भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

(c) २०००-२०२२ सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि।  भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल http://www.geocities.com/.../bhalsarik_gachh.html , http://www.geocities.com/ggajendra   आदि लिंकपर  आ अखनो ५ जुलाइ २००४ क पोस्ट http://gajendrathakur.blogspot.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html   (किछु दिन लेल http://videha.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html   लिंकपर, स्रोत wayback machine of https://web.archive.org/web/*/videha   258 capture(s) from 2004 to 2016- http://videha.com/  भालसरिक गाछ-प्रथम मैथिली ब्लॉग / मैथिली ब्लॉगक एग्रीगेटर) केर रूपमे इन्टरनेटपर  मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितक रूपमे विद्यमान अछि। ई मैथिलीक पहिल इंटरनेट पत्रिका थिक जकर नाम बादमे १ जनवरी २००८ सँ "विदेह" पड़लै। इंटरनेटपर मैथिलीक पहिल उपस्थितिक यात्रा विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि, जे http://www.videha.co.in/   पर ई प्रकाशित होइत अछि। आब “भालसरिक गाछ” जालवृत्त 'विदेह' ई-पत्रिकाक प्रवक्ताक संग मैथिली भाषाक जालवृत्तक एग्रीगेटरक रूपमे प्रयुक्त भऽ रहल अछि। विदेह ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA

 

(c)२०००-२०२२. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। सह-सम्पादक: डॉ उमेश मंडल। सहायक सम्पादक: राम वि‍लास साहु, नन्द विलास राय, सन्दीप कुमार साफी आ मुन्नाजी (मनोज कुमार कर्ण)। सम्पादक- नाटक-रंगमंच-चलचित्र- बेचन ठाकुर। सम्पादक- सूचना-सम्पर्क-समाद- पूनम मंडल। सम्पादक -स्त्री कोना- इरा मल्लिक।

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स्थायी स्तम्भ जेना मिथिला-रत्न, मिथिलाक खोज, विदेह पेटार आ सूचना-संपर्क-अन्वेषण सभ अंकमे समान अछि, ताहि हेतु ई सभ स्तम्भ सभ अंकमे नइ देल जाइत अछि, ई सभ स्तम्भ देखबा लेल क्लिक करू नीचाँ देल विदेहक 346म आ 347 म अंक, ऐ दुनू अंकमे सम्मिलित रूपेँ ई सभ स्तम्भ देल गेल अछि।

“विदेह” ई-पत्रिका: देवनागरी वर्सन

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Sunday, July 5, 2009

प्रबन्ध-निबन्ध-समालोचना -भाग 2 - गजेन्द्र ठाकुर

मैथिली हाइकू/ हैकू/ क्षणिका
हैकू सौंदर्य आ भावक जापानी काव्य विधा अछि, आ जापानमे एकरा काव्य-विधाक रूप देलन्हि कवि मात्सुओ बासो १६४४-१६९४। एकर रचनाक लेल परम अनुभूति आवश्यक अछि। बाशो कहने छथि, जे जे क्यो जीवनमे ३ सँ ५ टा हैकूक रचना कएलन्हि से छथि हैकू कवि आ जे दस टा हैकूक रचना कएने छथि से छथि महाकवि। भारतमे पहिल बेर १९१९ ई. मे कविवर रवीन्द्रनाथ ठाकुर जापानसँ घुरलाक बाद बाशोक दू टा हैकूक शाब्दिक अनुवाद कएले रहथि।

हैकूक लेल मैथिली भाषा आ भारतीय संस्कृत आश्रित लिपि व्यवस्था सर्वाधिक उपयुक्त्त अछि। तमिल छोड़ि शेष सभटा दक्षिण आ समस्त उत्तर-पश्चिमी आपूर्वी भारतीय लिपि आ देवनागरी लिपि मे वैह स्वर आ कचटतप व्यञ्जन विधान अछि जाहिमे जे लिखल जाइत अछि सैह बाजल जाइत अछि। मुदा देवनागरीमे ह्रस्व 'इ' एकर अपवाद अछि, ई लिखल जाइत अछि पहिने, मुदा बाजल जाइत अछि बादमे। मुदा मैथिलीमे ई अपवाद सेहो नहि अछि- यथा 'अछि' ई बाजल जाइत अछि अ ह्र्स्व 'इ' छ वा अ इ छ। दोसर उदाहरण लिअ- राति- रा इ त। तँ सिद्ध भेल जे हैकूक लेल मैथिली सर्वोत्तम भाषा अछि। एकटा आर उदाहरण लिअ। सन्धि संस्कृतक विशेषता अछि? मुदा की इंग्लिशमे संधि नहि अछि? तँ ई की अछि- आइम गोइङ टूवार्ड्सदएन्ड। एकरा लिखल जाइत अछि- आइ एम गोइङ टूवार्ड्स द एन्ड। मुदा पाणिनि ध्वनि विज्ञानक आधार पर संधिक निअम बनओलन्हि, मुदा इंग्लिशमे लिखबा कालमे तँ संधिक पालन नहि होइत छै, आइ एम केँ ओना आइम फोनेटिकली लिखल जाइत अछि, मुदा बजबा काल एकर प्रयोग होइत अछि। मैथिलीमे सेहो यथासंभव विभक्त्ति शब्दसँ सटा कए लिखल आ बाजल जाइत अछि।

जापानमे ईश्वरक आह्वान टनका/ वाका प्रार्थना ५ ७ ५ ७ ७ स्वरूपमे होइत छल जे बादमे ५ ७ ५ आ ७ ७ दू लेखक द्वारा लिखल जाए लागल आ नव स्वरूप प्राप्त कएलक आ एकरा रेन्गा कहल गेल। रेन्गाक दरबारी स्वरूपक गांभीर्य ओढ़ने छल आ बिन गांभीर्य बला स्वरूप वणिकवर्गक लेल छल। बाशो वणिक वर्ग बला रेन्गा रचलन्हि। रेन्गाक आरम्भ होक्कुसँ होइत छल आ हैकाइ एकर कोनो आन पंक्त्तिकेँ कहल जा सकैत छल। मसाओका सिकी रेन्गाक अन्तक घोषणा कएलन्हि १९म शताब्दीक प्रारम्भमे जा कए आ होक्कु आ हैकाइ केर बदलामे हैकू पद्यक समन्वित रूप देलन्हि। मुदा बाशो प्रथमतः एकर स्वतंत्र स्वरूपक निर्धारण कए गेल छलाह।
हैकू निअम १.
हैकू १७ अक्षरमे लिखू ।ई तीन पंक्त्तिमे लिखल जाइत अछि- ५ ७ आ ५ केर क्रममे। अक्षर गणना वार्णिक छन्दमे जेना कएल जाइत अछि तहिना करू।
वार्णिक छन्दक वर्णन क्रममे- संयुक्त्ताक्षरकेँ एक गानू आ हलन्तक/ बिकारीक/ इकार आकार आदिक गणना नहि करू।
साहित्यक दू विधा अछि गद्य आ पद्य।छन्दोबद्ध रचना पद्य कहबैत अछि-अन्यथा ओ गद्य थीक। छन्द माने भेल-एहन रचना जे आनन्द प्रदान करए।
छन्द दू प्रकारक अछि।मात्रिक आ वार्णिक। वेदमे वार्णिक छन्द अछि।
वार्णिक छन्दक परिचय लिअ। एहिमे अक्षर गणना मात्र होइत अछि। हलंतयुक्त अक्षरकेँ नहि गानल जाइत अछि। एकार उकार इत्यादि युक्त अक्षरकेँ ओहिना एक गानल जाइत अछि जेना संयुक्ताक्षरकेँ। संगहि अ सँ ह केँ सेहो एक गानल जाइत अछि।द्विमानक कोनो अक्षर नहि होइछ।मुख्यतः तीनटा बिन्दु मोन राखू-
१. हलंतयुक्त्त अक्षर-० २. संयुक्त अक्षर-१ ३. अक्षर अ सँ ह -१ प्रत्येक।
आब पहिल उदाहरण देखू :-
ई अरदराक मेघ नहि मानत रहत बरसि के=१+५+२+२+३+३+१=१७ मात्रा
आब दोसर उदाहरण देखू ; पश्चात्=२ मात्रा ; आब तेसर उदाहरण देखू
आब=२ मात्रा ; आब चारिम उदाहरण देखू स्क्रिप्ट=२ मात्रा
हैकू निअम २.
व्यंग्य हैकू पद्यक विषय नहि अछि, एकर विषय अछि ऋतु। जापानमे व्यंग्य आ मानव दुर्बलताक लेल प्रयुक्त विधाकेँ "सेर्न्यू" कहल जाइत अछि आ एहिमे किरेजी वा किगो केर व्याकरण विराम नहि होइत अछि।
हैकू निअम ३.
प्रथम ५ वा दोसर ७ ध्वनिक बाद हैकू पद्यमे जापानमे किरेजी- व्याकरण विराम- देल जाइत अछि।
हैकू निअम ४.
जापानीमे लिंगक वचन भिन्नता नहि छै। से मैथिलीमे सेहो वचनक समानता राखी, सैह उचित होएत।
हैकू निअम ५.
जापानीमे एकहि पंक्त्तिमे ५ ७ ५ ध्वनि देल जाइत अछि। मुदा मैथिलीमे तीन ध्वनिखण्डक लेल ५ ७ ५ केर तीन पंक्त्तिक प्रयोग करू। मुदा पद्य पाठमे किरेजी विरामक ,जकरा लेल अर्द्धविरामक चेन्ह प्रयोग करू, एकर अतिरिक्त्त एकहि श्वासमे पाठ उचित होएत।
हैकू निअम ६.
हैबुन एकटा यात्रा वृत्तांत अछि जाहिमे संक्षिप्त वर्णनात्मक गद्य आ हैकू पद्य रहैत अछि। बाशो जापानक बौद्ध भिक्षु आ हैकू कवि छलाह आ वैह हैबूनक प्रणेता छथि। जापानक यात्राक वर्णन ओ हैबून द्वारा कएने छथि। पाँचटा अनुच्छेद आ एतबहि हैकू केर ऊपरका सीमा राखी, तखने हैबूनक आत्मा रक्षित रहि सकैत अछि, नीचाँक सीमा ,१ अनुच्छेद १ हैकू केर, तँ रहबे करत। हैकू गद्य अनुच्छेदक अन्तमे ओकर चरमक रूपमे रहैत अछि।
हमर एकटा हैबून
सोझाँ झंझारपुरक रेलवे-सड़क पुल। १९८७ सन्। झझा देलक कमला-बलानक पानिक धार, बाढ़िक दृश्य। फेर अबैत छी छहर लग। हमरा सोझाँमे एकठामसँ पानि उगडुम होइत झझाइत बाहर अछि अबैत। फेर ओतएसँ पानिक धार काटए लगैत अछि माटि। बढ़ए लगैत अछि पानिक प्रवाह, अबैत अछि बाढ़ि। घुरि गाम दिशि अबैत छी। हेलीकॉप्टरसँ खसैत अछि सामग्री। जतए आएल जलक प्रवाह ओतए सामग्रीक खसेबा लए सुखाएल उबेर भूमिखण्ड अछि बड़ थोड़। ओतए अछि जन- सम्मर्द। हेलीकॉप्टर देखि भए जाइत अछि घोल। अपघातक अछि डर । हेलीकॉप्टर नहि खसबैत अछि ओतए खाद्यान्न। बढ़ि जाइत अछि आगाँ। खसबैत अछि सामग्री जतए बिनु पानि पड़ैत छल दुर्भिक्ष, बाढ़िसँ भेल अछि जतए पटौनी। कारण एतए नहि अछि अपघातक डर। आँखिसँ हम ई देखल। १९८७ ई.।
पएरे पार
केने कमला धार,
आइ विशाल



श्रीमति ज्योति झा चौधरीक इंग्लिश हैकू हमर मैथिली अनुवाद सहित।
(१) Illusion of eye
Colourful appearance of
Rainbow in the sky
आँखिक भ्रम,
आभास वर्णमय
पनिसोखा द्यौ
(२) Rainbow declares
Beginning of bright days and
End of rainy ones
पनिसोखाक,
शुभ्र दिन आबह
खिचाहनि जा
(३) Filled with smoky fog
The wood seems to be burning
Thou' it is winter
धुँआ कुहेस
जेना जड़ैत काठ,
अछि ई जाड़
(४) The words sound so sweet
imitated by parrots
Like baby babbles
गुञ्ज मधुर
सुग्गाक अभिनय,
तोतराइत स्वर
(५) The sky is bright
The wind has cleared the clouds
Some still needs force
अकाश श्वेत
वायु टारैत मेघ,
कनेक बल

मिथिलाक बाढ़ि
मिथिलाक धरती बाढ़िक विभीषिकासँ जुझैत रहल अछि। कुशेश्वरस्थान दिसुका क्षेत्र तँ बिन बाढ़िक, बरखाक समयमये डूमल रहैत अछि। मुदा ई स्थिति १९७८-७९ केर बादक छी। पहिने ओ क्षेत्र पूर्ण रूपसँ उपजाऊ छल, मुदा भारतमे तटबन्धक अनियन्त्रित निर्माणक संग पानिक जमाव ओतए शुरू भए गेल। मुदा ओहि क्षेत्रक बाढ़िक कोनो समाचार कहियो नहि अबैत अछि, कहियो अबितो रहए तँ मात्र ई दुष्प्रचार जे ई सभटा पानि नेपालसँ छोड़ल गेल पानिक जमाव अछि। कुशेश्वरस्थान दिसुका लोक एहि नव संकटसँ लड़बाक कला सीखि गेलाह। हमरा मोन अछि ओ दृश्य जखन कुशेश्वरस्थानसँ महिषी उग्रतारास्थान जएबाक लेल हमरा बाढ़िक समयमे अएबाक लेल कहल गेल छल कारण ओहि समयमे नाओसँ गेनाइ सरल अछि, ई कहल गेल। रुख समयमे खत्ता-चभच्चामे नाओ नहि चलि पबैत अछि आ सड़कक हाल तँ पुछू जुनि। फसिलक स्वरूपमे परिवर्तन भेल, मत्स्य-पालन जेना तेना कऽ कए ई क्षेत्र जबरदस्तीक एकटा जीवन-कला सिखलक।
कौशिकी महारानीक २००८ ई.क प्रकोप ओहि दुष्प्रचारकेँ खतम कए पाओत आकि नहि से नहि जानि !
पहिने हमरा सभ ई देखी जे कोशी आ गंडकपर जे दू टा बैराज नेपालमे अछि ओकर नियन्त्रण ककरा लग अछि। ई नियन्त्रण अछि बिहार सरकारक जल संसाधन विभागक लग आ एतए बिहार सरकारक अभियन्तागणक नियन्त्रण छन्हि। पानि छोड़बाक निर्णय बिहार सरकारक जल संसाधन विभागक हाथमे अछि। नेपालक हाथमे पानि छोड़बाक अधिकार तखन अएत जखन ओतुक्का आन धार पर बान्ह/ छहर बनत, मुदा से ५० सालसँ ऊपर भेलाक बादो दुनू देशक बीचमे कोनो सहमतिक अछैत सम्भव नहि भए सकल। किएक?
सामयिक घटनाक्रम- कोशीपर भीमनगर बैरेज, कुशहा, नेपालमे अछि। १९५८ मे बनल एहि छहरक जीवन ३० बरख निर्धारित छल, जे १९८८ मे बीति गेल। दुनू देशक बीचमे कोनो सहमति किएक नहि बनि पाओल ? छहरक बीचमे जे रेत जमा भए जाइत अछि, तकरा सभ साल हटाओल जाइत अछि। कारण ई नहि कएलासँ ओकर बीचमे ऊंचाई बढ़ैत जएत, तखन सभ साल बान्हक ऊँचाई बढ़ाबए पड़त। एहि साल ई कार्य समयसँ किएक नहि शुरू भेल? फेर शुरू भेल बरखा, १८ अगस्तकेँ कोशी बान्हमे २ मीटर दरारि आबि गेल। १९८७ ई.क बाढ़ि हम आँखिसँ देखने छी। झंझारपुर बान्ह लग पानि झझा देलक, ओवरफ्लो भए गेल एक ठामसँ, आ आँखिक सोझाँ हम देखलहुँ जे कोना तकर बाद १ मीटरक कटाव किलोमीटरमे बदलि जाइत अछि। २७-२८ अगस्त २००८ धरि भीमनगर बैरेजक ई कटाव २ किलोमीटर भए चुकल छल। आ ई कारण भेल कोशीक अपन मुख्य धारसँ हटि कए एकटा नव धार पकड़बाक आ नेपालक मिथिलांचलक संग बिहारक मिथिलांचलकेँ तहस नहस करबाक। नासाक ८ अगस्त २००८ आ २४ अगस्त २००८ केर चित्र कौशिकीक नव आ पुरान धारक बीच २०० किलोमीटरक दूरी देखा रहल छल। भीमनगर बैरेज आब कोशीक एकटा सहायक धारक ऊपर बनल बैरेज बनि गेल रहए।

राष्ट्रीय आपदा: जाहि राज्यमे आपदा अबैत अछि, से केन्द्रसँ सहायताक आग्रह करैत अछि। केन्द्रीय मंत्रीक टीम ओहि राज्यक दौड़ा करैत अछि आ अपन रिपोर्ट दैत अछि जाहिपर केन्द्रीय मंत्रीक एकटा दोसर टीम निर्णय करैत अछि, आ ओ टीम निर्णय करैत अछि जे ई आपदा राष्ट्रीय आपदा अछि वा नहि। बिहारक राजनीतिज्ञ अपन पचास सालक विफलता बिसरि जखन एक दोसराक ऊपर आक्षेपमे लागल छलाह, मनमोहन सिंह मंत्रीक प्रधानक रूपमे दौड़ा कए एकरा राष्ट्रीय आपदा घोषित कएलन्हि। कारण ई लेवल-३ केर आपदा अछि आ ई सम्बन्धित राज्यक लेल असगरे - नहि तँ वित्तक लिहाजसँ आ नहिए राहतक व्यवस्थाक सक्षमताक हिसाबसँ- पार पाएब संभव नहि अछि। आब राष्ट्रीय आकस्मिक आपदा कोषसँ सहायता देल जा रहल अछि, किसानक ऋण-माफी सेहो सम्भव अछि।

उपाय की होअए ? कुशेश्वर स्थानक आपदा सभ-साल अबैछ, से सभ ओकरा बिसरिए जेकाँ गेलाह। मुदा आब की होअए ? दामोदर घाटीक आ मयूरक्षी परियोजना जेकाँ कार्य कोशी, कमला, भुतही बलान, गंडक, बूढ़ी गंडक आ बागमतीपर किएक सम्भव नहि भेल ? विश्वेश्वरैय्याक वृन्दावन डैम किएक सफल अछि ? नेपाल सरकारपर दोषारोपण कए हमरा सभ कहिया धरि जनताकेँ ठकैत रहब ? एकर एकमात्र उपाए अछि बड़का यंत्रसँ कमला-बलान आदिक ऊपर जे माटिक बान्ह बान्हल गेल अछि तकरा तोड़ि कए हटाएब आ कच्चा नहरिक बदला पक्का नहरिक निर्माण। नेपाल सरकारसँ वार्ता आ त्वरित समाधन। आ जा धरि ई नहि होइत अछि तावत जे अल्पकालिक उपाय अछि से करब, जेना बरखा आबएसँ पहिने बान्हक बीचक रेतकेँ हटाएब, बरखाक अएबाक बाट तकबाक बदला किछु पहिनहि बान्हक मरम्मतिक कार्य करब, आ एहि सभमे राजनीतिक महत्वाकांक्षाकेँ दूर राखब। कोशीकेँ पुरान पथपर अनबाक हेतु कैकटा बान्ह बनाबए पड़त आ ओ सभ एकर समाधान कहिओ नहि बनि सकत।
कमला धार
नहरिसँ लाभ हानि- एक तँ कच्ची नहरि आ ताहूपर मूलभूत डिजाइनक समस्या, एकटा उदाहरण पर्याप्त होएत जेना-तेना बनाओल परियोजना सभक। कमलाक धारसँ निकालल पछबारी कातक मुख्य नहरि जयनगरसँ उमराँव- पूर्वसँ पछबारी दिशामे अछि। मुदा ओतए धरतीक ढ़लान उत्तरसँ दक्षिण दिशामे अछि। बरखाक समयमे एकर परिणाम की होएत आकि की होइत अछि ? ई बान्ह बनि जाइत अछि आ एकर उत्तरमे पानि थकमका जाइत अछि। सभ साल एहि नहर रूपी बान्हसँ पटौनी होअए वा नहि एकर उतरबरिया कातक फसिल निश्चित रूपेण डुमबे टा करैत अछि। फलना बाबूक जमीन नहरिमे नञि चलि जाए, से नहरिक दिशा बदलि देल जाइत अछि !
कमला नदीपर १९६० ई. मे जयनगरसँ झंझारपुर धरि छहरक निर्माण भेल आ एहिसँ सम्पूर्ण क्षेत्रक विनाशलीलाक प्रारम्भ सेहो भए गेल। झंझारपुरसँ आगाँक क्षेत्रक की हाल भेल से तँ हम कुशेश्वरक वर्णन कए दए चुकल छी। मधेपुर, घनश्यामपुर, सिंघिया एहि सभक खिस्सा कुशेश्वरसँ भिन्न नहि अछि। कमला-बलानक दुनू छहरक बीच जेना-जेना रेत भरैत गेल, ताहि कारणेँ एहि तटबन्धक निर्माणक बीस सालक भीतर सभ किछु तहस-नहस भए गेल। कमला धार जे बलानमे –पिपराघाट लग १९५४ मे- मिलि गेलीह, हिमालयसँ बहि कए कोनो पैघ लक्कड़क अवरोधक कारण। आब हाल ई अछि जे दस घण्टामे पानिक जलस्तर एहि धारमे २ मीटरसँ बेशी धरि बढ़ि जाइत अछि। १९६५ ई.सँ बान्ह/ छहरक बीचमे रेत एतेक भरि गेल जे एकर ऊँचाइ बढ़ेबाक आवश्यकता भए गेल आ ई माँग शुरू भए गेल जे बान्ह/ छहरकेँ तोड़ि देल जाए !
कोशी: कोशीक पानि माउन्ट एवेरेस्ट, कंचनजंघा आ गौरी-शंकर शिखर आ मकालू पर्वतश्रृंखलासँ अबैत अछि। नेपालमे सप्तकोशीमे, जाहिमे इन्द्रावती, सुनकोसी (भोट कोसी), तांबा कोसी, लिक्षु कोसी, दूध कोसी, अरुण कोसी आ तामर कोसी सम्मिलित अछि।
एहिमे इन्द्रावती, सुनकोसी, तांबा कोसी, लिक्षु कोसी आ दूध कोसी मिलि कए सुनकोसीक निर्माण करैत अछि आ ई मोटा-मोटी पच्छिमसँ पूर्व दिशामे बहैत अछि, एकर शाखा सभ मोटा-मोटी उत्तरसँ दक्षिण दिशामे बहैत अछि। ई पाँचू धार गौरी शंकर शिखर आ मकालू पर्वतश्रृंखलाक पानि अनैत अछि।
अरुणकोसी माउन्ट एवेरेस्ट (सगरमाथा) क्षेत्रसँ पानि ग्रहण करैत अछि। ई धार मोटा-मोटी उत्तर-दक्षिण दिशामे बहैत अछि।
तामर कोसी मोटा-मोटी पूबसँ पच्छिम दिशामे बहैत अछि आ अपन पानि कंचनजंघा पर्वत श्रृंखलासँ पबैत अछि।
आब ई तीनू शाखा सुनकोसी, अरुणकोसी आ तामरकोसी धनकुट्टा जिल्लाक त्रिवेणी स्थानपर मिलि सप्तकोसी बनि जाइत छथि। एतएसँ १० किलोमीटर बाद चतरा स्थान अबैत अछि जतए महाकोसी, सप्तकोसी वा कोसी मैदानी धरातलपर अबैत छथि। आब उत्तर दक्षिणमे चलैत प्रायः ५० किलोमीटर नेपालमे रहला उत्तर कोसी हनुमाननगर- भीमनगर लग भारतमे प्रवेश करैत छथि आ कनेक दक्षिण-पच्छिम रुखि केलाक बाद दक्षिण-पूर्व आ पच्छिम-पूर्व दिशा लैत अछि आ भारतमे लगभग १३० किमी. चललाक बाद कुरसेला लग गंगामे मिलि जाइत छथि। कोसीमे बागमती आ कमलाक धार सेहो सहरसा- दरभंगा- पूर्णिया जिलाक संगमपर मिलि जाइत अछि।
कोसीपर पहिल बान्ह १२म शताब्दीमे लक्ष्मण द्वितीय द्वारा बनाओल वीर-बाँध छल जकर अवशेष भीमनगरक दक्षिणमे एखनो अछि।
भीमनगर लग बैराजक निर्माणक संगे पूर्वी कोसी तटबन्ध सेहो बनि गेल आ पूर्वी कोसी नहरि सेहो।
कुँअर सेन आयोग १९६६ ई. मे कोसी नियन्त्रणक लेल भीमनगरसँ २३ किमी. नीचाँ डगमारा बैराजक योजनाक प्रस्ताव देलक जे वाद-विवाद आ राजनीतिमे ओझरा गेल। एहि बैराजसँ दू फायदा छल। एक तँ भीमनगर बैरेजक जीवन-कालावधि समाप्त भेलापर ई बैरेज काज अबितए, दोसर एहिसँ उत्तर-प्रदेशसँ असम धरि जल परिवहन विकसित भऽ जाइत जाहिसँ उत्तर बिहारकेँ बड़ फाएदा होइतए। मुदा एहि बैरेज निर्माण लेल पाइ आवंटन केन्द्रीय सिंचाई मंत्री डॉ के.एल.राव नहि देलखिन्ह। पश्चिमी कोसी नहरि एकर विकल्प रूपमे जेना तेना मन्थर गति सँ शुरू भेल मुदा एखनो धरि ओहिमे काज भइये रहल अछि।
कोसी लेल किछु नहि भऽ सकल। विचार आएल तँ योजना अस्वीकृत भए गेल। जतेक दिनमे कार्य पूरा हेबाक छल ततेक दिन विवाद होइत रहल, डगमारा बैराजक योजनाक बदलामे सस्ता योजनाकेँ स्वीकृति भेटल मुदा सेहो पूर्ण हेबाक बाटे ताकि रहल अछि !
विश्वेश्वरैय्या पड़ैत छथि मोन : हैदराबादसँ ८२ माइल दूर मूसी आ ईसी धारपर बान्ह बनाओल गेल आ नगरसँ ६.५ माइलक दूरीपर मूसी धारक उपधारा बनाओल गेल। संगहि धारक दुनू दिस नगरमे तटबन्ध बनाओल गेल। कृष्णराज सागर बान्ह, हुनकर प्रस्तावित १३० फुट ऊँच बनेबाक योजना मैसूर राज्य द्वारा अंग्रेजकेँ पठाओल गेल तँ वायसराय हार्डिंज ओकरा घटा कए ८० फीट कए देलन्हि। विश्वेश्वरैय्या निचुलका भागक चौड़ाई बढ़ा कए ई कमी पूरा कए लेलन्हि। बीचेमे बाढ़ि आबि गेल तँ अतिरिक्त मजदूर लगा कए आ मलेरियाग्रस्त आ आन रोगग्रस्त मजदूरक इलाज लए डॉक्टर बहाली कए, रातिमे वाशिंगटन लैम्प लगा कए आ व्यक्तिगत निगरानी द्वारा समयक क्षतिपूर्ति केलन्हि। देशभक्त तेहन छलाह जे सीमेन्ट आयात नहि केलन्हि वरन् बालु, कैल्सियम, पाथर आ पाकल ईटाक बुकनी मिला कए निर्मित सुरखीसँ , एहि बान्हक निर्माण कएलन्हि। बान्ह निर्माणसँ पहिनहि द्विस्तरीय नहरिक निर्माण कए लेल गेल।
दिल्ली अछि दूर एखनो ! : प्रधानमंत्री आपदा कोष आ मुख्यमंत्री आपदा कोषक अतिरिक्त स्वयंसेवी संगठन सभक कोषमे सेहो दिल्लीवासी अपन अनुदान दए सकैत छथि।
मुदा दीर्घ सूत्री काज होएत, निम्न बिन्दुपर दिल्लीमे केन्द्र सरकारपर दवाब बनाएब।
१. स्कूल कॉलेजमे गर्मी तातिलक बदलामे बाढ़िक समए छुट्टी देबामे कोन हर्ज अछि, ई निर्णय कोन तरहेँ कठिन अछि? सी.बी एस.ई आ आइ.सी.एस.ई. तँ छोड़ू बिहार बोर्ड धरि ई नहि कए सकल अछि। दिल्लीवासी सी.बी एस.ई आ आइ.सी.एस.ई.सँ एहि तरहक कार्यान्वयन कराबथि तँ लाजे बिहार बोर्ड ओकरा लागू कए देत।
२. भारतमे डगमारा बैराजक योजनाक प्रारम्भ कएल जाए, कारण भीमनगर बैरेज अपन जीवन-कालावधि पूर्ण कए लेने अछि। एहिमे फन्ड, रेलवे आ सड़क दुनू मंत्रालयसँ लेल जाए कारण एहिपर रेल आ सड़क सेहो बनि सकैछ/ आ बनबाक चाही।
३. बैरेज बनबाक कालवधियेमे पक्की नहरि धरातलक स्लोपक अनुसारे बनाओल जाए।
४. कच्ची बान्ह सभकेँ तोड़ि कए हटा देल जाए आ पक्की बान्हकेँ मोटोरेबल बनाओल जाए, बान्हक दुनू कात पर्याप्त गाछ-वृक्ष लगाओल जाए।
५. बिहारमे सड़क परियोजना जेना स्वप्नक सत्य होअए जेना देखा पड़ि रहल अछि, तहिना सभ विघ्न-बाधा हटा कए, युद्ध-स्तरपर एहि सभपर काज शुरू कएल जाए।
उपरोक्त बिन्दु सभपर दिल्लीमे लॉबी बना कए केन्द्र सरकारपर/ मंत्रालयपर दवाब बनाएब तखने बिहार अपन नव छवि बना सकत। १२म शताब्दीमे शुरू कएल बान्ह तखने पूर्ण होएत आ धारसभ मनुक्खक सेविका बनि सकत।

