्रेमी, बहुरा गोढ़िनक पुत्रीक।
छल मुदा ओहो तांत्रिक।
कमला-बलानक कातक केवटी छलि बहुरा, बखरी, बेगूसरायक रहनिहारि।
हकलि छलि, कमरू सँ सीखने छलि जादू।
दुलरा दयाल छल मिथिला राज्यक भरौड़क राजकुमार, ओकरे नाम छल नटुआ दयाल।
नृत्य जे ओ बहुरासँ सिखलक तँ सभ नामे राखि देलकैक ओकर नटुआ।
नटुआ दयालक गुरू छलाह मंगल।
सिद्ध पुरुष।
अकाशमे बिन खुट्टीक धोती टँगैत छलाह, सुखला पर उतारैत छलाह।
बहुरा गाछ हँकैत छलि, जकरासँ झगड़ा भेल ओकरा सुग्गा बना पोसि लैत छलीह।
कमला कातमे रहैत छलाह आ भजैत छलाह-
कमलेक आसन, ओहीमे बास हे कमला मैय्या।
बहुरा वरकेँ मारि सीखने छल जादू। राजकुमारक विवाहक प्रस्तावकेँ नहि ठुकरा सकलि मुदा। बरियाती दरबज्जा लागल तँ भऽ गेलैक कहा सुनी आ सभकेँ बना देलक ओ बत्तु।
मंत्री मल्लक एक आँखिक रोश्नी खतम।
आहि रे बा।
व्यापारी जयसिंह छल मोहित महुराक बेटी पर, ओकरे खड्यंत्र।
आहि रे बा।
गुरू लग गेल राजकुमार आ आदेश भेलैक, जो कामाख्या, सीखय लेल षट् नृत्य आ जादू।
चण्डिका मंदिरमे योगिनीसँ षट्नृत्य सिखलक आ आदेश भेलैक सर्रैया ग्रामक भुवन मोहिनीसँ षट् नृत्यक एक अंग सीखबाक।
ओहि गामक सिद्ध देवी रहथि वागेश्वरी।
नरबलि चढैत छल ओतए। दैत्य अबैत छल ओतए।
सिखलक राजकुमार सिद्ध नृत्य अनहद आ आज्ञा चक्र।
करिया जादूकेँ काटय बला मंत्र फुकलक राजकुमारक कानमे।
कमला बलान लग आएल राजकुमार।
बहुरा सुखेलक धारक पानि।
राजा पता लगेलक जूकियासँ, अनलक बहुराकेँ। मुदा ओ तँ लगा देलक दोष राजकुमार पर। यज्ञ भेल तैयो कमलामे पानि नहि आएल, नटुआ पठेलक सभटा पानिकेँ पताल?
नटुआकेँ पकड़ि कय आनल गेल। ओ अपन नृत्यसँ जलाजल केलक कमलाकेँ।मुदा कहलक बहुराकेँ माफी दियौक।
बहुरा कहलक आब तोँ भेलह हमर बेटीक योग्य।
आबह बरियाती लऽ कए।
नटुआ बरियाती लऽ कऽ पहुँचल।
तीन टा पान अएलैक, एक कमलाक पानिक हेतु, दोसर बहुराकेँ माफ करबाक

हेतु।
आ तेसर ओकर बेटीसँ व्याह करबाक हेतु।
तीनूटा पान उठेलक नटुआ आ शुरू भेल गीत-नाद।
पियास लगलैक नटुआकेँ शिष्य झिलमिलकेँ पठेलक इनार पर।
डोरी छोट भए गेलैक। अपने गेल नटुआ आ डोरी पैघ भऽ गेलैक।
फूलमती छलि ओतए, पतिक प्रतिभासँ प्रसन्न छलि ओ।
मल्लक आँखि ठीक कएलक बहुरा।
कमला पहुँचल कनियाँक संग नटुआ।
मुदा आहि रेबा।
नटुआकेँ चक्कू मारलक बहुरासँ दूर भेल ओकर शिष्य।
मुदा नटुआ चढ़ेने छल पटोर कमला मैय्याकेँ।
कमलाक धार खूने-खूनामे।
मुदा कामाख्याक जदूगरनी अएलीह आ जीवीत कएलन्हि नटुआकेँ।
दुश्मनक बलि चढ़ेलक ओ कमलाकेँ।

महुआ घटवारिन
महुआ घटवारिन परी जेकाँ सुन्दरि छलीह जेना गूथल आँटामे एक चुटकी केसर, मुदा सतवंती छलीह।
बाप गँजेरी शराबी आ माए सतमाय, नजरि चोर। घरमे सतमाएक राज छल।
सोलह बरखक भए गेल रहथि मुदा हुनकर बियाहक चिंता ककरो नहि रहैक। परमान नदीक पुरनका घाटक मलाह प्र्रर्थना करैत छथि जे महुआक नावकेँ किनार लगा दियौक।
साओन-भादवक, भरल धार,
कम वयसक महुआ नहि जाऊ,
एहि राति खेबय लेल नाह।
एहने साओन-भादवक रातिमे सतमाए, घाट पर उतरल वणिक् केँ तेल लगेबाक हेतु महुआकेँ पठबए चाहैत अछि आ ओ जाए नहि चाहैत अछि। अपन माएकेँ मोन पाड़ैत अछि।
नोन चटा केँ किए नहि मारलँह,
पोसलँह एहि दिन खातिर।
मुदा सतमाए साओन-भादवक रातिमे पथिककेँ घाट पार करबाबए लेल महुआकेँ पठा देलक। महुआ बिदा भेलि आ बीच रस्तामे अपन सखी-बहिनपा फूलमतीसँ भरि राति गप करैत रहलि।
केहन माए अछि जे रातिमे घाट पार करेबाक लेल कहैत अछि। माय ईहो कहलक जे पथिक पाइबला होए आ बूढ़ होए तँ ओकरा तेल-मालिस करबामे कोनो हर्ज नहि। ओकर मोनमे जे होअए, भेल तँ ओ पिते समान।ओकरा जेबीसँ चारि पाइ निकालि लेल जाएय, अहीमे बुधियारी अछि।
फूलमती कहलक- घबरायब नहि। जरेने रहू प्रेमक आगि, ओकरा लेल जे मोरंगमे आँगुर पर दिन गानि रहल अछि।
मोरंगक नाम सुनि महुआ उदास भए गेलि। ओ फागुनमे आयत गऽ।


भोरहरबामे ओ गामपर पहुँचल आ माए दस बात कहलकैक। बाप नशामे आएल तँ माए ओकरो लात मारि भगा देलकैक।
तखने हरकारा आएल आ माएक कानमे संदेश देलक। महुआ माएकेँ कहलक जे अहाँ जे कहब से हम करब। वणिकक आदमी आयल छल, ओकरा संग महुआ घाट पर पहुँचलि। वणिक दू सिपाहीक संग नावमे बैसल। महुआ नाव खेबय लागलि। मुदा ओकरा नहि बूझल रहए जे ओकरा बेचि देल गेल छै। सिपाही ओकरासँ पतवारि छीनि लेलक। सौदागर ओकरा कोरामे बैसाबय चाहलक तँ ओ छरपटाय लागलि। सिपाही कहलक जे सभटा पाइ चुका देल गेल अछि, अहाँकेँ कोनो मँगनीमे नहि लए जा रहल छथि।
महुआ स्थिर भए गेलीह। ओ सभ बुझलक जे महुआ मानि गेल अछि। तखने महुआ धारमे कूदि पड़लि। उल्टा धारमे मोरंग दिशि निकलि जाए चाहलक महुआ, जतय ओकर प्रेमी अछि। ओकरा लेल सात पालक नाव लेने।
सौदागरक छोटका सिपाही महुआकेँ प्रेम करए लागल छल, ओहो कूदि गेल कोशिकीक धारमे, दूनू डूबि गेल।
अखनो साओन-भादवक धारमे कोनो घटवारकेँ कखनो देखा पड़ैत छै महुआ। कोनो खिस्सा वचनहारकेँ देखा जाइत अछि ओ आ शुरू भए जाइत अछि-
एकटा छलीह महुआ घटवारिन..............................।

डाकूरौहिणेय
मगध देशमे अशोकक पिता बिम्बिसारक राज्य छल। संपूर्ण शांति व्याप्त छल मुदा एकटा डाकू रौहिणेयक आतंक छल।
रौहिणेयक पिता रहए डाकू लौहखुर। मरैत-मरैत ओ कहि गेल जे महावीर स्वामीक प्रवचन नहि सुनए आ ज्योँ कतओ प्रवचन होअय तँ अप्पन कान बन्द कऽ लए, अन्यथा बर्बादी निश्चित होएत।
रौहिणेय मात्र पाइ बला केँ लुटैत छल आ गरीबकेँ बँटैत छल। ताहि द्वारे गामक लोक ओकर मदति करैत रहए आ’ ओ पकड़ल नहि जा सकल छल।
एक बेर तँ ओ अप्पन संगीक संग वाटिकामे पाटलिपुत्रक सभसँ पैघ सेठक पुतोहु मदनवतीक अपहरण कए लेलक, जखन ओकर पति फूल लेबाक हेतु गेल रहए। जखन ओकर पति आएल तँ रौहिणेयक संगी ओकरा गलत जानकारी दऽ भ्रमित कएलक।
ओकरा बाद सुभद्र सेठक पुत्रक विवाह रहए। बराती जखन घुरि रहल छल तखन रौहिणेय सेठानी मनोरमाक भेष बनेलक आ ओकर संगी नर्त्तक बनि गेल। नकली नर्त्तक जखन नाचए लागल तखन रौहिणेय भीड़मे कपड़ाक साँप छोड़ि देलक। रौहिणेय गहनासँ लादल वरकेँ उठा निपत्ता भए गेल।
राजा शहरक कोतवालकेँ बजेलक। ओ तँ रौहिणेयकेँ पकड़बामे असमर्थता व्यक्त कएलक आ कोतवाली छोड़बाक बातो कएलक। मंत्री अभयकुमार पाँच दिनमे डाकू रौहिणेयकेँ पकड़ि कए अनबाक गप कहलक। राजा ततेक तामसमे छलाह जे पाँच दिनका बाद डाकू रौहिणेयकेँ नहि अनला उत्तर अभयकुमारकेँ गरदनि काटि लेबाक बात कहलन्हि।
डाकू रौहिणेयकेँ सभ बातक पता चलि गेल छलैक। अभयकुमार जासूस सभ लगेलक। रौहिणेयकेँ मोनमे अएलैक जे सेठ साहूकार बहुत भेल आब किए नहि राजमहलमे डकैती कएल जाय। ओ राजमहलक रस्ता पर चलि पड़ल। रस्तामे वाटिकामे महावीरस्वामीक प्रवचन चलि रहल छल।
रौहिणेय तुरत अपन कान बन्द कए लेलक। मुदा तखने ओकरा पैरमे काँट गरि गेलैक। महावीर स्वामी कहि रहल छलाह-
“देवता लोकनिकेँ कहियो घाम नहि छुटैत छन्हि। हुनकर मालाक फूल मौलाइत नहि अछि, हुनकर पएर धरती पर नहि पड़ैत छन्हि आ हुनकर पिपनी नहि खसैत छन्हि।”
तावत रौहिणेय काँट निकालि कानकेँ फेर बन्न कए लेलक आ राजमहलक दिशि बिदा भेल।राजमहलमे सभ पहरेदार सुतल बुझाइत छल। मुदा ई अभयकुमारक चालि रहए। ओकर जासूस बता रहल रहए जे डाकू नगर आ महल दिशि आबि रहल अछि।
जखने ओ महलमे घुसैत रहए तँ पहरेदार ललकारा देलक। ओ छड़पिकय काली मंदिर मे चलि गेल। सिपाही सभ मंदिरकेँ घेरि लेलक। ओ जखन देखलक जे बाहरसँ सभ घेरने अछि तँ सिपाहीक मध्यसँ मंदिरक चहारदिवारी छड़पि गेल। मुदा ओतहु सिपाही सभ छल आ ओ पकड़ल गेल। राजा ओकरा सूली पर चढ़ेबाक आदेश देलकैक। मुदा मंत्री कहलन्हि जे बिना चोरीक माल बरामद केने आ बिना चिन्हासीक एकरा कोना फाँसी देल जाए। रौहिणेय मौका देखि कए गोहारि लगेलक जे ओ शालि गामक दुर्गा किसान छी। ओकर घर परिवार ओहि गाममे छै। ओ तँ नगर मंदिर दर्शनक हेतु आएल छल। ततबेमे सिपाही घेरि लेलकैक। राजा ओहि गाममे हरकारा पठेलक मुदा ग्रामीण सभ रौहिणेयसँ मिलल छल। सभ कहलकैक जे दुर्गा ओहि गाममे रहैत अछि मुदा तखन कतहु बाहर गेल छल। अभयकुमार सोचलक जे एकरासँ गलती कोना स्वीकार करबाबी। से ओ डाकूकेँ नीक महलमे कैदी बना कए रखलक। डाकू महाराज ऐश-आराममे डूबि गेलाह।
अभयकुमार एक दिन डाकूकेँ खूब मदिरा पिया देलन्हि। ओ जखन होशमे आएल तँ चारू कात गंधर्व-अप्सरा नाचि रहल छल।
ओ सभ कहलकैक जे ई स्वर्गपुरी थीक आ इन्द्र रौहिणेयसँ भेँट करबाक हेतु आबए बला रहथि। रौहिणेय सोचलक जे राजा हमरा सूली पर चढ़ा देलक। मुदा ओ सभतँ मंत्रीक पठाओल गबैया सभ छल।
तखने इंद्रक दूत आएल आ कहलक जे रौहिणेयकेँ देवताक रूप मे अभिषेक होएतैक मुदा ताहिसँ पहिने ओकरा अपन पृथ्वीलोक पर कएल नीक-अधलाह कार्यक विवरण देबए पड़तैक।
तखन रौहिणेयकेँ भेलैक जे सभटा पाप स्वीकार कए लिअए। मुदा तखने ओ देखलक जे दैव लोकक जीव सभ घामे-पसीने अछि, माला मौलायल छै, पएर धरती पर छै आ पिपनी उठि-खसि रहल छै।
ओ अपन पुण्यक गुणगाण शुरू कए देलक। अभयकुमार राजाकेँ कहलक जे अहाँ ज्योँ ओकरा अभयदान दए देबैक तँ ओ सभटा गप्प बता देत। सैह भेलैक।
रौहिणेय नगरक बाहरक अपन जंगलक गुफाक पता बता देलक। जतए सभटा खजाना आ अपहृत व्यक्ति सभ छल। राजा कहलन्हि जे किएक तँ ओकरा अभयदान भेटि गेल छै ताहि हेतु ओ सभ संपदा राखि सकैत अछि। मुदा रौहिणेय कोनोटा वस्तु नहि लेलक। ओ कहलक जे जाहि महावीरस्वामीक एकटा वचन सुनलासँ ओकर जान बचि गेलैक, तकर दीक्षा लेत आ ओकर सभटा वचन सुनि जीवन धन्य करत।

