भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति
भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति
(c) २०००-२०२२ सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि। भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल http://www.geocities.com/.../bhalsarik_gachh.html , http://www.geocities.com/ggajendra आदि लिंकपर आ अखनो ५ जुलाइ २००४ क पोस्ट http://gajendrathakur.blogspot.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html (किछु दिन लेल http://videha.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html लिंकपर, स्रोत wayback machine of https://web.archive.org/web/*/videha 258 capture(s) from 2004 to 2016- http://videha.com/ भालसरिक गाछ-प्रथम मैथिली ब्लॉग / मैथिली ब्लॉगक एग्रीगेटर) केर रूपमे इन्टरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितक रूपमे विद्यमान अछि। ई मैथिलीक पहिल इंटरनेट पत्रिका थिक जकर नाम बादमे १ जनवरी २००८ सँ "विदेह" पड़लै। इंटरनेटपर मैथिलीक पहिल उपस्थितिक यात्रा विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि, जे http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि। आब “भालसरिक गाछ” जालवृत्त 'विदेह' ई-पत्रिकाक प्रवक्ताक संग मैथिली भाषाक जालवृत्तक एग्रीगेटरक रूपमे प्रयुक्त भऽ रहल अछि। विदेह ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA
(c)२०००-२०२२. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। सह-सम्पादक: डॉ उमेश मंडल। सहायक सम्पादक: राम विलास साहु, नन्द विलास राय, सन्दीप कुमार साफी आ मुन्नाजी (मनोज कुमार कर्ण)। सम्पादक- नाटक-रंगमंच-चलचित्र- बेचन ठाकुर। सम्पादक- सूचना-सम्पर्क-समाद- पूनम मंडल। सम्पादक -स्त्री कोना- इरा मल्लिक।
रचनाकार अपन मौलिक आ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) editorial.staff.videha@gmail.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकै छथि। एतऽ प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक/संग्रहकर्त्ता लोकनिक लगमे रहतन्हि,'विदेह' प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका मात्र एकर प्रथम प्रकाशनक/ प्रिंट-वेब आर्काइवक/ आर्काइवक अनुवादक आ आर्काइवक ई-प्रकाशन/ प्रिंट-प्रकाशनक अधिकार ऐ ई-पत्रिकाकेँ छै, आ से हानि-लाभ रहित आधारपर छै आ तैँ ऐ लेल कोनो रॊयल्टीक/ पारिश्रमिकक प्रावधान नै छै। तेँ रॉयल्टीक/ पारिश्रमिकक इच्छुक विदेहसँ नै जुड़थि, से आग्रह। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई पत्रिकाकेँ श्रीमति लक्ष्मी ठाकुर द्वारा मासक ०१ आ १५ तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।
स्थायी स्तम्भ जेना मिथिला-रत्न, मिथिलाक खोज, विदेह पेटार आ सूचना-संपर्क-अन्वेषण सभ अंकमे समान अछि, ताहि हेतु ई सभ स्तम्भ सभ अंकमे नइ देल जाइत अछि, ई सभ स्तम्भ देखबा लेल क्लिक करू नीचाँ देल विदेहक 346म आ 347 म अंक, ऐ दुनू अंकमे सम्मिलित रूपेँ ई सभ स्तम्भ देल गेल अछि।
“विदेह” ई-पत्रिका: देवनागरी वर्सन |
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Sunday, July 5, 2009
प्रबन्ध-निबन्ध-समालोचना -भाग 1 - गजेन्द्र ठाकुर
प्रबन्ध-निबन्ध-समालोचना
प्रबन्ध निबन्ध समालोचना
फील्ड-वर्कपर आधारित खिस्सा सीत-बसंत १.३
मायानन्द मिश्रक इतिहास बोध-प्रथमं शैल पुत्री च/ मंत्रपुत्र/
पुरोहित आ स्त्री-धन केर संदर्भमे १.१२
केदारनाथ चौधरीक उपन्यास “चमेली रानी” आ "माहुर" १.३४
नचिकेताक नाटक नो एण्ट्री: मा प्रविश १.३८
रचना लिखबासँ पहिने............... १.४७
कृषि-मत्स्य शब्दावली (फील्ड-वर्कपर आधारित) १.८७
मैथिली हाइकू/ हैकू/ क्षणिका १.९१
मिथिलाक बाढ़ि १.९५
विस्मृत कवि- पं. रामजी चौधरी (१८७८-१९५२) १.१००
विद्यापतिक बिदेसिया- पिआ देसाँतर १.११७
बनैत-बिगड़ैत-सुभाषचन्द्र यादवक कथा संग्रहक समीक्षा १.१२४
भाषा आ प्रौद्योगिकी (संगणक, छायांकन, कुँजी पटल/टंकणक तकनीक),
अन्तर्जालपर मैथिली आ विश्वव्यापी अन्तर्जालपर लेखन आ ई-प्रकाशन १.१४०
लोरिक गाथामे समाज ओ संस्कृति १.१४८
मिथिलाक खोज १.१५३
फील्ड-वर्कपर आधारित खिस्सा सीत-बसंत
गजेन्द्र ठाकुर (गाम, मेंहथ, भाया-झंझारपुर, जिला-मधुबनी) विशेष सहयोग श्री केशव महतो (बहादुरगंज, जिला किशनगंज, बिहार)
एहि क्षेत्रकार्यक सूचक श्री केशव महतो सीत बसंतक फील्डवर्कमे विशेष सहयोगक कारण एहि प्रबन्धक सह-लेखक छथि।सीत बसंतक कथाक कैक टा विभिन्न रूप पाओल गेल आ ओहि सभक विवरण यथास्थान देल गेल अछि। समाज आ संस्कृतिकेँ बुझबामे लोक कथाक बड्ड महत्व अछि, मुदा बिना फील्ड-वर्क कएने लिखल लोककथा अपन उद्देश्य प्राप्तिमे असमर्थ रहैत अछि। श्री सुभाषचन्द्र यादवजीक हम सेहो आभारी छी जिनकर एहि विषयक आलेख (फील्डवर्क आ लोककथापर) एकटा सेमीनारमे सुनलाक बाद हम आर तन्मयतासँ एहि कार्यमे लागि गेलहुँ।
एहि क्षेत्रकार्यमे आधुनिक फील्डवर्क तकनीक केर उपयोग कएल गेल आ सहभागिता, प्रेक्षण, साक्षात्कार, प्रश्नावली इत्यादिक आधारपर ई लोककथा निर्मित भेल अछि। लोककथा-कविताक कोनो स्वरूपमे कोनो परिवर्त्तन अवैज्ञानिक अछि आ तकर ध्यान एतए राखल गेल अछि ।
मणीपुर नगरक राजा महेश्वर सिंह छलाह।
ओ बड्ड प्रतापी राजा छलाह। ओ बड्ड निकेनासँ राज्य चला रहल छलाह।
किछु दिनुका बाद ओहि राजाकेँ दू टा बेटा जन्म लेलक।
ओकर रानी सेहो बड्ड सुशील आ स्वाभिमानी छलीह।
एक बेरुका गप अछि।
रानी अपन महलमे रहैत छलीह आ बहुत दिनसँ ओहि महलमे दू टा पौरकी चिड़ै खोता बना कए रहैत छल। एक दिन ओ अपन खोतामे दू टा अंडा देलक। अंडासँ दू टा बच्चा बहार भेल। एक दिन अनचोक्केमे ओहि बच्चा सभक माए मरि गेल। तकर बाद पौरकी सभकेँ बड्ड कष्ट होमए लगलैक। ओकर बाप किछु दिनुका बाद एकटा बोनसँ एकटा पौरकीकेँ बियाह कए आनि लेलक। तकर बाद दू-चारि दिन कोनो तरहेँ बीतल। तकर बाद एक दिन पौरकीक कनियाँ ओहि दुनू बच्चाकेँ खेनाइ खुअएला काल मुँहमे काँट धऽ देलक। ओ दुनू बच्चा ओही काल मरि गेल। मरलाक बाद ओ खोतासँ दुनू बच्चाकेँ लोलसँ धकेल कऽ नीचाँ खसा देलक। ओहि समय रानी महलमे छलीह आ बच्चा सभकेँ खसबैत ओ देखलन्हि। ओही दिनसँ रानीकेँ शंका भऽ गेलन्हि आ सभ दिन हुनका चिन्ता घेरि लेलकन्हि।
राजाकेँ रानी कहलन्हि -– हे राजा। देखू। अपना महलमे दू टा पौरकी रहैत रहए। ओ दू टा बच्चा देलक। बच्चाक माए मरि गेल। तकर बाद ओ दोसर बियाहि कए अनलक। दू चारि दिनुका बाद ओ दुनू बच्चाकेँ मारि देलक। से हे राजा, कतहु हमहूँ मरि जाइ तँ अहाँ दोसर बियाह कए लेब तखन हमरो दुनू बच्चाक ईएह हाल ने भऽ जाए।
राजा बाजल- यै रानी। एखन अहाँ जीवित छी, तखन एहि गपक अहाँ किएक चिन्ता कए रहल छी।
रानी बजलीह - नहि राजा। यदि हम मरि गेलहुँ तँ अहाँ बियाह तँ नहि कए लेब?
राजा उत्तर देलक- नहि । हम दोसर बियाह नहि करब।
ई कहि राजा अपन दरबज्जामे आपस चलि गेल।
ओही दिनसँ रानी दुखित रहए लगलीह आ अनचोक्के एक दिन मरि गेलीह।
आब एहि गपकेँ लए राजा बड्ड चिन्तामे पड़ि गेल। आब दुनू भाए सीत आ बसन्त सेहो दिक्कतमे पड़ि गेलाह।
राजाकेँ राजाक खबासिनी, मन्त्री, मुंशी आ मारते रास लोक सभ बुझाबए लागल।
ओ सभ राजासँ कहए लगलाह- राजा यदि अहाँ बियाह नहि करैत छी , तखन एहि दुनू बच्चाक की दशा होएत। ने एकरा सभक खेनाइक कोनो ठेकान रहत आ नहिये पढ़ाइक। ताहि द्वारे अहाँ एकटा बियाह करू।
एहि तरहेँ बुझओलापर राजा बाजल - ठीक अछि। जखन अहाँ सभक यैह विचार अछि तखन जाऊ, कोनो गरीबक लड़की भेटत तँ हम ओकरा संग बियाह कए लेब।
एहि तरहेँ राजाक सभटा गप बुझि-गुणि मुन्शी दीवान सभ क्यो लड़की ताकए लगलाह। एकटा लड़की राजाक नगरमे भेटल। ओ लड़की महागरीबक बेटी छलीह। राजा शुभलग्न बना कए ओहि लड़कीकेँ बियाह कए आनि लेलक। किछु दिन धरि ओ लड़की घरमे रहलीह। किछु दिनुका बाद ओकर ममता ओहि दुनू भाएपर कम होमए लागल। दुनू भाए स्कूलसँ पढ़ि कए घर आबथि आ अपन दरबज्जापर गेन्द लए खेलाइमे लागि जाथि। एक दिन अनचोक्केमे गेन्द आँगनमे जा कए खसि पड़ल।
ओहि समयमे ओकर सभक सतमाए आँगनमे छलीह। गेन्द खसलाक संग ओ गेन्दकेँ उठा कए अपन कोरामे राखि लेलन्हि।ओ दुनू भाए गेन्द तकैत आँगनमे अएलाह आ कहलन्हि जे माए गेन्द हमरा सभकेँ दए दिअ। हम दुनू भाए खेला रहल छी। माँ कहलखिन्ह जे हमरा लग गेन्द नहि अछि, अहाँ सभ चलि जाऊ। गेन्दकेँ दुनू भाए मायक कोरामे देखलन्हि। फेर कहलन्हि - माँ हमरा सभकेँ गेन्द दिअ। हम सभ खेलाएब। एहि तरहेँ दुनू भाए मँगैत-मँगैत माँक कोरासँ गेन्द लए लेलन्हि । गेन्द लऽ लेलाक बाद रानीक हृदयमे बड्ड तामस अएलन्हि। रानी तामसे भेर भेल कोचपर आबि पड़ि रहलीह आ खेनाइ-पिनाइ त्यागि देलन्हि। खबासिनी सभ बुझा कए थाकि गेलीह जे रानी चलू, हमरा सभ खा ली। मुदा रानी कोनो उत्तर नहि देलन्हि। ओ कहलन्हि जे आब हम मरि जाएब। एतेक गप सुनि खबासिनी राजा लग जा कए कहलक जे रानी बड्ड दुखित छथि। आब बचबा योग्य नहि छथि। अहाँ जा कए देखू। राजा एतेक गप सुनि कए अपन महलमे गेलाह आ रानीसँ पुछलन्हि। राजा पुछलन्हि जे तोहर एहन हालत कोना भेलह जल्दी बताबह।
रानी कहलन्हि-अहाँ हमरासँ पुछैत छी तँ पहिने अहाँ हमरासँ सत करू तँ हम कहब। नहि तँ हम मरि जाएब। राजा किछु नहि सोचलन्हि। ओ रानीक संग सत कए लेलन्हि। सत केलाक बाद रानी कहलन्हि- हमर ई दशा अहाँक दुनू बेटा कएने अछि। हमर बिमारीक यैह एकटा उपाय अछि नहि तँ हम नहि बचि सकैत छी - अहाँ ओहि दुनूकेँ मारि ओकर करेज निकालि हमरा दिअ। तखन हम बचि सकैत छी। राजा एतेक गप सुनि कए बड्ड तमसा गेल। ओ दुनू बेटाकेँ बजा कए बड्ड मारि मारलक आ तकर बाद जल्लादक हाथसँ मरबएबा लेल पठा देलक। जल्लाद दुनू भाएकेँ मारैत-पिटैत बोनमे लए गेल। दुनू भाए बड्ड कानि रहल छलाह। जखन जल्लाद सभ ओकरा दुनू गोटेकेँ मारए लागल तँ ओ सभ कहलन्हि जे हमरा सभकेँ नहि मारू। हमरा सभकेँ छोड़ि देब तँ हम सभ घुरि कए नगर नहि जाएब। अहाँ सभ कोनो माल-जानवरकेँ मारि ओकर करेज जा कए दए दियौक। आ ई कहि दुनू भाए , संगमे जतेक पाइ छलन्हि सेहो जल्लाद सभकेँ दए देलन्हि। एक जल्लाद कहलक जे एकरा सभकेँ मारि दियौक। दोसर कहलक जे नहि मारू। ई सभ घुरि कए जएबो करत तँ हम सभ कहबैक जे हम सभ की करू। हम सभ तँ करेज आनि कए देने छलहुँ। मरलाक बाद जीबि गेल होएत।
जल्लाद ओहिना कएलक आ दुनू भाएकेँ छोड़ि देलक।
कथा रूप १: जल्लाद ओहिना कएलक आ दुनू भाएकेँ छोड़ि देलक।
दुनू भाए ओहि बोनमे भटकए लगलाह। रातुक मौसममे दुनू भाए एकटा गाछक नीचाँ सूति गेलाह। किछु कालक बाद दुनू भाए उठि गेलाह आ गाछक ऊपर एकटा साँपकेँ चढ़ैत देखलन्हि। ओहि गाछपर दू टा हंसक बच्चा रहैत छल। हंस चरबाक लेल गेल रहए। ओहि साँपकेँ देखि कए हंसक बच्चा बाजए लागल।
दुनू भाए सोचलक- देखू। ई साँप बच्चाकेँ खा जएत। एतेक सोचलाक बाद तलवारसँ मारि कए साँपकेँ ओ सभ नीचाँ खसा देलक। बच्चा बजनाइ बन्न कए देलक। जखन भोर भेल तँ हंस-हंसिनी चरि कए आएल आ बच्चा लेल खेनाइ अनलक। बच्चाकेँ आहार खुआबए लागल तँ बच्चा आहार नहि खएलक आ कहलक जे माँ हमरा ई बताऊ जे एहि गाछपर हम पहिल देल बच्चा छी , आकि अहाँ पहिनहियो एहि एहि गाछपर बच्चा देने छी । माए कहलकै जे हम पहिनहियो बच्चा देने छी मुदा आइ धरिमे मात्र अहाँ दुनु गोटेक मूँह देखि रहल छी।
कथा रूप २: बेशी लोकप्रिय आ पसरल क्षेत्रमे: जल्लाद ओहिना कएलक आ दुनू भाएकेँ छोड़ि देलक।
दुनू भाए ओहि बोनमे भटकए लागल, खूब बौआएल। रातुक समय दुनू भाए एकटा गाछक तरमे सूति गेल। भोरे , बोनसँ बहराइत दोसर देश जाए लागल। दुनू भाए भूख-पिआसक मारे व्याकुल भऽ गेल। जा कए एकटा गाछक नीचाँ बैसि कए सुस्ताए लागल। ओ सभ सोचए लागल जे आब कोन उपाय करू। ओही समय ओहि गाछपर दू टा मएनाक बच्चा रहए। ओहिमेसँ एकटा कहैत अछि जे हमर जे काँचहि मौस खा जएत तकरा बड्ड शीघ्र राज्य भेटि जएतैक। आ दोसर कहलक जे हमरा जे आगिमे पका कए खाओत तँ किछु दिनुका बाद ओ राज पाबि जएत। एतेक गप दुनू भाए सुनलक आ हाथमे एकटा लाठी लए ओकरा सभकेँ मारि कए नीचाँ खसा देलक आ लऽ कए बिदा भेल। किछु दूर आगाँ गेल तँ देखलक जे गाए-महीस चराबए बला चरबाहा सभ एकटा बएरक काँटक बोन - झाँखुरकेँ जरा रहल छलाह। ओ दुनू भाए सोचलक जे अही अगिनवानमे पका कए एकरा खाएब। ओहि आगिमे दुनू गोटे मेनाक बच्चाकेँ पका कए खएलक। काँटमे जे ओ सभ पका कए खएलक तँ ओकर सभक भाग्यमे सेहो काँट लागि गेलैक।
ओतएसँ दुनू भाए बिदा भेल। किछु दूर गेलाक बाद ओकरा सभकेँ आमक एकटा गाछी भेटलैक।
बसन्त चलैत-चलैत थाकि गेल रहए आ ओकरा आर चलल नहि भऽ पाबि रहल छलए।
सीत कहलक-भाइ, तूँ एतए बैस, हम ओहि गामसँ किछु माँगि कए अनैत छी आ तखन खा कए हमरा सभ आगाँ चलब। सीत मँगबा लेल गाममे चलि गेल। सीत जाहि गाममे (कथा रूप ३ गामक नाम हस्तिनापुर सेहो कतहु-कतहु कहल जाइत अछि) मँगबाक लेल गेल ओहि गाममे राजाक बेटीक स्वयम्बर रचाओल गेल छल। ओहि स्थान पर जन सम्मर्द छल। ओतए भीड़ देखि सीत अटकि गेल आ देखए लागल। सीत अपन भाएक सुरता बिसरि गेल । स्वयम्बरमे लड़की जयमाल लए सभामे घुरए लागलि आ माला सीतक गरदनिमे पहिरा देलक। ओहीठाम सीतक बियाह ओहि लड़कीक संग भए गेल।
(रूप ४) बियाहक पहिने ओतुक्का लोक सभ बाजए लागल जे ई राजाक बेटी होइतो एकटा भिखमंगाक गरदनिमे माला पहिरा देलक। आ ईहो जे ओ लड़की बताहि भऽ गेल अछि। ओकर गरदनिसँ माला निकालि कए ककरो दोसराक गरदनिमे माला पहिराऊ नहि तँ बियाह नहि होमए देब। ई गप सुनि लड़की बाजलि जे हमर भाग्यमे ईएह भिखमंगा लिखल अछि तँ हमरा राजा कतएसँ भेटत? हम एकरे संग बियाह करब। ई गप सुनि सभ राजा अपन-अपन घर चलि गेलाह आ कहलन्हि जे एहि लड़कीकेँ एहि गामसँ निकालि दिअ आ कोनो दोसर ठाम पठा दिअ। राजा ओनाही कएलक। ओहि दुनू गोटेकेँ अपन गामसँ बाहर पठा देलक। ओ ओही नगरमे रहए लागल। किछु दिनुका बाद लोक सभ राजाकेँ कहए लागल जे अहाँ ओहि लड़काक संग लड़कीसँ छोड़ा दियौक आ कोनो दोसर लड़काक संग ओकर बियाह कराए दियौक।
सभक कहलापर राजा एकटा कुटनी बुढ़ियाकेँ जहर-माहुर संगमे दए पठेलक, जतए सीत आ राजाक बेटी रहैत छल। ओ बुढ़िया ओकरा सभक संगे रहए लागल। किछु दिन धरि ओ ओतहि रहल। दुनू गोटेकेँ कोनो गपक चिन्ता नहि भेलैक। एक दिन सीतकेँ अनचोक्केमे बड्ड पियास लगलैक। ओ अपन रानीसँ बाजल-हमरा पानि पिया दिअ। बुढ़िया फटाकसँ उठि कए गेल आ एक गिलास पानिमे जहर घोरि सीतकेँ देलक। सीतकेँ बड़ जोरसँ पियास लागल रहैक से ओ खटसँ पानि लऽ कए पीबि गेल। पानि पीबिते सीतकेँ किछुए कालक उपरान्त बड्ड निशा अएलैक। स्थिरे-स्थिरे निसाँ बढ़ैत गेल। निसाँमे सीत ओन्घरा गेल। बुढ़िया बाजल जे कोनो गप नहि। चिन्ता नहि करू। सभ ठीक भऽ जएत। कनेक कालक बाद सीत मरि गेल। रानी खूब हाक्रोस कए कानए लागलि। ओहि ठाम कोनो गाम नहि छल। सीतकेँ धारक कात लऽ जा कए गारि देल गेल। बुढ़िया कहलक- देखू चिन्ता नहि करू। आब हम सभ असनान कए ली। असनान करए गेल तँ एकटा नाह किनारमे लागल छल। बुढ़िया बाजल जे चलू, ओहि नाहपर बैसि कए स्नान कए लेब। तखन दुनू गोटे ओही नाहपर बैसिकए नहाए लागल। तखन आस्ते-आस्ते नाह आगाँ जाए लागल। जखन नाह बीच धारमे गेल तँ (रूप ५: एतए रानीक नाम फुलवन्ती सेहो अबैत अछि) रानी बुझलक जे नाह बीच धारमे आबि गेल अछि। तखन ओकरा बुझबामे अएलैक जे ई बुढ़िया ओकरा ठकि कए लए जा रहल छै। ओ रानी अपन पतिक बियोगमे छलीह। ओ हृदयमे सोचलक जे ओकर पति मरि गेल छै तँ ओ जीवित रहि कए की करत। ई सोचि कए नाहसँ कूदि कऽ ओ धारमे फाँगि गेल। भँसैत-भँसैत ओ बड्ड दूर चलि गेल आ ओतए ओ कात लागि गेल।
आब बसन्तक खिस्सा:
बसन्त ओहि गाछीमे भाएक आस तकैत रहए। दिन साँझमे बदलए लागल। ओहि गाछीमे कुम्भकार लोकनि गाछीक पात खड़रि रहल रहथि। तखने बसन्त कनैत-कनैत ओहि कुम्भकार लग गेल। कुम्भकार पुछलक-अहाँ किएक कानि रहल छी। बसन्त सभ गप बतेलक। कुम्भकार कहलक-अहाँ चिन्ता नहि करू। अहाँ हमरा घरपर चलू। अहाँ हमरा घरपर रहब। बसन्त कुम्भकार लग चलि गेल आ रहए लागल। ओतए रहैत-रहैत एक बेर एकटा बनिजारा अपन जहाज लए वाणिज्य करए लेल जा रहल छल आकि बीच धारमे ओकर जहाज ठाढ़ भए गेलैक।
जहाजक इन्जीनिअरसँ (रूप ६ एतए बनिजाराक नाम नैका बनिजारा सेहो कहैत सुनल गेल) बनिजारा पुछलक जे की जहाज एतएसँ आगाँ नहि जा रहल अछि। इन्जीनिअर कहलक-जहाज बलि माँगि रहल अछि। कोनो मनुक्खक बच्चाक बलि देलाक बाद जहाज आगाँ जएत। एतेक गप ओ बनिजाराकेँ कहलक तँ बनिजारा तीन लाख रुपैया लए एकटा बच्चाक तलाशमे गेल। ताकैत-ताकैत ओ ओही गाममे गेल, जाहि गाममे बसन्त रहैत छल। बनिजारा अबाज लगबैत जा रहल छल जे, जे क्यो एकटा बच्चा देत ओकरा हम तीन लाख रुपैया देब। एहि प्रकारसँ ओ अबाज लगबैत जा रहल छल। क्यो गोटे नहि बाजल। जखन ओ कुम्भकारक दरबज्जाक सोझाँ गेल तँ कुम्भकार कहलक-हँ हम एकटा लड़का देब। हमरा पाइ चाही। बनिजारा ओहि कुम्भकारकेँ तीन लाख टाका देलक आ ओतएसँ ओ बसन्तकेँ लए अपन जहाज लग गेल।
बसन्त ओकरासँ पुछलक-बनिजारा। अहाँ हमरा कतए लए जा रहल छी।
बनिजारा बाजल-हम अहाँकेँ बलि चढ़एबा लेल लए जा रहल छी। किएक तँ हमर जहाज धारक बीचमे ठाढ़ भऽ गेल अछि। ताहि द्वारे अहाँक बलि हम चढ़ाएब। एतेक गप सुनि कए बसन्त बाजल जे हे बनिजारा। हमरा ओतए गेलाक बाद, जहाज छूलाक बाद जे जहाज खुजि जएत तँ अहाँ हमरा छोड़ि देब ने?
बनिजारा कहलक-हमर जहाज जे खुजि जएत तँ हम अहाँकेँ छोड़ि देब।
बसन्त बीच धारमे जा कए हाथसँ जहाजकेँ छूबि कए बाजल। जहाज अहाँ जाऊ तँ हमर जान बाँचि जएत।
एतेक कहबाक देरी रहए आकि जहाज ओतएसँ बिदा भऽ गेल।
इन्जीनिअर बनिजाराकेँ कहलक-एकरा बैसा लिअ जहाजमे। कतहु आन ठाम ठाढ़ भऽ जएत तखन?
बसन्त बाजल-हमरा मारि देने रहितहुँ तँ फेर जहाज ठाढ़ भेलाक बाद हमरा कतएसँ अनितहुँ?
बनिजारा बाजल-छोड़ि दिअ एकरा।
बसन्त ओतएसँ धारक काते-काते बिदा भेल आ ओतए पहुँचि गेल, जतए सीतक स्त्री कानि रहल छलीह।
बसन्त पुछलक-अहाँ किएक कानि रहल छी ?
एतबा सुनितहि ओ कानब बन्द कए चुप भए गेलीह।
बसन्त कहलक-हमहूँ दुखक मारल छी। हम बिछुड़ि कए दू सँ एक भए गेल छी।
स्त्री पुछलक-अहाँक की नाम छी आ अहाँक भाएक की नाम छी?
बसन्त बाजल-हमर नाम बसन्त छी आ हमर भाएक नाम सीत छल।
ई बात सुनैत स्त्री फेरसँ कानए लागल आ कहलक जे अहाँक भाए स्वर्गवासी भए गेलाह। हुनके वियोगमे हम कानि रहल छी। ई गप सुनि कए (रूप:७ एतए नाम दिल बसन्त सेहो अबैत अछि) बसन्त कहलक जे आब हमरो जीवित नहि रहबाक अछि।
ई गप सुनितहि सीतक स्त्री मरि गेलि आ बसन्त ओही समय बोनमे जा कए एकटा पैघ गाछपर चढ़ि कए अपन जान देबाक लेल तैयार भऽ गेल। ओही समय एकटा आकाशवाणी ओकरा अबाज देलक-बसन्त तूँ अपन जान नहि गमा। तोहर भाए जीवित छौक। जो जतए तोहर भाएक सारा छौक ओहिपर अपन दहिन हाथक कंगुरिया आँगुर काटि कए ओहिपर छीटि दे। तोहर भाए जीवित भए जएतौक। एतेक गप सुनि कए बसन्त गाछसँ नीचाँ उतरि गेल आ जतए ओकर भाएक सारा छल ओहिपर ओ ओहिना कएलक। सीत राम-राम बजैत उठि गेल। दुनू भाइ गरा मिलल। ओहि ठामसँ दुनू भाए बिदा भेल। दिनसँ साँझ पड़ि गेल आ दुनू भाए एक ठाम गाछक नीचाँ अटकि जाइ गेलाह।
सीत कहलक-भाए बसन्त, एतहि रुकैत छी। भोर भऽ जएत तखन फेर हम सभ बिदा होएब।
दुनू भाए ओहि गाछक नीचाँ रात्रि व्यतीत करए लगलाह।
खिस्सा रूप ८: रात्रिक बारह बाजल तँ बोनसँ एकटा साँप बहार भेल आ गाछपर चढ़ए लागल। ओही गाछपर हंसक खोता रहए। ओहि हंसक खोतामे दू टा हंसक बच्चा रहए। साँपकेँ देखि कए दुनू बच्चा अबाज देमए लागल। ई अबाज दुनू भाए सुनलक आ साँपकेँ गाछपर चढ़ैत देखलक आ सोचलक जे ई साँप बच्चा सभकेँ खा जएत से एकरा जे मारि दी तँ बच्चा सभक जान बचि जएत। ओ सभ साँपकेँ मारि देलक।
तावत हंस दहमे चरए लेल गेल रहए। हंस ओहि खोतामे कतेक बेर बच्चा देने रहए मुदा एकोटा बच्चा उठा नहि सकल रहए। भोरे सकाले हंस दहसँ चरि कए आएल। बच्चा सभकेँ जीवित देखि बड्ड प्रसन्न भेल। बच्चाकेँ अहार देमए लागल। बच्चा मुँह घुमा लेलक आ पुछलक-माँ अहाँ एहि गाछपर कतेक बच्चा पाड़लहुँ आकि हमही पहिल बच्चा छी।
माँ बाजलि-नहि एहि गाछपर कएक बेर हम बच्चा देलहुँ मुदा मुँह अहीं दुनूक हम आइ देखलहुँ।
बच्चा बाजल जे हमरो मुँह अहाँ नहि देखि सकितहुँ, जे ई मुसाफिर नहि रहितए। नीचाँ देखू की पड़ल अछि।
हंस देखलक जे नीचाँ मे एकटा साँप पड़ल छै आ दू टा मुसाफिर फिरि रहल अछि।
बच्चा बाजल-ओहि साँपकेँ यैह दुनू मुसाफिर मारलक अछि। पहिने जा कए ओही मुसाफिरकेँ खएबा लेल दियौक। ओ खाओत तँ हम खाएब।
हंस नीचाँ उतरि कए आएल आ कहलक- मुसाफिर, जखन अहाँ नहि खाएब तँ ई दुनू बच्चा सेहो नहि खाएत।
ई दुनू भाए कहलक-माँ, खेनाइसँ प्रेम पैघ अछि। माँ हमहूँ सभ, परिस्थितिक मारल छी। हमर सभक के सहायता करत ?