विस्मृत कवि- पं. रामजी चौधरी
(१८७८-१९५२)

पं. रामजी चौधरी (१८७८-१९५२) जन्म स्थान- ग्राम-रुद्रपुर, थाना-अंधरा-ठाढ़ी, जिला-मधुबनी. मूल-पगुल्बार राजे गोत्र-शाण्डिल्य।
वंशावली- जीवन चौधरी (जन्म स्थान-पंचोभ-दरिभङ्गा), १८०१ ई.मे रुद्रपुर आगमन।
-दुइ पुत्र--श्री रंगी चौधरी (रुद्रपुरमे जन्म) आ श्री कंत चौधरी (रुद्रपुरमे जन्म)
-कंत चौधरीकेँ तीन पुत्र-श्री चुम्मन चौधरी, श्री बुधन चौधरी आ श्री रूदन चौधरी
-चुम्मन चौधरीकेँ दुइ पुत्र श्री गोनी चौधरी आ श्री पं कवि रामजी चौधरी.
श्री जीवन चौधरी- जे कविक वृद्ध-पितामह छलाह, तनिकर दोखतरी रुद्रपुरमे रहन्हि जाहि कारणसँ ओ १८०१ ई.मे पंचोभ छोड़ि रुद्रपुर बसि गेलाह।
कविजीक पितामह पैघ गवैय्या रहथिन्ह। हुनकर गायनक मुख्य क्षेत्र युगल सरकार सीतारामक भक्ति गीत होइत छल, तकर प्रभाव कविजी पर खूब पड़ल। ओ अप्पन पौत्रक नाम रामजी एहि कारणसँ रखलन्हि। स्व.कविजी अपन नामक अनुरूप तुलसीकृत श्रीरामचरित मानस कंठस्थ कए गेल छलाह। ओ प्रत्येक प्रश्नक उत्तर रामायणक चौपाइसँ करैत छलाह। हुनकर जीवनक सभसँ दुःखद घटना छन्हि जे ओ तीन विवाह कएल मुदा कोनो पत्नी चारि सालसँ बेशी नहि जीबि सकलखिन्ह।अंतिम विवाह ओ ५३ वर्षक अवस्थामे कएल, जे एक पुत्र, जनिकर नाम दुर्गानाथ चौधरी (दुखिया चौधरी) छन्हि, केर जन्म देलाक १५ दिनक भीतरे स्वर्गवासी भए गेलीह।
कविजी अप्पन जीवनकालमे दरिभङ्गा राजक अंतर्गत जेठ रैय्यतक पद पर कार्यरत छलाह आ तेसर पत्नीक मृत्युक उपरांत ओ ईहो पद त्यागि कए भगवद भक्तिमे लागि गेलाह। हिनकर एकमात्र प्रकाशित पोथी आ अप्रकाशित पाण्डुलिपिमे मैथिलीक संगे ब्रजबुलीक कविता सेहो अछि।
हिनकर एहि कविता सभमे हिनका पितामहक देल राग बोधक संगहि मिथिलाक महेशवाणी, चैतक ठुमरी आ भजन प्रभाती (पराती) सेहो भेटैछ।
जेना शंकरदेव असामीक बदला मैथिलीमे रचना रचलन्हि तहिना कवि रामजी चौधरी मैथिलीक अतिरिक्त्त ब्रजबुलीमे सेहो रचना रचलन्हि। कवि रामजीक सभ पद्यमे रागक वर्णन अछि, ओहिना जेना विद्यापतिक नेपालसँ प्राप्त पदावलीमे अछि। ई प्रभाव हुनकर बाबा जे गबैय्या छलाह, सँ प्रेरित बुझना जाइत अछि। मिथिलाक लोक पंचदेवोपासक छथि, मुदा शिवालय सभ गाममे भेटि जएत, से रामजी चौधरी महेशवानी लिखलन्हि आ चैत मासक हेतु ठुमरी आ भोरक भजन (पराती/ प्रभाती) सेहो। जाहि राग सभक वर्णन हुनकर कृतिमे अबैत अछि, से अछि:
१. राग रेखता २ लावणी ३. राग झपताला ४.राग ध्रुपद ५. राग संगीत ६. राग देश ७. राग गौरी ८.तिरहुत ९. भजन विनय १०. भजन भैरवी ११.भजन गजल १२. होली १३.राग श्याम कल्याण १४.कविता १५. डम्फक होली १६.राग कागू काफी १७. राग विहाग १८.गजलक ठुमरी १९. राग पावस चौमासा २०. भजन प्रभाती २१.महेशवाणी आ २२. भजन कीर्त्तन।
प्रस्तुत अछि हुनकर रचना। एतए हुनकर एकमात्र प्रकाशित पोथी आ एकटा पाण्डुलिपि जे कविजी द्वारा श्री हरेकांत चौधरीसँ ( आब स्वर्गीय) लिखबाओल गेल आ श्री श्रीमोहन चौधरीजीक माध्यमसँ प्राप्त भेल केर आधारपर सभटा मैथिली पद्य देल जा रहल अछि।
विविध भजनावली
॥ श्री गणेशाय नमः ॥
१. ॥ विनय ॥
जय गणेश शंकर सुत सुन्दर अति कृपालु दीनन जन
पालक लम्बोदर अति रूप गजानन, युअ यश कहि न सकत सहसानन।
हमछी अति गमार कछु जानन निज पद कमल देहु उर ध्यानन॥
रामजी अरज सुनहु कछु कानन। वर्णत चहत राम गुण आनन॥
२. ॥ राग ध्रुपद ॥
सेवो मन शंकर अति कृपाल सेवक दुःख भंजन हौ दयाल,
जटा शोभित गंग धार तन छाय भस्म उर मुंड माल
उपवित भुजंगम दृग विशाल बिजया नित पीबत फिरत मतवाल।
कर त्रिशूल बघ छाल बिराजित दास आस राखन के सुर ररु
कैलाश वास गिरजा लिअ संग बहुवजत ताल शोभए शशिभाल॥
काशीपति तेरो यश अपार सुनि आय धाय तेरो द्वार
रामजी अति दीन कर नेहाल जिमि वेगि मिलए अवधेश लाल॥

३. राग संगीत
नाचत स्वयंग ये॥
कुंज बन चहुं ओर सुन्दर सघन बृक्ष बनाय मण्डित लकत सुमन लजाय सुर तरु जगमगात मयंक॥१॥
कठताल डम्फ मंजीर बाजत गोपी गण चहुं दिसि छाजत कुहिकि कलरव मोर नाचत राधा लेत मृदंग॥२॥
बेनु आदि स्वराग बाजत षट त्रिंशरागिन राग गावत गण सब सुनत धावत यमुना बढ़त तरंग॥३॥
तिहुं लोक आनन्द होत सुनि-सुनि पवनजल सब फिरत पुनि-पुनि रामजी गृह कार्य झाँकत कौतुक रंग॥४॥
४. तिरहुत
वारि वयस पहु तेजल सजनी गे कि कहु तनिक विवेक,
कबहु नैन नहि देखल सजनीगे अवधि बितल दुई एक।
भावैन भवन शयन सुख सजनीगे ज्यौं मिलत भरि अंक।
एहेन जीवन लय कि करव सजनीगे आनो कहत कलंक।
भूषण वसन भरि सम सजनी प्राण रहत अब से शेष।
निर्दय भय पहु वैसल सजनीगे रामजी सहत कत शोक॥
५. तिरहुत
निठुर श्याम नहि बहुरल सजनीगे कैलनि बचन प्रमाण।
कओन विधि दिवस मनायव सजनीगे हित नहि दोसर आन॥
नयन वरिस तन भीजल सजनीगे दिन दिन मदन मलान।
शिर सिन्दूर भावै सजनीगे भूषण भावे न कान॥
केहेन बिधाता निर्दय भेल सजनीगे आनक दुख नहि जान।
रामजीके आश नहि पुरत सजनी मदन कयल निदान॥
६. भजन भैरवी
आब मन हरि चरनन अनुराग।
त्यागि हृदयके विविध वासना दम्भ कपट सब त्याग॥
सुत बनिता परिजन पुरवासी अन्त न आबे काज।
जे पद ध्यान करत सुर नर मुनि तुहुं निशा आब जाग॥
भज रघुपति कृपाल पति तारों पतित हजार
बिनु हरि भजन बृथा जातदिन सपना सम संसार
रामजी सन्त भरोस छारि अब सीता पति लौ लाग॥
७. ॥ राग विहाग ॥
को होत दोसर आन रम बिनु॥ जे प्रभु जाय तारि अहिल्या जे बनि रहत परवान॥ जल बिच जाइ गजेन्द्र उबारो सुनत बात एक कान॥ दौपति चीर बढ़ाई सभा बिच जानत सकल जहान॥ रामजी सीता-पति भज निशदिन जौ सुख चाहत नादान॥
८. चैत के ठुमरी
चैत पिया नहि आयेल हो रामा चित घबरायेल।।
भवनो न भावे मदन सताबे नैन नीन्द नहि लागल॥
निसिवासर कोइल कित कुहुकत बाग बाग फूल फूलल॥
रामजी वृथा जात ऋतुराजहि जौंन कन्त भरि मिललरामा॥
चित घबरायेल चैत पिया नहि आयल॥
९. चैतके ठुमरी
आबि गेल चैत बैरनमा हो रामा विधि भेल वामा॥
लाले-लाले चून्दरी लगाय पलंगपर पियवा न अयल सपनमा॥
जौवन जोर आर भैल दिन दिन विष सन लागत भवनमा॥
रामजी जीवन वृथा एहि तनमे प्रभु कोन देखलो नयनमा॥
१०. चैतके ठुमरी
आबि गेल सियाक खोजनमा हो रामा पवन सुअनमा॥
वरजि वरजि हारे सब निसिचर लड़त कौ न सयनमा॥
उपवन नास रिसाय लंकपति मेघवासे कहत बयेनमा॥
मारसि जनि सुत बान्हिके लाऊ रामजी बुझत कारनमा हो रामा॥
११. महेशवाणी
सुनु सुनु चण्डेश्वर नाथ कृपा दृष्ट से एक वेर ताकहु हम छी परम अनाथ॥
देव दनुज भूपति कत सेबल कियो न दुखके साथ,
बड़े निरास आश धय रोपल अहाँक चरणमे माथ॥
भटकि-भटकि सबके रुचि बूझल सब स्वारथके साथ
जे छथि मित्र अपेक्षित परिजन सभै रखै छथि क्वाथ॥
नहि किछ वेदपुराण जनए छी नहि पूजाके भाव
निसि दिन चिन्ता उदरके फूसि फटकके बात।।
अहाँ दयालु दीनेपर सब दिन जनैत अछि संसार
रामजीके सकल मनोरथ पूर वहु भोला नाथ॥
१२. महेशवानी
बम भोला छथि अनमोल कतेक दुखी हम
जाइत देखल करैत अति अनघोल॥
ककरहु देविक दैहिक दुख छनि
ककरहु भौति कलेस
कियो अबै छथि आश अन्न टकाके लेल॥
कतेक बिकल छथि पुत्र दार ले कतेक अनेक कलेस
कतेक अहाँके भजन करै ये परमारथके लेल॥
परसि मणि अहाँ झारी वैसल सवके दुख हरि लेल॥
रामजी किछु कहि न सकैछी अपराधी के लेल॥
१३. महेशवानी
एहन बड़के खोजि आनलन्हि पारवतीके लेल॥
जिनका घर नहि धन परिजन नहि जाति पातिक झेल,
डमरु बजावथि गिरिपर निसि दिन भूत प्रेतसँ खेल॥
अन्नक खेती किछु नहि राखथि भांग धुथुर अलेल,
भूषण गत्र-गत्रमे लटकट बिषधर देखि उर मेल॥
परम बताहक लक्षण सभ छनि अंग भस्म लेपि लेल,
हाथी घोड़ा त्यागि पालकी वोढ़ बड़द चढ़ि लेल॥
कहथि रामजीभाग ऊदय अब लेल,
त्रिभुवन पति गौरी पति हेता साजू पूरहर लभे॥
१४. महेशवाणी
हमरो जीवन व्यर्थ बीति गेल।
कहियो बिल्बपत्र नहि तोड़ल, फूल रोपि नहि भेल।
अक्षत धूप, दीपलै, चानन शंकर पूजि नहि भेल॥
कतेक वासना मनमे करि-करि दिवस रैन बिति गेल।
कवहुँ ध्यान शान्त चित्त भए बम-बम कहियो न भेल॥
सुत बनितादि विषय बस कवहुँ, मन बिश्राम न भेल।
चिन्ता करति करति दिन बीतल, अब जर्जर तन भेल॥
कहथि रामजी सकल आश तजि शिव सेबू अलबेल।
शिब बिनु दोसरके हरत दुसह दुःख निश्चय मन करिलेल॥
१५. महेशवानी
शिवकें सुनै छियन्हि दयाल
दुखियाक कहिया सुनता सवाल।
जय गंग चन्द्र भाल, कंठ मुण्डमाल, भंग ले बेहाल॥
वाम भाग पार्वती बसहा सवार, अंग-अंगमे विषधर लटकल हजार,
भूतनात प्रणत पाल दिगम्बर धार,
भस्म अंग संग बेताल डमरु बघ छाला॥
रामजी दीननपर कखन करब खयाल
शिव बिना हमर के करत प्रतिपाल॥
१६. महेशवाणी
शिव काटू ने जञ्जाल।
कतेक कहब हम अपन हवाल॥
निसि दिन चैन नहि भूख भेल काल
चिन्ता करति भूलि गेल अहाँक खयाल।
बन्धु वर्ग कुटुम्ब संग धेलाह अनेक भल
केओ न सहाय भेला दुर्दिन प्रवल।
रामजीके आशा एक जँ निगाहनै करब रहब बेकल॥
१७. महेशवाणी
शिव कहूने बुझाय॥
ककरा कहब हम अपन दुख जाय।।
केओ ने भेटैत छथि अहाँक समुदाय
जे सुनि हेताह तुरत सहाय॥
हित मित बनिता सुत स्वास्थ्य से भाए।
निर्धन देखि भुख लए छपि घुमाए॥
बम्भोला वैद्यनाथ दीनन अपनाय झाड़ीमे बैसि
हीरालालको लुटाय॥
रामजी आशा लगाय कृपा दृष्टि हेरू
नाथ लिय अपनाय॥
इति
सिद्धिरस्तु। शुभञ्चास्तुस्त्र
१८. भजन विनय
प्रभू बिनू कोन करत दुखः त्राणः॥
कतेक दुःखीके तारल जगमे भव सागर बिनू जल जान, कतेक चूकि हमरासे भऽ गेल सोर ने सिनई छी कानः॥ अहाँ के त बैनि परल अछि पतित उधारन नाम ।नामक टेक राखू प्रभू अबहूँ हम छी अधम महानः॥ ज्योँ नञ कृपा करब एहि जन पर कोना खबरि लेत आन। रामजी पतितके नाहिँ सहारा दोसर के अछि आनः॥
१९. भजन लक्ष्मी नारायण जीक विनय
लक्ष्मी नारायण अहाँ हमरा ओर नञ तकइ छी यौ।
दीनदयाल नाम अहाँके सभ कहए अछि यौ।
हमर दुःख देखि बिकट अहाँ डरए छी यौ।
ब्याध गणिका गिध अजामिल गजके उबारल यौ।
कौल किरात भिलनी अधमकेँ उबारल यौ।
कतेक पतितके तारल अहाँ मानि के सकत यौ।
रुद्रपुरके भोलानाथ अहाँ के धाम गेलायो।
ज्यों न हमरा पर कृपा करब हम कि करब यौ।
रामजी अनाथ एक दास राखु यौ।
२०. भजन विनय भगवती
जय जय जनक नन्दिनी अम्बे, त्रिभुवन के तू ही अवलम्बेः।
तुही पालन कारनी जगतके, शेष गणेश सुरन केः।
तेरो महिमा कहि न सकत कोउ, सकुचत सारभ सुरपति कोः।
परमदुखी एहि जगमे, के नञ जनए अछि त्रिभुवनमेः॥
केवल आशा अहाँक चरणके, राखू दास अधम केः॥
कियो नहि राखि सकल शरणोंमे, देख दुखी दिनन केः॥
ज्योँ नहि कृपा करब जगजननी, बास जान निज मनमे।
तौँ मेरो दुख कौन हटावत, दोसर छाड़ि अहाँकेः॥
कबहौँ अवसर पाबि विपति मेरो कहियो अवधपति को,
रामजी क नहि आन सहारा छाड़ि चरण अहाँकेः॥
२१. भजन विनय
प्रभु बिनु कौन करत दुःख त्राणः।।
कतेक दुखीके तारल जगमे
भवसागर बिनु जल जानः॥
कतेक चूकि हमरासे भऽ गेल,
स्वर नञ सुनए छी कानः।।
अहाँके तौँ बानि पड़ल अछि,पतित उधारण नामः।
नामक टेक राखु अब प्रभुजी हम छी अधम जोना।
कृपा करब एहि जन पर कोन खबरि लेत आन।
रामजी पतितके नाहि सहारा दोसर के अछि आनः॥
२२. विहाग
भोला हेरू पलक एक बेरः॥
कतेक दुखीके तारल जगमे कतए गेलहुँ मेरो बेरः॥
भूतनाथ गौरीवरशंकर विपत्ति हरू एहि बेरः॥
जोना कृपा करब शिवशंकर कष्ट मिटत के औरः॥
बड़े दयालु जानि हम एलहुँ अहाँक शरण सुनि सोरः॥
रामजीके नहि आन सहारा दोसर केयो नहि औरः॥
२३. भजन महेशवाणी
भोला कखन करब दुःख त्रान?
त्रिविध ताप मोहि आय सतावे लेन चहन मेरो प्राण॥
निशिवासर मोहि युअ समवीने पलभर नहि विश्रामः॥
बहुत उपाय करिके हम हारल दिन-दिन दुःख बलबान,
ज्यौँ नहि कृपा करब शिवशंकर कष्ट के मेटत आन॥
रामजीके सरण राखू प्रभु, अधम शिरोमणि जान॥भोला.॥
२४. विनय विहाग
राम बिनु कौन हरत दुःख आन
कौशलपति कृपालु कोमल चित
जाहि धरत मुनि ध्यान॥
पतित अनेक तारल एहि जगमे,
जग-गणिका परधान।।
केवट,गृद्ध अजामिल तारो,
धोखहुषे लियो नाम,
नहि दयालु तुअ सम काउ दोसर,
कियो एक धनवान।।
रामजी अशरण आय पुकारो, भव ले करू मेरो त्राण॥रामबिनु॥
२५. भजन विनय
लक्ष्मीनारायण हमर दुःख कखन हरब औ॥
पतित उधारण नाम अहाँके सभ कए अछि औ,
हमरा बेर परम कठोर कियाक होइ छी औ।।
त्रिविध ताप सतत निशि दिन तनबै अछि औ॥
अहाँ बिना दोसर के त्राण करत औ॥
देव दनुज मनुज हम कतेक सेवल औ,
कियो ने सहाय भेला विपति काल औ॥
कतेक कहब अहाँके ज्योँ ने कृपा कर औ,
रामजीके चाड़ि अहाँक के शरण राखन औ॥
२६. भजन विनय
एक बेर ताकू औ भगवान,
अहाँक बिना दोसर दुःख केहु ना आन॥
निशि दिन कखनौ कल न पड़ै अछि,
कियो ने तकैये आन
केवल आशा अहाँक चरणके आय करू मेरे त्राण॥
कतेक अधमके तारल अहाँ गनि ने सकत कियो आन,
हमर वान किछु नाहि सुनए छी,
बहिर भेल कते कान॥
प्रबल प्रताप अहाँक अछि जगमे
के नहि जनए अछि आन,
गणिका गिद्ध अजामिल गजके
जलसे बचावल प्राण॥
ज्योँ नहि कृपा करब रघुनन्दन,
विपति परल निदान,
रामजीके अब नाहि सहारा,
दोसर के नहि आन॥
२७. महेशवानी
सुनू सुनू औ दयाल,
अहाँ सन दोसर के छथि कृपाल॥
जे अहाँ के शरण अबए अछि
सबके कयल निहाल,
हमर दुःख कखन हरब अहाँ,
कहूने झारी लाल॥
जटा बीच गंगा छथि शोभित चन्द्र विराजथि भाल,
झारीमे निवास करए छी दुखियो पर अति खयाल॥
रामजीके शरणमे राखू,
सुनू सुनू औ महाकाल,
विपति हराऊ हमरो शिवजी करू आय प्रतिपाल॥
२८. महेशवानी
काटू दुःख जंजाल,
कृपा करू चण्डेश्वर दानी काटू दुःख जंजाल॥
ज्योँ नहि दया करब शिवशंकर,
ककरा कहब हम आन,
दिन-दिन विकल कतेक दुःख काटब
ज्योँ ने करब अहाँ खयाल॥
जटा बीच गंगा छथि शोभित,
चन्द्र उदय अछि भाल,
मृगछाला डामरु बजबैछी,
भाँग पीबि तिनकाल॥
लय त्रिशूलकाटू दुःख काटू,
दुःख हमरो वेगि करू निहाल,
रामजी के आशा केवल अहाँके,
विपति हरू करि खयाल॥
२९. महेशवानी
शिव करू ने प्रतिपाल,
अहाँ सन के अछि दोसर दयाल॥
भस्म अंग शीश गंग तीलक चन्द्र भाल,
भाँग पीब खुशी रही,
रही दुखिया पर खयाल।
बसहा पर घुमल फिरी,
भूत गण साथ,
डमरू बजाबी तीन
नयन अछि विशाल॥
झाड़ीमे निवास करी,
लुटबथि हीरा लाल,
रामजी के बेर शिव भेलाह कंगाल॥
३०. महेशवानी
शिवजी केहेन कैलौँ दीन हमर केहेन॥
निशिदिन चैन नहि
चिन्ता रहे भिन्न,
ताहू पर त्रिविध ताप
कर चाहे खिन्न॥
पुत्र दारा कहल किछु ने सुनै अछि काअ
ताहू पर परिजन लै अछि हमर प्राण॥
अति दयाल जानि अहाँक शरण अयलहुँ कानि,
रामजी के दुःख हरू अशरण जन जानि॥
३१. महेशवानी
विधि बड़ दुःख देल,
गौरी दाइ के एहेन वर कियाक लिखि देल॥
जिनका जाति नहि कुल नहि परिजन,
गिरिपर बसथि अकेल,
डमरू बजाबथि नाचथि अपन कि भूत प्रेत से खेल॥
भस्म अंग शिर शोभित गंगा,
चन्द्र उदय छनि भाल
वस्त्र एकोटा नहि छनि तन पर
ऊपरमे छनि बघछाल,
विषधर कतेक अंगमे लटकल,
कंठ शोभे मुंडमाल,
रामजी कियाक झखैछी मैना
गौरी सुख करती निहाल॥
३२. विहाग
वृन्दावन देखि लिअ चहुओर॥
काली दह वंशीवट देखू,
कुंज गली सभ ठौर,
सेवा कुंजमे ठाकुर दर्शन,
नाचि लिअ एक बेर॥
जमुना तटमे घाट मनोहर,
पथिक रहे कत ठौर,
कदम गाछके झुकल देखू,
चीर धरे बहु ठौर॥
रामजी वैकुण्ठ वृन्दावन
घूमि देखु सभ ठौर,
रासमण्ड ल’ के शोभा देखू,
रहू दिवस किछु और।।
३३. विहाग
मथुरा देखि लिअ सन ठौर॥
पत्थल के जे घाट बनल अछि,
बहुत दूर तक शोर,
जमुना जीके तीरमे,
सन्न रहथि कते ठौर॥
अस्ट धातुके खम्भा देखू,
बिजली बरे सभ ठौर,
सहर बीचमे सुन्दर देखू,
बालु भेटत बहु ढ़ेर॥
दुनू बगलमे नाला शोभे,
पत्थल के है जोर
कंशराजके कीला देखू
देवकी वो वसुदेव॥
चाणूर मुष्टिक योद्धा देखू
कुबजा के घर और,
राधा कृष्णके मन्दिर देखू,
दाउ मन्दिर शोर॥
छोड़ विभाग
रामजी मधुबन, घूमि लिअ आब,
कृष्ण बसथि जेहि ठौर॥
गोकुल नन्द यशोदा देखू
कृष्ण झुलाउ एक बेर॥
३४. महेशवानी
भोला केहेन भेलौँ कठोर,
एक बेर ताकू हमरहुँ ओर॥
भस्म अंग शिर गंग विराजे,
चन्द्रभाल छवि जोर।।
वाहन बसहा रुद्रमाल गर,
भूत-प्रेतसँ खेल॥
त्रिभुवन पति गौरी-पति मेरो ज्योँ ने हेरब एक बेर,
तौँ मेरो दुःख कओन हरखत
सहि न सकत जीव मोर॥
बड़े दयालु जानि हम अयलहुँ,
अहाँक शरण सूनि शोर,
राम-जी अश्रण आय पुकारो,
दिजए दरस एक बेर॥
३५. भजन विनय
सुनू-सुनू औ भगवान,
अहाँक बिना जाइ अछि
आब अधम मोरा प्राण॥
कतेक शुरके मनाबल निशिदिन
कियो न सुनलनि कान,
अति दयालु सूनि अहाँक शरण अयलहुँ जानि॥
बन्धु वर्ग कुटुम्ब सभ छथि बहुत धनवान,
हमर दुःख देखि-देखि हुनकौ होइ छनि हानि।।
रामजी निरास एक अहाँक आशा जानि,
कृपा करी हेरु नाथ,
अशरण जन जानि॥
३६. महेशवाणी
देखु देखु ऐ मैना,
गौरी दाइक वर आयल छथि,
परिछब हम कोना।
अंगमे भसम छनि,भाल चन्द्रमा
विषधर सभ अंगमे,
हम निकट जायब कोना॥
बाघ छाल ऊपर शोभनि, मुण्डमाल गहना,
भूत प्रेत संग अयलनि, बरियाती कोना॥
कर त्रिशूल डामरु बघछाला नीन नयना
हाथी घोड़ा छड़ि पालकी वाहन बड़द बौना॥
कहथि रामजी सुनु ऐ मनाइन,
इहो छथि परम प्रवीणा,
तीन लोकके मालिक थीका,
करु जमाय अपना॥
३७. महेशवानी
एहेन वर करब हम गौरी दाइके कोना॥
सगर देह साँप छनि, बाघ छाल ओढ़ना,
भस्म छनि देहमे, विकट लगनि कोना॥
जटामे गंगाजी हुहुआइ छथि जेना,
कण्ठमे मुण्डमाल शोभए छनि कोना॥
माथे पर चन्द्रमा विराजथि तिलक जेकाँ,
हाथि घोड़ा छाड़ि पालकी, बड़द चढ़ल बौना॥
भनथि रामजी सुनु ऐ मैना, गौरी दाइ बड़े भागे,
पौलनि कैलाशपति ऐना॥
३८. भजन विहाग
राम बिनु विपति हरे को मोर॥
अति दयालु कोशल पै प्रभुजी,
जानत सभ निचोर,
मो सम अधम कुटिल कायर खल,
भेटत नहि क्यो ओर॥
ता नञ शरण आइ हरिके हेरू पलक एक बेर,
गणिका गिद्ध अजामिल तारो
पतित अनेको ढेर॥
दुःख सागरमे हम पड़ल छी,
ज्योँ न करब प्रभु खोज,
नौँ मेरो दुःख कौन हारावन,
छड़ि अहाँ के और॥
विपति निदान पड़ल अछि निशि दिन नाहि सहायक और,
रामजी अशरण शरण राखु प्रभु,
कृपा दृष्टि अब हेरि॥
३९. भजन विहाग
विपति मोरा काटू औ भगवान॥
एक एक रिपु से भासित जन,
तुम राखो रघुवीर,
हमरो अनेक शत्रु लतबै अछि,
आय करू मेरो त्राण॥
जल बिच जाय गजेन्द्र बचायो,
गरुड़ छड़ि मैदान,
दौपति चीर बढ़ाय सभामे,
ढेर कयल असमान॥
केवट वानर मित्र बनाओल,
गिद्ध देल निज धाम,
विभीषणके शरणमे राखल
राज कल्प भरि दान॥
आरो अधम अनेक अहाँ तारल
सवरी ब्याध निधान,
रामजी शरण आयल छथि,
दुखी परम निदान॥
४०. महेशवानी
हम त’ झाड़ीखण्डी झाड़ीखण्डी हरदम कहबनि औ॥
कर-त्रिशूल शिर गंग विराजे,
भसम अंग सोहाई,
डामरु-धारी डामरुधारी हरदम कहबनि औ॥
चन्द्रभाल धारी हम कहबनि,
विषधरधारी विषधरधारी हरदम कहबनि औ॥
बड़े दयालु दिगम्बर कहबनि,गौरी-शंकर कहबनि औ,
रामजीकेँ विपत्ति हटाउ,
अशरणधारी कहबनि औ॥
४१. चैत नारदी जनानी
बितल चैत ऋतुराज चित भेल चञ्चल हो,
मदल कपल निदान सुमन सर मारल हो॥
फूलल बेलि गुलाब रसाल कत मोजरल हो,
भंमर गुंज चहुओर चैन कोना पायब हो॥
युग सम बीतल रैन भवन नहि भावे ओ,
सुनि-सुनि कलरव सोर नोर कत झहरत हो॥
रामजी तेजब अब प्राण अवधि कत बीतल हो,
मधुपुर गेल भगवान, पलटि नहि आयल हो॥
४२. भजन लक्ष्मीनारायण
लक्ष्मीनारायण हमरा ओर नहि तकय छी ओः॥
दीन दयाल नाम अहाँक सब कहैये यौ
हमर दुखः देखि विकट अहूँ हरै छी योः॥
ब्याध गणिका गृध अजामिल गजके उबाड़ल यो
कोल किरात भीलनि अधमके ऊबारल यो
कतेक पैतके तारल अहाँ गनि के सकत यो
रुद्रपुरके भोलानाथ अहाँ धाम गेलायोः॥
ज्योँ नञ हमरा पर कृपा करब हम की करब यौ
रामजी अनाथ एक दास राखू योः॥
४३. महेशवानी
शिव हे हेरु पलक एक बेर
हम छी पड़ल दुखसागरमे
खेबि उतारु एहि बेर॥
ज्योँ नञ कृपा करब शिवशंकर
हम ने जियब यहि और॥
तिविध ताप मोहि आय सतायो
लेन चहत जीव मोर॥
रामजीकेँ नहि और सहारा, अशरण शरणमे तोर॥
४४. समदाउन
गौनाके दिन हमर लगचाएल
सखि हे मिलि लिअ सकल समाजः॥
बहुरिनि हम फेर आयब एहि जग
दूरदेश सासुरके राजः॥
निसे दिन भूलि रहलौँ सखिके संग
नहि कएल अपन किछु काजः।
अवचित चित्त चंचल भेल बुझि
मोरा कोना करब हम काजः।
कहि संग जाए संदेश संबल किछु
दूर देश अछि बाटः॥
ऋण पैंच एको नहि भेटत
मारञमे कुश काँटः॥
हमरा पर अब कृपा करब सभ
क्षमब शेष अपराध
रामजी की पछताए करब अब
हम दूर देश कोना जाएबः॥
४५. महेशवाणी
कतेक कठिन तप कएलहुँ गौरी
एहि वर ले कोना॥
साँप सभ अंगमे सह सह करनि कोना,
बाघ छाल ऊपरमे देखल,
मुण्डमाल गहना॥
संगमे जे बाघ छनि,बड़द चढ़ना,
भूत प्रेत संगमे नाचए छनि कोना॥
गंगाजी जटामे हुहुआइ छथि कोना,
चन्द्रमा कपार पर शोभए छथि कोना।
भनथि रामजी सुनुए मैना,
शुभ शुभ के गौरी विवाह हठ छोड़ू अपना॥