मूर्खाधिराज
एकटा गोपालक छल। तकर एकटा बेटा छल। ओकर कनियाँ पुत्रक जन्मक समय मरि गेलीह। बा बच्चाक पालन कएलन्हि। मुदा ओ बच्चा छल महामूर्ख। जखन ओ बारह वर्षक भेल तखन ओकर विवाह भए गेल। मुदा ओ विवाहो बिसरि गेल।
बुढ़िया बाकेँ काज करएमे दिक्कत होइत छलन्हि। से ओ बुझा-सुझाकेँ ओकरा, कनियाकेँ द्विरागमन करा कए अनबाक हेतु कहलन्हि। बा ओकरा गमछामे रस्ता लेल मुरही बान्हि देलन्हि। रस्तामे बच्चाकेँ भूख लगलैक। ओ गमछासँ मुरही निकालि कए जखने मुँहमे देबए चाहैत छल आकि मुरही उड़ि जाइत छल। बच्चा बाजए लागल- आऊ, आऊ उड़ि जाऊ।
लगमे बोनमे एकटा चिड़ीमार जाल पसारने छल। बच्चाक गप सुनि कए ओकरा बड्ड तामस उठलैक। ओकरा लगलैक जेना ई बच्चा ओकर चिड़ैकेँ उड़ाबए चाहैत अछि। चिड़ीमार बच्चाकेँ पकड़ि कए पुष्ट पिटान पिटलक।
बच्चा पुछलक- हमर दोख तँ कहू?
चिड़ीमार कहलक- एना नहि। एना बाजू। आबि जो। फँसि जो।
आब बच्चा सैह बजैत आगू जाए लागल। आब साँझ भए रहल छल। बोन खतम होएबला छल। ओतए चोर सभ चोरिक योजना बनाए रहल छलाह। ओ सभ सुनलन्हि जे ई बच्चा हमरा सभकेँ पकड़ाबए चाहैत अछि। से ओ लोकनि सेहो ओकरा पुष्ट पिटान पिटलन्हि।
बच्चा फेर पुछलक- हम बाजी तँ की बाजी?
चोरक सरदार कहलक- बाज जे एहन सभ घरमे होए।
आब बच्चा यैह कहैत आगाँ बढ़ए लागल। आब श्मसानभूमि आबि गेल। एकटा जमीन्दारक एकेटा बेटा छलैक। से मरि गेल छल आ सभ ओकरा डाहबाक लेल आबि रहल छलाह। ओ लोकनि बच्चाक गप पर बड़ कुपित भेलाह आ ओकरा पुष्ट पिटलन्हि।
फेर जखन बच्चा पुछलक जे की बाजब उचित होएत तँ सभ गोटे कहलखिन्ह जे एना बाजू- एहन कोनो घरमे नहि होए।
बच्चा यैह गप बाजए लागल। आब नगर आबि गेल छल आ राजाक बेटाक विवाहक बाजा-बत्ती सभ भए रहल छल। बरियाती लोकनि बच्चाकेँ कहैत सुनलन्हि जे एहन कोनो घरमे नहि होए तँ ओ लोकनि क्रोधित भए फेर ओहि बच्चाकेँ पिटपिटा देलखिन्ह।
जखन बच्चा पुछलक जे की बजबाक चाही तँ सभ कहलक जे किछु नहि बाजू। मुँह बन्न राखू।
बच्चा सासुर आबि गेल। ओतए नहिये किछु बाजल नहिये किछु खएलक। कारण खएबामे मुँह खोलए पड़ितैक।
भोरे-सकाले सासुर बला सभ अपन बेटीकेँ ओहि बच्चाक संग बिदा कए देलन्हि। रस्तामे बड्ड प्रखर रौद छलैक। ओ सुस्ताए लागल। मुदा कलममे सेहो बड्ड गुमार छलैक। कनियाकेँ बड्ड घाम खसए लगलैक आ ताहिसँ ओकर सिन्दूर धोखरि गेलैक। बच्चाकेँ भेलैक जे सासुर बला ओकरासँ छल कएलक आ ओकरा भँगलाहा कपार बाली कनियाँ दए जाइ गेल अछि। एहन कनियाँकेँ गाम पर लए जाए ओ की करत।
ओ तखने एकटा हजामकेँ बकरी चरबैत देखलक। ओकरासँ अपन पेटक बात कहबाक लेल अपन मुँह खोललक आ सभटा कहि गेल। हजाम बुझि गेल जे ई बच्चा मूर्खाधिराज अछि। ओ ओकरा अपन दूध देमए बाली बकड़ीक संग कनियाँक बदलेन करबाक हेतु कहलक। बच्चा सहर्ष तैयार भए गेल।
आगू ओ बच्चा सुस्ताए लागल आ खुट्टीसँ बकड़ीकेँ बान्हि देलक। बकड़ी पाउज करए लागल तँ बच्चाकेँ भेलैक जे बकड़ी ओकर मुँह दूसि रहल अछि। ओ ओकरा हाट लए गेल आ कदीमाक संग ओकरो बदलेन कए लेलक। गाम पर जखन ओ पहुँचल तँ ओकर बा बड्ड प्रसन्न भेलीह। हुनका भेलन्हि जे कनियाँक नैहरसँ सनेसमे कदीमा आएल अछि। मुदा कनियाँकेँ नहि देखि तकर जिगेसा कएलन्हि तँ बच्चा सभटा खिस्सा सुना देलकन्हि। ओ माथ पीटि लेलन्हि। मुदा बच्चा ई कहैत खेलाए चलि गेल जे कदीमाक तरकारी बना कए राखू।

कौवा आ फुद्दी
एकटा छलि कौआ आ एकटा छल फुद्दी। दुनूक बीच भजार-सखी केर संबंध। एक बेर दुर्भिक्ष पड़ल। खेनाइक अभाव एहन भेल जे दुनू गोटे अपन-अपन बच्चाकेँ खएबाक निर्णय कएलन्हि। पहिने कौआक बेर आएल। फुद्दी आ कौआ दुनू मिलि कए कौआ-बच्चाकेँ खा गेल। आब फुद्दीक बेर आएल। मुदा फुद्दी सभ तँ होइते अछि धूर्त्त।
“अहाँ तँ अखाद्य पदार्थ खाइत छी। हमर बच्चा अशुद्ध भए जायत। से अहाँ गंगाजीमे मुँह धोबि कए आबि जाऊ”।
कौआ उड़ैत-उड़ैत गंगाजी लग गेल-
“हे गंगा माय, दिए पानि, धोबि कए ठोढ़, खाइ फुद्दीक बच्चा”।
गंगा माय पानिक लेल चुक्का अनबाक लेल कहलखिन्ह।
आब चुक्का अनबाक लेल कौआ गेल तँ ओतएसँ माटि अनबाक लेल कुम्हार महाराज पठा देलखिन्ह्। खेत पर माटिक लेल कौआ गेल तँ खेत ओकरा माटि खोदबाक लेल हिरणिक सिंघ अनबाक लेल विदा कए देलकन्हि। हिरण कहलकन्हि जे सिंहकेँ बजा कए आनू जाहिसँ ओ हमरा मारि कए अहाँकेँ हमर सिंघ दऽ देमए।
आब जे कौआ गेल सिंह लग तँ ओ सिंह कहलक- “हम भेलहुँ शक्त्तिहीन, बूढ़। गाएक दूध आनू, ओकरा पीबि कए हमरामे ताकति आयत आ हम शिकार कए सकब”।
गाएक लग गेल कौआ तँ गाए ओकरा घास अनबाक लेल पठा देलखिन्ह। घास कौआकेँ कहलक जे हाँसू आनि हमरा काटि लिअ।
कौआ गेल लोहार लग, बाजल-
“हे लोहार भाए,
दिअ हाँसू, काटब घास, खुआयब गाय, पाबि दूध,
पिआयब सिंहकेँ, ओ मारत हरिण,
भेटत हरिणक सिंघ, ताहिसँ कोरब माटि,
माटिसँ कुम्हार बनओताह चुक्का, भरब गङ्गाजल,
धोब ठोर, आ खायब फुद्दीक बच्चा”।
लोहार कहलन्हि, “हमरा लग दू टा हाँसू अछि, एकटा कारी आ एकटा लाल। जे पसिन्न परए लए लिअ”।
कौआकेँ ललका हाँसू पसिन्न पड़लैक। ओ हाँसू धीपल छल, जहाँने कौआ ओकरा अपन लोलमे दबओलक, छरपटा कए मरि गेल।

नैका बनिजारा
शोभनायका छलाह एकटा वणिकपुत्र। हुनकर विवाह तिरहुतक कोनो स्थानमे बारी नाम्ना स्त्रीसँ भेल छलन्हि। शोभा द्विरागमन करबा कए कनियाँकेँ अनलन्हि आ बिदा भए गेलाह मोरंगक हेतु व्यापार करबाक लेल। पत्नीक संग एको दिन नहि बिता सकल छलाह। रातिमे एकटा गाछक नीचाँमे जखन ओ राति बितेबाक लेल सुस्ता रहल छलाह तखन हुनका एकटा ध्वनि सुनबामे अएलन्हि। एकटा डकहर अपन भार्याक संग ओहि गाछ पर रहैत छल। दुनू गोटे गप कए रहल छलाह, जे ओ राति बड़ शुभ छल आ ओहि दिन पत्नीक संग जे रहत तकरा बड्ड प्रतिभावान पुत्रक प्राप्ति होएतैक।
ई सुनतहि शोभा घर पहुँचि गेल भार्या लग। लोकोपवादसँ बचबाक लेल पत्नीकेँ अभिज्ञानस्वरूप एकटा औँठी दए देलन्हि आ चलि गेलाह मोरंग। ओतए १२ बर्ख धरि व्यापार कएलन्हि आ तेरहम बरख बिदा भेलाह घरक लेल।
एम्हर ओकर कनियाक बड़ दुर्गति भेलैक। ओ जखन गर्भवती भए गेलीह, सासु-ससुर घरसँ निकालि देलकन्हि हुनका। मुदा ओकर दिअर जकर नाम छल चतुरगन, ओकरा सभटा कथा बुझल छलैक। ओतए रहय लगलीह ओ। जखन शोभा घुरल तखन सभ रहस्य बुझलक आ सभ हँसी खुशी रहए लागल।

तब बारी रे कानय जार बेजारो कानै रे ना।
दुर्गा गे स्वामी के लैके कोहबर घर लेवा ने
केलही रे ना।
कोहबर घर से हमरो निकालियो देलकइ रे ना
दुर्गा गे केना बचबै अन्न-पानी बिन केना
रहबइ रे ना।

डोकी डोका
एक टा छल डोका आ एकटा छल डोकी।
दुनूमे बड्ड प्रेम। डोकी कहए तरेगण लए आऊ तँ डोका तरेगण आनएमे सेकेण्डक देरी भए जाए तँ ठीक मुदा मिनटक देरी नञि होमए दैत छल।
सियारकेँ रहए ईर्ष्या दुनूसँ। से ओ कनही सियारिनसँ मिलि गेल आ एक दिन जख्नन डोका आ डोकी एक्के थारीमे भोजन कए रहल छल, तखन डोकाकेँ बजेलक। एम्हर-ओम्हरक गप कए ओकरा बिदा कए देलक। फेर डोकीकेँ बजेलक ओ सियरबा। पुछलक जे अहाँ दुनू गोटेमे बड़ प्रेम अछि मुदा डोका जे कहलक ताहिसँ तँ हमरा बड़ दुःख भेल। लागय-ए जे ओकर मोन ककरो आन पर छै। आर किछु पूछए लागल डोकी तावत ओ सियरबा पड़ा गेल।
आब डोकी घरमे हनहन-पटपट मचा देलक। डोका लकड़ी काटय बोन दिशि गेल। घुरल नहि। भोरमे एकटा जोगी आएल तँ ओकरासँ डोकी पुछलक जे ई की भेल ? जोगिया कहलक जे ई अछि पूर्व जन्मक सराप। जखने अहाँ डोकी पर विश्वास छोड़ब डोका छोड़ि कए चलि जाएत मुदा सातम दिन भेटि जाएत।
मुदा डोकी निकलि गेलि डोकाकेँ ताकए। बगुला भेटलैक डोकीकेँ कहलकैक-रुकि जाऊ एहि राति। फेर सियरबा, वटवृक्ष, मानसरोवरक रस्तामे बोनमे हाथी सभ कहलकैक जे एक एक राति रुकि कए जाऊ मुदा डोकी नहि रुकलि।
फेर भेटल मूस। ओ कहलक जे हमरा संग चलू, हम महल लए जायब, खिस्सा सुनाएब छह रातिक बाद सातम राति बीतत आ डोका भेटत। खिस्सा सुनैत-सुनबैत महल दिशि विदा भेल दुनू गोटे। मूस कहलक जे अहाँ हँ-हँ कहैत रहब खिस्साक बीचमे। मूसक खिस्सा कनेक नमगर रहए। डोकी बीचमे हँ कहब बिसरि गेलि। आ तकर बाद मूस सेहो खिस्सा बिसरि गेल। कतबो मोन पाड़य चाहलक मुदा मोन नहि पड़लैक। फेर आगू बढ़ल दुनू गोटे। एकटा दीबारिमे भूर कए दुनू गोटे सुरंगमे पहुँचल तँ दू राति धरि चलैत रहल तखन महल आएल। ओतए डोकी हलुआ बनबए लेल लोहियामे समान देलक आ कनेक पानि आनए लेल बाहर गेल तँ मूसकेँ रहल नञि गेलैक आ ओ लोहियामे मुँह दए देलक आ मरि गेल। डोकी घुरि कए ई देखलक तँ कुहड़ि उठल।

बगुला छोड़ल सियरबा छोड़ल
छोड़ल वटक वृक्ष
हाथी सन बलगर
पकड़ल ई मूस।

मूस भैयाक संग लेल बीतल छह राति,
सातम रातिमे ओ प्राण गमेलन्हि

आ ओकर साँस टुटए लगलैक, मुदा तखने दरबज्जा खुजल आ कुरहड़ि लेने डोका हाजिर।

रघुनी मरर
देवदत्त, काशीराम आ रघुनी मरर तीन भाँए। गाए चराबए जाथि। एक बेर अकाल आएल तँ रघुनी भागि कए सहरसाक बनमां प्रखण्डक बिदिया बरहमपुर गाममे अपन डेरा खसेलन्हि।एतए जमीन्दार रहथि जुगल आ कमला प्रसाद। जुगल प्रसाद एक बेर दंगल करेने छलाह ओहि दंगलकेँ जितने छलाह रघुनी। रघुनी हुनके लग गेलाह। एक सय बीघा जमीन देलन्हि जुगल प्रसाद हुनका। सुगमां गाममे बथान बनओलन्हि रघुनी। खेती करथि आ परिवारसँ दूर सुगमा गाममे रहथि।
एम्हर जुगल प्रसादक घरमे कलह भेल आ अपन जमीन-जत्था ओ गागोरी राजकेँ बेचि देलन्हि। रघुनीकेँ जखन ई पता चललन्हि तँ हुनका बड्ड दुख भेलन्हि।
एक दिन संगीक संग रघुनी नाच देखबाक लेल सिमरी गामक चौधरीक दलान पर गेल। चौधरी नाचक बाद नटुआकेँ औँठी आ दुशाला देलखिन्ह। रघुनी नटुआकेँ कहलखिन्ह जे बथान परसँ अपन पसिन्नक एक जोड़ी गाए हाँकि लिअ। नटुआ खुशीसँ दू टा निकगर गाय हाँकि अनलक आ खुशीसँ चौधरीकेँ देखेलक। मुदा चौधरीकेँ बुझेलए जे रघुनी हुनका नीचाँ देखबए चाहैत छथि। मुदा सोझाँ-सोँझी भिरबाक हिम्मत तँ छलए नहि।
से चौधरी देवी उपासक जादूक कलाकार मकदूम जोगीसँ भेँट कएलक। ओ जोगीकेँ कहलक जे रघुनीकेँ हमर नोकर बना दिअ। जोगी सरिसओ फूकि छिटलक मुदा रघुनी छल देवी भक्त से जोगीक जादू नहि चललैक।
चण्डिकाक सिद्धि कएलक जोगी आ रघुनी पर जादू सँ सए टा बाघसँ घेरबा कए मारि देलक। मुदा भक्त छल रघुनी से चण्डिकाक बहिन कामाख्या आबि रघुनीकेँ जिया देलन्हि। दोसर जादू लेल जोगी सरिसओ मन्त्राबए लेल जे सरिसओ मुट्ठीमे लेलक तँ मुट्ठी बन्दक-बन्दे रहि गेलैक।
फेर चौधरीकेँ पता चललैक जे रघुनी गागोरी राजाक लगान नहि देने अछि। से ओ राजा लग गेल आ कहलक जे रघुनी ने तँ अपने लगान देने अछि आ उनटले लोक सभकेँ लगान देबासँ मना कए रहल अछि।