हंस बाजल-हमर सहायता अहाँ कएलहुँ से अहाँक सहायता हम करब। लिअ एकटा बच्चा हम अहाँ सभकेँ दैत छी। ई अहाँक सहायता करत। सियान भेलापर ई अहाँ दुनू भाएकेँ अपन पाँखिपर बैसा कए उड़ि सकैत अछि। जतए मोन होएत, ओतए जा सकैत छी। ई वरदान हम दैत छी जे अहाँ दुनू भाए सफल रहब। दुनू भाए प्रणाम कए ओतएसँ बिदा भेलाह। ओ सभ जतए कतहु बिलमैत रहथि, ओतए हंस अपन दुनू पाँखि पसारि छाह कए दैत छल। एहि प्रकारेँ किछु दिन बीतल। हंसक बच्चा पैघ भऽ गेल। ओ आब दुनू भाएकेँ चढ़ा कए लऽ जाए योग्य भऽ गेल।
हंस बाजल-भाए। आब तोँ दुनू भाए हमर ऊपर बैसि जाह। अहाँ जतए कतहु कहब हम अहाँ सभकेँ लए चलब।
दुनू भाए ओतएसँ हंसपर सवार भए आगू बिदा भेलाह आ जा कए कंचनपुर शहर पहुँचलाह। नगरक बाहर एकटा बरक गाछ छल। ओही गाछक लग ओ सभ डेरा खसेलक आ रहए लागल, आ शहरमे जा कए काज करए लागल। साँझ भेला उत्तर, ओही गाछक लग खेनाइ खा कए ओ सभ सूति जाथि। हंस भरि राति दुनू भाएक देख-रेख करैत छल। किछु दिनुका बाद ओहि कंचनपुर शहरक राजाक कंचना नाम्ना बेटीसँ सीत प्रेम करए लागल।
ओहि लड़कीक प्रत्येक दिन फूलसँ ओजन कएल जाइत छल। प्रेम कएलाक बाद लड़कीक ओजन बहुत बढ़ए लागल। राजाकेँ खबर भेल जे लड़कीक ओजन किएक बढ़ए लागल अछि ? राजा अपन महलक चारू कात सिपाहीक पहरा दिआ देलक। ताहूपर सीत हंसपर सवार भए महलमे चलि जाइत छलाह। सम्पूर्ण शहरमे हिलकोर उठि गेल जे के ई लोक अछि, जे हमर राजाक महलमे चोरिसँ चलि जाइत अछि। एक दिन संजोगसँ सीत गेल आ कोचपर बैसि दुनू गोटे हँसी मजाक करए लागल आ अहीमे दुनू गोटेकेँ निन्न लागि गेलैक। हंस बेचारा घुरि कए आपस अपन डेरापर आबि गेल आ भोरमे दुनू गोटेकेँ एक्के संग महलमे पकड़ि लेल गेलैक।
राजा सभटा गप पुछलक। सीत सभटा गप बतेलक।
लड़की कहलक जे हमर भाग्यमे यैह अछि आ यैह रहत।
राजा सोचि कए कहलक-अहाँ अपन भाएकेँ लए आऊ आ हंसकेँ सेहो।
बसन्त आ हंसकेँ सीत लए अनलक। हंसकेँ देखि कए राजा बड्ड प्रसन्न भेल।
राजा कहलक-हमर मन्त्रीकेँ एकटा बेटी छै। दुनू भाएक एकहि बेर बियाह कए देल जएत।
बड्ड धूम-धामसँ दुनू भाएक बियाह भेल।
सीतकेँ कंचनपुरक राज भेटल, कारण राजाक तँ एकेटा बेटी रहए। ताहि द्वारे सीत किछु दिन बितलाक बाद कहलक जे आब हम अपन शहर जाएब।
राजा खुशीक संग ओहि चारू गोटे बेटी-जमाएकेँ बिदा कएलक। सीत-बसन्त दुनू भाए अपन देश बिदा भेल। किछु दिनुका बाद ओ सभ अपन नगर पहुँचल तँ ओतुक्का हालत बड्ड गम्भीर देखलक। अपन राजक एक कोनमे ओ सभ अपन घर बनेलक आ रहए लागल। सीतक माए आ पिता दुनू गोटे आन्हर भए गेल रहथि। सभ दिसनसँ विपत्ति आएल छलन्हि। एक दिन हुनका पता लगलन्हि जे हुनकर राज्यक एक कोनमे कोनो दोसर राजा घर बना कए रहि रहल अछि। चलू ओकरासँ भेँट कए आबी।
ओ सभ जखन अएलाह तँ दरबज्जापर सीत-बसन्त दुनू गोटे चीन्हि गेलथि जे यैह हमर माए-बाप छथि। दुनू भाए अपन-अपन स्त्रीकेँ इशारा कएलन्हि। एहि दुनू गोटेकेँ भीतर लए जइयन्हु आ नीक जेकाँ असनान करबाऊ, नीक कपड़ा पहिराऊ आ खूब आ नीक खेनाइ खुआऊ आ तकर बाद एतए आनू आ मंचपर बैसाऊ।
तकर बाद सीत आ बसन्त दुनू भाए माँ-पिताक आगाँ ठाढ़ भए कहलन्हि-ई तँ बताऊ जे अहाँकेँ कैकटा बेटा अछि।
राजा महेश्वर सिंह कहलन्हि-हमरा दू टा बेटा रहए मुदा आब एकोटा नहि अछि। हमर भाग्यक दोख अछि। नहि जानि ओ सभ जीवित अछि आकि मरि गेल? हम तँ मरबा देने रहियैक।
सीत-बसन्त बाजल-नहि। अहाँक दुनू बेटा जीवित अछि। एतेक कहैत ओकरा सभक आँखि नोरा गेलैक।
-–पिताजी वैह सीत-बसन्त हम सभ छी।
ओही समय राजाक आँखि खुजि गेलैक आ दुनूकेँ अँकवारमे भरि पकड़िकेँ ओ कानए लागल आ अपन गल्ती स्वीकार कएलक। धन्य लाला, अहाँक अउरदा बढ़ए। अमर रहू।
मायानन्द मिश्रक इतिहास बोध-प्रथमं शैल पुत्री च/ मंत्रपुत्र/ पुरोहित आ स्त्री-धन केर संदर्भमे
एहि प्रबन्धमे मायानन्दजीक स्त्रीधन, पुरोहित, मंत्र-पुत्र आ प्रथमं शैलपुत्री च- एहि चारि पोथीक जे कथा-विधान आ साहित्यिक विवेचन छल तकरा यथा संभव नञि छुअल गेल आ मात्र इतिहास-बोधक सन्दर्भमे विवेचना अछि।
प्रबंधमे मायानान्द जीक १.प्रथमं शैल पुत्री च २.मंत्रपुत्र ३.पुरोहित आ ४. स्त्री-धन एहि चारि ऐतिहासिक उपन्यास सभक आधार पर लेखक द्वारा लगभग दू दशकमे पूर्ण कएल गेल इतिहास यात्राक समीक्षा कएल गेल अछि। एहिमे प्रयुक्त पुस्तकमे, मंत्रपुत्र मैथिलीमे अछि आ शेष तीनू उपन्यास हिन्दीमे, तथापि यात्रा पूर्णताक दृष्ट्वा आ श्रृंखलाक तारतम्य आ समीक्षाक पूर्णताक हेतु चारू किताबक प्रयोग अनिवार्य छल।
कालक्रमक दृष्टिसँ प्रथमं शैल पुत्री च प्रथम अछि । एहिमे १५०० ई.पू.सँ पहिलुका इतिहासक आधार लेल गेल अछि। मंत्रपुत्रमे १५०० ई.पू. सँ १२०० ई.पू. धरिक इतिहास उपन्यासक आधार अछि। ई सभ आधार भारत युद्धक पहिलुका अछि। पुरोहितमे १२०० ई.पू.सँ १००० ई.पू. धरिक इतिहास अछि- एकरा ब्राह्मण साहित्यक युगक इतिहास कहि सकैत छी। स्त्रीधनक आधार अछि सूत्र-स्मृतिकालीन मिथिला।
मुदा रचना भेल मैथिली मंत्रपुत्रक पहिने -नवंबर १९८६ मे। प्रथमं शैल पुत्री च एकर दू सालक बाद रचित भेल आ ताहिमे मायानन्द जी चारू किताबक रचनाक रूपरेखा देलन्हि मुदा ई हिन्दीक संदर्भमे छल। एकर बाद सभटा किताब हिन्दी मे आएल। हिन्दी मंत्रपुत्र आएल जाहि कारणसँ तेसर पुस्तक पुरोहित किछु देरीसँ १९९९ मे प्रकाशित भेल। स्त्रीधन जे एहि श्रृंखलाक अंतिम पुस्तक अछि, २००७ ई. मे प्रकाशित भेल।
“प्रथमं शैल पुत्री च” केर प्रस्तावनाक नाम कवच छल।मंत्रपुत्रक प्रस्तावनाक नाम ऋचालोक छल आ ई पुस्तकक अंतमे राखल गेल, किएक तँ ई लेखकक प्रथम ऐतिहासिक रचना छल, प्रस्तावनाकेँ अंतमे राखि कय रहस्य आ रोमांचकेँ बनाओल राखल गेल । पुरोहितक प्रस्तावनाक नाम विनियोग छल आ एकरासँ पहिने दूर्वाक्षत मंत्र राखल गेल जे भारतक आ विश्वक प्रथम देशभक्ति गीत अछि। मिथिलामे एकरा आशीर्वादक मंत्रक रूपमे प्रयोग कएल जाइत अछि जकर पक्ष-विपक्षमे विस्तृत चरचा बादमे होएत।
स्त्रीधनक प्रस्तावनाक नाम लेखक पृष्ठभूमि रखने छथि जे उपन्यासक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि प्रदान करबाक कारण सर्वथा समीचीन अछि।
मायानन्दक इतिहास-बोधक समीक्षा हम श्रुति, परम्परा, तर्क आ भाषा-विज्ञानक आधार पर कएने छी। पाश्चात्य विद्वान सभक उच्छिष्ट भोज सँ निर्मित भारतीय इतिहास-लेखन सँ बचि कए इतिहासक समीक्षा भेल अछि आ मध्य एशिया आ यूरोपक कनियो प्रभाव समीक्षा पर नहि पड़ए से प्रयास कएल गेल अछि।
१. प्रथमं शैल पुत्री च- कवच रूपी प्रस्तावनाक बाद ई पुस्तक १. अग्ना, २.अग्न-शैला, ३. शैला- कराली, ४. कराली- महेष, ५. महेष- पारवती, ६. गणेष, ७. हरकिसन, ८. किसन, ९. हरप्पा : मोअन गाँव, १०. गणेष का श्रीगणेश, ११. किश्न, १२. महाजन, १३. मंडल, १४. किश्न मंडल, १५. मंडल : मंडली, १६. पतन: पुरंदर आ १७. उपसंहार : पलायन खंडमे विभक्त अछि।
१. अग्ना- २००० ई. पू. सँ आरम्भ होइत अछि ई उपन्यास। खोहमे रहएबला मनुष्यक विवरण शुरू होइत अछि। बा एकटा दलक सर्वाधिक बलिष्ठ मनुष्य अछि। पूर्वज बा सेहो बलिष्ठ छल। एतेक रास बच्चा सभक बा। एकटा छोट आ एकटा पैघ पाथरक आविष्कार कएने छलाह पूर्वज बा। अम् दलाग्राकेँ कहल जाइत छल। बा भयंकर गंधवला पशुक नाम सेहो छल। हाथक महत्व बढ़ल आ बढ़ल वृक्षसँ दूरी। सर्पकेँ मारि कए खाएल नहि जाइत अछि, से गप पूर्वजसँ ज्ञात छल। प्राचीन देव वृक्ष, दोसर नाग देव आ तेसर नदी देव छलाह। अम्बासँ बा संतान उत्पन्न करैत आएल छलाह। नव कुठार आ नव काताक आविष्कार भेल। अः आः अग अग्ग केर देखि कए वन्य पशुकेँ भागैत देखि एकर जानकारी भेल। मानुषी हुनकर संख्या वृद्धि करैत छलि। प्रथम मानुषीक नाम पड़ल अग्ना। ओकर मानुष-मित्र छलाह अग्ग। अग्ना दलाग्रा बनि गेलीह आ हुनकर नेतृत्वमे दल उत्तर दिशि बढ़ल। फेर लेखक लिखैत छथि जे पृथ्वीक उत्पत्ति लगभग २०० करोड़ वर्ष पूर्व भेल जे सर्वथा समीचीन अछि। कर्मकाण्डमे एक स्थान पर वर्णन अछि- “ब्राह्मणे द्वितीये परार्धे श्री स्वेतवाराह कल्पे वैवस्वत मन्वंतरे अष्ठाविंशतितमे कलियुगे प्रथम चरणे” आ एहि आधार पर गणना कएला उत्तर १,९७,२९,४९,०३२ वर्ष पृथ्वीक आयु अबैत अछि। रेडियोएक्टिव विधि द्वारा सेहो ईएह उत्तर अबैत अछि। यूरोपमे सत्रहम शताब्दी धरि पृथ्वीक आयु ४००० वर्ष मानल जाइत रहल। ईरानक विद्वान १२०० वर्ष पहिने पृथ्वीक उत्पत्ति मानलन्हि। ई दुनू दृष्टिकोण वैज्ञानिक दृष्टिकोणसँ देखलापर हास्यास्पद लगैत अछि।
अग्ना-शैलासँ शुरू होइत अछि दोसर भाग। १०००० ई.पू.। भाषाक आरंभक प्रारंभ मायानन्द मिश्र एहिमे प्रकट कएने छथि। एहिमे बड्ड नीक जेकाँ, संकेत भाषासँ ध्वनिक संबंध परिलक्षित कएल गेल अछि। चलंत सँ स्थिर जीवनक शुरुआत सेहो देखायल गेल अछि। तकर बाद शैला कराली अध्यायक प्रारंभ होइत अछि, ७५०० वर्ष पूर्वसँ। गौ पालनक चर्चा होइत अछि, गायक संख्यामे पर्याप्त वृद्धि भेल छल। सभ रहथि चरबाह, चर्मस्त्र्धारी। आ कटिमे पाथरक हथियार। भेड़, बकरी आ सुग्गर छल, किछु आन पोसिया जंतु जात सेहो रहए। घासक रस्सी, त्रिशूल आ नागदेवक चर्चा होइत अछि। बाक नाम आब भऽ जाइत अछि, ओजा। दलाग्राक नाम पड़ैत अछि शैला कराली। पशुक संख्या बढ़ल तँ पशुक चोरि सेहो शुरू भऽ गेल।पीपरक गाछक नीचाँ बैठकीक प्रारम्भ भेल। करालीक नाम अंबा पड़ल।
कराली-महेष अध्यायमे ५००० ई.पू. मे कृषिक प्रारम्भ देखाओल गेल अछि। महेष बीया बागु कए रहल छथि। जवकेँ पका कऽ खयबाक चर्चा होइत अछि। आब धारक नाम सेहो राखल जाए लागल। महेष कुल द्वारा पोस केर माँस खेनाइ तँ एकदम निषिद्ध भऽ गेल।ओजा लिंग स्थानमे बैसल रहैत छलाह।
तकर बाद महेष-पारवती अध्याय शुरु होइत अछि ४ सँ ५ हजार वर्ष पूर्व। धानक फसिलक प्रारंभ भेल। पारवती जहिया अएलीह तहिया ओतुक्का प्रथाक अनुसार लाल माटि माथमे लगा देल गेल। पुत्रक नाम गणेष पड़ल। एहिसँ पहिने संतानक परिचय नहि देल जाइत छल।
गणेष- ई अध्याय ४००० वर्ष पूर्वसँ शुरू होइत अछि। स्त्री-पुरुष संबंध आ पितृ कुलक आरंभक चर्चा शुरू भेल। नून अनबाक आ खेबाक प्रारंभ भेल। नून अनबासँ कुलक नाम नोनी पड़ल। जव आ गहूमक खेतीक प्रारंभ आ दूध दुहबाक आरंभ देखाओल गेल अछि। हाथीक पालनक प्रारंभ आ अदला-बदलीसँ विनिमयक प्रारंभ सेहो शुरू भेल। शिश्न देव पर जल आ पात चढ़ेबाक प्रारंभ सेहो भेल। यवकेँ कूटब आ बुकनी करबाक प्रारंभ भेल। गहूमकेँ चूरब आ पानिमे भिजा कए आगिमे पकाएब प्रारंभ भेल। पक्षिपालन करएबला एकटा भिन्न दल छल। मृतक-संस्कार आ मृत्यु पर कनबाक प्रारंभ सेहो भेल। लिपिक प्रारंभ सेहो भेल।
हर- एहि अध्यायक प्रारंभ ३५०० ई.पू. देखायल गेल अछि। नूनक व्यापार आ सुगढ़ नावक निर्माण प्रारंभ भेल। पइलीक कल्पना नपबाक हेतु भेल। हर आ बड़दक सम्मिलन प्रारंभ भेल। इनार खुनबाक प्रारंभ आ जनक लंबवत केर अतिरिक्त चौड़ाइमे बसबाक प्रारंभ सेहो भेल। घर बनएबाक प्रारंभ सेहो भेल।कारी, गोर आ ताम्रवर्णी कायाक बेरा-बेरी आगमन होइत रहल।
हरकिसन अध्यायक प्रारम्भ ३४०० वर्ष पूर्व होइत अछि। कृषि विकासक संग स्थायी निवासक प्रवृत्ति बढ़य लागल। तकरा बाद परिवारक रूप स्पष्ट होमय लागल। कृषि-विकाससँ वाणिज्य विस्तारक आवश्यकता बढ़ल। ऊनक वस्त्र, चक्की, भीतक घर आ इनारक घेराबा बनए लागल।
किसन अध्यायक प्रारम्भ ३३०० ई.पूर्व भेल। श्रम-बेचबाक प्रारम्भ भेल। पटौनीक प्रारम्भक संग कृषि-विकास गति पकड़लक। भूगोलक जानकारी भेलासँ वाणिज्य बढ़ल। अलंकारक प्रवृत्ति बढ़ल।
हड़प्पा: मोहनगाँव अध्याय ३२०० वर्ष पूर्व देखाओल गेल अछि।श्रम-बेचबाक हेतु काठक टोलक उदाहरण अबैत अछि। अलंकार प्रवृत्ति बढ़ल। गोलीक मालाक संग कुम्हारक चाक सेहो सम्मुख आयल। समाजमे वर्ग विभाजनक प्रारम्भ भेल।
गणेषक श्रीगणेष अध्याय ३१०० ई. पूर्व प्रारम्भ भेल। दक्षिणांचल लोकक आगमनक बाद हड़प्पा हुनका लोकनि द्वारा बनेबाक चर्च लेखक करैत छथि। मोहनजोदड़ो, लोथल आ चान्हूदोड़ोक विकास व्यापारिक केन्द्रक रूपमे भेल। लिपि, कटही गाड़ी आ मूर्त्तिकलाक आविष्कार भेल आ वस्तु विनिमयक हेतु हाट लागए लागल। मेसोपोटामियाक जलप्लावन आ सुमेरी आ असुरक आगमनक चर्चा लेखक करैत छथि।
किश्न अध्यायक प्रारम्भ ३००० ई.पू. सँ भेल। विदेश व्यापारक आरम्भ भेल। तामक आविष्कार भेल। कृषि दासत्वक सेहो प्रारम्भ भेल। बाढ़िसँ सुरक्षाक हेतु ऊँच डीह बनाओल जाए लागल।
महाजन अध्याय २८०० ई. पू. प्रारम्भ होइत अछि। नगरक प्रारम्भ वाणिज्यक हेतु भेल। नहरि पटौनीक हेतु बनाओल जाए लागल। डंडी तराजूक आविष्कार आवश्यकता स्वरूप भेल। प्रकाश-व्यवस्थाक ब्योँत लागल।
मंडल अध्यायमे चर्च २६०० ई.पू.क छै। संस्था निर्माण, विवाह व्यवस्था आ दूरगर यात्राक हेतु पाल बला नावक निर्माण प्रारम्भ भेल।
किश्न मंडल अध्याय २४०० ई.पू. केर कालखण्डसँ आरम्भ कएल गेल अछि। एहिमे वर्षाक अभावक चरचा अछि। आर्यक पूर्व दिशामे बढ़बाक चर्चासँ लोकमे भयक सेहो चर्चा अछि।
मंडल:मंडली अध्याय २२०० ई.पू.सँ प्रारम्भ भेल। आर्यक आगमनक आ वर्षाक अभाव दुनूकेँ देखैत लोथल वैकल्पिक रूपसँ विकसित होमए लागल।
पतन:पुरंदर: एहि अध्यायक कालखण्ड २००० ई.पू.सँ प्रारम्भ भेल अछि। आर्यक राजा द्वारा पुरकेँ तोड़ि महान केंद्र हड़प्पाकेँ ध्वस्त करबाक चर्चासँ मायानन्द जी अपन पहिल किताब ‘प्रथमं शैल पुत्री च’ केर समापन करैत छथि। आर्य हड़प्पाकेँ हरियूपियासँ संबोधित कएल, आर्य बाहरसँ अएलाह प्रभृत्ति किछु सिद्धांतक आधार पर रचित ई उपन्यास ऐतिहासिक उपन्यास होएबाक दावा करैत अछि। आ एहिमे २०,००० ई.पू.सँ १८०० ई.पू. धरिक इतिहासोपाख्यानक चर्चा अछि। मुदा मौलिक ऐतिहासिक विचारधारा आ नवीन शोधक आधार पर एकर बहुतो बात समीचीन बुझना नहि जाइत अछि।
अग्नासँ शुरू भेल ई कथानक बड्ड आशा दिअओने छल। लेखक पहिल अध्यायमे लिखैत छथि जे पृथ्वीक उत्पत्ति लगभग २०० करोड़ वर्ष पूर्व भेल जे सर्वथा समीचीन अछि। कर्मकाण्डमे एक स्थान पर वर्णन अछि- “ब्राह्मणे द्वितीये परार्धे श्री स्वेतवाराह कल्पे वैवस्वत मन्वंतरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे प्रथम चरणे” आ एहि आधार पर गणना कएला उत्तर १,९७,२९,४९,०३२ वर्ष पृथ्वीक आयु अबैत अछि। रेडियोएक्टिव विधि द्वारा सेहो ईएह उत्तर अबैत अछि। ई अनुमानित अछि जे यूरेनियमक १.६७ भाग १०,००,००,००० वर्षमे सीसामे बदलि जाइत अछि। विभिन्न प्रकारक पाथर आ चट्टानमे सीसाक मात्रा भिन्न रहैत अछि। एहि प्रकारसँ गणना कएला पर ई ज्ञात होइछ जे रेडियोएक्टिव पदार्थ १,५०,००,००,००० वर्ष पहिने विद्यमान छल। एहि प्रकारेँ कोनो शैलक आयु २,००,००,००,००० वर्षसँ अधिक नहि भऽ सकैछ। यूरोपमे सत्रहम शताब्दी धरि पृथ्वीक आयु ४००० वर्ष मानल जाइत रहल। ईरानक विद्वान १२०० वर्ष पहिने पृथ्वीक उत्पत्ति मानलन्हि। एहि तरहक पाश्चात्य शोधकेँ लेखक पहिल अध्यायमे तँ नकारि देलन्हि मुदा अंत धरि जाइत-जाइत ओ - आर्य लोकनि हड़प्पाकेँ हरियूपिया कहैत छथि - एहि प्रकारक पाश्चात्य दुराग्रहक प्रभावमे आबि गेलाह। पश्चिमी विद्वानक उच्छिष्ट भोजसँ बचि श्रुति परम्पराक परीक्षा तर्कसँ नहि कए सकलाह। एहि प्रकारे ‘प्रथमं शैल पुत्री च’ निम्न आधार पर अपन इतिहासोपाख्यान साहित्यिक रूपसँ नहि बना पओलक :-
पुरातात्विक, भाषावैज्ञानिक आ साहित्यिक साक्ष्य एहि पक्षमे अछि जे आर्य भारतक मूल निवासी छलाह। आर्य भाषा परिवारक नामकरण मैक्समूलर द्वारा कएल गेल छल। द्रविड़ परिवारक नामकरण पादरी रॉबर्ट काल्डवेल द्वारा कएल गेल छल।आर्यक आक्रमणक सिद्धांत आएल ग्रिफिथक ऋग्वेदक अनुवादमे देल गेल फूटनोटसँ। पहिने तँ ई नामकरण विदेशी विद्वान द्वारा कएल गेल छल ताहि द्वारे ओकर अपन उद्देश्य होएतैक।
सरस्वती नदी, जल-प्रलय, मनु आ महामत्स्यक कथा, गिल्गमेश कथा काव्य, प्राणवंतक देश गिल्गमेशक खोज, सृष्टिकथा आ देवतंत्रक विकास एहि सभटा समाजशास्त्रीय विकासक विश्लेषण आर्य लोकनिक भारतक मूल निवासी होएबाक साक्ष्य प्रस्तुत करैत अछि।
ऋग्वेदमे मातृसत्तात्मक व्यवस्थाक स्मृतिक रूपमे बहुवचन स्त्रीलिंगक प्रयोगक बहुलता अछि।
सघोष आ महाप्राण ऋग्वेदिक आ भारतीय भाषाक ध्वनिक प्रतिरूप, नहि तँ ईरानी आ नहिये यूरोपीय भाषा सभमे भेटैत अछि। सरस्वती आ सिन्धु धारक बीचक सभ्यता छल आर्यक सभ्यता। सरस्वती धारक तटवर्ती भरत, पुरु आ अन्य गण सभ मिलि कए ऋगवेदक रचना कएलन्हि। सरस्वतीमे जल-प्रलयक बाद ई सभ्यता सारस्वत प्रदेश सँ हटि कए कुरु-पांचाल आ ब्रह्मर्षि प्रदेश-मध्यदेश- पहुँचि गेल। इतिहासमे भरत लोकनिक महत्व समाप्त भऽ गेल। एहि जल प्रलयक बाद आर्यजन लोकनिक वंशज मोहनजोदड़ो आ हड़प्पा नगरक निर्माण कएने होएताह सेहो सम्भव। हड़प्पा सभ्यताक ८०० मे सँ ५३० सँ ऊपर स्थान एहि लुप्त सरस्वती धारक तट पर अवस्थित छल। सिन्धुक धार पर एहि स्थल सभक बड्ड कम निर्भरता छल आ जखन सरस्वतीमे पानिक प्रवाह घटल तँ एहि सभ केन्द्रक ह्रास प्रारम्भ भऽ गेल।
पहिने सरस्वतीमे जल-प्रलयसँ आर्यक पलायन भेल (ऋगवेद आ यजुर्वेदक रचनाक बाद) आ फेर सरस्वतीमे पानिक कमी भेलासँ दोसर बेर आर्यक पैघ पलायन भेल (अथर्ववेदक रचनाक पहिने)। अरा-युक्त रथक वर्णन वेदमे भेटैत अछि। नहि तँ ई पश्चिम एशियामे छल आ नहिये यूरोपमे। भारतीय देवनाम, शिल्प, कथा, अश्वविद्या, संगीत, भाषिक तत्व आ चिंतनक संग ई उद्घाटित होमए लागल पश्चिम एशिया, मिश्र आ यूनानमे। दोसर सहस्राब्दी ई.पूर्व अरायुक्त्त रथ, भारतीय देवनाम, भारतक धार, ऋगवेदिक तत्वचिंतन, अश्वविद्या, शिल्प-तकनीकी आ पुरातन् कथा भारतसँ पच्छिम एशिया, क्रीट-यूनान दिशि जाए लागल। कालक्रमसँ मिश्र, सुमेर-बेबीलोन, आदि सभ्यता आ मित्तनी आ हित्ती सभ्यतासँ बहुत पहिनहि ऋगवेदक अधिकांश मंडलक रचना भऽ गेल छल।
मायानन्दजीक एहि सीरीजक दोसर रचना मंत्रपुत्र अछि। एहिमे ऋगवैदिक आधार पर जीवन-दर्शनकेँ राखल गेल अछि।
ऋगवेद १० मंडलमे (आ आठ अष्टकमे सेहो) विभक्त्त अछि। मायानन्द मिश्रजी मंडलक आधार पर मंत्रपुत्रक विभाजन सेहो १० मण्डलमे कएने छथि। एहि पुस्तकक भूमिकाक नाम अछि ऋचालोक आ ई पुस्तकक अंतमे १०म मण्डलक बाद देल गेल अछि।
प्रथम मण्डलमे काक्षसेनी पुत्री ऋजिश्वाक चर्च अछि संगहि ऋतुर्वित पुत्री शाश्वतीक सेहो। जन सभा आ जन-समिति द्वारा राजाकेँ च्युत करबाक/ निर्वासन देबाक आ दोसर राजाक निर्वाचन करबाक चर्चा सेहो अछि। नेत्रक नील रंग रहबाक बदला श्यामल भऽ जएबाक चर्चा आ एकर कारण खास तरहक विवाहक होयबाक चर्चा सेहो भेल अछि।वितस्ता तटसँ कृष्ण सभक निरन्तर उपद्रवक चर्चा सेहो अछि। सुवास्तु तटसँ रक्त्त मिश्रणक प्रक्रियाक वर्णन अछि। गोमेधकेँ वर्जित कएल जाय, ई विचार विमर्श कएल जाए लागल। दासक चर्चा सेहो अछि। हरियूपिया पतन आ ओकर विभिन्न नगर सभक उजड़ि जएबाक चर्चा अछि आ पश्चात्, बल्बूथ द्वारा अनार्य सभक ध्वस्त वाणिज्य व्यवस्थाकेँ संगठित करबाक चर्चा अछि।
