भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति
भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति
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२०००-२०२२ सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ आर्काइवक
सर्वाधिकार रचनाकार आ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि। भालसरिक गाछ जे सन २०००
सँ याहूसिटीजपर छल
http://www.geocities.com/.../bhalsarik_gachh.html ,
http://www.geocities.com/ggajendra आदि लिंकपर आ अखनो ५ जुलाइ २००४
क पोस्ट
http://gajendrathakur.blogspot.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html (किछु
दिन लेल
http://videha.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html लिंकपर, स्रोत
wayback machine of
https://web.archive.org/web/*/videha 258 capture(s) from 2004 to
2016- http://videha.com/ भालसरिक गाछ-प्रथम मैथिली ब्लॉग / मैथिली ब्लॉगक
एग्रीगेटर) केर रूपमे इन्टरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितक रूपमे
विद्यमान अछि। ई मैथिलीक पहिल इंटरनेट पत्रिका थिक जकर नाम बादमे १ जनवरी
२००८ सँ "विदेह" पड़लै। इंटरनेटपर मैथिलीक पहिल उपस्थितिक यात्रा विदेह-
प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि, जे
http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि। आब “भालसरिक गाछ”
जालवृत्त 'विदेह' ई-पत्रिकाक प्रवक्ताक संग मैथिली भाषाक जालवृत्तक
एग्रीगेटरक रूपमे प्रयुक्त भऽ रहल अछि। विदेह ई-पत्रिका ISSN 2229-547X
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पारिश्रमिकक इच्छुक विदेहसँ नै जुड़थि, से आग्रह। रचनाक संग रचनाकार अपन
संक्षिप्त परिचय आ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक
अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक)
ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात
दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई पत्रिकाकेँ श्रीमति
लक्ष्मी ठाकुर द्वारा मासक ०१ आ १५ तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।
स्थायी स्तम्भ जेना
मिथिला-रत्न, मिथिलाक खोज, विदेह पेटार आ सूचना-संपर्क-अन्वेषण सभ अंकमे
समान अछि, ताहि हेतु ई सभ स्तम्भ सभ अंकमे नइ देल जाइत अछि, ई सभ स्तम्भ
देखबा लेल क्लिक करू नीचाँ देल विदेहक 346म आ 347 म अंक, ऐ दुनू अंकमे
सम्मिलित रूपेँ ई सभ स्तम्भ देल गेल अछि।
राजाक मन्त्रीक सवारी खगनाथक दरबज्जापर! दुइये दिनमे कीसँ की भऽ गेल। ओ दूत जा कऽ किछु कहि तँ नञि अएलै जे खगनाथ अपन बेटीक बियाह लेल धरफरायल छथि। से सतर्की देखियौ। लोक सभ गर्दमगोल करैत। सभ स्वागतमे जुटल। आ हमहुँ सभ चीजक जाएजा लैत रही। साँझ होइत-होइत हमर पिता सेहो आबि गेल छलाह। ओम्हर राजाक मन्त्रीक स्वारी गेल आ एम्हर हमर पिता माथपर हाथ रखने गुम्म रहि गेलाह। खगनाथ सेहो मौन।
राजा अपन बियाह मालतीसँ करबाक प्रस्ताव खगनाथ लग पठेने छलाह। महाराज बीरेश्वर सिंह। कहू तँ। अपने चालीससँ उपरे होएत आ एहि तेरह-चौदह बरखक बचियासँ बियाहक प्रस्ताव। खगनाथक की ओकाति जे ओकरा मना करितथिन्ह।
हमर पिता चिन्तित जे आब पाँजि नहि बाँचत।
ओहि दिन साँझमे कोनटा लग मालतीसँ हमर भेँट भेल। करजनी सन-सन आँखि फुलल, जेना हबोढ़कार भऽ कानल होअए। की सभ गप केलहुँ मोनो नञि अछि। हँ आखिरीमे हम कहने धरि रहिऐ जे सभ ठीक भऽ जाएत।
७
जमसममे बीरेश्वर सिंह लेल लड़की निहुछल गेल!