गाम पर रघुनी नहि रहए आ सिपाही सभ ओकर भाए देवदत्त मरड़केँ लए विदा भए गेलाह। रस्तामे केजरीडीह लग देवदत्त रघुनीकेँ देखलन्हि, रघुनी सेहो देवदत्तकेँ देखलन्हि। मुदा सिपाही सभ रघुनीकेँ नहि देखि सकलाह। मुदा जखन राजा देवदत्तकेँ काल कोठरीमे दए सिपाही सभकेँ ओकरा मारबाक लेल कहलक तँ जे कोड़ा चलबय उनटे तकरे चोट लागए।
राजा देवदत्तसँ कहलक जे गलती भेल आब अहाँ जे कहब सैह हम करब। देवदत्तक कहला अनुसार जे रैयत लगान नहि भरलाक कारणसँ जहलमे रहथि से छोड़ि देल गेलाह आ राजा रघुनी मररसँ सेहो घट्टी मँगलन्हि।

जट-जटिन
महाराज सिव सिंह (१४१२-१४४६) मिथिलाक राजा छलाह। विद्यापति हुनके शासनकालमे भेल छलाह आ राजा शिव सिंह आ हुनकर रानी लखिमारानी हुनकासँ बड़ प्रेम करैत रहथि। एक टा जयट वा जट नाम्ना बड़ पैघ संगीतकार सेहो छलाह ओहि समयमे। राजा शिव सिंह हुनकासँ विद्यापतिक गीतकेँ राग-रागिनीमे बन्हबाक लेल कहने रहथि। वैह जयट जट-जटिन नाटकक रचना कएलन्हि आ जटक भूमिका सेहो कएने छलाह। साओन-भादवक शुक्ल-पक्षक रातिमे ई नाटक स्त्रीगण द्वारा होइत अछि।
जट छथि पहिरने पुरुष-परिधान आ जटिन पहिरने छथि छिटगर नूआ। आ देखू दुनू गोटे अपना संग अपन-अपन संगीकेँ लए आबि गेल छथि।
बियाहक पहिल सालक साओन। जटिन जाए चाहैत छथि नैहर मुदा धारमे बाढ़ि छै, हे माय कोनो नौआ-ठाकुर-ब्राह्मण आकि पैघ भाए केर बदलामे छोटका भायकेँ पठबिहँ बिदागरीक लेल नञि तँ सासुर बला सभ बिदागरी आपिस कए देत।
जाहि नवकनियाँकेँ नैहर नहि जाय देल गेल ओ अपन पतिकेँ कहैत छथि जे जट-जटिनक नृत्यमे तँ भाग लेबए दिअ। मुदा वर झूमर खेलएबासँ मना कए दैत छथि तखन ओ घामक बहन्ना बनाए दूर भए जाइत छथि।
जट-जटिन बीचमे छथि आ दुनूक संगीमे बहस चलि रहल अछि।
-चलू झूमर खेलाए।
-कोन पातपर चढ़ि कए।
-पुरैनीक।
जट-जटिनमे विआह होए बला अछि मुदा जट किछु बातपर अड़ि गेल, जेना धानक शीस जेकाँ लीबि कए चलए जटिन, किछु देखावटी विरोधक बाद जटिन सभटा मानि जाइत छथि।
फेर दुनू गोटे विआह कए लैत छथि। फेर भोर होइत अछि, जटिन कहैत छथि जे जाए दिअ। अँगना बहारबाक अछि मुदा जटा कहैत छथि जे अँगना माए-बहिन बहारि लेत।
फेर दिन बितैत अछि तँ जटिन कहैत छथि जे गहना किएक नहि बनबाए रहल छी हमरा लेल आर बहन्ना करब तँ हम सोनारक घर चलि जाएब।
जटिन ततेक खरचा करबैत छन्हि जे जटाक हाथी तक बिका जाइत छन्हि आ हाथीक सिकड़ि मात्र बचल रहि जाइत छन्हि।
जटिन कहैत छथि जे हमरा नैहर जएबाक अछि तँ जटा कहैत छथि जे धानक फसिल तैयार अछि, तकरा काटि कए जाऊ। जटिन नहि मानैत छथि कहैत छथि जे एहि बेर जे हम जाएब तँ घुरि कए नहि आएब। मुदा सौतिनक गप सुनि कए डेराए जाइत छथि। बीचमे स्वांग जेना कोनो रोगीक इलाज आदि सेहो होइत रहैत अछि।
जट मोरंग बिदा भए जाइत छथि कमाएबा लेल। जटिनकेँ सोनार प्रलोभन दैत छन्हि गहनाक मुदा जटिन जटाक सुन्दरताक वर्णन करैत छथि।
फेर जटा घुरि अबैत अछि। एक दिन दुनू गोटेमे कोनो गप लऽ कए झगड़ा भए जाइत छन्हि। जट छौँकीसँ जटिनकेँ छूबि दैत छथि। जटिन रूसि कए घर छोड़ि दैत छथि। जटा गोपी, मनिहारिन आ आन-आन रूप धरि ताकैत छथि हुनका। जटाक घरमे झोल-मकड़ा भरि जाइत छन्हि आ अंगनामे दूभि जनमि जाइत छन्हि। तखन जटिन हुनका लग आबि जाइत छथि। फेर स्त्रीगण लोकनि बेंग सभकेँ एकटा खद्धा खुनि कए ओहिमे दए दैत छथि आ ऊपरसँ ओकरा कूटैत छथि आ मरल बेंगकेँ झगराहि स्त्रीक दरबज्जापर फेकि अबैत छथि। ओ स्त्री भोरमे मरल बेंगकेँ देखला उत्तर जतेक गारि पढ़ैत छथि, ततेक बेशी बरखा होइत अछि।

बत्तू
एकटा बकड़ी छलि। ओकरा एकटा बच्चा भेलैक। मुदा ओ छागर मात्र ४ मासक छल आकि दुर्गापूजा आबि गेल। दुर्गापूजामे छागरक बलि देबाक कियो कबुला केने छलाह। से बकड़ीक मालिकक लग आबि छागरक दाम-दीगर केलन्हि। संगमे पाइ नहि अनने छलाह से अगिला दिन पाइ अनबाक आ छागर लए जएबाक गप कए चलि गेलाह।
बकड़ी ई सभ सुनैत छलि ओ अपन बच्चाकेँ कहलन्हि जे भागि जाऊ जंगल दिस नहि तँ ई मलिकबा काल्हि अहाँकेँ बेचि देत आ किननहार दुर्गापूजामे अहाँक बलि दए देत।
छागर राता-राती जंगल भागि गेल। २-३ साल ओ जंगलमे बितेलक, मोट-सोट बत्तू भए गेल, पैघ दाढ़ी आ सिंघ भए गेलैक ओकरा। एक दिन घुमैत-घुमैत ओ दोसर जंगलमे चलि गेल। ओतए एकटा बाघ छल, बत्तू बाघकेँ देखि कए घबड़ा गेल। बाघ सेहो एहन जानवर नहि देखने छल, से ओ अपने डरायल छल। ओ पुछलक-
नामी नामी दाढ़ी- मोंछ भकुला,
कहू कतएसँ अबैत छी, नञि तँ देव ठकुरा।
बत्तू कहलक-
अर्चुन्नी खेलहुँ गरचुन्नी खेलहुँ, सिंह खेलहुँ सात।
आ जहिया दस बाघ नञि होए, तहिया परहुँ ठक दए उपास।

ई सुनि बाघ पड़ाएल। मुदा रस्तामे नढिया सियार ओकरा भेटलैक आ कहलकैक जे अहाँ अनेरे डराइत छी। चलू आइ तँ नीक मसुआइ होएत। ओ तँ बकड़ीक बच्चा अछि। बाघ डराएल छल से ओ सियारक पएरमे पएर बान्हि ओतए जएबा लेल तैयार भए गेल। आब बत्तू जे दुनूकेँ अबैत देखलक तँ बुझि गेल जे ई सियरबाक काज अछि। मुदा ओ बुद्धिसँ काज लेलक। कहलक-
“ऐँ हौ, तोरा दू टा बाघ आनए ले कहलियहु आ तोँ एकेटा अनलह”।
ई सुनैत देरी बाघ भागल आ सियरबा घिसिआइत मरि गेल।

भाट-भाटिन
एकटा छल भाट आ एकटा छलि भाटिन।
भाटिन एकटा मणिधारी गहुमनसँ प्रेम करैत छलि। ओ साँप लेल नीक निकुत बनबैत छलि आ भाटकेँ बसिया-खोसिया दैत छलि। भाट दुबर-पातर होइत गेल। मुदा भाटिन ओकरा जिबए नहि दए चाहैत छलि से ओ साँपकेँ कहलक भाटकेँ काटि लेबाक लेल।
आब साँप भाटकेँ काटए लेल ताकिमे रहए लागल। एक दिन जखन भाट धारमे पएर धोबए लेल पनही खोलि कए रखलक तखने साँप ओकर पनहीमे नुका गेल। भाट आएल आ पहिरबाक पहिने पनही झारलक तँ ओ साँप खसि पड़ल। भाट पनहीसँ मारि-मारि कए साँपक जान लऽ लेलक आ ओकरा मारि कए वरक गाछपर लटका देलक।
भाट जखन गामपर पहुँचल तखन ओ अपन कनियाँकेँ सभटा खिस्सा सुनेलक। आब भाटिनक तँ प्राण सुखा गेलैक। ओ भाटक संग वरक गाछ लग गेल आ अपन प्रेमी साँपकेँ मरल देखि कए बेहोश भऽ गेल। भाट ओकरा गामपर अनलक। भाटिन दुखी भऽ असगरे वरक गाछपरसँ साँप उतारि ओकरा नौ टुकड़ा कए घर आनि लेलक। भाटिन साँपक चारि टा टुकड़ी चारू खाटक पाइसक नीचाँ, एकटा मचियाक नीचाँ, एकटा तेलमे, एकटा नूनमे, एकटा डाँरमे आ एकटा खोपामे राखि लेलक। फेर भाटकेँ कहलक जे खाट, मचिया, नून-तेल, डाँर आ खोपामे की अछि से बता नहि तँ भकसी झोका कए मारबौक। भाट नहि बता सकल आ ओ कहलक जे मरएसँ पहिने ओ बहिनसँ भेँट करए चाहैत अछि आ ताहि लेल दू दिनुका मोहलति ओकरा चाही।
भाट अपन बहिन लग गेल तँ ओ अपन भाइक औरदा जोड़ि रहल छलि। सभ गप जखन ओकरा पता चललैक तखन ओ कहलक जे ओहो संग चलत ओकर। रस्तामे एकटा धर्मशालामे रातिमे दुनू भाइ-बहिन रुकल मुदा बहिन चिन्ते सुति नहि सकल। तखने धर्मशालाक सभटा दीआ एक ठाम आबि कए गप करए लागल। भाटक बहिनक कोठलीक दीआ कहलक जे भाटिन अपन वर भाटकेँ मारए चाहैत अछि आ ओ जे फुसियाहीक प्रहेलिका बनेने अछि, से ओकर प्रेमी जे मरल गहुमन छल तकरा ओ टुकड़ी कए ठाम-ठाम राखि देने अछि आ तकरे प्रहेलिका बना देने अछि। आब भोरमे जखन दुनू भाइ बहिन गामपर पहुँचए जाइ गेल तँ बहिन अपन भौजीकेँ कहलक जे ओ सेहो प्रहेलिका सुनए चाहैत अछि।
भाटिन कहलक जे ज्योँ ओ प्रहेलिका नञि बुझि सकल तखन ओकरो भकसी झोँका कऽ ओ मारि देत। तखन ननदि कहलक जे यदि ओ प्रहेलिकाक उत्तर दए देत तखन भौजीकेँ भकसी झोका कए मारि देत। आब जखने भाटिन प्रहेलिका कहलक तखने बहिन सभटा टुकड़ी निकालि-निकालि कऽ सोझाँ राखि देलक आ भौजीकेँ भकसी झोका कऽ मारि देलक।

गांगोदेवीक भगता
गांगोदेवी मलाहिन छलीह। एक दिन हुनकर साँए, अपन भाय आ पिताक संग माछ मारए लेल गेलाह। साओनक मेला चलि रहल छलैक आ मिथिलामे साओनमे माँछ खएबा आकि बेचएपर तँ कोनो मनाही छै नहि। गांगोदेवीक वर सोचलन्हि जे आइ माछ मारि हाटमे बेचब आ साओनक मेलासँ गांगो लेल चूड़ी-लहठी आनब।
धारमे तीनू गोटे जाल फेकलन्हि सरैया पाथलन्हि मुदा बेरू पहर धरि डोका, हराशंख आ सतुआ मात्र हाथ अएलन्हि। आब गांगोक वर अपन कनियाँक नाम लए जाल फेकि कहलन्हि जे ई अन्तिम बेर छी गांगो। एहि बेर जे माँछ नहि आएल तँ हमरा क्षमा करब। आब भेल ई जे एहि बेर जाल माँछसँ भरि गेल। जाल घिंचने नहि घिंचाए। सभटा माँछ बेचि कए गांगो लेल लहठी-चूड़ीक संग नूआ सेहो कीनल गेल।
अगिला दिन गांगोक वर गांगोक नाम लए जाल फेंकलन्हि तँ फेर हुनकर जाल माँछसँ भरि गेलन्हि मुदा हुनकर भाइ आ बाबूक हिस्सा वैह डोका-काँकड़ु अएलन्हि। ओ लोकनि खोधिया कए एकर रहस्य बूझि गेलाह फेर ई रहस्य सौँसे मिथिलाक मलाह लोकनिक बीच पसरि गेल। गांगोदेवीक भगता एखनो मिथिलाक मलाह भैया लोकनिमे प्रचलित अछि। सभ जाल फेंकबासँ पहिने गांगोक स्मरण करैत छथि।

बड़ सख सार पाओल तुअ तीरे
मिथिलाक राजाक दरबारमे रहथि बोधि कायस्थ। राजा दरमाहा देथिन्ह ताहिसँ गुजर बसर होइत छलन्हि बोधि कायस्थक। दोसाराक प्रति हिंसा, दोसरक स्त्री वा धनक लालसा एहि सभसँ भरि जन्म दूर रहलाह बोधि कायस्थ। आजीविकासँ अतिरिक्त जे राशि भेटन्हि से दान-पुण्यमे खरचा भऽ जाइत छलन्हि। भोलाबाबाक भक्त छलाह।
जेना सभकेँ बुढ़ापा अबैत छै तहिना बोधि कायस्थक मृत्यु सेहो हुनकर निकट अएलन्हि आ ओ घर-द्वार छोड़ि गंगा-लाभ करबाक लेल घरसँ निकलि गेलाह। जखन गंगा धार अदहा कोसपर छलीह तखन परीक्षाक लेल बोधि कायस्थ गंगाकेँ सम्बोधित कए अपनाकेँ पवित्र करबाक अनुरोध कएलन्हि। गंगा माय तट तोड़ि आबि बोधि कायस्थकेँ अपनामे समाहित कएलन्हि। बोधि कायस्थकेँ सोझे स्वर्ग भेटलन्हि।
बोधि कायस्थ विद्यापतिसँ पूर्व भेल छलाह कारण ई घटना विद्यापति रचित संस्कृत ग्रंथ पुरुष-परीक्षामे वर्णित अछि। फेर विद्यापति अपन मैथिली पद बड़ सुख सार पाओल तुअ तीरे लिखलन्हि- आ बोधि-कायस्थ जेकाँ गंगा लाभ कएलन्हि।