द्वितीय मण्डलमे राजाकें समिति द्वारा एहि गपक लेल पदच्युत कएल जएबाक चर्चा अछि, कि धेनुक चोरिक बादो गव्य-युद्ध ओ नहि कएलन्हि। अभिषेकक सङ्ग राजा सेहो प्रायः निश्चित होमए लगलाह आ कौलिक परम्परा चलि गेल। पहिने समितिक निर्णयक बादे क्यो समर्थन-याचनामे जाइत छलाह, राजदण्ड सम्हारैत छलाह। धेनुक हरण कएने छल अनास दस्यु सभ। सुवास्तु, क्रुमु, वितस्ता आ अक्खनीक तट पर श्रुति अभ्यास आ युद्ध-कार्य संगहि चलैत छल, एके संग ब्राह्मण, क्षत्रिय आ वैश्य कर्म करैत छथि। मुदा सरस्वतीक तट पर बात किछु दोसरे भऽ गेल, ऋषिग्राम फराक होमय लागल। सभटा अनास दस्यु दास बनि गेल आ दासीसँ आर्यगणक संतान उत्पन्न होमए लगलन्हि। दासीपुत्र लोकनिकेँ तँ गाममे घर बनेबाक अनुमति छलन्हि मुदा अनास दस्युकेँ ओ अनुमति नहि छलन्हि। एहि गपक चर्चा अछि, जे आर्य चर्म वस्त्र पहिरैत छलाह आ अनास दस्यु लोकनिक संपर्कसँ सूतक वस्त्र आ लवणक प्रयोग सिखलन्हि। एहि दुनू चीजक आपूर्त्ति एखनो अनास लोकनिक हाथमे छलन्हि। अनार्य लोकनिक संपर्कसँ अपन शब्द कोश बिसरबाक आ तकर संकलनक आवश्यकताक पूर्त्तिक हेतु निघण्टुक संकलनक चर्चा सेहो अछि। गंधर्व विवाहक सेहो चर्चा अछि।
तृतीय मण्डल
अग्निष्टोम यज्ञक चर्चा अछि। छागर आ महीसक बलि केर चर्च अछि।
माँस-भात महर्षि लोकनिकेँ प्रिय लगलन्हि, तकर चर्चा अछि मुदा भातक बदला गहूमक सोहारीक प्रचलन एखनो बेशी होएबाक चर्चा अछि।
चतुर्थ मण्डल
राजाक अभिषेक यज्ञक चर्चा आ ओहिमे अरिष्टनेमिक ब्रह्मा बनबाक चर्चा अछि। ग्रामणी, रथकार, कम्मरि, सूत, सेनानी सेहो यज्ञमे सम्मिलित छलाह।
“अति प्राचीन कालमे सृष्टि जलमय छल”! एकर चर्चा मायानन्द मिश्रजी नहि जानि ऋगवेदिक युगमे कोना कए देलन्हि।
पञ्चम मण्डल
अश्वारोहण प्रतियोगिताक चर्चा अछि। अनास दास-रंजक नाट्यवृत्तिक चर्चा सेहो अछि। राजा द्वारा एकर अभिषेक कार्यक्रममे स्वीकृति आ एकर भेल विरोधक सेहो चर्चा अछि। दासकेँ स्वतंत्र कृषि अधिकार आ एकरा हेतु विदथक अनुमति राजा द्वारा लेल जाए आकि नहि तकर चर्चा अछि।
षष्ठ मण्डल
महावैराजी यज्ञक चर्चा अछि। समस्त दस्यु-ग्रामक दास बनि जएबाक सेहो चर्चा अछि आ ओ सभ पशुपालन आ पणि कार्य कऽ सकैत छथि। नग्नजितक प्रसंग लए मंत्र गायन केनिहार ब्राह्मण, गविष्ठि युद्ध कएनिहार क्षत्रिय आ एकर अतिरिक्त्त जे कृषि विकासमे बेशी ध्यान दैत छलाह से विश- सामान्य जन छलाह मुदा एहिमे मायानन्द जी वैश्य शब्द सेहो जोड़ि देने छथि।
सप्तम मण्डल
बर्बर उजरा आर्यक आक्रमणक चर्चा आब जा कए भेल अछि। प्रायः विदेशी विशेषज्ञक एक भागक संग मायानन्द जी सेहो पैशाची आक्रमणकेँ बादमे जा कए बूझि सकलाह आ एकरा सेहो आर्यक दोसर भाग बना देलन्हि। आर्य हरियूपियाकेँ डाहि कए नष्ट कए देने छलाह एकर फेर चर्च आबि गेल अछि। मोहनजोदड़ो आतंकसँ उजड़ि गेल फेर भूकम्पो आयल ताहूसँ नगर ध्वस्त भेल। आब मायानन्दजी ओझराएल बुझाइत छथि। वर्षा कम होएबाक सेहो चर्चा अछि।
अष्टम् मण्डल
ऋषिग्रामक चर्चा अछि। कुलमे दास आ दासी होएबाक संकेत अछि। वृषभ पालनक सेहो संकेत अछि। मंत्र-पुत्रक ग्रामांचल चलि जएबाक आ विशः-वैश्य बनि जएबाक सेहो चर्चा अछि। मुदा आगाँ मायानन्दजी ओझराइत जाइत छथि। कश्यप सागर तटसँ प्रस्थान-पूर्व द्यौस आ त्वराष्ट्री केर गौण देव भऽ जएबाक चर्चा अछि। ब्राह्मण आ क्षत्रियक विभाजन नहि होएबाक चर्च अछि आ क्यो कोनो कर्म करबाक हेतु स्वतंत्र छल। देवासुर संग्राम आ हेलमन्द तटक युद्ध आ पशुपालनक चर्चा अछि। पश्चात ब्रह्मण आ क्षत्रियक कर्मक फराक होएब प्रारम्भ भए गेल। पश्चात् मंत्र-द्रष्टा ऋषि द्वारा मंत्रमे देवक आ अपन नाम राखब प्रारम्भ भेल- एकर चर्चा अछि।श्रुति अभ्यासक प्रारम्भ होएबाक चर्चा अछि कारण मंत्रक संख्या बढ़ि गेल छल।
नवम् मण्डल
वस्तु विनमयक हेतु हाट व्यवस्थाक प्रारम्भ भेल। हाटमे मृत्तिका प्रभागमे दास-शिल्पी पात्रक उपस्थिति आ वस्त्र प्रभागक चर्चा अछि। मृत्तिका, हस्ति-दन्त, ताम्र सीपी आदिक बनल वस्तुजातक चर्चा अछि। शिशु-रंजनक वस्तुजात - जेना हस्ति, वृषभ आदिक मूर्त्तिक, लवणक, अन्नक, काष्ठक आ कम्बलक बिक्रीक चर्चा अछि।
दशम् मण्डल
श्वेत-जनक आगमनक -बर्बर श्वेत आर्य- सूचना नागजनकेँ भेटबाक चर्चा अछि। नाग जन द्वारा अपन दलपतिकेँ राजा कहल जाएब, नागक पूर्व-कालमे ससरि कए यमुना तट दिशि आएब आ ओतुक्का लोककेँ ठेल कए पाछाँ कए देबाक सेहो चर्चा अछि।कृष्ण जनक काष्ठ दुर्ग आ नागक संग हुनका लोकनिकेँ सेहो अनास कहल गेल अछि। मुदा ओ लोकनि दीर्घकाय छलाह आ नागजन कनेक छोट। एहि मण्डलमे दासक संग शूद्रक आ गंगा तटक सेहो चर्चा आबि गेल अछि। आर्य, दास आ शूद्रक बीचमे सहयोगक संकेत अछि।
अंतमे ऋचालोक नामसँ भूमिका लिखल गेल अछि। देवासुर संग्रामक बाद इन्द्र असुर उपाधि त्यागलन्हि, हित्ती मित्तानी चलल आ आर्य पूर्व दिशा दिशि बढ़ल- एहि सभ तथ्यक आधार पर लिखल ई मंत्रपुत्र ऐतिहासिकताक सभटा मानदण्ड नहि अपना सकल।
मायानन्द मिश्रजी साहित्यकारक दृष्टिकोण रखितथि आ पाश्चात्य इतिहासकारक एक भाग द्वारा पसारल गॉसिपसँ बचितथि तँ आर्य आक्रमणक सिद्धांतकेँ नकारि सकितथि। सरस्वतीक धार ऋगवेदक सभ मंडलमे अपन विशाल आ आह्लादकारी स्वरूपक संग विद्यमान अछि। सिन्धु आकि सरस्वती नदी घाटीक सभ्यता तखन खतम आकि ह्रासक स्थितिमे आएल जखन सरस्वती सुखा गेलीह। अथर्ववेदमे सेहो सरस्वती जलमय छथि। ऋगवेदमे जल-प्रलयक कोनो चर्च नहि अछि आ अथर्ववेदमे ताहि दिशि संकेत अछि। भरतवासी जखन पश्चिम दिशि गेलाह, तखन अपना संग जल-प्रलयक खिस्सा अपना संग लेने गेलाह। जल-प्रलयक बाद भरतवासी सारस्वत प्रदेशसँ पूब दिशि कुरु-पांचालक ब्रह्मर्षि प्रदेश दिशि आबि गेलाह।
सरस्वती रहितथि तँ बात किछु आर होइत मुदा सुखायल सरस्वती एकटा विभाजन रेखा बनि गेलीह, आर्य-आक्रमणकारी सिद्धांतवादी लोकनिकेँ ओहि सुखायल सरस्वतीकेँ लँघनाइ असंभव भऽ गेल।
सिन्धु लिपिक विवेचन सेहो बिना ब्राह्मीक सहायताक संभव नहि भऽ सकल अछि।
ग्रिफिथक ऋगवेदक अनुवादक पादटिप्पणीमे पहिल बेर ई आशंका व्यक्त्त कएल गेल जे आर्य आक्रमणकारी पश्चिमोत्तरसँ आबि कए मूल निवासीक दुर्ग तोड़लन्हि। दुर्गमे रहनिहार बेशी सभ्य रहथि। १९४७ मे ह्वीलर ई सिद्धांत लऽ कए अएलाह जे विभाजित पाकिस्तान सभ्यताक केन्द्र छल आ आर्य आक्रमणकारी विदेशी छलाह। एकटा भारतीय विद्वान रामप्रसाद चंद ताहिसँ पहिने ई कहि देने रहथि जे एहि नगर सभक निवासी ऋगवेदक पणि छलाह। मुदा मार्शल १९३१ ई मे ई नव गप कहने छलाह जे आर्यक भारतमे प्रवेश २००० ई.पूर्व भेल छल आ तावत हड़प्पा आ मोहनजोदड़ोक विनाश भऽ चुकल छल। १९३४ मे गॉर्डन चाइल्ड कहलनि जे आर्य संभवतः आक्रमणकारी भऽ सकैत छथि। १९३८ मे मकॉय मोहनजोदाड़ोक आक्रमणकेँ नकारलन्हि, किछु अस्थिपञ्जड़क आधार पर एकरा सिद्ध कएनाइ संभव नहि। डेल्स १९६४ मे एकटा निबन्ध लिखलन्हि ‘द मिथिकल मसेकर ऑफ मोहंजोदाड़ो’ आ आक्रमणक दंतकथाक उपहास कएलन्हि। तकर बाद ह्वीलर १९६६ मे किछु पाछाँ हटलाह मुदा मकॉयक कबायलीक बदलामे सभटा आक्रमणक जिम्मेदारी बाहरी आर्यगणक माथ पर पटकि देलन्हि। आब ओ कहए लगलाह जे आर्य आक्रमणकेँ सिद्ध नहि कएल जा सकैत अछि मुदा ज्योँ ई संभव नहि अछि तँ असंभव सेहो नहि अछि। स्टुआर्ट पिगॉट १९६२ धरि ह्वीलरक संग ई दुराग्रह करैत रहलाह। पिगॉट आर्यकेँ मितन्नीसँ आएल कहलन्हि। नॉर्मन ब्राउनकेँ सेहो पंजाब प्रदेशक शेष भारतक संग सांस्कृतिक संबंधक संबंधमे शंका रहलन्हि। संस्कृत आ द्रविड़ भाषाक अमेरिकी विशेषज्ञ एमेनो लिखलन्हि जे सिन्धु घाटी कखनो शेष भारतसँ तेना भऽ कए सांस्कृतिक रूपसँ जुड़ल नहि छल। जे आर्य ओतए अएलाह सेहो ईरानी सभ्यतासँ बेशी लग छलाह।
मुदा पॉर्जिटर १९२२ मे साहित्यिक परम्परासँ सिद्ध कएलन्हि जे भारत पर आर्यक आक्रमणक कोनो प्रमाण नहि अछि। ओ सिद्ध कएलन्हि जे भारतसँ आर्य पश्चिम दिशि गेलाह आ तकर साहित्यिक प्रमाण उपलब्ध अछि। लैंगडन सेहो कहलन्हि जे आर्य भारतक प्राचीनतम निवासी छलाह आ आर्यभाषा आ लिपिक प्रयोग करैत छलाह। ब्रिजेट आ रेमण्ड ऑलचिन आ कौलीन रेनफ्रीव आदि विद्वान प्राचीन भारतक इतिहासक प्रति पूर्वाग्रहक विश्लेषण कएने छथि।
मितन्नी शासक मित्र, वरुण, इन्द्र आ नासत्यक उपासक छलाह। हित्ती राज्यमे सेहो वैदिक देवता लोकनिक पूजा होइत छल।आलब्राइट आ लैंबडिन सेहो दू हजार साल पहिने दक्षिण-पश्चिम एशियामे इंडो आर्य भाषा बाजल जाइत छल आ संख्यासूचक शब्द सेहो भारतीय छल, एहि तथ्यकेँ मानलन्हि।
ई लोकनि भारतीय छलाह आ ऋगवेदक रचनाक बाद भारतसँ बाहर गेल छलाह। बहुवचन स्त्रीलिंग रूप, ऋगवेदक देवगणक विशिष्ट रूप अन्यत्र उपलब्ध नहि अछि। इंडो योरोपियन देवतंत्रमे भारतीय देवीगणक विरलता पूर्ववर्त्ती भारतीय मातृसत्तात्मक व्य्वस्थाक बादक योरोपीय परवर्त्ती पितृसत्तात्मक व्यवस्थाक परिचायक अछि।
आब आऊ सुमेरक जल प्रलयपर जेकि ३१०० ई.पू. मे मानल जाइत अछि। भारतीय कलि संवत ३१०२ ई.पू. मानल जाइत अछि। अतः एहि तिथिसँ पूर्व ऋगवेदक पूर्ण रचना भऽ गेल छल।
देवासुर संग्रामक बाद इन्द्र असुर उपाधि त्यागलन्हि आदि गप पोथीक समाप्ति पर ऋचालोकमे मायानन्द जी लिखैत छथि। किछु पाश्चात्य विद्वान सेहो ऋगवेदक दार्शनिक महत्वकेँ कम करबाक लेल ई गप कहैत छथि जे यूनानमे देवतंत्र पूर्ण रूपसँ पल्लवित छल मुदा ऋगवेदिक समाज घुमंतु छल आ देवतंत्र ताहि द्वारे विकसित नहि छल। ओ लोकनि ई सेहो कहैत छथि जे ऋगवेदक रचना अश्व पर घुमंतु जीवन यापित केनहार पश्चिमी आक्रमणकारी कएने छथि। ऋगवेदिक कवि लोकनि आरंभिक सामूहिक संपत्ति आ रक्त्त संबंध आधारित गणसमाज दुनूसँ परिचित छलाह मुदा स्वयं ओहिसँ बाहर आबि गेल छलाह आ व्यक्त्तिगत आ कुटुम्बक संपत्तिक आधार बला व्यवस्था शुरू कए देने छलाह। संपत्ति पुरुष केंद्रित आ परिवार पितृसत्तात्मक छल। मुदा मातृसत्तात्मक व्यवस्थाकेँ ओ बिसरल नहि छलाह कारण ओ आपः मातरः कहि बहुवचनमे जलदेवीक उपासना आ स्मरण करैत छथि, संगहि मरुतगण सदिखन गणक रूपमे स्मरण आ उपासना करैत छथि।
आब जा कए एंगेल्स कहैत छथि जे यूनानमे मातृसत्तासँ पितृसत्ता प्राचीन कालक सभसँ पैघ क्रान्ति छल। ई क्रान्ति ऋगवेदिक कालमे घटित भए गेल छल। श्रमक वैशिष्टीकरणसँ उत्पादनमे गोत्रक भूमिका घटि जाइत अछि आ कुटुम्बक बढ़ि जाइत अछि। गण, गोत्र, कुल आ कुटुम्बक क्रमशः विकास सामूहिक भूसंपत्तिक संगठनसँ होइत अछि। ऋगवेदमे कुम्भकार, कमार (काष्ठकार), लोहार आ धातु शिल्पक चर्च अछि। प्राचीन ईरानमे असुरक प्रतिरूप अहुरक प्रयोग भेल। ओ लोकनि एकर उपासक छलाह मुदा असुर-उपासक भारतीय जनक प्रभाव ईरान धरि सीमित छल, आगाँ एकर प्रसार नहि भेल। भारतमे असुर दुष्ट छथि मुदा ईरानमे देव दुष्ट छथि। असुरक गरिमा सम्पूर्ण ऋगवेदमे अछि। कोनो मण्डल एहन नहि अछि जाहिमे कोनो एक वा आन देवताकेँ असुर नहि कहल गेल होअए। मुदा एहनो असुर छथि जे देवक विरोधमे छथि आ इन्द्रसँ एहन अदेवाः असुराः केर नाशक हेतु आह्वाण कएल गेल अछि।इन्द्रक समान अग्नि सेहो असुरक नाश करैत छथि आ इन्द्र आ बृहस्पति दुनू गोटे स्वयं असुर छथि। असुर देवताक उपाधि छल। ऋगवेदमे देव आ असुरक सदृश असुर एकटा भिन्न वर्ग छल असुर श्वास लैत छलाह मुदा देव नहि। देवसँ असुर बेशी प्राचीन छथि ताहि द्वारे असुर वरुण देव आ मनुष्य दुहूक राजा छथि।
पैशाची त्वग् त्वचा भारतमे कहियो तेहन आह्लादसँ नहि देखल गेल । ओहिनो आर्य आक्रमण पोषक सिद्धान्तकार जे ई तथ्य उदाहरणार्थ देखथि जे दक्षिण भारतीय ब्राह्मण, कश्मीरी ब्राह्मण आ नेपालक ब्राह्मण मे त्वचा नहि वरण रूप सेहो भिन्न अछि, ई सिद्ध करैत अछि जे ई सभ स्थानीय जन छथि आ जाति-व्यवस्थामे ताहिरूपेँ सम्मिलित भेल छथि । कारण पाँच-सए आ हजार बरखमे मानवशास्त्रीय आ वैज्ञानिक रूपेँ ओतेक रूप-रंगक अन्तर सम्भव नहि। जे यूरोपवासी दक्षिण अमेरिका-अफ्रीकामे छथि तिनको, आ जे नीग्रो-रेड इन्डियन अमेरिका-अफ्रीका-यूरोपमे छथि तिनको रूप रंगमे कोनो परिवर्तन पाँच सए बरखमे नहि आएल छन्हि। ई लाख बरखक आवाससँ सम्भव होइत अछि जे गरम प्रदेशक निवासी कारी आ ठंढ प्रदेशक गोर होइत छथि ।
पुरोहित
पुरोहित हिन्दीमे अछि आ श्रृँखलाक तेसर पोथी थीक। दूर्वाक्षत जकरा मायानन्दजी सुविधारूपेँ आशीर्वचन सेहो कहि गेल छथि सँ एकर प्रारम्भ भेल अछि।
पुरोहित केर आरम्भ दूर्वाक्षत आशीर्वचन मंत्रसँ होइत अछि। शुक्ल यजुर्वेदक अध्याय २२ केर मंत्र २२ “ॐ आब्रह्मन…” सँ “नः कल्प्ताम्” धरि अछि। मिथिलामे एहि मंत्रक संग अन्तमे “ॐ मंत्रार्था सिद्धयः संतु मनोरथाः। शत्रूणां बुद्धिनाशोऽस्तु मित्राणामुदयस्तव।ॐ दीर्घायुर्भव। ॐ सौभाग्यवती भव”। एकर सेहो मंत्रोच्चार होइत अछि आ एहि चारि पादसँ ई मंत्र आशीर्वचनक रूप लए लैत अछि।
यजुर्वेदीय २२/२२ मंत्र सौसेँ भारतमे देशभक्त्ति गीतक रूपमे मंत्रोच्चारित होइत अछि।
दूर्वाक्षत मंत्र(शुक्ल यजुर्वेद अध्याय २२, मंत्र २२)
आ ब्रह्मन्नित्यस्य प्रजापतिर्ॠषिः। लिंभोक्त्ता देवताः। स्वराडुत्कृतिश्छन्दः। षड्जः स्वरः॥
आ ब्रह्म॑न् ब्राह्म॒णो ब्र॑ह्मवर्च॒सी जा॑यता॒मा रा॒ष्ट्रे रा॑ज॒न्यः शुरे॑ऽइषव्यो॒ऽतिव्या॒धी म॑हार॒थो जा॑यतां॒ दोग्ध्रीं धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः सप्तिः॒ पुर॑न्धि॒र्योवा॑ जि॒ष्णू र॑थे॒ष्ठाः स॒भेयो॒ युवास्य यज॑मानस्य वी॒रो जा॒यतां निका॒मे-नि॑कामे नः प॒र्जन्यों वर्षतु॒ फल॑वत्यो न॒ऽओष॑धयः पच्यन्तां योगेक्ष॒मो नः॑ कल्पताम्॥२२॥
मन्त्रार्थाः सिद्धयः सन्तु पूर्णाः सन्तु मनोरथाः। शत्रूणां बुद्धिनाशोऽस्तु मित्राणामुदयस्तव।
ॐ दीर्घायुर्भव। ॐ सौभाग्यवती भव।
हे भगवान्। अपन देशमे सुयोग्य आ सर्वज्ञ विद्यार्थी उत्पन्न होथि, आ शुत्रुकेँ नाश कएनिहार सैनिक उत्पन्न होथि। अपन देशक गाय खूब दूध दय बाली, बड़द भार वहन करएमे सक्षम होथि आ घोड़ा त्वरित रूपेँ दौगय बला होअए। स्त्रीगण नगरक नेतृत्व करबामे सक्षम होथि आ युवक सभामे ओजपूर्ण भाषण देबयबला आ नेतृत्व देबामे सक्षम होथि। अपन देशमे जखन आवश्यक होय वर्षा होए आ औषधिक-बूटी सर्वदा परिपक्व होइत रहए। एवं क्रमे सभ तरहेँ हमरा सभक कल्याण होए। शत्रुक बुद्धिक नाश होए आ मित्रक उदय होए॥
मनुष्यकें कोन वस्तुक इच्छा करबाक चाही तकर वर्णन एहि मंत्रमे कएल गेल अछि।
एहिमे वाचकलुप्तोपमालड़्कार अछि।
अन्वय-
ब्रह्म॑न् - विद्या आदि गुणसँ परिपूर्ण ब्रह्म
रा॒ष्ट्रे - देशमे
ब्र॑ह्मवर्च॒सी-ब्रह्म विद्याक तेजसँ युक्त्त
आ जा॑यतां॒- उत्पन्न होए
रा॑ज॒न्यः-राजा
शुरे॑ऽ–बिना डर बला
इषव्यो॒- बाण चलेबामे निपुण
ऽतिव्या॒धी-शत्रुकेँ तारण दय बला
म॑हार॒थो-पैघ रथ बला वीर
दोग्ध्रीं-कामना(दूध पूर्ण करए बाली)
धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः धे॒नु-गौ वा वाणी र्वोढा॑न॒ड्वा- पैघ बड़द ना॒शुः-आशुः-त्वरित
सप्तिः॒-घोड़ा
पुर॑न्धि॒र्योवा॑- पुर॑न्धि॒- व्यवहारकेँ धारण करए बाली र्योवा॑-स्त्री
जि॒ष्णू-शत्रुकेँ जीतए बला
र॑थे॒ष्ठाः-रथ पर स्थिर
स॒भेयो॒-उत्तम सभामे
युवास्य-युवा जेहन
यज॑मानस्य-राजाक राज्यमे
वी॒रो-शत्रुकेँ पराजित करएबला
निका॒मे-नि॑कामे-निश्चययुक्त्त कार्यमे
नः-हमर सभक
प॒र्जन्यों-मेघ
वर्षतु॒-वर्षा होए
फल॑वत्यो-उत्तम फल बला
ओष॑धयः-औषधिः
पच्यन्तां- पाकए
योगेक्ष॒मो-अलभ्य लभ्य करेबाक हेतु कएल गेल योगक रक्षा
नः॑-हमरा सभक हेतु
कल्पताम्-समर्थ होए
ग्रिफिथक अनुवाद- हे ब्रह्मण, हमर राज्यमे ब्राह्मण नीक धार्मिक विद्या बला, राजन्य-वीर,तीरंदाज, दूध दए बाली गाय, दौगय बला जन्तु, उद्यमी नारी होथि। पार्जन्य आवश्यकता पड़ला पर वर्षा देथि, फल देय बला गाछ पाकए, हम सभ संपत्ति अर्जित/ संरक्षित करी।
तकर बाद लेखकीय प्रस्तावना जकरा पुरोहितमे विनियोगक नाम देल गेल अछि, केर प्रारम्भ होइत अछि। पुरोहित शतपथ ब्राह्मणकालीन समाज पर आधारित अछि।
विनियोगमे पूर्व आ उत्तर वैदिक युग, महाभारत काल इत्यादिक काल निर्धारण पर चरचा कएल गेल अछि। संन्यास आ मोक्ष धारणाक प्रवेश, सूत्र साहित्य, आरण्यक आ उपनिषद आ ब्राह्मण ग्रंथक रचनाक सेहो चरचा अछि।कर्मणा केर बदलामे जन्मना सिद्धांतक प्रारम्भ आ शूद्र शब्दक उद्भव, नगरक, आहत मुद्राक, उद्योगक सुदृढ़ीकरणक आ लोहाक प्रयोगक सेहो चरचा भेल अछि। फेर मायानन्द जी ई लिखि जाइत छथि जे दाशरज्ञ युद्ध ई.पू. १८०० मे भेल- भरत आ कुशिक-कस्साइटक सम्मिलित समूह सरस्वती तटसँ व्यास नदी पार करैत इलावृत पर्वत प्रदेश होइत ; आ ओ लोकनि कोशल मिथिलाक राजतंत्रक, कुरु-पांचालक संस्कृतिक विकसित होएबासँ पूर्वहि, स्थापना कएने छलाह।
पुरोहित तेरह टा सर्गमे विभक्त्त अछि आ एकर अन्त उपसंहारसँ होइत अछि। प्रथम सर्ग दक्षिण पांचालक कांपिल्य नगरसँ शुरू होइत अछि। अथर्वणपल्लीक पशुशालामे साँझ होइत देरी उठैत धुँआक चरचा अछि। मेधा आ कुशबिन्दुसँ कथा आगू बढ़ैत अछि। ऋषि गालबक आश्रममे ऋगवेदकेँ कंठाग्र कराएल जएबाक आ बादमे जा कए कृषि संबंधी शिक्षा देल जएबाक वर्णन अछि।
दोसर सर्गमे राजा प्रवाहण जैबालिक मूर्ख पुत्र द्वारा ब्राह्मणक अपमानक, प्रथम श्रोत्रिय आ दोसर पुरोहित ब्राह्मणक वर्णन अछि।
तेसर सर्गमे आचार्य चाक्रायणक अपमानक कारण पुरोहित वर्ग द्वारा पौरहित्य कर्म नहि करबाक निर्णयसँ प्रजाजनक दैनिक अग्निहोत्र कार्य आ बिना लग्नक कृषि आ वाणिज्य कार्यमे होअए बला भाङठक वर्णन अछि।
चतुर्थ सर्गमे व्यास कथा आ भारत युद्धक चर्चा अबैत अछि आ एतए मायानन्द जी पाश्चात्य दृष्टिकोणक अनुसरण करैत छथि। जय काव्यकेँ भारत युद्धकथाक रूप दए देल गेल- ई वक्त्तव्य अनायासहि दए रहल छथि मायानन्द मिश्र।
पाँचम सर्गमे वैश्य द्वारा उपनयन संस्कार छोड़बाक चरचा अछि मुदा क्षत्रिय पुत्र आ पुत्री दुनूक उपनयन करैत छलाह। वैश्य कन्या शिक्षासँ दूर जा रहल छलीह आ ब्राह्मण कन्या गुरुकुलक अतिरिक्त पितासँ शिक्षा लए रहल छलीह। ब्राह्मणकेँ पौरहित्यसँ कम समय भेटैत छलन्हि।
छठम सर्गमे ब्राह्मण पुरोहित द्वारा अथर्व वेदकेँ नहि मानबाक चरचा अछि।
सातम सर्गमे अथर्वनपल्लीमे अथर्ववेदीय संस्कारक शिक्षा आ प्रथम श्रेणीक ब्राह्मण द्वारा ओतए नहि जएबाक चरचा अछि।
आठम सर्गमे इद्रोत्सवमे रथदौड़, अश्वारोहण, मल्लयुद्ध, असिचालन, लक्ष्यभेद आ विलक्षण अनुकृतिक चरचा अछि आ व्यासपल्लीक लोक द्वारा अनुकृति करबाक चरचा अछि। व्यासपल्लीमे व्रात्य करुष भारत युद्धक कथा कहि रहल छलाह। भारत युद्धक बहुत पूर्व भरत, त्रित्सु, किवी आ सृंजय मिश्रित जनक आर्यवर्तमे शूद्र नामसँ सुमेरियाक जियसूद्रक स्मृतिमे अपनाकेँ गौरव देबाक हेतु सूद्र कहबाक वर्णन अछि।
नवम सर्गमे तन्तुवाय द्वारा स्त्री निमित्त वस्त्रमे तटीयता देल जएबाक कारण भेल अन्तरक चरचा अछि, पहिने ई अन्तर नहि छल। अथर्वण आ याज्ञिक ब्राह्मणमे भेदक चरचा अछि।
दशम् सर्गमे शिश्नदेवक पूजा अनार्य द्वारा होएबाक आ अथर्वण पुरोहित द्वारा एकर अनभिज्ञताक चरचा अछि। व्यासपल्लीमे अक्षर लिपिक प्रयोग आ आचार्य गालबक श्रुति आश्रममे अंक लिपिक अतिरिक्त्त किछु अन्य देखब वर्जित होएबाक गप कहल गेल अछि।