विद्यापतिक बिदेसिया- पिआ देसाँतर
भोजपुरीक साहित्य मैथिलीसँ कम समृद्ध अछि मुदा से अछि मात्र परिमाणमे, गुणवत्ताक दृष्टिमे ई कतेक क्षेत्रमे आगाँ अछि। भोजपुरीक भिखाड़ी ठाकुरक बिदेसियाक सन्दर्भमे हम ई कहि रहल छी। भिखाड़ी ठाकुर कलकत्तामे प्रवासी रहथि, घुरि कय अएलाह आ भोजपुर क्षेत्रमे अपन कष्टक वर्णन जाहि मर्मस्पर्शी रूपसँ गामे-गामे घुमि कए आ गाबि कए सुनओलन्हि से बनल बिदेसिया नाटक। मिथिलामे प्रवास आजुक घटना छी, गामक-गाम सुन्न भऽ गेल अछि। मिथिलाक बिदेसिया लोकनि देशक कोन-कोनमे पसरि गेल छथि। मुदा पहिने भोजपुर इलाका जेकाँ प्रवासक घटना मिथिलामे नहि छल। प्रवास मोरंग धरि सीमित छल जे नेपालक मिथिलांचल क्षेत्र अछि। आ ताहिसँ मैथिलीमे लोकगाथाक सूक्ष्म विवरणक बड़ अभाव, जे अछियो से लोकगाथा नायकक विवरण नहि वरन महाकाव्यक नायकक मैथिलीमे विवरण जेकाँ अछि, आ बोझिल अछि, भिखाड़ी ठाकुरक बिदेसियाक जोड़ नहि। सलहेसक कथाक विवरण लिअ, क्षेत्रीय परिधि पार करिते सलहेस राजासँ चोर बनि जाइत छथि आ चोरसँ राजा। तहिना चूहड़मल क्षेत्रीय परिधि पार करिते जतए सलहेस राजा बनैत छथि ओतए चोर बनि जाइत छथि, आ जतए सलहेस चोर कहल जाइत छथि ओतुक्का राजा/ शक्तिशालीक रूपेँ जानल जाइत छथि। मुदा एहि सभपर कोनो शोध नहि भए सकल अछि। एहि क्रममे विद्यापतिक पदावलीक पद सभमे तकैत हमरा समक्ष विभिन्न प्रकारक गीत सभ सोझाँमे आएल। एहिमे जे अधिकांश छल से रहए प्रेमी-प्रेमिकाक विरहक विवरण आ बिदेसियाक जे मूल कनसेप्ट अछि- रोजी-रोटी आ आजीविका लेल मोन-मारि कए प्रवास, ताहिसँ फराक। तखन जा कए हमरा किछु विशुद्ध बिदेसिया जकरा विद्यापति पिआ-देसाँतर कहैत छथि भेटल। एहिमे स्वाभाविक रूपेँ अधिकांश विद्यापतिक नेपाल पदावलीसँ भेटल आ एकटा नगेन्द्रनाथ गुप्तक संग्रीहीत पदावलीसँ। मोरंग नेपाल स्थित मिथिलाक भाग अछि आ प्रवास लेल प्रसिद्ध छल, से एकर सम्भावित कारण।
ताहि आधारपर ई संकल्पित नाटिका प्रस्तुत अछि।
विद्यापतिक पिआ देसाँतर
दृश्य १
स्टेजपर हमर बिदेसिया बिदेस नोकरीक लेल बिदा होइत छथि आ जुवती गबैत छथि- गीतक बीचमे एकटा पथिक अबैत छथि । मंचक दोसर छोड़पर चोर लोकनि धपाइत नुकायल छथि। मंचक दोसर छोरपर कोतवाल आ शुभ्र धोतीधारी पेटपर हाथ देने निफिकिर बैसल छथि।
धनछी रागे (नेपालसँ प्राप्त विद्यापति पदावली)-
हम जुवती, पति गेलाह बिदेस। लग नहि बसए पड़उसिहु लेस।
हम युवती छी आ हमर पति बिदेस गेल छथि। लगमे पड़ोसीक कोनो अवशेष नहि अछि।

सासु ननन्द किछुआओ नहि जान। आँखि रतौन्धी, सुनए न कान।
सास आ ननदि सेहो किछु नहि बुझैत छथि। हुनकर सभक आँखिमे रतौँधी छन्हि आ ओ सभ कानसँ सेहो किछु नहि सुनैत छथि।

जागह पथिक, जाह जनु भोर। राति अन्धार, गाम बड़ चोर।
हे पथिक! निन्नकेँ त्यागू। काल्हि भोरमे नहि आऊ। अन्हरिया राति अछि आ गाममे बड्ड चोर सभ अछि।

सपनेहु भाओर न देअ कोटबार। पओलेहु लोते न करए बिचार।
कोतबाल स्वपनहुमे पहरा नहि दैत अछि आ नोत देलोपर विचार नहि करैत अछि।

नृप इथि काहु करथि नहि साति।
पुरख महत सब हमर सजाति॥
ताहि द्वारे राजा ककरो दण्ड नहि दैत छथि आ सभटा पैघ लोक एके रंग छथि।

विद्यापति कवि एह रस गाब। उकुतिहि भाव जनाब।
विद्यापति कवि ई रस गबैत छथि। उकतीसँ भाव जना रहलीह अछि।

विद्यापति कविक प्रवेश होइत छन्हि। कोतवालक लग शुभ्र-धोतीधारी आ एकटा गरीबक आगमन होइत अछि। कोतवाल आभाससँ धोतीधारीक पक्षमे निर्णय सुनबैत छथि आ मंचक दोसर कोनपर बैसलि जुवती माथ पिटैत छथि। गीतक अन्तिम चारि पाँती विद्यापति कवि गबैत छथि।
दृश्य २
जुवती एकटा दोकान खोलने छथि, सांकेतिक। मंचक दोसर कातसँ सासु आ ननदिकेँ जएबाक आ क्रेता पथिकक अएबाक संग युवती गेनाइ शुरू करैत छथि आ सभ पाँतिक बाद विद्यापति मंचपर अबैत छथि अर्थ कहैत छथि आ अंधकारमे विलीन भऽ जाइत छथि। मुदा अन्तिम पाँती विद्यापति गबैत छथि आ जुवती ओकर अर्थ बँचैत छथि।
मालवरागे (नेपालसँ प्राप्त विद्यापति पदावली)-
बड़ि जुड़ि एहि तरुक छाहरि, ठामे ठामे बस गाम।
एहि गाछक छाह बड्ड शीतल अछि। ठामे-ठाम गाम बसल अछि।
हम एकसरि, पिआ देसाँतर, नहि दुरजन नाम।
हम असगरि छी, प्रिय परदेसमे छथि, कतहु दुर्जनक नाम नहि अछि।

पथिक हे, एथा लेह बिसराम।
हे पथिक! एतय विश्राम करू।
जत बेसाहब किछु न महघ, सबे मिल एहि ठाम।
जे किछु कीनब, किछुओ महग नहि। सभ किछु एतए भेटत।
सासु नहि घर, पर परिजन ननन्द सहजे भोरि।
घरमे सासु नहि छथि, परिजन दूरमे छथि आ ननदि स्वभावसँ सरल छथि।
एतहु पथिक विमुख जाएब तबे अनाइति मोरि।
एतेक रहितो जे अहाँ विमुख भए जाएब तँ आब हमर सक्क नहि अछि।
भन विद्यापति सुन तञे जुवती जे पुर परक आस।
विद्यापति कहैत छथि- हे युवती! सुनू जे अहाँ दोसराक आस पूरा करैत छी।
दृश्य ३
एहि गीतमे विद्यापति नहि छथि। जुवतीक ननदि पथिककेँ दबारि रहल छथि, से देखि जुवतीकेँ अपन पिआ देसाँतर मोन पड़ि जाइत छन्हि। ओ ननदि आ सखीकेँ सम्बोधित कए गीत गबैत छथि। गीतक अर्थ सखी कहैत छथि, सभ पाँतीक बाद।
धनछीरागे (नेपालसँ प्राप्त विद्यापति पदावली)-
परतह परदेस, परहिक आस। विमुख न करिअ, अबस दिस बास।
परदेसमे नित्य दोसराक आस रहैत अछि। से ककरो विमुख नहि करबाक चाही। अवश्य वास देबाक चाही।
एतहि जानिअ सखि पिअतम-कथा।
हे सखी ! प्रियतमक लेल एतबी कथा बुझू।
भल मन्द नन्दन हे मने अनुमानि। पथिककेँ न बोलिअ टूटलि बानि।
हे ननदि! मोनमे नीक-अधलाहक अनुमान कऽ पथिककेँ टूटल गप नहि बाजू।

चरन-पखारन, आसन-दान। मधुरहु वचने करिअ समधान।
चरण पखारू, आसन दियौक आ मधुर वचन कहि सान्त्वना दियन्हु।
ए सखि अनुचित एते दुर जाए। आओर करिअ जत अधिक बड़ाइ।
हे सखी पथिक एतयसँ दूर जायत से अनुचित से ओकर आर बड़ाई करू।
दृश्य ४
जुवती आ ननदि नगर आबि ठौर धेने छथि। एकटा पथिक आबि आश्रय मँगैत छथि तँ जुवती गबैत छथि आ ननदि सभ पाँतीक बाद अर्थ कहैत छथि। बीचमे चारि पाँती बिना अर्थक नेपथ्यसँ अबैत अछि। फेर जुवती आगाँ गबैत छथि आ ननदि अर्थ बजैत छथि। अन्तमे अन्तिम दू पाँती विद्यापति आबि गबैत छथि। दृश्यक अन्तमे ननदि कहैत छथि जे हम जे ओहि दिन पथिककेँ दबारि रहल छलहुँ से अहाँकेँ नीक नहि लागल रहए, मुदा आइ पथिककेँ आश्रय किएक नहि देलियैक।
कोलाररागे (नेपालसँ प्राप्त विद्यापति पदावली)-
हम एकसरि, पिअतम नहि गाम। तेँ मोहि तरतम देइते ठाम।
हम एकसरि छी आ प्रियतम गाममे नहि छथि। ताहि द्वारे राति बिताबए लेल कहबामे हमरा तारतम्य भऽ रहल अछि।
अनतहु कतहु देअइतहुँ बास। दोसर न देखिअ पड़ओसिओ पास।
यदि क्यो लगमे रहितथि तँ दोसर ठाम कतहु बास देखा दैतहुँ।

छमह हे पथिक, करिअ हमे काह। बास नगर भमि अनतह चाह।
हे पथिक क्षमा करू आ जाऊ आ नगरमे कतहु बास ताकू।

आँतर पाँतर, साँझक बेरि। परदेस बसिअ अनाइति हेरि।
बीचमे प्रान्तर अछि सन्ध्याक समय अछि आ परदेसमे भविष्यकेँ सोचैत काज करबाक चाही।

मोरा मन हे खनहि खन भाँग। जौवन गोपब कत मनसिज जाग।
चल चल पथिक करिअ प... काह। वास नगर भमि अनतहु चाह।
सात पच घर तन्हि सजि देल। पिआ देसान्तर आन्तर भेल।
बारह वर्ष अवधि कए गेल। चारि वर्ष तन्हि गेला भेल।

घोर पयोधर जामिनि भेद। जे करतब ता करह परिछेद।
भयाओन मेघ अछि, रतुका गप छी सोचि कए निर्णय करू।

भनइ विद्यापति नागरि-रीति। व्याज-वचने उपजाब पिरीति।
विद्यापति कहैत छथि, ई नगरक रीति अछि जे कटु वचनसँ प्रीति अनैत अछि।
दृश्य ५
अहू दृश्यमे विद्यापति नहि छथि। एकटा पथिक अबैत छथि मुदा सासु-ननदि ककरो नहि देखि बास करबासँ संकोचवश मना कए आगाँ बढ़ि जाइत छथि। जुवती गबैत छथि।
घनछीरागे (नेपालसँ प्राप्त विद्यापति पदावली)-
उचित बसए मोर मनमथ चोर। चेरिआ बुढ़िआ करए अगोर।
कामदेव रूपी चोरक लेल हमर अवस्था ठीक अछि। बुढ़िया चेरी पहरा दऽ रहल छथि।

बारह बरख अवधि कए गेल। चारि बरख तन्हि गेलाँ भेल।
बारहम बरखक रही, तखन ओ गेलाह आ आब चारि बर्ख तकर भऽ गेल।

बास चाहैत होअ पथिकहु लाज। सासु ननन्द नहि अछए समाज।
सास आ ननदि क्यो संग नहि छथि आ पथिक सेहो डेरा देबासँ लजाइत छथि।

सात पाँच घर तन्हि सजि देल। पिआ देसाँतर आँतर भेल।
ओ कामदेव लेल घर सजा कए देशान्तर चलि गेलाह आ हमरा सभक बीचमे अन्तर आबि गेल।

पड़ेओस वास जोएनसत भेल। थाने थाने अवयव सबे गेल।
पड़ोसक बास जेना सय योजनक भऽ गेल सभ सर-सम्बन्धी जतए ततए चलि गेलाह।

नुकाबिअ तिमिरक सान्धि। पड़उसिनि देअए फड़की बान्धि।
लोकक समूह अन्हारमे विलीन भऽ गेल, पड़ोसिन फाटकि बन्न कए लेलन्हि।

मोरा मन हे खनहि खन भाग। गमन गोपब कत मनमथ जाग।
हमर मोन क्षण-क्षण भागि रहल अछि। कामदेव जागि रहल छथि गमनकेँ कतेक काल धरि नुकाएब।

दृश्य ६
एहि दृश्यमे सेहो, नहि तँ ननदि छथि, नहिये सासु आ नहिये विद्यापति। एकटा अतिथि अबैत छथि आकि तखने मेघ लाधि दैत अछि आ जुवती गबैत छथि।
धनछीरागे (नेपालसँ प्राप्त विद्यापति पदावली)-
अपना मन्दिर बैसलि अछलिहुँ, घर नहि दोसर केवा।
अपन घरमे बैसल छलहुँ, घरमे क्यो दोसर नहि छल,
तहिखने पहिआ पाहोन आएल बरिसए लागल देवा।
तखने पथिक अतिथि अएलाह आ बरखा लाधि देलक।

के जान कि बोलति पिसुन पड़ौसिनि वचनक भेल अवकासे।
की बजतीह ईर्ष्यालु पड़ोसिन से नहि जानि, बजबाक अवसर जे भेटि गेलन्हि।
घोर अन्धार, निरन्तर धारा दिवसहि रजनी भाने।
दिनहिमे रात्रि जेकाँ होमए लागल।
कञोने कहब हमे, के पतिअएत, जगत विदित पँचबाने।
हम ककरा कहब आ के पतियायत। कारण कामदेवक ख्याति तँ जगत भरिमे अछि।
दृश्य ७
मंचक एक दिससँ सासुक मृत्युक बाद हुनकर लहाश निकलैत छन्हि आ मंचपर अन्हार होइत अछि। फेर इजोत भेलापर ननदिक वर हुनका सासुर लए जाइत छन्हि। पथिक रस्तापर छथि दर्शकगणक मध्य आ दर्शकगणकेँ इशारा करैत जुवती गीत गबैत छथि आ विद्यापति सभ पाँतिक बाद अर्थ कहैत छथि। अन्तिम दू पाँतिमे विद्यापति गीत आ अर्थ दुनू बजैत छथि- विद्यापति अन्तिम दू पाँति आ ओकर अर्थ कैक बेर दोहराबैत छथि।
नगेन्द्रनाथ गुप्त सम्पादित पदावली-
सासु जरातुरि भेली। ननन्दि अछलि सेहो सासुर गेली।
सासु चलि बसलीह, ननदि सेहो सासुर गेलीह
तैसन न देखिअ कोई। रयनि जगाए सम्भासन होई।
क्यो नहि सम्भाषणक लेल पर्यन्त,
एहि पुर एहे बेबहारे। काहुक केओ नहि करए पुछारे।
एतुका एहन बेबहार, ककरो क्यो पुछारी नहि करैत अछि।
मोरि पिअतमकाँ कहबा। हमे एकसरि धनि कत दिन रहबा।
हमर पिअतमकेँ कहब, हम असगरे कतेक दिन रहब।
पथिक, कहब मोर कन्ता। हम सनि रमनि न तेज रसमन्ता।
पथिक हुनका कहबन्हि, हमरा सन रमणिक रसक तेज कखन धरि रहत।
भनइ विद्यापति गाबे। भमि-भमि विरहिनि पथुक बुझाबे।
विद्यापति गबैत छथि, विरहनि घूमि-घूमि कए पथिककेँ कहि रहल छथि।

विद्यापति गबैत-गबैत कनेक खसैत छथि- अन्हार पसरए लगैत अछि तँ एक गोटे जुवती दिस अन्हारसँ अबैत अस्पष्ट देखना जाइत छथि। की वैह छथि पिआ देसान्तर!! हँ, आकि नहि!!!