जमसम गाममे पोखरि खुनाओल गेल। ओतए मन्दिर बनल जे राजा दोसराक मन्दिरमे कोना पूजा करताह।
मुदा हमहुँ रही मधुरापति कविक पुत्र केशव।
बियाहक दिन लगीचे रहै आ दोसर कोनो दिन सेहो नञि रहै। आ ओहि दिन मालतीसँ सभ गप भइये गेल छल।
कटही गाड़ीमे आगूक चाप आ पाछूकउलाड़,आगाँक चाप नीक कारण पाछाँउलाड़भेलापर गाड़ी उनटि जाएत। मुदा हम ओहिना गाड़ीकेँ उलाड़ केने बँसबिट्टी लग मालतीक इन्तजारीमे रही।
ओ आयलि आ गाड़ीपर बैसि गेलि। जे कियो रस्तामे देखए से डरे नञि टोकए जे गाड़ी ने उनटि जाइ एकर। एकटापतरंगी चिड़ै देखि उल्लसित होअए लागलि मालती तँ आँगुरसँ हम ओकर ठोढ़ बन्न कऽ देलिऐ।
मालतीकेँ लऽ कऽ गाम आबि गेलहुँ, धोती रंगाइत छल। फेर जे मालतीक पता करबाक लेल आएल रहए तकरा पकड़ि राखल। आ ’कन्यादान के करत’क अनघोल भेलापर ओकरा सोझाँ अनलहुँ जे कन्यादान यएह करबाओत।
सलमशाहीचमरउ जुत्ता उतारि धोती पहीरि हम विवाह लेल विध सभ पूर्ण केलहुँ। मालतीक सीथमे सिनुर हमरे हाथसँ देब लिखल जे रहै।
आगाँक आरोप प्रत्यारोपमे सोहागोपर चरित्रहीनताक आरोप लगाओल गेल रहै आ सिद्ध करबाक प्रयास कएल गेल रहै जे हुनकर पुत्र अपन माएक प्रेमी सभसँ आजिज आबि कऽ आत्महत्या कएने छल। जटाशंकर बचि गेल रहए। आब तँ ओ रिटायर भऽ सरकारी पेंशन उठा रहल अछि।
५
बिहारशरीफ घुरि हम बूढ़ीक पेटीशन दाखिल कऽ दै छी। पतिक मृत्युक बाद ऑफिस बला सभ सर्टिफिकेटक अभावमे ओकर जन्म तिथिपाँच साल घटा देने रहै, कोनो जानि बूझि कऽ से नहि। मुदा बुढ़िया तै जमानामे मैट्रिक छल। मैट्रिकक सर्टिफिकेटक जन्म तिथिक हिसाबसँ पाँच साल आर नोकरी छै। चलू, जे भेलै एकरा संग, देखी आब। अगिला साल रिटायरमेन्ट छै, जे पाँच साल बढ़ि जएतैक तँ आर नीक। हमर ट्रांसफर तँ भइये गेल रहए से हम अपन झोर-झपटा आ समान चीज-बौस्तु लऽ कऽ अपन नव गन्तव्य स्थलपर बिदा भऽ जाइत छी। कार्यालयसँ जाइत काल बुढ़िया भेटैत अछि, कल जोड़ने ठाढ़, जेना कहि रहल होए- धन्यवाद। हम ओहि काल्पनिक धन्यवादक उत्तर दै छी- काज भऽ जाए तखन ने।
६
कएक साल बीति गेल। किछु व्यस्तताक कारणसँ आ किछु पेटीशन अस्वीकृत भऽ जएबाक सम्भावित सम्भावनासँ परिणामक प्रति उत्सुक नञि रहै छी। मुदा मंडल सर एक दिन भेटि जाइ छथि।
“ओकर पेटीशन स्वीकृत कऽ लेलकै विभाग। रिटायरमेंटक दिनसँ पहिनहिये आदेश आबि गेल रहै। आब ओ पाँच साल आर संघर्ष करत, सरकारी कॉलोनीक गेटपर अपन बेटाक मूर्ति लगेबाक लेल वा ….वा आन कोनो संघर्ष”।