एगारहम सर्गमे गालब आश्रममे दण्डनीति पर चरचा निषिद्ध होएबाक बादो दक्षिण पांचालक सभासदक आग्रह पर एतद संबंधी चरचा होएबाक गप अछि। राजा शिलाजित द्वारा राजपद प्रधान पुरोहितकेँ देबाक चरचा अछि।
बारहम सर्गमे भारत युद्धक बाद नियोग प्रथाक अमान्य भऽ बन्द भऽ जएबाक बात अछि। शिश्नदेवक शिवदेवसँ एकाकारक चरचा सेहो अछि।
तेरहम सर्गमे क्रैव्यराजक अभिषेक उत्सवक चरचा अछि। दूर्वाक्षत मंत्रमे
“ॐ मंत्रार्था सिद्धयः संतु मनोरथाः। शत्रूणां बुद्धिनाशोऽस्तु मित्राणामुदयस्तव” आ दीर्घायुर्भव केर मेल शुक्ल यजुर्वेदक २२/२२ मंत्रसँ कए दूबि अक्षत लए, विशेष लए ताल गति यति मे गएबाक वर्णन अछि। एकर अनुवाद सेहो मायानन्द जी देने छथि, जे ग्रिफिथक अनुवादसँ प्रेरित अछि:-
समस्त विश्वमे ब्राह्मण विद्याक तेजक वर्चस्व स्थापित करए बला, सर्वत्र, वाण चलएबामे निपुण, निरोगि, महारथी, शूर, यजमान राज्य सभक जन्म होए, सर्वत्र अधिकाधिक दूध दएबाली धेनु होए, शक्तिशाली वृषभ होए, तेजस्वी अश्व होए, रूपवती सध्वी युवती होथि, विजयकामी वीरपुत्र होथि, जखन हम कामना करी पर्जन्य वर्षा देथि, वनस्पतिक विकास होए, औषधि फलवती आ सभ प्राणी योगक्षेमसँ प्रसन्न रहथि।राजन शतंजीवी होथि।
क्रैव्यराजक अभिषेकक लेल ई मंत्र हाथमे अक्षत, अरबा, ब्रीहि आ दूर्वादल लए आ मंत्र समाप्ति पश्चात राजा पर एकरा छीटबाक आ फेर दहीक मटकूरीसँ दही लए महाराजक भाल पर एहिसँ तिलक लगएबाक वर्णन अछि। एहि प्रकरणमे मायानन्द जी लिखैत छथि जे एहि मंत्रक, जकरा मिथिलामे दूर्वाक्षत मंत्र कहल जाइत अछि, रचना याज्ञवल्क्य द्वारा वाजसनेयी संहिताक लेल कएल गेल। एहि मंत्रक उपयोग मिथिलामे उपनयनक अवसर पर बटुकक लेल आ विवाहक अवसर पर वर-वधुककेँ आशीर्वचनक रूपमे प्रयुक्त होअए लागल।
पुरोहितक अन्त होइत अछि उपसंहारसँ। एतय वर्णित अछि, जे काशीक रस्ताक अनार्य ग्रामक आर्यीकरण भेल आ व्रात्यष्टोम यज्ञ भेल। शिश्नदेवाः पर चरचा अछि, शुनःशेप आख्याण आ भारत कथाक कहबाक परम्पराक प्रारम्भ आ मगध द्वारा आर्य धर्मक प्रति वितृष्णाक चर्च सेहो अछि।
मायानन्दजी महाभारतक समस्याक समाधानमे सेहो पाश्चात्य विचारक लोकनिक अनुसरण करैत बुझना जाइत छथि। प्रोफेसर वेबर पहिल बेर एहि सिद्धांतकेँ लए कए आएल छलाह। ओ अपन विचार व्यक्त कएने छलाह जे ८८०० पद्यक जय संहिता छल आ पहिने युद्ध पर्व (१८ पर्व मे चारि पर्व भीष्म, द्रोण, कर्ण आ शल्य पर्व) मात्र छल। ओकर आधार ओ बनेने छलाह एकटा श्लोककेँ-
अष्टौश्लोक सहस्राणि..... अहं वेद्मि शुको वेत्ति सञ्जयो वेत्ति वा न वा
संजय, व्यास आ शुक तीनू गोटे ८८००-८८०० प्रत्येक कए भारतक श्लोक मात्र स्मरण कए सकल छलाह। माने भारत एतेक विशाल छल जे प्रत्येक गोटे सम्पूर्ण स्मरण नहि कए सकल छलाह आ ताहि दृष्टिसँ भारत कहियो २६४०० श्लोकसँ कम नहि छल, जकरा व्यास लिखने छलाह। जय संहिता भारत आ महाभारत दुनूकेँ कहल जाइत छै। युद्ध पर्व (१८ पर्व मे चारि पर्व भीष्म, द्रोण, कर्ण आ शल्य पर्व) तेना ने परस्पर दोसर पर्व सभसँ जुड़ल अछि जे बिना पछिला पर्व पढ़ने अगिलाक कोनो भाँज नहि लगैत छै। इलियडक युद्ध १० साल धरि चलल छल मुदा इलियड मात्र ट्रॉयक घेरा धरि सीमित छल। मुदा महाभारत बहुत पहिने सँ १८ दिनुका युद्धक कारणसँ शुरु होइत अछि। भीष्म पर्व छठम पर्व अछि, द्रोण पर्व सातम, कर्ण पर्व आठम आ शल्य पर्व नवम। तकरा बाद ९ टा पर्व आर अछि।
किएक तँ कैक बैसारीमे महाभारत केर पाठ सुनाओल जाइत छल ताहि द्वारे ई स्वाभाविक अछि जे पुरान पाठ सभ जे भए चुकल छल केर फेरसँ पुनःस्मरण बेर-बेर कएल जाइत छल। ताहिसँ ई अर्थ निकालब जे ई क्षेपक अछि, अनर्गल होएत। तहिना गीता सेहो पाश्चात्य विद्वान लोकनिक लेल क्षेपक अछि कारण ओ लोकनि भारतीय संस्कृति, साहित्य आ कलाक अनुभव विदेशी मानसिकतासँ करबाक कारण गलती करैत छथि। विदेशी विद्वान ई मानबामे कष्ट अनुभव करैत छथि जे महाभारत ओतेक पुरान भेलाक बादो ओतेक वृहत् अछि आ इलियड ओकर सोझाँ किछु नहि अछि। से एक गोट पद्यक वेबर द्वारा कएल गेल मिथ्या व्याख्याक आधार पर जय संहिता केर संकल्पना आएल। मात्र भारत आ महाभारत केर रूपमे एहि महाकाव्यक विकासकेँ बिना कोनो कारणसँ जय संहिता, भारत आ महाभारत रूपी तीन चरणमे प्रस्तुत कएल गेल। महाभारत केर सभसँ छोट रूपमे सेहो २४६०० सँ कम श्लोक नहि छल आ जय संहिता भारत आ महाभारतकेँ सम्मिलित रूपसँ कहल जाइत छल।
स्त्रीधन
ई ग्रन्थ मायानन्द बाबूक इतिहास बोधक अन्तिम कड़ी अछि। प्रागैतिहासिक “प्रथम शैलपुत्री च”, ऋगवेदिक कालीन “मंत्रपुत्र”, उत्तरवैदिककालीन “पुरोहित” केर बाद ई पुस्तक सूत्र-स्मृतिकालीन अछि, ई ग्रंथ हिन्दीमे अछि। आ ई सूत्र-स्मृतिकालीन उपन्यास मिथिला पर आधारित अछि। ई पोथी प्रारम्भ होइत अछि मायानन्दजीक प्रस्तावनासँ जकर नाम एहि खण्डमे “पॄष्ठभूमि” अछि। एतए मायानन्दजी रामायण-महाभारत केर काल गणनाक बाद इतिहासकार लोकनिक एकमात्र साक्ष्य शतपथ ब्राह्मणक चर्च करैत छथि।
मिथिलाक प्राचीनतम नाम विदेह छल, जकर प्रथम वर्णन शतपथ ब्राह्मणमे आएल अछि। सार्थ-गमनक प्रक्रियाक विस्तृत वर्णन एहि ग्रन्थमे अछि, से मायानन्द जी कहैत छथि।
ई ग्रन्थ प्रथम आ द्वितीय दू अध्यायमे अछि आ अन्तमे उपसंहार अछि। प्रथम अध्यायमे प्रथमसँ नवम नौ टा सत्र अछि। द्वितीय अध्यायमे प्रथमसँ अष्टम ई आठ टा सर्ग अछि।
प्रथम अध्याय
प्रथम सत्र
एहिमे सृंजय द्वारा कएल जा रहल धर्म-पश्चात्ताप स्वरूप भिक्षाटनक, पत्नी-त्यागी होएबाक कारण छह मास धरि निरन्तर एकटा महाव्रत केर पालन करबाक चरचा अछि।
“द्वितीय वर” केर सेहो चरचा अछि।
द्वितीय सत्र
राजा बहुलाश्व जनकक ज्येष्ठ पुत्र कराल जनककेँ राजवंशक कौलिक परम्पराक अनुसार सिंहासन भेटलन्हि, तकर वर्णन अछि।
तृतीय सत्र
एतए पुरान आ नवक संघर्ष देखबामे अबैत अछि। वारुणी एक ठाम कहैत छथि जे जखन पूज्य तात हुनकर विधिवत उपनयन करबओलन्हि, ब्रह्मचर्य आश्रममे विधिवत प्राचीन कालक अनुसार श्रुतिक शिक्षा देलन्हि, तँ आब हमहूँ भद्रा कन्या बनि अपन वरपात्रक निर्वाचन स्वयं कए विवाह करए चाहैत छी।
चतुर्थ सत्र
एतए कराल जनकक विरुद्ध विद्रोहक सुगबुगाहटिक चरचा अछि। कृति जनक आ बहुलाश्व जनकक कालमे भेल न्यायपूर्ण आ प्रजाहितकारी कल्याणकारी कार्यक चरचा भेल अछि तँ संगहि सीरध्वज जनकक समयसँ भेल मिथिलाक राज्य-विस्तारक चरचा सेहो अछि। बहुलाश्व मरैत काल अपन पुत्र करालकेँ आचार्य वरेण्य अग्रामात्यखण्ड केर उपेक्षा-अवहेलना नहि करबाक लेल कहने छलखिन्ह मुदा कालान्तरमे वैह कराल जनक अग्रामात्यक उपेक्षा-अवहेलना करए लगलाह। आचार्य वरेण्य-खण्ड मिथिलासँ पलायन कए गेलाह।
पंचम सत्र
प्रणिपात, आशीर्वचन आ कुशल-क्षेमक औपचारिकताक वर्णन अछि आ स्त्रीधनक चरचा सेहो गप-शपक क्रममे आएल अछि। ईहो वर्णन आएल अछि जे वैशाली किछु दिन कौशलक अधीन छल आ भारत-युद्धमे ओ मिथिलाक अधीन छल। वन्य भूमिकेँ कृषि-योग्य बनेबाक उपरान्त पाँच बसन्त धरि कर-मुक्त करबाक परम्पराकेँ राजा कराल जनक द्वारा तोड़ि देबाक चरचा अछि।
षष्ठ सत्र
पांचाल-जन द्वारा अंधक वृष्णिक नायक वासुदेव कृष्णकेँ जय-काव्यक नायक मानल जएबाक चरचा अछि। जय-काव्य आ भारत-काव्यक पश्चिमक उच्छिष्ट भोज मायानन्दजीक मोनसँ नहि हटलन्हि आ जय-काव्यमे मुनि वैशम्पायन व्यास द्वारा बहुत रास श्लोक जोड़ि वृहतकाय भारत काव्य बनाओल जएबाक मिथ्या तथ्यक फेरसँ चरचा अछि। जयकाव्यक लेखक कृष्ण द्वैपायन व्यासकेँ बताओल गेल अछि। आ एकर बेर-बेर चरचा कएल गेल अछि जेना कोनो विशेष तथ्य होअए।
फेर देवत्वक विकासपर सेहो चरचा अछि। सरस्वती धारक अकस्मात् सूखि जएबाक सेहो चरचा अछि।
सरस्वतीक मूर्तिपूजनक प्रारम्भक आ मातृदेवीक सेहो चरचा भेल अछि।
सप्तम् सत्र
सरस्वतीकेँ मातृदेवी बनाकए काल्पनिक सरस्वती प्रतिमा-पूजनक चरचा अछि। मिथिलामे पतिक नाम नहि लेबाक परम्पराक सेहो चरचा भेल अछि।
अष्टम् सत्र
राजाक अत्याचार चरम पर पहुँचि गेल अछि। अपूर्वा द्वारा विवशतापूर्वक गार्हस्थ्य त्याग आ स्त्रीधन सेहो छोड़बाक चरचा भेल अछि।
नवम् सत्र
सएसँ बेशी ग्राम-प्रमुख द्वारा सम्मेलन-उपवेशनक चरचा अछि।
पाँच वसन्त धरि कर-मुक्ति आ ताहिसँ वन्यजन आ शूद्र जनक सम्भावित पलायनक चरचा अछि। सीरध्वज जनकक पश्चात् धेनु-हरण राज्याभिषेकक बाद मात्र एकटा परम्परा रहि गेल, तकर चरचा अछि। मुदा कराल द्वारा अपन सगोत्रीय शोणभद्रक धेनु नहि घुमेबाक चरचा अछि। कराल द्वारा बीचमे प्रधान पुरहितकेँ हटेबाक चरचा अछि। चिकित्साशास्त्रक नवोदित चिकित्सक बटुक कृतार्थकेँ राजकुमारीक चिकित्साक लेल बजाओल जाइत अछि, संगमे राजकुमारीक सखी आचार्य कृतक पुत्री वारुणीकेँ सेहो बजाओल जाइत अछि। ओ अपन अनुज बटुकक संग जाइत छथि आ कराल बलात् अपन कक्ष बन्द कए हुनकासँ गांधर्व-विवाह कए लैत छथि। प्रजा विद्रोह आ राजाक घोड़ा पर चढ़ि कए पलायनक संग प्रथम अध्यायक नवम आ अन्तिम सत्र खतम भए जाइत अछि।
द्वितीय अध्याय
प्रथम सर्ग
सित धारक चरचा अछि। वारुणिकेँ वरुण सार्थवाह सभक संग अंग जनपद चलबाक लेल कहैत छन्हि। आ संगे वरुण ईहो कहैत छथि जे अंग जनपदक आर्यीकरणक कार्य अखनो अपूर्ण अछि।
द्वितीय सर्ग
सार्थक संग धनुर्धर लोकनि चलैत छलाह, अपन श्वानक संग। सार्थक संग सामान्य जन सेहो जाइत छलाह।वरुण आ वारुणी हिनका सभक संग अंग दिशि बिदा भेलाह, एहि जनपदक राजधानी चम्पा कहल गेल अछि आ एकरा गंगाक उत्तरमे स्थित कहल गेल अछि।
तृतीय सर्ग
अंग क्षेत्रमे धानसँ सोझे अरबा नहि बनाओल जएबाक चरचा अछि, ओतए उसीन-सुखा कए ढेकीसँ बनाओल अरबाकेँ चाउर कहल जएबाक आ ब्रीहिकेँ धान कहबाक वर्णन भेल अछि। पूर्वकालक श्रेष्ठी द्विज वैश्य आ अद्विज नवीन वैश्यक चरचा भेल अछि।
चतुर्थ सर्ग
आर्यीकरणक बेर-बेर चरचा पाश्चात्य विद्वानक मायानन्दजी पर प्रभाव देखबैत अछि। आर्य आ द्रविड़ शब्द दुनू , पाश्चात्य लोकनि भारतमे अपन निहित स्वार्थक लेल अनने छलाह। कोशल आ विदेहक प्रसारक, देवत्वक विकासक सम्पूर्ण इतिहास एतए देल गेल अछि। मिथिलाक दही-चूड़ाक सेहो चर्च आएल अछि।
पञ्चम सर्ग
दिनमे एकभुक्त आ रातिमे दुग्धपान मिथिला आ पांचाल दुनू ठाम छल। तथाकथित आर्य आ स्थानीय लोकनिक बीच छोट-मोट जीवनशैलीक अन्तर- आ मायानन्दजी आर्यीकरण कहैत छथि ओकरा पाटब !
षष्ठ सर्ग
अंगक गृह आर्यग्राम जेकाँ सटि कए नञि वरन् हटि-हटि कए होएबाक वर्णन अछि। हुनका सभ द्वारा छोट-छोट वस्त्र आ पशु चर्म पहिरबाक सेहो वर्णन अछि। वन्यजनक बीचमे नरबलि देबाक परम्पराक संकेत आ निष्कासित वन्यजनसँ भाषाक आदान-प्रदान सेहो मायानन्दजी पाश्चात्य प्रभावसँ ग्रहण कए लेने छथि।
विक्रय-थान खोलबाक जाहिसँ भविष्यमे नगरक विकास संभव होएत, तकर चर्च अछि।
सप्तम सर्ग
उसना चाउरक अधिक सुपाच्य होएबाक आ ताहि द्वारे ओकर पथ्य देबाक गप कएल गेल अछि।लौह-सीताक लेल लौहकार, हरक लेल काष्ठकार, बर्तन-पात्रक लेल कुम्भकार इत्यादि शिल्पीक आवश्यकता आ ताहि लेल आवास-भूमि आ भोजनक सुविधा देबाक गप आएल अछि।
अष्टम सर्ग
कृषि उत्पादनक पश्चात् लोक अन्नक बदला सामग्री बदलेन कए सकैत छथि, वृषभ-गाड़ीसँ सामग्रीक संचरण, एक मास धरि चलएबला यज्ञक व्यवस्था भूदेवगण द्वारा कएल जएबाक प्रसंग सेहो आएल अछि। भाषा-शिक्षण क्रममे ब्राह्मणगामक अपभ्रंश बाभनगाम आ वनग्रामक वनगाम भए गेल। भाषा सिखा कए घुरैत काल वारुणीपर तीरसँ आक्रमण भेल आ फेर वारुणिक मृत्यु भए गेल।
उपसंहार
दोसर वसन्त अबैत मिथिलामे गणतंत्रक स्वरूपक स्थापना स्थिर भए गेल। वैशाली आ मिथिलाक बीच परस्पर सम्वाद एक गणतांत्रिक सूत्रमे जुड़बाक लेल होमए लागल। सितग्राम स्थित राजधानीमे पूर्वमे मिथिलाक सीमा-विस्तारक चरचा भेल। राजधानी सितग्राम आ पूर्वी मिथिलाक जितग्रामक बीच एकटा महावन छल। एकरा ब्राह्मणग्राम आ त्रिग्राम द्वारा मिलिकए जड़ाकए हटाओल गेल।
भाषा विज्ञान प्रसंग - ऋगवैदिक ऋचामे प्राकृतक किछु विशेष शब्द, ध्वनि, प्रत्यय आ वाक्य रचना भेटैत अछि। पाणिनी संस्कृतकेँ मानक भाषा आ प्रादेशिक तत्वसँ मुक्त भाषाक रूप देने छलाह। कर्णाटकमे पानिकेँ नीरू आ उत्तर भारतमे जल कहल जाइत अछि। पानिक ई दुनू रूप संस्कृतमे भेटत। प्राकृतिक तत्वसँ मुक्त भाषा बनेबाक लेल पाणिनी कोनो क्षेत्रक अवहेलना नहि कएने छलाह वरण सभ क्षेत्रक शब्दकोष लए उच्चारणक भेदकेँ खतम कएने छलाह। बहुत रास प्राकृत शब्द संस्कृतमे ध्वन्यात्मक संशोधन कए लेल गेल आ ताहिसँ बादमे ई धारणा भेल जे प्राकृतक शब्द सभ तद्भव छल। संस्कृतमे तद्भव ताहि कारणसँ नहि देखबामे अबैत अछि। तहिना अपभ्रंश आ प्राकृत भाषा सौँसे देशमे घुमए बलाक भाषा छल।
भारतमे देवतंत्रक विकास पानि संबंधी धारणासँ जुड़ल अछि। यावत विश्व अव्यक्त अछि तँ अन्धकारमय अछि, अकास अछि, व्यक्त भेलापर ओ जल बनि जाइत अछि। अकास आ जल दुनू भारतीय चिन्तनमे तत्व अछि। मूर्तिपूजनक जे चित्र मायानन्दजी चित्रित करैत छथि ओ सरलीकरण अछि। भाषा-प्रसारक जे विधि ओ स्त्रीधनमे देखबैत छथि सेहो अति सरलीकरण अछि।
श्रवण द्वारा परम्पराक निर्वहण साहित्यमे देखल गेल छल आ से महाभारतमे किछु ठाम बेर-बेर देखबामे अबैत अछि , से ताहि कारण कतेको पर्वकेँ क्षेपक कहल जाएब सम्भव नहि। वेदक प्रतिशाख्यकेँ ओना देखलापर ई ज्ञात होएत जे लिखबाक परम्पराक अछैत ई सम्भव नहि छल मुदा महाभारत अबैत-अबैत कट्टरता बढ़ल। महाभारतमे वर्णन अछि:
वेदविक्रयिणश्चैव वेदानांचैवदूषकः।
वेदानांलेखकश्चैव तेवै निरयगामिनः॥
(वेदक विक्रेता, गलत-व्याख्या कएनिहार आ लेखक, सभ नरकक पथपर गेनिहार छथि।)
कराल प्रसंग : कराल जनकक कुकृत्यक वर्णन अर्थशास्त्रमे एना आएल अछि:
(१.६ विनयाधिकारिकेप्रथमाधिकरणे षडोऽध्यायःइन्द्रियजये अरिषड्वर्गत्याग) : तद्विरुद्धवृत्तिरवश्येन्द्रियश्चातुरन्तोऽपिराजा सद्यो विनश्यति- यथा
दाण्डक्यो नाम भोजः कामाद् ब्राह्मणकन्यायमभिमन्यमानः सबन्धराष्ट्रोविननाश करालश्च वैदेहः,...।
भिक्षु प्रभामतीक जयमंगल भाष्य एहिमे जोड़ैत अछि जे कराल योगेश्वर तीर्थमे भीड़ दिशि देखैत काल एकटा सुन्दर ब्राह्मण-स्त्रीकेँ देखलक आ ओकरा अपन राज्य जबर्दस्ती लए गेल। ओ ब्राह्मण ओकर राजधानी गेल आ कानि खीजि कए कहलक जे ई धरती किएक नहि फटैत अछि जतए एहन कुकर्मी राजा रहैत अछि। धरती फाटल आ ओहिमे कराल परिवार समेत धसि कए मरि गेल।
एकटा ब्राह्मण स्त्रीक अपहरण करालक पतनक कारण छल ई चरचा अश्वघोषक बुद्धचरितमे सेहो आएल अछि जेना कौटिल्यक अर्थशास्त्रमे आएल अछि। मुदा दीपवंश कराल जनकक बाद ओकर पुत्र आ पौत्रक राजा होएबाक वर्णन करैत अछि। ब्राह्मण ग्रंथ सभ विदेहकेँ राजशाही आ बौद्ध ग्रन्थ सभ गणतंत्र (राजा समिति द्वारा चुनल) कहैत अछि आ मत विभिन्नताक से कारण।
एहि प्रकारें मायानन्द मिश्रजीक ऐतिहासिक यात्रा बहुत रास एहन तथ्य अनलक जे कोनो तरहेँ तर्कसँ पुष्ट नहि भए सकल।
केदारनाथ चौधरीक उपन्यास
“चमेली रानी” आ "माहुर"
केदारनाथ चौधरी जीक पहिल उपन्यास चमेली रानी २००४ ई. मे आएल । एहि उपन्यासक अन्त एहि तरहेँ आकर्षक रूपेँ भेल जे एकर दोसर भागक प्रबल माँग भेल आ लेखककेँ एकर दोसर भाग माहुर लिखए पड़लन्हि। धीरेन्द्रनाथ मिश्र चमेली रानीक समीक्षा करैत विद्यापति टाइम्समे लिखने रहथि- “...जेना हास्य-सम्राट हरिमोहन बाबूकेँ “कन्यादान”क पश्चात् “द्विरागमन” लिखए पड़लनि तहिना “चमेलीरानी”क दोसर भाग उपन्यासकारकेँ लिखए पड़तन्हि”। ई दुनू खण्ड कैक तरहेँ मैथिली उपन्यास लेखनमे मोन राखल जएत। एक तँ जेना रामलोचन ठाकुर जी कहैत छथि- “..पारस-प्रतिभाक एहि लेखकक पदार्पण एते विलम्बित किएक?” ई प्रश्न सत्ये अनुत्तरित अछि। लेखक अपन ऊर्जाक संग अमेरिका, ईरान आ आन ठाम पढ़ाइ-लिखाइमे लागल रहथि रोजगारमे रहथि मुदा ममता गाबए गीतक निर्माता घुमि कऽ दरभंगा अएलाह तँ अपन समस्त जीवनानुभव एहि दुनू उपन्यासमे उतारि देलन्हि। राजमोहन झासँ एकटा साक्षात्कारमे हम एहि सम्बन्धमे पुछने रहियन्हि तँ ओ कहने रहथि जे बिना जीवनानुभवक रचना संभव नहि, जिनकर जीवनानुभव जतेक विस्तृत रहतन्हि से ओतेक बेशी विभिन्नता आ नूतनता आनि सकताह। केदारनाथ चौधरीक “चमेली रानी” आ “माहुर” ई सिद्ध करैत अछि। चमेली रानी बिक्रीक एकटा नव कीर्तिमान बनेलक। मात्र जनकपुरमे एकर ५०० प्रति बिका गेल। लेखक “चमेली रानी”क समर्पण - “ओहि समग्र मैथिली प्रेमीकेँ जे अपन सम्पूर्ण जिनगीमे अपन कैंचा खर्च कऽ मैथिली-भाषाक कोनो पोथी-पत्रिका किनने होथि”- केँ करैत छथि, मुदा जखन अपार बिक्रीक बाद एहि पोथीक दोसर संस्करण २००७ मे एकर दोसर खण्ड “माहुर”क २००८ मे आबए सँ पूर्वहि निकालए पड़लन्हि, तखन दोसर भागमे समर्पण स्तंभ छोड़नाइये लेखककेँ श्रेयस्कर बुझेलन्हि। एकर एकटा विशिष्टता हमरा बुझबामे आएल २००८ केर अन्तिम कालमे, जखन हरियाणाक उपमुख्यमंत्री एक मास धरि निपत्ता रहलाह, मुदा राजनयिक विवशताक अन्तर्गत जाधरि ओ घुरि कऽ नहि अएलाह तावत हुनकापर कोनो कार्यवाही नहि कएल जा सकल। अपन गुलाब मिश्रजी तँ सेहो अही राजनीतिक विवशताक कारण निपत्ता रहलोपर गद्दीपर बैसले रहलाह्, क्यो हुनका हँटा नहि सकल। चाहे राज्यक संचालनमे कतेक झंझटि किएक नहि आएल होअए।
उपन्यास-लेखकक जीवनानुभव, एकर सम्भावना चारि साल पहिनहिए लिखि कऽ राखि देलक। भविष्यवक्ता भेनाइ कोनो टोना-टापरसँ संभव नहि होइत अछि वरन् जीवनानुभव एकरा सम्भव बनबैत अछि।
एहि दुनू उपन्यासक पात्र चमत्कारी छथि, आ सफल सेहो । कारण उपन्यासकार एकरा एहि ढंगसँ सृजित करैत छथि जेना सभ वस्तुक हुनका व्यक्तिगत अनुभव होइन्हि।
“चमेली रानी” उपन्यासक प्रारम्भ करैत लेखक एकर पहिल परीक्षामे उत्तीर्ण होइत छथि जखन एकर लयात्मक प्रारम्भ पाठकमे रुचि उत्पन्न करैत अछि। -कीर्तिमुखक पाँच टा बेटाक नामकरणक लेल ओकर जिगरी दोस कन्टीरक विचार जे – “पाँचो पाण्डव बला नाम बेटा सबहक राखि दहक। सुभिता हेतौ”। फेर एक ठाम लेखक कहैत छथि जे जतेक गतिसँ बच्चा होइत रहैक से कौरवक नाम राखए पड़ितैक। नायिका चमेली रानीक आगमन धरि कीर्तिमुखक बेटा सभक वर्णन फेर एहि क्रममे अंग्रेज डेम्सफोर्ड आ रूपकुम्मरिक सन्तान सुनयनाक विवरण अबैत अछि। फेर रूपकुम्मरिक बेटी सुनयनाक बेटी शनिचरी आ नेताजी रामठेंगा सिंह “चिनगारी”क विवाह आ नेताजी द्वारा शनिचरीकेँ कनही मोदियानि लग लोक-लाजक द्वारे राखि पटना जाएब, नेताजीक मृत्यु आ शनिचरी आ कीर्तिमुखक विवाहक वर्णन फेरसँ खिस्साकेँ समेटि लैत अछि।
तकर बाद चमेली रानीक वर्णन अबैत अछि जे बरौनी रिफाइनरीक स्कूलमे बोर्डिंगमे पढ़ैत छथि आ एहि कनही मोदियानिक बेटी छथि। कनही मोदियानिक मृत्युक समय चमेली रानी दसमाक परीक्षा पास कऽ लेने छथि। भूखन सिंह चमेली रानीक धर्म पिता छथि। डकैतीक विवरणक संग उपन्यासक पहिल भाग खतम भऽ जाइत अछि।
दोसर भागमे विधायकजीक पाइ आकि खजाना लुटबाक विवरण, जे कि पूर्व नियोजित छल, एहि तरहेँ देखाओल गेल अछि जेना ई विधायक नांगटनाथ द्वारा एकटा आधुनिक बालापर कएल बलात्कारक परिणामक फल रहए। आब ई नांगटनाथ रहथि मुख्यमंत्री गुलाब मिसिरक खबास जे राजनीतिक दाँवपेंचमे विधायक बनि गेलाह।