छेछन
डोम जातिक लोकदेवता छेछन महराज बड्ड बलगर छलाह। मुदा हुनकर संगी साथी सभ कहलकन्हि जे जखन ओ सभ सहिदापुर गेल छलाह, बाँसक टोकरी आ पटिया सभ बेचबाक लेल, तखन ओतुक्का डोम सरदार मानिक चन्दक वीरता देखलन्हि। ओ एकटा अखराहा बनेने रहथि आ ओतए एकटा पैघ सन डंका राखल रहए। जे ओहि डंकापर छोट करैत छल ओकरा मानिकचन्दक पोसुआ सुग्गर, जकर नाम चटिया छल, तकरासँ लड़ए पड़ैत छलैक। मानिकचन्द प्रण कएने रहथि कि जे क्यो चटियासँ जीति जाएत से मानिकचन्दसँ लड़बाक योग्य होएत आ जे मानिकचन्दकेँ हराएत से मानिकचन्दक बहिन पनमासँ विवाहक अधिकारी होएत। मुदा ई मौका आइ धरि नहि आएल रहए जे क्यो चटियाकेँ हरा कए मानिकचन्दसँ लड़ि सकितए।
दिन बितैत गेल आ एक दिन अपन पाँच पसेरीक कत्ता लए छेछन महराज सहिदापुर दिश विदा भेलाह। डंकापर चोट करबासँ पहिने छेछन महराज एकटा बुढ़ीसँ आगि माँगलन्हि आ अपन चिलममे आगि आ मेदनीफूल भरि सभटा पीबि गेलाह आ झुमैत डंकापर चोट कए देलन्हि। मानिकचन्द छेछनकेँ देखलन्हि आ चटियाकेँ शोर केलन्हि। चटिया दौगि कए आएल मुदा छेछनकेँ देखि पड़ा गेल। तखन पनमा आ मानिकचन्द ओकरा ललकारा देलन्हि तँ चटिया दौगि कय छेछनपर झपटल मुदा छेछन ओकर दुनू पएर पकड़ि चीरि देलन्हि। फेर मनिकचन्द आ छेछनमे दंगल भेल आ छेछन मानिकचन्दकेँ बजारि देलन्हि। तखन खुशी-खुशी मानिकचन्द पनमाक बियाह छेछनक संग करेलन्हि।
दिन बितैत गेल आ आब छेछन दोसराक बसबिट्टीसँ बाँस काटए लगलाह। एहिना एक बेर यादवक लोकदेवता कृष्णारामक बसबिट्टीसँ ओ बहुत रास बाँस काटि लेलन्हि। कृष्णाराम अपन सुबरन हाथीपर चढ़ि अएलाह आ आमक कलममे छेछनकेँ पनमा संग सुतल देखलन्हि। सुबरन पाँच पसेरीक कत्ताकेँ सूढ़सँ उठेलक आ छेछनक गरदनिपर राखि देलक आ अपन भरिगर पएर कत्तापर राखि देलक।

गरीबन बाबा
कमला कातक उधरा गाममे तीनटा संगी रहथि। पहिने गामे-गामे अखराहा रहए, ओतए ई तीनू संगी कुश्ती लड़थि आ पहलमानी करथि। बरहम ठाकुर रहथि ब्राह्मण, घासी रहथि यादव आ गरीबन रहथि धोबि। अखराहा लग कमला माइक पीड़ी छल। एक बेर गरीबनक पएर ओहि पीड़ीमे लागि गेलन्हि, जाहिसँ कमला मैय्या तमसा गेलीह आ इन्द्रक दरबारसँ एकटा बाघिन अनलन्हि आ ओकरासँ अखराहामे गरीबनक युद्ध भेल। गरीबन मारल गेलाह। गरीबनकेँ कमला धारमे फेंकि देल गेलन्हि आ हुनकर लहाश एकटा धोबिया घाटपर कपड़ा साफ करैत एकटा धोबि लग पहुँचल। हुनका कपड़ा साफ करएमे दिक्कत भेलन्हि से ओ लहाशकेँ सहटारि कए दोसर दिस बहा देलन्हि।
एम्हर गरीबनक कनियाँ गरीबनक मुइलाक समाचार सुनि दुखित मोने आर्तनाद कए भगवानकेँ सुमिरलन्हि। आब भगवानक कृपासँ गरीबनक आत्मा एक गोटेक शरीरमे पैसि गेल आ ओ भगता खेलाए लागल। भगता कहलन्हि जे एक गोटे धोबि हुनकर अपमान केलन्हि से ओ शाप दैत छथिन्ह जे सभ धोबि मिलि हुनकर लहाशकेँ कमला धारसँ निकालि कए दाह-संस्कार करथि नहि तँ धोबि सभक भट्ठीमे कपड़ा जरि जाएत। सभ गोटे ई सुनि धारमे कूदि लहाशकेँ निकालि दाह संस्कार केलन्हि। तकर बादसँ गरीबन बाबा भट्ठीक कपड़ाक रक्षा करैत आएल छथि।

लालमैन बाबा
नौहट्टामे दू टा संगी रहथि मनसाराम आ लालमैन बाबा। दुनू गोटे चमार जातिक रहथि आ संगे-संगे महीस चराबथि। ओहि समयमे नौहट्टामे बड्ड पैघ जंगल रहए, ओतहि एक दिन लालमैनक महीसकेँ बाघिनिया घेरि लेलकन्हि। लालमैन महीसकेँ बचबएमे बाघिनसँ लड़ए तँ लगलाह मुदा स्त्रीजातिक बाघिनपर अपन सम्पूर्ण शक्तिक प्रयोग नहि केलन्हि आ मारल गेलाह। मनसारामकेँ ओ मरैत-मरैत कहलन्हि जे मुइलाक बाद हुनकर दाह संस्कार नीकसँ कएल जाइन्हि। मुदा मनसाराम गामपर ककरो ई गप नहि कहलन्हि। एहिसँ लालमैन बाबाकेँ बड्ड तामस चढ़लन्हि आ ओ मनसारामकेँ बका कऽ मारि देलन्हि। फेर सभ गोटे मिलि कए लालमैन बबाक दाह संस्कार कएलन्हि आ हुनकर भगता मानल गेल। एखनो ओ भगताक देहमे पैसि मनता पूरा करैत छथि।

गोनू झा आ दस ठोप बाबा
मिथिला राज्यमे भयंकर सुखाड़ पड़ल। राजा ढ़ोलहो पिटबा देलन्हि, जे जे क्यो एकर तोड़ बताओत ओकरा पुरस्कार भेटत।
एकटा विशालकाय बाबा दस टा ठोप कएने राजाक दरबारमे ई कहैत अएलाह जे ओ सय वर्ष हिमालयमे तपस्या कएने छथि आ यज्ञसँ वर्षा करा सकैत छथि। साँझमे हुनका स्थान आ सामग्री भेटि गेलन्हि। गोनू झा कतहु पहुनाइ करबाक लेल गेल रहथि। जखन साँझमे घुरलाह तखन कनिञाक मुँहसँ सभटा गप सुनि आश्चर्यचकित हुनका दर्शनार्थ विदा भेलाह।
एम्हर भोर भेलासँ पहिनहि सौँसे सोर भए गेल जे एकटा बीस ठोप बाबा सेहो पधारि चुकल छथि।
आब दस ठोप बाबाक भेँट हुनकासँ भेलन्हि तँ ओ कहलन्हि-
“अहाँ बीस ठोप बाबा छी तँ हम श्री श्री १०८ बीस ठोप बाबा छी। कहू अहाँ कोन विधिये वर्षा कराएब”।
“हम एकटा बाँस रखने छी जकरासँ मेघकेँ खोँचारब आ वर्षा होएत”।
“ओतेक टाक बाँस रखैत छी कतए”।
“अहाँ एहन ढोंगी साधुक मुँहमे”।
आब ओ दस ठोप बाबा शौचक बहन्ना कए विदा भेला।
“औ। अपन खराम आ कमण्डल तँ लए जाऊ”। मुदा ओ तँ भागल आ लोक सभ पछोड़ कए ओकर दाढ़ी पकड़ि घीचए चाहलक। मुदा ओ दाढ़ी छल नकली आ ताहि लेल ई नोचा गेल। आ ओ ढ़ोंगी मौका पाबि भागि गेल। तखन गोनू झा सेहो अपन मोछ दाढ़ी हटा कए अपन रूपमे आबि गेलाह। राजा हुनकर चतुरताक सम्मान कएलन्हि।

वर्णमाला शिक्षा: अंकिता
अकादारुण समय छल । अंकिता अङैठीमोड़ कएलक। ओकर पिता कहलन्हि-
“अतत्तह करए छी। जल्दीसँ झटकारि कऽ चलू।

अंकिता अकच्छ भऽ गेलि। चलैत-चलैत ओकर पएर दुखा गेलैक।
रस्तामे ओ एकटा लालछड़ी बलाकेँ देखलक।
“हमरा लालछड़ी कीनि दिअ”।
“अंकिता अकर-धकर नहि खाऊ”।
“नहि। हमरा ई चाहबे करी”।
“अहूँ अधक्की छी। एखने तँ कतेक रास चीज खएने रही”।
पिता तैयो ओकरा लालछड़ी कीनि देलन्हि।
रस्तामे अगिनवान देखि अंकिता बाजलि-
“ई आगि किएक लागल अछि”?
“बोन-झाँकुर खतम करबाक लेल”।
“अक्खज गाछ सभ तैयो नहि जरल अछि”।

प्रश्न: बचियाक नाम की छी?
उत्तर: अंकिता।
प्रश्न: समय केहन छल?
उत्तर: अकादारुण।
प्रश्न: अंकिता चलैत-चलैत.......भऽ गेल छलि।
उत्तर: अकच्छ।
प्रश्न: पिता ......खाए लेल मना केलन्हि।
उत्तर: अकर-धकर।
प्रश्न: रस्तामे बोन-झाकुँड़केँ आगिसँ जराओल जाइत रहए। ओहि आगिक लेल प्रयुक्त शब्द रहए...।
उत्तर: अगिनवान।
प्रश्न: अगिनवानमे केहन बोन-झाँकुड़ नहि जरल?
उत्तर: अक्खज।

आगाँ:-
कनी काल दुनू बाप बेटी गाछक छाहमे बैसि जाइ गेलाह। अंकिता उकड़ू भए बैसि गेलि आ उकसपाकस करए लागलि।

“अहाँकेँ उखी-बिखी किएक लागल अछि अंकिता? साँझ भऽ गेल अछि। कनेक काल आर चलब तँ घर आबि जाएत”।

तखने अकासमे अंकिता उकापतङ्ग देखलक।
“एक उखराहा चललाक बादो गामपर नहि पहुँचलहुँ”|
“चलू। चली। रस्ता धऽ कऽ चलू नहि तँ उड़कुस्सी देहमे लागि जाएत”।
“दिन रहितए तँ खेतमे ओड़हा खएतहुँ”।
“कलममे ओगरबाह सभ आबि गेल। कड़ेकमान अछि, अपन-अपन मचानपर”।
“इजोरियामे देखू। दिनमे बरखा भेल रहए से लोक सभ खेतमे कदबा केने अछि”।
“कमरसारि आबि गेल आ अपन सभक घर सेहो”।

टिप्पणी: पहिल भागमे अ उत्तरबला प्रश्न पूछल गेल छल। एहि भाग लेल “ओ” आ “क” वर्णसँ शुरू होअएबला उत्तर सभक लेल प्रश्न बनाऊ।
एहिना कचटतप वर्णमालासँ शुरु होअएबला शब्द बहुल खिस्सा बनाऊ आ बच्चाकेँ सुनाऊ आ फेर ओकरासँ प्रश्न पूछू। खिस्सा कताक बेर बच्चाकेँ सुनाओल जाए, से बच्चाक क्षमता आ कथामे प्रयुक्त शब्दावलीक संख्याक हिसाबसँ निर्धारित करू।

बाल-कविता
ट्रेनक गाड़ी
छुक छुक छुक
भरल सवारी
ट्रेनक गाड़ी

पोखरि गाछी
दौगल जाइ छी

ट्रेन गाड़ी
ठाढ़ सवारी
पोखरि गाछी
दौगल जाइ छी!!

ट्रेन गाड़ी धारक कातमे
आएल स्टेशन छुटल बातमे
ट्रेन चलल दौगल भरि राति
सुतल गाछ बृच्छ भेल परात


के छथि
के छथि जिनकर हस्त-रेखमे
अछि परिश्रमसँ बढ़ब लिखल
के छथि जिनका ललाट मध्य
परिश्रमक गाथा रहैछ सकल

जे छथि सुस्त तकरे चमकैत
अछि हाथक रेखा बुझू सखा
जिनका घाम नहि खसन्हि
छन्हि ललाट चमकैत नहि बेजाए

राजा श्री अनुरन्वज सिंह
एक सुरमे बाजि देखाऊ नहि अरुनन्वन नहि सिंह पूरा एकहि बेर सुनाऊ राजा श्री अनुरन्वज सिंह


सूतल
सूतल धरती
सूतल आकाश
सूति गेल चिड़ै
सूतल गाछ-पात
सूतल बौआ
सूतल बुच्ची
सूतल बाबा
सूतल बाबी
सूतल चन्द मामा आब
सूतू-सूतू बौआ
उठबाक अछि
भोरे-सकाल

अखण्ड भारत
धीर वीर छी मातु बेर की
अबेर होइत सङ्कल्पक क्षण ई
बुद्धि वर्चसि पर्जन्य बरिसथि
सभा बिच वाक् निकसथि
औषधीक बूटी पाकए यथेष्ठा
अलभ्य लभ्यक योग रक्षा

आगाँ निश्चयेण कार्यक क्रमक
पराभव होए सभ शत्रु सभक
वृद्धि बुद्धिक होअए नाश शत्रुत्वक
मित्रक उदय होअए भरि जगत

नगर चालन करथि स्त्रीगण
कृषि सुफल होअए करू प्रयत्न
वृक्ष-जन्तुक संग बढि आब
ठाढ होऊ नहि भारत भेल साँझ
दोमू वर्चसिक गाछ झहराऊ पाकल फलानि
नञि सोचबाक अनुकरणक अछि बेर प्राणी

वर्चस्व अखण्ड भरतक मनसिक जगतमे
पूर्ण होएत मनोरथ सभक क्यो छुटत नञि

मोनक जड़िमे
पंक्त्तिबद्ध पुनः किञ्च नञि जानि किए सेजल
मोनक जड़िमे राखल सतत कार्यक क्रम भेटल

पर्वत शिखर सोझाँ अबैत हियाऊ गमाबथि
बल घटल जेकर पार दुःखक सागर करैत
करबाक सिद्धि सोझाँ छथि जे क्यो विकल
भोथलाइत प्यासल अरण्यपथ मे हँ बेकल

मोनक जड़िमे राखल सतत कार्यक क्रम भेटल
पंक्त्तिबद्ध पुनः किञ्च नञि जानि किए सेजल

हाथ दए तीर आनि दए करोँट तखन तत
मनसिक अन्हारक मध्य विचरणहि सतत
प्रकाशक ओतए कए उत्पत्ति ठामहि तखन
विपत्तिक पड़ल क्यो आब नञि होएत अबल

मोनक जड़िमे राखल सतत कार्यक क्रम भेटल
पंक्त्तिबद्ध कए पुनः किञ्च जानि किए सेजल

करबाक अछि लोक कल्याणक मन वचन कर्महि
नञि अछि अपन अभिमान छोड़ब अधः पथ ई
घुरत अभिमान देशक तखन अभिमानी हमहुँ छी
नञि तँ फुसियेक अभिमान लए करब पुनः की