घर नहि झोपड़ी कहू। गामक मोटामोटी सभ अँगनामे एकटा विधवाक घर रहैत छै। मुदा जखने परिवार पैघ होइत अछि तँ क्यो अपन घरक मुँह घुमा लैत अछि तँ क्यो बेढ़ बना दैत अछि। आ कखनो काल ओहि राँड़-मसोमातक घरक स्थान परिवर्तन भऽ जाइत अछि, आ से तेहने सन स्थिति छल अनमना दीदीक घरक।
मुदा अनमना दीदीक घर बान्हक कातमे छन्हि। सोझाँक मजकोठिया टोलक छथि मुदा घुसकि कऽ हमर घर लग आबि गेल छथि।समङगर लोक सभ। आस-पड़ोसक धी-बेटी दिनमे, दुपहरियामे जाइत छथि। ढील-लीख बिछबाक लेल। ककर ओ लगक छथि, से मरलाक बाद पता चलत। श्राद्धक समए जे लगक अछि से आगि देत आ तकरा घरारी भेटतैक। मुदा सेहो सम्भावना आब नहि। झंझारपुरमे सासुर छलन्हि अनमना दीदीक। ओतए अपन बहिनिक बेटाकेँ अपन बेटा बना राखि लेने छथि। मुदा नैहरक मोह नहि छूटल छन्हि।
- नै यौ तीर्थ-बर्त आ भगवानक काज मँगनीमे नहि करबाक-करेबाक चाही। हम कोनो रानी-महरानी छी जे बेगारी खटा कऽ मन्दिर बनबाएब आ पोखरि खुनाएब।
मुदा ढलैय्या आ प्लास्टर!
२
सड़कक कातक भगवानक एहि मन्दिरक सटल एक बीघा खेत, सभटा अनमना दीदीक। ढलैय्या भऽ गेलाक बाद भगवानक नामसँ लिखि देतीह। जे अन्न-पानि होएतैक ओहिसँ भगवानक घरक चून-पोचारा आ सफाई होइत रहत।
कतेक दिनसँ पड़ोसी पछोड़ धेने छन्हि।
“दीदी। तोहर सभसँ लगक भातिज हमहीं छियौ। ई जमीन हमर घरसँ सटल अछि। पहिलुका लोक बान्ह-सड़कक कातमे छोट जाति आ मसोमातकेँ घर बना दैत रहै। मुदा आब जमाना बदलि गेल छै।आब तँ सड़कक कातक घर आ जमीनक मोल बढ़ि गेल छै। तूँ आइ ने काल्हि मरि जएमे। तखन ई जमीन हमरा सभ पटीदार लेल झगड़ाक कारण बनत। ”
तूँ आइ ने काल्हि मरि जएमे- कहि कऽ देखियौक कोनो सधवाकेँ। मुदा मसोमातसँ कहि सकै छिऐ- भने ओकर पोसपुत्र- पुतोहु- नैत-नातिन होइ। ठीक छै बाबू।
“भगवानक लेल निहुछल अछि ई जमीन। अहीसँ तँ हमर गुजर चलैए। जे किछु पेट काटि कऽ बचबैत छी से कोशिल्या- भगवानक घरक ढलैया आ प्लास्टर लेल। झंझारपुरक जमीन-जालक पाइ सभ बेटा पुतोहुक छन्हि। से हम कोना.. ”
“फेर दीदी। तूँ गप बुझबे नहि कएलेँ। जा जिबै छेँ राख ने। कर ने गुजर। हम तँ कहै छियौ जे तोरा मरलाक बाद जे पटीदार सभ आपसमे लड़त से तोरा नीक लगतौ। आ हम तोहर सभसँ आप्त भातिज...।”
देखियौ, कहै छै जे। भातिज बाहरमे नोकरी करै छथि। जे गाममे रहैए से तँ भेँट करएमे संकोच करैए जे किछु देमए नहि पड़ए। ई मुदा जहिया गाममे अबैए आ हम गाममे रहै छी तँ भेँट करबाक लेल अबिते अछि। आ एहि बेर तँ हम झंझारपुरमे रही तँ ओतहु आएल रहए। सैह तँ कहलियै जे ई कोना कऽ फुरेलै। से आब बुझलिऐ। मुदा ई ढलैय्या कोना कऽ होएत। प्लास्टर तँ बादोमे करबा देबै। ततेक चुबैए, एहि साल तँ आरो बेशी चुबए लागल अछि। पिटुआ छत, दुइयो साल नहि चलल। ओकरा ओदारि कऽ ढ़लैय्या करत करीम मियाँ आ लछमी मिस्त्री, तखने ठीक होएत। देखै छी।