ई चरित्र २००८ ई.क अरविन्द अडिगक बुकर पुरस्कारसँ सम्मानित अंग्रेजी उपन्यास “द ह्वाइट टाइगर”क बलराम हलवाइक चरित्र जे चाहक दोकानपर काज करैत दिल्लीमे एकटा धनिकक ड्राइवर बनि फेर ओकरा मारि स्वयं धनिक बनि जाइत अछि, सँ बेश मिलैत अछि आ चारि बरख पूर्व लेखक एहि चरित्रक निर्माण कऽ चुकल छथि। फेर के.जी.बी. एजेन्ट भाटाजीक आगमन होइत अछि जे उपन्यासक दोसर खण्ड “माहुर” धरि अपन उपस्थिति बेश प्रभावी रूपेँ रखबामे सफल होइत छथि।
उपन्यासक तेसर भागमे अहमदुल्ला खाँक अभियान सेहो बेश रमनगर अछि आ वर्तमान राजनीतिक सभ कुरूपताकेँ समेटने अछि। उपन्यासक चारिम भाग गुलाब मिसिरक खेरहा कहैत अछि आ फेरसँ अरविन्द अडिगक बलराम हलवाइ मोन पड़ैत छथि। भुखन सिंहक संगी पन्नाकेँ गुलाब मिसिर बजबैत अछि आ ओकरा भुखन सिंहक नांगटनाथ आ अहमदुल्ला अभियानक विषयमे कहैत अछि। संगहि ओकरा मारबाक लेल कहैत अछि से ओ मना कऽ दैत छै। मुदा गुलाब मिसिर भुखन सिंहकेँ छलसँ मरबा दैत अछि।
पाँचम भागमे भुखन सिंहक ट्रस्टक चरचा अछि, चमेली रानी अपन अड्डा छोड़ि बैद्यनाथ धाम चलि जाइत छथि। आब चमेली रानीक राजनीतिक महत्वाकांक्षा सोझाँ अबैत अछि। स्टिंग ऑपरेशन होइत अछि आ गुलाब मिसिर घेरा जाइत छथि।
उपन्यासक छठम भाग मुख्यमंत्रीक निपत्ता रहलाक उपरान्तो मात्र फैक्ट फाइंडिंग कमेटी बनाओल जएबाक चरचा होएबाक अछि, जे कोलिशन पोलिटिक्सक विवशतापर टिप्पणी अछि।
उपन्यासक दोसर खण्ड “माहुर”क पहिल भाग सेहो घुरियाइत-घुरियाइत चमेली रानीक पार्टीक संगठनक चारू कात आबि जाइत अछि। स्त्रीपर अत्याचार, बाल-विधवा आ वैश्यावृत्तिमे ठेलबाक तेहन संगठन सभकेँ लेखक अपन टिप्पणी लेल चुनैत छथि।
माहुरक दोसर भागमे गुलाब मिसिरक राजधानी पदार्पणक चरचा अछि। चमेली रानी द्वारा अपन अभियानक समर्थनमे नक्सली नेताक अड्डापर जएबाक आ एहि बहन्ने समस्त नक्सली आन्दोलनपर लेखकीय दृष्टिकोण, संगहि बोनक आ आदिवासी लोकनिक सचित्र-जीवन्त विवरण लेखकीय कौशलक प्रतीक अछि। चमेली रानी लग फेर रहस्योद्घाटन भेल जे हुनकर माए कनही मोदियाइन बड्ड पैघ घरक छथि आ हुनकर संग पटेल द्वारा अत्याचार कएल गेल, चमेली रानीक पिताक हत्या कऽ देल गेल आ बेचारी माए अपन जिनगी कनही मोदियाइन बनि निर्वाह कएलन्हि। ई सभ गप उपन्यासमे रोचकता आनि दैत अछि।
माहुरक तेसर भाग फेरसँ पचकौड़ी मियाँ, गुलाब मिसिर, आइ.एस.आइ. आ के.जी.बी.क षडयन्त्रक बीच रहस्य आ रोमांच उत्पन्न करैत अछि।
माहुरक चारिम भाग चमेली रानी द्वारा अपन माए-बापक संग कएल गेल अत्याचारक बदला लेबाक वर्णन दैत अछि, कैक हजार करोड़क सम्पत्ति अएलासँ चमेली रानी सम्पन्न भऽ गेलीह।
माहुरक पाँचम भाग राजनैतिक दाँव-पेंच आ चमेली रानीक दलक विजयसँ खतम होइत अछि।
विवेचन: उपन्यासक बुर्जुआ प्रारम्भक अछैत एहिमे एतेक जटिलता होइत अछि जे एहिमे प्रतिभाक नीक जकाँ परीक्षण होइत अछि। उपन्यास विधाक बुर्जुआ आरम्भक कारण सर्वांतीजक “डॉन क्विक्जोट”, जे सत्रहम शताब्दीक प्रारम्भमे आबि गेल रहए, केर अछैत उपन्यास विधा उन्नैसम शताब्दीक आगमनसँ मात्र किछु समय पूर्व गम्भीर स्वरूप प्राप्त कऽ सकल। उपन्यासमे वाद-विवाद-सम्वादसँ उत्पन्न होइत अछि निबन्ध, युवक-युवतीक चरित्र अनैत अछि प्रेमाख्यान, लोक आ भूगोल दैत अछि वर्णन इतिहासक, आ तखन नीक- खराप चरित्रक कथा सोझाँ अबैत अछि। कखनो पाठककेँ ई हँसबैत अछि, कखनो ओकरा उपदेश दैत अछि। मार्क्सवाद उपन्यासक सामाजिक यथार्थक ओकालति करैत अछि। फ्रायड सभ मनुक्खकेँ रहस्यमयी मानैत छथि। ओ साहित्यिक कृतिकेँ साहित्यकारक विश्लेषण लेल चुनैत छथि तँ नव फ्रायडवाद जैविकक बदला सांस्कृतिक तत्वक प्रधानतापर जोर दैत देखबामे अबैत छथि। नव-समीक्षावाद कृतिक विस्तृत विवरणपर आधारित अछि। एहि सभक संग जीवनानुभव सेहो एक पक्षक होइत अछि आ तखन एतए दबाएल इच्छाक तृप्तिक लेल लेखक एकटा संसारक रचना कएलन्हि जाहिमे पाठक यथार्थ आ काल्पनिकताक बीचक आड़ि-धूरपर चलैत अछि।
नचिकेताक नाटक
नो एण्ट्री: मा प्रविश
नाटकक कथानक: प्रथम कल्लोल: ई नाटक ज्योतिरीश्वरक परम्परामे कल्लोलमे (हुनकर वर्ण रत्नाकर कल्लोलमे विभक्त अछि जे नाटक नहि छी, धूर्त-समागम जे ज्योतिरीश्वर लिखित नाटक अछि- अंकमे विभक्त अछि) विभाजित अछि। चारि कल्लोलक विभाजनक प्रथम कल्लोल स्वर्ग (वा नरक) केर द्वारपर आरम्भ होइत अछि। ओतए बहुत रास मुइल लोक द्वारक भीतर प्रवेशक लेल पंक्तिबद्ध छथि। क्यो पथ दुर्घटनामे शिकार भेल बाजारी छथि तँ संगमे युद्दमे मृत भेल सैनिक आ चोरि करए काल मारल गेल चोर, उच्चक्का आ पॉकिटमार सेहो छथि। ज्योतिरीश्वरक धूर्तसमागममे जे अति आधुनिक अब्सर्डिटी अछि से नो एण्ट्री: मा प्रविश मे सेहो देखबामे अबैत अछि। प्रथम कल्लोलमे जे बाजारी छथि से, पंक्ति तोड़ि आगाँ बढ़ला उत्तर, चोर आ उचक्का दुनू गोटेकेँ, कॉलर पकड़ि पुनः हुनकर सभक मूल स्थानपर दए अबैत छथि। उचक्का जे बादमे पता चलैत अछि जे गुण्डा-दादा थिक मुदा बाजारी लग सञ्च-मञ्च रहैत अछि, हुनकासँ अंगा छोड़बाक लेल कहैत अछि। मुदा जखन पॉकेटमार बाजारी दिससँ चोरक विपक्षमे बजैत अछि तखन उचक्का चक्कू निकालि अपन असल रूपमे आबि जाइत अछि आ पॉकेटमारपर मारि-मारि कए उठैत अछि। मुदा जखन चोर कहैत छनि जे ई सेहो अपने बिरादरीक अछि जे छोट-छीन पॉकेटमार मात्र बनि सकल, ओकर जकाँ माँजल चोर नहि, आ उचक्का जेकाँ गुण्डा-बदमाश बनबाक तँ सोचिओ नञि सकल, तखन उचक्का महराज चोरक पाछाँ पड़ि जाइत छथि, जे बदमाश ककरा कहलँह। आब पॉकेटमार मौका देखि पक्ष बदलैत अछि आ उचक्काकेँ कहैत छन्हि जे अहाँकेँ नहि हमरा कहलक। संगे ईहो कहैत अछि जे चोरि तँ ई तेहन करए जनैत अछि, जे गिरहथक बेटा आ कुकुर सभ चोरि करैत काल पीटैत-पीटैत एतऽ पठा देलकए आ हमर खिधांश करैत अछि, बड़का चोर भेला हँ। भद्र व्यक्ति चोरक बगेबानी देखि ई विश्वास नहि कए पबैत छथि जे ओ चोर थिकाह। ताहिपर पॉकेटमार, चोर महाराजकेँ आर किचकिचबैत छन्हि। तखन ओ चोर महराज एहि गपपर दुख प्रकट करैत छथि जे नहि तँ ओहि राति एहि पॉकेटमारकेँ चोरिपर लए जएतथि आ ने ओ हुनका पिटैत देखि सकैत। एम्हर बजारी जे पहिने चोर आ उच्क्काकेँ कॉलर पकड़ि घिसिया चुकल छलाह, गुम्म भेल सभटा सुनैत छथि आ दुख प्रकट करैत छथि जे एकरा सभक संग स्वर्गमे रहब, तँ स्वर्ग केहन होएत से नहि जानि। आब बजारी महराज गीतक एकटा टुकड़ी एहि विषयपर पढ़ैत छथि। जेना धूर्तसमागममे गीत अछि तहिना नो एण्ट्री: मा प्रविश मे सेहो, ई एहि स्थलपर प्रारम्भ होइत अछि जे एहि नाटककेँ संगीतक बना दैत अछि। ओम्हर पॉकेटमारजी सभक पॉकेट काटि लैत छथि आ बटुआ साफ कए दैत छथि। आब फेर गीतमय फकड़ा शुरू भए जाइत अछि मुदा तखने एकटा मृत रद्दीबला सभक तंद्राकेँ तोड़ि दैत छथि, ई कहि जे यमालयक बन्द दरबज्जाक ओहि पार, ई बटुआ आ पाइ-कौड़ी कोनो काजक नहि अछि। आब दुनू मृत भद्र व्यक्ति सेहो बजैत छथि, जे हँ दोसर देसमे दोसर देसक सिक्का कहाँ चलैत अछि। आब एकटा रमणीमोहन नाम्ना मृत रसिक भद्र व्यक्तिक दोसर देसक सिक्का नहि चलबाक विषयमे टीप दैत छथि, जे हँ ई तँ ओहिना अछि जेना प्रेयसीक दोसरक पत्नी बनब। आब एहि गपपर घमर्थन शुरू भए जाइत अछि। तखन रमणी मोहन गपक रुखि घुमा दैत छथि जे दरबज्जाक भीतर रम्भा-मेनका सभ हेतीह। भिखमंगनी जे तावत अपन कोरामे लेल एकटा पुतराकेँ दोसराक हाथमे दए बहसमे शामिल भऽ गेल छथि, ईर्ष्यावश रम्भा-मेनकाकेँ मुँहझड़की इत्यादि कहैत छथि। मुदा पॉकेटमार कहैत अछि जे भीतरमे सुख नहि दुखो भए सकैत अछि। एहिपर बीमा बाबू अपन कार्यक स्कोप देखि प्रसन्न भए जाइत छथि। आब पॉकेटमार इन्द्रक वज्र पर रुपैय्याक बोली शुरू करैत अछि। एहि बेर बजारी तन्द्रा भंग करैत अछि आ दुनू भद्र व्यक्ति हुनकर समर्थन करैत कहैत अछि, जे ई अद्भुत नीलामी अछि, जे करबा रहल अछि से पॉकेटमार आ ओहिमे शामिल अछि चोर आ भिखमंगनी, पहिले-पहिल सुनल अछि आ फेर संगीतमय फकड़ा सभ शुरू भए जाइत अछि। मुदा तखने नंदी-भृंगी शास्त्रीय संगीतपर नचैत प्रवेश करैत छथि। आब नंदी-भृंगीक ई पुछलापर जे दरबज्जाक भीतर की अछि, सभ गोटे अपना-अपना हिसाबसँ स्वर्ग-नरक आ अकास-पताल कहैत छथि। मुदा नंदी-भृंगी कहैत छथि जे सभ गोटे सत्य कहैत छी आ क्यो गोटे पूर्ण सत्य नहि बजलहुँ। फेर बजैत-बजैत ओ कहए लगैत छथि, क्यो चोरि काल मारल गेलाह (चोर ई सुनि भागए लगैत छथि तँ दु-तीन गोटे पकड़ि सोझाँ लए अनैत छन्हि!) तँ क्यो एक्सीडेन्टसँ, आ एहि तरहेँ सभटा गनबए लगैत छथि, मुदा बीमा-बाबू कोना बिन मृत्युक एतए आयल छथि से हुनकहु लोकनिकेँ नहि बुझल छन्हि ! बीमा बाबू कहैत छथि जे ओ नव मार्केटक अन्वेषणमे आएल छथि ! से बिन मरल सेहो एक गोटे ओतए छथि ! भृंगी नंदीकेँ ढ़ेर रास बीमा कम्पनीक आगमनसँ आएल कम्पीटिशनक विषयमे बुझबैत छथि ! एम्हर प्रेमी-प्रेमिकामे घोंघाउज शुरू होइत छन्हि, कारण प्रेमी आब घुरि जाए चाहैत छथि। रमणी मोहन प्रेमीक गमनसँ प्रसन्न होइत छथि जे प्रेमिका आब असगरे रहतीह आ हुनका लेल मौका छन्हि। मुदा भृंगी ई कहि जे एतएसँ गेनाइ तँ संभव नहि मुदा ई भऽ सकैत अछि जे दुनू जोड़ी माय-बाप (!) केँ एक्सीडेन्ट करबाए एतहि बजबा लेल जाए। मुदा अपना लेल माए-बापक बलि लेल प्रेमी-प्रेमिका तैयार नहि छथि। तखन नंदी भृंगी दुनू गोटेक विवाह गाजा-बाजाक संग करा दैत छथि आ कन्यादान करैत छथि बजारी।
दोसर कल्लोल: दोसर कल्लोलक आरम्भ होइत अछि एहि आभाससँ, जे क्यो नेता मरलाक बाद आबएबला छथि, हुनकर दुनू अनुचर मृत भए आबि चुकल छथि आ नेताजीक अएबाक सभ क्यो प्रतीक्षा कए रहल छथि, दुनू अनुचर छोट-मोट भाषण दए नेताजीक विलम्बसँ अएबाक (मृत्युक बादो !) क्षतिपूर्ति कए रहल छथि, गीतक योग दए। एकटा गीत चोर नहि बुझैत छथि मुदा भिखमंगनी आ रद्दीबला बुझि जाइत छथि, ताहि पर बहस शुरू होइत अछि। चोरकेँ अपनाकेँ चोर कहलापर आपत्ति अछि आ भिखमंगनीकेँ ओ भिख-मंग कहैत अछि तँ भिखमंगनी ओकरा रोकि कहैत छथि जे ओ सरिसवपाहीक अनसूया छथि, मिथिला-चित्रकार, मुदा दिल्लीक अशोकबस्ती आबि बुझलन्हि जे एहि नगरमे कला-वस्तु क्यो नहि किनैत अछि आ तखन चौबटियाक भिखमंगनी बनि रहि गेलीह। चोर कहैत अछि जे मात्र ओ बदनाम छथि, चोरि तँ सभ करैत अछि। नव बात कोनो नहि अछि, सभ अछि पुरनकाक चोरि। तकर बाद नेताजी पहुँचि जाइत छथि आ लोकक चोर, उचक्का आ पॉकेटमार होएबाक कारण समाजक स्थितिकेँ कहैत छथि। तखने एकटा वामपंथी अबैत छथि आ ओ ई देखि क्षुब्ध छथि जे नेताजी चोर, उचक्का आ पॉकेटमारसँ घिरल छथि। मुदा चोर अपन तर्क लए पुनः प्रस्तुत होइत अछि आ नेताजीक राखल “चोर-पुराण” नामक आधारपर बजारी जी गीत शुरू कए दैत छथि।
तेसर कल्लोल: आब नेताजी आ वामपंथीमे गठबंधन आ वामपंथी द्वारा सरकारक बाहरसँ देल समर्थनपर चरचा शुरू भए जाइत अछि। नेताजी फेर गीतमय होइत छथि आकि तखने स्टंट-सीन करैत एकटा मुइल अभिनेता विवेक कुमारक अएलासँ आकर्षण ओम्हर चलि जाइत अछि। टटका-ब्रेकिंग न्यूज देबाक मजबूरीपर नेताजी व्यंग्य करैत छथि। वामपंथी दू बेर दू गोट गप- नव गप कहि जाइत छथि, एक जे बिन अभिनेता बनने क्यो नेता नहि बनि सकैत अछि आ दोसर जे चोर नेता नहि बनि सकैछ (ई चोर कहैत अछि) मुदा नेता सभ तँ चोरि करबामे ककरोसँ पाछाँ नहि छथि। तखने एकटा उच्च वंशीय महिला अबैत छथि आ हुनकर प्रश्नोत्तरक बाद एकटा सामान्य क्यूक संग एकटा वी.आइ.पी.क्यू बनि जाइत अछि। अभिनेता, नेता आ वामपंथी सभ वी.आइ.पी.क्यूमे ठाढ़ भऽ जाइत छथि ! ई पुछलापर जे पंक्ति किएक बनल अछि (?) ताहिपर चोर-पॉकेटमार कहैत छथि जे हुनका लोकनिकेँ पंक्ति बनएबाक (आ तोड़बाक सेहो) अभ्यास छन्हि।
चतुर्थ कल्लोल: यमराज सभक खाता-खेसरा देखि लैत छथि आ चित्रगुप्त ई रहस्योद्घाटन करैत छथि जे एक युग छल जखन सोझाँक दरबज्जा खुजितो छल आ बन्न सेहो होइत छल। नंदी भृंगी पहिनहि सूचित कए देलन्हि जे सोझाँक दरबज्जा स्वप्न नहि, मात्र बुझबाक दोष छल। दरबज्जाक ओहि पार की अछि ताहि विषयमे सभ क्यो अपना-अपना हिसाबसँ उत्तर दैत छथि। चित्रगुप्त कहैत छथि जे सभक वर्णनक सभ वस्तु छै ओहिपार। नंदी-भृंगी सूचित करैत छथि जे एहि गेटमे प्रवेश निषेध छै, नो एण्ट्री केर बोर्ड लागल छै। आहि रे ब्बा! आब की होअए ! नेताजीकेँ पठाओल जाइत छन्हि यमराजक सोझाँ, मुदा हुनकर सरस्वती ओतए मन्द भए जाइत छन्हि। बदरी विशाल मिश्र प्रसिद्ध नेताजी, केर खिंचाई शुरू होइत छन्हि असली केर बदला सर्टिफिकेट बला कम कए लिखाओल उमरिपर। पचपन बरिख आयु आ शश योग कहैत अछि जे सत्तरि से ऊपर जीताह से ओ आ संगमे मृत चारू सैनिककेँ आपिस पठा देल जाइत अछि। दूटा सैनिक नेताजीक संग चलि जाइत छथि आ दू टा अनुचर सेहो जाए चाहैत अछि। मुदा नेताजीक अनुचर सभक अपराध बड़ भारी, से चित्रगुप्तक आदेशपर नंदी-भृंगी हुनका लए, कराहीमे भुजबाक लेल बाहर लए जाइत छथि तँ बाँचल दुनू सैनिक हुनका पकड़ि केँ लए जाइत छथि आ नंदी-भृंगी फेर मंचपर घुरि अबैत छथि। तहिना तर्कक बाद प्रेमी-प्रेमिका, दुनू भद्र पुरुष आ बजारीकेँ सेहो त्राण भेटैत छन्हि ढोल-पिपहीक संग हुनका बाहर लए गेल जाइत अछि। आब नन्दी जखन अभिनेताक नाम विवेक कुमार उर्फ...बजैत छथि तँ अभिनेता जी रोकि दैत छथि, जे कतेक मेहनतिसँ जाति हुनकर पाछाँ छोड़ि सकल अछि, से उर्फ तँ छोड़िए देल जाए। वामपंथी गोष्ठीकेँ अभिनेता द्वारा मदति केर विवरणपर वामपंथी प्रतिवाद करैत छथि। हुनको पठा देल जाइत छनि। वामपंथीक की हेतन्हि, हुनकर कथामे तँ ने स्वर्ग-नर्क अछि आ ने यमराज-चित्रगुप्त। हुनका अपन भविष्यक निर्णय स्वयं करबाक अवसर देल जाइत छन्हि। मुदा वामपंथी कहैत छथि जे हुनकर शिक्षा आन प्रकारक छलन्हि, मुदा एखन जे सोझाँ घटित भए रहल छन्हि ताहिपर कोना अविश्वास करथु? मुदा यमराज कहैत छथि जे- भऽ सकैत अछि, जे अहाँ देखि रहल छी से दुःस्वप्न होअए, जतए पैसैत जाएब ओतए लिखल अछि नो एण्ट्री। आब यमराज प्रश्न पुछैत छथि जे विषम के, मनुक्ख आकि प्रकृति ? वामपंथी कहैत छथि जे दुनू, मुदा प्रकृतिमे तँ नेचुरल जस्टिस कदाचित् होइतो छै मुदा मनुक्खक स्वभावमे से गुन्जाइश कतए ? मुदा वामपंथी राजनीति एकर (समानताक, सुधार केर) प्रयास करैत अछि। ताहिपर हुनका संग चोर-उचक्का आ पॉकेटमारकेँ पठाओल जाइत अछि, ई अवसर दैत जे हिनका सभकेँ बदलू। चोर कनेक जाएमे इतस्तः करैत अछि आ ई जिज्ञासा करैत अछि जे हम सभ तँ जाइए रहल छी मुदा एहिसँ आगाँ ? नंदी-चित्रगुप्त-यमराज समवेत स्वरमे कहैत छथि- नो एण्ट्री। भृंगी तखने अबैत छथि, अभिनेताकेँ छोड़ने। यमराज कहैत छथि - मा प्रविश। भृंगी नीचाँमे होइत चरचाक गप कहैत अछि, जे एतुक्का निअम बदलल जएबाक आ कतेक गोटेकेँ पृथ्वीपर घुरए देल जएबाक चरचा सर्वत्र भए रहल अछि। यमदूत सभ अनेरे कड़ाह लग ठाढ़ छथि क्यो भुजए लेल कहाँ भेटल छन्हि (मात्र दू टा अनुचर छोड़ि)। आब क्यो नहि आबए बला बचल अछि, से सभ कहैत छथि। चित्रगुप्त अपन नमहर दाढ़ी आ यमराज अपन मुकुट उतारि लैत छथि आ स्वाभाविक मनुक्ख रूपमे आबि जाइत छथि! मुदा चित्रगुप्तक मेकप बला नमहर दाढ़ी देखि भिखमंगनी जे ओतए छलीह, हँसि दैत छथि। भृंगी उद्घाटन करैत छथि जे भिखमंगनी हुनके सभ जेकाँ कलाकार छथि ! कोन अभिनय ! तकर विवरण मुहब्बत आ गुदगुदीपर खतम होइत अछि, तँ भिखमंगनी कहैत छथि जे नहि एहि तरहक अभिनय तँ ओतए (देखा कए) भऽ रहल अछि। ओत्तऽ रमणी मोहन आ उच्चवंशीय महिला निभाक रोमांस चलि रहल अछि। मुदा निभाजी तँ बजिते नहि छथि। भिखमंगनी यमराजसँ कहैत छथि जे ओ तखने बजतीह जखन एहि दरबज्जाक तालाक चाभी हुनका भेटतन्हि, बुझतीह जे अपसरा बनबामे यमराज मदति दए सकैत छथि, ई रमणीक हृदय थिक एतहु नो एण्ट्री ! यमराज खखसैत छथि, तँ चित्रगुप्त बुझि जाइत छथि जे यमराज “पंचशर”सँ ग्रसित भए गेल छथि ! चित्रगुप्तक कहला उत्तर सभ क्यो एक कात लए जाओल जाइत छथि मात्र यमराज आ निभा मंचपर रहि जाइत छथि। यमराज निभाक सोझाँ- सुनू ने निभा... कहि रुकि जाइत छथि। सभक उत्साहित कएलापर यमराज बड़का चाभी हुनका दैत छथि, मुदा निभा चाभी भेटलापर रमणी मोहनक संग तेना आगाँ बढ़ैत छथि जेना ककरो अनका चिन्हिते नहि होथि ! ओ चाभी रमणी मोहनकेँ दए दैत छथि मुदा ओ ताला नहि खोलि पबैत छथि। फेर निभा अपने प्रयास करए लेल आगाँ बढ़ैत छथि मुदा चित्रगुप्त कहैत छथि जे ई मोनक दरबज्जा थिक, ओना नहि खुजत। महिला ठकए लेल चाभी देबाक (!) गप कहैत छथि। सभ क्यो हँसी करैत छनि जे मोन कतए छोड़ि अएलहुँ ? ताहिपर एकबेर पुनः रमणी मोहन आ निभा मोन संजोगि कए ताला खोलबाक असफल प्रयास करैत छथि। नंदी-भृंगी-भिखमंगनी गीत गाबए लगैत छथि जकर तात्पर्य ईएह जे मोनक ताला अछि लागल, मुदा ओतए अछि नो एण्ट्री। मुदा ऋतु वसन्तमे प्रेम होइछ अनन्त आ करेज कहैत अछि मैना-मैना । तँ एतहि नो एण्ट्री दरबज्जापर धरना देल जाए।
विवेचन: भारत आ पाश्चात्य नाट्य सिद्धांतक तुलनात्मक अध्ययनसँ ई ज्ञात होइत अछि मानवक चिन्तन भौगोलिक दूरीकक अछैत कतेक समानता लेने रहैत अछि। भारतीय नाट्यशास्त्र मुख्यतः भरतक “नाट्यशास्त्र” आ धनंजयक दशरूपकपर आधारित अछि। पाश्चात्य नाट्यशास्त्रक प्रामाणिक ग्रंथ अछि अरस्तूक “काव्यशास्त्र”।
भरत नाट्यकेँ “कृतानुसार” “भावानुकार” कहैत छथि, धनंजय अवस्थाक अनुकृतिकेँ नाट्य कहैत छथि। भारतीय साहित्यशास्त्रमे अनुकरण नट कर्म अछि, कवि कर्म नहि। पश्चिममे अनुकरण कर्म थिक कवि कर्म, नटक कतहु चरचा नहि अछि।
अरस्तू नाटकमे कथानकपर विशेष बल दैत छथि। ट्रेजेडीमे कथानक केर संग चरित्र-चित्रण, पद-रचना, विचार तत्व, दृश्य विधान आ गीत रहैत अछि। भरत कहैत छथि जे नायकसँ संबंधित कथावस्तु आधिकारिक आ आधिकारिक कथावस्तुकेँ सहायता पहुँचाबएबला कथा प्रासंगिक कहल जएत। मुदा सभ नाटकमे प्रासंगिक कथावस्तु होअए से आवश्यक नहि, नो एण्ट्री: मा प्रविश मे नहि तँ कोनो तेहन आधिकारिक कथावस्तु अछि आ नहिए कोनो प्रासांगिक, कारण एहिमे नायक कोनो सर्वमान्य नायक नहि अछि। जे बजारी उच्क्काकेँ कॉलर पकड़ैत छथि से कनेक कालक बाद गौण पड़ि जाइत छथि। जाहि उच्क्काक सोझाँ चोर सकदम रहैत अछि से किछु कालक बाद, किछु नव नहि होइछ केर दर्शनपर गप करैत सोझाँ अबैत छथि। जे यमराज सभकेँ थर्रेने छथि, से स्वयं निभाक सोझाँमे अपन तेज मध्यम होइत देखैत छथि। भिखमंगनी हुनका दैवी स्वरूप उतारने देखैत हँसैत छथि तँ रमणी मोहन आ निभा सेहो हुनका आ चित्रगुप्तकेँ अन्तमे अपशब्द कहैत छथि। वामपंथीक आ अभिनेताक सएह हाल छन्हि। कोनो पात्र कमजोर नहि छथि आ समय-परिस्थितिपर रिबाउन्ड करैत छथि।