पिआ देसान्तरक घोल होइत अछि आ मंचपर संगीतक मध्य पटाक्षेप होइत अछि।

पिआ देसान्तरक ई कन्सेप्ट सुधीगणक समक्ष अछि आ मैथिल बिदेसिया लोकनिक वर्तमान दुर्दशाक बीच ई महाकवि विद्यापतिक प्रति ससम्मान अर्पित अछि।

बनैत-बिगड़ैत-सुभाषचन्द्र यादवक
कथा संग्रहक समीक्षा
सुभाषचन्द्र यादवजीक “बनैत बिगड़ैत” कथा-संग्रहक सभ कथामे सँ अधिकांशमे ई भेटत जे कथा खिस्सासँ बेशी एकटा थीम लए आगाँ बढ़ल अछि आ अपन काज खतम करितहि अन्त प्राप्त कएने अछि। दोसर विशेषता अछि एकर भाषा। बलचनमाक भाषा ओहि उपन्यासक मुख्य पात्रक आत्मकथात्मक भाषा अछि मुदा एतए ई भाषा कथाकारक अपन छन्हि आ ताहि अर्थेँ ई एकटा विशिष्ट स्वरूप लैत अछि। एक दिस कथाक उपदेशात्मक खिस्सा-पिहानी स्वरूप ग्रहण करबाक परिपाटीक विरुद्ध सुभाषजीक कथाकेँ एकटा सीमित परिमितिमे थीम लऽ कए चलबाक, भाषाक शिल्प जे खाँटी देशी अछि पर ध्यान देबाक सम्मिलित कारणसँ पाठकक एक वर्गकेँ एहि संग्रहक कथा सभमे असीम आनन्द भेटतन्हि तँ संगे-संग खिस्सा-पिहानीसँ बाहर नहि आबि सकल पाठक वर्गकेँ ई कथा संग्रह निराश नहि करत वरन हुनकर सभक रुचिक परिष्करण करत।
किछु भाषायी मानकीकरण प्रसंग- जेना ऐछ, अछि, अ इ छ । जाहि कालमे मानकीकरण भऽ रहल छल ओहि समय एहिपर ध्यान देबाक आवश्यकता रहए। जेना “जाइत रही” केँ “जाति रही” लिखी आ फेर जाति (जा इ त) लेल प्रोनन्सिएशनक निअम बनाबी तेहने सन ऐछ संगे अछि। मुदा आब देरी भऽ गेल अछि से लेखको कनियाँ-पुतरा मे एकर प्रयोग कए दिशा देखबैत छथि मुदा दोसर कथा सभमे घुरि जाइत छथि। मुदा एहिसँ ई आवश्यकता तँ सिद्ध होइते अछि जे एकटा मानक रूप स्थिर कएल जाए आ “छै” लिखबाक अछि तँ सेहो ठीक आ “छैक” लिखबाक अछि तँ “अन्तक ’क’ साइलेन्ट अछि” से प्रोनन्सिएशनक निअम बनए। मुदा से जल्दी बनए आ सर्वग्राह्य होअए तकर बेगरता हमरा बुझाइत अछि, आजुक लोककेँ “य” लिखल जाए वा “ए” एहिपर भरि जिनगी लड़बाक समय नहि छै, जे ध्वनि सिद्धांत कहैत अछि से मानू, आ नहि तँ प्रोनन्सिएशनक निअम बनाऊ। “नहि” लेल “नञि” लिखब तँ बुझबामे अबैत अछि मुदा नइँ (अन्तिका), नइं (एन.बी.टी.) आ नँइ (साकेतानन्द - कालरात्रिश्च दारुणा) मे सँ साकेतानन्दजी बला प्रयोग ध्वनि-विज्ञान सिद्धांतसँ बेशी समीचीन सिद्ध होइत अछि आ से विश्वास नहि होअए तँ ध्वनि प्रयोगशाला सभक मदति लिअ।(वैज्ञानिक आ मानक मैथिली वर्णमालाक ऑडियो फाइल विदेह आर्काइवक (http://www.videha.co.in/) विदेह ऑडियो लिंकपर डाउनलोड/श्रवण लेल उपलब्ध अछि।)
“बनैत बिगड़ैत” पोथीक ई एकटा विशेषता अछि जे सुभाषचन्द्र यादवजी अपन विशिष्ट लेखन-शैलीक प्रयोग कएने छथि जे ध्वन्यात्मक अछि आ मानकीकरण सम्वादकेँ आगाँ लए जएबामे सक्षम अछि।

कथाक यात्रा- वैदिक आख्यान, जातक कथा, ऐशप फेबल्स, पंचतंत्र आ हितोपदेश आ संग-संग चलैत रहल लोकगाथा सभ। सभ ठाम अभिजात्य वर्गक कथाक संग लोकगाथा रहिते अछि।
कथामे असफलताक सम्भावना उपन्यास-महाकाव्य-आख्यान सँ बेशी होइत अछि, कारण उपन्यास अछि “सोप ओपेरा” जे महिनाक-महिना आ सालक-साल धरि चलैत अछि आ सभ एपीसोडक अन्तमे एकटा बिन्दुपर आबि खतम होइत अछि। माने सत्तरि एपीसोडक उपन्यासमे उन्हत्तरि एपीसोड धरि तँ आशा बनिते अछि जे कथा एकटा मोड़ लेत आ अन्त धरि जे कथाक दिशा नहिए बदलल तँ पुरनका सभटा एपीसोड हिट आ मात्र अन्तिम एपीसोड फ्लॉप। मुदा कथा एकर अनुमति नहि दैत अछि। ई एक एपीसोड बला रचना छी आ नीक तँ खूबे नीक आ नहि तँ खरापे-खराप।