भातिजक आबाजाही बढ़ि गेल अछि आइ-काल्हि।
“ठीक छै दीदी, अदहे जमीन दऽ दिअ। दस कट्ठामे अहाँक भातिजक बसोबासक संग भगवानक लेल सेहो जमीन बचि जाएत।”
“मुदा बान्हपर अहाँक घरारीक लागि तँ नहिए होएत। तखन की फएदा होएत अहाँकेँ।”
“छोड़ू ने। एखनो तँ टोल दऽ कऽ अबिते ने छी। चौक-चौबटिया आ बान्हक कातमे घर बनेबाक तँ आब ने चलन भेल अछि। आ आब चौबटिया आ बान्हक कातमे तँ भगवानेक घर ने शोभतन्हि। दस कट्ठाक दस हजार जहिया कहब हम दऽ देब। रजिस्ट्री बादेमे बरु होएत।”
“ठीक छै। तखन हम सोचि कऽ कहब। एक बेर बेटा पुतोहुसँ पूछि लैत छी।”
कोन उपाए। भगवानक घरक देबाल सभमे कजरी लागि गेल अछि। देबाल छोड़ू, बजरंगबलीक मूर्तिमे सेहो कजरी लागि गेल अछि। अनमना दीदी सोचिते रहि गेलथि। आ सोचिते-सोचिते भोर भऽ गेलन्हि।
दऽ दै छिऐ जमीन। आर उपाय की। नञि।
बेटा-पुतोहु कहलखिन्ह जे माए। ओतुक्का जमीन तँ भगवानक छन्हि। आ हम सभ से शुरुहे सँ बुझै छी। मुदा देखब। ओ कोनो चालि तँ नहि चलि रहल अछि।
“कोन चालि। पाइ तँ किछु बेशीए दऽ रहल अछि।”
भगवानक मन्दिरक लेल, दस कट्ठा कम थोड़बेक होइ छै। पाइ जुटबैत-जुटबैत मरि गेलहुँ। ई अधखरु मन्दिर ओहिने रहि जाएत ? गप करै छी लछमी मिस्त्री आ करीम मिआँ सँ।
दस हजारमे ढलैय्या, प्लास्टरक संग चहरदिवारी सेहो बनि जाएत। एस्टीमेट बनि गेल। रजिस्ट्रीक अगिले दिनसँ काज आरम्भ। आ भादवक पहिने समापन।
लोक कहै छै झुट्ठे जे लोकक श्रद्धा भगवानपर सँ कम भेल जाइ छै। ई दासजी। कहियो ने भेँट आ ने जान पहिचान। दू टा रजिस्ट्रीक कागत- एकटा दसकठिया भातिजक नाम आ दोसर भगवानक नाम, मुदा एक्के फीसमे बना रहल छथि। साफे कहि देलखिन्ह- दीदी भगवानक जमीनक रजिस्ट्रीक पाइ हम एकदम्मे नहि लेब। जे बेर-बखतपर काज आबए सैह ने अप्पन लोक। ठीके बूढ़-पुरान कहि गेल छथि। यैह सभ देखि कऽ ने कहने छथि।
“बौआ बड्ड उपकार अहाँक। आ पाछू दिसका जमीनक लागि तँ नञि बान्ह दिससँ अछि आ नहिये टोल दिससँ।”
“दीदी। अहाँ हमरा जमीन बाटे जाऊ ने के मना करत? आ आरिपर बाटे खेतमे सभ जाइते अछि। जकर खेत बान्हक कातमे नहि छै से की अपन खेतपर नहि जा सकैए। अहाँ तँ नबका लोकक भिन्न-भिनाउज बला गप कऽ रहल छी।”