कथा इतिवृत्तिक दृष्टिसँ प्रख्यात, उत्पाद्य आ मिश्र तीन प्रकारक होइत अछि। प्रख्यात कथा इतिहास पुराणसँ लेल जाइत अछि आ उत्पाद्य कल्पित होइत अछि। मिश्रमे दुनूक मेल होइत अछि। नो एण्ट्री: मा प्रविश मे मिश्र इतिवृत्तिक होएबाक कोनो टा गुंजाइश तखने खतम भए जाइत अछि जखन चित्रगुप्त आ यमराज अपन नकली भेष उतारैत छथि आ भिखमंगनीक हँसलापर भृंगी कहैत छथि जे ई भिखमंगनी सेहो हमरे सभ जेकाँ कलाकार छथि ! मात्र यमराज आ चित्रगुप्त नामसँ कथा इतिहास-पुराण सम्बद्ध नहि अछि आ इतिवृत्ति पूर्णतः उत्पाद्य अछि। अरस्तू कथानककेँ सरल आ जटिल दू प्रकारक मानैत छथि। ताहि हिसाबसँ नो एण्ट्री: मा प्रविश मे आकस्मिक घटना जाहि सरलताक संग फ्लोमे अबैत अछि, से ई नाटक सरल कथानक आधारित कहल जएत। फेर अरस्तू इतिवृत्तकेँ दन्तकथा, कल्पना आ इतिहास एहि तीन प्रकारसँ सम्बन्धित मानैत छथि। नो एण्ट्री: मा प्रविश केँ काल्पनिक मूलक श्रेणीमे एहि हिसाबसँ राखल जएत। अरस्तूक ट्रेजेडीक चरित्र य़शस्वी आ कुलीन छथि- सत् असत् केर मिश्रण। नो एण्ट्री: मा प्रविश मे जे चरित्र सभ छथि ताहिमे सभ चरित्रमे सत् असत् केर मिश्रण अछि। निभा उच्चवंशीय छथि मुदा रमणी मोहन, जे बलात्कारक बादक भेल पिटानक बाद मृत भेल छथि, सँ हिलि-मिलि जाइत छथि। भिखमंगनी मिथिला चित्रकार अनसूया छथि। मुदा दुनू भद्रपुरुष, बजारी आ चारू सैनिक एहि प्रकारेँ बिन कलुषताक सोझाँ अबैत छथि। भरत नृत्य संगीतक प्रेमीकेँ धीरललित, शान्त प्रकृतिकेँ धीरप्रशान्त, क्षत्रिय प्रवृत्तिकेँ धीरोदत्त आ ईर्ष्यालूकेँ धीरोद्धत्त कहैत छथि। बजारी आ दुनू भद्रपुरुष संगीतक बेश प्रेमी छथि तँ रमणी मोहन प्रेमी-प्रेमिकाकेँ देखि कए ईर्ष्यालू। सैनिक सभ शान्त छथि क्षत्रियोचित गुण सेहो छन्हि से धीरोदत्त आ धीरप्रशान्त दुनू छथि। मुदा नो एण्ट्री: मा प्रविश मे एहि प्रकारक विभाजन पूर्णतया सम्भव नहि अछि।
भारतीय सिद्धांत कार्यक आरम्भ, प्रयत्न, प्राप्त्याशा, नियताप्ति आ फलागम धरिक पाँच टा अवस्थाक वर्णन करैत अछि। प्राप्त्याशामे फल प्राप्तिक प्रति निराशा अबैत अछि तँ नियताप्तिमे फल प्राप्तिक आशा घुरि अबैत अछि। पाश्चात्य सिद्धांतमे अछि आरम्भ, कार्य-विकास, चरम घटना, निगति आ अन्तिम फल। प्रथम तीन अवस्थामे ओझराहटि अबैत अछि, अन्तिम दू मे सोझराहटि।
कार्यावस्थाक पंच विभाजन- बीया, बिन्दु, पताका, प्रकरी आ कार्य अछि। नो एण्ट्री: मा प्रविश मे बीया अछि एकटा द्वन्द - मृत्युक बादक लोकक, बीमा एजेन्ट एतए बिनु मृत्युक पहुँचि जाइत छथि। यमराज आ चित्रगुप्त मेकप आर्टिस्ट बहराइत छथि। विभिन्न बिन्दु द्वारा एकटा चरित्र ऊपर नीचाँ होइत रहैत अछि। पताका आ प्रकरी अवान्तर कथामे होइत अछि से नो एण्ट्री: मा प्रविश मे नहि अछि। बीआक विकसित रूप कार्य अछि मुदा नो एण्ट्री: मा प्रविश मे ओ धरणापर खतम भए जाइत अछि! अरस्तू एकरा बीआ, मध्य आ अवसान कहैत छथि। आब आऊ सन्धिपर, मुख-सन्धि भेल बीज आ आरम्भकेँ जोड़एबला, प्रतिमुख-सन्धि भेल बिन्दु आ प्रयत्नकेँ जोड़एबला, गर्भसन्धि भेल पताका आ प्राप्त्याशाकेँ जोड़एबला, विमर्श सन्धि भेल प्रकरी आ नियताप्तिकेँ जोड़एबला आ निर्वहण सन्धि भेल फलागम आ कार्यकेँ जोड़एबला। नो एण्ट्री: मा प्रविश मे मुख/ प्रतिमुख आ निर्वहण सन्धि मात्र अछि, शेष दू टा सन्धि नहि अछि।
पाश्चात्य सिद्धांत स्थान, समय आ कार्यक केन्द्र तकैत अछि। नो एण्ट्री: मा प्रविश मे स्थान एकहि अछि, समय लगातार आ कार्य अछि द्वारक भीतर पैसबाक आकांक्षा। दू घण्टाक नाटकमे दुइये घण्टाक घटनाक्रम वर्णित अछि नो एण्ट्री: मा प्रविश मे कार्य सेहो एकेटा अछि। अभिनवगुप्त सेहो कहैत छथि जे एक अंकमे एक दिनक कार्यसँ बेशीक समावेश नहि होअए आ दू अंकमे एक वर्षसँ बेशीक घटनाक समावेश नहि होअए। नो एण्ट्री: मा प्रविश मे कल्लोलक विभाजन घटनाक निर्दिष्ट समयमे भेल कार्यक आ नव कार्यारम्भमे भेल विलम्बक कारण आनल गेल अछि। मुदा एहि त्रिकक विरोध ड्राइडन कएने छलाह आ शेक्सपिअरक नाटकक स्वच्छन्दताक ओ समर्थन कएलन्हि। मुदा नो एण्ट्री: मा प्रविश मे एहि तरहक कोनो समस्या नहि अबैत अछि। नो एण्ट्री: मा प्रविश मे आपसी गपशपमे- जकरा फ्लैशबैक सेहो कहि सकैत छी- ककर मृत्यु कोना भेल से नीक जेकाँ दर्शित कएल गेल अछि।
भारतमे नाटकक दृश्यत्वक समर्थन कएल गेल मुदा अरस्तू आ प्लेटो एकर विरोध कएलन्हि। मुदा १६म शताब्दीमे लोडोविको कैस्टेलवेट्रो दृश्यत्वक समर्थन कएलन्हि। डिटेटार्ट सेहो दृश्यत्वक समर्थन कएलन्हि तँ ड्राइडज नाटकक पठनीयताक समर्थन कएलन्हि। देसियर पठनीयता आ दृश्यत्व दुनूक समर्थन कएलन्हि। अभिनवगुप्त सेहो कहने छलाह जे पूर्ण रसास्वाद अभिनीत भेला उत्तर भेटैत अछि, मुदा पठनसँ सेहो रसास्वाद भेटैत अछि। नो एण्ट्री: मा प्रविश मे पहिल कल्लोलक प्रारम्भमे ई स्पष्ट भऽ जाइत अछि जे एतए दृश्यत्वकेँ प्रधानता देल गेल अछि। पश्चिमी रंगमंचक नाट्यविधान वास्तविक अछि मुदा भारतीय रंगमंचपर सांकेतिक। जेना अभिज्ञानशाकुंतलम् मे कालिदास कहैत छथि- इति शरसंधानं नाटयति। नो एण्ट्री: मा प्रविश मे भारतीय विधानकेँ अंगीकृत कएल गेल- जेना मृत्यु प्राप्त सभ गोटे द्वारा स्वर्ग प्रवेश द्वारक अदृश्य देबारक गपशप आ अभिनय कौशल द्वारा स्पष्टता। अंकिया नाटमे सेहो प्रदर्शन तत्वक प्रधानता छल। कीर्तनियाँ एक तरहेँ संगीतक छल आ एतहु अभिनय तत्वक प्रधानता छल। अंकीया नाटकक प्रारम्भ मृदंग वादनसँ होइत छल। नो एण्ट्री: मा प्रविश मैथिलीक परम्परासँ अपनाकेँ जोड़ने अछि मुदा संगहि इतिहास, पुराण आ समकालीन जीवनचक्रकेँ देखबाक एकटा नव दृष्टिकोण लए आएल अछि, सोचबा लए एकटा नव अंतर्दृष्टि दैत अछि।
ज्योतिरीश्वरक धूर्तसमागम, विद्यापतिक गोरक्षविजय, कीर्तनिञा नाटक, अंकीयानाट, मुंशी रघुनन्दन दासक मिथिला नाटक, जीवन झाक सुन्दर संयोग, ईशनाथ झाक चीनीक लड्डू, गोविन्द झाक बसात, मणिपद्मक तेसर कनियाँ, नचिकेताजीक “नायकक नाम जीवन, एक छल राजा”, श्रीशजीक पुरुषार्थ, सुधांशु शेखर चौधरीक भफाइत चाहक जिनगी, महेन्द्र मलंगियाक काठक लोक, राम भरोस कापड़ि भ्रमरक महिषासुर मुर्दाबाद, गंगेश गुंजनक बुधिबधिया केर परम्पराकेँ आगाँ बढ़बैत नचिकेताजीक नो एण्ट्री: मा प्रविश तार्किकता आ आधुनिकताक वस्तुनिष्टताकेँ ठाम-ठाम नकारैत अछि। वामपंथीकेँ यमराज ईहो कहैत छथिन्ह, जे वामपंथी देखि रहल छथि से सत्य नहि, सपनो भए सकैत अछि। विज्ञानक ज्ञानक सम्पूर्णतापर टीका अछि ई नाटक। सत्य-असत्य, सभ अपन-अपन दृष्टिकोणसँ तकर वर्णन करैत छथि। चोरक अपन तर्क छन्हि आ वामपंथी सेहो कहैत छथि जे चोर नेता नहि बनि सकैत छथि, मुदा नेताक चोरिपर उतरि अएलासँ चोरक वृति मारल जाए बला छन्हि। नाटकमे आत्म-केन्द्रित हास्यपूर्ण आ नीक-खराबक भावना रहि-रहि खतम होइत रहैत अछि। यमराज आ चित्रगुप्त धरि मुखौटामे रहि जीबि रहल छथि। उत्तर आधुनिकताक ई सभ लक्षणक संग नो एण्ट्री: मा प्रविश मे एके गोटेक कैक तरहक चरित्र निकलि बाहर अबैत अछि, जेना उच्चवंशीय महिलाक। कोनो घटनाक सम्पूर्ण अर्थ नहि लागि पबैत अछि, सत्य कखन असत्य भए जएत तकर कोनो ठेकान नहि। उत्तर आधुनिकताक सतही चिन्तन आ तेहन चरित्र सभक नो एण्ट्री: मा प्रविश मे भरमार लागल अछि, आशावादिता तँ नहिए अछि मुदा निराशावादिता सेहो नहि अछि। जे अछि तँ से अछि बतहपनी, कोनो चीज एक तरहेँ नहि कैक तरहेँ सोचल जा सकैत अछि- ई दृष्टिकोण विद्यमान अछि। कारण, नियन्त्रण आ योजनाक उत्तर परिणामपर विश्वास नहि, वरन संयोगक उत्तर परिणामपर बेशी विश्वास दर्शाओल गेल अछि। गणतांत्रिक आ नारीवादी दृष्टिकोण आ लाल झंडा आदिक विचारधाराक संगे प्रतीकक रूपमे हास-परिहास सोझाँ अबैत अछि।
एहि तरहेँ नो एण्ट्री: मा प्रविश मे उत्तर आधुनिक दृष्टिकोण दर्शित होइत अछि, एतए पाठक कथानकक मध्य उठाओल विभिन्न समस्यासँ अपनाकेँ परिचित पबैत छथि। जे द्वन्द नाटकक अंतमे दर्शित भेल से उत्तर-आधुनिक युगक पाठककेँ आश्चर्यित नहि करैत छन्हि, किएक तँ ओ दैनिक जीवनमे एहि तरहक द्वन्दक नित्य सामना करैत छथि।
रचना लिखबासँ पहिने...............
साहित्यक दू विधा अछि गद्य आ पद्य । छन्दोबद्ध रचना पद्य कहबैत अछि-अन्यथा ओ गद्य थीक। छन्द माने भेल एहन रचना जे आनन्द प्रदान करए । मुदा एहिसँ ई नहि बुझबाक चाही जे आजुक नव कविता गद्य कोटिक अछि कारण वेदक सावित्री-गायत्री मंत्र सेहो शिथिल/ उदार नियमक कारण, सावित्री मंत्र गायत्री छंद, मे परिगणित होइत अछि तकर चरचा नीचाँ जा कए होएत - जेना यदि अक्षर पूरा नहि भेल तँ एक आकि दू अक्षर प्रत्येक पादकेँ बढ़ा लेल जाइत अछि। य आ व केर संयुक्ताक्षरकेँ क्रमशः इ आ उ लगा कए अलग कएल जाइत अछि। जेना- वरेण्यम्=वरेणियम्
स्वः= सुवः।
आजुक नव कविताक संग हाइकू/ क्षणिका/ हैकूक लेल मैथिली भाषा आ भारतीय, संस्कृत आश्रित लिपि व्यवस्था सर्वाधिक उपयुक्त्त अछि। तमिल छोड़ि शेष सभटा दक्षिण आ समस्त उत्तर-पश्चिमी आ पूर्वी भारतीय लिपि आ देवनागरी लिपि मे वैह स्वर आ कचटतप व्यञ्जन विधान अछि, जाहिमे जे लिखल जाइत अछि सैह बाजल जाइत अछि। मुदा देवनागरीमे ह्रस्व “इ” एकर अपवाद अछि, ई लिखल जाइत अछि पहिने, मुदा बाजल जाइत अछि बादमे। मुदा मैथिलीमे ई अपवाद सेहो नहि अछि- यथा 'अछि' ई बाजल जाइत अछि अ ह्र्स्व 'इ' छ वा अ इ छ। दोसर उदाहरण लिअ- राति- रा इ त। तँ सिद्ध भेल जे हैकूक लेल मैथिली सर्वोत्तम भाषा अछि। एकटा आर उदाहरण लिअ। सन्धि संस्कृतक विशेषता अछि, मुदा की इंग्लिशमे संधि नहि अछि ? तँ ई की अछि - आइम गोइङ टूवार्ड्सदएन्ड। एकरा लिखल जाइत अछि- आइ एम गोइङ टूवार्ड्स द एन्ड। मुदा पाणिनि ध्वनि विज्ञानक आधार पर संधिक निअम बनओलन्हि, मुदा इंग्लिशमे लिखबा कालमे तँ संधिक पालन नहि होइत छै, आइ एम केँ ओना आइम फोनेटिकली लिखल जाइत अछि, मुदा बजबा काल एकर प्रयोग होइत अछि। मैथिलीमे सेहो यथासंभव विभक्त्ति शब्दसँ सटा कए लिखल आ बाजल जाइत अछि।
छन्द दू प्रकारक अछि।मात्रा छन्द आ वर्ण छन्द ।
वेदमे वर्णवृत्तक प्रयोग अछि मात्रिक छन्दक नहि ।
वार्णिक छन्दमे वर्ण/ अक्षरक गणना मात्र होइत अछि। हलंतयुक्त अक्षरकेँ नहि गानल जाइत अछि। एकार उकार इत्यादि युक्त अक्षरकेँ ओहिना एक गानल जाइत अछि जेना संयुक्ताक्षरकेँ। संगहि अ सँ ह केँ सेहो एक गानल जाइत अछि। एकसँ बेशी मान कोनो वर्ण/ अक्षरक नहि होइछ। मोटा-मोटी तीनटा बिन्दु मोन राखू-
१. हलंतयुक्त अक्षर-०
२. संयुक्त अक्षर-१
३. अक्षर अ सँ ह -१ प्रत्येक।
आब पहिल उदाहरण देखू-
ई अरदराक मेघ नहि मानत रहत बरसि के=१+५+२+२+३+३+१=१७
आब दोसर उदाहरण देखू
पश्चात्=२
आब तेसर उदाहरण देखू
आब=२
आब चारिम उदाहरण देखू
स्क्रिप्ट=२
मुख्य वैदिक छन्द सात अछि-
गायत्री, उष्णिक्, अनुष्टुप्, बृहती, पङ्क्ति, त्रिष्टुप् आ जगती। शेष ओकर भेद अछि, अतिछन्द आ विच्छन्द। एतए छन्दकेँ अक्षरसँ चिन्हल जाइत अछि। जे अक्षर पूरा नहि भेल तँ एक आकि दू अक्षर प्रत्येक पादमे बढ़ा लेल जाइत अछि। य आ व केर संयुक्ताक्षरकेँ क्रमशः इ आ उ लगा कए अलग कएल जाइत अछि। जेना-
वरेण्यम्=वरेणियम्
स्वः= सुवः
गुण आ वृद्धिकेँ अलग कए सेहो अक्षर पूर कए सकैत छी।
ए = अ + इ
ओ = अ + उ
ऐ = अ/आ + ए
औ = अ/आ + ओ
छन्दः शास्त्रमे प्रयुक्त ‘गुरु’ आ ‘लघु’ छंदक परिचय प्राप्त करू।
तेरह टा स्वर वर्णमे अ,इ,उ,ऋ,लृ ई पाँच ह्र्स्व आर आ,ई,ऊ,ऋ,ए.ऐ,ओ,औ, ई आठ दीर्घ स्वर अछि।
ई स्वर वर्ण जखन व्यंजन वर्णक संग जुड़ि जाइत अछि तँ ओकरासँ ‘गुणिताक्षर’ बनैत अछि।
क्+अ= क,
क्+आ=का ।
एक स्वर मात्रा आकि एक गुणिताक्षरकेँ एक ‘अक्षर’ कहल जाइत अछि। कोनो व्यंजन मात्रकेँ अक्षर नहि मानल जाइत अछि- जेना ‘अवाक्’ शब्दमे दू टा अक्षर अछि, अ, वा ।
१. सभटा ह्रस्व स्वर आ ह्रस्व युक्त गुणिताक्षर ‘लघु’ मानल जाइत अछि। एकरा ऊपर U लिखि एकर संकेत देल जाइत अछि।
२. सभटा दीर्घ स्वर आर दीर्घ स्वर युक्त गुणिताक्षर ‘गुरु’ मानल जाइत अछि, आ एकर संकेत अछि, ऊपरमे एकटा छोट -।
३. अनुस्वार किंवा विसर्गयुक्त सभ अक्षर गुरू मानल जाइत अछि।
४. कोनो अक्षरक बाद संयुक्ताक्षर किंवा व्यंजन मात्र रहलासँ ओहि अक्षरकेँ गुरु मानल जाइत अछि। जेना- अच्, सत्य। एहिमे अ आ स दुनू गुरु अछि।
५. जेना वार्णिक छन्द/ वृत्त वेदमे व्यवहार कएल गेल अछि तहिना
स्वरक पूर्ण रूपसँ विचार सेहो ओहि युग सँ भेटैत अछि। स्थूल रीतिसँ ई विभक्त अछि:- १. उदात्त २. उदात्ततर ३. अनुदात्त ४. अनुदात्ततर ५. स्वरित ६. अनुदात्तानुरक्तस्वरित, ७. प्रचय (एकटा श्रुति-अनहत नाद जे बिना कोनो चीजक उत्पन्न होइत अछि, शेष सभटा अछि आहत नाद जे कोनो वस्तुसँ टकरओला पर उत्पन्न होइत अछि)।
१. उदात्त- जे अकारादि स्वर कण्ठादि स्थानमे ऊर्ध्व भागमे बाजल जाइत अछि। एकरा लेल कोनो चेन्ह नहि अछि। २. उदातात्तर- कण्ठादि अति ऊर्ध्व स्थानसँ बाजल जाइत अछि। ३. अनुदात्त- जे कण्ठादि स्थानमे अधोभागमे उच्चारित होइछ।नीचाँमे तीर्यक चेन्ह खचित कएल जाइछ। ४. अनुदातात्ततर- कण्ठादिसँ अत्यंत नीचाँ बाजल जाइत अछि। ५. स्वरित- जाहिमे अनुदात्त रहैत अछि किछु भाग, आ किछु रहैत अछि उदात्त। ऊपरमे ठाढ़ रेखा खेंचल जाइत अछि, एहिमे। ६. अनुदाक्तानुरक्तस्वरित- जाहिमे उदात्त, स्वरित किंवा दुनू बादमे होइछ, ई तीन प्रकारक होइछ। ७. प्रचय-स्वरितक बादक अनुदात्त रहलासँ अनाहत नाद प्रचयक,तानक उत्पत्ति होइत अछि।
१. पूर्वार्चिकमे क्रमसँ अग्नि, इन्द्र आ सोम पयमानकेँ संबोधित गीत अछि।तदुपरान्त आरण्यक काण्ड आ महानाम्नी आर्चिक अछि।आग्नेय, ऐन्द्र आ पायमान पर्वकेँ ग्रामगेयण आ पूर्वार्चिकक शेष भागकेँ आरण्यकगण सेहो कहल जाइछ। सम्मिलित रूपेँ एक प्रकृतिगण कहैत छी। २.उत्तरार्चिक: विकृति आ उत्तरगण सेहो कहैत छी। ग्रामगेयगण आ आरण्यकगणसँ मंत्र चुनि कय क्रमशः उहगण आ ऊह्यगण कहबैछ- तदन्तर प्रत्येक गण दशरात्र, संवत्सर, एकह, अहिन, प्रायश्चित आ क्षुद्र पर्वमे बाँटल जाइछ। पूर्वार्चिक मंत्रक लयकेँ स्मरण क’ उत्तरार्चिक केर द्विक, त्रिक, आ चतुष्टक आदि (२,३, आ ४ मंत्रक समूह) मे एहि लय सभक प्रयोग होइछ। अधिकांश त्रिक आदि प्रथम मंत्र पूर्वार्चिक होइत अछि, जकर लय पर पूरा सूक्त (त्रिक आदि) गाओल जाइछ।
उत्तरार्चिक उहागण आ उह्यगण प्रत्येक लयकेँ तीन बेर तीन प्रकारेँ पढ़ैछ। वैदिक कर्मकाण्डमे प्रस्ताव, प्रस्तोतर द्वारा, उद्गीत उदगातर द्वारा, प्रतिघार प्रतिहातर द्वारा, उपद्रव पुनः उदगातृ द्वारा आ निधान तीनू द्वारा मिलि कय गाओल जाइछ। प्रस्तावक पहिने हिंकार (हिं,हुं,हं) तीनू द्वारा आ ॐ उदगातृ द्वारा उदगीतक पहिने गाओल जाइछ। ई पाँच भक्त्ति भेल।
हाथक मुद्रा- हाथक मुद्रा १.१.औँठा(प्रथम आँगुर)-एक यव दूरी पर २.२. औँठा प्रथम आँगुरकेँ छुबैत ३.३. औँठा बीच आँगुरकेँ छुबैत ४.४. औँठा चारिम आँगुरकेँ छुबैत ५.५. औँठा पाँचम आँगुरकेँ छुबैत ६.११. छठम क्रुष्ट औँठा प्रथम आँगुरसँ दू यव दूरी पर ७.६. सातम अतिश्वर सामवेद ८.७. अभिगीत ऋग्वेद
ग्रामगेयगान- ग्राम आ सार्वजनिक स्थल पर गाओल जाइत छल। आरण्यक गेयगान- वन आ पवित्र स्थानमे गाओल जाइत छल।
ऊहगान- सोमयाग एवं विशेष धार्मिक अवसर पर। पूर्वार्चिकसँ संबंधित ग्रामगेयगान एहि विधिसँ। ऊह्यगान आकि रहस्यगान- वन आ पवित्र स्थान पर गाओल जाइत अछि। पूर्वार्चिकक आरण्यक गानसँ संबंध। नारदीय शिक्षामे सामगानक संबंधमे निर्देश:- १.स्वर-७ ग्राम-३ मूर्छना-२१ तान-४९
सात टा स्वर सा,रे,ग,म,प,ध,नि, आ तीन टा ग्राम-मध्य,मन्द,तीव्र। ७*३=२१ मूर्छना। सात स्वरक परस्पर मिश्रण ७*७=४९ तान।
ऋगवेदक प्रत्येक मंत्र गौतमक २ सामगान (पर्कक) आ काश्यपक १ सामगान (पर्कक) कारण तीन मंत्रक बराबर भऽ जाइत अछि। मैकडॉवेल इन्द्राग्नि, मित्रावरुणौ, इन्द्राविष्णु, अग्निषोमौ एहि सभकेँ युगलदेवता मानलन्हि अछि। मुदा युगलदेव अछि –विशेषण-विपर्यय।
वेदपाठ-
१. संहिता पाठ अछि शुद्ध रूपमे पाठ।
अ॒ग्निमी॑ळे पुरोहि॑त य॒घ्यस्य॑दे॒वम्त्विज॑म।होतार॑रत्न॒ धातमम्।
२. पद पाठ- एहिमे प्रत्येक पदकें पृथक कए पढ़ल जाइत अछि।
३. क्रमपाठ- एतय एकक बाद दोसर, फेर दोसर तखन तेसर, फेर तेसर तखन चतुर्थ। एना कए पाठ कएल जाइत अछि।
४. जटापाठ- एहिमे ज्योँ तीन टा पद क, ख, आ ग अछि तखन पढ़बाक क्रम एहि रूपमे होएत। कख, खक, कख, खग, गख, खग। ५. घनपाठ-एहि मे ऊपरका उदाहरणक अनुसार निम्न रूप होयत- कख,खक,कखग,गखक,कखग। ६. माला, ७. शिखा, ८. रेखा, ९. ध्वज, १०. दण्ड, ११. रथ। अंतिम आठकेँ अष्टविकृति कहल जाइत अछि।
साम विकार सेहो ६ टा अछि, जे गानकेँ ध्यानमे रखैत घटाओल, बढ़ाओल जा सकैत अछि। १. विकार-अग्नेकेँ ओग्नाय। २. विश्लेषण- शब्द/पदकेँ तोड़नाइ ३. विकर्षण-स्वरकेँ खिंचनाई/अधिक मात्राक बड़ाबर बजेनाइ। ४. अभ्यास- बेर-बेर बजनाइ।५. विराम- शब्दकेँ तोड़ि कय पदक मध्यमे ‘यति’। ६. स्तोभ-आलाप योग्य पदकेँ जोड़ि लेब। कौथुमीय शाखा ‘हाउ’ ‘राइ’ जोड़ैत छथि। राणानीय शाखा ‘हावु’, ‘रायि’ जोड़ैत छथि।
मात्रिक छन्दक प्रयोग वेदमे नहि अछि वरन् वर्णवृत्तक प्रयोग अछि आ गणना पाद वा चरणक अनुसार होइत रहए। मुख्य छन्द गायत्री, एकर प्रयोग वेदमे सभसँ बेशी अछि। तकर बाद त्रिष्टुप आ जगतीक प्रयोग अछि।
१. गायत्री- ८-८ केर तीन पाद। दोसर पादक बाद विराम। वा एक पदमे छह टा अक्षर।
२. त्रिष्टुप- ११-११ केर ४ पाद।
३. जगती- १२-१२ केर ४ पाद।
४. उष्णिक- ८-८ केर दू तकर बाद १२ वर्ण-संख्याक पाद।
५. अनुष्टुप- ८-८ केर चारि पाद। एकर प्रयोग वेदक अपेक्षा संस्कृत साहित्यमे बेशी अछि।
६. बृहती- ८-८ केर दू आ तकरा बाद १२ आ ८ मात्राक दू पाद।
७. पंक्त्ति- ८-८ केर पाँच। प्रथम दू पदक बाद विराम अबैछ।
यदि अक्षर पूरा नहि होइत अछि, तँ एक वा दू अक्षर निम्न प्रकारेँ घटा-बढ़ा लेल जाइत अछि।
(अ) वरेण्यम् केँ वरेणियम् स्वः केँ सुवः।
(आ) गुण आ वृद्धि सन्धिकेँ अलग कए लेल जाइत अछि।
ए= अ + इ
ओ= अ + उ
ऐ= अ/आ + ए
औ= अ/आ + ओ
अहू प्रकारेँ नहि पुरलापर अन्य विराडादि नामसँ एकर नामकरण होइत अछि।
यथा- गायत्री (२४)- विराट् (२२), निचृत् (२३), शुद्धा (२४), भुरिक् (२५), स्वराट्(२६)।
ॐ भूर्भुवस्वः । तत् सवितुर्वरेण्यं। भर्गो देवस्य धीमहि । धियो यो नः प्रचोदयात् ।
वैदिक ऋषि स्वयंकेँ आ देवताकेँ सेहो कवि कहैत छथि। सम्पूर्ण वैदिक साहित्य एहि कवि चेतनाक वाङ्मय मूर्त्ति अछि। ओतए आध्यात्म चेतना, अधिदैवत्वमे उत्तीर्ण भेल अछि, एवम् ओकरा आधिभौतिक भाषामे रूप देल गेल अछि।
आब ज्योतिरीश्वर/ विद्यापति/ चतुर चतुरभुज/ बद्रीनाथ झा शब्दावलीसँ अहाँक परिचय करबा रहल छी, जाहिसँ अहाँक लेखन-कौशलमे वृद्धि होएत।
१. कविशेखर ज्योतिरीश्वर शब्दावली
गोण्ठि - मलाह
कबार - तरकारी बेचनिहार
पटनिआ - मलाह
लबाल - लबरा
लौजिह - ललचाइत जीह बला
पेटकट - जकर पेट काटल छै/ अनकर पेट कटैत अछि।
नाकट - नककट्टा
बएर - बदरीफल
बाबुर - बबूर
खुसा - शुष्क
चुसा - चोष्य
फरुही - मुरही/ लाबा
करहर - कुमुदक कन्द
मलैचा - मेरचाइ
सारुक - भेँटा (श्वेत कुमुदक) कन्द
बोबलि - घेचुलि –खाद्य कन्द
बाँसी - वंशी
हुलुक - हुडुक्का (वाद्य यंत्र)
जोहारि - प्रणाम
तोरह - तौलह
बराबह - फुटा कए राखह
खुटी - महिला द्वारा कानक ऊर्ध्वभागमे पहिरए जायबला
खुट्टी
सिङ्कली - सिकड़ी
चुलि - चूड़ी
त्रिका - माँग टीका
खञ्जरीट - खंजन पक्षी
साँकर - चीनी, लालछड़ी
बिरनी - वेणी, जुट्टी
कम्बु - शंख
पञु - पद्म
राउत - सैनिक पदाधिकारी