कथा-गाथा सँ बढ़ि आगू जाइ तँ आधुनिक कथा-गल्पक इतिहास उन्नैसम शताब्दीक अन्तमे भेल। एकरा लघुकथा, कथा आ गल्पक रूप मानल गेल। ओना एहि तीनूक बीचक भेद सेहो अनावश्यक रूपसँ व्याख्यायित कएल गेल। रवीन्द्रनाथ ठाकुरसँ शुरु भेल ई यात्रा भारतक एक कोनसँ दोसर कोन धरि सुधारवाद रूपी आन्दोलनक परिणामस्वरूप आगाँ बढ़ल। असमियाक बेजबरुआ, उड़ियाक फकीर मोहन सेनापति, तेलुगुक अप्पाराव, बंगलाक केदारनाथ बनर्जी ई सभ गोटे कखनो नारीक प्रति समर्थनमे तँ कखनो समाजक सूदखोरक विरुद्ध अबैत गेलाह। नेपाली भाषामे “देवी को बलि” सूर्यकान्त ज्ञवाली द्वारा दसहराक पशुबलि प्रथाक विरुद्ध लिखल गेल। कोनो कथा प्रेमक बंधनक मध्य जाति-धनक सीमाक विरुद्ध तँ कोनो दलित समाजक स्थिति आ धार्मिक अंधविश्वासक विषयमे लिखल गेल। आ ई सभ करैत सर्वदा कथाक अन्त सुखद होइत छल सेहो नहि।
वाद: साहित्य: उत्तर आधुनिक, अस्तित्ववादी, मानवतावादी, ई सभ विचारधारा दर्शनशास्त्रक विचारधारा थिक। पहिने दर्शनमे विज्ञान, इतिहास, समाज-राजनीति, अर्थशास्त्र, कला-विज्ञान आ भाषा सम्मिलित रहैत छल। मुदा जेना-जेना विज्ञान आ कलाक शाखा सभ विशिष्टता प्राप्त करैत गेल, विशेष कए विज्ञान, तँ दर्शनमे गणित आ विज्ञान मैथेमेटिकल लॉजिक धरि सीमित रहि गेल। दार्शनिक आगमन आ निगमनक अध्ययन प्रणाली, विश्लेषणात्मक प्रणाली दिस बढ़ल। मार्क्स जे दुनिया भरिक गरीबक लेल एकटा दैवीय हस्तक्षेपक समान छलाह, द्वन्दात्मक प्रणालीकेँ अपन व्याख्याक आधार बनओलन्हि। आइ-काल्हिक “डिसकसन” वा द्वन्द जाहिमे पक्ष-विपक्ष, दुनू सम्मिलित अछि, दर्शनक (विशेष कए षडदर्शनक- माधवाचार्यक सर्वदर्शन संग्रह-द्रष्टव्य) खण्डन-मण्डन प्रणालीमे पहिनहिसँ विद्यमान छल।
से इतिहासक अन्तक घोषणा कएनिहार फ्रांसिस फुकियामा -जे कम्युनिस्ट शासनक समाप्तिपर ई घोषणा कएने छलाह- किछु दिन पहिने एहिसँ पलटि गेलाह। उत्तर-आधुनिकतावाद सेहो अपन प्रारम्भिक उत्साहक बाद ठमकि गेल अछि। अस्तित्ववाद, मानवतावाद, प्रगतिवाद, रोमेन्टिसिज्म, समाजशास्त्रीय विश्लेषण ई सभ संश्लेषणात्मक समीक्षा प्रणालीमे सम्मिलित भए अपन अस्तित्व बचेने अछि।
साइको-एनेलिसिस वैज्ञानिकतापर आधारित रहबाक कारण द्वन्दात्मक प्रणाली जेकाँ अपन अस्तित्व बचेने रहत।
आधुनिक कथा अछि की? ई केहन होएबाक चाही? एकर किछु उद्देश्य अछि आकि होएबाक चाही? आ तकर निर्धारण कोना कएल जाए ?
कोनो कथाक आधार मनोविज्ञान सेहो होइत अछि। कथाक उद्देश्य समाजक आवश्यकताक अनुसार आ कथा यात्रामे परिवर्तन समाजमे भेल आ होइत परिवर्तनक अनुरूपे होएबाक चाही। मुदा संगमे ओहि समाजक संस्कृतिसँ ई कथा स्वयमेव नियन्त्रित होइत अछि। आ एहिमे ओहि समाजक ऐतिहासिक अस्तित्व सोझाँ अबैत अछि।
जे हम वैदिक आख्यानक गप करी तँ ओ राष्ट्रक संग प्रेमकेँ सोझाँ अनैत अछि। आ समाजक संग मिलि कए रहनाइ सिखबैत अछि।
जातक कथा लोक-भाषाक प्रसारक संग बौद्ध-धर्म प्रसारक इच्छा सेहो रखैत अछि।
मुस्लिम जगतक कथा जेना रूमीक “मसनवी” फारसी साहित्यक विशिष्ट ग्रन्थ अछि जे ज्ञानक महत्व आ राज्यक उन्नतिक शिक्षा दैत अछि।
आजुक कथा एहि सभ वस्तुकेँ समेटैत अछि आ एकटा प्रबुद्ध आ मानवीय (!) समाजक निर्माणक दिस आगाँ बढ़ैत अछि। आ जे से नहि अछि तँ ई ओकर उद्देश्यमे सम्मिलित होएबाक चाही। आ तखने कथाक विश्लेषण आ समालोचना पाठकीय विवशता बनि सकत।
कम्यूनिस्ट शासनक समाप्ति आ बर्लिनक देबालक खसबाक बाद फ्रांसिस फुकियामा घोषित कएलन्हि जे विचारधाराक आपसी झगड़ासँ सृजित इतिहासक ई समाप्ति अछि आ आब मानवक हितक विचारधारा मात्र आगाँ बढ़त। मुदा किछु दिन पहिनहि ओ एहि मतसँ आपस भऽ गेलाह आ कहलन्हि जे समाजक भीतर आ राष्ट्रीयताक मध्य एखनो बहुत रास भिन्न विचारधारा बाँचल अछि। तहिना उत्तर आधुनिकतावादी विचारक जैक्स देरीदा भाषाकेँ विखण्डित कए ई सिद्ध कएलन्हि जे विखण्डित भाग ढेर रास विभिन्न आधारपर आश्रित अछि आ बिना ओकरा बुझने भाषाक अर्थ हम नहि लगा सकैत छी।
मनोविश्लेषण आ द्वन्दात्मक पद्धति जेकाँ फुकियामा आ देरीदाक विश्लेषण सेहो संश्लेषित भए समीक्षाक लेल स्थायी प्रतिमान बनल रहत।
सुभाष चन्द्र यादवक कथा-संग्रह बनैत बिगड़ैत:
स्वतन्त्रताक बादक पीढ़ीक कथाकार छथि सुभाषजी। कथाक माध्यमसँ जीवनकेँ रूप दैत छथि। शिल्प आ कथ्य दुनूसँ कथाकेँ अलंकृत कए कथाकेँ सार्थक बनबैत छथि। अस्तित्वक लेल सामान्य लोकक संघर्ष तँ एहि स्थितिमे हिनकर कथा सभमे भेटब स्वाभाविके। कएक दशक पूर्व लिखल हिनक कथा “काठक बनल लोक” क बदरिया साइते संयोग हंसैत रहए। एहु कथा संग्रहक सभ पात्र एहने सन विशेषता लेने अछि। हॉस्पीटलमे कनैत-कनैत सुतलाक बाद उठि कए कोनो पात्र फेरसँ कानए लगैत छथि तँ कोनो पात्र प्रेममे पड़ल छथि। किनकोमे बिजनेस सेन्स छन्हि तँ हरिवंश सन पात्र सेहो छथि जे उपकारक बदला सिस्टम फॉल्टक कारण अपकार कए जाइत छथि। आब “बनैत बिगड़ैत” कथा संग्रहक कथा सभपर गहिंकी नजरि दौगाबी।
कनियाँ-पुतरा- एहि कथामे रस्तामे एकटा बचिया लेखकक पएर छानि फेर ठेहुनपर माथ राखि निश्चिन्त अछि, जेना माएक ठेहुनपर माथ रखने होअए। नेबो सन कोनो कड़गर चीज लेखकसँ टकरेलन्हि। ई लड़कीक छाती छिऐ। लड़की निर्विकार रहए जेना बाप-दादा वा भाए बहिन सऽ सटल हो। लेखक सोचैत छथि, ई सीता बनत की द्रौपदी। राबन आ दुर्जोधनक आशंका लेखककेँ घेर लैत छन्हि।
कनियाँ-पुतरा पढ़बाक बाद वैह सड़कक चौबटिया अछि आ वैह रेड-लाइटपर गाड़ी चलबैत-रोकैत काल बालक-बालिका सभ देखबामे अबैत छथि। मुदा आब दृष्टिमे परिवर्तन भऽ जाइत अछि। कारक शीसा पोछि पाइ मँगनिहार बालक-बालिकाकेँ पाइ-देने वा बिन देने, मुदा बिनु सोचने आगाँ बढ़ि जाएबला दृष्टिक परिवर्तन। कनियाँ-पुतरा पढ़बाक बाद की हुनकर दृष्टिमे कोनो परिवर्तन नहि होएतन्हि? बालक तँ पैघ भए चोरि करत वा कोनो ड्रग कार्टेलक सभसँ निचुलका सीढ़ी बनत मुदा बालिका ? ओ सीता बनत आकि द्रौपदी आकि आम्रपाली। जे सामाजिक संस्था, ह्यूमन राइट्स ऑरगेनाइजेशन कोनो प्रेमीक बिजलीक खाम्हपर चढ़ि प्राण देबाक धमकीपर नीचाँ जाल पसारि कऽ टी.वी.कैमरापर अपन आ अपन संस्थाक नाम प्रचारित करैत छथि ओ एहि कथाकेँ पढ़लाक बाद ओहि पुरातन दृष्टिसँ काज कए सकताह? ओ सरकार जे कोनो हॉस्पीटलक नाम बदलि कए जयप्रकाश नारायणक नामपर करैत अछि वा हार्डिंग पार्कक नाम वीर कुँअर सिंहक नामपर कए अपन कर्त्तव्यक इतिश्री मानि लैत अछि ओ समस्याक जड़ि धरि पहुँचि नव पार्क आ नव हॉस्पीटल बना कए जयप्रकाश नारायण आ वीर कुँअर सिंहक नामपर करत आकि दोसरक कएल काजमे “मेड बाइ मी” केर स्टाम्प लगाओत? ई संस्था सभ आइ धरि मेहनतिसँ बचैत अएबाक आ सरल उपाय तकबाक प्रवृत्तिपर रोक नहि लगाओत?
असुरक्षित- ट्रेनसँ उतरलाक बाद घरक २० मिनटक रस्ताक राति जतेक असुरक्षित भऽ गेल अछि तकर सचित्र वर्णन ई कथा करैत अछि। पहिने तँ एहन नहि रहैक- ई अछि लोकक मानसिक अवस्था। मुदा एहि तरहक समस्या दिस ककरो ध्यान कहाँ छै। पैघ-पैघ समस्या, उदारीकरण आन कतेक विषयपर मीडिआक ध्यान छै। चौक-चौराहाक एहि तरहक समस्यापर नव दृष्टि अबैत अछि, एहिमे स्टेशनसँ घरक बीचक दूरी रातिक अन्हारमे पहाड़ सन भऽ जाइत अछि। प्रदेशक तत्कालीन कानून-व्यवस्थापर ई एक तरहक टिप्पणी अछि।
एकाकी- एहि कथामे कुसेसर हॉस्पीटलमे छथि। हॉस्पीटलक सचित्र विवरण भेल अछि। ओतए एकटा स्त्री पतिक मृत्युक बाद कनैत-कनैत प्रायः सुति गेलि आ फेर निन्न टुटलापर कानए लागलि। एना होइत अछि। कथाकार मानव जीवनक एकटा सत्यता दिस इशारा दैत आ हॉस्पीटलक बात-व्यवस्थापर टिप्पणी तेना भऽ कए नहि वरण जीवन्तता देखा कए करैत छथि।
ओ लड़की- एहि कथामे हॉस्टलक लड़का-लड़कीक जीवनक बीच नवीन नामक युवक एकटा लड़कीक हाथमे ऐंठ खाली कप, जे ओहि लड़कीक आ ओकर प्रेमीक अछि, देखैत अछि। लड़की नवीनकेँ पुछैत छै जे ओ केम्हर जा रहल अछि। नवीनकेँ होइत छै जे ओ ओकरा अपनासँ दब बुझि कप फेंकबाक लेल पुछलक। नवीन ओकरा मना कऽ दैत अछि। विचार सभ ओकर मोनमे घुरमैत रहैत छै। ई कथा एकटा छोट घटनापर आधारित अछि...जे ओ हमरा दब बूझि चाहक कप फेकबाक लेल कहलक? आ ओ दृढ़तासँ नहि कहि आगाँ बढ़ि जाइत अछि। एकाकी जेकाँ ई कथा सेहो मनोवैज्ञानिक विश्लेषणपर आधारित अछि।
एकटा प्रेम कथा- पहिने जकरा घरमे फोन रहैत छल तकरा घरमे दोसराक फोन अबैत रहैत छल, जे एकरा तँ ओकरा बजा दिअ। लेखकक घरमे फोन छलन्हि आ ओ एकटा प्रेमीक प्रेमिकाक फोन अएलापर, ओकर प्रेमीकेँ बजबैत रहैत छथि। प्रेमी मोबाइल कीनि लैत अछि से फोन आएब बन्द भऽ जाइत अछि। मुदा प्रेमी द्वारा नम्बर बदलि लेलापर प्रेमिकाक फोन फेरसँ लेखकक घरपर अबैत अछि। प्रेमिका, प्रेमीक ममियौत बहिनक सखी रितु छथि आ लेखक ओकर सहायताक लेल चिन्तित भऽ जाइत छथि। एहि कथामे प्रेमी-प्रेमिका, मोबाइल आ फोन ई सभ नव युगक संग नव कथामे सेहो स्वाभाविक रूपेँ अबैत अछि।
टाइटल कथा अछि बनैत-बिगड़ैत। तीन टा नामित पात्र । माला, ओकर पति सत्तो आ पोती मुनियाँ । गाम-घरक जे सास-पुतोहुक गप छै, सेहन्ता रहि गेल जे कहियो नहेलाक बाद खाइ लेल पुछितए, एहन सन। मुदा सैह बेटा-पुतोहु जखन बाहर चलि जाइत छथि तँ वैह सासु कार कौआक टाहिपर चिन्तित होमए लगैत छथि। माइग्रेशनक बादक गामक यथार्थकेँ चित्रित करैत अछि ई कथा। सत्तोक संग कौआ सेहो एक दिन बिला जएत आ मुनियाँ कौआ आ दादा दुनूकेँ तकैत रहत।प्रवासीक कथा, बेटा-पुतोहुक आ पोतीक कथा, सासु-पुतोहुक झगड़ा आ प्रेम !
अपन-अपन दुःख कथामे पत्नी, अपन अवहेलनाक स्थितिमे, धीया-पुताकेँ सरापैत छथि। रातिमे धीया-पुताक खेनाइ, खा लेबा उत्तर भनसाघरक ताला बन्द रहबाक स्थितिमे पत्नीक भूखल रहब आ परिणामस्वरूप पतिक फोंफक स्वरसँ कुपित होएब स्वाभाविक। सभक अपन संसार छै। लोक बुझैए जे ओकरे संसारक सुख आ दुःख मात्र सम्पूर्ण छै मुदा से नहि अछि। सभक अपन सुख-दुःख छै, अपन आशा आ आकांक्षा छै। कथाकार ओहन सत्यकेँ उद्घाटित करैत छथि, जे हुनकर अनुभवक अंतर्गत अबैत छन्हि। आत्मानुभूति परिवेश स्वतंत्र कोना भए सकत आ से सुभाष चन्द्र यादवजीक सभ कथामे सोझाँ अबैत अछि।
आतंक कथामे कथाकारकेँ पुरान संगी हरिवंशसँ कार्यालयमे भेँट होइत छन्हि। लेखकक दाखिल-खारिज बला काज एहि लऽ कऽ नहि भेलन्हि जे हरिवंशक स्थानान्तरणक पश्चात् ने क्यो हुनकासँ घूस लेलक आ ताहि द्वारे काजो नहि केलक। हरिवंशक बगेबानी घूसक अनेर पाइक कारण छल से दोसर किएक अपन पाइ छोड़त ? लेखक आतंकित छथि। कार्यालयक परिवेश, भ्रष्टाचार आ एक गोटेक स्थानांतरणसँ बदलैत सामाजिक सम्बन्ध ई सभ एतए व्यक्त भेल अछि। आइ काल्हि हम आकि अहाँ ब्लॉकमे वा सचिवालयमे कोनो काज लेल जाइत छी, तँ यैह ने सुनए पड़ैत अछि, जे पाइ जे माँगत से दए देबैक आ तखन कोनो दिक्कत होअए तँ कहब ! आ पाइक बदला ककरो नाम वा पैरवी लए गेलहुँ तँ कर्मचारी ने पाइये लेत आ नहिये अहाँक काज होएत।
एकटा अन्त कथामे ससुरक मृत्युपर लेखकक साढ़ू केश कटेने छथि आ लेखक नहि, एहिपर कैक तरहक गप होइत अछि। साढ़ू केश कटा कऽ निश्चिन्त छथि। ई जे सांस्कृतिक सिम्बोलिज्म आएल अछि, जे पकड़ा गेल से चोर आ खराप काज केनिहार, जे नहि पकड़ाएल से आदर्शवादी। पूरा-पूरी तँ नहि, मुदा अहू कथामे एहने आस्था जन्म लैत अछि आ टूटि जाइत अछि। हरियाणामे बापो मरलापर लोक केश नहि कटबैत अछि, तँ की ओकर दुःखमे कोनो कमी रहैत छै तेँ ? पंजाबक महिला एक बरखक बाद ने सिनूर लगबैत छथि आ ने चूड़ी पहिरैत छथि मुदा पहिल बरख कान्ह धरि चूड़ी भरल रहैत छन्हि, तँ की बियाहक पहिल बरखक बाद हुनकर पति-प्रेममे कोनो घटंती आबि जाइत छन्हि ?
कबाछु कथा मे चम्पीबलाक लेखक लग आएब, जाँघपर हाथ राखब। अभिजात्य संस्कारक लोक लग बैसल रहबाक कारणसँ लेखक द्वारा ओकर हाथ हटाएब । चम्पीबला द्वारा ई गप बाजब जे छुअल देहकेँ छूलामे कोन संकोच। जेना चम्पीवला लेखककेँ बुझाइय रहन्हि जे हुनका युवती बुझि रहल छलन्हि। लेखककेँ लगैत छन्हि जे ओ स्त्री छथि आ चम्पीबला ओकर पुरान यार। ठाम-कुठाम आ समय-कुसमयक महीन समझ चम्पीवलाकेँ नहि छइ, नहि तँ लेखक ओतेक गरमीयोमे चम्पी करा लैतए। चम्पीवलाक दीनतापर अफसोच भेलन्हि मुदा ओकर शी-इ-इ केँ मोन पाड़ैत वितृष्णा सेहो। फ्रायडक मनोविश्लेषणक बड्ड आलोचना भेल जे ओ सेक्सकेँ केन्द्रमे राखि गप करैत छथि। मुदा अनुभवसँ ई गप सोझाँ अबैत अछि जे सेक्ससँ जतेक दूरी बनाएब, जतेक एकरा वार्तालाप-कथा-साहित्यसँ दूर राखब, ओकर आक्रमण ततेक तीव्र होएत।
कारबार मे लेखकक भेँट मिस्टर वर्मा, सिन्हा आ दू टा आर गोटेसँ होइत अछि। बार मे सिन्हा दोस्ती आ बिजनेसकेँ फराक कहैत दू टा खिस्सा सुनबैत अछि। सभ चीजक मोल अछि, एहिपर एकटा दोस्तक वाइफ लेल टी.वी. किनबाक बाद फ्रिजक डिमान्ड अएबाक गप बीचेमे खतम भऽ जाइत अछि। दोसर खिस्सामे एकटा स्त्री पतिक जान बचबए लेल डॉक्टरक फीस देबाक लेल पूर्व प्रेमी लग जाइत अछि। पूर्व प्रेमी पाइ देबाक बदलामे ओकरा संगे राति बितबए लेल कहैत छै। सिन्हा एहि कथामे ककरो गलती नहि मानैत छथि, डॉक्टर बिना पाइ लेने किएक इलाज करत, पूर्व प्रेमी मँगनीमे पाइ किएक देत आ ओ स्त्री जे पूर्व प्रेमी संग राति नहि बिताओत, तँ ओकर पति मरि जएतैक।
आब बारसँ लेखक निकलैत छथि तँ दरबानक सलाम मारलापर अहूमे पैसाक टनक सुनाइ पड़ए लगैत छन्हि। प्राचीन मूल्य, दोस्ती-यारी आ आदर्शक टूटबाक स्थिति एकटा एकाकीपनक अनुभव करबैत अछि।
कुश्ती मे सेहो फ्रायड सोझाँ अबैत छथि, कथाक प्रारम्भ लुंगीपरक सुखाएल कड़गर भेल दागसँ शुरू होइत अछि। मुदा तुरत्ते स्पष्ट होइत अछि, जे ओ से दाग नहि अछि, वरन घावक दाग अछि। फेर हाटक कुश्तीमे गामक समस्याक निपटारा, हेल्थ सेन्टरक बन्द रहब, ओतए ईंटाक चोरिक चरचा अबैत अछि। छोट भाइ कोनो इलाजक क्रममे एलोपैथीसँ हटि कए होम्योपैथीपर विश्वास करए लगैत छथि, एहि गपक चरचा आएल अछि। लोक सभक घावक समाचार पुछबा लऽ अएनाइ आ लेखक द्वारा सभकेँ विस्तृत विवरण कहि सुनओनाइ मुदा उमरिमे कम वयसक कैक गोटेकेँ टारि देनाइ, ई सभ क्रम एकटा वातावरणक निर्माण करैत अछि।
कैनरी आइलैण्डक लारेल कथामे सुभाष आ उपिया कथाक चरित्र छथि। एतए एकटा बिम्ब अछि- जेना निर्णय कोसीक धसना जकाँ। ममियौत भाइक चिट्ठी, कटारि देने नाहपर जएबाक, गेरुआ पानिक धारमे आएब, नाहक छीटपर उतारब, छीटक बादो बहुत दूर धरि जाँघ भरि पानिक रहब। धीपल बालुपर साइकिलकेँ ठेलैत देखि क्यो कहैत छन्हि- “साइकिल ससुरारिमे देलक-ए? कने बड़द जकाँ टिटकार दियौक”। दीदी-पीसा अहिठाम एहि गपक चरचा सुनलन्हि, जे कोटक खातिर हुनकर बेटीक विवाह दू दिन रुकि गेल छलन्हि आ ईहो जे बेसी पढ़ने लोक बताह भऽ जाइत अछि।सुभाष चाहियो कऽ दू सए टाका नहि माँगि पबैत छथि, दीदीक व्यवहार अस्पष्ट छन्हि, सुभाष आश्वस्त नहि छथि आ घुरि जाइत छथि।
तृष्णा कथामे लेखककेँ अखिलन भेटैत छन्हि। श्रीलतासँ ओ अपन भेँटक विवरण कहि सुनबैत अछि। पाँचम दिन घुरलाक बाद ट्रेनमे ओ नहि भेटलीह। आब अखिलन की करत, विशाखापत्तनम आ विजयवाड़ाक बीचक रस्तामे चक्कर काटत आकि स्मृतिक संग दिन काटत।
छोट-छोट भावनात्मक घटनाक विश्लेषण अछि कथा “कैनरी आइलैण्डक लारेल” आ “तृष्णा”।
दाना कथामे मोहन इन्टरव्यू लेल गेल अछि, ओतए सहृदय चपरासी सूचित करैत छै जे बाहरीकेँ नहि लैत छै, पी.एच.डी. रहितए तँ कोनो बात रहितए। मोहनकेँ सभ चीज बीमार आ उदास लगैत रहए। फुद्दी आ मैना पावरोटीक टुकड़ीपर ची-ची करैत झपटैत रहए।प्रतियोगी परीक्षाक साक्षात्कारमे बाहरी आ लोकल केर जे संकल्पना आएल अछि तकर सम्वेदनात्मक वर्णन भेल अछि।
दृष्टि कथामे पढ़ाइ खतम भेलाक बाद नोकरीक खोज, गाममे लोकसभक तीक्ष्ण कटाक्ष। फेर दक्षिण भारतीय पत्रकारक प्रेरणासँ कनियाँक विरोधक बावजूद गाममे लेखकक खेतीमे लागब। ई सभ गप एकटा सामान्य कथ्य रहलाक बादो ठाम-ठाम सामाजिक सत्य उद्घाटित करैत अछि। एतए गामक लोकक कुटीचाली अछि, जे काजक अभावमे खाली समय बेशी रहलाक कारण अबैत अछि। संगमे आइ-काल्हिक स्त्रीक शहरी जीवन जीबाक आकांक्षा सेहो प्रदर्शित करैत अछि।
नदी कथामे कथ्य कथाक संगे चलैत अछि आ खतम भए जाइत अछि। गगनदेवक घरपर बिहारी आएल छै। शहरमे ओकरा एक साल रहबाक छै। गगनदेवकेँ ओकरा संग मकान खोजबाक क्रममे एकटा लड़कीसँ भेँट होइत छै। ओकरा छोड़ि आगाँ बढ़ल तँ ई बुझलाक बादो जे आब ओकरासँ फेर भेँट नहि हेतइ ओ उल्लास आ प्रेमक अनुभूतिसँ भरि गेल।
परलय बाढिक कथा थिक, कोसीक कथा कहल गेल अछि एतए। बौकी बुनछेकक इन्तजारीमे अछि। मुदा धारमे पानि बढ़ि रहल छै। कोशीक बाढ़ि बढ़ल आबि रहल छै आ एम्हर माएक रद्द-दस्तसँ हाल-बेहाल छै। माल-जाल भूखसँ डिकरैत रहै। रामचरनक घरमे अन्नपानि बेशी छै से ओ सभकेँ नाहक इन्तजाम लेल कहैत छै। बौकूक घरसँ कटनियाँ दूर रहै। मृत्यु आ विनाश बौकूकेँ कठोर बना देलकैक, मोह तोड़ि देलकैक। मुदा बरखा रुकि गेलैक। बौकू चीज सभकेँ चिन्हबाक आ स्मरण करबाक प्रयत्न करए लागल।
बात कथामे सेहो कथाकार अपन कथानककेँ बाट चलिते ताकि लैत छथि आ शिल्पसँ ओकरा आगाँ बढ़बैत छथि। नेबो दोकानपर नेबोवला आ एकटा लोकक बीचमे बहस सुनैत लेखक बीचमे कूदि पड़ैत छथि। नेबोवलासँ एक गोटे अपन छत्ता माँगि रहल अछि जे ओ नीचाँ रखने रहए।दुखक गप, लेखकक अनुसार, बेशी दिन धरि लोककेँ मोन रहैत छै।
रंभा कथामे पुरुष-स्त्रीक बीचक बदलैत सम्बन्धक तीव्र गतिसँ वर्णन भेल अछि। पुरुष यावत स्त्रीसँ दूर रहैत अछि तँ सभ ओकरा मेनका आ रम्भा देखाइ पड़ैत छै। मुदा जे सम्वादक प्रारम्भ होइत अछि तँ बादमे लेखक केँ लगैत छन्हि जे ओ बेटीये छी।रस्तामे एक स्त्री अबैत अछि। लेखक सोचैत छथि जे ई के छी, रम्भा, मेनका आकि...। ओकरा संग बेटा छै, ओतेक सुन्नर नहि, कारण एकर वर सुन्दर नहि होएतैक। ओ गपशपमे कखनो लेखककेँ ससुर जकाँ, कखनो अपनाकेँ हुनकर बेटी तुल्य कहैत अछि। पहिने लेखककेँ खराप लगलन्हि। मुदा बादमे लेखककेँ नीक लगलन्हि। मुदा अन्तमे ओकर पएर छूबए लेल झुकब मुदा बिन छूने सोझ भऽ जाएब नहि बुझिमे अएलन्हि।
हमर गाम कथामे लेखकक गामक रस्ता, कटनियाँ सँ मेनाही गामक लोकक छिड़िआएब आ बान्हक बीचमे अहुरिया काटैत लोकक वर्णन अछि। कोसिकन्हाक लोक- जानवरक समान, जानवरक हालतमे। कटनियाँमे लेखकक घर कटि गेलन्हि से ओ नथुनियाँ एहिठाम टिकैत छथि। मछबाहि आ चिड़ै बझाबऽ लेल नथुनी जोगार करैत अछि। जमीनक झगड़ा छन्हि, एक हिस्सेदारक जमीन धारमे डूमल छै से ओ लेखकक गहूमवला खेत हड़पए चाहैत अछि। शन आ स्त्रीक (!) पाछू लोक बेहाल अछि।
स्त्रीक पाछू बिन कारण लेखक पड़ि गेल छथि जेना विष्णु शर्मा पंचतंत्रमे कथा कहैत-कहैत शूद्र आ महिलाक पाछाँ पड़ि जाइत छथि।
यावत सभ कमलक घूर लग कपक अभावमे बेरा-बेरी चाह पिबैत छथि, फसिल कटि कऽ सिबननक एतए चलि जाइ-ए। झौआ, कास, पटेरक जंगल जखन रहए, चिड़ै बड्ड आबए, आब कम अबैत अछि। खढ़िया, हरिन, माछ, काछु, डोका सभ खतम भऽ रहल छै- जीवनक साधन दुर्लभ भऽ गेल अछि। साँझमे जमीनक पंचैती होइत अछि।सत्तोक बकड़ी मरि गेलैक, पुतोहु एकर कारण सासुक सरापब कहैत अछि। सासु एकर कारण बलि गछलोपर पाठी सभकेँ बेचब कहैत छथि। सत्तोक बेटीक जौबनक उभारकेँ लेखक पुरुष सम्पर्कक साक्षी कहैत छथि आ सकारण फेरसँ महिलाक पाछाँ पड़ि जाइत छथि, कारण ई धारणा लोकमे छै। सत्तोक बेटी एखन सासुर नहि बसैत छै। सुकन रामक एहिठाम खाइत काल लेखककेँ संकोच भेलन्हि, जकरासँ उबरबाक लेल ओ बजलाह- आइ तोरा जाति बना लेलिअह। कोसी सभ भेदभावकेँ पाटि देलक, डोम, चमार, मुसहर, दुसाध, तेली, यादव सभ एके कलसँ पानि भरैत अछि। एके पटियापर बैसैत अछि।
ककरा लेल कथा लिखी? वा कही? कथाक वाद: जिनका विषयमे लिखब से तँ पढ़ताह नहि। कथा पढ़ि लोक प्रबुद्ध भऽ जएत ? गीताक सप्पत खा कए झूठ बजनिहारक संख्या कम नहि। तेँ की एहन कसौटीपर रचित कथाक महत्व कम भए जएत ?
सभ प्रबुद्ध नहि होएताह तँ स्वस्थ मनोरंजन तँ प्राप्त कऽ सकताह। आ जे एकोटा व्यक्ति कथा पढ़ि ओहि दिशामे सोचत तँ कथाक सार्थकता सिद्ध होएत। आ जकरा लेल रचित अछि ई कथा जे ओ नहि, तँ ओकर ओहि परिस्थितिमे हस्तक्षेप करबामे सक्षम व्यक्ति तँ पढ़ताह। आ जा ई रहत ताधरि एहि तरहक कथा रचित कएल जाइत रहत।
आ जे समाज बदलत तँ सामाजिक मूल्य सनातन रहत ? प्रगतिशील कथामे अनुभवक पुनर्निर्माण करब, परिवर्तनशील समाजक लेल, जाहिसँ प्राकृतिक आ सामाजिक यथार्थक बीच समायोजन होअए। आकि एहि परिवर्तनशील समयकेँ स्थायित्व देबा लेल परम्पराक स्थायी आ मूल तत्वपर आधारित कथाक आवश्यकता अछि ? व्यक्ति-हित आ समाज-हितमे द्वैध अछि आ दुनू परस्पर विरोधी अछि। एहिमे संयोजन आवश्यक। विश्व दृष्टि आवश्यक। कथा मात्र विचारक उत्पत्ति नहि अछि जे रोशनाइसँ कागतपर जेना-तेना उतारि देलियैक। ई सामाजिक-ऐतिहासिक दशासँ निर्दिशित होइत अछि।
तँ कथा आदर्शवादी होअए, प्रकृतिवादी होअए वा यथार्थवादी होअए। आकि एहिमे सँ मानवतावादी, सामाजिकतावादी वा अनुभवकेँ महत्व देमएबला ज्ञानेन्द्रिय-यथार्थवादी होअए ? आ नहि तँ कथा प्रयोजनमूलक होअए। एहिमे उपयोगितावाद, प्रयोगवाद, व्यवहारवाद, कारणवाद, अर्थक्रियावाद आ फलवाद सभ सम्मिलित अछि। ई सभसँ आधुनिक दृष्टिकोण अछि। अपनाकेँ अभिव्यक्त कएनाइ मानवीय स्वभाव अछि। मुदा ओ सामाजिक निअममे सीमित भऽ जाइत अछि। परिस्थितिसँ प्रभावित भऽ जाइत अछि।
तँ कथा अनुभवकेँ पुनर्रचित कए गढ़ल जएत। आ व्यक्तिगत चेतना तखन सामाजिक आ सामूहिक चेतना बनि आओत। शोषककेँ अपन प्रवृत्तिपर अंकुश लगबए पड़तन्हि। तँ शोषितकेँ एकर विरोध मुखर रूपमे करए पड़तन्हि।
स्वतंत्रता- सामाजिक परिवर्तन । कथा तखन संप्रेषित होएत, संवादक माध्यम बनत। कथा समाजक लेल शस्त्र तखने बनि सकत, शक्ति तखने बनि सकत।
जे कथाकार उपदेश देताह तँ ज्ञानक हस्तांतरण करताह, जकर आवश्यकता आब नहि छै। जखन कथाकार सम्वाद शुरू करताह तखने मुक्तिक वातावरण बनत आ सम्वादमे भाग लेनिहार पाठक जड़तासँ त्राण पओताह।
कथा क्रमबद्ध होअए आ सुग्राह्य होअए तखने ई उद्देश्य प्राप्त करत। बुद्धिपरक नहि व्यवहारपरक बनत। वैदिक साहित्यक आख्यानक उदारता संवादकेँ जन्म दैत छल जे पौराणिक साहित्यक रुढ़िवादिता खतम कए देलक।
आ संवादक पुनर्स्थापना लेल कथाकारमे विश्वास होएबाक चाही- तर्क-परक विश्वास आ अनुभवपरक विश्वास, जे सुभाषचन्द्र यादवमे छन्हि। प्रत्यक्षवादक विश्लेषणात्मक दर्शन वस्तुक नहि, भाषिक कथन आ अवधारणाक विश्लेषण करैत अछि से सुभाषजीक कथामे सर्वत्र देखबामे आओत। विश्लेषणात्मक अथवा तार्किक प्रत्यक्षवाद आ अस्तित्ववादक जन्म विज्ञानक प्रति प्रतिक्रियाक रूपमे भेल। एहिसँ विज्ञानक द्विअर्थी विचारकेँ स्पष्ट कएल गेल।
प्रघटनाशास्त्रमे चेतनाक प्रदत्तक प्रदत्त रूपमे अध्ययन होइत अछि। अनुभूति विशिष्ट मानसिक क्रियाक तथ्यक निरीक्षण अछि। वस्तुकेँ निरपेक्ष आ विशुद्ध रूपमे देखबाक ई माध्यम अछि। अस्तित्ववादमे मनुष्य-अहि मात्र मनुष्य अछि। ओ जे किछु निर्माण करैत अछि ओहिसँ पृथक ओ किछु नहि अछि, स्वतंत्र होएबा लेल अभिशप्त अछि (सार्त्र)। हेगेलक डायलेक्टिक्स द्वारा विश्लेषण आ संश्लेषणक अंतहीन अंतस्संबंध द्वारा प्रक्रियाक गुण निर्णय आ अस्तित्व निर्णय करबापर जोर देलन्हि। मूलतत्व जतेक गहींर होएत ओतेक स्वरूपसँ दूर रहत आ वास्तविकतासँ लग।
क्वान्टम सिद्धान्त आ अनसरटेन्टी प्रिन्सिपल सेहो आधुनिक चिन्तनकेँ प्रभावित कएने अछि। देखाइ पड़एबला वास्तविकता सँ दूर भीतरक आ बाहरक प्रक्रिया सभ शक्ति-ऊर्जाक छोट तत्वक आदान-प्रदानसँ सम्भव होइत अछि। अनिश्चितताक सिद्धान्त द्वारा स्थिति आ स्वरूप, अन्दाजसँ निश्चित करए पड़ैत अछि।
तीनसँ बेशी डाइमेन्सनक विश्वक परिकल्पना आ स्टीफन हॉकिन्सक “अ ब्रिफ हिस्ट्री ऑफ टाइम” सोझे-सोझी भगवानक अस्तित्वकेँ खतम कए रहल अछि कारण एहिसँ भगवानक मृत्युक अवधारणा सेहो सोझाँ आएल अछि, से एखन विश्वक नियन्ताक अस्तित्व खतरामे पड़ल अछि। भगवानक मृत्यु आ इतिहासक समाप्तिक परिप्रेक्ष्यमे मैथिली कथा कहिया धरि खिस्सा कहैत रहत ? लघु, अति-लघु कथा, कथा, गल्प आदिक विश्लेषणमे लागल रहत?
जेना वर्चुअल रिअलिटी वास्तविकता केँ कृत्रिम रूपेँ सोझाँ आनि चेतनाकेँ ओकरा संग एकाकार करैत अछि तहिना बिना तीनसँ बेशी बीमक परिकल्पनाक हम प्रकाशक गतिसँ जे सिन्धुघाटी सभ्यतासँ चली तँ तइयो ब्रह्माण्डक पार आइ धरि नहि पहुँचि सकब। ई सूर्य अरब-खरब आन सूर्यमेसँ एकटा मध्यम कोटिक तरेगण- मेडिओकर स्टार- अछि। ओहि मेडिओकर स्टारक एकटा ग्रह पृथ्वी आ ओकर एकटा नगर-गाममे रहनिहार हम सभ अपन माथपर हाथ राखि चिन्तित छी जे हमर समस्यासँ पैघ ककर समस्या ? हमर कथाक समक्ष ई सभ वैज्ञानिक आ दार्शनिक तथ्य चुनौतीक रूपमे आएल अछि।
होलिस्टिक आकि सम्पूर्णताक समन्वय करए पड़त ! ई दर्शन दार्शनिक सँ वास्तविक तखने बनत।
पोस्टस्ट्रक्चरल मेथोडोलोजी भाषाक अर्थ, शब्द, तकर अर्थ, व्याकरणक निअम सँ नहि वरन् अर्थ निर्माण प्रक्रियासँ लगबैत अछि। सभ तरहक व्यक्ति, समूह लेल ई विभिन्न अर्थ धारण करैत अछि। भाषा आ विश्वमे कोनो अन्तिम सम्बन्ध नहि होइत अछि। शब्द आ ओकर पाठ केर अन्तिम अर्थ वा अपन विशिष्ट अर्थ नहि होइत अछि।
आधुनिक आ उत्तर आधुनिक तर्क, वास्तविकता, सम्वाद आ विचारक आदान-प्रदानसँ आधुनिकताक जन्म भेल । मुदा फेर नव-वामपंथी आन्दोलन फ्रांसमे आएल आ सर्वनाशवाद आ अराजकतावाद आन्दोलन सन विचारधारा सेहो आएल। ई सभ आधुनिक विचार-प्रक्रिया प्रणाली ओकर आस्था-अवधारणासँ बहार भेल अविश्वासपर आधारित छल।
पाठमे नुकाएल अर्थक स्थान-काल संदर्भक परिप्रेक्ष्यमे व्याख्या शुरू भेल आ भाषाकेँ खेलक माध्यम बनाओल गेल- लंगुएज गेम। आ एहि सभ सत्ताक आ वैधता आ ओकर स्तरीकरणक आलोचनाक रूपमे आएल पोस्टमॉडर्निज्म।
कंप्युटर आ सूचना क्रान्ति जाहिमे कोनो तंत्रांशक निर्माता ओकर निर्माण कए ओकरा विश्वव्यापी अन्तर्जालपर राखि दैत छथि आ ओ तंत्रांश अपन निर्मातासँ स्वतंत्र अपन काज करैत रहैत अछि, किछु ओहनो कार्य जे एकर निर्माता ओकरा लेल निर्मित नहि कएने छथि। आ किछु हस्तक्षेप-तंत्रांश जेना वायरस, एकरा मार्गसँ हटाबैत अछि, विध्वंसक बनबैत अछि तँ एहि वायरसक एंटी वायरस सेहो एकटा तंत्रांश अछि, जे ओकरा ठीक करैत अछि आ जे ओकरो सँ ठीक नहि होइत अछि तखन कम्प्युटरक बैकप लए ओकरा फॉर्मेट कए देल जाइत अछि- क्लीन स्लेट !
पूँजीवादक जनम भेल औद्योगिक क्रान्तिसँ आ आब पोस्ट इन्डस्ट्रियल समाजमे उत्पादनक बदला सूचना आ संचारक महत्व बढ़ि गेल अछि, संगणकक भूमिका समाजमे बढ़ि गेल अछि। मोबाइल, क्रेडिट-कार्ड आ सभ एहन वस्तु चिप्स आधारित अछि। एहि बेरुका (२००८) कोसीक बाढ़िमे अनलकान्तजी गाममे फाँसल छलाह, भोजन लेल मारि पड़ैत रहए मुदा क्रेडिट कार्डसँ ए.सी.टिकट बुक भए गेलन्हि। मिथिलाक समाजमे सूचना आ संगणकक भूमिकाक आर कोन दोसर उदाहरण चाही?
डी कन्सट्रक्शन आ री कन्सट्रक्शन विचार रचना प्रक्रियाक पुनर्गठन केँ देखबैत अछि जे उत्तर औद्योगिक कालमे चेतनाक निर्माण नव रूपमे भऽ रहल अछि। इतिहास तँ नहि मुदा परम्परागत इतिहासक अन्त भऽ गेल अछि। राज्य, वर्ग, राष्ट्र, दल, समाज, परिवार, नैतिकता, विवाह सभ फेरसँ परिभाषित कएल जा रहल अछि। मारते रास परिवर्तनक परिणामसँ, विखंडित भए सन्दर्भहीन भऽ गेल अछि कतेक संस्था।