“भगवानक जमीन अदहा बेचि कऽ भगवानक घर बनबितहुँ, मुदा मन्दिरक सटल जमीन रजिस्ट्री करा लेलक आ जे जमीन बचल ओहिसँ मन्दिरक लागिये नहि रहल। लागि तँ छोड़ू ओहि पर जएबाक रस्ते बन्न कऽ देलक। आ ई बजरंगबली। महावीर। कोन शक्ति छैक एकरामे ? चालीस साल पेट काटि कऽ हिनका खोपड़ीसँ पक्काक घरमे अनलहुँ। ढलैय्या भऽ जइतए, चहरदिवारी बनि जइतए सैह टा मनोरथ रहए, आ सेहो हिनके लेल। हा... ”
६
एहि भोरमे भातिजक द्वारिपर ठाढ़ अनमाना दीदी। लोक सभक मोने जे आब आर बाझत झगड़ा। मुदा ई की भऽ रहल अछि। लछमियाँक भाए रिक्शा अनलक अछि। अनमाना दीदी भातिजक संग झंझारपुर जा रहल छथि। के कहलक? हुनकासँ तँ ककरो गपो नहि भेल रहै। हम कहनहियो रहियन्हि पंचैती कराऊ, मुदा मना जेकाँ कऽ देने रहथि। अच्छा, लछमीक भाए कहलक। हँ, रिक्शा बजबै लेल जे गेल रहए, से कहने हएत जे झंझारपुर जेबाक अछि।
दासजीकेँ एकटा आर रजिस्ट्रीक कागत बनबए पड़लन्हि। अनमाना दीदीकेँ देखि ओ सर्द भऽ गेल रहथि जे जानि नहि बूढ़ी की सभ सुनओथिन्ह। मुदा अनमाना दीदी ततेक ने तामसमे छलीह जे किछु नहि बजलीह। तामस पीबि गेलीह। ओहो पाछू बला जमीन भातिजकेँ रजिस्ट्री कऽ देलन्हि। आ झंझारपुर-स्टेशनसँ घुरि कऽ झंझारपुर बजार दिस बेटा पुतोहु लग पएरे बिदा भेलीह।
लछमीक भाए घुरि आएल। दू सवारीकेँ लऽ गेल रहए मुदा मात्र एक सवारी लऽ कऽ घुरि आएल। संगमे संदेश लेने गेल। लछमी मिस्त्री आ करीम मिआँ लेल संदेश। काल्हि भोरेसँ काज आरम्भ। फेरसँ?
७
चहरदेबाली बनल। भगवानक मन्दिर आ अनमाना दीदीक घरकेँ बारि कऽ। कहि देने छियन्हि दीदी केँ। हुनका जिबैत क्यो छूतन्हि नहि हुनकर घर।
घर आकि खोपड़ी, एक साल कनेक टूटल। दोसर भदबरियामे खुट्टा सरि कऽ खसि पड़ल। मुदा अनमाना दीदी नहि अएलीह। समाद देने रहन्हि नैहरक एक गोटे। ढलैया नहिये भेलन्हि बजरंगबलीक। अनमना दीदी हरिद्वारसँ घुरि अएलीह। लोक पुछलकन्हि- की माँगलहुँ गंगा माएसँ।
“यएह जे अंधविश्वास हमरा मोनसँ हटा दिअ”।
“आ की देलियन्हि गंगा माएकेँ ?”
“अपन तामस दऽ देलियन्हि”।
अनमाना दीदी यएह कहथि- की करबन्हि। कोनो शक्तिये नहि छन्हि बजरंगबलीमे। खसए दियौक खोपड़ी। सोंगर लागल घर कतेक दिन काज देत।
-मिलू। भामतीमे वाचस्पति कहै छथि जे अविद्या जीवपर आश्रित अछि आ विषय बनि गेल अछि। आत्मसाक्षात्कार लेल कोन विधि स्वीकार करब? असत्य कथूक कारण कोना भऽ सकत? कोनो बौस्तुक सत्ता ओकरा सत्य कोना बना देत, त्रिकालमे ओकर उपस्थिति कोना सिद्ध कऽ सकत? जे बौस्तु नहि तँ सत्य अछि आ नहिये असत्य आ नहि अछि एहि दुनूक युग्मरूप; सैह अछि अनिर्वाच्य। बिना कोनो वस्तु आ ओकर ज्ञान रखनिहारक शून्यक अवधारणा कोना बूझऽमे आओत?