मोनक जड़िमे राखल सतत कार्यक क्रमक ई
पंक्त्तिबद्ध पुनः किञ्च जानि कए सेजल छी

पुनः स्मृति
बितल बर्ख बितल युग
बितल सहस्राब्दि आब
मोन पाड़ि थाकल की
होयत स्मृतिक शाप

वैह पुनः पुनः घटित
हारि हमर विजय ओकर
नहि लेलहुँ पाठ कोनो
स्मृतिसँ पुनः पुनः

सभक योग यावत नहि
होएत गए सम्मिलन
हारि हमर विजय ओकर
होएत कखनहु नहि बन्द

कलम गाछी
सौँसे गमकैत
फूल निकलैत पात
सभ जाइ गेल इसकूल
तखने बहल बसात

आमक गाछक पात
कीड़ा छल लागल
घोरनक छल ई प्रताप
घोरन छत्ता बला पात
चुट्टी लाल लाल
जखन बहल बसात

हाथीक मुँहमे लागल पाइप
बानर सोचलक की ?
जीतए-ए ई हाथी
एहि होलीमे हमहूँ
मुँह लगाएब पाइप

पाइप लगओने हाफी
भरि रंग ओ बानर
रहए करैत इन्तजारी

आँखि लागलए ओकर
नाकमे भेलए सुरसरी
आऽऽऽछी
खसल रंग भरल पाइप सद्यहि

बानर राजा
सिँह राजसँ भेल पीड़ित वन-जन एलेक्शन करायल मिलि सभ क्यो संख्या वानरक हरिण मिला कय छल बेशी से राजा भेल बानर जो !
सिंहराजकेँ तामस अयलन्हि खा गेल हरिणराजक बच्चा एकदिन
दाबीसँ हरिण गेल सम्मुख वानर राजा कहलन्हि- बदमाशी अछि सिंहक कहि निकलि गेल जंगल बिच्चहि

गाछक डारि पकड़ि छिप्पी धरि खूब मचेलक धूम

तामसे विख भय सिंहराज खएलक बच्चा सभटा मृगराजक चुनि जखन सुनाओल जाय वनराजकेँ फेर वैह धूम ओ फेर मचाओल
मृगराज कहल हे नृप एहि हरकंपसँ की होयत ? जीवित होएत की हमर संतान?

कहल नृप कहू भाय हम्मर मेहनतिमे अछि की कमजोरी करल प्रयास हम भरिसक मुदा बुझू हमरो मजबूरी !

चिड़ियाखाना
चिड़ियाखाना
भालू मामा
बन्दर मामा
लुक्खी
खिखीर
कौआ कुचरए
आएत क्यो घर

मुरगाक कुकड़ू-कू
अंडा मुरगामे पैसल
मुरगा अंडासँ निकलल !

टिकली रंग-बिरंगक
खूब घुमए उड़ै अछि
टिकली पाँखि पसारल
फूलक रंग बुझाइए


जमबोनी
जमबोनीक जोम
पसरल
जोम रंग चारूकात
पीचल पिसीमाल
एत्तेक ऊँच गाछ
दोमब मुदा अछि बड्ड ऊँच
बोन सुपारी तोड़ि चली घुरि

बौआ ठेहुनिया मारि
बौआ ठेहुनिया मारि
भेल सोझ भए ठाढ़
लकड़ीक तिनपहिया
देलक बाबू आनि
पहिनहि भए गेल ठाढ़
पकड़ि की होएत आब!

ट्रिंग-ट्रिंग-ट्रिंग
ट्रिंग-ट्रिंग-ट्रिंग
कैरियर बला साइकिल
बाबू आनल कीनि

ट्रिंग-ट्रिंग-ट्रिंग
बिन कैरियरक साइकिल
नहि कोनो काजक ईह !

ट्रिंग-ट्रिंग-ट्रिंग
बैस बैस बैस
कैरियरपर आबि

ट्रिंग-ट्रिंग-ट्रिंग
पैडल पर पएर
सभ रस्ता दैह !

भोरक बसात
भोरक बसात
उठू-उठू बुच्ची
भेल प्रात
रातिमे सभटा सुन्न
भोरमे चिड़ै-चुनमुन

फूलक गाछ
भोरक बसात
भरल नव फूलसँ
भेल प्रात

छाहक करतब
छाहक करतब
दुपहरियामे छोट
रौदक तीव्रतामे मरैत
साँझक रौद शीतल
छाह हँसैए
होइए पैघ


कर जोरि करैए प्रणाम
“छाह भाए
छह तोँ पैघ”

सपना
आइ देखल सपना
घर आएल बौआ
असगर छी ढहनाइत
बौआ संगे खेलाएब

माएक भेलैक बहन्ना !
हम्मर झोरा-झपटा
बिनु सरियेने जाथि

हम कहलियै देरी
तैयार करबएमे
किऐ करैछी अहाँ

माए कहैए
उठलहुँ देरीसँ अहाँ
उनटे हमरा कहए छी ?
स्कूलमे होमए दियौ ने देरी !


कोइरीक कूकू
कोइरीक कूकू
कौआक करड़ब काऊँ
रातिमे गाछीक कीड़ीक स्वर
एहन सन-
“नानी तसला ला- भात पका!”
रातिक रतिचरक जीवन आहा

रातिमे इजोत भगजोगनीक
रातिमे अबैए दिनमे बिलाइए
दिनमे ओकर काजे की?
दोसर रतिचरक स्वर-
“क्वैटीक्विक”
रातिक रतिचरक जीवन ई

शितलपाटी
शितलपाटी हम्मर
पोथी हम्मर मनोहर पोथी
सभटा पढ़ी
साँझक प्रकाश झलफल
नहि एहि बेरमे पढू
बाप रौ बाप
आँखि होएत खराप

मकड़ीक जाल
मकड़ीक जाल
माँछक लेल महाजाल

कीड़ीक फँसब
माछक कूदब
महाजाल खसब
माछक करतब-खेल

मुदा आइ बुझलहुँ
रहए ई जीबाक संघर्ष
जे आइ कए रहल छी हम
एहि दिल्ली नगरियामे

वायुगोलक
वायुगोल बैलून
हरियर पीअर
एहिमे भरि रंग फेकी भाएक मूह
भरि एहिमे आब हाइड्रोजन
बेचै छी बच्चा सभकेँ
उड़बै छथि ओ ऊपर गगनमे

हाथीक सूप सन कान
हाथीक सूपसन कान
पाइप बला मूहसँ भरैए पानि

मुँह नीचाँमे आर
दू टा पैघ दाँत
चकाचक ठाढ़

मोट-मोट एकर पएर
पुच्छी अछि लटकैत
चीन्हि जाइ छियैक एकरा हम
मोट हाथीक धम्मक-धम

छुट्टी
आइ छुट्टी
काल्हि छुट्टी
घूमब-फिरब जाएब गाम
नाना-नानी मामा-मामी
चिड़ै-चुनमुनी सभसँ मिलान

बरखा बुन्नी आएल
मेघ दहोदिस भागल
कारी मेघ उज्जर मेघ
घटा पसरल
चिड़ै-चुनमुनी आएल
आइ छुट्टी
काल्हि छुट्टी
घूमब-फिरब जाएब गाम
नाना-नानी मामा-मामी
चिड़ै-चुनमुनी सभसँ मिलान

बौआ गेल सुनि
एक दू तीन
बौआ गेल सुनि
चारि पाँच छह
सुनि भेल भयावह
सात आठ नौ
गेल भदबरिया भाए
दस एगारह बारह
हमरा आबि उबारह
तेरह चौदह पन्द्रह
होएत आब सलहन्ना
सोलह सतरह आर
भेल भेर इयार
अठारह उन्नैस बीस
आब थाकल ईह
ईह सय हजार
हँ आब आएल तेजी इयार

मिथिला
मथल जतए शत्रुकेँ
मिथिला छल ओ धरती
सभ धकियेलक अपना-अपनी
सभ ठोंठियेलक यौ

जनक जन-विश सभ अप्पन
गुरु-माता-पिता ई तीनू
नहि झुकब छोड़ि ककरो सोझाँ
मुदा अभिमानक धरती छोड़ल
छोड़ल अभिमान ईह
सभ धकियेलक अपना-अपनी
सभ ठोंठियेलक यौ

बादुर सोंस
बादुर बादुर
राडार युक्त ई
बादुर बादुर
पबै-ए भोजन

प्रतिध्वनिक कारण
बचइ-ए कोनो
दुर्घटनासँ
बादुर बादुर
राडार युक्त ई

सोंस-डोलफिन अछि नाम
सोंस-डोलफिन
अबाज निकालए
प्रतिध्वनि आनए
माछक जाल फेकल
बचइ-ए ई बदलि रस्ता
दुर्घटनासँ

बादुर बादुर
राडार युक्त ई
बादुर बादुर
सोंस-डोलफिन
अबाज निकालए
प्रतिध्वनि आनए

की? किए? कोना? के?
की? किए? कोना? के?
गर्मी सँ बरखा
बरखासँ पनिसोखा
बरखामे चाली
चालीसँ माटि
चाली बिन पएरक

माटिसँ घास
घास खाए गाए
गाएसँ दूध
बौआ पीबू
गाएक बाछा
पीबि बहए हर
हरसँ खेत
खेतसँ धान
धानसँ भात
बौआ खाथि

बौआक देह
दूध भात

पानिक भाप
उड़ए अकास
अकाससँ बरखा
बरखासँ चाली
चालीसँ माटि
माटिसँ धान
की? किए? कोना? के?

फेर आएल जाड़
फेर आएल जाड़
कड़कराइत अछि हार
बिहारी!!
लागए-ये भेल भोर
गारिसँ फेर शुरू भेल प्रात
बिनु तैय्यारी

आगाँ
सूर्यसँ पूब आ अकाससँ ऊँच
पृथ्वीसँ नीचाँ चिन्तन करू अछि की?

अपन घर-गामक अपन देशक
माता-पिता-गुरुक कर्ज मोन राखि

तामसमे तोड़ब वस्तु नहि कठिन अछि
कोना तोड़लकेँ जोड़ब तकर बाट ताकि

सूर्यसँ पूब आ अकाससँ ऊँच
पृथ्वीसँ नीचाँ चिन्तन करू अछि की?


अंध विश्वास
सुमेरु पर्वतक चारू-कात चेन्ह देखाय कहलक गाइड सर्प केर चेन्ह अछि ई
भेल समुद्र-मंथन एहि पर्वतसँ सर्पक रस्सा अछि चेन्ह छोड़ि गेल चारू-कात तहीसँ

संगी हमर हँसल कहलक कोनो पहाड़ पर जाऊ पहाड़ ऊपर चढ़य लेल गोलाकार रस्ता बनबाऊ

नहि तँ सोझे ऊपर चढ़ब सोझे खसब नीचाँ मुहेँ हओ गाइड तोहूँ विश्वासक छह अंध-काण्ड सुनेबा लए

अभ्यास
पूछल गुरूसँ मृदंगपर हाथक गति भय रहल अछि किएक मंद गुरु कहलन्हि से करू अभ्यास तखन प्रतिदिन
प्रतिदिन तँ करितहि छी हम एकर सदिखन अभ्यास तहुखन हमर घटय अछि गति
आ टूटय अछि लय तात
करू भोर साँझ अहाँ अभ्यास बिना करि नागा भोर करब अभ्यास जखन साँझमे टूटत नहि लय साँझमे करब पुनराभ्यास होयत भोरमे हाथ गतिमय
गुरुसँ पूछल कोना कए एहि चट्टान काटि घोड़ा बनाएब घोटक गतिमय बनबएमे एक मास बेकार लगाओल
कहल गुरू तखन करू कल्पना एहि जड़-पाथरमे घोटक घोड़ा देखि करू प्रहार
जतए लागए घोटक नहि अछि


जतए पाथर बेशी अछि
तोड़ि अहाँ हटाऊ
बनत घोड़ा क्षणहि
घोड़ा चट्टानक बनाऊ

कहल ओ गुरूजी
काज वैह अछि सोचबाक अछि ई फेर पहिने बेशी काज लगैत छल आब थोड़ अछि भेल

आँखिक चश्मा
दादा पहुँचलाह डॉक्टर लग पुछल होइए की बाबा मर्र डॉक्टर अहाँ छी हमहीं बताऊ भेल की हमरा?
औँठासँ कय शुरू बताऊ पहुँचा धरिक समाचार कहल पहिने करू ठीक आँखिकेँ औ सरकार
कोनो चश्मा नहि फिट पड़ल दूरबीनक शीशा जखन लगाओल कहल हँ अछि आब कोनहुना भाखए अक्षर चराचर
सड़ही आम देखि बजलाह बूढ़ भेलहुँ हम अहाँ बुझय छी बच्चा बैलूनसँ खेलायब हम से वयस नहि अछि
अच्छा अच्छा !
यौ दादा ई सड़ही छी हम पड़ि गेल छी सोँचहि सड़ही आम अहाँ कोना देखब चश्माक नंबरे गलत पड़ल अछि

तीने टा अछि ऋतु
पुछल स्कूल किएक नहि अएलहुँ
मास्टर साहेब होइत छल बरखा जाइतहुँ हम छल भीजि
बरखामे जाएब अहाँ भीजि गर्मीमे लागत लू-गर्मी आ जाड़क शीतलहरीमे हार-हाड़ होइत जाएब
सालमे पढ़ाइ-पढए कहिया आएब
बौआ होइत अछि ई तीनियेटा ऋतु


दरिद्र
आठ सय बीघा खेत कतेक पोखरि चास-बास
मुदा कालक गति बेचि बिकनि सभटा केलन्हि समाप्त

झंझारपुरसँ धोती कीनि घुरैत काल देखल माँछ बिकाइत धोती घुरा कए आनल आ कीनल माँछ सुआइद

पूछल कहल हौ माछ ई
काल्हि कतएसँ भेटत धोती तँ जखने पाइ होएत जाएब कीनि लाएब तुरत
दरिद्रताक कारण हुनकर हम आब बूझि गेल छी एक दिनुका गप नहि ई सभ दिनुका चरित्र छी

रौह नहि नैन
हँ यौ नैन अछि ई मुदा शहरक लोक की बुझए सभ ताकैत अछि रौह नैन कहबय तँ क्यो नहि कीनय
छागर खस्सी आ बकरीक अंतर ज्योँ जायब फरिछाबय
बिकायत किछु नहि एहि नगरमे
एहि नगरमे बिनु टाका किछु नहि आबय

जूताक आविष्कार
जखन गड़ल एक काँट राजा कहलक ओछाउ चर्म आ चर्मसँ माटिकेँ छाड़ि कए राजधानी निष्कंटक बनाऊ

जखन सभटा चर्म आनि कए नहि पूर्ण भए सकल ओछाओन एक चर्मकार आओल आ राजाकेँ फरिछाय बुझाओल
पैर बान्हि ली चर्मसँ आकि पृथ्वीकेँ ओहिसँ लए झाँपी निष्कंटक धरती नहि मुदा
मार्ग निष्कंटक होएत गए
जूताक भएल पदार्पण तहिना
राजा प्रसन्न कहल होअए एहिना

बूढ़ वर
कतय छी आयल आइ ?
ताकि रहल छी वर १५-१५ वरखक दूटा अछि कतहु अभड़ल ?
रंग सिलेबी सिंघ मुठिया अदंत तकैत छी आइ से भेटत कहिया ?
१५-१५ केर दू गोटक बदलेन ३० केर भेटत एकटा बाल-विवाहक दिन गेल

रिपेयर
स्कूलक तालाक रिपेयर केलक बिल मोटगर जखन देलक कारीगर पूछल एहि अलमीराक तँ ताला नहि महग छल ?
रिपेयरसँ सस्तमे तँ नव ताला आयत गय
औ बाबू तखन कमीशन अहीं जाय आऊ दऽ

नोकर
फोन कऽ कय घरमे पूछल पूछलन्हि बेटाक अफसर
छथि बेटा घरमे की ?
आकि..