एहि परिप्रेक्ष्यमे मैथिली कथा गाथापर सेहो एकटा गहिंकी नजरि दौगाबी।
रामदेव झा जलधर झाक “विलक्षण दाम्पत्य” (मैथिल हित साधन, जयपुर, १९०६ ई.) केँ मैथिलीक आधुनिक कथाक प्रारम्भ मानलन्हि । पुलकित मिश्रक “मोहिनी मोहन” (१९०७-०८), जनसीदनक “ताराक वैधव्य” (मिथिला मिहिर, १९१७ ई.), श्रीकृष्ण ठाकुरक चन्द्रप्रभा, तुलापति सिंहक मदनराज चरित, काली कुमार दासक अदलाक बदला आ कामिनीक जीवन, श्यामानन्द झाक अकिञ्चन, श्री बल्लभ झाक विलासिता, हरिनन्दन ठाकुर “सरोज”क ईश्वरीय रक्षा, शारदानन्द ठाकुर “विनय”क तारा आ श्याम सुन्दर झा “मधुप”क प्रतिज्ञा-पत्र, वैद्यनाथ मिश्र “विद्यासिन्धु”क गप्प-सप्पक खरिहान आ प्रबोध नारायण सिंहक बीछल फूल आएल। हरिमोहन झाक कथा आ यात्रीक उपन्यासिका, राजकमल चौधरी, ललित, रामदेव झा, बलराम, प्रभास कुमार चौधरी, धूमकेतु, राजमोहन झा, साकेतानन्द, विभूति आनन्द, सुन्दर झा “शास्त्री”, धीरेन्द्र, राजेन्द्र किशोर, रेवती रमण लाल, राजेन्द्र विमल, रामभद्र, अशोक, शिवशंकर श्रीनिवास, प्रदीप बिहारी, रमेश, मानेश्वर मनुज, श्याम दरिहरे, कुमार पवन, अनमोल झा, मिथिलेश कुमार झा, हरिश्चन्द्र झा, उपाध्याय भूषण, रामभरोस कापड़ि “भ्रमर”, भुवनेश्वर पाथेय, बदरी नारायण बर्मा, अयोध्यानाथ चौधरी, रा.ना.सुधाकर, जीतेन्द्र जीत, सुरेन्द्र लाभ, जयनारायण झा “जिज्ञासु”, श्याम सुन्दर “शशि”, रमेश रञ्जन, धीरेन्द्र प्रेमर्षि, परमेश्वर कापड़ि, तारानन्द वियोगी, नागेन्द्र कुमर, अमरनाथ, देवशंकर नवीन, अनलकान्त, श्रीधरम, नीता झा, विभा रानी, उषाकिरण खान, सुस्मिता पाठक, शेफालिका वर्मा, ज्योत्सना चन्द्रम, लालपरी देवी एहि यात्राकेँ आगाँ बढ़ेलन्हि।
मैथिलीमे नीक कथा नहि, नीक नाटक नहि? मैथिलीमे व्याकरण नहि? पनिसोह आ पनिगर एहि तरहक विश्लेषण कतए अछि मैथिली व्याकरण मे, वैह अनल, पावक सभ अछि ! मुदा दीनबन्धु झाक धातु रूप पोथीमे जे १०२५ टा एहि तरहक खाँटी रूप अछि, रमानथ झाक मिथिलाभाषाप्रकाशमे जे खाँटी मैथिली व्याकरण अछि, ई दुनू रिसोर्स बुक लए मानकीकरण आ व्याकरणक निर्माण सर्वथा संभव अछि। मुदा भऽ रहल अछि ई जे पानीपतक पहिल युद्धक विश्लेषणमे ई लिखी जे पानीपत आ बाबरक बीचमे युद्ध भेल। रामभद्रकें धीरेन्द्र सर्वश्रेष्ठ मैथिली कथाकारक रूपमे वर्णित कएने छथि, मुदा एखन धरि हुनकर कएक टा कथाक विश्लेषण कएल गेल अछि ? नचिकेताक नाटक आ मैथिलीक सेक्सपिअर महेन्द्र मलंगियाक काजक आ रामभद्र आ सुभाष चन्द्र यादवक कथा यात्राक सन्दर्भमे ई गप कहब आवश्यक छल।
जाहि समय मैथिलीक समस्या घर-घरसँ मैथिलीक निष्कासन अछि, जखन हिन्दीमे एक हाथ अजमेलाक बाद नाम नहि भेला उत्तर लोक मैथिलीक कथा-कविता लिखि आ सम्पादक-आलोचक भए, अपन महत्वाकांक्षाक भारसँ मैथिली कथा-कविताक वातावरणकेँ भरिया रहल छथि, मार्क्सवाद, फेमिनिज्म आ धर्मनिरपेक्षता घोसिया-घोसिया कए कथा-कवितामे भरल जा रहल अछि, तखन स्तरक निर्धारण सएह कऽ रहल अछि, स्तरहीनताक बेढ़ वाद बनल अछि। जे गरीब आ निम्न जातीयक शोषण आ ओकरा हतोत्साहित करबामे लागल छथि से मार्क्सवादक शरणमे, जे महिलाकेँ अपमानित केलन्हि से फेमिनिज्म आ मिथिला राज्य आ संघक शरणमे आ जे साम्प्रदायिक छथि ओ धर्मनिरपेक्षताक शरणमे जाइत छथि। ओना साम्प्रदायिक लोक फेमिनिस्ट, महिला विरोधी मार्क्सिस्ट आ एहि तरहक कतेक गठबंधन आ मठमे जाइत देखल गेल छथि। क्यो राजकमलक बड़ाइमे लागल अछि, तँ क्यो यात्रीक आ धूमकेतुक तँ क्यो सुमनजीक, आ हुनका लोकनिक तँ की पक्ष राखत तकर आरिमे अपनाकेँ आगाँ राखि रहल अछि। यात्रीक पारोकेँ आ राजकमल आ धूमकेतुक कथाकेँ आइयो स्वीकार नहि कएल गेल अछि- एहि तरहक अनर्गल प्रलाप ! क्यो तथाकथित विवादास्पद कथाक सम्पादन कए स्वयं विवाद उत्पन्न कए अपनाकेँ आगाँ राखि रहल छथि। मात्र मैथिल ब्राह्मण आ कर्ण कायस्थक लेखनक बीच सीमित प्रतियोगिता जाहि कवि-कथाकारकेँ विचलित कए रहल छन्हि आ हिन्दी छोड़ि मैथिलीमे अएबाक बाद जाहि गतिसँ ओ ई सभ करतब कए रहल छथि, तिनका मैथिलीक मुख्य समस्यापर ध्यान कहिया जएतन्हि से नहि जानि ? लोक ईहो बुझैत छथि जे हिन्दीक बाद जे मैथिलीमे लिखब , तँ स्वीकृति त्वरित गतिएँ भेटत ? जे मैथिलीक रचनाकारेँकेँ एहि तरहक भ्रम छन्हि आ आत्मविश्वासक अभाव छन्हि, अपन मातृभाषाक संप्रेषणीयतापर अविश्वास (!), तखन एहि भाषाक भविष्य हिनका लोकनिक कान्हपर दए कोन छद्म हम सभ संजोगि रहल छी ? सेमीनारमे साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त एहन जुझारू कथाकार, सम्पादक आ समालोचक सभकेँ अपन पुत्र-पुत्री-पत्नीक संग मैथिलीमे नहि वरन् हिन्दी मे (अंग्रेजी प्रायः सामर्थ्यसँ बाहर छन्हि तेँ) गप करैत देखि हतप्रभ रहि जाइत छी। मैथिलीमे बीस टा लिखनहार छलाह आ पाँचटा पढ़निहार, से कोन विवाद उठल होएत? राजकमल/ यात्रीक मैथिलीक लेखन सौम्य अछि, से हुनकर सभक गोट-गोट रचना पढ़ि कए हम कहि सकैत छी। ताहि स्थिति मे- ई विवाद रहए एहि कवितामे आ एहि कथामे- एहि तरहक गप आनि आ ओकर पक्षमे अपन तर्क दए अपन लेखनी चमकाएब ? आ तकर बाद यात्रीक बाद पहिल उपन्यासकार फलना आ राजकमलक बाद पहिल कवि चिलना-आब तँ कथाकार आ कविक जोड़ी सेहो सोझाँ अबैत अछि, एक दोसराक भक्तिमे आ आपसी वादकेँ आगाँ बढ़एबा लेल। मैथिलीक मुख्य समस्या अछि जे ई भाषा एहि सीमित प्रतियोगी (दुर्घर्ष!) सभक आपसी महत्वाकांक्षाक मारिक बीच मरि रहल अछि। कवि-कथाकार मैथिलीकेँ अपन कैरिअर बना लेलन्हि, घरमे मैथिलीकेँ निष्कासित कए सेमीनारक वस्तु बना देलन्हि। तखन कतए पाठक आ कोन विवाद ! जे समस्या हम देखि रहल छी जे बच्चाकेँ मैथिलीक वातावरण भेटओ आ सभ जातिक लोक एहि भाषासँ प्रेम करथि ताहि लेल कथा आ कविता कतए आगाँ अछि ? कएकटा विज्ञान कथा, बाल-किशोर कथा-कविता कैरियरजीवी कवि-कथाकार लिखि रहल छथि। आ ओ घर-घरमे पहुँचए ताहि लेल कोन प्रयास भए रहल अछि ? सए-दू सए कॉपी पोथी छपबा कए , तकर समीक्षा करबा कए, सए-दू सए कॉपी छपएबला पत्रिकामे छपबा कए , तकर फोटोस्टेट कॉपी फोल्डर बना कऽ घरमे राखि पुरस्कार लेल आ सिलेबसमे किताब लगेबा लेल कएल गेल तिकड़मक वातावरणमे हमर आस गैर मैथिल ब्राह्मण-कर्ण कायस्थ पाठक आ लेखकपर जाए स्थिर भए गेल अछि।

जे अपन घर-परिवार नहि सम्हारि सकलाह से ढेरी-ढाकी भाषायी पुरस्कार लए बैसल छथि, मिथिला राज्य बनएबामे लागल छथि , पता नहि राज्य कोना सम्हारि सकताह आ ओकर विधान सभामे कोन भाषामे बजताह, जखन हुनका ओतए पुरस्कृत कएल जएतन्हि।
जे घरमे मैथिली नहि बजैत छथि से लेखक आ कवि बनल छथि (हिन्दी-मैथिलीमे समान अधिकारसँ) हिन्दीमे सोचि लिखैत छथि आ तखन अनुवाद कए मौलिक मैथिली लिखैत छथि ! मैथिली कथा-कविता करैत छथि!!
मराठी, उर्दू, तमिल, कन्नड़सँ मैथिली अनुवाद पुरस्कार निर्लज्जतासँ लैत छथि , वणक्कम केर अर्थ पुछबन्हि से नहि अबैत छन्हि, अलिफ-बे-से केर ज्ञान नहि, मराठीमे कोनो बच्चासँ गप करबाक सामर्थ्य नहि छन्हि। आ मैथिलीमे हुनकर माथ फुटबासँ एहि द्वारे बचि जाइत छन्हि कारण अपने छपबा कए समीक्षा करबैत छथि, से पाठक तँ छन्हि नहि। पाठक नहि रहएमे हुनका लोकनिकेँ फाएदा छन्हि। आ एहि पुरस्कार सभमे जूरी आ एडवाइजरी बोर्ड अपनाकेँ आगाँ करबामे जखन स्वयं आगाँ अबैत छथि तखन एहि सीमित प्रतियोगी लोकनिक आत्मविश्वास कतेक दुर्बल छन्हि , सएह सोझाँ अबैत अछि । सारंग कुमार छथि, तँ बलरामक चरचा फेरसँ कथाकारक रूपमे शुरू भेल अछि । आ जिनकर सन्तान साहित्यमे नहि अएलाह हुनकर चरचा फेर कोना होएत, हुनकर पक्ष के आगाँ राखत ? जीबैत धरि ने सभ अपन पक्ष स्वयं आगाँ राखि रहल छथि ? मुदा मुइलाक बाद ? मैथिली साहित्यक एहि सत्यकेँ देखार करबाक आवश्यकता अछि । आँखि मुनि कए सेहो एकर समाधान लोक मुदा ताकिये रहल छथि।
क्यो चित्रगुप्त सभा खोलि मणिपद्मकेँ बेचि रहल छथि तँ क्यो मैथिल (ब्राह्मण) सभा खोलि सुमनजीक व्यापारमे लागल छथि-मणिपद्म आ सुमनजीक आरिमे अपन धंधा चमका रहल छथि आ मणिपद्म आ सुमनजीकेँ अपमानित कए रहल छथि। कथा-कविता संग्रह सभक सम्पादकक चेला चपाटी मैथिलीक सर्वकालीन कथाकार-कविक संकलनमे स्थान पाबि जाइत छथि , भने हुनकर कोनो पहिले संग्रह आएल होइन्हि वा कथा-कविताक संख्या हास्यास्पद रूपसँ कम होइन्हि। पत्रिका सभक सेहो वएह स्थिति अछि। व्यक्तिगत महत्वाकांक्षामे कटाउझ करैत बिन पाठकक ई पत्रिका सभ स्वयं मरि रहल अछि आ मैथिलीकेँ मारि रहल अछि। ड्राइंग रूममे बिना फील्डवर्कक लिखल लोककथा जाहि भाषामे लिखल जाइत होअए, ओतए एहि तरहक हास्यास्पद कटाउझ स्वाभाविक अछि। आब तँ अन्तर्जालपर सेहो मैथिलीक किछु जालवृत्तपर जातिगत कटाउझ आ अपशब्दक प्रयोग देखबामे आएल अछि।
मार्क्सिस्ट आ फेमिनिस्ट बनि तकरो व्यापार शुरू करब आ अपन स्तरक न्यूनताक एहि तरहेँ पूर्ति करब, सीमित प्रतियोगिता मध्य अल्प प्रतिभायुक्त साहित्यकारक ई हथियार बनि गेल अछि। जे मार्क्सक आदर करत से ई किएक कहत जे हम मार्क्सवादी आलोचक आकि लेखक छी ? हँ जे मार्क्सक धंधा करत तकर विषयमे की कही, धंधा तँ सुमन, राजकमल, यात्री, मणिपद्म, धूमकेतु......सभक शुरू भेल अछि। आ तकर कारण सेहो स्पष्ट। राष्ट्रीय सर्वेक्षण ई देखबैत अछि जे संस्कृत, हिन्दी, मैथिली आ आन साहित्य कॉलेजमे वैह पढ़ैत छथि जिनका दोसर विषयमे नामांकन नहि भेटैत छन्हि, पत्रकारितामे सेहो यैह सभ अबैत छथि। प्रतिभा विपन्न एहने साहित्यसेवीकेँ साहित्यक चश्का लागल छन्हि आ हिनके हाथमे मैथिली भाषाक भविष्य सुरक्षित रहत? मुदा एहि वास्तविकताक संग आगाँक बाट हमरा सभक प्रतीक्षामे अछि। सुच्चा मैथिली सेवी कथाकार आ पाठक जे धूरा-गरदामे जएबा लेल तैयार होथि, बच्चा आ स्त्री जनताक साहित्य रचथि आ अपन ऊर्जा मैथिलीकेँ जीवित रखबा मात्रमे लगाबथि ओ श्रेणी तैयार होएबे टा करत।

मैथिलीक नामपर कोनो कम्प्रोमाइज नहि। सुभाषचन्द्र यादवजीक ई संग्रह धारावहिक रूपमे “विदेह” ई-पत्रिकामे (http://www.videha.co.in) अन्तर्जालपर ई-प्रकाशित भए हजारक-हजार पाठकक स्नेह पओलक, ऑनलाइन कामेन्ट एहि कथा सभकेँ भेटलैक जाहिमे बेशी पाठक गैर मैथिल ब्राह्मण आ कर्ण कायस्थ रहथि, से हम हुनकर सभक उपनाम देखि अन्दाज लगाओल। मैथिल ब्राह्मण आ कर्ण कायस्थ तँ पाठक बनि रहिये नहि सकैत छथि, शीघ्र यात्रीक बादक एकमात्र जन उपन्यासकार आ कुलानन्द मिश्रक बादक एकमात्र सही अर्थमे कविक उपाधि लेल लालायित भए जाइत छथि। अपनाकेँ घोड़ा आ बाघ आ दोसरकेँ गधा आ बकरी कहबा काल ओ मूल दिशा आ समस्यासँ अपनाकेँ फराक करैत छथि। अपन कथा-कवितापर अपने समीक्षा कए आत्ममुग्धताक ई स्थिति समीक्षाक दुर्बलतासँ आएल अछि। एहि एकमात्र शब्दसँ हमरा वितृष्णा अछि आ तकर निदान हम मैथिलीकेँ देल स्लो-पोइजनिंगक विरुद्ध “विदेह” ई-पत्रिकाक मैथिली साहित्य आन्दोलनमे देखैत छी। एतए साल भरिमे सएसँ बेशी लेखक जुड़लाह तँ पाठकक संख्या लाख टपि गेल। बच्चा आ महिलाक संग जाहि तरहेँ गैर मैथिल ब्राह्मण-कर्ण कायस्थ पाठक आ लेखक जुटलाह से अद्भुत छल। हमर एहि गपपर देल जोरकेँ किछु गोटे (मैथिली) साहित्यकेँ खण्डित करबाक प्रयास कहताह मुदा हमर प्राथमिकता मैथिली अछि, मैथिली साहित्य आन्दोलन अछि, ई भाषा जे मरि जएत तखन ओकर ड्राइंग रूममे बैसल दुर्घर्ष सम्पादक-कवि-कथाकार-मिथिला राज्य आन्दोलकर्ता आ समालोचकक की होएतन्हि। सुभाषचन्द्र यादवजीक कथाक पुनः पाठ आ भाषाक पुनः पाठ एहि रूपमे हमरा आर आकर्षित करैत अछि। आ एतए ईहो सन्दर्भमे सम्मिलित अछि जे सुभाषचन्द्र यादवजीक ई संग्रह धारावहिक रूपमे अन्तर्जालपर ई-प्रकाशित भए प्रिंट फॉर्ममे आबि रहल अछि, कथाक पुनः पाठ आ भाषाक पुनः पाठ लए। आ ई घटना सभ दिन आ सभ प़क्षमे मैथिलीकेँ सबल करत से आशा अछि।

भाषा आ प्रौद्योगिकी (संगणक, छायांकन, कुँजी पटल/टंकणक तकनीक), अन्तर्जालपर मैथिली आ विश्वव्यापी अन्तर्जालपर लेखन आ ई-प्रकाशन
गूगल आ वर्डप्रेस द्वारा जालवृत्त खोलबाक लेल बहुत रास बनल बनाएल परिकल्पित नमूना स्थल निर्माण लेल उपलब्ध अछि आ ओतए लेखन, संदेश आ टिप्पणीक लेल असीमित दत्तांशनिधि उपलब्ध अछि, जतए जालोद्वहन मँगनीमे देल जा रहल अछि। ई सभ जालवृत्त निर्माण स्थल उपभोक्ता केन्द्रित अछि आ एतए सरल लेखन-पद्धतिक व्यवस्था सेहो कएल गेल अछि । मुदा जे अहाँ संविहित पृच्छन भाषा (एस.क्यू.एल.) आधारित जालस्थलक निर्माण आ प्रबन्धन करए चाहैत छी तँ ओहि लेल ई निबन्ध अहाँक लेल उपयोगी रहत। पहिने मिथिलाक्षर आ देवनागरीक यूनीकोडमे लिखल जएबाक प्रक्रम दए रहल छी आ से अन्तर्जालपर पढ़ल जा सकबा योग्य कोना होएत तकरो चरचा होएत। तकर बाद जालस्थल निर्माण पद्धतिपर विस्तृत चरचा होएत।
देवनागरी लिपिकेँ रोमन टाइपराइटरपर कोन टाइप करी-
पहिने www.bhashaindia.com पर जा कए हिन्दी IME V.५ अवारोपित (डाउनलोड) करू । एहि विधि (प्रोग्राम) केँ अपना संगणक (कंप्युटर) पर प्रतिष्ठापित (इंस्टॉल) करू । फेर नियन्त्रण पटल (कंट्रोल पैनल) मे क्षेत्रीय आ भाषा (रेजनल आ लंग्वेज) पर जा कए लंग्वेज प्लावक (टैब) केँ दबाऊ । देखू जे कॉम्प्लेक्स स्क्रिप्ट/ राइट टू लेफ्ट लैंगुएज पर सही केर निशान लागल छै आकि नहि । नहि छै तँ करू आ संगणक ( कंप्युटर) ताहि लेल जे जे कहैत अछि से करू । एकरा बाद लंग्वेज प्लावक (टैबकेँ) आ डिटेल्स केँ दबाऊ । फेर ओतए ऐड क्लिक करू आ ओतए लंग्वेज मे हिन्दी आ कीबोर्ड मे HINDI INDIC IME १ [V.५.१] सेलेक्ट कए अप्लाइ दबाऊ । कंप्युटरकेँ रीस्टार्ट करू । आब वर्ड डोक्युमेंट खोलू । वाम Alt+Shift केँ सम्मिलित दबेला उत्तर H कुँजीपटल (कीबोर्ड) आओत नहि तँ नीचाँ लंग्वेजक़ेँ क्लिक करू आ हिन्दी चुनि लिअ । कुँजीपटलमे हिन्दी transliteration आ आन तरहक विकल्प जेना रेमिंगटन/ इन्सक्रिप्ट कुँजीपटल आदि सेहो उपलब्ध अछि । चुनि कए टाइप शुरू करू ।
आब transliteration कुँजीपटलपर राम टाइप करबा लए raama टाइप करए पड़त । क् (हलन्त सहित) टाइप करबाक हेतु k दबाऊ आ माउसक लेफ्ट बटन क्लिक करू अन्यथा स्पेस पिञ्जक आकि एंटर पिञ्जक दबेला पर हलंत उड़ि जएत ।

विकीपीडिया पर मैथिली पर लेख तँ छल मुदा मैथिलीमे लेख नहि छल, कारण मैथिलीक विकीपीडियाक स्वीकृति नहि भेटल छल । हम बहुत दिनसँ एहिमे लागल रही आ २७.१०.२००८ केँ मैथिली भाषामे विकी शुरू करबाक हेतु स्वीकृति भेटल छै । एतए संगणक शब्द सभक स्थानीयकरणमे बहुत रास अंग्रेजी शब्दक अनुवाद हम कएने रही आ ताहिसँ एहि कार्यमे रुचि बढ़ल आ मदति सेहो भेटल ।
देवनागरीमे टाइप करबाक हेतु एकटा आर तन्त्रांश साधन (सॉफ्टवेअर टूल) उपलब्ध अछि जे http://www.baraha.com/BarahaIME.htm लिंक पर उपलब्ध अछि । एकर विशेषता अछि एकर संस्कृत कुञ्जी फलक, जे आन कोनो तन्त्रांशमे उपलब्ध नहि अछि । एहिमे उदात्त, अनुदात्त, स्वरित आ किछु आन संस्कृत अक्षर उपलब्ध अछि मुदा एतहु स्वास्तिक, ग्वाङ, अञ्जी इत्यादि उपलब्ध नहि अछि । स॑, स॒, स॓, सऽ केँ स लिखलाक बाद सिफ्ट ३,२,४ आ ७ दबेलासँ लिखि सकैत छी ।
तिरहुता लिपि लिखबाक हेतु एहि लिंक पर जाऊ।
http://www.tirhutalipi.4t.com/
मुदा एकरा हेतु एहि लिंक पर जे प्रीति फॉंन्ट छै तकरा सेहो अवारोपित कए प्रतिकृति करू आ दुनू केँ ध्रुववृत्त चालक (हार्डडिस्क ड्राइव) C/windows/fonts मे लेपन करू । एहिमे जे फॉन्ट अछि से Ascii मे
अछि । क्रुतदेव, शुशा ई सभ फॉण्ट सेहो एहि तरहक अछि, पहिने उपयोगी छल मुदा आब सर्च इंजिनमे यूनिकोड-यू.टी.एफ.८ केर सर्च होइत छै आ Ascii मे लिखल देवनागरीक सर्च नहि भए पबैत अछि । विन्डोजमे मंगल वर्णमुख (फॉन्ट) अबैत छै से यूनीकोडमे छै आ एहिमे लिखल देवनागरी सर्च भए जाइत अछि । मिथिलाक्षरक यूनीकोड रूपक आवेदन (अंशुमन पाण्डेय द्वारा देल गेल) लंबित अछि जाहिमे बर्कले विश्वविद्यालयक प्रोफेसर डेबोराह एन्डरसन, Project Leader, Script Encoding Initiative, Dept. of Linguistics, UC Berkeley क आग्रहपर हमहुँ योगदान देने रही ।
आब किछु बात यूनीकोड आ जालस्थल (वेबसाइट) केर संबंधमे ।
कोनो फाइलकेँ पढ़बाक हेतु कंप्युटरमे आवश्यक फॉंट होएब जरूरी अछि, नहि तँ सभसँ सरल उपाय अछि, शब्द-संसाधकमे बनल लेख (वर्ड डोक्युमेंट) केँ पी.डी.एफ. फाइलमे परिवर्त्तित करब । एहिमे नफा नुकसान दुनू अछि । नफा जे बिना कोनो फांटक झंझटिक पी.डी.एफ.फाइल जाइ काँटा/ वर्णमुख/ लिपिमे लिखल गेल अछि, ताहिमे पढ़ल जा सकैत अछि । एकर नुकसान जे जखने फाइलमे जा कए सेव एज टेक्स्ट करब तँ अंग्रेजी तँ सेव भए जएत मुदा देवनागरी तेहन सेव होएत जे पढ़ि नहि सकी । दोसर यूनीकोडक मंगलमे टाइप कएल लेखकेँ एडोब अक्रोबेटसँ पी.डी.एफ.मे परिवर्त्तित करबामे दिक्कत होअए- एहि फाइलमे कखनो काल घ हलन्त आ ज कखनो काल चतुर्भुज रूपमे नञि पढ़बा योग्य अबैत अछि- तँ संपूर्ण फाइलकेँ खोलि कए सभटा चयन करू, यूनीवर्सल यूनीकोड एम.एस. फांट ड्रॉप डाउन मेनूसँ सेलेक्ट करू, फेर प्रिंटमे जा कए प्रिंटर (मुद्रक) एडोब एक्रोबेट सेलेक्ट करू । आब ई फाइल परिवर्त्तित भए जएत पी. डी. एफ.मे ।
माइक्रोसॉफ्ट वर्डसँ pdf मे परिवर्त्तनक सोझ तरीका अछि- कर्सरसँ फाइल, प्रिंटमे जाऊ, आ फेर प्रिंटरमे एक्रोबेट डिस्टीलर सेलेक्ट कए प्रिंट कमांड दए दिअ । मुदा एहिमे कखनो काल pdf डॉक्युमेंट नहि बनैत छै । तखन प्रिंटर एक्रोबेट डिस्टीलर सेलेक्ट कए प्रोपर्टीज मे जाऊ । ओतए अडोब pdf सेटिंग सेलेक्ट करू । ओतए ऑपशन डू नॉट सेंड फॉन्ट्स टू डिस्टिलर मे टिक लगाएल होएत । ओकरा अनचेक करू । आ से कए बाहर आऊ आ प्रिंट कमांड दिअ । आब pdf डॉक्युमेन्ट बनि जएत । पी.डी.एफ. स्प्लिटर आ मर्जर सॉफ्टवेयर ( जेना फ्रीवेयर सॉफ्टवेयर पी.डी.एफ. हेल्पर/ सैम) केर मदतिसँ आसानीसँ पी.डी.एफ. फाइल जोड़ि आ तोड़ि सकैत छी।