धुर। फेर हम उनटा-पुनटा सोचि रहल छी। पिपही बाजए लागल रहए आ लीखपर देने हम आ मिलू, भरि टोलक स्त्रीगण-पुरुषक संगे बँसबिट्टी पहुँचि गेल रही। रस्तामे ओहि स्थलकेँ अकानने रही। मिलू आ आनन्दाक पहिल मिलनक स्थलकेँ- कोनो अबाज लागल अबैत..मात्र संगीत..स्वर नहि।
बरुआ बाँस सभपर थप्पा दऽ देने रहै आ सभ बाँस कटनाइ शुरू कऽ देने रहथि। मड़बठट्ठी आइये छै। घामे-पसीने भेने कनेक मोन तोषित भेल। कन्हापर बाँस लेने हम आ मिलू ओही रस्ते बिदा भेल रही..ओही लीख देने।
…
मुदा मिलू हमरा सदिखन टोकारा देमए लागल। कारण कोनो काज हम एतेक देरीसँ नञि केने रहिऐ। ओ हमर राम रहए आ हम ओकर हनुमान।
मचानपर एहिना एक दिन हम मिलूकेँ कहि देलिऐ-
-मिलू, बिसरि जो ओकरा। कथी लेल बदनामी करबिहीं ओकर। हिरुआक बेटी छिऐ आनन्दा। ओना तोहर नाम हमरासँ ओ पुछलक तँ हम तोहर नाम आ तोहर पिताजीक नाम सेहो कहि देलिऐ।
“विद्वान् जन। रस्सीकेँ साँप हम अही द्वारे बुझै छी जे दुनूक पृथक अस्तित्व छै। आँखि घोकचा कऽ दूटा चन्द्रमा देखै छी तँ तखनो अकाशक दूटा वास्तविक भागमे चन्द्रमाकेँ प्रत्यारोपित करै छी। भ्रमक कारण विषय नहि संसर्ग छै, ओना उद्देश्य आ विधेय दुनू सत्य छै। आ एतए सभ विषयक ज्ञान सेहो आत्माक ज्ञान नहि दऽ सकैए। आत्माक विचारसँ अहंवृत्ति- अपन एहि तथ्यक बोध होइत अछि। आत्मा ज्ञानक कर्ता आ कर्म दुनू अछि। पदार्थक अर्थ संसर्गसँ भेटैत अछि। शब्द सुनलाक बाद ओकर अर्थ अनुमानसँ लग होइत अछि”।
“अहाँ शब्दक भ्रम उत्पन्न कऽ रहल छी। हम सभ एहिमे मिलू आ आनन्दाक बियाहक अहाँक इच्छा देखै छी”।
“संकल्प भेल इच्छा आ तकर पूर्ति नहि हो से भेल द्वेष”।
“तँ ई हम सभ द्वेषवश कहि रहल छी। अहाँक नजरिमे जातिक कोनो महत्व नहि?”