राजशिष्ट - राजाक दरबारी
पुरपति - नगरक मुख्य
साधि - सेठ
गन्धवणिक - कस्तूरी आदि सुगन्धी बेचनिहार
बेलवार - सीमारक्षक
राजपुत्र - एकटा पदाधिकारी
द्वारिक - राजदरबारमे प्रवेशक अनुज्ञा देनिहार
पनिहार - द्वारपाल
अगहरा - अग्रहार पाबि काज कएनिहार
रौतपति/ राजपुत्रपति - रौत सभक प्रधान
सन्धिविग्रहिक - विदेशमंत्री
महामहत्तक - प्रतिरक्षामंत्री
प्रतिबलकरणाध्यक्ष - शत्रुसेनाक जासूसीक विभाग
स्थानान्तरिक - राजाक पर्यटनक व्यवस्था केनिहार अधिकारी
नैबन्धिक - दस्तावेज लिखनिहार
वार्तिक - गुप्तवार्ता संग्राहक, वार्तिक आ महावार्तिक पञ्जीमे
उच्च पदवी
आक्षपटलिक - द्युतगृहक अधिकारी
खड्गग्राह - हाथमे खड्ग लेने राजाक रक्षक- खर्गा
प्रमत्त्वार - बताहेकेँ रोकएबला अधिकारी
बिश्वास - राजाक अंतरंग सहायक
अग्रजाणिक - राजाक प्रयाणमे आगा-आगा चलनिहार सुरक्षा-दल
गूढ़ पुरुष - गुप्तचर
प्रणिधि - गुप्तचर
वार्तिक - गुप्तचर
सूपकार - भनसीया
सूपकारपति - भनसिया-प्रधान
सम्बाहक - भनसियाक परिचारक
बलिष्ठ - शारीरिक बलबला अंगरक्षक, बैठा
श्रोत्रिय - वैदिक
आध्यायिक - अध्येता
मौहूर्तिक - ज्योतिषी
आम्नायिक - वैदिक वा तान्त्रिक, युद्धविषयक परामर्शदाता
चूड़ामणि - भविष्यकथनशास्त्र
पँचरुखी काँच - प्रिज्म
महथ - उच्च कोटिक सैनिक पद, महथा/ मेहता/ महतो
मुदहथ - जिनका हाथमे राजाक मोहर रहैत छल
महसाहनि - आपूर्ति अधिकारी
महसुआर - प्रधान भनसिआ
महल - महर, समृद्ध गोपाल, जेना नन्द महर
सेजवार - सय्यापाल
पनहरि - ताम्बूलवाह
राजवल्ल्भ - दरबारी
भण्डारी - भाण्डागारिक
कलबार - वणिक
चोरगाहा - चाँवर होकनिहार
सुखासन - आरामकुर्सी
चौपाड़ि - बहरघर, दलान, पाठशाला
अँचरा - गमछा
समरहर - अंगमर्दन
विदान - व्यायाम-३६ प्रकारक
तमारु - तामाक लोटा
पनिगह - पानि फेकबाक पात्र
तमकुण्ड - तामाक गँहीर अढ़िया
अप्यायक - तृप्तिकारक
फेना - बरकाओल चीनीक मधुर
जेञोनार - भोज
स्वर्गदुर्लभ - पान
दण्डिया - डंटाक उपरका पासि
भृङ्गार - स्वर्णकलस
आरहल - आरम्भ कयल
किटाएल - क्रुद्ध
नियोगी - एक प्रकारक फकीर
बुसक - भूसाक
धुनि - घूड़
संकोच - छोट होयब
अपगत - अलक्षित
सम्भार - प्रसार
कौशिक - उल्लू
गोमायु - सियार
नओबति - प्रहरी-दल
चतुःसम - द्रव- भीतरका धरातल नीपबाक
माठ - खाजा-माठ
उनच - उलोँच, चद्दरि (ओछेबाक)
दर्द्दुर - बेङ
झिकरुआ - झीङुर, सनकिरबा
निविल - निविड़ घन
काकोल - कार-कौआ
कोल - सूगर
शिवा - गिदरनी
फेत्कार - भूकब
सार्थवाह - व्यापारी यात्रादल-हरवल्लभा
प्रसारी - संचारशून्य मेघ
अखलु - प्रतीत होइत अछि
अखउलि - पूर्वमे कहल
वारिभक्त - पानिमे राखल बासी भात
सौहित्य - तृप्तता
उपचय - वृद्धि
पाण्डुरता - श्वेत भेनाइ जेना शरदमे मेघ कारीसँ उज्जर भऽ
जाइत अछि
प्रसन्नता - स्वच्छता
सफरी - पोठी माछ
तरङ्ग - चञ्चलता
शालि - दाना भरल झुकल धान
मरुआ - तुलसी जतिक पुष्पवृक्ष
विशेषकच्छेद - कपार गलपर कस्तूरीसँ चित्र बनायब
दर्शनविधि - दाँत आ ठोर रँगब
वसनविधि - वस्त्र रँगब
वर्णिकाविधि - चित्रलेखन
शेखरयोजन - खोपा बान्हब
पत्रभङ्गि - शरीरमे कस्तूरी लेपन
गन्धयुक्ति - अतर-फुलेल बनायब
पानककरनी - शरबत बनायब
पट्टिकावान - पटिआ बीनब
तर्कुकर्म - सीकी-शिल्प
आकरज्ञान - भूतत्त्वविज्ञान
अक्षरमुष्टिका - आँगुरक संकेतसँ अक्षर-भावक निर्देश
दोहदकरण - कृत्रिम उपचारसँ वृक्षकेँ दुर्भिक्षमे पुष्पित करब।
छलितयोग - एकप्रकारक योग
रसवाद - रसायनविज्ञान
दुकूल - घोघट-ओढ़नीक लेल प्रयुक्त वस्त्र
क्षौम - तीसीक सोनसँ बनल वस्त्र
कौशेय - कीटकोशसँ बनल तसर वस्त्र
कमरूबाल - कामरूप बला
बङ्गाल - वङ्गबला
गुञ्जर - गुर्जर
कठिबाल - काठियाबाड़बला
बरहथी - बारह हाथक
बैङ्गना - भट्टासन रंगबला
पञ्चहर - पाँच खण्डक महल
पञ्चसम - पञ्च सुगन्धिद्रव्यक चूर्ण
प्रदीपकलस - अहिबातक पातिल, कलसमे राखल मङ्गलदीप जे
बसातसँ मिझाय नहि
षेमा - राजा आ सेनाक अस्थायी शिविर
वारिगह - हथिसार वा घोड़सार
एकचोइ/ दोचोइ - एक वा दू मुख्य स्तंभ बला तम्बू
मण्डबा - मड़बा
कपलघड़ - कपड़ाक घर
बरागन - बेरागन, सोम-रवि आदि
चेष्टसार - द्यूतशाला
सहिआर - अम्पायर
खेलबार - द्यूतशालाक मालिक
दण्डसाह - दण्डसाक्षी
कात - काँति, हारि-जीत लेल राखल द्रव्य
उपनय - समीप आनब
भुजङ्ग - समदिया, चुगला
घल - झुण्ड
अगिरानि - अग्रगामी रक्षक दल
सेनगाह - सेनानायक
रजाएस - राजादेश
घोल - घोड़ा
पाएन - पएर रखबाक वलय
पलानि - जीन लगाए घोड़ाकेँ कसब
थलबार - घोड़सारमे रहि अश्वक पालन कएनिहार
पाग - मुरेठा
सरमोजा - माथमे पहिरबाक मोजा
गान्ती - गाँती
बाग - चाबुक
साङ्कल - कड़ी
डाम्भ - काँच नारिकेर
फरेन्द - फाँक
कोन्ते - बरछी
लउली - लाठी
जाठी - फड़ाठी
कोन्तिआ - बरछीबाला
धमसा - नगाड़ा
महुअरि - फूँकि कए बजयबाक एक वाद्य
अनायत - ववश, बहीर
षतबार - पहरादार
बाइति - वाद्यध्वनि
टाप - घोड़ाक खुरपात
मुहरव - मुखध्वनि
पलानि - कसि कय
करुअक - कयलक
सर्वांवसर - आम दरबार
वेकल्हेण्टे - डाँड़
पाट - रेशमी
धलि - धड़िया, कप्पा
पाझि - पक्षी
टोपर - टोप सन झपना
सइचान - बाज पक्षी
पितशाल - पीरा साँखु
सरल - धूप सरड़
सिम्बलि - सीमर
सिंसप - सीसी
सहोल - साहोड़
पाउलि - पाँड़रि
बंझि - बाँझि
गिरिछ - रिछ
गुआ - सुपारी
नरङ्ग - सन्तोला
नमेरु - रुद्राक्ष
बउर - बकुल, भालसरि
छोलङ्ग - छोहारा
जुड़ - शीतल
एला - अड़ाँची
सुखमेला - छोटकी अड़ाँची
मधुकर - शतावरी
कम्पूर कदली - कर्पूरकदली
कपिञ्जल - तितीर
धारागृह - फुहारासँ युक्त स्नानगृह
स्थेय - भगनिहार नहि
परम्परीण - वंशपरम्परासँ चल अबैत
पुरुष - रक्षक, सिपाही
कार - कारी
काबर - चितकाबर
चलक - चरक, श्वेतवर्ण
गोल - गौर
कइल - कपिल
पाण्डर - पाण्डुर
शीकरविक्षेप - फुहारा छोड़ब
गण्डूष - कुड़रा
नाकजलबुद्बुद - नाकसँ जलमे हवा छोड़ि बुदबुद बनायब
पिण्ड - पीड़ी
पारी - बेढ़
साटि - खुट्टा
चुत - आम
पस्रवण - सोता
पहाल - गिरि
डोङ्कल - डोंगर
चुली - चोटी
कोइआर - कोविदार
सैम्ब - सीमर
सीसमु - सीसो
साङ्कु - साँखु
समि - शनि, सैनि
सहोल - साहोड़
पञोकठ - पद्मकाठ
सभर - साँभर, अष्टापद मृग
कुटुम्बिनी - खीरी
कठहरिआ - कठखोदी
पेच - उल्लू
स्रुच - काठक लाड़नि, दाबि
पञ्चामृत - दही, दूध, घृत, मधु, शर्करा
पञ्चकषाय - शरीरमे लगयबाक पाँच सुगन्धिद्रव्यक चूर्ण
चषाल - यूपक माथ परक थुमहा
उदूखल - उक्खरि
चमस - बाटी
संभृति - सामग्री
सप्तधान्य - जओ, गहुम, तिल, काउन, साम, चीन, नीवार
आषाढ़दण्ड - पलाशदण्ड
तरुत्वच - वल्कल
वृक्षी - मुनिक बैसबाक आसन
दारुपात्र - कठौत
करण्डक - छिट्टा, पथिआ
बह्आरि - बहुरिआ, पुतोहु
बिदान - दाओ, मुद्रा
उभरि - उछलि कए ऊपर आबि, कुश्तीक दाओ
अवधा - अधोमुख, कुश्तीक दाओ
विद्यावन्ति - नर्तकी
सोताक ककना - मङ्गल सूत्र
सिङ्कली - सिंकड़ी
शाख - शंखाचूड़ी
खुन्ती - खुट्टी- कानक उपरका भागमे पहिरल जाइछ
चूलि - चूड़ी
तृका - माँगटीका
दशञुधि - दसौन्ही- राजाकेँ कालक सूचना देनिहार, सम्प्रति
भाट
समहथ - समहस्त, बाजा सभपर एकबेर हाथ दए संगीत
निकालब
मण्डल - हाथ-पएरक चक्राकार संचार कए एक मुद्रासँ दोसर
मुद्रामे पहुँचबाक क्रिया
अङ्गहार - अङ्गसभकेँ विलासपूर्वक उचित स्थानमे पहुँचाएब
भाल - भूजाबलाक चूल्हि
ओबारी - पातिल
शिवा - गिदड़नी
भीम - भयानक
उल्कामुख - एक जातिक गीदड़ जकड़ा मुहसँ धधरा बहराइत
छै
जन्ताक - जाँतक
चुञ्ची - स्तन
पसार - दोकान
पेचा - उल्लू पक्षी
षीषील - खिखीड़
नेउर - बीजी
अपर्यन्त - असीम
पाट - पट्टवस्त्र
कापल - कपड़ा
सकलात - गलैचा
दुसुखासन - सुखद शय्या
लचसूचिका - नओ सुइयापर बिनायल बिछाओन
परिकर-नायक - दलपति
वर्हि - कुश
समिध - जारनि
दृषद - पाथर
लाज - लाबा
इष्टाङ्गना - भावी पत्नी
सुरती - सूरतसँ आयल, सम्प्रति सुरती तमाकू
जातीफल - जायफल
सूक्ष्मेला - छोटकी अड़ाँची
गुलत्वक - दालिचीनी
पत्रक - तेजपात
पिर्प्पली - पीपरि
कटुकी ओ दुलाह- दुलार काँट, वनौषधि
मूल्य परिछेद - मूल्य पटाएब
निष्क्रय - विनिमय
कर्षक्रय - सोनाक मुद्रा कीनब
अङ्कपरिस्थिति - लेखा-जोखा
हरण-भरण - माल लेब-देब
व्यवच्छेद - फरिछोट
नष्टकाक - कार कौआ
सलभ - फतिंगा
ग्रहिल - लगारी
सद्विचक्षण - नीक विद्वान्
वपा - भीड़-स्तूपाकार भूमि
खोल - खाधि
हस्तकाण्ड - लग्गा
गुणकाण्ड - नपबाक लग्गा
वत्सदन्त - बाछाक दाँत सन
भल्ल नख - भालुक नखक सदृश
तृपर्व - तीन पोर बला
सप्तपर्व - सात पोरबला
आलीढ़ - दहिना ठेहुनकेँ उठाय ओ बामा ठेहुनकेँ नीचाँ रोपि
ठाढ़ भेल
प्रत्यालीढ़ - आलीढ़क विपरीत
समपाद - दुनू ठेहुन एक सरल रेखापर रोपि ठाढ़ भेल
बिशाख - दुनू टाँग चिआरि ठाढ़ भेल
स्थानक - ठाढ़ होएबाक ढ़ंग
असन - भाला
गोकर्ण - छोट भाला
मुकुल - कलिकाकार तीर
डाण्ड - पतबार, पानि उपछबाक कठौत
चाड, चडक - नाओ सभक बेड़ा
जुज्झार - लड़ाकू, युद्ध-पदाति
गणक - गणितज्ञ
ताराविद् - तारा देखि दिशाक ज्ञान करओनिहार
गुणवृक्ष - मस्तूल
सेकपात्र - नाओसँ पानि उपछबाक कठौत
वोहित - जहाजक बेड़ा
बिआरी - रात्रिभोजन
चोरगाहि - चामरिग्राहिणी
पटा - छोट पीढ़ी
बधा - खुट्टी लगला उत्तर खराऊँ मुदा डोरी लगला उत्तर
बधा
तमारु - ताम्रपत्र
बटइ - बटेर
तेरिआ - तीन खुट्टाक- दू बिआनक महीस
लेबारी - नार-पुआर
अधतेरह - तेरहसँ आध कम अर्थात् साढ़े बारह
अँचओलनि - हाथ-मुँह धोलनि
देवरूपा - एक प्रकारक चानी
२. विद्यापति शब्दावली
मृगमद = कस्तूरी
वासर = दिन
रैन = राति
लिधुर = रक्त
पुर नटी = नागर नटी
अवतरु = अवतरित होऊ
कनक भूधर = सुमेरु पर्वत
चन्द्रिका चय = चन्द्रिकाक समूह
निपातिनि = नाश करएबाली
भक्त भयापनोदन = भक्तक भए दूर करएबाली
दुरित हारिणि = विपत्तिक भार हरण करएबाली
दुर्गमारि = भयङ्कर शत्रु
विमर्द = विनष्ट
गाहिनी = विचरण करएबाली
सायक = वाण
सुकर = सुन्दर
पिसित = काँच मौस
पारणा = तृप्ति
रभसे = आनन्दित करएबाली
कृशानु = अग्नि
चुम्ब्यमान = चुम्बन करैत अछि
परिच्युति = नष्ट करैत अछि
आड़ = लाल
भागि = वक्र
गोए = नुका कए
सुधाए = अमृत
कुशेशय = शतपत्र कमल
अधबोली = असंपूर्ण वाक्य
खनेखन = क्षणे-क्षण
उचिक = चकित भावेँ
आरति = पीड़ा
अनानि = अज्ञानी
दन्द = झगड़ा
हेरैत = देखैत
मनसिज = कामदेव
गौरव = गुरुता
खीन = क्षीण
अओके = दोसराक
लहु = लघु
परगास = प्रकाश
सुरत विहार = काम-क्रीड़ा
नवरङ्ग = संतोला
सन्तापलि = कष्ट देनाइ
बाङ्क = वक्र
पसाह = प्रसाधन
भीति = भयसँ
तिष = तीक्ष्ण
सिझल = सिद्ध भेल
कोरि = बैर फल
ससन = वायु
धनि = नायिका
अम्बर = वस्त्र
रेह = रेखा
रङ्ग = आनन्द
अलका = लेप
मसि = सियाही
समरा = श्यामल
कचोरा = कटोरा
पहू = प्रभू
ससधर = चन्द्रमा
मनोभव = कामदेव
सउदामिनी = विद्युत
करिनि = हस्तिनी
वयन = मुख
परिमल = सुगन्धि
तनरुचि = शरीरक गोराइ
अरुझायल = ओझरा गेल
बिलास-कानन = प्रमद-वन
निविल = घनगर
विहि = विधि
निञ = निज
विद्रुम दले = मौसरीक पातमे
तिहुअन = त्रिभुवन
मल्ल = पहलमान
हाटक = सोना
थम्भ = स्तम्भ
चिकुर-निकर = केशपाश
विचरित = निअम विरुद्ध
कवरी = केशपाश
चामरि = चँवर गाय
सम्भसि = सम्भाषण
न जासि = नहि कएल जा सकैछ
हुतासे = अग्नि
मो = हम
पीहलि = झाँपि देलक
पीहित = आच्छादित
कुहुकि = मायाविनी
जुड़ायब = शीतल करब
दहइ = जड़ायब
अवनत = नीचाँ झुकल
बारल = निवारण कएल
धाओल = दौगि पड़ल
पसाहिम = प्रसाधन
फुलग = रोमांच
बलाअ = वलय
पेखलि = देखल
बेढ़लि = लेपटल
थीर = स्थिर
पुछसि = पुछैत छह
परस = स्पर्श
झुरए = व्याकुल होइत अछि
अम्बुद = मेघ
धन्दा = संदेह
पुतलि = मूर्ति
इन्दु = चन्द्रमा
महि = पृथ्वी
माझ = मध्य
खिन = क्षीण
मधु = पुष्प रस
उपेखि = उपेक्षा करके
तरुअर = तरुवर
लेख = उल्लेख
परिहरि = छोड़कर
तोरिए = तोहर
पाछिलि = पाछाँक
सनि = सदृश
अछलिहुँ = हम छलहुँ
छाजत = शोभित होएत
घोसिनी = ग्वालिन
बथु = वस्तु
अरतल = अनुरक्त
रव = हल्ला
राहि = राधा
तापिनि = ज्वाला
बयने = वाणी
धरनि = पृथ्वी
इथि = एकर
जोतिअ = ज्योतिष
मुरछइ = मूर्च्छा
आइति = अधीनता
महते = महावतसँ
नव = झुकैत अछि
एहो = ई
बटमारी = रस्तामे लुटनाइ
तुलाएल = बढ़ाओल
पसार = दोकान
पढ़ओंक = बोहनी
कुंगयाँ = गमार (कुगामक)
आजि = लगा देब
आग = अङ्ग
गोए = नुका कए
इन्दुमुखी = चन्द्रमुखी
तहु = ताहि परसँ
परिहरिहह = त्यागि देब
सारी = सारिका
सेचान = बाज
भामि-भामि = भ्रमण कए
विरडा = विडाल
सुरते = काम-क्रीड़ा
काहिअ अवधारि = विश्वासपूर्वक कहैत अछि
अन्तर नारी = नारीक हृदय
रोखए = रोष
गंजए = गंजन
रंजए = प्रसन्न
साह = ओ
तरासे = भए
परुष = कठिन
सोस = शुष्क
चेतन = समर्थ
आथि = अछि
सारी = संग
दूषलि = दुःख
निमाल = निर्माल्य
अंसुक = वस्त्र
वाँलभु = वल्लभ
नठल = नष्ट
परबोध = प्रबोध
पांगुर = पैरक आंगुर
खिति = क्षिति
गीभ = ग्रीवा
अनुसए = पश्चाताप
अनुरञ्जब = हम सम्हारि सकब
विरमाने = विराम-स्थल
एहो पय = ताहिपर सेहो
जार = जराकए
नखत = नक्षत्र
जुगुतिहि = तर्कसँ
दोहाए = शपथ
रङ्ग = अनुराग
गरुअ = गुरुतर
पिसुन = चुगलखोर
अरुझओहल = ओझरायल
कञोनकँ = ककर ऊपर
बारि = बचा कए
फुलधालि = फूल धारण कए
कैतवे = छलसँ
अह = दिन
सपजत = सपरज
वथु = वस्तु
मोन्ति = मोती
धम्मिल = केशपाश
धोएल = स्थापित कएल
अङ्गिरि = अंगीकार करब
पुनिमाँ = पूर्णिमा
विभिनावए = अलग कए सकैत अछि
आनन = मुख
तिमिशरि = अंधकारक बैरी
चालक = प्रेरक
बम = उगलि रहल
भीभ = भआवोन
ओल = अन्त
कवल = ग्रास
सरूप = सत्य
निसिअर = निशाचर
भुअङ्गम = भुजङ्गम
उजोर = प्रकाश
झाप = डुमनाइ
मेंदुर = घन
मुदिर = मेघ
पाउस = पावस
निसा = निशा
निबिल = निविड़
निचोल = साड़ी
जामिक = प्रहरी
थैरेज = स्थैर्य
थोइआ = स्थापयित्वा
रञनि = रात्रि
सिरहि = शोभामे
असिलाइ = म्लान भऽ गेलाइ
वालँभू = स्वामी
मुसए = चोरि करबाक लेल
छैलरि = छलियाक
अरथित = याचनासँ
जड़ाइअ = ठण्डा करू
विरत रस = जकर स्वाद खतम भए गेल
अचेतन = मूर्ख
कके = किएक
लाघव = अनादर
चिटि-गुड़े = गुड़-चुट्टी
चुपड़लि = ब्याज
लओले लोथे = बहन्ना करलो उपरान्त
झाल = शुष्क
दरनि = दरारि
असेखि = अशेष
असहति = असहनशील
तत्न = तन्त्र
भाझहि = मध्य
खीनी = क्षीण
झपावह = ढ़कैत होए
परिरम्भि = आलिङ्गन कए
फुजलि = खुजि गेल
घोषसि = घोषणा
नखर = नख
पाँच पाँच गुन दस गुन चौगुन आठ दुगुन = ५*५*१०*४*८*२=१६०००
नखर = नख
छाँद = शोभा
हिया = हृदय
सदय = सहाय
कानुक = कृष्णाक
निरसाओल = नीरस कएल
सखिता = साक्षित कएल
करवाल = तलवार
काँढ़ = निकलैत अछि
कार = कारी
उजागरि = उज्जर
परिपन्तिहि = प्रतिपक्षीकेँ
पयगन्ड = प्रौढ़
मधुमखिका = मधुमक्षिका
उधारल = उद्धार कएल
लागर = युक्त
पुरहर = विवाह अवसर पर मांगलिक कलश
मन्दाकिनी = गङ्गाजल
केसु = किंशुक
विथुरलहु = पसारि देल
भिति = दीवारि
पौञनाल = कमलनाल
रात = लाल
ऐपन = अरिपन
हथोदक = हस्तोदक
विधु = रस्ताक थकावटि
कनए-केआ = चम्पा+केरा = कनक+कदली
जैतुक = दहेज
डिठि = दृष्टि
तुलइलिहुँ = शीघ्रतासँ
अनुबन्ध = लगओनाइ
बोल छड़ = मिथ्यावादी
मज्जि = मज्जन कए
विथरओ = पसरि जाय
पाड़रि = गुलाब = पाटली
भोपति = हमरा लेल
वाउलि = बताहि
विधुन्तुद = राहु
सेरी = शरणार्थी
परभृतक = कोकिल
मतेँ = मन्त्र
कि रहसि बोरि = की हास्यमे बाजि रहल छी
बालहि तोरि = अहाँक प्रेमिकाकेँ
भर बादर = मेघसँ भरल
झम्पि = रहि-रहि जोरसँ
सघने खर = तीव्र आ घन खर
डाहुकि = जोरसँ
थेघा = टेक कए
पख = पक्ष
पिआञे = प्रियतम
पङ्का = लेप
तथुहु = ओहिमे सेहो
दर = अपूर्व
अपद = बिना कारणक
साती = तीव्र वेदना
अवथाञे = अवस्था
पसाइल = पसारल
रासे = रोष
बालभु = वल्लभ
अएत = अधीन
सपूने = सम्पूर्ण
दिगन्तर = दूर देशमे
अरुझाए = ओझरल
आधिन = अधीन
पललि = भेल
खेञोब = क्षमा
जल आजुरि = जलाञ्जलि
सुसेरा = सुन्दर आश्रय
गोए = नुका कए
सम्भ्रम = अतर्कित
कराडहार = कड़ुआर (तकड़ा पकड़ि यमुना पार करब)
लहु-लहु आखरे = लघु-लघु अक्षर
तामरस = कमल
घनसार = कर्पूर
वेपथु = कम्प
मसृण = चिक्कन
सुदति = सुन्दर दाँतबाली
सुति = श्रुति
जति = जतेक
घमिअ = फूँकल जाइत अछि
आनइति = परवशता
दीब = शपथ
बड़इ = बहुत
देव देयासिनि = झाड़-फूँक करए बाली स्त्री
जटिला = कर्कशा
फुकरि = चिकरि
बहुरि = पुत्रवधू
अङ्गा = चिन्ह
बेसर = नाकक आभूषण
यन्त्रिया = वीणा बजाबए बला
यन्त्र = वीणा
फोटा = ठीका
समत = सम्मत
मौलि = मस्तकमे
मुसरेँ = मूसल
जेमाओव = भोजन
नवइते = उतरैत
पडिचाँ = पटिआ
माड़व = मड़बा
उगारल = घेरिकए पकड़ब
आँजल = अंजन
डाढ़ल = दग्ध कएल
गौह = खोह/ गुफा
बिलुविअ = बाँटल जाए
मउल = मुकुट
डाढ़ति = जरि जायत
श्मश्रु = दाढ़ी (मुँह बला, खाए बला नहि)
अधँगँ = अर्धाङ्ग
गरुअ = अधिक
अभरन = पहिरबाक वस्त्र
बड़ाव = प्रशंसा
तौँ = तथापि
निसाकर = चन्द्रमा
सरिस = सदृश
तांतल = उत्तप्त
सैकत = बालू
हब = होएत
निधुवन = संभोग
आरा = आन
कहाओसि = कहबैत छथि
राजमराल = राजहंस
सारङ्ग = हाथी
सारङ्गवदन = गणेश
३. रसमय कवि चतुर चतुरभुज शब्दावली
रसमय कवि चतुर चतुरभुज- विद्यापति कालीन कवि। मात्र १७ टा पद्य उपलब्ध, मुदा ई १७ टा पद हिनकर कीर्तिकेँ अक्षय रखबाक लेल पर्याप्त अछि।
विहि - विधाता
सञानि - युवती
तनु - वयश, देह
आँतर - अन्तर, भीतर
गोए - नुकाएब
वेकत - व्यक्त
गेहा - ठाम
परि - प्रकारे
विरहानल - विरहक आगि
काँती - कान्ति
धमित - धिपाओल
निरूपए - निरीक्षण
परिहर - उपेक्षा
अचिरहिँ - अल्पकालहि
वामे - प्रतिकूल
निअ - निज, अपन
मलयज - चानन
सयानि - विरह विदग्धा नायिका
धनि - धन्या-नायिका
हेरसि - नेहारैत
हरषि - हर्षित भए
परिहरि - मेटाय
नखत - तरेगण
मधुरि-दल - उभय-ओष्ठ
मनसिज - कामदेव
अवनत - नीचाँ झुकनाइ
हुतासन - ज्वाला
४. बद्रीनाथ झा शब्दावली
मिलिन - मधुमक्खी, भौरा
रसाल - आमक गाछ, कुसियार
अतन्द्र - सावधान, जागरूक
खद्योत - भगजोगनी
दुर्वार - कठिन
यति - प्रतिबंध, जतेक बेर
अचलसेतु - अदृष्टलेख
विपिन - जंगल
तरणि - नाओ
अवाम - दहिन
गरुड़केतु - विष्णु
बौड़ि - उन्मत्त
तुषार - शीतल
ब्रह्मर्षिसुत - कश्यप
वारुणी - पश्चिम दिशा
कश्यप - मुनि ओ मद्यप
प्रतीची - पश्चिम दिशा
कुलाय - खोंता
साँझ - समाधि वा समुच्चय
जीव-अभिदान - नाम
कमान - धनुष
विधु - चन्द्रमा
हय - कनेक
नमि - नमस्कार
नीराजन - प्रातःकालक आरती
मानर - मृदङ
काहल - वाद्यविशेष
चतुविध - आङ्गिक, वाचिक, सात्विक, आहार्य
उड़ुगण - तरेगण
दैवज्ञ - ज्योतिषी
पाटल - लाल
पाटल - व्याप्त भेल
अविद्या - अज्ञान
अधित्यका - पर्वतक ऊपरक देश
कुशण्डिका - वेदिसम्मार्जनादि
मेधा - धारणावती बुद्धि
सम्भार - सामग्री
कज्जल - कारी (काजर)
भूयसी - एक प्रकारक दक्षिणा
दीठि - दृष्टि
नृपदार - रानी
परिचार - परिचर्या
फुलहरा - कोढ़िलाक झाड़
राजीव - कमल
मुदवारि - आनन्दक नोर
तृष - तृष्णा
पाञ्चजन्य - शङ्ख
जगत्ताताक - विष्णु
प्रत्यभिवादन - प्रतिप्रणाम
जूटिका - शिखा
गोए - नुकाए
गुरु-सन्तोख - दक्षिणाद्रव्य
अवसित - पूर्ण
श्रुतिवेध - कर्णवेध
प्रभाक - प्रतिभा
गुरु-शुद्धि - बृहस्पतिक शुद्धि
औड़ि - आग्रहविशेष
शिविका - पालकी