आकि आगू पुछितथि ओ बजलाह दय कय एक धुतकारी
एहि फोनक हम बिल भरैत छी नहि करू अहाँ पुनि बात मैसेज अहाँक देब हम पुत्रकेँ से छी के अहाँ लाट?
नौकर नहि अहाँक ने छी हम अपन पुत्रक कनिया केर टा छी हम नौकर बुझू ई यौ अफसर

क्लासमे अबाज
दुनू दिशक बेंचकेँ उठाकय पुछलन्हि आयल कोन कातसँ अबाज
पकड़ल एक कातकेँ छोड़ल फेर कएल दू फाड़ि
आधक-आध करैत पहुँचलाह फेर लग लक्ष्य
दुइ गोट मध्य जानि नहि सकलाह अबाज केलक कोन वत्स

एस.एम.एस.
कहू एहिमे अहाँ छी सहमत आ की छी अहाँ असहमत दुनू रूपमे दिअ अहाँ अपन विचार कय एस.एम.एस.
आहि कमाऊ अहाँ रुपैय्या हम बूड़ि छी भाइ न्यु टेक्नोलोजी छी ई सभ बुरबक क्यो नहि आइ

टी.टी.
मजिस्ट्रेट चेकिङ भेल बिन टिकट बला वीर सभ भागल
बाधे-बाधे
खेहारलक पुलिस जखन चप्पल छोड़ल ओतय बेसुध तन
मुदा बुरबक लाल एकटा एक चप्पल लेलक उठाय दोसर चप्पल छोड़ि पड़ायल आयल गाम हँफाइत
सभ हँसि पुछलक हौ बाबू एकटा चट्टी लय कय कोन पैरमे पहिरब एकरा दोसर खाली रहत गए

ई बुरबकहा बुरबके रहल हँसि भेर भेल सभ
दोसर दिन बाध सभ गेल
देखल सबहक दुनू चट्टी भेल छल निपत्ता बुरबकहाक एक चट्टिये छल बाँचल नहि लेलक क्यो सोचि करब की एकटा?
मुँह लटकओने सभ घूरल आ नाम बदललक बुरबकहाक टी.टी. बाबूकेँ ई ठकलक नाम होयत सैह एकर आब

खगता
गोर लागि मौसीकेँ निकलल पूछतीह अछि किछु खगता आइ नहि पूछल जखन बैसल फेर ओ तखन
फेर उठल मौसी फेर नहि पुछलखिन्ह ई सोचि जे रहैत नहि छन्हि पाइक काज
जाएब कोना पाइक बड्ड अभाव !

आइ नहि पूछल जखन बैसल फेर ओ तखन

लोक कहैछ आयल छथि खगते ओना दर्शनहुँ दुर्लभ
अहीँ कहू खगतामे क्यो अछि पुछैत
आगूसँ ?
आइ नहि पूछल जखन बैसल फेर ओ तखन

क-ख सँ दर्शन
ट्युशन पढ़बय जाइत छँह इज्जत तँ करैत छौक? जलखै तँ नहिये परञ्च चाहो-पानिक हेतु पुछैत छौह ?
ट्युशन कय खाइत छी की कहलहुँ हे से नहि बाजू द्रोणक नव अवतार छी हम

से छियन्हि कहि देने जाइत देरी करह जलखैक व्यवस्था नहि तँ छी नहि हम द्रोण औठाँक नहि कोनो लालसा

मात्र पढ़ेबन्हि छओ महिना दर्शन नहि होयतन्हि क-ख केर नहि से नहि बाजू खुआ पिया कए केने अछि ढेर

चोरकेँ सिखाबह
यौ काका छी अहाँ खाटकेँ धोकड़ी किएक बनओने खोलि नेवाड़ फेर घोरिकेँ
बनाऊ खाट एखन नवीने
कहलन्हि काका हे हौ देखह आयत रातिमे जे चोर पटकत लाठी खाट पर आ धोकड़ीमे रहने
चोट नहि लागत मोर

परञ्च काका ज्योँ ओ चलबए लाठी नीचाँ बाटे वाह बेटा कहि दिहह चोरकेँ ई गप तोहीँ जा कय

नरक निवारण चतुर्दशी
भुखले भरि दिन दिन बिति गेल नरक निवारण लय हम रहलहुँ साँझमे मंदिर विदा सभ भेल
दुर्गापूजा लगमे आयल सिंगरहार केर चलती भेल माटि काटि गोबरसँ नीपि कय भोरे-भोर फूल लोढ़ि लेल
सरस्वती पूजाक समयमे बैर अशोकक-गाछ-पात गोलीक लेल
बोने-बोन महुआक फरक लेल घूमि-घामि अयलहुँ भेल-भेर

अण्डीक बीया तेलहानीमे दए तरुआ ओकर तेलक खएल
कुण्डली मिरचाइक फरमे अंतर बुझैत-बुझैत दिन कतेक गेल

सुग्गोकेँ ई खोआय रामायण
सुनला कत्तेक दिन भए गेल

नौकरी
नौकरी नहि करी तखन भेटय तनखा तन खायत वेतन भेटत बिना तनहि आब कते बुझायब
गाम घूरि ज्योँ जायब खायब की कमलाक बालू औ गुलाब काका पहिने हमरा ईएह बुझाऊ
भरि दिनका ठेही अछि जाइत जखन जाइत छी सूइत भोर उठला संता अखनहुँ समस्यासँ अछि नहि छूटि

मरकरी डिलाइट
सोझाँसँ त्रिपुण्ड-चानन देने आयल रहथि उदना
देखल गामक प्रवासी जहिना कहल रौ छँ तोँ भाइ उदना
संग कटलहुँ बाँस
आवाजकेँ दबेबा लेल
जड़िमे बान्ही गमछा
आ टेंगारीसँ दू छहमे
काटय छलह तोँ

पुरनाहाक डबरामे
लीढ़क नीचाँ नुका कय
करी संपन्न
काज बिन विघ्न

पश्चात् भेलहुँ प्रवासी मरकरी-डिलाइट दयकेँ तोँ भेलह गामक वासी
पंडितक अकाल छल नहि छलह कोनो कंपीटीशन
भेलहुँ अहाँ औ भजार गामक नव उदयनाचार्य

दीयाबाती
अन्हरिया भगेलक
इजोरिया बजेलक
दीयाबाती हम्मर
तरेगण बजेलक

अकाससँ उतारि
रखलहुँ अप्पन द्वारि

फ्रैक्चर
हॉस्पीटलमे आबाजाही
गामक प्रवासीक बुझैत छलाह जखन समाचार पिताक भर्त्तीक ठामहि दरभङ्गा बस-स्टैंडहिसँ गाम जयबाक बदला आबथि हॉस्पीटल

की केलहुँ शरीरकेँ
नहिये बनेलहुँ जमीन-जत्था बच्चा सभक लेल नहि
राखल दृष्टि यैह व्यथा
की सभ करैत कतय नहि पढ़ैत चण्डाल किए भेलहुँ हे कक्का
ओतहि बैसल छलाह टुटियाँ पिताक समक्ष पहिनहिँ बुझने छलाह जे ककाकेँ छलन्हि भेल फ्रैक्चर
कहल पहिने समाचार तँ पुछिअन्हु चाहो आब अबैत होयत पैर हाथ धोआय अनिहन्हु !
कहल पैर टुटि गेल की कका पिता किछु बजितथि
बजलाह टुटियाँ

होइछ टूटब आ फ्रैक्चर एक्के नहि छलन्हि बूझल से कहल नहि चिंता करैत जाउ भगवान रक्ष रखलन्हि फ्रैक्चरे भेलन्हि
पैर टूटलन्हि नहि बाउ

बापकेँ नोशि नहि भेटलन्हि
यौ बुझलहुँ बुच्चुनक गप्प नहि करैत छी खिधांश
सुनू हम्मर साँच

समयक छलए नहि हमरो अभाव कहल हँ सुनाउ किछु भाषण-भाख

देखि पुछलियैक बुच्चुनकेँ हौ ई की उजरा नाँकसँ सुँघने जाइत छह कहलक काका खोखीँ होइत छल खोखीँक ई दवाइ अछि
औ बाबू बाप मरि गेलैक मोशकिल रहय नौँसि भेटब मुदा देखू बेटा सोँटैत अछि विक्स वेपोरब

नहि करैत छथि खिधांशसुनियन्हु हुनकर साँच


दहेज
ट्रेनमे भेटलन्हि घटक यौ फलना बाबू मुँह देखाबक जोग नहि छोड़ल आगाँ की-की बाजू
शांत बैसू भेल की?
अहाँक अछैत होइत की ? एहि गरीबक पुत्रीक कन्यादान संभव रहए की भाइजी?
औ अहाँ गछि लेलियन्हि भेल कोजगरा द्विरागमनो भेटलन्हि किछुओटा नहि वरागतकेँ कोनोटा इज्जत नहि राखलन्हि ओ
यौ अहूँ हद्द कएलहुँ मोन नहि की-की गछलियन्हि
ओहि सुरमे छलुहुँ बेसुध हँ मे हँ टा मिलेलियन्हि कहैत गेलाह ओ एक पर एक नहि कहि कऽ बुरबकी करितहुँ ? लक्ष्मीपात्र छथि से लक्ष्मी देलियन्हि आबो तँ जान बकसथु
मोटरसायकिल लय की करतथि देहो-दशा ताहि लेले चाही चेनक लेल बेचैन किए छथि
निचेन रहथु अछि बात ई
ताकि रहल छी पुत्रक हेतु तकैत रही अहींक आस औ छलहुँ कतय भाँसल अहाँ यौ घटकराज
कोनो मोटगर असामी आनि करू उद्धार तीनू बेटीक कर्जसँ उबारथि चाही एहन गुणानुरागी

बेचैन नहि निचैन रहू
दौगि-दौगि कय पोस्ट-ऑफिस भेलहुँ जखन अपस्याँत किएक तँ
मनीऑर्डरक छल आस
पुछल एखन धरि अछि नहि आयल मनीऑर्डर यौ प्रभास
चिट्ठीयेक संग पठेने छलथि पाइ चिट्ठी तँ समयेसँ पहुँचल टाका किए नहि बाउ ?
पोस्ट बाबू कए नेने रहथि हुनकर पाइसँ कोनो उद्यम

कहल चिट्ठी अबैत अछि बेटा अछि छट्ठू अहाँक पाइ पठबैत समयसँ तँ पहुँचैत मुदा पठबैत अछि छुच्छे संदेश

बेचैन किए छी की अप्पन उद्यम करब
हम अहाँक टाकासँ से बुझैत छी ?

दोसर गामक पोस्टबाबू फेकैत अछि चिट्ठी कमलाक धारमे हम छी बँटैत तेँ कहैत छी
जे भेटल अछि मात्र संदेश अहाँकेँ

होइ अछि जे हुम लुक्खी नहि छी
देखि हुनका (गारिपढ़ुआकेँ) देबय लागलथि गारि लुक्खीक नाम लय कय सात पुरखाकेँ देलन्हि तारि
ओ अनठेने ठाढ़
बूझल दैत अछि ई लुक्खीकेँ गारि
कहल अन्तमे (गारि पढ़निहार) हौ की छह होइत ? मूँह तँ देखू केहन अछि अप्पन लुक्खी नहि अपनाकेँ छी बुझैत?

थल-थल
कतबो दिन बीतल गद्दा जेकाँ थलथल पट्टी टोलक ओ रस्ता भेल आइ निपत्ता
माटि खसा कय लगा खरंजा पजेबाक दय पंक्ति नव-बच्चा सभ कोना झूलत ओहि गद्दा पर आइ ?
थल-थल करैत ओ रस्ता लोकक शोक कहाँ भेल बंद ? माँ सीते की अहाँ बिलेलहुँ ओहि दरारिमे करैत अंत

क्रिकेट-फील्डिंग
हम बाबा करू की पहिने बॉलिंग आ कि बैटिंग
बॉलिंग कय हम जायब थाकि बैटिंग करि खायब की मारि ?
पहिले दिन तूँ भाँसि गेलह से सुनह ई बात बौआ बैटिंग बॉलिंग छोड़ि-छाड़ि पहिने करह गऽ फील्डिंग हथौआ


मैट्रिक प्लक
हौ सभकेँ सुनलहुँ केने
बी.ए.
एम.ए.
मुदा बुझल नहि छल डिग्री दोसरो होइछ आनो-आनो
आइ एक पकठोस बटुक अछि आयल दलान पर पूछल कोन अंग्रेजिया डिग्री छी लेने मैट्रिक प्लक एहने किछु बाजल
हौ काका अछि की ओ गेल ओकर गेलाक बाद हम बाजब कारण अछि भेल ओ फेल

काँकड़ु
काँकड़ुगणकेँ छोड़ल एकटा ड्रममे नहि बन्न कएलक ऊपरसँ ढाकनसँ पुछल हम छी निःशंक अपने ?

यौ हमर टोलक ई अछि काँकड़ु सभ एक दोसराक टाँग खींचत बक्शा बन्द करबाक करू नहि चिन्ता खुजलो सभटा सभ ठामे रहत !


कैप्टन
वॉलीवॉलमे खेलाइत काल पप्पू भाइक होइछ हुरदंग खेलायब हम फॉरवार्डसँ नहि नीक खेलाइत छी
तँ आगू खेलनाइ देखाएब हम !

सभ सोचि विचार कय बनाओल कैप्टन पप्पू भायकेँ टीमक हारि देखि कय
खेलाइथ पछाति पाछुएसँ
फारवॉर्ड बनू अहीं सभ
नहि तँ मैच हारए जाएब आगुएसँ


दूध
महीस लागल छल लागय बहिन दाइक ठाम
पहुँचलहुँ आस लेने ठाँऊ भेल बैसलहुँ
दूध छल जाइत औँटल मुदा बहिन दाइ केँ गप्पमे
होसे नहि रहल
भोजन समाप्ते प्राय छल दूध राखल औँटाइते रहल
कहल हम हे बहिन दाइ अबैत रही रस्तामे देखल साँप एक बड़-पैघ एतयसँ ओहि लोहिया धरि नमगर दूध जतय अछि औँटाइत
ओह भैया बिसरलहुँ हम दूध रहल औँटाइत मोनमे बात ततेक छल घुमरल होश कहाँ छल आइ

अटेंडेंस
लेट किए अएलहुँ अहाँ अटेंडेंस लगाऊ
लाल बहादुर अयलाह जखन देखल छल क्रॉस लगाएल नहि देल ध्यान साइन कएल
पूछल मास्टर “लेट छी आयल? ऊपरसँ कए हस्ताक्षर क्रॉस नुकयबा लेल
मुदा नहि अछि ई मेटायल” !
लाल बहादुर कहल सुनू ई के करत निर्णय तखन हम कएल हस्ताक्षर पहिने क्रॉस लगाओल अहाँ कखन?

शो-फटक्का
की यौ बाबू शो-फटक्का बड्ड देने छी आइ पहिने कोनो दिन आबि बुझायब नहि जायब पड़ताय
दहो-दिशा दस दिन देत काज देत चालि संग चालिस साल बड़ा देने छी शो-फतक्का करू पहिने किछु काज

भारमे माटि
काबिल ठाकुर कहल जोनकेँ भारमे माटि उघि आनू दुहु दिशि भार रहत तँ बोझ दुनू दिशि जायत कम थाकब अहाँ आ माटि सेहो बेशी आओत
दियाद कलामी ठाकुर देखि ई
सोचल ओकर नोकसानक भाँज भरिया तोरा जान मारतह एके बोनिमे दोबर काज !