“देखू, आनन्दा सर्वगुणसम्पन्न छथि आ हुनकर आ हमर एक जाति अछि आ से अछि अनुवृत्त आ सर्वलोक प्रत्यक्ष। ओ हमर धरोहरक रक्षण कऽ सकतीह, से हमर विश्वास अछि। आ ई हमर निर्णय अछि”।
“आ ई हमर निर्णय अछि।”- ई शब्द हमर आ हिरूक कानमे एक्के बेर नै पैसल रहए। हम तँ हिरु आ मिलूकेँ चिन्हैत रहियन्हि, एहिना अनचोक्के निर्णय सुनबाक अभ्यासी भऽ गेल रही। मुदा हिरु कनेक कालक बाद एहि शब्द सभक प्रतिध्वनि सुनलन्हि जेना। हुनकर अचम्भित नजरि हमरा दिस घुमि गेल छलन्हि।
- मिलू। मुक्ति ज्ञानसँ पृथक् कोनो बौस्तु नहि अछि। मुक्ति स्वयं ज्ञान भेल। मानवक क्षुद्र बुद्धिक कतहु उपेक्षा मंडन नहि केने छथि। कर्मक महत्व ओ बुझैत छथि। मुदा ताहिटा सँ मुक्ति नहि भेटत। स्फोटकेँ ध्वनि-शब्दक रूपमे अर्थ दैत मंडन देखलन्हि। से शंकरसँ ओ एहि अर्थेँ भिन्न छथि जे एहि स्फोटक तादात्म्य ओ बनबैत छथि मुदा शंकर ब्रह्मसँ कम कोनो तादात्म्य नहि मानै छथि। से मंडन शंकरसँ बेशी शुद्ध अद्वैतवादी भेलाह।
-मिलू। मंडन क्षमता आ अक्षमताक एक संग भेनाइकेँ विरोधी तत्व नहि मानैत छथि। ई कखनो अर्थक्रियाकृत भेद होइत अछि, मुदा ओ भेद मूल तत्व कोना भऽ गेल। से ई ब्रह्म सभ भेदमे रहलोपर सभ काज कऽ सकैए।
-देखू। वाचस्पतिक भामती प्रस्थानक विचार मंडन मिश्रक विचारसँ मेल खाइत अछि। मंडन मिश्रक ब्रह्मसिद्धिपर वाचस्पति तत्वसमीक्षा लिखने छथि। ओना तत्वसमीक्षा आब उपलब्ध नै छै।
-तखन तत्व समीक्षाक चर्चा कोना आएल।
-वाचस्पतिक भामतीमे एकर चर्चा छै।
-मुदा मंडनक विचार जानबासँ पूर्व हमरा मोनमे आबि रहल अछि जे जखन ओ शंकराचार्यसँ हारि गेलाह तखन हुनकर हारल सिद्धान्तक पारायणसँ हमरा मोनकेँ कोना शान्ति भेटत।
वल्लभा आ मेधा अबै छथि आ मिलू गीत गबए लगै छथि। आनन्दाक गीत। आनन्दा जे गबै छलीह वल्लभा आ मेधा लेल-
लाल परी हे गुलाब परी
लाल परी हे गुलाब परी
हे गगनपर नाचत इन्द्र परी
हे गुलाबपर नाचत इन्द्र परी
रकतमाला दुआरपर निरधन खड़ी
हे रकतमाला दुआरपर निरधन खड़ी
माँ हे निरधनकेँ धन यै देने परी
माँ हे निरधनकेँ धन जे देने परी
लाल परी हे गुलाब परी
माँ हे रकतमाला दुआरपर अन्धरा खड़ी
माँ हे अन्धराकेँ नयन दियौ जलदी
माँ हे अन्धराकेँ नयन दियौ जलदी
बाप आ दुनू बेटी भोकार पाड़ए लगै छथि।
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-मिलू। आनन्दाक मृत्यु अहाँ लेल विपदा बनि आएल अछि। अहाँ ब्राह्मण जातिक आ आनन्दा चर्मकारिणी। मुदा दुनू गोटेक प्रेम अतुलनीय। हुनकर मृत्यु लेल दुःखी नहि होउ। ब्रह्म बिना दुखक छथि। ब्रह्मक भावरूप आनन्द छियन्हि। से आनन्दा लेल अहाँक दुःखी होएब अनुचित। ब्रह्म द्रष्टा छथि। दृश्य तँ परिवर्तित होइत रहैए, ओहिसँ द्रष्टाकेँ कोन सरोकार। ई जगत-प्रपंच मात्र भ्रम नहि अछि, एकर व्यावहारिक सत्ता तँ छै। मुदा ई व्यावहारिक सत्ता सत्य नहि अछि।
-मिलू। चेतन आ अचेतनक बीच अन्तर छै मुदा से सत्य नै छै। जीवक कएकटा प्रकार छै, आ अविद्याक सेहो कएकटा प्रकार छै। अविद्या एकटा दोष भेल मुदा तकर आश्रय ब्रह्म कोना होएत, पूर्ण जीव कोना होएत। ओकर आश्रय होएत एकटा अपूर्ण जीव। अविद्या तखन सत्य नहि अछि मुदा खूब असत्य सेहो नहि अछि।
-मिलू। एहि अविद्याकेँ दूर करू आ तकरे मोक्ष कहल जाइत अछि। वैह मोक्ष जे आनन्दा प्राप्त केने छथि।
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