पूर्वाङ्ग-कृत्य - मातृकापूजादि
अदम्भ - निश्छल
वैजयन्त - इन्द्रक कोठा
कौशेय वसन - पाटक वस्त्र
भक्ष्य चतुर्विध - भक्ष्य-भात आदि भोज्य लाबा आदि, लेह्य चटनी
आदि, चोस्य आमा आदि
नीवार - ओइरी
अनुताप - पश्चाताप
बद्धकर - कृपण
विमति - विरक्ति
वैमत्य - मतभेद
प्रसाद - प्रसन्नता
अनुरोध - रोच
आर्य - श्रेष्ठ
जाचल - परीक्षित
सुभगप्रक्रिय - सुयश, सुव्यवहार
अचलेश - भूपति
बिहान - प्रभात
पट्टपटसार - उत्तम पाटक वस्त्र
विभूतिवत - ऐश्वर्य
एकतान - एकाग्र
वनी - वानप्रस्थ
और्ध्वदैहिक - परलोकोपकारक श्राद्ध
भोज-ओज - कृपणता
चञ्चरीक - भ्रमर
सोहल - शोभित भेल
छान - कलङ्क
अदक्षिण - प्रतिकूल
इन्दीवर - नील कमल
कीर - सूगा
अकानल - सुनल
पोषक-द्वेषक - पोसनिहार (कौआक) द्वेषी
श्मश्रु - दाढ़ी-मोछ
शैवाल-लतिका - सेमारक लत्ती
कुण्डलित - लपेटल
कर्णिकार - कनैल
ग्रीवा - गरदनि
इन्द्रायुध - वज्र
तमाल-साल - साँखु
शम्पा - विद्युल्लता
सहकार - आम
वकुलमुकुल - भालसरीक कली
पखान - पाथर
दमनक - दोनाफूल
अंसयुगल - दुहूस्कन्ध
अश्मसार - लोह
मणिबन्ध - पहुँचा
अबलासव - विरोध
दुहिण - ब्रह्मा
जम्भरिपु - इन्द्र
ऊरु - जाँघ
आरत - विरोध
नीरज - जलमे अनुत्पन्न, धुलि रहित, विरोध
इलातनय - पुरुरवा
सुरवैद्ययुगल - दुहू अश्विनीकुमार
क्षितिहरिहम - पृथ्वीन्द्र
परपुष्ट - कोयल, कोकिल, पसान्तरमे परिपुष्टा वैश्या
मधुप - भ्रमर, मद्यप
आतङ्करङ्क - निर्भय
काव्यक - शुकक
मधुभरि - बसन्तपर्यन्त
सुरभिमग - कामधेनुक मार्ग
अनीति - अतिवृष्ट्यादिरहित
शिक्षालोक - प्रकाश
तास्रव - उच्चध्वनि
जनपद - अपन देश
साभिनिवेश - आग्रहपूर्वक
धारणा-ध्याण - अष्टाङ्गयोगक छठम ओ सातम अङ्ग
प्रकृति - स्वभाव, प्रजा
पीयूष-यूष - अमृतसार
मार्तण्ड - सूर्य
सत्वक - सत्वगुण
सौम्य - बुधग्रह
वाक्पति - बृहस्पति
रवि-कल्प - सूर्य-सदृश
याचना-परायण - याचक
अभियोगी - अभियोग कएनिहार
कैरवामोद - कुमुदक सौरभ, शत्रुक आनन्द
अनुदार - स्त्रीसँ अनुगत
पुत्रेष्टिक - पुत्रोत्पादक यज्ञ
एकावली - मोतीक माला
मत्सरिता - अन्यशुभद्वेष
लालनसुहिता - लालने तृप्त वा अनुकूल
परिणाह - वृद्धि
प्रमत्त - असावधान वा उन्मत्त
बालवशामे - नवीन हथिनी
आविल - पङ्किल
अर्धचन्द्र - चन्द्रक ओ गड़हत्था
शिखिकलाप - मयूरक पिच्छ, विषम
बलाहक - मेघ
सरणी - आकाश
जड़भाव - शैत्य वा जलत्व
मेचक - नील
द्विरद - हाथी
धम्मिल्ल - केशपाश
विलक्ष - लज्जित
पथिक-चक्र - चक्रबाक ओ समुदाय
काली - कारीरङ्ग
तारा - आँखिक पुतड़ी
काली - प्रथमा महाविद्या
तारा - द्वितीया
चतुश्रुति - श्रुतिवेद, पढ़निहार ब्रह्मा
श्रुति - कान, सुनब
विश्रुति - सिद्धि
छीजक - नष्ट होएबाक
कलकण्ठी - कोकिला
तप्त-तपनीय - सोना, स्वर्ण
चिवुक - दाढ़ी
परिस्फुर - चञ्चल
लेखा - गणना
जूझल - लड़ल
महायति - अतिविस्तीर्ण
आहित - स्थापित
स्तूप - माटिक ढेरी
लिकुचक - बड़हड़क
श्रीफल-मद - विल्वफलक गर्व
गर्त - खत्ता
कुलाल - कुम्हार
नाभिभव - ब्रह्मा
शारदा - अदृश्या सरस्वती नदी (अलखरूप शारदा)
त्रिदिवस सारिणी - गङ्गा
वली - उदररेखा (तीनिवली)
बली - बलवान
पाटच्चर - चोर
केहरि - सिंह
नितम्बक - पर्वतक मध्य भागक
विधिओजक - प्रतापक
कृष-नीच - नीचाँ दिसिसँ क्रमहि पातर (जङ्घा-क्रम-कृष-नीच)
वेत्र-दण्ड - सोनाक अधिकार दण्ड
हंसक - नुपूर
दश-शशधर - नखरूप-दशचन्द्रक
लाजें बीतल - संकुचित भेल
अनृत-दूषण-कृपाणी - मिथ्यादोषक छुरी जेकाँ नाशक
कथाऽवशेष - अवशिष्ट वक्तव्य
हर्ष-नृत्त - गात्रविक्षेप
सभीक - भीत
सागर-परिपन्थी - सागरक प्रतिस्पर्धा कएनिहार
सम्पुटित - सङ्कुचित
विगेय - निन्दनीय
विजीहीर्षा - विहारक इच्छा
दलतर - पातक नीचाँ
अतिसुकवि-ऊह - सुकवि तर्कक अगोचर
कुवलय-रम्भा-समान- पृथ्वी-मण्डलक रम्भा सदृश
देवाङ्गनीय - देवाङ्गना-सम्बन्धी
रास - मण्डलाकार नृत्य
श्यामा - प्रियङ्गु
व्यामोहक - सम्मोहक
काल - यमराज
सारङ्ग - हरिण
कृतयुग - सत्ययुग
रण-एकतान - युद्धमे सर्वदा विजय पओनिहार
नृपति-पताकिनीक - राजसेनाक
विकटप्रतीक - दारुणाकार
पुण्डरीक - बाघ
दिनेन्दु-दीन - दिनक चन्द्र सदृश मलिन
सर्वसहाक - पृथ्वीक
लीन - प्रलयमे प्राप्त
विलीन - विलाएल
गोए - राखि
तदनुसार - पाछाँ
विदग्धताक - रसिकताक
गरुअ - पैघ
भूरमाक - भूतल लक्ष्मीक
शर्म - सुख
दलितपांशु - निष्पाप वा निर्दोष
भवितव्यवश्य - भाग्याधीन
अननुरूप - प्रतिकूल
प्रणिधानलीन - ध्यानमग्न
द्विजदत्त - सिद्धब्राह्मणसँ देल
दत्त-प्रदत्त - दत्तत्रेयसँ देल
उदेष - अन्वेषण
स्वरति - स्वविषयक प्रेम
धैर्य-कदर्य - अधीर
चरमदशाक - मृत्युक
अवगाह - आलोड़न
ओज - तेज
यशस्य - यशोजनक
अलेश - निश्छल
विजिगीषा - विजयक इच्छा
पुटपाक - दुइ सरबाक सम्पुटमे वस्तुकेँ मूनि पक
हयग्रीव - राक्षस जेकरा विष्णु मारल
अनन्त - अन्त-रहित
व्यपाय - परिपूर्ण
भङ्ग - पराजय
सङ्गर - युद्ध
तनु - कोमल
आश्रित-दुर्ग - दुर्गोपासक
दुर्ग - दैत्यसँ सेवित दुर्गम
सर्वसहा - पृथ्वी, तितिक्षा, सभ सहनिहारि पृथ्वी
मनु - मन्त्र
शिव - कल्याणकारक
कूर्च - ह्रीँ
शिखिजाया - स्वाहा
आखर - ह्रीँ गौरि! रुद्रदयिते! योगेश्वरी। हूँ फट स्वाहा
अन्वर्थाख्य - यथार्थनामा
सिद्धि - सिद्धिकेँ प्राप्त, सम्पन्न
ब्राह्मण - भोज-पञ्चाङ्ग पुरश्चरण (तर्पण मार्जन ब्राह्मण भोज
नृसोम)
वैन्य - राजा पृथु
फलक - ढाल
शिशुमार - सोँस
धन-शाद - पाँक
क्षेपणी - करुआर
पटमण्डप - तम्बू
यादस्स्वन - जलजन्तुक शब्द
पूत - पवित्र
द्विरदकाँ - हाथीकेँ
दानजल - मदजल
मन-अवसाद - दुःख
भव्य - शुभ, सुन्दर
आयुधराजि - चञ्चला, विद्युत
चैत्य - प्रसिद्ध गृह
दुर्ग - किला
सुचतुष्पश - चौबट्टी
अहम्पूविका - हम पहिने, तँ हम पहिने, एहि स्पर्धासँ दौगब
पवि - वज्र
अर्थ - प्रयोजन
प्रभूत - बहुत
लाघव - शीघ्रता
दनुज-तनुज - शरीरमे उत्पन्न
अर्भ - नेना
सुरसरणी - आकाश
शारिका - मएना
मेकल - नर्मदा नदीक उत्पादक पर्वत
परिपाटी - परम्परा
उत्कोच - घूस
वितान - विस्तार
प्रकोष्ठ - पहुँचा
अङ्गुरीय - अङ्गुठी
केतन - ध्वजा
निर्मम - ममताहीन
उदिखर - उदित
दीधिति - चन्द्रकिरण
दक्षिण - अनेकमे समानानुरागी ओ दहिन
मत्सरी - द्वेषी
विनिपातोन्मुख - अवनति दिस प्रवृत्त
मधु-सञ्जेँ - नामसँ
नृपदारक - राजकन्या
प्रमोद-निबन्धन - कारण
वन्दी - कैदी
पुरुषार्थ चतुष्ट्य - धर्म, धन, काम ओ मोक्ष
दीधिति-माली - सूर्य
नरनाथ - परिकर
औरस-सुत - अपनासँ धर्मपत्नीमे उत्पन्न पुत्र
चक्रधर - नारायण
ईषत्कर - सुकर
कुलिशायुधसँ - इन्द्रसँ
प्रमा-सालित - यथार्थज्ञानसँ स्फीत
उक्ति-प्रगल्भ - बजबामे प्रौढ़
शमन - यमराज
विधेय - कर्तव्य
दुर्विपाक - अधलाह फल
सङ्कल्प-कल्पना - मानस कर्मक रचना
स्तम्भित - जड़ीभूत
सकल-करण-परिवारक- इन्द्रिय वर्गक
भव-झरिणी - संसार नदी
शशिकान्त - चन्द्रकान्त मणि
रजनिकर - रुचिएँ- कान्तिएँ
निष्कपट - रुचिएँ-प्रीतिएँ
द्रुत - शीघ्र
विद्रुत - पघिलल
मानसिक - व्यतिक्रमहुक-मानस-व्यभिचारहुक
उन्मिषित - बढ़ल
प्रकृतिस्थ - चैतन्य-युक्त
कालासुर - कालकेतु राक्षस
अमान - अपरिमित
अमानव - अलौकिक
कुरङ्गित - हरिण जेकाँ कुदैत
विक्रम - विलक्षण वा विगत छै क्रम जाहिमे
पञ्चानन - सिंह
आरभटी - आडम्बरपूर्ण चेष्टा
दुरभिसन्धि - दुराशय
कान्दिशीक - भयसँ पढ़ैनिहार
अनाथ - विधवा
धृष्ट - प्रौढ़
निकृष्ट - नीच, छोट
उपरोधन - धैरव
अनारम्भ - आरम्भ नहि करब
भानुमान - सूर्य
कृकलाश - गिरगिट
सन्नाह - युद्धक उद्योग
मधु-मधुरिमार्ह - द्राक्षासदृश-मधुर सम मधुर, दाखसन
सर्वज्ञम्मन्य - अपनाकेँ सर्वज्ञ माननिहार
वीरमानी - अपनाकेँ वीर माननिहार
नृशंस - क्रूर (वातक)
अपलापपरा - लाथ करबामे तत्पर
प्राथमिक - पहिले बेरुक
प्रकार - दिवारक
अज - बत्तू
कुरङ्ग - हरिण
गवय - गो सदृश नीलगाय
शार्दूल - बाघ
साम्हर - हरिणसन जन्तु
भूतनाथ - महादेव
प्रमथराजि - गणसमूह
शृङ्गी - शृङ्गवाला
जटी - जटाधारी
वारणरद - हाथीकसन दाँतबाला
पुच्छी - नाङ्गरि
कृत्तिपटी - बाघक चाम पहिरनिहार
चत्वर - चट्टान
भीरुभीमा - भीरुक भयङ्कर
पटल - पटि गेल
जन्य - युद्ध
राजन्य - क्षत्रिय
भिन्दिपाल - ढेलमासु सन गुल्ली फेंकबाक अस्त्र
तोमर - मन्थन दण्डसन अस्त्र
कृपाण - तरुआरि
परशु - फरुसा
असि धेनु - खाँड़, छूड़ा
भुशुण्डी - अग्निप्रधान अस्त्र
परिध - हथौड़ी
दनुजभुवन - पाताल
जलद-छाया - मेघक छाहरि, तत्सदृश अस्थिर
मृत्युशक्ति-उत्क्रान्तिदा- मृत्युकेँ ’उत्क्रान्तिदा’ नामक शक्ति छन्हि जाहिसँ
जीवोत्क्रमण करैत छथि
वृन्दारक-वृन्दक - देवसमूहक
निजचमू - सेना
पताल - अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल,
पाताल
सन्देश - संवाद (समाद)
त्रिदिवहुँ - स्वर्गहुँ
प्रत्यूष - प्रातः काल
दानव-भोगिनी - राजाक सामान्य स्त्री
अभ्यास - योगाभ्यास
क्लेश - अविद्या-स्मिता-राग-द्वेष ओ अभिनिवेश
जनि - जन्म
भोगभू - भोगस्थान वा भूमि
भुजगभुवन - पाताल
नाक - स्वर्ग
सहस्रार - शिर स्थित सहस्रदल- कमलाकार चक्र
निर्मन्तु - निरपराध (निर्दोष)
फेरि - घुमाए
फेरि - पुनि
अन्तराय - विघ्न
याचकपटलीकल्प - याचकसमूहजेकाँ
रहस्योद्भेदसँ - गुप्तप्रीतिक प्रकाशसँ
लोकपति - नरेश
मध्यमलोक - मर्त्यभुवन
अधोभुवन - पाताल
नररिक्त - मनुष्यसँ रहित
तूर्ण - शीघ्र
उद्देश - उच्चारण
उपेन्द्र - वामन भगवान्
कन्याक - शुक्रक पुत्री देवयानीक
अर्थना - याचना
सपरिकर - परिवार परिजन सहित
पुरुषसूक्त - “ओँ सहस्रशीर्षा” इत्यादि सोड़ह ऋचा
दुइ - नारायण ओ तुर्वसु (निज दुइ बापक परिचय)
प्रतिग्रह - दान लेब
लाजहोम - लज्जाक हवन
लाजहोममे - लावासँ हवनमे
प्रणयकोपक - मानक
अपसारण-गति - हटएबाक उपाय
परमाणु - सूर्यक प्रभामे दृश्य रेणुक छठम भाग
द्वयणुक - दू परमाणु
पूगीफल - सुपारी
व्यङ्गयवचन - व्यङ्ग्यार्थ-बोधक वचन
दिवसचतुष्टय - चारि
गानचातुरी-विवरण - प्रकाशन
कान-सुधारस-वितरण- दान
चारिमशुचि - चारुतासँ भूषित
पाँकल - पाँकमे लागल
निमीलित - सङ्कुचित
कीलित - बद्ध (पीड़ित)
मदन-रुजा - रोग
निर्वांप - शान्ति करब
समाजित - पूजित
उद्भेद - विकास
चलदल - पीपड़
मन्मथ-घर्षण - प्रगल्भता
कल्पकल्प - कल्पसदृश
आशा - दिशा
विदग्ध - विकल, रसिक
सुरतवितान - क्रीड़ा-कलाप
वितानल - विस्तीर्ण कएल
संभोग - शृंगारक पूर्वाङ्ग वा केलि
विप्रलम्भ - शृङ्गारक उत्तराङ्ग वा विरह
अवसित - समाप्त
विधुर - विरहित (दीपक-विधु-विधुर)
अनवम - निर्दोष
विरस - निःस्पृह (विमुख)
पञ्चयज्ञ - ब्रह्मयज्ञ (वेद अध्ययन-अध्यापन), पितृयज्ञ (पितरक
तर्पण ओ नित्यश्राद्ध), देवयज्ञ (हवन), भूतयज्ञ
(वैश्वदेववलि), नृपज्ञ (अतिथि-सत्कार)
पर्व - पाबनि
आन्तरिक - अन्तःकरण
मञ्जूषा - पेटी
भूमिनेता - पृथ्वीपति
जरती - बृद्धा
वैजयन्त - इन्द्राणीसँ भूषित इन्द्रप्रासादक
पति-परिचार - स्वामीक सेवा
मन्त्र - विचार
कान्त - प्रिय
श्लाधापरायण - प्रशंसामे तत्पर
धव - धावा
मधुपा - मद्यपायिनी
भूरि - बहुत
सर्वसहासमेत - सभ (दुःखकेँ) सहनिहारि पृथ्वी सहित
कासर - महिसा
हिण्डोर - मचकी
शैलूष-कुहना - नटक माया
संगमे हरिमोहन झा, यात्री, धूमकेतु, साकेतानन्द, रामभद्र, धीरेन्द्र, कापड़ि, मलंगिया, नचिकेता, कुलानन्द मिश्र, राजकमल, राजमोहन झा, सुभाषचन्द्र यादव, प्रेमशंकर सिंह, रमानन्द झा “रमण”, मोहन भारद्वाज, रमानाथ झा, जीवकान्त, प्रभास कुमार चौधरी, लिली रे, इलारानी सिंह, रामलोचन ठाकुरकेँ पढ़ी, आ दीनबन्धु झाक धातुरूप आ रमानाथ झाक मिथिलाभाषा प्रकाश, आ भारत आ नेपालक कक्षा नौ-दस केर पोथी सेहो घोंटि जाइ आ तखन जे अहाँ मिथिलाक्षर सेहो नीक जेकाँ पढ़ी आ लिखि सकी तँ अपनाकेँ मैथिली साहित्य परम्परासँ जोड़ि सकब आ मेडिओक्रिटी सँ बाहर आबि सकब। मैथिली पत्र-पत्रिका सभ सेहो पढ़ी आ अनुवाद साहित्य सेहो। संगहि विदेह-मिथिला-तीरभुक्ति-तिरहुतक इतिहास आ महान पुरुष आ महिला लोकनिक कृति आ चरित्रक अध्ययन सेहो आवश्यक। एतेक सबक पूर्ण भेलाक बाद जे साहित्य अहाँक लेखनीसँ निकलत तकर स्वाद फराक रहत ।
कृषि-मत्स्य शब्दावली (फील्ड-वर्कपर आधारित)
माँछ वंशीसँ सेहो मारल जाइत अछि।
छोट माँछक लेल जाल- भौरी जालक प्रयोग होइत अछि।
भिरखा- हाथसँ उठा कए फेंकल जाइत अछि। एहिमे सूत आ लोहाक गोली प्रयोग होइत अछि, २५-२५ ग्रामक लोहाक गोली लगभग २-१/२ सँ ५ किलो धरि प्रयोगमे आनल जाइत अछि। अन्ता जाल छोट होइत अछि आ कछारमे रातिमे लगाओल जाइत अछि।
कोठी जाल पैघ होइत अछि आ एहिमे बाँसक प्रयोग होइत अछि।
बिसारी जाल- दिनमे माँछ हरकि जएतैक से रातिमे खुट्टी लगा कऽ रातिमे माँछ मारल जाइत छै।
चट्टी जाल- प्लास्टिकक, पैघ-छोट दुनू, दिनमे प्रयुक्त, आषाढ़-साओन दुनू मे। ५-१० मिनटमे उठाओल जाइत छै।
सूतक मोट पैराशूट जाल, सूत आ नाइलनक मिश्रणक करेन्ट जाल, सूतक बड़का हाटा जाल होइत छै।
पैराशूटसँ छोटकी माँछ उड़ि जएतैक।
पैघ मछली बड़का वंशीसँ, बड़का चट्टी जालसँ, सूताक महाजालसँ मारल जाइत अछि।
पैघ छोट दुनू माँछ बाँसक जंघासँ मारल जाइत छै। एकरा ४ हाथ खड़ा नारियल आ नाइलोनक डोरीसँ बान्हल जाइत छै।
बाँसक करचीक छीपसँ सेहो माँछ मारल जाइत छै।
पटुआक सण्ठीक १००-२०० पुल्ली एक संग लगा कए सेहो माँछ मारल जाइत छै।
हाटा जाल किलोमीटर धरि पैघ होइत अछि आ सूताक बनैत अछि।
चाँच कहड़ा बाँसक होइत अछि।धार/ बदहाल घेरकेँ मारल जाइत अछि। पानिकेँ फुला कए डगरी लगाओल जाइत छै, चाँच फहड़ासँ घेरल जाइत अछि।
माँछक प्रकार
डाँरा मछली (डेरका मछली), मूँहा मछली, पोठी, लत्ता (पिआ माँछ), गड़इ, पलवा, टेंगड़ा, सिंघी, माँगुड़, चपड़ा, पैना, रेवा, गड़ही, उरन्था, मोहुल, बुआरी, बामी, बगहार, चेलवा, कौअल, गोर्रा, सौल, भौरा, कजाल, कलबौस, चित्तल, भोइ, कत्ती, भौकुड़ी, सिलोन, रेहू, मिरका, बिलासकप, सिल्वरकप, चाइना माँगुर, कबइ, चाइना कबइ।
दरबा- छोट, पातर- २-३ इन्चक, पीठपर कारी, बगल सफेद
गड़ई- कारी
चोपड़ा- चाकर, कारी, मलिन
पलबा- दुनू दिस काँट, पीठपर सेहो काँट, रंग- पीयर-उज्जर, मोंछ सेहो होइत छै।
टेंगड़ा- पैघ माँछ, एकरो तीन टा काँट, मुँहपर मोँछ।
सिंघी- पातर, दू टा काँट दुनू दिस, लाल रंगक आ लाल आ हल्का कारी
मँगुरी- मोट आ महग सेहो।एकरो दू टा काँट, लाल आ हल्का कारी
पैना- सफेद रंगक, पीठपर काँट
रेवा- सफेद, पौआ-आधा किलोक
डढ़ी- पीठपर काँटा, सफेद
उरन्था- पीठपर काँट, नीचाँ गामे झुकल, सफेद
भालु- लम्बाइ मुँह, सफेद- खड़ा(पीयर), ऊपरमे काँटा, नाभिक लग काँट (सभ माँछमे)
बोआली- पैघ मुँह- २० किलो धरि, सफेद, पीठपर काँट, पखना दुनू दिस (सभ माँछमे)
बामी- लम्बा, बिलमे रहैत अछि, मुँह आगू, गोल मुँह, सूआ जकाँ लम्बा, पीठपर काँट, नाभिपर दू टा काँट
बघार- छोट, १ पौआसँ क्विंटल भरिक, कारी-खैरा (पीयर), काँट- पीठपर एकटा, बगलमे दू टा, पुच्छी-चाकर, मुँह चापट, चकड़ाई- बेसी।
चेलबा- उज्जर, काँट नहि होइत छै। चलैक लेल दुनू दिस पखना, माँछमे तेजगर।
कौअल- सफेद, मुँह नमगर।
गोर्रा- मोँछ, दाढ़ी, काँटा, आगाँमे टेढ़
साउल- लाल आ पीयर, नमगर, २-३-५ किलोक
भौरा-(गजाल), साउल, चितफुटरा, पैघ २०-२५-४० किलो तक, गोल-गोल उज्जर, हरियर आ कारी
कलबौस- रंग हल्का कारी
अंदाजी माँछ
चित्तल- चकरगर बेसी, २०-२५ किलोक, २-३ फीट चकरगर
सिलोन- पालतू,३-४ किलोक,पोखरिमे पोसल जाइत अछि।
रोहु-पीयर, हल्का उज्जर, पीठपर काँट
मिरका- हल्का लाल सफेद
सिल्वरकप- पालतू
चैना माँगुर- चलानी (पालतू), दुनू दिस काँट
चैना कबइ- पालतू (चलानी), पीठपर जहाँ-तहाँ काँट
कबई- कनफर आ पीठ दुनू ठाम काँट
चेंगा माँछ- सुखायलोमे दूर धरि चलि जाइत अछि, कबई जकाँ ।
आब किछु दोसर जलजीव:-
सौंस- पानिमे माँछ खाइत अछि, आदमीकेँ नोकसान नहि, आदमी संगे खेलाइत अछि, सीटीक अवाज (डोलफिन)
घड़ियाल- कुर्सेला लग गंगामे, मुँह लम्बा, एक-डेढ़ हाथ,दाँत- आँगुर जेकाँ, रंग लाल, पुछरी नमगर, ३ हाथ
बोँछ- आदमीक रंग रूप, कारी, माथपर चूल- केश पकड़िकेँ डुमा दैत छै
आ कृषि शब्दावली:--
जोड़ा बैल/ हर
ईश- हरमे जोड़ि कऽ पालोमे बान्हल जाइत छै।
लगना
पालो- कन्हापर
पालोमे दू टा कनैल दुनू बगल बड़दकेँ एने- उने (एम्हर-ओम्हर) नञि होमए दैत छै।
कनैलसँ हटि कऽ एक सवा फीटक डोरी बान्हल जाइत छै। समैल (पौन फीटक लकड़ीक/ बाँसक) मे डोरी बान्हल जाइत छै।
ईशक नीचाँमे पेटार ईशकेँ खुजए नहि दैत छै, ऊँच-नीच करए दैत छै।
हलमे पुट्ठी, नीचाँमे दू-फीटक अगल फल्ली पुट्ठीमे सेट कएल जाइत छै, माटि उखाड़ैत छै।
परहत (लगना)- हरवाह एहिपर हाथ धरैत अछि। तीन फीटक/ ६ इन्चक मुट्ठी पकड़ैबला लगनामे ठोकल जाइत छै (मुठिया)।
नाधा- पालो-ईशमे बान्हिकेँ जोड़ल जाइत छै, डोरी होइत छै ४-५ फीटक।
दू टा मैडोर (डोरी)- १०-११ फीटक दू टा- एकरा चौकीमे बान्हि कऽ बड़दमे बान्हि कऽ हरवाहा चौकी दैत अछि।
चौकी- (बाँस/ लकड़ीक) ६-७ फीटक - एहिपर हरवाह चढ़ि कऽ चौकी दैत अछि। हरवाहाक हाथमे एक टा झूर/ ज्वोली/ लाठी बड़द हाँकए लेल रहैत अछि।
गेहूँक जोताई ३ इन्च गहरा कऽ ४-५ टा चास दऽ होइत अछि।
मक्कइ लेल ४-५ इन्च गहराइ करए पड़ैत अछि।
बीया- एक एकड़ (१०० डिस्मिल) मे २ मन गहूमक बीया, १० किलो मक्कइक बीया।
खाद- एकड़मे २० कि. डी.ए.पी., ५ किलो पोटाश, ५ किलो यूरिया, ५ किलो जिंक गहूम बाउग करबा काल देल जाइत अछि।
मकइमे डेढ़ सँ दू फीटक भेलाक बाद माटि चढ़ाओल जाइत अछि। २ कतार २ फीट चौड़ाइसँ। एकड़मे २ क्विंटल खाद देल जाइत अछि। १०० किलो डी.ए.पी., ५० किलो यूरिया, २० किलो साल्फिक, १२० किलो पोटाश, १० किलो जिंक। पानि पटवन समयमे खाद दऽ कऽ माटि चढ़बैत छियैक, फेर पानि पटबैत छियैक। पानि पटेलाक बाद यूरिया एक एकड़मे एक क्विंटल देल जाइत अछि।
आब तर-तरकारीक प्रकार :-
सिंघिया करैला- बड़ा- हाइ ब्रेक/ प्लेन
छोटकी करैला- हजरिया/ जुल्मी
सफेद करैला- पटनिआ (नजली- मध्यम खुटक)
तारबूज-
नामधारी-स्वादिष्ट- भीतरमे लाल, ऊपरमे सफेदी/ चितफुटरा (हरियर-उज्जर)
माइको- हल्का कारी
पहुजा- माइकोसँ बेशी कारी
राजधानी- कारी रंगमे
महाराजा- पैघ छोट कारी रंगमे
सैनी आ सुगरदीबी- कारी रंगक
नाथ- हल्का चितफुटरा (उज्जर/ हरियर)
गंगासागर- कुम्हर जेकाँ उज्जर साफ
सोरैय्या- चितफुटरा
खीरा
जुल्मी- छोट
हाइब्रीड
माइको- नमगर/ हरियर/ पीअर
महाराजा- खीरा
खेतीबारी- हरियर रंगक, नमगर कम, पाछाँमे मोट बेशी आगाँ कम।
https://store.pothi.com/book/गजेन्द्र-ठाकुर-नित-नवल-सुभाष-चन्द्र-यादव/
https://store.pothi.com/book/गजेन्द्र-ठाकुर-नित-नवल-सुभाष-चन्द्र-यादव/
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पंजी-प्रबन्ध पंजी प्रबन्धपूर्व मध्य कालमे ब्राह्मण कायस्थ आऽ क्षत्रिय वर्गक जाति शुद्धताक हेतु निर्मित कएल गेल। एहि अंकमे ब्राह्मणक पंजी-प्र...
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खण्ड-१ प्रबन्ध-निबन्ध-समालोचना प्रबन्ध निबन्ध समालोचना फील्ड-वर्कपर आधारित खिस्सा सीत-बसंत १.३ मायानन्द मिश्रक इतिहास बोध-प्रथमं शैल पुत्री...
hey very good kay likha ha tumne
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