पटकि भार भरिया पड़ायल काबिल ठाकुर रहल मसोँसि लंघी मारि पएर खेंचि कय अप्पन कोन भल भेल हे भाइ ?

कंजूस
तीमन माँगल भनसियासँ सूँघा रहल छल गमक कहियो तँ अयबह हमरा लग देबह तखन उत्तर
शहर भगेलग पाइ कमेलहुँ माँगल पाइ किछु दैह बदला पाइक झनक सुनएबह गमकसँ नहि छल मोन भरैत


पाइ
देखू पाइ नहि लिअ अहाँ बेटा विवाहमे
कारण जे पुतोहु करत उछन्नड़ पाइ बाली आयत ज्योँ
पूछल
अहाँ सभ जे छलियैक लेने बेटा विवाहमे पाइ कहलन्हि अहूमे गप्प अछि दूटा
पहिल जे पाइ दबबैत अछि लोककेँ मुदा दोसर
जे दबा दैत छियैक हमरा सभ पाइकेँ
जे कहलहुँ गुनू तकरे हमरा सभपर नहि आउ दाइ गे !


असत्य
हम कक्कर काज नहि कएलहुँ बेर पर मुदा काज क्यो आयल? असत्य नहि कहियो छी बाजल सत्यक आस नहि छोड़लहुँ आ असत्यक बाट सेहो नहि ताकल
यौ अहाँ एहनो क्यो बजैत अछि असत्य नहि छी कहियो बाजल एहिसँ पैघ कोनो असत्य अछि ?

क्यो दुःखी कहलक तँ काज केलहुँ अपने जा कय तँ नहि पुछलहुँ ओक्कर काज अपने भय जाइत छै तँ उपकरि कय पुछैत छी
आ ज्योँ काजमे भाँगठ होइत छै तँ निपत्ता भय जाइत छी बेर पर एहने काज अहाँ अबैत छी !

हम आलांकारिक प्रयोग केलहुँ तेँ टाँग पकड़ैत जाइत छी ?


समुद्री
संस्कृतक पाठ नहि पढ़ल कोन पाठ अहाँ पढ़ने छी पंडित कहि बजबैत अछि सभ क्यो त्रिपुण्ड धारण कएने छी !
रहथि हमर पुरखा पंडित छोड़ू हमरा हमर इतिहास देखू मिथिलाक गौरव याज्ञवलक्य कपिल कणादक देश छी ई जैमिनीक गौतमक अछैतहुँ
पुछै छी पण्डित केहन छी
सामुद्रिक विद्या ज्योतिषिक जनय छी
नहि सुनल फेर बहस किए केने छी ? फेर छी हँसी करैत अहाँ भने भविष्यक छी हम हाल किए लेने !


गाम
तीस वर्ष नौकरी कइयो कय नहि बनल एकोटा मित्र
आस-पड़ोसी चिन्हैतो नहि अछि ऑफिसक पूछू नहि गति
गाम छोड़ि शहर छी आयल मुदा अछि मोन सात जनम घूरि नहि जायब गाम छोड़ि नगरक कोनो कोन


लोली
एहि शब्द पर भेल धमगिज्जर लोल हम्मर अछि नहि बढ़ल एतेक सुन्दर ठोढ़केँ छी अहाँ
लोली कहि रहल ?
हँसल हम नहि स्मृतिकेँ छोड़ि छी सकलहुँ अहाँ फैशन-लिपिस्टिक युगोमे लोलीकेँ खराब बुझलहुँ अहाँ !


तकलाहा दिन
विवाह दिन तकेबाक बात युवक बाजल पंडितजी अहूँ नहि बुझलहुँ अमेरिकाक प्रगति ओतय के दिन तकबैत अछि कहू ?
अहाँ अधखिज्जू विद्वान सुनू
हमर तकलाहा दिनमे विवाह कय झगड़ा-झाँटि करितहु बुझु जिनगी भरि पड़ै अछि निमाहय
ओतय बिनु दिनुक विवाह बात भोरसँ साँझेमे भय जाइछ समाप्त

बिकौआ
बड़ पैघ भोज उपनयनक
पछबारि पारक छथि नव-धनिक
बी.के.नाम नहि सुनल ओतय ठाढ़ ओ धनिक
आरौ बिकौआ छँ तूहीँ
दूटा पाइ भेल ओ भाइ कलकत्ता नगरीक प्रतापे नहि तँ मरितहुँ बिकौए बनि बी.के. नाम भेल आब जाए


गद्दरिक भात
गत्र- गत्र अछि पाँजर सन
हड्डी निकलल बाहर भेल भात धानक नहि भेटय तँ गद्दरियोक किए नहि देल
औ बाबू गहूमक नहि पूछू अछि ओकर दाम बेशी भेल गेल ओ जमाना बड़का बात-गप्पक नहि खेलत खेल

एकटा आर कोपर
गप्प पर गप्प प्रकाण्डताक विद्वताक
हम्मर पुरखा ई हाथीक चर्चा सिक्कड़ि-जंजीर टा जकर बाँचल
आँगनमे लालटेन नहि वरन् डिबिया टिमटिमाइत
लालटेन गाममे समृद्धिक प्रतीक !
फेर दलान पर गप्पक छोड़ एकटा कोपर दियौक आउर

महीस पर वी.आइ.पी.
छलहुँ हम सभ जाइत आर मारि लोकसभ पएरे-पएरे दुर्गास्थानमे छल कोनो मेला देखि हमरा सभकेँ बाट देल
मारि लोक छल ओतय छलहुँ महीस पर हम चारिटा वी.आइ.पी.ये ! ओकर सभक बात छल लौकिक ज्योँ हमरा लोकनिक आध्यात्मिक तेँ मूल-गोत्रक प्रभावे !!


गप्प-सरक्का
नहि गेलथि घूमय बूरि बुझैत अछि बड्ड छन्हि काज आइ-काल्हि तँ हिनकर चलती अछि हमरा सभतँ करैत छी बेकाजक काज !

फलनाक बेटा
भोज देलन्हि रेंजरक बाप आह कमेने अछि तँ
फलनाक बेटा !
भोज समाप्ति पर पान सुपारी लय देखल
रेंजरकेँ लोक
अओ कहू कोन बोनकेँ साफ कएल एहि भोजक लेल !

ट्रांसफर
नॉर्म्सक हिसाबे ट्रांसफर कएल हम अहाँक कहलन्हि ओ छल एकर कोन महाशय जरूरति
कएल सेवा हम अहाँक राति-दिन भोर धरि
अप्पन घरक काज छोड़ल अहाँक काजकेँ आगू राखल ताहिमे नहि हम लगायल नॉर्म्स नॉर्म्स केर नहि गप्प छल आयल
ट्रांसफरमे ई कतयसँ आबि गेल श्रीमान !

तखनहि रोकल हुनक ट्रांसफर औफिसर तत्काल

मजूरी नहि माँगह
भरि दिन खटि हम गेलहुँ माँगय अपन मजूरी कहलन्हि ज्योँ मजूरी मँगबह मारि देबह हम छूरी
कहल नहि बरू दिअ मजूरी मारू नहि परञ्च ई छूरी
जियब जखन हम करब काज कय आनो ठाम जी-हजूरी

दोषी
दोषी छह तोँ नहि छी मालिक
देलक दू सटक्का
हम छी दोषी बाजल तखन बता संगीक पता
साँझ धरि पड़ल मारि परञ्च नहि बता सकल ओ नाम सङ्गीक
कारण
छल नहि ओ दोषी नाम बतायत तखन कथीक


लंदनक खिस्सा
लन्दनक साउथ हॉलमे शहीद भिंडरा लेस्टरमे शहीद सतवंत-बेअंत

लेस्टरमे सभ अपने लोक नहि भेटैछ अंग्रेज एकोटा भेटने हमही मँगैत जाइत छी वीसापासपोर्ट
सेहो अंग्रेज सभसँ सभटा
होयत खिधांश सुनू तखनो
नहि मानब हम गुरुकुलकेँ
इतिहाससँ नहि लेब सबक
तँ आएत पुनः ओ घुरि
अंग्रेजक नाम कतेक दिन धरि लेब
सभ अछि गेल बुझि

प्रथम जनवरी
प्रथम जनवरी देखल एक भोरे-भोर दूधक लेल लागि लाइन जखन आयल बेर
खुशी-प्रफुल्लित पाओल फेर

मुदा रस्ताक बीचहि खसल दूध ओह भेल अपशकुन बहुत
सुनि खौँजाइ कहल नहि से पता नहि शकुने होअय जे
कहल हँ-हँ शकुने थीक माँ पृथ्वीकेँ लागल अर्घ्य
प्रथमे पायल प्रथमक भोग हरतीह सभटा दुःख आ रोग

ऑफिसमे भरि राति बन्द
साँझ परल सभ उठल गेल अप्पन-अप्पन घर बाबूजी रहथि फाइलमे करैत अपनाकेँ व्यस्त
चौकीदार नहि देलक ध्यान केलक बन्द ओहि राति हमरा सभ चिंतित भेलहुँ कएलहुँ चिंतित कछमछ धरि प्राति
भोरमे जखन दरबान खोलि देखलक हुनका ऑफिसमे माफी माँगि औँघायल पहुँचेलक घर जल्दीसँ
एक बूढ़ी हमर पड़ोसी कहलन्हि कोना रहल भेल हमरा सभ तँ नहि तकितहुँ बाट राति भरिमे भय जयतहुँ अपस्याँत बेटा सभ लजकोटर मुँहचूरू छन्हि हिनक हे दाइ (हमर माइ)

हॉलीक्रॉस स्कूल दरभंगामे भेल छल घटित एक बात
गर्मी तातिलमे बच्चाकेँ बन्द कएल दरबान
महिना भरि खोजबीन भेल नहि चलल पता कथूक स्कूल खूजल देखल बच्चाक लहाश सभ हुजूम
बाप ओकर मुँहचुरू छल स्कूलसँ ज्योँ बच्चा नहि आयल सुतले छोड़ि गएल तखन गेल रहय पछतायल

बच्चा देबाल पर लिखने रहय अपन कष्टक बखान पानि भोजन बिना भेलय ओकर प्राणांत


नानीक पत्र
पत्र आयल मोन ठीक नहि लक्ष्मी अहाँ देखि जाउ एहि बेर नहि बाँचब
नहि ई गप बुझु बाउ

पेटक अलसर अछि खयने चटकार सँ खाओल जेना मसल्ला अंतिम क्षण देखबाक बड्ड अछि मोन चिट्ठी लिखबाले अयलाह तेहल्ला

क्यो नहि पहुँचेलकन्हि लक्ष्मीकेँ कहल चिट्ठीमे अछि भाड़भीस कएल
एक टा आर चिट्ठी आएल जे माय गेलीह देह छोड़ि
लक्ष्मीक बेटा बोकारि पारि कानय कहलक छी हम सभ असहाय
नहि अयतीह हमर लक्ष्मी मायक मुँह देखय अंतिम बेर नाम रटैत अहाँक ई बूढ़ि
गुजरि गेलि जग छोड़ि
अपन घरक हाल की कहू भगवाने छथि सहाय घरघुस्सू सभ घरमे अछि दैव कृपा हे दाय

केवाड़ बन्द
बाहरसँ आबयमे भेल लेट छोट भाय कएल केवाड़ बन्द किछु कालक बाद जखन खुजल भैय्या कहल हे अनुज दुःखी छी हम पाड़ि ई मोन अहिना जखन छलहुँ हम सभ बच्चा पिता कएलन्हि घर बन्द
कनेक देरी होयबाक कारण पुछलन्हि नहि ओ तुरंत
तुरंत काका सेहो बुझाओल बाल विज्ञानक द्वंद जे भेल से बिसरि शुरू करू नव जीवन स्वाच्छंद

जेठांश
छोट भायकेँ देल परती
आ राखल सेहो जेठांश
मरल जखन कनियाँ तखन भोजक कएल वृत्तांत

कहल नमहर भोज करू पाइ नहि तकर ने बहन्ना जकरे कहबय से दय देत चीनी चाउर सलहाना
खेत बेचि कय हम कएलहुँ श्राद्ध पिताक ओहि बेर
अपना बेरमे नहि चलत बहन्ना फेर बुझू एक बेर

सादा आकि रंगीन
ब्लैक एण्ड ह्वाइटक गेल जमाना सादा आकि रंगीन
दरिभंगा काली मंदिर लगक
लस्सी बलाक ई मेख-मीन
जखन बूझि नहि सकलहुँ तखन कहल एकगोट मीत सादा भेल सादा आ भांगक संग भेल रंगीन


जोंकही पोखरिमे भरि राति
सुनैत छलहुँ जे बड़बड़ियाबाबू साहेबक लगान देलामे ज्योँ होइत छल लेट भरि राति ठाढ़ कएल जोंकही पोखरिमे
बीतल युग अयलाह फेर जखन हाथी पर लेबाक हेतु लगान-लहना जहिना गारि-गूड़ि दैत हाथी पर छूटल टोलक-टोल मुँह दुसना
जमीनदारी खतम भेलो पर सोचल किछु ली असूलि मुदा लोक सभ बुधियारी कएल नहि अएलाह ओ घूरि


गैस सिलिण्डरक चोरि
गेलहुँ रपट लिखाबय भेल छल सिलिण्डरक चोरि मोंछ बला थानेदार बजलाह बूड़ि बुझैत छी हमरा सभकेँ डबल सिलिनडर चाही एफ. आइ. आर. सस्ता नहि नहि सस्ता अछि एतेक हे भाइ
हम कहल डबल सिलेण्डर तँ अछिये हमरा
अच्छा तँ
तेसर सिलेण्डर लेबाक अछि देरी ?
ताकल कतय चोरकेँ अहाँ अहाँक तकनाइ अछि जेना चलैत अछि कोल्हूक बरद
भरि दिन घुमैछ नहि बढ़ैछ एको डेग अहँ नहि करू सैह प्रगतिक नाम पर एहि बेर
स्कूटरक चोरिक बेर कहलक इंस्योरेंसक पाइ चाही कहू अहाँसँ कोर्टमे भऽ पाएत देल अहाँसँ गबाही

फेरी पड़ि जायत अहाँकेँ पुनःप्रात होएत कोर्टमे जायब उलटा निर्णयो भऽ जायत बूझि फेर से आयब

संग गेल ड्राइवर कहलक नोकरी छै एकरे ठीक पाइयो अछि कमाइत करैत रंगदारी
फेकैत पानक पीक


फैक्स
फैक्टरी पहुँचि कहल करू सर्च वारंट पर साइन मालिक कहल रुकू किछु काल धरि फोन करय छी आइ

ट्रांसफरक ऑर्डर आयल रिलीविङगक संगहि अफसर निकलल ओतयसँ वारंट बिना एक्सीक्यूट केनहि

दीया-बाती
आयल दीया बाती कतेक अमावस्या अछि बीतल जकर अन्हारमे लागल चोट कतेक जीव थकुचायल पएरहि अन्हारक छल छाती
दीया बाती अनलक प्रकाश ज्ञान-ज्योतिक अकाश नमन करय छी हम एहि बातक अंधकार-तिमिर केर होबय नाश

इटालियन सैलून
घर भेल समस्तीपुर दिल्लीमे छी आयल खोलि सैलून इटालियन अयलहुँ कमाय लेल

पुलिसक रोक देखि कय गेलहुँ गाम घुरि पुनः छी आयल सैलून कतय बानाओल?
ईटा पर जे छी अहाँ बैसल सैह कहबैछ इटालियन
अहू पर अछि पुलिसक मौखिक-रोक सेहो धरि नहि बूझल अहाँ ?