आब वेबसाइट बनेबाक पूर्व किछु मुख्य बातकेँ देखि लिअ । पाँच तरहक अन्तरजाल गवेषक (इंटरनेट ब्राउजर) अछि, शेष सभटा एकरा सभकेँ आधार बना कए रचित अछि । तखन सभसँ पहिने ई सभटा अपना कंप्युटरमे प्रतिष्ठापित (इंस्टॉल) करू-
१. ओपेरा, २. मोजिल्ला, ३. माइक्रोसॉफ्टक इंटरनेट एक्सप्लोरर (ई तँ होएबे करत), ४. गूगल क्रोम आ ५. एपलक (अखन धरि ई मेकिनटोसक लेल छल आब विन्डो लेल सेहो अछि) सफारी । आब जखन जाल पृष्ठ (वेब पेज) उपारोपित (अपलोड) करब वा पहिनहुँ तँ एहि सभपर खोलि कए अवश्य देखि लिअ ।
देवनागरी लिखबामे बराह आइ.एम.ई. केर योगदान विशिष्ट अछि । एहिमे संस्कृतक उदात्त, अनुदात्त आ स्वरित केर संगे बिकारी, देवनागरी अंक आ किछु संगीतक स्वरलिपि लिखबाक सुविधा अछि । मंद्र सप्तक, तीव्र आ कोमल स्वरक नोटेशन एहिमे अछि । ऋ,ॠ आ ऌ,ॡ आ ऍ, ऎ अ, ~ हलन्तक बाद जोड़क सुविधा एहिमे छै । अनुदात्त क॒ उदात्त क॑ आ स्वरित क॓ सेहो उपलब्ध अछि । ई विस्टामे सेहो कार्य करैत अछि । आ यूनीकोड फान्टमे रहबाक कारण इंटरनेट पर पठनीय अछि ।
अ सँ ह धरि वर्णमाला अछि । क्ष, त्र ,ज्ञ ओना तँ संयुक्त्त अक्षर अछि मुदा बच्चेसँ हमरा सभ अ सँ ज्ञ तक वर्णमालाक रूपमे पढ़ने छी । श्र सेहो क्ष, त्र, ज्ञ जेकाँ संयुक्त अक्षर अछि । ज्ञ केर उच्चारण ताहि द्वारे हमरा सभ ग आ य केर मिश्रण द्वारा करैत छी, से धरि गलत अछि । ई अछि ज आ ञ केर संयुक्त । ऋ केर उच्चारण हमर सभ करैत छी, री । लृ केर उच्चारण करैत छी, ल, र आ ई केर संयुक्त्त । मुदा ऋ आ लृ स्वयं स्वर अछि, संयुक्ताक्षर नहि । विदेहक आर्काइवमे शुद्ध उच्चारणक आवश्यकताकेँ देखि कए अ सँ ज्ञ तक सभ वर्णक उच्चारण देल गेल अछि । भारतीय अंकक अंतर्राष्ट्रीय रूपक प्रयोगक देवनागरीमे चलन भऽ गेल अछि । भारतीय संविधानक अनुच्छेद ३४३(१) कहैत अछि जे संघक राजकीय प्रयोजनक हेतु प्रयुक्त होमए बला अंकक रूप, भारतीय अंकक अंतर्राष्ट्रीय रूप होएत। मुदा राष्ट्रपति अंकक देवनागरी रूपकेँ सेहो प्राधिकृत कऽ सकैत छथि ।
http://www.bhashaindia.com पर tbil converter सॉफ्टवेयर डाउनलोड करू । मंगल फॉन्टमे आन फॉन्टसँ परिवर्त्तन करबाक अछि तँ डॉक्युमेन्ट .doc चयन करू इनपुट भाषामे हिन्दी आ ascii फॉन्टमे सम्बन्धित फॉन्ट चयन करू । आउटपुटमे भाषा हिन्दी आ फॉन्ट Unicode mangal चयन करू । आब ब्राउज कऽ कए फाइल सेलेक्ट करू । अहाँक कम्प्युटर मे ऑफिस २००७ अछि आ वर्ड डॉक्युमेन्ट .docx एक्सटेंशन अछि, तखन एक्सटेंशनकेँ रिनेम करू .doc । आब ब्राउजमे डॉक्युमेन्ट आबि जएत । अहाँक कम्प्युटर मे ऑफिस २००७ नहि अछि तखन रिनेम केलासँ कोनो फाएदा नहि । आब कंवर्ट क्लिक करू । नूतन फाइल Unicode Mangal फॉन्टमे बनि जएत । अहाँक शब्द संसाधक सञ्चिका (वर्ड डॉक्युमेन्ट फाइल) मे यूनीकोड आ ascii वर्णमुख (फॉन्ट) मिलल अछि, तखन अंदाजीसँ ascii वा बेशी प्रयुक्त होएबला ascii केर चयन करू । कंवर्ट क्लिक करू कन्वर्ट भऽ जएत यूनीकोड मंगल वर्णमुखमे।
जालस्थल निर्माण
पहिने कोनो ऑनलाइन प्रतिष्ठित संस्थासँ प्रदेश नाम (डोमेन नेम) कीनू । उदाहरणस्वरूप रिडिफ डॉट कॉम पर जाऊ आ रिडिफ होस्टिंगपर क्लिक
करू । ओतए बुक यूअर डोमेन पर जा कए इच्छित नाम टिक कए देखू जे ओ उपलब्ध अछि आकि नहि । अहाँ अपन जालस्थलक हेतु उपयुक्त डोमेन नेम क्रेडिट कार्डसँ ऑनलाइन कीनि सकैत छी । ई सस्ता छै, दस डॉलर प्रतिवर्ष एकर अधिकतम मूल्य छै । तकरा बाद जालोद्वहन सेवा (वेब होस्टिंग सर्विस) केर लिंकपर जाऊ । ५ वा दस साल लेल १०० एम.बी. स्थानक संग जालोद्वहन सेवा लिअ आ एकरा संग माय एस.क्यू.एल. सेवा मुफ्त छै मुदा ओहिमे लाइनेक्सपर काज करए पड़त जे कनेक कठिनाह/ तकनीकी भए सकैत अछि, से माइक्रोसॉफ्ट एस.क्यू.एल. सेवा किछु आर पाइ लगा कए अहाँ कीनि सकैत छी । आब अहाँ लग २० एम. बी. केर एस.क्यू.एल. दत्तनिधि (डाटाबेस) आ ८० एम.बी.केर साइट लेल जगह बाँचत (माने पूरा १०० एम.बी.) आ से पर्याप्त अछि। आर स्पेसक जोगार मँगनीमे भए जएत, तकर चरचा आगाँ होएत। माइक्रोसॉफ्ट एस.क्यू.एल. सेवा लेबाक उपरान्त अहाँ अपन माइक्रोसॉफ्ट एक्सेल सञ्चिका ओतए चढ़ा सकैत छी आ तकर उपयोग अपन जालस्थलपर एकटा मध्यस्थ (इन्टरफेस) बना कए अहाँ कए सकैत छी ।
आब जालस्थल (वेबसाइट) बनेबाक विधिपर विचार करी।
माइक्रोसॉफ्ट फ्रन्टपेज ऑफिस एक्स.पी. क संग अबैत अछि । ऑफिस २००३ मे सेहो ई अलग सँ उपलब्ध अछि ।
फ्रन्टपेजमे बनल-बनाओल वेबसाइट विजार्ड चलाऊ । मोटा-मोटी पाँच पृष्ठक जाल-स्थल बनि जएत। एहिमे वाम कात राइट क्लिक कए पृष्ठक संख्या बढ़ा सकैत छी । ऊपरमे स्थित थीमसँ अपन इच्छा मोताबिक बनल-बनाओल डिजाइन सेहो लए सकैत छी । साइटक कोनो पृष्ठकेँ अहाँ फोटो एलीमेन्ट द्वारा फोटो गैलरीमे परिवर्तित कए सकैत छी आ ३-४-५-६ स्तम्भमे फोटो सभ सजा सकैत छी । ओहि पृष्ठपर डबल क्लिक कए अपन संगणकसँ फोटोकेँ आनू आ यूनीकोड टाइपराइटर द्वारा वर्णन टंकित करू । पृष्ठ सुरक्षित करबा काल चित्रक गुणवत्ता जे.पी.जी. फोटोमे १ सँ १०० धरि चुनबाक विकल्प छै । जतेक पैघ फाइल चुनब ततेक बेशी जगह छेकत । वाम कात आ नीचाँमे लिंक लेल चिल्ड्रेन सेटिंग विकल्प चयन कएला उत्तर जालस्थलक सभ पृष्ठक सूचना ओतए आबि जएत । बेशी पृष्ठ भेला उत्तर कोनो पृष्ठक भीतर पृष्ठ सभक श्रृंखला दए सकैत छी । आब अहाँक संगणकमे अहाँक जालस्थल माय डोक्युमेन्ट्स/ माय वेबमे सुरक्षित अछि ।
अपन वेबसाइटक वास्तविक स्वरूप प्रीव्यू विकल्प द्वारा ऊपर वर्णित ५ प्रकारक गवेषकमे देखू । किछु आवश्यक परिवर्तन फ्रन्टपेजपर कएला उत्तर एहि साइटकेँ अपन सर्वरपर उपारोपित कए दियौक। एहि लेल फाइलजिला डॉट कॉम पर जाऊ जे मुफ्त तंत्रांश उपलब्ध करबैत अछि । एतए क्लाइन्ट आ सर्वर मे सँ क्लाइन्ट विकल्प चुनू आ तंत्रांश अपन कम्प्यूटरमे प्रतिष्ठापित करू । एकरा बाद यूजर नेम आ पासवर्ड दिअ आ एफ.टी.पी. डॉट डोमेन नेम पर पूर्ण जालस्थल वितरक (सर्वर) केर मूल फोल्डरमे उपारोपित कए दिअ। अहाँक जालस्थल अन्तर्जालपर नियत जालस्थल पतापर देखाइ पड़ए लागत।
अपन दत्तसंग्रह कोनो तन्त्रांश जेना ई.एम.एस. एस.क्यू.एल.मैनेजर केर माध्यमसँ अपन वितरकपर चढ़ाऊ आ एहि लेल अपन सेवा प्रदातासँ दूरभाषपर गप कए किछु विशेष जानकारी लिअ। सभटा सामग्री चढ़ि गेलाक बाद, अपन जालस्थलक पृष्ठपर बनाओल मध्यस्थ पृष्ठपर एच.टी.एम.एल.कोडमे यूजर नेम आ पासवर्ड देनाइ नहि बिसरू।
कोनो पृष्ठपर संगीत अनबाक लेल कम्प्यूटरसँ ओहि पृष्ठपर संगीतक सञ्चिका आयात करू, मुदा आइ काल्हि मात्र ओपेरा आ इन्टरनेट एक्सप्लोररपर (फ्रन्टपेजसँ बनल जालस्थलमे) संगीत बजैत अछि।
आब किछु गप पृष्ठ शैली (स्टाइल शीट) पर।
अहाँ सम्पूर्ण जालस्थलक डिजाइन जे एक्के रंगक राखए चाही तँ एहि लेल सभ पृष्ठमे एकर विधिलेख .css डिजाइन बनाकए दए दियौक आ एकटा फोल्डरमे डिजाइन राखि दियौक। एहिमे पृष्ठभूमिमे बाजए बला संगीत सेहो रहि सकैत अछि । एहिसँ ई फाएदा अछि जे सभ पृष्ठ खुजबा काल फेरसँ तागति नहि लगबए पड़त मात्र एक बेर डिजाइन आ संगीत खुजबामे जे समय लागत सएह टा। दोसर पृष्ठपर जे लिखित अंश वा फोटो आदि रहत ताहिमे जतेक देरी लागत सएह अतिरिक्त समय मात्र लागत। माने अहाँक जालस्थल हल्लुक भए जएत आ जल्दीसँ खुजत।
आब आर.एस.एस.फीडक विषयमे जानकारी ली।
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तकर बाद अपन जालस्थकेँ गूगल, याहूसर्च, लाइव सर्च आ आस्क डॉट कॉमपर सबमिट युअर साइट केर अन्तर्गत दए दियौक जाहिसँ ई सभ अन्वेषण यन्त्र अहाँक साइटकेँ ताकि सकए। .xml फाइलबला विश्वव्यापी अन्तर्जाल पता/ संकेत तकबामे एहि यन्त्र सभकेँ आर सुविधा होएतैक, से अहाँक साइटक मुफत प्रचार होएत। .xml फाइल .htm केर स्थान लेत से नहि छै, मुदा एहिसँ फीड एग्रीगेटर/ अन्वेषण यन्त्र सभकेँ जालस्थलपर नव सामग्री तकबामे सुविधा होइत छै। जखन अहाँक जालस्थलमे परिवर्तन आबए तँ अपन मूल .xml फाइलकेँ परिवर्तित कए वितरकपर चढ़ाऊ, शेष कार्य फीड एग्रीगेटर/ अन्वेषण यन्त्र स्वयं कए लेत। अहाँक अन्तर्जाल गवेषक सेहो साइटमे फीड रहला उत्तर विकल्प चुनलाक बाद जालस्थलक पृष्ठकेँ रिफ्रेश कए लैत अछि, कारण कखनो काल कऽ टेम्परोरी फाइल संगणकमे रहने पुरनके सामग्री इन्टरनेटपर देखाओल जाइत रहैत अछि। मुदा एहि लेल सभ पृष्ठमे एकटा कूट-संकेत देमए पड़त।
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लोरिक गाथामे समाज ओ संस्कृति
लोरिक गाथामे नहि तँ कोनो इतिहास प्रसिद्ध राजाक नाम आ नहिये लोरिकक जन्म आकि विवाहक तिथिक चरचा अछि। भाषाक स्वरूप मौखिक रहबाक कारणसँ गतिशील अछि। काल निर्धारण सेहो अनुमानपर आधारित अछि। लोरिकक जन्म-स्थान गौरा गाम अछि आ कार्य-कर्म क्षेत्र पंजाबसँ नेपाल आ बंगाल धरि अछि। सासुर अगोरी गाम अछि जे सोन धारक कातमे बताओल गेल अछि।
लोरिकक विवाह- पहिल विवाह अगोरी गामक मंजरीसँ दोसर बियाह चनमासँ जकरासँ चनरैता नाम्ना पुत्र। तेसर बियाह हरदीगढ़क जादूगरनी जमुनी बनियाइनसँ जाहिसँ बोसारख नाम्ना पुत्र।
वीर लोरिकक भाए सँवरू सेहो वीर। ओ कोल राजा देवसिया द्वारा मारल गेलाह। बादमे लोरिक सेहो युद्ध करैत घायल भऽ जाइत छथि आ बोहा बथानपर लोरिकक बेटा भोरिक देवसियाकेँ पराजित करैत अछि। लोरिक बूढ़ भेलापर अग्नि समाधि लैत छथि।
लोरिकक कथा- साबौरक जन्म आ लोरिक अवतार, सँवरूक विवाह, माँजैरक जन्म, लोरिक-माँजैर विवाह आ राजा मौलागत आ निरमलियासँ युद्ध, सँवरू आ सतियाक विवाह, झिमली-लोरिक युद्ध, चनैनिया-शिवहर विवाह आ लोरिक-बेंठा चमारक युद्ध। एहि गाथामे लोरिक-चनमा प्रेम आ हरदीगढ़ प्रस्थान आ राजा रणपाल आ महिपतसँ लोरिकक युद्ध। लोरिक आ चनमाक हरदीगढ़मे निवास, लोरिक गजभिमला युद्ध, नेऊरपुरक चढ़ाइ आ लोरिक-हरेबा-बरेबा युद्ध, संवरू आ कोल युद्धमे सँवरूक मृत्यु, लोरिकक बोहा बथान आगमन, पीपरीगढ़क चढ़ाई आ लोरिक आ देवसिया युद्ध, लोरिकक देहत्याग आ भोरिकक नेतृत्व। पिपरीक पहिल लड़ाइ सँवरूक संग, पिपरीक दोसर लड़ाइ लोरिकक संग भेल। फेर लोरिकक काशीवास आ मृत्यु होइत छन्हि।

लोरिक मनुआर गाथाक धार्मिक सामाजिक आ राजनीतिक पक्ष :
लोरिक अज्ञात नाम गोत्रसँ उत्पन्न। यादव जाति अपन पूज्य लोरिकक सम्मान छाँक पूजासँ करैत छथि आ लोकदेव, लोकनायक रूपेँ सम्मान दैत छथि।
लोरिकायनक मैथिली स्वरूप पुरातत्ववेता अलेक्जेन्डर कनिंघमक संकलनमे अछि। क्वार्टरली जर्नल ऑफ द मीथिक सोसाइटी (भाग-५, पृ.१२२ सँ १३५) मे भागलपुरक लोरिकायनक चरचा। आर्क्योलोजिकल सर्वे रिपोर्ट खण्ड १६ (१८८३ ई.) पृ.२७-२८ मे कनिँघमक यात्रा वृत्तान्तमे लोरिक आ सेउहर वा सरिकका नाम्ना दू टा पड़ोसी राजाकेँ गौरा गामक निवासी कहल गेल अछि।
भागलपुर गजेटियर (पृ.४८-५०) मे जॉन हन्टर लोरिक विषयक रिपोर्ट देने छथि।
लोरिक गाथा लोरिकायन, लोरिकी आ लोरिक मनिआर नामसँ प्रसिद्ध अछि। मिथिलामे एकर प्रशस्ति लोरिक मनिआर नामसँ अछि।
लोरिकक नैतक (बेटाक बेटा) नाम इन्दल रहए। मैथिलीक लोरिक मनिआरमे लोरिकक विवाह प्रसंग आ लोरिकक कनियाँ तकबासँ लऽ राजा सहदेवसँ युद्ध केर विस्तृत चरचा अछि।
महुअरि खण्डमे गजभीमलक अखाड़ा जएबाक लेल घोड़ा चुनब आ गजभीमलकेँ पटकि-पटकि कऽ मारबाक वर्णन।
लोरिक द्वारा हरबा-बरबाक वध।
एहि गाथाक प्रारम्भमे सुमिरन आ बन्हन होइत अछि।
सुमिरन- इनती करै छी दुरुगा मिनती तोहार।
बन्हन- आ-दुरुगा गइ पुरुब खण्ड हे गइ
फेर:
१. विवाह खण्ड, २. महुअरि खण्ड, ३. युद्ध खण्ड

मणिपद्मजीक विवरण- १. जन्म खण्ड, २. सती माँजरि खण्ड, ३. चनैन खण्ड, ४. रणखण्ड, ५. सावर खण्ड, ६. बाजिल खण्ड, ७. सझौती खण्ड आ ८. नेपालसँ प्राप्त भैरवी खण्ड।
-गौरा गामक बुढ़कूवा राउत- तारक गाछक झठहा बनबैत रहथि। ५-७ सय पहलमानकेँ पीठपर लादि चौदह कोस टहलि आबथि। मुदा घर-घरारी किछुओ नहि छलन्हि। दू टा पुत्र लोरिक मनिआर आ साओद सरदार छलन्हि।
-अगौरीक मुखिया सेवाचन राउतक अस्सी गजक धोती आ बावन गजक मुरेठा- तेतलिया घोड़ा छलन्हि। पुत्री छलखिन्ह माँजरि जे सात सय संगी संगे सुपती-मौनी खेलाइत रहथि। ओकर बियाह लेल सेवाचन बुढ़कूबाक ओतय लोरिकसँ अखड़हापर भिरल- छप्पन मोन माटिसँ तरहत्थी मलनिहार सेवाचनकेँ लोरिक टालि-गुल्ली जेकाँ ऊपर फेकि देलक आ गेन जेकाँ लोकि कए काँख तर दबा लेलक।
बियाह दिन राजा उगरा पमार द्वारा बूढ़कूबाकेँ पकड़बाक प्रयास, मुदा बूढ़कूबा भकुला पहलमानक गरदनि काटि लेलक। विवाह सम्पन्न भेल। राजा उगरा पमार सनिका-मनिकाकेँ बजेलक- लोरिक सनिका-मनिकाक मूड़ी काटि लेलक। गौरा घुमैत काल हरदीक राजा सहदेवक आक्रमण, लोरिक सहदेवकेँ हरा कए ओकर पुत्री चनाइकेँ महीचनक आँगन लऽ जाए विवाह कएल। तखन राजा महुअरि महीचनकेँ कारामे दऽ देलक मुदा फेर लोरिकसँ डरा कए छोड़ि देलक। मुदा सिलहट अखड़हाक सरदार गजभीमलकेँ पठाओल। मुदा लोरिक ओकर मूड़ी काटि लेलक आ फेर राजासँ मित्रता भेल। दुनू मिलि राजा हरबा-बरबासँ युद्ध कएलक। हरबा-बरबा भागल मुदा धुथरा पहलमानकेँ पठाओल- लोरिक ओकर दहिना आँखि निकालि ओकर जीह काटि लेलक। हरबा-बरबाक पुनः आक्रमण आ पलायन मुदा फेर भागिन कुमर अनार- लोरिक मूड़ी काटि हरबा-बरबाक रानी पद्मा लग ओकर मूड़ी फेकलक। फेर हरबा-बरबाक आक्रमण-डिहुलीक रणक्षेत्रमे हावीगढ़क राजा हरबा-बरबाक मूड़ी काटि राजप्रसादक अन्तःपुरमे फेकलक। लोरिक छत्तीस टा युद्ध कएलन्हि। लोरिक कृषिक विकासमे सजग छलाह। कारण -दोसराक भूमिक अधिग्रहण कए बहुसंख्यक चिड़ँइ, जानवर आ कीट-पतंग उजड़ि गेल आ ओ सभ इन्द्र लग गेल-– ई वर्णन अछि।
-समाजक सीढ़ीक आइ-काल्हिक नीचाँक वर्ग आ नारी समाजक शक्तिक विस्तार, आध्यात्मिक आ लौकिक अर्थ दुनू तरहेँ।
- सामाजिक सीढ़ीक विभिन्न स्तरक जातिक अन्तर्विरोध, आइ-काल्हिक तथाकथित निम्न जातिक दुराचारी पात्रक विनाश लोरिक द्वारा। लोरिकक भगवतीपर भक्ति छल ओकर विजयक कारण।
मुदा लोरिकक शत्रुमे तथाकथित सामाजिक सीढ़ीपर ऊँच स्थान प्राप्त मोचनि आ गजभीमल छल तँ मित्रमे सेहो राजल सन सामाजिक सीढ़ीमे तथाकथित नीचाँ जातिक।
हरबा राजाक चपेटसँ दुहबी-सुहबी ब्राह्मणी आ गांगे क्षत्रीक मुक्ति।
उघरा पँवार, हरबा-बरबा, सोनिका, मनिका, बंठा, कोल्हमकड़ा, करना सभ जातीय सीढ़ीमे तथाकथित नीचाँक पात्र राजा छथि। मातृदेवीक उपासना, इन्द्रक पत्नीक दुर्गाक भेष बदलि आएब आ लोरिक द्वारा हुनका पत्नी बूझि छूबाक उपरान्त पीड़ा। लोरिक माँजरिक मिलन काशी-प्रयाण।

-गाथा मेला, हाट बजार, विशिष्ट लोकक घर, सार्वजनिक स्थलपर होइत अछि - से यादव जातिक अतिरिक्त आनो श्रोता। सर्जक आ श्रोताक प्रत्यक्ष संबंध, श्रवणीय, कथाक अनायास अलंकरण, मुदा सभटा साहित्यिक लक्षण जेना सर्ग, छन्दबद्ध, नाट्य-संधि आ संध्यांगक योजना आ वस्तु निर्देशक अभाव। वस्तु संगठन सुगठित नहि। गारिक प्रयोग आ मद्यपानक यत्र-तत्र वर्णन, ग्रामीण व्यवस्थामे चोरक स्थान आ ओकर वर्णन, स्थानीय देवी-देवताक चरचा, जातीय अस्मिताक प्रतीक। कथा-गायक आशु कवि होइत छथि-एकटा अस्थिपञ्जर अवश्य रहैत अछि मुदा ताहिपर अपन हिसाबसँ ओ गबैत छथि। शब्दशः ओ कण्ठस्थ नहि करैत छथि। प्रारम्भमे ईश्वर, वन्दना आ बीच-बीचमे ईश्वरसँ क्षमायाचना, ई सभ गायन क्षमता स्थिर करबाक उद्देश्यसँ कएल जाइत अछि। घण्टासँ ऊपर गायनक बीचमे हुक्का-चिलम, मद्यपान, परिवेशक वर्णन होइत अछि गायनमे। निरक्षर मुदा कोनो साक्षरसँ बेशी ज्ञान भण्डार। लोरिक मनुआरमे श्रोताक संख्या, तन्मयता आ एकाग्रचित्तताक प्रभाव कथा-गायकक कथा वाचनपर पड़ैत अछि कारण ई श्रोताक सोझाँ कएल जाइत अछि। एहि अर्थेँ सल्हेसक कथावाचकसँ हिनकापर बेशी बाह्य प्रभाव पड़ैत छन्हि। सल्हेस गाथा श्रोताक समक्ष नहि वरन आराध्य देवक समक्ष वाचन कएल जाइत अछि।
गाथाक मूल कथा ओना तँ मोटा-मोटी समान रहैत अछि, मुदा प्रस्तुतिकरण, विशिष्ट समाज, क्रियाकलाप आ सामाजिक मर्यादाक कारण विशिष्ट।
युद्ध,द्यूत,प्रेम आ विवाह-सांस्कृतिक तत्व सभ महाकाव्यमे, द्यूत –मानसिक युद्ध-द्यूतमे मनुक्खकेँ बाजी लगाएब, महाभारतमे आ लोरिकायनमे।
दुर्गा देवी द्वारा युद्धमे नायकक सहायता, चनैनक शिवधरकेँ छोड़ि लोरिक संग उढ़रि जाएब, दुसाध जातिक महपतियासँ लोरिकक जुआ खेलाएब आ लोरिक द्वारा चनैनकेँ जुआमे हारब-चनैन द्वारा प्रतिवाद-गहना गुरिया दाँवपर, चनैनक अश्लील हाव-भावसँ महपतियाक ध्यान बँटब आ लोरिकक जीतब। लोरिक द्वारा ओकर मूड़ी काटब। पति द्वारा अनुचित कएल जएबाक उपरान्तो पत्नी द्वारा बुझाएब।
लोरिकक अवतारवाद आ रहस्य
क्रोध-प्रेम दुनूमे गारि उन्मुक्त सांस्कृतिक काव्य चरित्र। प्रकृतिकेँ नुकाओल नहि गेल। नायक सेहो गारिक प्रयोग करैत अछि।
शिव-शक्तिक पूजा, महाकाव्यक पात्रक नाम आ आन तत्वक ग्रहण जे लोरिक मनुआर गायकक उदार आ सहिष्णु चरित्रकेँ देखबैत अछि। प्रस्तुति क्षमता आ ज्ञान क्षेत्र हिनका अनक्षर कहबासँ हमरा रोकैत अछि।
धार्मिक विश्वास, नायकक चरित्र आ सामाजिक आचार। जीवन-संस्कृति दृढ़तापूर्वक, महाकाव्यक अधिकांश ल़क्षण जेना रस, छंद, गुण, अलंकार, सर्गक ध्यान, व्यवहृत धार्मिक मूल्य, संस्कृतिक सम्पूर्णता, सृजन-क्षमता(गायकक)।

लोकगाथा-नाचक फील्डवर्क-कथ्यमे बदलनाइ (जेना गारि), अपन संस्कृतिक नैतिक मानदण्डक आधारपर परिवर्तन अक्षम्य, अपनाकेँ ओहि समाजमे रखितहु उद्देश्यपर ध्यान, वाक्य शब्द रचनामे कोनो परिवर्तन नहि होएबाक चाही। तिरिया, गामक रक्षा आ अनाचारीक विनाश-पशुपाल आ कृषिकक समर्थन।
लोरिकक मित्र बंठा चमार, वारू पहरेदार (पासवान), राजल धोबी, लोरिकक भाइ साँवर।
सलहेसक कथा तराइ क्षेत्रक। वन्य जीव आ वनक बेशी वर्णन, वन्यजीव द्वारा सलहेसक सहायता, आखेट आ बलि। सल्हेसक पूजा स्थलपर माटिक घोड़ा राखल जाइत अछि मुदा लोरिकायनमे नहि।
लोरिक मनुआरमे अलौकिक आ रहस्यमय घटना बेशी, वन्य जीवक (बोनमे)संख्या नहि केर बराबर, लोरिकक पात्र अवतारी मुदा विधिवत पूजा नहि।
बाजिल कौआ अधजरुआ गोइठासँ कौल्हमकड़ाक गढ़केँ जरबैत अछि।
-उधरा-पँवारक हाथी-कज्जल गिरि
-लोरिकक कटरा घोड़ा
-सेनापति बरबाक घोड़ा बरछेबा
-बाजिल कौआ
मुदा लोरिक मनुआर महराइ मे ई सभ वन्य नहि वरल पोसुआ अछि।

लोरिकक असली हरदीगढ़ आ प्रसिद्ध कर्मक्षेत्र सहरसा जिलाक हरदीस्थान अछि कारण सुपौलक पूब स्थित हरदीक संग दुर्गास्थान शब्द सम्मिलित अछि। एहि हरदीक संग महीचन्द्र साहू, राजा महबैर, नेऊरपुर (नौहट्टा), गंजेरीपुर (गौरीपुर), खेरदहा (खैरा धार), रहुआ-चन्द्रायन-मैना-गाम, बैराघाट, तिलाबे धार, बैरा गाछी आ महबैरिया गामक चरचा अछि। लोरिक गाथा स्थल बैराघाटसँ प्राप्त पजेबा आ हरदी हाइस्कूलसँ सटल पश्चिम खुदाइमे प्राप्त पजेबामे पाओल समानता एकर व्याख्या करैत अछि।
सुपौल रेलवे स्टेशनपर रेलवे विभागक एकटा बोर्ड लागल अछि- एतएसँ पाँच किलोमीटर पूर्व हरदी दुर्गास्थानमे भगवती दुर्गा आ वीरपुरुष लोरिकक ऐतिहासिक स्थल दर्शनीय अछि।
नौहट्टा लग महर्षि आ ओतए पालीभाषाक शिलालेख- पालवंशीय- हरिद्रागढ़ चौदह कोसमे विस्तृत। तेरहम शताब्दीक ’वर्णरत्नाकर’मे लोरिकक चरचा अछि। वर्णरत्नाकर- द्वितीय कल्लोलमे लोरिक नाचो- ई वर्णन । पहिने ई नाच छल आइ-काल्हि गाथा अछि।

नेऊरी दरभंगाक बिरौल प्रखण्डक १३ कि.मी.पूर्व गाम अछि जतए एकटा गढ़ अछि जे राजा लोरिकसँ सम्बन्धित कहल जाइत अछि ।

मिथिलाक खोज
ई आलेख हमर दशकसँ ऊपरक मिथिलाक यात्राक उपरान्तक सूत्र-वृत्तान्त अछि आ एहिमे एहि सभ स्थानक स्थानीय निवासी आ गाइड सभक अकथनीय योगदान छन्हि । कखनो कालतँ भाड़ाक गाड़ीक ड्राइवर लोकनि सेहो नीक गाइड सिद्ध भेलाह ।—गजेन्द्र ठाकुर

१. गौरी-शंकर स्थान- मधुबनी जिलाक जमथरि गाम आ हैंठी बाली गामक बीच ई स्थान गौरी आ शङ्करक सम्मिलित मूर्त्ति आ एहि पर मिथिलाक्षरमे लिखल पालवंशीय अभिलेखक कारणसँ विशेष रूपसँ उल्लेखनीय अछि। ई स्थल एकमात्र पुरातन स्थल अछि जे पूर्ण रूपसँ गामक उत्साही कार्यकर्त्ता लोकनिक सहयोगसँ पूर्ण रूपसँ विकसित अछि। शिवरात्रिमे एहि स्थलक चुहचुही देखबा योग्य रहैत अछि। बिदेश्वरस्थानसँ २-३ किलोमीटर उत्तर दिशामे ई स्थान अछि।
२. भीठ-भगवानपुर अभिलेख- राजा नान्यदेवक पुत्र मल्लदेवसँ संबंधित अभिलेख एतए अछि। मधुबनी जिलाक मधेपुर थानामे ई स्थल अछि।
३. हुलासपट्टी- मधुबनी जिलाक फुलपरास थानाक जागेश्वर स्थान लग हुलासपट्टी गाम अछि। कारी पाथरक विष्णु भगवानक मूर्त्ति एतए अछि।
४. पिपराही- लौकहा थानाक पिपराही गाममे विष्णुक मूर्त्तिक चारू हाथ भग्न भए गेल अछि।
५. मधुबन- पिपराहीसँ १० किलोमीटर उत्तर नेपालक मधुबन गाममे चतुर्भुज विष्णुक मूर्त्ति अछि।
६. अंधरा-ठाढ़ीक स्थानीय वाचस्पति संग्रहालय- गौड़ गामक यक्षिणीक भव्य मूर्त्ति एतए राखल अछि।
७. कमलादित्य स्थान- अंधरा ठाढ़ी गामक लगमे कमलादित्य स्थानक विष्णु मंदिर कर्णाट राजा नान्यदेवक मंत्री श्रीधर दास द्वारा स्थापित भेल।
८. झंझारपुर अनुमण्डलक रखबारी गाममे वृक्षक नीचाँ राखल विष्णु मूर्त्ति, गांधारशैली मे बनाओल गेल अछि।
९. पजेबागढ़ वनही टोल- एतए एकटा बुद्ध मूर्त्ति भेटल छल, मुदा ओकर आब कोनो पता नहि अछि। ई स्थल सेहो रखबारी गाम लग अछि।
१०. मुसहरनियां डीह- अंधरा ठाढ़ीसँ ३ किलोमीटर पश्चिम पस्टन गाम लग एकटा ऊंच डीह अछि।बुद्धकालीन एकजनियाँ कोठली, बौद्धकालीन मूर्त्ति, पाइ, बर्त्तनक टुकड़ी आ पजेबाक अवशेष एतए अछि।
११. भगीरथपुर- पण्डौल लग भगीरथपुर गाममे अभिलेख अछि जाहिसँ ओइनवार वंशक अंतिम दुनू शासक रामभद्रदेव आ लक्ष्मीनाथक प्रशासनक विषयमे सूचना भेटैत अछि।
१२. अकौर- मधुबनीसँ २० किलोमीटर पश्चिम आ उत्तरमे अकौर गाममे एकटा ऊँच डीह अछि, जतए बौद्धकालक मूर्त्ति अछि।
१३. बलिराजपुर किला- मधुबनी जिलाक बाबूबरही प्रखण्डसँ ५ किलोमीटर पूब बलिराजपुर गाम अछि। एकर दक्षिण दिशामे एकटा पुरान किलाक अवशेष अछि। किला चारि किलोमीटर नमगर आ एक किलोमीटर चाकर अछि। दस फीटक मोट देबालसँ ई घेरल अछि।
१४. असुरगढ़ किला- मिथिलाक दोसर किला मधुबनी जिलाक पूब आ उत्तर सीमा पर तिलयुगा धारक कातमे महादेव मठ लग ५० एकड़मे पसरल अछि।
१५. जयनगर किला- मिथिलाक तेसर किला अछि भारत नेपाल सीमा पर प्राचीन जयपुर आ वर्त्तमान जयनगर नगर लग। दरभंगा लग पंचोभ गामसँ प्राप्त ताम्र अभिलेख पर जयपुर केर वर्णन अछि।
१६. नन्दनगढ़- बेतियासँ १२ मील पश्चिम-उत्तरमे ई किला अछि। तीन पंक्त्तिमे १५ टा ऊँच डीह अछि।
१७. लौरिया-नन्दनगढ़- नन्दनगढ़सँ उत्तर स्थित अछि, एतए अशोक स्तंभ आ बौद्ध स्तूप अछि।
१८. देकुलीगढ़- शिवहर जिलासँ तीन किलोमीटर पूब हाइवे केर कातमे दू टा किलाक अवशेष अछि। चारू दिशि खधाइ अछि।
१९. कटरागढ़- मुजफ्फरपुरमे कटरा गाममे विशाल गढ़ अछि, देकुली गढ़ जेकाँ चारू कात खधाइ खुनल अछि।
२०. नौलागढ़- बेगुसरायसँ २५ किलोमीटर उत्तर ३५० एकड़मे पसरल ई गढ़ अछि।
२१. मंगलगढ़-बेगूसरायमे बरियारपुर थानामे काबर झीलक मध्य एकटा ऊँच डीह अछि। एतए ई गढ़ अछि।
२२. अलौलीगढ़-खगड़ियासँ १५ किलोमीटर उत्तर अलौली गाम लग १०० एकड़मे पसरल ई गढ़ अछि।
२३. कीचकगढ़-पूर्णिया जिलामे डेंगरघाटसँ १० किलोमीटर उत्तर महानन्दा नदीक पूबमे ई गढ़ अछि।
२४. बेनूगढ़-टेढ़गाछ थानामे कवल धारक कातमे ई गढ़ अछि।
२५. वरिजनगढ़-बहादुरगंजसँ छह किलोमीटर दक्षिणमे लोनसवरी धारक कातमे ई गढ़ अछि।
२६. गौतम तीर्थ- कमतौल स्टेशनसँ ६ किलोमीटर पश्चिम ब्रह्मपुर गाम लग एकटा गौतम कुण्ड पुष्करिणी अछि।
२७. हलावर्त्त- जनकपुरसँ ३५ किलोमीटर दक्षिण पश्चिममे सीतामढ़ी नगरमे हलवेश्वर शिव मन्दिर आ जानकी मन्दिर अछि। एतएसँ डेढ़ किलोमीटर पर पुण्डरीक क्षेत्रमे सीताकुण्ड अछि। हलावर्त्तमे जनक द्वार हर चलएबा काल सीता भेटलि छलीह। राम नवमी (चैत्र शुक्ल नवमी) आ जानकी नवमी (वैशाख शुक्ल नवमी) पर एतए मेला लगैत अछि।
२८. फुलहर-मधुबनी जिलाक हरलाखी थानामे फुलहर गाममे जनकक पुष्पवाटिका छल, जतए सीता फूल लोढ़ैत छलीह।
२९. जनकपुर-बृहद् विष्णुपुराणमे मिथिलामाहात्म्यमे जनकपुर क्षेत्रक वर्णन अछि। सत्रहम शताब्दीमे संत सूर किशोरकेँ अयोध्यामे सरयू धारमे राम आ जानकीक दू टा भव्य मूर्त्ति भेटलन्हि, जकरा ओ जानकी मन्दिर, जनकपुरमे स्थापित कए देलन्हि। वर्त्तमान मन्दिरक स्थापना टीकमगढ़क महारानी द्वारा १९११ ई. मे भेल। नगरक चारूकात यमुनी, गेरुखा आ दुग्धवती धार अछि। राम नवमी (चैत्र शुक्ल नवमी),जानकी नवमी (वैशाख शुक्ल नवमी) आ विवाह पंचमी (अगहन शुक्ल पंचमी) पर एतए मेला लगैत अछि।
३०. धनुषा- जनकपुरसँ १५ किलोमीटर उत्तर धनुषा स्थानमे पीपरक गाछक नीचाँ एकटा धनुषाकार खण्ड पड़ल अछि। रामक तोड़ल ई धनुष अछि। एहिसँ पूब वाणगंगा धार बहैत अछि जे लक्ष्मण द्वारा वाणसँ उद्घाटित भेल छल।
३१. सुग्गा-जनकपुर लग जलेश्वर शिवधामक समीप सुग्गा ग्राममे शुकदेवजीक आश्रम अछि। शुकदेवजी जनकसँ शिक्षा लेबाक हेतु मिथिला आएल छलाह- एहि ठाम हुनकर ठहरेबाक व्यवस्था भेल छल।
३२. सिंहेश्वर- मधेपुरासँ ५ किलोमीटरपर गौरीपुर गाम लग सिंहेश्वर शिवधाम अछि।
३३. कपिलेश्वर-कपिल मुनि द्वार स्थापित महादेव मधुबनीसँ ६ किलोमीटर पश्चिममे अछि।
३४. कुशेश्वर- समस्तीपुरसँ उत्तर-पूब, लहेरियासरायसँ ६० किलोमीटर दक्षिण-पूब आ सहरसासँ २५ किलोमीटर पश्चिम ई एकटा प्रसिद्ध शिवस्थान अछि। एतए चिड़ै-अभ्यारण्य सेहो अछि जतए उज्जर आ कारी गैबर, लालसर, दिघौछ, मैल, नकटा, गैरी, गगन, सिल्ली, अधानी, हरिअल, चाहा, करन, रतबा चिड़ै सभ अनायासहि नवम्बरसँ मार्च धरि देखबामे अएत ।
३५. सिमरदह-थलवारा स्टेशन लग शिवसिंह द्वारा बसाओल शिवसिंहपुर गाम लग ई शिवमन्दिर अछि।
३६. सोमनाथ- मधुबनी जिलाक सौराठ गाममे सभागाछी लग सोमदेव महादेव छथि।
३७. मदनेश्वर- मधुबनी जिलाक अंधरा ठाढ़ीसँ ४ किलोमीटर पूब मदनेश्वर शिव स्थान अछि।
३८. कुन्दग्राम:हाजीपुरसँ बत्तीस किलोमीटर उत्तर-पूर्वमे बसाध-वैशाली आ लगमे वासोकुण्ड लग, गाम गढ़-टीलासँ २ कि.मी. उत्तर-पूर्व अछि कुन्दग्राम, जतए जैनक २४म तीर्थंकर महावीरक जन्म भेल छलन्हि। एतए बुद्धक छाउर, अभिषेक पुषकरणी (राजा अभिषेकसँ पूर्व एतए नहाइत रहथि), अशोक स्तम्भ आ संसद-भवन (राजा विशालक गढ़) अछि।
३९. चण्डेश्वर- झंझारपुरमे हरड़ी गाम लग चण्डेश्वर ठाकुर द्वारा स्थापित चण्डेश्वर शिवस्थान अछि।
४०. बिदेश्वर-मधुबनी जिलामे लोहनारोड स्टेशन लग स्थित शिवधामक स्थापना महाराज माधवसिंह कएलन्हि। ताहि युगक मिथिलाक्षरक अभिलेख सेहो एतए अछि।
४१. शिलानाथ- जयनगर लग कमला धारक कातमे शिलानाथ महादेव छथि।
४२. उग्रनाथ-मधुबनीसँ दक्षिण पण्डौल स्टेशन लग भवानीपुर गाममे उगना महादेवक शिवलिंग अछि। विद्यापतिकेँ प्यास लगलन्हि तँ उगनारूपी महादेव जटासँ गंगाजल निकालि जल पिएलखिन्ह। विद्यापतिक हठ कएला पर एहि स्थान पर उगना हुनका अपन असल शिवरूपक दर्शन देलखिन्ह।
४३. उच्चैठ छिन्नमस्तिका भगवती- कमतौल स्टेशनसँ १६ किलोमीटर पूर्वोत्तर उच्चैठमे कालिदास भगवतीक पूजा करैत छलाह। भगवतीक मौलिक मूर्त्ति मस्तक विहीन अछि।
४४. उग्रतारा- मण्डन मिश्रक जन्मभूमि महिषीमे मण्डनक गोसाउनि उग्रतारा छथि।
४५. भद्रकालिका- मधुबनी जिलाक कोइलख गाममे भद्रकालिका मंदिर अछि।
४६. चामुण्डा- मुजफ्फरपुर जिलामे कटरागढ़ लग लक्ष्मणा वा लखनदेइ धार लग दुर्गा द्वारा चण्ड-मुण्डक वध कएल गेल। ओहि स्थान पर ई मन्दिर अछि।
४७. परसा सूर्य मन्दिर- झंझारपुरमे सग्रामसँ पाँच किलोमीटर पूर्व परसा गाममे साढ़े चारि फीटक भव्य सूर्य मूर्त्ति भेटल अछि।
४८. बिसफी- मधुबनी जिलाक बेनीपट्टी थानामे कमतौल रेलवे स्टेशनसँ ६ किलोमीटर पूब आ कपिलेश्वर स्थानसँ ४ किलोमीटर पश्चिम बिसफी गाम अछि। विद्यापतिक जन्म-स्थान ई गाम अछि। एतए विद्यापतिक स्मारक सेहो अछि।
४९. मंदार पर्वत-बांका स्थित स्थलमे मिथिलाक्षरक गुप्तवंशीय ७म् शताब्दीक अभिलेख अछि। समुद्र मंथनक हेतु मंदारक प्रयोग भेल छल। निकटमे बौंसीमे जैनक बारहम तीर्थंकर वासुपूज्य नाथक दूटा मूर्त्ति अछि, पैघ मूर्ति लाल पाथरक अछि तँ दोसर काँसाक जकर सोझाँ दूटा पदचिन्ह अछि। जैनक बारहम तीर्थंकर वासुपूज्य नाथक जन्म चम्पानगरमे आ निर्वाण एहि ठाम भेल छलन्हि।
५०. विक्रमशिला-भागलपुरमे स्थित प्राचीन विश्वविद्यालय। भागलपुर जिलाक अंतीचक गाममे राजा धर्मपालक बनाओल बुद्ध विश्वविद्यालय अछि। १०८ व्याख्याता लेल रहबाक स्थान आ बाहरसँ पढ़ए बला लेल सेहो स्थान एतए निर्मित अछि
५१. मिथिलाक बीस टा सिद्ध पीठ—
१. गिरिजास्थान (फुलहर, मधुबनी), २. दुर्गास्थान (उचैठ, मधुबनी), ३. रहेश्वरी (दोखर, मधुबनी), ४. भुवनेश्वरीस्थान (भगवतीपुर, मधुबनी), ५. भद्रकालिका (कोइलख, मधुबनी), ६. चमुण्डा स्थान (पचाही, मधुबनी), ७. सोनामाइ (जनकपुर, नेपाल), ८. योगनिद्रा (जनकपुर, नेपाल) ९. कालिका स्थान (जनकपुर स्थान), १०. राजेश्वरी देवी (जनकपुर, नेपाल), ११. छिनमस्ता देवी (उजान, मधुबनी), १२. बनदुर्गा (खररख, मधुबनी), १३. सिधेश्वरी देवी (सरिसव, मधुबनी), १४. देवी-स्थान (अंधरा ठाढ़ी, मधुबनी), १५. कंकाली देवी (भारत नेपाल सीमा आ रामबाग प्लेस, दरभंगा) १६. उग्रतारा (महिषी, सहरसा), १७. कात्यानी देवी (बदलाघाट, सहरसा), १८. पुरन देवी (पूर्णियाँ), १९. काली स्थान (दरभंगा), २०. जैमंगलास्थान (मुंगेर)।
५२. जनकपुर परिक्रमाक १५ स्थल आ ओतुक्का मुख्य देवता १. हनुमाननगर- हनुमानजी २. कल्याणेश्वर- शिवलिंग ३. गिरिजा-स्थान- शक्ति ४. मटिहानी- विष्णु मन्दिर ५. जालेश्वर- शिवलिंग ६. मनाई- माण्डव ऋषि ७. श्रुव कुण्ड- ध्रुव मन्दिर ८. कंचन वन- कोनो मन्दिर नञि मात्र मनोरम दृश्य ९. पर्वत- पाँच टा पर्वत १०. धनुषा- शिवधनुषक टुकड़ी ११. सतोखड़ी- सप्तर्षिक सात टा कुण्ड १२. हरुषाहा- विमलागंगा १३. करुणा- कोनो मन्दिर नहि मात्र मनोरम दृश्य १४. बिसौल- विश्वामित्र मन्दिर १५. जनकपुर।“मिथिलायदयश्च मध्यंते रिपवो इति मिथिला नगरी” - मिथिला जतए शत्रुकेँ मथल जाइत अछि- पाणिनीक विवरण ।
५३. चैनपुर सहरसा- मिथिलाक एकमात्र नीलकंठ मन्दिर, संगमे आदिकालीन भव्य काली-मन्दिर सेहो एहि गाममे अछि। महाशिवरात्रि आ कालीपूजा बड़ धूमधामसँ चैनपुरमे होइत अछि।
५४. धरहरा, बनमनखी, पूर्णियाँमे नरसिंह अवतारक स्थान अछि, एकटा खोह जेकाँ पैघ पाया अछि जाहिमे जे किछु फेकबैक तँ बड़ी काल धरि गों-गोँ अबाज होइत रहत। ई स्थान आब नरसिंह भगवानक मूर्ति आ मन्दिरक कारणसँ बेश विकसित भए गेल अछि।
५५. नेऊरी: दरभंगाक बिरौल प्रखण्डसँ १३.किलोमीटर पश्चिममे एकटा गढ़ अछि जे लोरिकक मानल जाइत अछि।
५६. दरभंगा कैथोलिक चर्च: १८९१मे स्थापित ई चर्च १८९७ केर भूकम्पमे क्षतिग्रस्त भए गेल। एकरा होली रोजेरी चर्च सेहो कहल जाइत अछि।
५७. सेंट फांसिस ऑसिसी चर्च मुजफ्फरपुरमे अछि।
५८. भिखा सलामी मजार: गंगासागर पोखरि दरभंगाक महारपर ई मजार अछि।
५९. दरभंगा टावर मस्जिद इस्लाम मतावलम्बीक एकटा भव्य मस्जिद आ धार्मिक स्थल अछि।
६०. मकदूम बाबाक मजार: ललित नारायण मिथिला विश्ववविद्यालय आ कामेश्वर सिंह संस्कृत विश्वविद्यालय दरभंगाक बीच स्थित ई मजार हिन्दू आ मुस्लिम मतावलम्बीक एकटा पावन स्थान अछि।
६१. चम्पानगर: भागलपुरक पश्चिममे, आब नगरसँ सटि गेल अछि। ई जैन लोकनिक एकटा पवित्रस्थल अछि, एतए महावीर तीनटा बस्सावास कएने रहथि। दू टा जैन मन्दिर एतए अछि, जे जैनक बारहम तीर्थंकर वासुपूज्य नाथकेँ समर्पित अछि।
६२. बसैटी अभिलेख- पूणियाँमे श्रीनगर लग मिथिलाक्षरक ई अभिलेख मिथिलाक पहिल महिला शासक रानी इद्रावतीक राज्यकालक वर्णन करैत अछि। एकर आधार पर मदनेश्वर मिश्र ’एक छलीह महारानी’ उपन्यास सेहो लिखने छथि।
बाइसी-बसैटी, अररिया मिथिलाक्षर शिलालेख- रानी इन्द्रावती (१७८४-१८०२) जे फूड-फॉर-वर्क आ अन्य कल्याणकारी कार्यक प्रारम्भ कएलन्हि केर मिथिलाक्षर अभिलेख, एतए एकटा मन्दिरक ऊपरमे कारी पाथरमे कीलित अछि जे निम्न प्रकारसँ अछि:-
बसैटी (अररिया) बिहार, शिव मन्दिरक मिथिलाक्षर शिलालेखक देवनागरी रूपान्तरण।

वंशे सभा समाने सुरगन बिदिते भू सूरस्यावतिर्ना।
राजाभूतकृष्णदेवोनृपति समरसिंहा मिधस्यात्मजातः॥
यस्मिन् राज्याभिषेकं फलयितु मिवतद्भक्तितुष्टोमहेशः।
कैलाशाद् भूगतेद्योप्यधिन सतितरा वैद्यनाथेन नाम्नाः॥
तस्य तनुजः सुकृतिनृपवरौ विश्वनाथ राजा भूत।
विरनारायण राजस्तस्याप्यासीद् सुतस्य॥
नरनारायण राजो नरपति कुल मौलि भूषणम् पुनः।
अर्थिनकल्पद्रूमदूव सुरगन वंसावतंसोत्भूत॥२॥
तस्मादि वैरिकुल सूदन रामचन्द्र नारायणो नरपतिस्तनयो वभूक।
संमोदिता दश दिशो निज कीर्ति चन्द्र ज्योतिस्नेहाभिरार्थ निवहः सुरिवतश्चयेण॥३।।
यद्दानवारि परिवर्द्धित वारि राशि सक्तान्त कीर्ति विमलेन्दु मरिचिकाभिः।
प्रोद्योतिता दशदिशः सतनुज इन्द्रनारायणोस्य कुलभूषण राजराजः॥४॥
तेनच सत्कुल जाता तनया मनबोध शझणिः कृतिनः।
परिणीता बन्धु यत्नैस्त्रिलोचननाद्रि पुत्रीव॥५॥
यस्या प्रतापतरणावुदितेऽपिचिते
चिन्तारजविन्द वनमालभते विकासम
सौहृदय हृदय मकरन्द च उद्येन
तत्रैव यद् गुणगणा मधुपन्ति योगात्॥६॥
यज्ञेवर्देव गणो द्विजाति निवहः सस्तायनत्यादरैः।
दर्दानैपूर्णः मनोरथोऽर्थपरन सन्तितिनिः सज्जना॥७॥
गर्ज्जद वैरि मदान्धवारण चपश्चञ्चःपेतापांकुरौ।
र्वस्याः सर्वदृशेकृतागुण चमेर्मस्याश्च भूमीतने॥८॥
श्री श्री इन्दुमति सतीमतिमती देवी महाराज्ञिका
जाता मैथिल माण्डराऽमिछकुलात् मोधोसरी जानयाः।
दानै कल्पलता मधः कृतवती श्री विष्णु सेवा परा
पातिव्रत्य परायणाच सततं गंगेर सम्पारणी॥९॥
शाकेन्दु नवचन्द्र शैलधरणी संलक्षित फाल्गुने
मासि श्रेष्ठतरे सिताहनि शितेपक्षे द्वितीयायां तिथौ।
भूदेवैर्वर वैदिकेर्म्मठमयं निर्भारय सच्चिनिमिः
तत्रे सेन्दुमति सुरस्य विधित्र प्राण प्रतिष्ठाव्यधात्॥१०॥
सोदरपुर सम्भव राजानुकम्पापजिवनिकृतिनः।
श्री शुभनायस्य कृतिर्मिदं विज्ञेक्षं सन्रन्तताम्॥११॥

(ऊपरका स्थान सभक चित्र http://www.videha.co.in/favorite.htm एहि लिंकपर उपलब्ध अछि।)

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