शव नहि उठत
गामक कनियाँ मूइलि शव अँगनामे राखल सभ युवा कएने अछि नगर दिशि पलायन जे क्यो रहथि से घुमैत रहथि ब्लॉक दिशि साँझमे अयलाह देखल कहल भेलीह मुइल
गामपर क्यो नहि उठेलक शवकेँ किएक ? हम कोना छुबितहुँ भाबहु ओ होयतीह मुइल पर भाबहु की भैसुर केलहुँ अतत्तह समय बदलल नहि बदलल ई गाम हमर

अतिचार
तीन साल छल अतिचार नहि होयत एहि कारण बियाह पंडितबे सभ बुझथुन्ह छन्हि पतरा सभ जे बिकाइत पकड़त सभ बनारसी पतराकेँ सेहो नहि बिकाओत
समय अभावेँ होयत ई ज्योँ अतिशय भऽ जायत

रबड़ खाऊ
रबड़ खाऊ आ वमन करू चट्टी अपचनीय तथ्य सभ देखल भ्रात बड़ छल बुधियार केलक घटकैती शुरू जखन भेल सिद्धांत विवाद विवाह ठीक भेलाक बादक दोसर सिद्धांत लड़का विवाह कालमे बिसरलाह भाषण नव सिद्धांतक सृजन कय केलन्हि सम्मार्जन

बाजा अहाँ बजाऊ
मेहनति अहाँ करू फल हमरा दिअ
चित्र अहाँ बनाऊ आवरण सजाऊ हमर किताबक
नृत्य हम करू बाजा अहाँ बजाऊ
कृति हमर रहत मेहनति करब अहाँ आइसँ नहि ई बात
अछि तहियासँ जहियासँ शाहजहाँ

पिण्डश्याम
दहेज विरोधी प्रोफेसर केर सुनू ई बात पुत्री विवाहमे कएल एकर ढेर प्रचार
पुत्रक विवाहमे बदलि सिद्धांत वधू रहय श्याम मुदा मारुति भेटय श्वेत सिद्धांतक मूलमे
छोड़ू विवेक !

पाँच पाइक लालछड़ी
परिवार छल चला रहल बेचि भरि दिन पाँच पाइक लालछड़ी दस पाइमे कनेक मोट लपेटन
नहाइत साँझमे ठेला चला कय आयल बेटाकेँ पढ़ायल आइ.आइ.टी.मे पढ़ि निकलल कएलक विवाह जजक छलि ओ बेटी
पिता कोन कष्टसँ पढाओल गेल बिसरि पिताक स्मृतिसँ दूर नशा-मदिरामे लीन कनियाँ परेशान लगेलन्हि आगि झड़कलि ओकरा बचेबामे ओहो गेला झड़कि

कनियाँ तँ गुजिरि गेलीह ठामे
मुदा ओ तीन मास धरि कष्ट काटि पश्चात्ताप कए मुइलाह बेचारे

चोरुक्का विवाह
सिखायब
हिस्सक छूटत नहि आनब कनियाँकेँ भायक माथ टूटत !
भेल धमगिज्जर सालक साल बीतल युवक-युवती दुनू भेल चोर विवाहक कैदी
नहि छल कोनो हाथ परंच छल सजा पबैत
भागल घरसँ युवक आब पछतायल घरबारी मुदा की होयत आब ओ समाजक व्यभिचारी

एलेक्शनक झगड़ामे भाय-भायकेँ मारल चोरुक्का विवाहक घटनामे ओकरा दोहरायल !


भ्रातृद्वितीया
कय ठाँऊ बैसलि आसमे छलि भाय आओत

आँखिक नोर छल सुखायल सालमे एक बेर छल अबैत चण्डाल
कनियाँक गप पर
सेहो क्रम ई टूटल
कय ठाँऊ बैसलि धोखरि अरिपन विसर्जित दिन बीतल छल साँझ आयल


नव-घरारी
साँप काटल नन्दिनीकेँ नव घरारी लेलक खून टोलक घरारी छोड़ू जुनि !
ई विशाल जनसंख्या एतय छल बनल एकटा काल ई नव-घरारी लेलक प्राण टोलक घरारी साबिकक डीह परञ्च अछि छोट आब की ?
खून लेलक आब ई बनि गेल अख्खज नव घरारी होयत छोट किछु काल अनन्तर


रिक्त
पाँचम वर्गसँ सातम वर्गमे तड़पि गेल छलहुँ हम छट्ठा वर्गक अनुभव अछि रिक्त बा आ बाबा जन्मक पहिनहि
प्राप्त कएलन्हि मृत्यु वात्स्ल्यक अनुभव भेल रिक्त माँ एके बहिनि छलि तेँ मौसी-मौसाक अनुभवो नहि ईहो रहल रिक्त
क्यो कहैत अछि जे छठामे पढ़ैत छी बा आ बाबाक संग घुमैत छी मौसी-मौसाक काज उद्यममे जाइत छी तँ हम कहैत छी जे ई कोन संबंध कोन वर्ग अछि ई छोड़ि सकैत छी
उत्तर भेटैछ अहाँ नहि बुझब
मुदा नव संबंध नब नगर नव भाषा नवीन पीढ़ीकेँ कोना बुझायब ओ कोना बुझत ? ओ तँ नहि बूझि सकत काका-काकी नहि बूझत दीया-बाती खटैत दौड़ैत आ नहि घुरि आओत ककरा बुझायब आ के बूझत ?

प्रवासी
संगहि काटल घास महीस संगे चरेलहुँ पुछैत छी गहूम ई पाकत कहिया?
दू दिन दिल्ली गेलहुँ सभटा बिसरलहुँ ईहो बिसरि गेलहुँ जे धान कटाइछ कहिया ?


वेद
वेद वाक्य परम सत्य संस्कृत साहित्य अति उत्तम करैत छी अहाँ वक्त्तव्य मुदा अहाँ की अहाँक पुरखा मरि गेलाह बिन सुनने वेद वाक्य
बिन पढ़ने संस्कृत

यौ अहाँ नहि पढ़लहुँ अहाँ अनका अनधिकार बनेबाक चेष्टा कएलहुँ अहाँ

छी वेदक अप्रेमी नहि अछि क्षमता वेदक पक्ष आकि विपक्षमे बजबाक वेद वाक्य सत्य
एकरा बनेने छी अहाँ फकड़ा

चोरि
गेलहुँ गाम आ एम्हर आयल फोन समाचार चोरिक छुट्टी होयबला छल समाप्त मुदा चोरक गणना छल ठीक

आबयसँ एक्के दिन पहिने लगेलन्हि घात तोड़ि कय केबाड़ उधेसल घर-बार नहि पाबि कोनोटा चीज घुरल माथ पीटि
भोरमे पड़ोसी कएलन्हि डायल सय पुलिस आयल हारि थाकि कय पड़ोसीसँ किनबाय दू टा अतिरिक्त ताल (पुलिस महराज अपन घरक हेतु एकटा बेशीये कऽ) चाभी लेलन्हि अपन काबिजमे
चोर हरबड़ीमे छल चलि गेल मुदा पुलिस महाशयक हाथ चाभी आएल आ शो-केशक चानीक नर्त्तकी गुम भेल
चोरकेँ छल डर गेटक दरबानक से छलाह ओ गहनाक आ नकदीक ताकिमे
मुदा पुलिस महाराज दय राब दौब दरबानहुँकेँ निकललाह चोरि कय बरजोड़ीसँ

होली
धुरखेलक कादो-माटिसँ रहथि अकच्छ रंग अबीर भने आयल मुदा लगैछ टका
साफ-सुथड़ा बुझैत छलहुँ एकरा मुदा निबंध निकलैत अछि रंगक केमिकलक विषयमे विषय अछि पुरनके
वएह छल ठीक यौ कका

दारू पिनहार सोमरसक चर्चा करैत नहि अघाइत छथि देवतो पिबैत रहथि ओकरा पुरनका नामसँ
अछि होली
मित्रता बढ़ेबासँ बेशी घटा रहल अछि आइ काल्हि ई


बुद्ध
हृदय लग अछि जेबी से जखन रहय खाली मोन कोना रहत प्रसन्न बुद्ध सेहो कहि गेल छलाह ई
मुम्बइमे सूप मँगलहुँ पुछलक अहाँ सभमे जैनी कैकटा छी देत लहसुन की नहि रहय तात्पर्य आपद्काले रहि गेल अछि आइ काल्हि सदिखन
मुम्बइ सेल टैक्समे करैत छथि भरि दिन काज तैँ प्रोननशियेशन भेल छन्हि मराठी
“छी हमहुँ इलाकेक लोक उत्पाद विभाग अछि केन्द्रीय सरकार संपर्क बाहरीसँ बेशी कनियाँ करइ छथि ओतहि काज हुनकर बोली छन्हि देशी”
छत्तीसगढ़क छत्तीस घंटाक यात्रा उत्तर-मध्य क्षेत्रक स्तूपक बंगाल - पंजाब घूमल बंगाली कहलन्हि सुनु जे ज्योँ बंगाली जायत संग करत कानूनी बात सरदारजी कहलन्हि रोड पर रेड लाइट रहलो करू पार
सोझाँसँ अबैत छल एकटा सरदार
कहल करत आब ई अराड़ि

सक्सेना कहलक एक मैथिलकेँ- मैथिल अछि मैथिलक परम शत्रु हम कहल सक्सेनाकेँ हे
जुनि करू हुनका दूरि काज सभटा झट कराऊ जुनि भड़काऊ

बुद्धक भूमिसँ घुरि आयल छथि दिल्लीक सड़क पर एहि बेर पाटलिपुत्र भारतक रहय राजधानी दिल्ली बनल राजधानी आब छलहुँ ततय पुनि फेर
कोन जुलुम हम कएल आबि एतए ?
कणाद कपिल गौतम जेमिनी देतथि ज्योँ नहि काज कहलन्हि ई ठीके हृदय लग जेबी देने अछि सीबि
सौँसे देश घुमलहुँ एहि पेटक लेल
जेबीमे पाइ नहि रहत उपासे करब हम भाइ
जेबीक लग अछि हृदय तखन से कोना रहत प्रसन्न
जे रहत ई खाली ? बुद्ध सेहो कहि गेलाह ई !


कोठिया पछबाइ टोल
बूढ़ छलाह मरैक मान पुत्र पुछल अछि कोनो इच्छा जेना मधुर खयबाक मोन नीक कपड़ा पहिरबाक मोन फल-फूल खयबाक मोन
कोठाक घर बनयबाक इच्छा पूर्ण भय पायत किछु सालक बादे कहू कोनो छोट-मोट इच्छा पूर करब हम ठामे

हौ कहितो लाजे होइत अछि पछिबारि टोल कोठियाक रस्ता दुरिगरो रहला उत्तर ओकरे धेलहुँ जाइत दुर्गास्थान कारण टोल छल ओ अडवांस्ड
मोनमे लेने ई इच्छा जाइत छी जे ओहि टोलमे होइत विवाह
कहैत तावत हालत बिगड़ि गेलन्हि आ ओ बूढ़ स्वर्गवासी भेलाह

मरलोपर मोह संग जाइत अछि
इच्छाक नियंत्रण अछैत

बुच्ची-बाउ
बुच्ची-बाउ
किताब बेचि कए
कमाइत अहाँकेँ देखि
सड़कक चौबटियापर
अपन मैथिली भाषा बजैत
भरि जाइत अछि मोन गर्वसँ सेहो
चोरि तँ नहि कऽ रहल छी
मेहनतिसँ कमा रहल छी
ई मजूरक टोली
राज करत दिल्लीपर

मारीशस आ वेस्ट इन्डीजमे
एहिना हेंजक-हेंज चलैत रहए मजूरक टोली

सभ ठाम अहाँक खिधांश
कारण अहाँ मँगैत छी मात्र काज
नहि मँगैत छी दरमाहा
ई बिहारी सभ रेट कम कए देलक अछि !

एहि खिधांशमे हम देखि रहल छी भय
खेत बेचि बनल सेठ सभमे
बड़का गाड़ीमे शीसा खोलि बाजा बजबैत छथि
जे सभ !

गामक गाम उपटि
माइलक माइल पएरे चलैत
मुदा ओहू कनी सन दरमाहासँ बचा कए
गाम पठेबा लेल मनीऑर्डरक लाइनमे लागल
बेर-बेर फॉर्म अछि भरबैत ओ किरानी
मूरख कहैत
खौंझाइत

ओहि किरानीक खौँझाइत स्वर
छै ओकर हारिक प्रतीक
मात्र एक पीढ़ीक अछि गप
करत अहाँ बाद राज
अगिला पीढ़ी
एहि दिल्लीपर

आकक दूध
मोन पड़ल चोरि केर बात चोरक आँखिमे आकक पात पातक दूध पड़ला संता चोर सोचलक आब आँखि गेल छोड़ि
कहलक मोने बुद-बुदाय करु तेल नहि देब मोर भाय
अर्कक दूधक संग करु तेल बना देत सूरदासक चेल
गौवाँ केलन्हि बुरबकी एहि बेर चोरक बुनल जालक छल फेर तेल ढ़ारि पठौलन्हि चोरकेँ गाम

मुदा रसायन भेल विपरीत चोरक आँखि बचि गेल हे मीत गौआँक काजक हम लेब नहि पक्ष मात्र सुनायल रटन्त विद्याक विपक्ष

केसर श्वेत हरित त्रिवार्णिक
केसर श्वेत हरित त्रिवार्णिक
मध्य नील चक्र अछि शोभित
चौबीस कीलक चक्र खचित अछि
अछि हाथ हमर पताका ई,
वन्दन, भारतभूमिक पूजन,
करय छी हम, लए अरिमर्दनक हम प्रण।

अहर्निश जागि करब हम रक्षा
प्राणक बलिदान दए देब अपन
सुख पसरत दुख दूर होएत गए
छी हम देशक ई देश हमर

अपन अपन पथमे लागल सभ
करत धन्य-धान्यक पूर्ति जखन
हाथ त्रिवार्णिक चक्र खचित बिच
बढ़त कीर्तिक संग देश तखन।

करि वन्दन मातृभूमिक पूजन,
छी हम, बढ़ि अरिमर्दनक लए प्रण।

समतल पर्वत तट सगरक
गङ्गा गोदावरी कावेरी ताप्ती,
नर्मदाक पावन धार,सरस्वती,
सिन्धु यमुनाक कातक हम
छी प्रगतिक आकांक्षी

देशक निर्माणक कार्मिक अविचल,
स्वच्छ धारक कातक बासी,
कीर्ति त्रिवार्णिक हाथ लेने छी,
वन्दन करैत माँ भारतीक,
कीर्तिक अभिलाषी,
आन्हीक बिहारिक आकांक्षी।

*ई पद्य समर्पित अछि १६ बलिदानीक नाम जे मुम्बईमे देशक सम्मानक रक्षार्थ अपन प्राणक बलिदान देलन्हि।१. एन.एस.जी. मेजर सन्दीप उन्नीकृष्णन्, २. ए.टी.एस.चीफ हेमंत कड़कड़े, ३. अशोक कामटे, ४. इंस्पेक्टर विजय सालस्कर, ५. एन.एस.जी हवलदार गजेन्द्र सिंह "बिष्ट", ६. इंस्पेक्टर शशांक शिन्दे, ७. इंस्पेक्टर ए.आर.चिटले, ८. सब इंस्पेक्टर प्रकाश मोरे, ९. कांस्टेबल विजय खांडेकर, १०. ए.एस.आइ. वी.अबाले, ११. बाउ साब दुर्गुरे, १२. नानासाहब भोसले,१३. कांसटेबल जयवंत पाटिल, १४. कांसटेबल शेघोष पाटिल, १५. अम्बादास रामचन्द्र पवार आ १६. एस.सी.चौधरी

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